अध्याय 01 प्रबंध की प्रकृति एवं महत्त्व

टाटा स्टील में प्रबंधन

1868 में जमशेदजी नुसरवानजी द्वारा स्थापित टाटा समूह एक वैश्विक व्यापार समूह है जो 5 महाद्वीपों के 100 देशों में स्थापित है। मूल्यों, नवाचार और उद्यमिता की मजबूत भावना, एक विरासत के रूप में आज तक टाटा कंपनियों का मार्गदर्शन कर रही है।

जमशेद जी का मानना था कि संतुष्ट श्रमिक संतुष्ट श्रमिकों को बनाते हैं और इसी सिद्धांत पर उन्होंने अपने सभी श्रमिकों को ग्रैच्युटी, भविष्य निधि का सदैव भुगतान किया। पूरे जमशेदपुर शहर की योजना बनाने और निर्माण विवरण तैयार करने पर उनका प्रबंधन कौशल स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। एक शताब्दी के लिए व्यापार को नियंत्रित करने वाले मूल्यों और सिद्धांतों को टाटा आचार संहिता (टी.सी.ओ.सी) में समाहित किया गया है।

इस्पात और ऑटोमोबाइल के शुरुआती दौर से नवीनतम प्रौद्योगिकियों में बराबर रहने तक, टाटा समूह में आज 29 सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध टाटा उद्यम हैं, जिनमें टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, टाटा पावर, टाटा केमिकल्स, टाटा ग्लोबल बेवरेज, टाटा टेलीसर्विसेज, टाइटन, टाटा कम्युनिकेशंस और भारतीय होटल शामिल हैं। समूह का संयुक्त बाजार पूंजीकरण लगभग 103.51 अरब डॉलर $(2016-17)$ है।

टाटा की सामाजिक दायित्व की भावना मजबूत है। वे समुदाय के लिए आर्थिक समृद्धि, पर्यावरणीय जिम्मेदारी और सामाजिक लाभ को संतुलित करते हैं। भारत में, वे ‘ओडिशा’ के साथ प्रगति में भागीदार हैं और विकास की इस यात्रा में अपने हितधारकों को आगे बढ़ाने में विश्वास करते हैं। टाटा स्टील थाईलैंड उन शुरूआती 30 कंपनियों में से एक है जो यूनिसेफ के कार्यक्रम “द चिल्ड्रेन सस्टेनेबिलिटी फोरम” में शामिल है ताकि बच्चों के अधिकारों की रक्षा को प्रतिबद्ध किया जा सके। टाटा स्टील यूरोप का सामुदायिक साझेदारी कार्यक्रम’फ्यूचर जेनरेशंस’, जिसके उप-विषय हैं- शिक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य और कल्याण ब्रिटेन भर में काम करता है, साथ ही वित्त और व्यावसायिक स्थलों के साथ छोटे एवं मध्यम व्यवसायों को नौकरी और संपत्ति निर्माण में सहायता करता है। वे दोनों तरह से जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने में एक रचनात्मक भूमिका निभाते हैं - कार्बन पदचिह्न को कम करके और उच्च प्रदर्शन स्टील्स बनाकर जो ईंधन-कुशल वाहनों और ऊर्जा-कुशल इमारतों का कारण बनते हैं। उनकी पर्यावरण प्रबंधन प्रणाली आईएसओ 14001 मानकों को उनकी सभी मुख्य विनिर्माण स्थलों पर देखा जा सकता है।

ठोस और स्पष्ट व्यापार सिद्धांतों की परंपरा से निर्मित, टाटा समूह विश्वास एवं पारदर्शिता की नींव पर खड़ा है। ऐसे बड़े उद्यमों का निर्माण, लाभप्रद बनाए रखने और उन्हें चलाने के लिए केवल सभी स्तरों पर प्रभावी और कुशल प्रबंधन और समन्वय के माध्यम से संभव है।

स्रोत-www.tatasteel.com; जून, 2018 के अनुसार।

अधिगम उद्देश्य

इस अध्याय के अध्ययन के पश्चात् आप-

  • प्रबंध की प्रकृति एवं संगठन में इसके महत्त्व को समझा सकेंगे;
  • प्रबंध की प्रकृति को कला, विज्ञान एवं पेशे के रूप में समझा सकेंगे ;
  • प्रबंध के विभिन्न कार्यों का वर्णन कर सकेंगे एवं
  • समन्वय की प्रकृति एवं इसके महत्त्व को समझ सकेंगे।

विषय प्रवेश

उपरोक्त वस्तुस्थिति एक ऐसे सफल संगठन का उदाहरण है जो देश की शीर्षस्थ कंपनियों में से एक है। यह अपनी प्रबंध की गुणवत्ता के परिणामस्वरूप शीर्ष पर पहुँची है। प्रबंध की आवश्यकता हर प्रकार के संगठनों में होती है फिर भले ही वह कंप्यूटर के विनिर्माता हैं अथवा हस्तशिल्प के उपभोक्ता की वस्तुओं में व्यापार करते हैं या फिर केश सज्जा सेवाएँ प्रदान करते हैं एवं वह गैर व्यावसायिक संगठन भी हो सकते हैं। आइए एक उदाहरण और लें-

स्मिता राय एक 38 वर्षीय उद्यमी हैं जो एक ग्रामीण जिले नामची, दक्षिण सिक्किम में पली-बढ़ी हैं। वह शिल्पकला, विशेष रूप से मोम कला में बहुत अच्छी थीं। उन्हें मोमबत्तियाँ बनाना पसंद था। अक्सर वह मोम के खिलौने बनातों और उन्हें अपने दोस्तों और जानकारों को उपहार स्वरूप देती थीं। स्मिता अपने जिले में महिलाओं की परिस्थितियों से कभी खुश नहीं थीं क्योंकि उनमें से ज़्यादातर गरीब और बेरोज़गार थीं। इसलिए उन्होंने इन समस्याओं को हल करने के लिए कुछ करने की योजना बनाई। उन्हें पता था कि आजीविका के लिए कौशल प्रदान करना आवश्यक है लेकिन यह नहीं पता था कि उन्हें कैसे कार्यान्वित किया जाए।

वह अगस्त 2012 में अभिषेक लामा से मिलीं। अभिषेक एन.ई.डी.एफ.आई के नामची शाखा के प्रबंधक थे। स्मिता ने अभिषेक से कौशल विकास कार्यक्रमों और गतिविधियों की जानकारी प्राप्त की। स्मिता ने सोचा कि उन्हें

मोमबत्तियाँ बनाना पसंद है, फिर अपने इस शौक को क्यों न एक उद्यम में परिवर्तित किया जाए। इस प्रकार एन.ई.डी.एफ.आई के समर्थन से ‘नामची डिज़ाइनर कैंडल्स’ की स्थापना हुई। इस व्यवसाय के माध्यम से स्मिता नामची क्षेत्र की गरीब और बेरोजगार महिलाओं की सहायता करना चाहती थीं।

तब से, चुनौतियों के बावजूद महिलाओं ने कभी मुड़कर पीछे नहीं देखा। उन्हें कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा लेकिन उन सभी ने इनसे पार पाने का दृढ़ निश्चय कर लिया था।

नामची डिज़ाइनर कैंडल्स में कर्मचारियों के रूप में 100 प्रतिशत महिलाएं हैं और वे मोमबत्तियों की कई किस्मों का उत्पादन भी करती हैं। दिवाली के दौरान, वे इस अवसर के अनुकूल मोमबत्तियाँ बनाती हैं। दीवाली थीम वाली ये मोमबत्तियाँ सिक्किम में काफ़ी सफल रही हैं क्योंकि इनकी मांग में साल-दर-साल इजाफ़ा हो रहा है। ‘नामची डिज़ाइनर कैंडल्स’ को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है जिसमें उत्तर-पूर्व महिला उद्यमी पुरस्कार 2018 और वर्ष 2015-2016 के लिये श्रीमंत शंकर मिशन पुरस्कार, गुवाहाटी शामिल है।

जिस प्रकार स्मिता ‘नामची डिज़ाइनर कैंडल्स’ का प्रबंधन करती हैं, उसी प्रकार आपके विद्यालय के प्रधानाचार्य भी प्रबंधक हैं। ये सभी लोग संगठनों का प्रबंध करते हैं। विद्यालय, अस्पताल, दुकानें एवं बड़े निगम सभी तो संगठन हैं जिनके अलग-अलग उद्देश्य हैं और जिन्हें वे पाना चाहते हैं। कोई भी संगठन हो तथा उसके कुछ भी उद्देश्य हों, उन सब में एक चीज समान है और वह है प्रबंध एवं प्रबंधक। आपने देखा कि प्रबंधक के रूप में स्मिता संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रबंधक के रूप विभिन्न क्रियाएँ एवं कार्य करती हैं। पारस्परिक रूप से संबंधित एवं एक दूसरे पर निर्भर यह कार्य प्रबंध कहलाते हैं। सफल संगठन अपने उद्देश्यों को मात्र संयोग से ही नहीं प्राप्त कर लेते बल्कि यह एक पूर्व निर्धारित/सोची समझी प्रक्रिया को अपनाते हैं जिसे प्रबंध कहते हैं।

संगठन भले ही बड़ा हो या छोटा, लाभ के लिए हो अथवा गैर-लाभ वाला, सेवा प्रदान करता हो अथवा विनिर्माणकर्ता, प्रबंध सभी के लिए आवश्यक है। प्रबंध इसलिए आवश्यक है कि व्यक्ति सामूहिक उद्देश्यों की पूर्ति में अपना श्रेष्ठतम योगदान दे सकें।

प्रबंध में पारस्परिक रूप से संबंधित वह कार्य सम्मिलित हैं जिन्हें सभी प्रबंधक करते हैं। इस अध्याय में आगे आप समझ पायेंगे कि यद्यपि दोनों ही प्रबंधक हैं लेकिन यह संगठन के अलग-अलग स्तर पर कार्य करते हैं। प्रबंधक अलग-अलग कार्यों पर भिन्न समय लगाते हैं। संगठन के उच्चस्तर पर बैठे प्रबंधक नियोजन एवं संगठन पर नीचे स्तर के प्रबंधकों की तुलना में अधिक समय लगाते हैं।

प्रबंध की परिभाषाएँ

“प्रबंध एक ऐसा पर्यावरण तैयार करने एवं उसे बनाए रखने की प्रक्रिया है जिसमें लोग समूह में कार्य करते हुए चुनीदा लक्ष्यों को कुशलता से प्राप्त करते हैं।”

हैरल्ड कून्ट्ज एवं हींज क्हरिक

“प्रबंध को परिभाषित किया गया है कि यह संगठन के परिचालन के नियोजन संगठन एवं नियंत्रण की प्रक्रिया है जो उद्देश्यों को प्रभावी एवं कुशलता से पूरा करने के लिए मानव एवं भौतिक संसाधनों में समन्वय के लिए की जाती है।”

रॉबर्ट एल ट्रिवैली एवं एम. जैनी न्यूपोर्ट

“प्रबंध परिवर्तनशील पर्यावरण में सीमित संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करते हुए संगठन के उद्देश्यों को, प्रभावी ढंग से प्राप्त करने, के लिए दूसरों से मिलकर एवं उनके माध्यम से कार्य करने की प्रक्रिया है।”

क्रीटनर

अवधारणा

कई लेखकों ने प्रबंध की परिभाषा दी है। प्रबंध शब्द एक बहुप्रचलित शब्द है जिसे सभी प्रकार की क्रियाओं के लिए व्यापक रूप से प्रयुक्त किया गया है। वैसे यह किसी भी उद्यम की विभिन्न क्रियाओं के लिए मुख्य रूप से प्रयुक्त हुआ है। उपरोक्त उदाहरण एवं वस्तुस्थिति के अध्ययन से यह स्पष्ट हो गया होगा कि प्रबंध वह क्रिया है जो हर उस संगठन में आवश्यक है जिसमें लोग समूह के रूप में कार्य कर रहे हैं। संगठन में लोग अलग-अलग प्रकार के कार्य करते हैं लेकिन वह अभी समान उद्देश्य को पाने के लिए कार्य करते हैं। प्रबंध लोगों के प्रयत्नों एवं समान उद्देश्य को प्राप्त करने में दिशा प्रदान करता है। इस प्रकार से प्रबंध यह देखता है कि कार्य पूरे हों एवं लक्ष्य प्राप्त किए जाएँ (अर्थात् प्रभावपूर्णता) कम-से-कम साधन एवं न्यूनतम लागत (अर्थात् कार्य क्षमता) पर हो।

अतः प्रबंध को परिभाषित किया जा सकता है कि यह उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से एवं दक्षता से प्राप्त करने के उद्देश्य से कार्यों को पूरा कराने की प्रक्रिया है। हमे इस परिभाषा के विश्लेषण की आवश्यकता है। कुछ शब्द ऐसे हैं जिनका विस्तार से वर्णन करना आवश्यक है। ये शब्द हैं-(क) प्रक्रिया (ख) प्रभावी ढंग से एवं (ग) पूर्ण क्षमता से।

परिभाषा में प्रयुक्त प्रक्रिया से अभिप्राय है प्राथमिक कार्य अथवा क्रियाएँ जिन्हें प्रबंध कार्यों को पूरा कराने के लिए करता है। ये कार्य हैंनियोजन, संगठन, नियुक्तिकरण, निर्देशन एवं नियंत्रण जिन पर चर्चा इस अध्याय में एवं पुस्तक में आगे की जाएगी।

प्रभावी अथवा कार्य को प्रभावी ढंग से करने का वास्तव में अभिप्रायः दिए गए कार्य को संपन्न करना है। प्रभावी प्रबंध का संबंध सही कार्य को करने, क्रियाओं को पूरा करने एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने से है। दूसरे शब्दों में, इसका कार्य अंतिम परिणाम प्राप्त करना है।

लेकिन मात्र कार्य को संपन्न करना ही पर्याप्त नहीं है इसका एक और पहलू भी है और वह है कार्यकुशलता अर्थात् कार्य को कुशलतापूर्वक करना।

कुशलता का अर्थ है कार्य को सही ढंग से न्यूनतम लागत पर करना। इसमें एक प्रकार का लागत-लाभ विश्लेषण एवं आगत तथा निर्गत के बीच संबंध होता है। यदि कम साधनों (आगत) का उपयोग कर अधिक लाभ (निर्गत) प्राप्त करते हैं तो हम कहेंगे कि क्षमता में वृद्धि हुई है। क्षमता में वृद्धि होगी यदि उसी लाभ के लिए अथवा निर्गत के लिए कम साधनों का उपयोग किया जाता है एवं कम लागत व्यय की जाती है। आगत साधन वे हैं जो किसी कार्य विशेष को करने के लिए आवश्यक धन, माल उपकरण एवं मानव संसाधन हों। स्वभाविक है कि प्रबंध का संबंध इन संसाधनों के कुशल प्रयोग से है क्योंकि इनसे लागत कम होती है एवं अन्त में इनसे लाभ में वृद्धि होती है।

प्रभावपूर्णता बनाम कुशलता

यह दोनों शब्द अलग-अलग होते हुए भी एक दूसरे से संबंधित हैं। प्रबंध के लिए प्रभावी एवं क्षमतावान दोनों का होना महत्त्वपूर्ण है। प्रभावपूर्णता एवं कौशल दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

लेकिन इन दोनों पक्षों में संतुलन आवश्यक है तथा कभी-कभी प्रबंध को कुशलता से समझौता करना होता है। उदाहरण के लिए प्रभावपूर्ण होना एवं कुशलता की अनदेखी करना सरल है जिसका अर्थ है कार्य को पूरा करना लेकिन ऊँची लागत पर। उदाहरण के लिए, माना एक कंपनी का लक्ष्य वर्ष में 8,000 इकाइयों का उत्पादन करना है। इस लक्ष्य को पाने के लिए अधिकांश समय बिजली न मिलने पर प्रबंधक प्रभावोत्पादक तो था लेकिन क्षमतावान नहीं था क्योंकि, उसी निर्गत के लिए अधिक आगत ( श्रम की लागत, बिजली की लागत) का उपयोग किया गया। कभी-कभी व्यवसाय कम संसाधनों से माल के उत्पादन पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है अर्थात् लागत तो कम कर दी लेकिन निर्धारित उत्पादन नहीं कर पाए। परिणामस्वरूप माल बाज़ार में नहीं पहुँच पाया इसलिए इसकी माँग कम हो गई तथा इसका स्थान प्रतियोगियों ने ले लिया। यह कार्यकुशलता लेकिन प्रभावपूर्णता की कमी की स्थिति है क्योंकि माल बाज़ार में नहीं पहुँच पाया। इसलिए न्यूनतम लागत पर (कुशलतापूर्वक) प्रबंधक लिए लक्ष्यों को प्राप्त करना (प्रभावोत्पादकता) अधिक महत्त्पपूर्ण है। इसके लिए प्रभावपूर्णता एवं कुशलता में संतुलन रखना होता है। साधारणतया उच्च कार्य कुशलता के साथ उच्च प्रभावपूर्णता होती है जो कि सभी प्रबंधकों का लक्ष्य होता है। लेकिन बगैर प्रभावपूर्णता के उच्च कार्य कुशलता पर अनावश्यक रूप से जोर देना भी अवांछनीय है। कमजोर प्रबंधन प्रभावपूर्णता एवं कार्यकुशल दोनों की कमी के कारण होता है।

प्रबंध की विशेषताएँ

कुछ परिभाषाओं के अध्ययन के पश्चात् हमें कुछ तत्वों का पता लगता है जिन्हें हम प्रबंध की आधारभूत विशेषाएँ कहते हैं।

((क)) प्रबंध एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है- किसी भी संगठन के कुछ मूलाधार उद्देश्य होते हैं जिनके कारण उसका अस्तित्व है। यह उद्देश्य सरल एवं स्पष्ट होने चाहिएँ। प्रत्येक संगठन के उद्देश्य भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिए एक फुटकर दुकान का उद्देश्य बिक्री बढ़ाना हो सकता है लेकिन ‘दि स्पास्टिकस सोसाइटी ऑफ इंडिया’ का उद्देश्य विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों को शिक्षा प्रदान करना है। प्रबंध संगठन के विभिन्न लोगों के प्रयलों को इन उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु एक सूत्र में बाँधता है।

( ख) प्रबंध सर्वव्यापी है- संगठन चाहे आर्थिक हो या सामाजिक या फिर राजनैतिक, प्रवंध की क्रियाएँ सभी में समान हैं। एक पेट्रोल पंप के प्रबंध की भी उतनी ही आवश्यकता है जितनी की एक अस्पताल अथवा एक विद्यालय की है। भारत में प्रबंधकों का जो कार्य है वह यू.एस.ए., जर्मनी अथवा जापान में भी होगा। वह इन्हें कैसे करते हैं यह भिन्न हो सकता है। यह भिन्तता भी उनकी संख्कृति, रीति-रिवाज एवं इतिहास की भिन्नता के कारण हो सकती है। ( ग) प्रबंध बहुआयामी है-प्रबंध एक जटिल क्रिया है जिसके तीन प्रमुख परिमाण हैं, जो इस प्रकार हैं-

(i) कार्य का प्रबंध- सभी संगठन किसी न किसी कार्य को करने के लिए होते हैं। कारखाने में किसी उत्पादक का विनिर्माण होता है तो एक वस्त्र भंडार में ग्राहक के किसी आवश्यकता की पूर्ति की जाती है जबकि अस्पताल में एक मरीज का इलाज किया जाता है। प्रबंध इन कार्यों को प्राप्य उद्देश्यों में परिवर्तित कर देता है तथा इन उद्देशयों को प्राप्त करने के मार्ग निर्धारित करता है। इनमें सम्मलित हैं-समस्याओं का समाधान, निर्णय लेना, योजनाएँ बनाना, बजट बनाना, दायित्व निश्चित करना एवं अधिकारों का प्रत्यायोजन करना।

(ii) लोगों का प्रबंध-मानव संसाधन अर्थात् लोग किसी भी संगठन की सबसे बड़ी संपत्ति होते हैं। तकनीक में सुधारों के बाद भी लोगों से काम करा लेना आज भी प्रबंधक का प्रमुख कार्य है। लोगों के प्रबंधन के दो पहलू हैं-

(अ) प्रथम तो यह कर्मचारियों को अलगअलग आवश्यकताओं एवं व्यवहार वाले व्यक्तियों के रूप में मानकर व्यवहार करता है। (ब) दूसरे यह लोगों के साथ उन्हें एक समूह मानकर व्यवहार करता है। प्रबंध लोगों की ताकत को प्रभावी बनाकर एवं उनकी कमजोरो को अप्रसांगीक बनाकर उनसे संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए काम कराता है।

(iii) परिचालन का प्रबंध-संगठन कोई भी क्यों न हो इसका आस्तित्व किसी न किसी मूल उत्पाद अथवा सेवा को प्रदान करने पर टिका होता है। इसके लिए एक ऐसी उत्पादन प्रक्रिया की आवश्यकता होती है जो आगत माल एवं नियंत्रण) की एक शृंखला है। इन कार्यों को सभी प्रबंधक सदा साथ-साथ ही निष्पादित करते हैं। तुमने ध्यान दिया होगा नामची डिज़ाइनर कैंडल में स्मिता एक ही दिन में कई अलग-अलग कार्य करती हैं। किसी दिन तो वह को उपभोग के लिए आवश्यक निर्गत में बदलने के लिए आगत माल एवं तकनीक के प्रवाह को व्यवस्थित करती है। यह कार्य के प्रबंध एवं लोगों के प्रबंध दोनों से जुड़ी होती है।

चित्र 1.1 -टीम में साथ होने से प्रत्येक अधिक कार्य करता है।

(घ) प्रबंध एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है- प्रबंध प्रक्रिया निरंतर, एकजुट लेकिन पृथक-पृथक कार्यों (नियोजन संगठन, निर्देशन नियुक्तिकरण भविष्य में प्रदर्शनी की योजना बनाने पर अधिक समय लगाती हैं तो दूसरे दिन वह कर्मचारियों की समस्याओं को सुलझाने में लगी होती हैं। प्रबंधक के कार्यों में कार्यों की शृंखला समंवित है जो निरंतर सक्रिय रहती है।

(ङ) ) प्रबंध एक सामूहिक क्रिया है- संगठन भिन्न-भिन्न आवश्यकता वाले अलगअलग प्रकार के लोगों का समूह होता है। समूह का प्रत्येक व्यक्ति संगठन में किसी न किसी अलग उद्देश्य को लेकर सम्मिलित होता है लेकिन संगठन के सदस्य के रूप में वह संगठन के समान उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कार्य करते हैं। इसके लिए एक टीम के रूप में कार्य करना होता है एवं व्यक्तिगत प्रयत्नों में समान दिशा में समन्वय की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही आवश्यकताओं एवं अवसरों में परिवर्तन के अनुसार प्रबंध सदस्यों को बढ़ने एवं उनके विकास को संभव बनाता है।

चित्र 1.2 - प्रबंध-एक बहुआयामी क्रिया।

(च) प्रबंध एक गतिशील कार्य है- प्रबंध एक गतिशील कार्य होता है एवं इसे बदलते पर्यावरण में अपने अनुरूप ढालना होता है। संगठन बाह्य पर्यावरण के संपर्क में आता है जिसमें विभिन्न सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक तत्व सम्मिलित होते हैं सामान्यता के लिए संगठन को, अपने आपको एवं अपने उद्देश्यों को पर्यावरण के अनुरूप बदलना होता है। शायद आप जानते हैं कि फास्टफूड क्षेत्र के विशालकाय संगठन मैकडोनल्स ने भारतीय बाज़ार में टिके रहने के लिए अपनी खान-पान सूची में भारी परिवर्तन किए।

(छ) प्रबंध एक अमूर्त शक्ति है- प्रबंध एक अमूर्त शक्ति है जो दिखाई नहीं पड़ती लेकिन संगठन के कार्यों के रूप में जिसकी उपस्थिति को अनुभव किया जा सकता है। संगठन में प्रबंध के प्रभाव का भान योजनाओं के अनुसार लक्ष्यों की प्राप्ति, प्रसन्न एवं संतुष्ट कर्मचारी के स्थान पर व्यवस्था के रूप में होता है।

प्रबंध के उद्देश्य

प्रबंध कुछ उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कार्य करता है। उद्देश्य किसी भी क्रिया के अपेक्षित परिणाम होते हैं। इन्हें व्यवसाय के मूल प्रयोजन से प्राप्त किया जाना चाहिए। किसी भी संगठन के भिन्न-भिन्न उद्देश्य होते हैं तथा प्रबंध को इन सभी उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से एवं दक्षता से पाना होता है। उद्देश्यों को संगठनात्मक उद्देश्य, सामाजिक उद्देश्य एवं व्यक्तिगत उद्देश्यों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

(क) संगठनात्मक उद्देश्य- प्रबंध, संगठन के लिए उद्देश्यों के निर्धारण एवं उनको पूरा करने के लिए उत्तरदायी होता है। इसे सभी क्षेत्रों के अनेक प्रकार के उद्देश्यों को प्राप्त करना होता है तथा सभी हितार्थियों जैसे-अंशधारी, कर्मचारी, ग्राहक, सरकार आदि के हितों को ध्यान में रखना होता है। किसी भी संगठन का मुख्य उद्देश्य मानव एवं भौतिक संसाधनों के अधिकतम संभव लाभ के लिए उपयोग होना चाहिए। जिसका तात्पर्य है व्यवसाय के आर्थिक उद्देश्यों को पूरा करना। ये उद्देश्य हैंअपने आपको जीवित रखना, लाभ अर्जित करना एवं बढ़ोतरी।

जीवित रहना- किसी भी व्यवसाय का आधारभूत उद्देश्य अपने अस्तित्व को बनाए रखना होता है। प्रबंध को संगठन के बने रहने की दिशा में प्रयत्न करना चाहिए। इसके लिए संगठन को पर्याप्त धन कमाना चाहिए जिससे कि लागतों को पूरा किया जा सके। लाभ-व्यवसाय के लिए इसका बने रहना ही पर्याप्त नहीं है। प्रबंध को यह सुनिश्चित करना होता है कि संगठन लाभ कमाए। लाभ उद्यम के निरंतर सफल परिचालन के लिए एक महत्त्वपूर्ण प्रोत्साहन का कार्य करता है। लाभ व्यवसाय की लागत एवं जोखिमों को पूरा करने के लिए आवश्यक होता है।

बढ़ोतरी- दीर्घ अवधि में अपनी संभावनाओं में वृद्धि व्यवसाय के लिए बहुत आवश्यक है। इसके लिए व्यवसाय का बढ़ना बहुत् महत्त्व रखता है। उद्योग में बने रहने के लिए प्रबंध को संगठन विकास की संभावना का पूरा लाभ उठाना चाहिए। व्यवसाय के विकास को विक्रय आवर्त, कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि या फिर उत्पादों की संख्या या पूँजी के निवेश में वृद्धि आदि के रूप में मापा जा सकता है।

(ख ) सामाजिक उद्देश्य- समाज के लिए लाभों की रचना करना है। संगठन चाहे व्यावसायिक है अथवा गैर व्यावसायिक, समाज के अंग होने के कारण उसे कुछ सामाजिक दायित्वों को पूरा करना होता है। इसका अर्थ है समाज के विभिन्न अंगों के लिए अनुकूल आर्थिक मूल्यों की रचना करना। इसमें सम्मिलित हैं- उत्पादन के पर्यावरण भिन्न पद्धति अपनाना, समाज के वंचित वर्गों को रोज़गार के अवसर प्रदान करना एवं विद्यालय और स्वास्थ्य सेवाएँ जैसी सुविधाएँ प्रदान करना। आगे बॉक्स में एक निगमित सामाजिक दायित्व को पूरा करने वाले संगठन का उदाहरण दिया गया है।

आई्, टी. सी. ग्रामीण भारत का सश्क्तिकरण

भारत के दूर दराज के गाँवों में डिजीटल क्रांति किसानों के जीवन को एक नया ही स्वरूप प्रदान कर रही है। इन गाँवों में किसान जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों पर सोयाबीन, गेहूँ एवं कॉफी उगा रहे हैं जो कि वह हजारों वर्षों से करते आ रहे हैं। एक ठेठ गाँव में बिजली का भरोसा नहीं है और टेलीफोन की लाइन भी बड़ी पुरानी हैं। अधिकांश किसान अनपढ़ हैं तथा उन्होंने कंप्यूटर देखा तक नहीं है। लेकिन इन गाँवों के किसान भारत की सबसे बड़ी उपभोक्ता उत्पाद एवं कृषिजन्य व्यावसायिक कंपनियों में से एक आई. टी. सी. द्वारा रचित ई-चौपाल की पहल पर ई-व्यवसाय कर रहे हैं।

आई. टी. सी. द्वारा ई-चौपाल की पहल किसी भी व्यावसायिक संगठन द्वारा निगमित सामाजिक दायित्वों को पूरा करने का एक सुंदर उदाहरण है। इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य ग्रामीण भारत के किसानों को प्रत्यक्ष विपणन माध्यमों के प्रयोग समझाना तथा, बहु-मध्यस्थ व्यवस्था एवं बेकार आहार प्रदान तथा अनावश्यक लेन-देन की लागत को समाप्त करने के अवसर प्रदान करना है। ग्रामीण भारत में किसी निगमित इकाई की एक मात्र सबसे बड़ी सूचना-तकनीक आधारित हस्तक्षेप है जिसने भारतीय किसान को एक प्रगतिशील जिज्ञासु नागरिक बना दिया है, उसे ज्ञान से माला-माल कर दिया है तथा एक नयी शक्ति प्रदान की है।

ई-चौपाल, किसान को निर्णय लेने की योग्यता में सुधार के लिए सामयिक सूचना एवं व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करती है जिससे कृषि उत्पाद बाज़ार की माँग के अधिक अनुरूप होते हैं, वह श्रेष्ठ गुणवत्ता उत्पादकता एवं, और अधिक मूल्य प्राप्त कर सकते हैं। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र में, साक्षरता का स्तर निम्न कोटी का होता है इसलिए कंप्यूटर टर्मिनल तथा किसानों के बीच व्यक्तिगत संवाद को संभव बनाने में गाँव के अग्रणी किसान की चौपाल संचालक की भूमिका इस परियोजना का केंद्र बिंदु होता है। ई-चौपाल स्मार्ट कार्ड के द्वारा ई-चौपाल काम, वैब साइट पर व्यावहारिक सूचना प्रदान करने के लिए किसान की पहचान संभव हो पाती है। लाइन पर लेन-देन करने से किसानों को बड़ी मात्रा में लाभ एवं माल के बाज़ार मूल्य का लाभ भी मिलता है।

ई-चौपाल की पहल को हार्वड बिजनेस स्कूल में प्रमुख घटना अध्ययन के रूप में स्थान प्राप्त हुआ है जिसमें किसी प्रमुख व्यावसायिक संस्थान द्वारा गरीब ग्रामीणों के लाभ के लिए आधुनिक तकनीकी के उपयोग को उद्धरित किया गया है।

स्रोत- मोहनबीर साहनी, मैक कॉरमिक ट्रीब्यून प्रोफेसर ऑफ टेक्नोलॉजी, केलोग स्कूल ऑफ मैनेजमेंट, यू. एस. ए.

(ग) कर्मचारीगण संबंधी उद्देश्य- संगठन उन लोगों से मिलकर बनता है जिनसे उनका व्यक्तित्व, पृष्ठभूमि, अनुभव एवं उद्देश्य अलग-अलग होते हैं। ये सभी अपनी विविध आवश्यकताओं को संतुष्टि हेतु संगठन का अंग बनते हैं। यह प्रतियोगी वेतन एवं अन्य लाभ जैसी वित्रीय आवश्यकताओं से लेकर साथियों द्वारा मान्यता जैसी सामाजिक आवश्यकताओं एवं व्यक्तिगत बढ़ोतरी एवं विकास जैसी उच्च स्तरीय आवश्यकताओं के रूप में अलग-अलग होती हैं। प्रबंध को संगठन में तालमेल के लिए व्यक्तिगत उद्देश्यों का संगठनात्मक उद्देश्यों के साथ मिलान करना होता है।

प्रबंध का महत्त्व

अब तक हम समझ चुके हैं कि प्रबंध एक सार्वभौमिक क्रिया है जो किसी भी संगठन का अभिन्न अंग है। अब हम उन कुछ कारणों का अध्ययन करेंगे जिसके कारण प्रबंध इतना महत्त्वपूर्ण हो गया है-

(क) प्रबंध सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है- प्रबंध की आवश्यकता प्रबंध के लिए नहीं बल्कि संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए होती है। प्रबंध का कार्य संगठन के कुल उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए व्यक्तिगत प्रयत्न को समान दिशा देना है।

(ख) प्रबंध क्षमता में वृद्धि करता है- प्रबंधक का लक्ष्य संगठन की क्रियाओं के श्रेष्ठ नियोजन, संगठन, निदेशन, नियुक्तिकरण एवं नियंत्रण के माध्यम से लागत को कम करना एवं उत्पादकता को बढ़ाना है।

(ग) प्रबंध गतिशील संगठन का निर्माण करता है- प्रत्येक संगठन का प्रबंध निरंतर बदल रहे पर्यावरण के अंतर्गत करना होता है। सामान्यतः देखा गया है कि किसी भी संगठन में कार्यरत लोग परिवर्तन का विरोध करते हैं क्योंकि इसका अर्थ होता है परिचित, सुरक्षित पर्यावरण से नवीन एवं अधिक चुनौतीपूर्ण पर्यावरण की ओर जाना। प्रबंध लोगों को इन परिवर्तनों को अपनाने में सहायक होता है जिससे कि संगठन अपनी प्रतियोगी श्रेष्ठता को बनाए रखने में सफल रहता है।

(घ) प्रबंध व्यक्तिगत उदेश्यों की प्राप्ति में सहायक होता है- प्रबंधक अपनी टीम को इस प्रकार से प्रोत्साहित करता है एवं उसका नेतृत्व करता है कि प्रत्येक सदस्य संगठन के कुल उद्देश्यों में योगदान देते हुए व्यक्तिगत उद्देश्यों को प्राप्त करता है। अभिप्रेणा एवं नेतृत्व के माध्यम से प्रबंध व्यक्तियों को टीम-भावना, सहयोग एवं सामूहिक सफलता के प्रति प्रतिबद्धता के विकास में सहायता प्रदान करता है।

(ङ) प्रबंध समाज के विकास में सहायक होता है- संगठन बहुुद्देश्यीय होता है जो इसके विभिन्न घटकों के उद्देश्यों को पूरा करता है। इन सबको पूरा करने की प्रक्रिया में प्रबंध संगठन के विकास में सहायक होता है तथा इसके माध्धम से समाज के विकास में सहायक होता है। यह श्रेष्ठ गुणवत्ता वाली वस्तु एवं सेवाओं को उपलन्ध कराने, रोज़गार के अवसरों को पैदा करने, लोगों के भले के लिए नयी तकनीकों को अपनाने, बुद्धि एवं विकास के रास्ते पर चलने में सहायक होता है।

प्रबंध की प्रकृति

प्रबंध इतना ही पुराना है जितनी की सभ्यता। यद्यपि आधुनिक संगठन का उद्गगम नया ही है लेकिन संगठित कार्य तो सभ्यता के प्राचीन समय से ही होते रहे हैं। वास्तव में संगठन को विशिष्ट लक्षण माना जा सकता है जो सभ्य

समाज को असभ्य समाज से अलग करता है। प्रबंध के प्रारंभ के व्यवहार वे नियम एवं कानून थे जो सरकारी एवं वाणिज्यिक क्रियाओं के अनुभव से पनपे। व्यापार एवं वाणिज्य के विकास से क्रमशः प्रबंध के सिद्धांत एवं व्यवहारों का विकास हुआ।

‘प्रबंध’ शब्द आज कई अर्थों में प्रयुक्त होता है जो इसकी प्रकृति के विभिन्न पहलुओं को उजागर करते हैं। प्रबंध के अध्ययन का विकास बीते समय में आधुनिक संगठनों के साथ-साथ हुआ है। यह प्रबंधकों के अनुभव एवं आचरण तथा सिद्धांतों के संबध समूह दोनों पर आधारित रहा है। बीते समय में इसका एक गतिशील विषय के रूप में विकास हुआ है। जिसकी अपनी विशिष्ट विशेषताएँ हैं। लेकिन प्रबंध की प्रकृति से संबंधित एक प्रश्न का उत्तर देना आवश्यक है कि प्रबंध विज्ञान है या कला है या फिर दोनों है? इसका उत्तर देने के लिए आइए विज्ञान एवं कला दोनों की विशेषताओं का अध्ययन करें तथा देखें कि प्रबंध कहाँ तक इसकी पूर्ति करता है।

प्रबंध एक कला

कला क्या है? कला इच्छित परिणामों को पाने के लिए वर्तमान ज्ञान का व्यक्तिगत एवं दक्षतापूर्ण उपयोग है। इसे अध्ययन, अवलोकन एवं अनुभव से प्राप्त किया जा सकता है। अब क्योंकि कला का संबंध ज्ञान के व्यक्तिगत उपयोग से है इसलिए अध्ययन किए गए मूलभूत सिद्धांतों को व्यवहार में लाने के लिए एक प्रकार की मौलिकता एवं रचनात्मकता की आवश्यकता होती है। कला के आधारभूत लक्षण इस प्रकार हैं-

(क) सैद्धांतिक ज्ञान का होना- कला यह मानकर चलती है कि कुछ सैद्धांतिक ज्ञान पहले से है। विशेषजों ने अपने-अपने क्षेत्रों में कुछ मूलभूत सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है जो एक विशेष प्रकार की कला में प्रयुक्त होता है। उदाहरण के लिए नृत्य, जन संबोधन/भाषण, कला अथवा संगीत पर साहित्य सर्वमान्य है।

(ख) व्यक्तिगत योग्यतानुसार उपयोग- इस मूलभूत ज्ञान का उपयोग व्यक्ति, व्यक्ति के अनुसार अलग-अलग होता है। कला, इसीलिए अत्यंत व्यक्तिगत अवधारणा है। उदाहरण के लिए दो नर्तक, दो वक्ता, दो कलाकार अथवा दो लेखकों की अपनी कला के प्रदर्शन में भिन्नता होगी।

(ग) व्यवहार एवं रचनात्मकता पर आधारित- सभी कला व्यवहारिक होती हैं। कला वर्तमान सिद्धांतों को ज्ञान का रचनात्मक उपयोग है। हम जानते हैं कि संगीत सात सुरों पर आधारित है। लेकिन किसी संगीतकार की संगीत रचना विशिष्ट अथवा भिन्न होती है यह इस बात पर निर्भर करती है कि इन सुरों का किस प्रकार से संगीत सृजन में प्रयोग किया गया है, जो कि उसकी अपनी व्याख्या होती है।

प्रबंध एक कला है क्योंकि, यह निम्न विशेषताओं को पूरा करती है-

(i) एक सफल प्रबंधक, प्रबंध कला का उद्यम के दिन प्रतिदिन के प्रबंध में उपयोग करता है जो कि अध्ययन, अवलोकन एवं अनुभव पर आधारित होती है। प्रबंध के विभिन्न क्षेत्र हैं जिनसे संबंधित पर्याप्त साहित्य उपलब्ध है। ये क्षेत्र हैं- विपणन, वित्त एवं मानव संसाधन जिनमें प्रबंधक को विशिष्टता प्राप्त करनी होती है। इनके सिद्धांत पहले से ही विद्यमान हैं।

(ii) प्रबंध के विभिन्न सिद्धांत हैं जिनका प्रतिपादन कई प्रबंध विचारकों ने दिया है तथा जो कुछ सर्वव्यापी सिद्धांतों को अधिकृत करते हैं। कोई भी प्रबंधक इन वैज्ञानिक पद्धतियों एवं ज्ञान को दी गई परिस्थिति मामले अथवा समस्या के अनुसार अपने विशिष्ट तरीके से प्रयोग करता है। एक अच्छा प्रबंधक वह है जो व्यवहार, रचनात्मकता, कल्पना शक्ति, पहल क्षमता आदि को मिलाकर कार्य करता है। एक प्रबंधक एक लंबे अभ्यास के पश्चात् संपूर्णता को प्राप्त करता है। प्रबंध के विद्यार्थी भी अपनी सृजनात्मकता के आधार पर इन सिद्धांतों को अलगअलग ढंग से प्रयुक्त करते हैं।

(iii) एक प्रबंध इस प्राप्त ज्ञान का परिस्थितिजन्य वास्तविकता के परिदृश्य में व्यक्तिनुसार एवं दक्षतानुसार उपयोग करता है। वह संगठन की गतिविधियों में लिप्त रहता है, नाजुक परिस्थितियों का अध्ययन करता है एवं अपने सिद्धांतों का निर्माण करता है जिन्हें दी गई परिस्थितियों के अनुसार उपयोग में लाया जा सकता है। इससे प्रबंध की विभिन्न शैलियों का जन्म होता है।

सर्वश्रेष्ठ प्रबंधक वह होते हैं जो समर्पित हैं, जिन्हें उच्च प्रशिक्षण एवं शिक्षा प्राप्त हैं, उनमें उत्कट आकांक्षा, स्वयं प्रोत्साहन सृजनात्मकता एवं कल्पनाशीलता जैसे व्यक्तिगत गुण हैं तथा वह स्वयं एवं संगठन के विकास की इच्छा रखता है।

प्रबंध एक विज्ञान के रूप में

प्रबंधक एक क्रमबद्ध ज्ञान-समूह है किन्हीं सामान्य सत्य अथवा सामान्य सिद्धांतों को स्पष्ट करता है विज्ञान की मूलभूत विशेषताएँ निम्न हैं-

(क) क्रमबद्ध ज्ञान-समूह- विज्ञान, ज्ञान का क्रमबद्ध समूह है। इसके सिद्धांत कारण एवं परिणाम के बीच में संबंध आधारित हैं। उदाहरण के लिए, पेड़ से सेब का टूटकर पृथ्वी पर आने की घटना गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को जन्म देती है।

(ख) परीक्षण पर आधारित सिद्धांतवैज्ञानिक सिद्धांतों को पहले अवलोकन के माध्यम से विकसित किया जाता है और फिर नियंत्रित परिस्थितियों में बार-बार परीक्षण कर उसकी जांच की जाती है।

कुछ रोचक भिन्न-संकाययो स्बरूप

मानव शास्त्र- मानव शास्त्र भिन्न-भिन्न समाजों का अध्ययन है जो हमें लोगों एवं उनकी क्रियाओं के अध्ययन में सहायता करता है। उदाहरण के लिए मानवशास्त्रियों ने विभिन्न संस्कृतियों एवं पर्यावरण पर कार्य, प्रबंधकों को विभिन्न देशों के नागरिकों के बीच एवं विभिन्न संगठनों के अंदर आधारभूत मूल्य प्रवृत्ति एवं व्यवहार में अंतर को और अधिक समझने में सहायता किया है।

अर्थशास्त्र- अर्थशास्त्र का संबंध सीमित साधनों के आवंटन एवं वितरण से है। इससे हम अर्थव्यवस्था में हो रहे परिवर्तनों एवं भूमंडल के संदर्भ में प्रतियोगिता एवं स्वतंत्र बाज़ार की भूमिका को समझ सकते हैं। वैश्विक बाज़ार में कार्यरत किसी भी प्रबंधक के लिए स्वतंत्र व्यापार एवं सुरक्षात्मक नीतियों को समझना अत्यंत आवश्यक है और यह विषय अर्थशास्त्र के माध्यम से ही समझे जा सकते हैं।

दर्शनशास्त्र- दर्शनशास्त्र की विषयवस्तु, वस्तुओं की प्रकृति को समझाती हैं विशेषतः मूल्य एवं नैतिकता को। नैतिकता न्यायोचित अधिकार को आधार प्रदान करती है, प्रतिफल को निष्पादन से जोड़ती है एवं व्यवसाय के अस्तित्व एवं निगमित स्वरूप का औचित्य निश्चित करती है। इसने सेवा संगठनों को आधुनिक स्वरूप प्रदान किया है।

राजनीतिक शास्त्र- राजनीतिक शास्त्र निश्चित राजनैतिक पर्यावरण में व्यक्ति एवं समूह का अध्ययन है। प्रबंध, देश की सरकार के स्वरूप से प्रभावित होता है, अर्थात् क्या यह अपने नागरिकों को संपत्ति रखने का अधिकार देती है? इसके नागरिक अनुबंध करने एवं इनके पालन कराने में कितने सक्षम हैं तथा शिकायतों को दूर करने के लिए अपील तंत्र क्या हैं। किसी देश की संपत्ति, अनुबंध एवं न्याय के संबंध में नीति संगठनों के प्रकार, स्वरूप एवं राजनीति को निर्धारित करती है।

मनोविज्ञान शास्त्र- मनोविज्ञान शास्त्र वह है जो मनुष्य एवं अन्य जीवों के व्यवहार का मापन करता है और समझाता है तथा कभी-कभी उसमें परिवर्तन भी ला देता है। आज के समय में प्रबंधकों का सामना विभिन्न प्रकार के उपभोक्ताओं एवं अलग-अलग प्रवृत्ति के कर्मचारियों से पड़ता है। मनौवैज्ञानिक लिंग-भेद एवं संस्कृति में अनेकता को समझने का प्रयत्न करते हैं जिससे प्रबंधकों को अपने बदलते ग्राहक एवं कर्मचारियों की आवश्यकताओं का और अच्छा ज्ञान हो जाता है। मनौविज्ञान विषय प्रबंधकों के लिए उपयोगी हैं, क्योंकि इसकी सहायता से यह प्रोत्साहन, नेतृत्व, विश्वास कर्मचारियों का चयन, निष्पादन मूल्यांकन एवं प्रशिक्षण तकनीकों को भली-भाँति समझ सकते हैं।

समाज शास्त्र- समाज शास्त्र लोगों का अन्य व्यक्तियों से संबंधों का अध्ययन है। वह कौन-सी सामाजिक समस्याएँ हैं जो प्रबंधकों के लिए प्रासंगिक हैं? इनमें से कुछ इस प्रकार हैं। कुछ सामाजिक परिवर्तन जैसेवैश्वीकरण, बढ़ती हुई सांस्कृतिक विविधता, बदलती लिंग भूमिका एवं गृहस्थ जीवन के विभिन्न स्वरूप, आदि। किस प्रकार से संगठन की कार्य प्रणाली को प्रभावित कर रहे हैं, विद्यालयी पद्धति एवं शैक्षणिक प्रवृत्ति का कल के कर्मचारियों के कौशल एवं योग्यताओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा, आदि जैसे प्रश्नों का उत्तर प्रबंधकों द्वारा व्यवसाय के प्रचालन को प्रभावित करते हैं।

स्रोत-फंडामेंटल्स ऑफ मैनेजमेंट स्टीफन पी. रॉबिन्स डेविड ए. डीसेनजो

प्रबंध की प्रकृति एवं महत्त्व

(ग) व्यापक वैधता- वैज्ञानिक सिद्धांत, वैधता एवं उपयोग के लिए सार्वभौमिक होते हैं। उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर हम कह सकते हैं प्रबंध विज्ञान के रूप में कुछ विशेषताओं को धारण करता है-

(i) प्रबंध भी क्रमबद्ध ज्ञान-समूह है। इसके अपने सिद्धांत एवं नियम हैं जो समय-समय पर विकसित हुए हैं। लेकिन ये अन्य विषय जैसे-अर्थशास्त्र, समाज शास्त्र, मनोविज्ञान शास्त्र एवं गणित से भी प्रेरित होता है। अन्य किसी भी संगठित क्रिया के समान प्रबंध की भी अपनी शब्दावली एवं अवधारणाओं का शब्दकोष है। उदाहरण के लिए हम क्रिकेट अथवा फुटबॉल जैसे खेलों पर चर्चा के समय समान शब्दावली का उपयोग करते हैं। खिलाड़ी भी एक दूसरे से बातचीत करने में इन्हीं शब्दों का प्रयोग करते हैं। इसी प्रकार से प्रबंधकों को भी एक दूसरे से संवाद करते समय समान शब्दावली का प्रयोग करना चाहिए तभी वह अपने कार्य की स्थिति को सही रूप में समझ पाएंगे।

(ii) प्रबंध के सिद्धांत, विभिन्न संगठनों में बार-बार के परीक्षण एवं अवलोकन के आधार पर विकसित हुए हैं। अब क्योंकि प्रबंध का संबंध मनुष्य एवं मानवीय व्यवहार से है, इसलिए इन परीक्षणों के परिणामों की न तो सही भविष्यवाणी की जा सकती है और न ही यह प्रतिध्वनित होते हैं। इन सीमाओं के होते हुए भी प्रबंध के विद्वान प्रबंध के सामान्य सिद्धांतों की पहचान करने में सफल रहे हैं। एफ. डब्ल्यू. टेलर के वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांत एवं हैनरी फेयॉल के कार्यात्मक प्रबंध के सिद्धांत इसके उदाहरण हैं। इन्हें हम अगले अध्याय में पढ़ेंगे।

(iii) प्रबंध के सिद्धांत, विज्ञान के सिद्धातों के समान विशुद्ध नहीं होते हैं और न ही उनका उपयोग सार्वभौमिक होता है। इनमें परिस्थितियों के अनुसार संशोधन किया जाता है। लेकिन यह प्रबंधकों को मानक तकनीक प्रदान करते हैं जिन्हें भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में प्रयोग में लाया जा सकता है। इन सिद्धांतों का प्रबंधकों को प्रशिक्षण एवं उनके विकास के लिए भी उपयोग किया जाता है। अब तक की चर्चा से आप समझ चुके होंगे कि प्रबंध विज्ञान एवं कला दोनों की विशेषताएँ लिए हुए है। प्रबंध का उपयोग कला है। लेकिन प्रबंधक और अधिक श्रेष्ठ कार्य कर सकते हैं यदि वह प्रबंध के सिद्धांतों का उपयोग करें। कला एवं विज्ञान के रूप में प्रबंध एक दूसरे से भिन्न नहीं हैं बल्कि पूरक हैं।

प्रबंध एक पेशे के रूप में

अब तक आप समझ चुके हैं कि सभी प्रकार की संगठन प्रक्रियाओं का प्रबंधन आवश्यक है। आपने यह भी अवलोकन किया होगा कि संगठनों को उनका प्रबंध करने के लिए कुछ विशिष्ट योग्यताओं एवं अनुभव की आवश्यकता होती है। आपने यह भी पाया होगा कि एक ओर तो व्यवसाय निगमित स्वरूप में वृद्धि हुई है तो दूसरी ओर व्यवसाय के प्रबंध पर अधिक जोर दिया जा रहा है। क्या इसका अर्थ यह हुआ कि प्रबंध एक पेशा है? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए आइए पेशे की प्रमुख विशेषताओं का अध्ययन करें एवं देखें कि क्या प्रबंध इनको पूरा करता है।

पेशे की निम्न विशेषताएँ हैं

(क) भली-भाँति परिभाषित ज्ञान का समूह- सभी पेशे भली-भाँति परिभाषित ज्ञान के समूह पर आधारित होते हैं जिसे शिक्षा से अर्जित किया जा सकता है।( ख) अवरोधित प्रवेश-पेशे में प्रवेश, परीक्षा अथवा शैक्षणिक योग्यता के द्वारा सीमित होती है। उदाहरण के लिए भारत में यदि किसी को चार्टर्ड एकाउटंटंट बनना है तो उसे भारतीय चार्टर्ड एकाउंटंट संस्थान द्वारा आयोजित की जाने वाली एक विशेष परीक्षा को पास करना होगा।

(ग) पेशागत परिषद्- सभी पेशे किसी न किसी परिष्ट् सभा से जुड़े होते हैं जो इनमें प्रवेश का नियमन करते हैं कार्य करने के लिए प्रमाण पत्र जारी करते हैं एवं आधार संहिता तैयार करते हैं तथा उसको लागू करते हैं। भारत में वकालत करने के लिए वकीलों को बार कार्उसिल का सदस्य बनना होता है जो उनके कार्यों का नियमन एवं नियंत्रण करता है। (घ) नैतिक आचार संहिता-सभी पेशे आचार संहिता से बंधे हैं जो उनके सदस्यों के व्यवहार को दिशा देते हैं। उदाहरण के लिए जब डॉक्टर अपने पेशे में प्रवेश करते हैं तो वह अपने कार्य नैतिकता की शपथ लेते हैं

(ङ) सेवा का उद्देश्य- पेशे का मूल उद्देश्य निष्ठा एवं प्रतिबद्धता है तथा अपने ग्राहकों के हितों की साधना है। एक वकील यह सुनिश्चित करता है कि उसके मुवक्किल को न्याय मिले।

प्रबंध, पेशे के सिद्धांतों को पूरी तरह से पूरा नहीं करता है। वैसे इसमें कुछ विशेषताएँ होती हैं जो निम्न हैं-

(क) पूरे विश्व में प्रबंध विशेष रूप से एक संकाय के रूप में विकसित हुआ है। यह ज्ञान के व्यवस्थित समूह पर आधारित है जिसके भली-भाँति परिभाषित सिद्धांत हैं जो व्यवसाय की विभिन्न स्थितियों पर आधारित हैं। इसका ज्ञान विभिन्न महाविद्यालय एवं पेशेवर संस्थानों में पुस्तकों एवं पत्रिकाओं के माध्यम से अर्जित किया जा सकता है। प्रबंध को विषय के रूप में विभिन्न संस्थानों में पढ़ाया जाता है। इनमें से कुछ संस्थानों की स्थापना केवल प्रबंध की शिक्षा प्रदान करने के लिए की गई है जैसे भारत में भारतीय प्रबंध संस्थान (आई. आई. एम. एम.)। इन संस्थानों में प्रवेश साधारणायतः प्रवेश परीक्षा के माध्यम से होता है।

प्रबंध की प्रकृति एवं महत्त्व

(ख) किसी भी व्यावसायिक इकाई में किसी भी व्यक्ति को प्रबंधक मनोनीत अथवा नियुक्त किया जा सकता है। व्यक्ति की कोई भी शैक्षणिक योग्यता हो उसे प्रबंधक कहा जा सकता है। चिकित्सा अथवा कानून के पेशे में डॉक्टर अथवा वकील के पास वैध डिग्री का होना आवश्यक है लेकिन विश्व में भी प्रबंधक के लिए कोई डिग्री विशेष, कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है। लेकिन यदि इस पेशे का ज्ञान अथवा प्रशिक्षण है तो यह उचित योग्यता मानी जाती है। जिन लोगों के पास प्रतिष्ठित संस्थानों की डिग्री अथवा डिप्लोमा हैं उनकी माँग बहुत अधिक है इस प्रकार से दूसरी आवश्यकता की पूरी तरह से पूर्ति नहीं होती है।

(ग) भारत में प्रबंध में लगे प्रबंधकों के कई संगठन हैं जैसे ए. आई. एम. ए. (ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोशिएसन)। जिसने अपने सदस्यों के कार्यों के नियमन के लिए आचार संहिता बनाई है। लेकिन प्रबंधकों के ऊपर इस प्रकार के संगठनों का सदस्य बनने के लिए कोई दवाब नहीं है और न ही इनकी कोई वैधानिक मान्यता है।

(घ) प्रबंध का मूल उद्देश्य संगठन को अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करना है। यह उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना हो सकता है या फिर अस्पताल में सेवा। वैसे प्रबंध का अधिकतम लाभ कमाने का उद्देश्य सही नहीं है तथा यह तेजी से बदल रहा है। इसलिए यदि किसी संगठन के पास एक अच्छे प्रबंधकों की टीम है जो क्षमतावान एवं प्रभावी है, तो वह स्वयं वही उचित मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण उत्पाद उपलब्ध करा कर समाज की सेवा कर रहा है।

प्रबंध के स्तर

प्रबंध एक सार्वभौमिक शब्द है जिसे, किसी उद्यम में संबंधों के समूह में एक दूसरे से जुड़े लोगों द्वारा कुछ कार्यों को करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। प्रत्येक-व्यक्ति का संबंधों की इस शृंखला में किसी न किसी कार्य विशेष को पूरा करने का उत्तरदायित्व होता है। इस उत्तरदायित्व को पूरा करने के लिए उसे कुछ अधिकार दिए जाते हैं अर्थात् निर्णय लेने का अधिकार। अधिकार एवं उत्तरदायित्व का यह संबंध व्यक्तियों को अधिकारी एवं अधीनस्थ के रूप में एक दूसरे को बाँधते हैं। इससे संगठन में विभिन्न स्तरों का निर्माण होता है। किसी संगठन के अधिकार शृंखला में तीन स्तर होते हैं-

(क) उच्च स्तरीय प्रबंध- यह संगठन के वरिष्ठतम कार्यकारी अधिकारी होते हैं जिन्हें कई नामों से पुकारा जाता है। यह सामान्यतः चेयरमैन, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, मुख्य प्रचालन अधिकारी, प्रधान, उपप्रधान आदि के नाम से जाने जाते हैं। उच्च प्रबंध, विभिन्न कार्यात्मक स्तर के प्रबंधकों की टीम होती है। उनका मूल कार्य संगठन के कुल

उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न तत्वों में एकता एवं विभिन्न विभागों के कार्यों में सामंजस्य स्थापित करना है। उच्च स्तर के ये प्रबंधक संगठन के कल्याण एवं निरंतरता के लिए उत्तरदायी होते हैं। फर्म के जीवन के लिए ये व्यवसाय के पर्यावरण एवं उसके प्रभाव का विश्लेषण करते हैं। ये अपनी उपलब्धि के नए संगठन के लक्ष्य एवं व्यूह-रचना को तैयार करते हैं। व्यवसाय के सभी कार्यों एवं उनके समाज पर प्रभाव के लिए ये ही उत्तरदायी होते हैं। उच्च प्रबंध का कार्य जटिल एवं तनावपूर्ण होता है। इसमें लंबा समय लगता है तो संगठन के प्रति पूर्णप्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है।

(ख) मध्य स्तरीय प्रबंध- ये उच्च प्रबंधकों एवं नीचे स्तर के बीच की कड़ी होते हैं, ये उच्च प्रबंधकों के अधीनस्थ एवं प्रथम रेखीय प्रबंधकों के प्रधान होते हैं। इन्हें सामान्यतः विभाग प्रमुख कहते हैं। मध्य स्तरीय प्रबंधक, उच्च प्रबंध द्वारा विकसित नियंत्रण योजनाएँ एवं व्यूह-रचना के क्रियान्वयन के लिए उत्तरदायी होते हैं। इसके साथ-साथ ये प्रथम रेखीय प्रबंधकों के सभी कार्यों के लिए उत्तरदायी होते हैं। इनका मुख्य कार्य उच्च स्तरीय प्रबंधकों द्वारा तैयार योजनाओं को पूरा करना होता है। इसके लिए (क) उच्च प्रबंधकों द्वारा बनाई गई योजना की व्याख्या करते हैं; (ख) अपने विभाग के लिए पर्याप्त संख्या में कर्मचारियों को सुनिश्चित करते हैं; (ग) उन्हें आवश्यक कार्य एवं दायित्व सौंपते हैं; (घ) इच्छित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु अन्य विभागों से सहयोग करते हैं। इसके साथ-साथ वे प्रथम पंक्ति के प्रबंधकों के कार्यों के लिए उत्तरदायी होते हैं।

(ग) पर्यवेक्षीय अथवा प्रचालन प्रबंधक - संगठन की अधिकार पंक्ति में फोरमैन एवं पर्यवेक्षक निम्न स्तर पर आते हैं। पर्यवेक्षक कार्यबल के कार्यों का प्रत्यक्ष रूप से अवलोकन करते हैं। इनके अधिकार एवं कर्त्तव्य उच्च प्रबंधकों द्वारा बनाई गई योजनाओं द्वारा निर्धारित होती हैं। पर्यवेक्षण, प्रबंधकों की संगठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि यह सीधे वास्तविक कार्य बल से संवाद करते हैं एवं मध्य स्तरीय प्रबंधकों के दिशानिर्देशों को कर्मचारियों तक पहुँचाते हैं। इन्हीं के प्रयत्नों से उत्पाद की गुणवत्ता को बनाए रखा जाता है, माल की हानि को न्यूनतम रखा जाता है एवं सुरक्षा के स्तर बनाए रखा जाता है। कारीगरी की गुणवत्ता, एवं उत्पादन की मात्रा कर्मचारियों के परिश्रम, अनुशासन एवं स्वामीभक्ति पर निर्भर करती है।

चित्र 1.4 -प्रबंधकीय स्तर।

प्रबंध के कार्य

प्रबंध को संगठन से सदस्यों से कार्यों के नियोजन, संगठन, निदेशन एवं नियंत्रण एवं निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संगठन के संसाधनों के प्रयोग की प्रक्रिया माना गया है।

नियोजन- यह पहले से ही यह निर्धारित करने का कार्य है कि क्या करना है, किस प्रकार तथा किसको करना है। इसका अर्थ है उद्देश्यों को पहले से ही निश्चित करना एवं दक्षता से एवं प्रभावी ढंग से प्राप्त करने के लिए मार्ग निर्धारित करना। स्मिता के संगठन का उद्देश्य है - कैंडल तैयार करना और उन्हें बेचना। स्मिता इसकी मात्रा, इनके विभिन्न प्रकार, रंग एवं बनावट के संबंध में निर्णय लेती है फिर विभिन्न आपूर्तिकर्ताओं से उनके क्रय अथवा उनके घर में तैयार कराने पर संसाधनों का आवंटन करती है। नियोजन समस्याओं के पैदा होने से कोई रोक नहों सकता लेकिन इनका पूर्वानुमान लगाया जा सकता है तथा यह जब भी पैदा होते हैं तो इनको हल करने के लिए आकस्मिक योजनाएँ बना सकती हैं।

संगठन- यह निर्धारित योजना के क्रियान्वयन के लिए कार्य सौंपने, कार्यों को समूहों में बांटने, अधिकार निश्चित करने एवं संसाधनों के आवंटन के कार्य का प्रबंधन करता है। एक बार संगठन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए विशिष्ट योजना तैयार कर ली जाती है तो फिर संगठन योजना के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक क्रियाओं एवं संसाधनों की जांच करेगा। यह आवश्यक कार्यों एवं संसाधनों का निर्धारण करेगा। यह निर्णय लेता है कि किस कार्य को कौन करेगा, इन्हें कहाँ किया जाएगा तथा कब किया जाएगा। संगठन में आवश्यक कार्यों को प्रबंध के योग्य विभाग एवं कार्य इकाईयों में विभाजित किया जाता है एवं संगठन की अधिकार शृंखला में अधिकार एवं विवरण देने के संबंधों का निर्धारण किया जाता है। संगठन के उचित तकनीक कार्य के पूरा करने एवं प्रचालन की कार्य क्षमता एवं परिणामों की प्रभाव पूर्णता के संवर्धन में सहायता करते हैं। विभिन्न प्रकार के व्यवसायों को कार्य की प्रकृति के अनुसार भिन्न-भिन्न ढाँचों की आवश्यकता होती है। इसके संबंध में आप आगे के अध्यायों में और अधिक पढ़ढेंगे।

कर्मचारी नियुक्तिकरण- सरल शब्दों में इसका अर्थ है सही कार्य के लिए उचित व्यक्ति को ढूँढ़ना। प्रबंध का एक महत्त्वपूर्ण पहलू संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सही योग्यता वाले सही व्यक्तियों को, सही स्थान एवं समय पर उपलब्ध कराने को सुनिश्चित करना है। इसे मानव संसाधन कार्य भी कहते हैं तथा इसमें कर्मचारियों की भर्ती, चयन, कार्य पर नियुक्ति एवं प्रशिक्षण सम्मिलित हैं। इनफोसिस टेक्नोलॉजी, जो सॉफ्टवेयर विकसित करती है, को प्रणाली विश्लेषणकर्त्ता एवं कार्यक्रम तैयार करने वाले व्यक्तियों की आवश्यकता होती है।

निदेशन- निदेशन का कार्य कर्मचारियों को नेतृत्व प्रदान करना, प्रभावित करना एवं अभिप्रेरित करना है जिससे कि वह सुपुर्द कार्य को पूरा कर सकें। इसके लिए एक ऐसा वातावरण तैयार करने की आवश्यकता है जो कर्मचारियों को सर्वश्रेष्ठ ढंग से कार्य करने के लिए प्रेरित करे। अभिप्रेरणा एवं नेतृत्व-निर्देशन के दो मूल तत्व हैं। कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने का अर्थ केवल एक ऐसा वातावरण तैयार करना है जो उन्हें कार्य के लिए प्रेरित करे। नेतृत्व का अर्थ है दूसरों को इस प्रकार से प्रभावित करना, कि वह अपने नेता के इच्छित कार्य संपन्न करें। एक अच्छा प्रबंधक प्रशंसा एवं आलोचना की सहायता से इस प्रकार से निर्देशन करता है कि कर्मचारी अपना श्रेष्ठतम योगदान दे सकें।

नियंत्रण- नियंत्रण को प्रबंध के कार्य के उस रूप में परिभाषित किया है जिसमें वह संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए संगठन कार्य के निष्पादन को निर्देशित करता है। नियंत्रण कार्य में निष्पादन के स्तर निर्धारित किए जाते हैं, वर्तमान निष्पादन को मापा जाता है। इसका प्रबंध की प्रकृति एवं महत्त्व

पूर्वनिर्धारित स्तरों से मिलान किया जाता है और विचलन की स्थिति में सुधारात्मक कदम उठाए जाते हैं। इसके लिए प्रबंधकों को यह निर्धारित करना होगा कि सफलता के लिए क्या कार्य एवं उत्पादन महत्त्वपूर्ण हैं, उसका कैसे और कहाँ मापन किया जा सकता है तथा सुधारात्मक कदम उठाने के लिए कौन अधिकृत है।

प्रबंधक के विभिन्न कार्यों पर साधारणतया उपरोक्त क्रम में ही चर्चा की जाती है जिसके अनुसार एक प्रबंधक पहले योजना तैयार करता है फिर संगठन बनाता है तत्पश्चात् निर्देशन करता है और अंत में नियंत्रण करता है। वास्तव में प्रबंधक शायद ही इन कार्यों को एक-एक करके करता है। प्रबंधक के कार्य एक दूसरे से जुड़े हैं तथा यह निश्चित करना कठिन हो जाता है कौन-सा कार्य कहाँ समाप्त हुआ तथा कौन-सा कार्य कहाँ से प्रारंभ हुआ।

समन्वय-प्रबंध का सार है

अब तक आप समझ चुके होंगे कि किसी संगठन के प्रबंधन की प्रक्रिया में एक प्रबंधक को पाँच एक दूसरे से संबंधित कार्य करने होते हैं। संगठन एक ऐसी पद्धति है जो एक दूसरे से जुड़े एवं एक दूसरे पर आधारित उपपद्धतियों से बनी है। प्रबंधक को इन भिन्न समूहों को समान उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक दूसरे से जोड़ना होता है। विभिन्न विभागों की गतिविधियों की एकात्मकता की प्रक्रिया को समन्वय कहते हैं।

समन्वय वह शक्ति है जो, प्रबंध के अन्य सभी कार्यों को एक दूसरे से बांधती है। यह ऐसा धागा है जो संगठन के कार्य में निरंतरता बनाए रखने के लिए क्रय, उत्पादन, विक्रय एवं वित्त जैसे सभी कार्यों को पिरोए रखता है। समन्वय को कभी-कभी प्रबंध का एक अलग से कार्य माना जाता है। लेकिन यह प्रबंध का सार है क्योंकि यह सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किए गए व्यक्तिगत प्रयत्नों में एकता लाता है। प्रत्येक प्रबंधकीय कार्य एक ऐसी गतिविधि है जो स्वयं अकेली समन्वय में सहयोग करती है। समन्वय किसी भी संगठन के सभी कार्यों में लक्षित एवं अन्तर्निहित हैं।


संगठन की क्रियाओं के समन्वय की प्रक्रिया, नियोजन से ही प्रारंभ हो जाती है। उच्च प्रबंध पूरे संगठन के लिए योजना बनाता है। इन योजनाओं के अनुसार संगठन ढाँचों को विकसित किया जाता है एवं कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है। योजनाओं का क्रियान्वयन योजना के अनुसार ही यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशन की आवश्यकता होती है। वास्तविक क्रियाओं एवं

उनकी उपलब्धियों में यदि कोई मतभेद है तो इसका निराकरण नियंत्रण के समय किया जाता है। समन्वय की क्रिया के माध्यम से प्रबंध का समान उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उठाए गए कदमों में एकता को सुनिश्चित करने के लिए व्यक्तिगत एवं सामूहिक प्रयत्नों की सही व्यवस्था करता है, समन्वय संगठन की विभिन्न इकाइयों के भिन्न-भिन्न कार्यों एवं प्रयत्नों में एकता स्थापित करता है। यह प्रयत्नों की आवश्यकता राशि, मात्रा, समय एवं क्रमबद्धता उपलन्ध कराता है जो नियोजित उद्देश्यों को न्यूनतम विरोधाभास, प्राप्त करने को सुनिश्चित करता है।

समन्वय की प्रकृति

उपरोक्त परिभाषाओं से समन्वय की निम्न विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं-

(क) समन्वय सामूहिक कार्यों में एकात्मकता लाता है- समन्वय ऐसे हितों को जो एक दूसरे से संबंधित नहीं हैं या एक दूसरे से भिन्न हैं उद्देश्य पूर्ण कार्य गतिविधि में एकता लाता है। यह समूह के कार्यों को एक केन्द्र बिंदु प्रदान करता है जो यह सुनिश्चित करता है कि निष्पादन योजना एवं निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हो।

(ख) समन्वय कार्यवाही में एकता लाता है- समन्वय का उद्देश्य समान उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कार्यवाही में एकता लाना है। यह विभिन्न विभागों को जोड़ने की शक्ति का कार्य करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि सभी क्रियाएँ संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए की जाएँ। नामची डिज़ानर कैंडल के उत्पादन एवं विक्रय विभागों को अपने कार्यों में समन्वय करना होता है जिससे कि बाज़ार की माँग के अनुसार उत्पादन किया जा सके।

(ग) समन्वय निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है- समन्वय कोई एक बार का कार्य नहीं है बल्कि एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। यह नियोजन से प्रारंभ होता है एवं नियंत्रण तक चलती है। स्मिता दिवाली के समय के लिए वस्त्रों के संबंध में जून के महीने में ही योजना बना लेती है। तत्पश्चात् वह पर्याप्त कार्यबल की व्यवस्था करती है। उत्पादन योजना के अनुसार ही इसके लिए लगातार निगरानी रखती है उसे अपने विपणन विभाग को समय रहते बताना होगा कि वह विक्रय प्रवर्तन एवं विज्ञापन के प्रचार के लिए तैयार करें।

(घ) समन्वय सर्वव्यापी कार्य है- विभिन्न विभागों की क्रियाएँ प्रकृति से एक दूसरे पर निर्भर करती हैं इसीलिए समन्वय की आवश्यकता प्रबंध के सभी स्तरों पर होती है। यह विभिन्न विभागों एवं विभिन्न स्तरों के कार्यों में एकता स्थापित करता है। संगठन के उद्देश्य बना विरोध आ सके, प्राप्त करने के लिए स्मिता को क्रय, उत्पादन एवं विक्रय विभागों के कार्यों में समन्वय करना होता है। क्रय विभाग का कार्य कपड़ा खरीदना है। यह उत्पादन विभाग की क्रियाओं के लिए आधार बन जाता है और अन्त में विक्रय

समन्वया की परिभाषाएँ

“समन्वय कार्यदल में संतुलन बनाने तथा उसे एक जुट बनाए रखने की प्रक्रिया है, जिसमें भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के बीच कार्य का सही-सही विभाजन किया जाता है तथा यह देखा जाता है कि ये व्यक्ति मिलकर तथा एकता के साथ अपना-अपना कार्य कर सकें।”

- ई. एफ. एल. ब्रैच

“समन्वय एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक अधिकारी अपने अधीनस्थों के सामूहिक प्रयासों को एक व्यवस्थित ताने-बाने में बाँधता है तथा समान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्य में एकता लाता है”

मैक फरलैंड

“समन्वय अधीनस्थ कर्मचारियों के कार्यों का इस प्रकार परस्पर मिलान करता है कि प्रत्येक कर्मचारी के कार्य की गति, प्रगति और श्रेणी दूसरे कर्मचारी के कार्य की गति, प्रगति तथा श्रेणी से मेल खाये तथा आपस में मिलकर संस्था के समान उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक है।”

थियो हेमैन

संभव हो पाता है। यदि कपड़ा घटिया गुणवत्ता वाला है या फिर उत्पादन विभाग द्वारा निर्धारित विशिष्टताएँ लिए हुए नहीं है तो इससे आगे की बिक्री कम हो जाएगी। यदि समन्वय नहीं है तो क्रियाओं में एकता एवं एकीकरण के स्थान पर पुनरावृत्ति एवं अव्यवस्था होगी।

(ङ) समन्वय सभी प्रबंधाकों का उत्तरदायित्व है- किसी भी संगठन में समन्वय प्रत्येक प्रबंधक का कार्य है उच्च स्तर के प्रबंधक यह सुनिश्चित करने के लिए कि संगठन की नीतियों का क्रियान्वयन हो, अपने अधीनस्थों के साथ समन्वय करते हैं। मध्यस्तर के प्रबंधक, उच्चस्तर के प्रबंधकों एवं प्रथम पंक्ति के प्रबंधकों, दोनों के साथ समन्वय करते हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि कार्य योजनाओं के अनुसार किया जाए, प्रचालन स्तर के प्रबंधक अपने कर्मचारियों के कार्यों में समन्वय करते हैं।

(च) समन्वय सोचा समझा कार्य है- एक प्रबंधक को विभिन्न लोगों के कार्यों का ध्यानपूर्वक एवं सोच समझकर समन्वय करना होता है। किसी विभाग में सदस्य स्वेच्छा से एक दूसरे से सहयोग करते हुए कार्य करते हैं, समन्वय इस सहयोग की भावना को दिशानिर्देश देता है। समन्वय के न होने पर सहयोग भी निरर्थक सिद्ध होगा और बिना सहयोग के समन्वय कर्मचारियों में असंतोष को ही जन्म देगा।

इसलिए हम कह सकते हैं कि समन्वय, प्रबंध का पृथक से एक कार्य नहीं है बल्कि यह उसका सार है। यदि कोई संगठन अपने उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से एवं कुशलता से प्राप्त करना चाहता है तो उसे समन्वय की आवश्यकता होगी। माला में धागे के समान ही समन्वय प्रबंध के सभी कार्यों का अभिन्न अंग है।

समन्वय का महत्व

विभिन्न प्रबंधकीय कार्यों को एकीकृत करना व्यक्तियों एवं विभागों में पर्याप्त मात्रा में समन्वय

को सुनिश्चित करता है। जैसे समन्वय की समस्या के पैदा होने के कारण बड़े पैमाने के संगठन में अंतर्निहित निरंतर परिवर्तन कमजोर अथवा निष्क्रिय नेतृत्व एवं जटिलताएं हैं। बड़े संगठनों में इस प्रकार की जटिलताओं के समन्वय के लिए विशेष प्रयत्नों की आवश्यकता होती है।

दृष्टिकोण तथा लक्ष्य संगठन के समान उद्देश्य की प्राप्ति के तकनीक हैं।

(क) संगठन का आकार- बड़े संगठनों में लगे बड़ी संख्या में लोग समन्वय की समस्या को जटिल बना देते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में विशिष्ट है। तथा अपनी एवं संगठन की आवश्यकताओं को महसूस करता है। प्रत्येक की अपनी कार्य करने की आदतें हैं, अपनी पृष्ठभूमि हैं, परिस्थितियों से निपटने के प्रस्ताव/तरीके हैं तथा दूसरों से संबंध हैं। वैसे एक अकेला व्यक्ति सदा बुद्धिमानी से कार्य नहीं करता है। उसके व्यवहार को न तो सदा ठीक से समझा जाता है और न ही पूरी तरह से उसका पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। इसलिए संगठन की कार्य कुशलता के लिए यह अनिवार्य है कि व्यक्ति एवं समूह के उद्देश्यों को समन्वय द्वारा एकीकृत कर दिया जाए।

(ख) कार्यात्मक विभेदीकरण- संगठन के कार्यों को बार-बार विभागों, प्रभागों, वर्गों आदि में बाँटा जाता है। समन्वय की समस्या इसलिए पैदा होती है क्योंकि अधिकार क्षेत्रों का दृढ़ीकरण हो जाता है और उनके बीच के अवरोधक और भी अधिक मजबूत हो जाते हैं। कई बार यह इसलिए होता है क्योंकि कार्यों का वर्गीकरण युक्ति संगत नहीं होता या फिर प्रबंधक तर्क संगत मार्ग न अपना कर अनुभव का मार्ग अपनाते हैं। ऐसे मामलों में संगठन में प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए समन्वय आवश्यक है।

(ग) विशिष्टीकरण- आधुनिक संगठनों में उच्च स्तर का विशिष्टीकरण है। विशिष्टीकरण का जन्म आधुनिक तकनीकों की जटिलताओं तथा कार्यों एवं इन्हें करने वालों की विविधता के कारण होता है। विशेषज्ञ सोचते हैं कि वे एक दूसरे को पेशे के आधार पर जाँचने के योग्य हैं लेकिन दूसरे लोगों के पास इस प्रकार के निर्णय का कोई पर्याप्त आधार नहीं हो सकता। यदि विशेषज्ञों को बिना समन्वय के कार्य करने की अनुमति दे दी जाए तो परिणाम काफी मंहगे होंगे। इसीलिए संगठन में लगे विभिन्न विशेषजों के कार्यों में समन्वय हेतु एक रचना तंत्र की आवश्यकता है।

समन्वय प्रबंध का सार है। यह कुछ ऐसा नहीं है तकि जिसके लिए एक प्रबंधक आदेश दे। बल्कि यह तो वह चीज है जिसे एक प्रबंधक नियोजन, संगठन, नियुक्तिकरण, निर्देशन नियंत्रण कार्यों को करते हुए प्राप्त करने का प्रयास करता है। अतः प्रत्येक कार्य समन्वय का अभ्यास है।

इक्कीसवीं शताब्दी में प्रबंधन

यहाँ तक कि जब आप इस अध्याय को पढ़ते हैं, संगठन और उसका प्रबंधन बदल रहा है। चूंकि संस्कृतियों और राष्ट्रों के बीच सीमाएं धुंधली हो रही हैं और नई संचार तकनीक दुनिया को ‘वैश्विक गाँव’ के रूप में सोचना संभव बना रही है, अंतर्राष्ट्रीय और अंतर-सांस्कृतिक संबंधों का दायरा तेजी से बढ़ रहा है। आधुनिक संगठन एक वैश्विक संगठन है जिसे वैश्विक परिप्रेक्ष्य में प्रबंधित किया जाना है। इसका तात्पर्य क्या है?

एक वैश्विक प्रबंधक के लिए इन सबका क्या अर्थ है? सारांश में कह सकते हैं कि वैश्विक प्रबंधक वह है जिसके पास ‘हार्ड’ एवं ‘सॉफ्ट’ दोनों प्रकार के कौशल हैं। जो प्रबंधक विश्लेषण करना, व्यूह रचना करना, इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी का ज्ञान रखते हैं, उनकी आज भी आवश्यकता है लेकिन विश्वव्यापी सफलता के लिए व्यक्तियों की टीम कैसे कार्य करती है, संगठन कैसे कार्य करते हैं एवं लोगों को किस प्रकार से अभिप्रेरित कर सकते हैं, इस सबकी समझ का होना बहुत आवश्यक है।

उदाहरण के लिए, जो प्रबंधक विभिन्न संस्कृतियों में पैठ रखता है, वह पश्चिमी यूरोप, गैर अंग्रेजी भाषी देश में कार्य कर सकता है, फिर उसे मलेशिया अथवा केन्या जैसे विकासशील देशों में भेजा जा सकता है और इसके बाद उसे न्यू यॉर्क, अमेरिका के कार्यालय में भी स्थानांतरित किया जा सकता है। वह इन तीनों स्थानों पर तुरंत प्रभावी ढंग से कार्य कर सकेगा।

अब आप यह समझ गए होंगे कि वैश्विक प्रबंधक की भूमिका का विकास उसी प्रकार से हुआ है जिस प्रकार से वैश्विक उद्योग एवं अर्थव्यवस्था का विकास हुआ है। यह एक परिभाषित व्यवसाय के संदर्भ में एक आयामी भूमिका से बहुआयामी भूमिका में परिवर्तित हो गया है जिसके लिए तकनीकी कौशल, सॉफ्ट प्रबंध एवं कौशल और विभिन्न संस्कृतियों को ग्रहण करना एवं सीखने के सम्मिश्रण की आवश्यकता होती है।

डब्बा वाले- समन्वय के माध्यम से श्रेष्ठता

मुंबई के डब्बा वाले ‘सिक्स सिगमा’ व्यावसायिक उद्यम की कहानी है। इस व्यवसाय की सफलता जटिल लेकिन भली-भाँति समन्वित कार्य पद्धति पर निर्भर करती है जिसे प्रतिदिन मुंबई की गलियों में अपनाया जाता है। उनके व्यवसाय के परिचालन की कार्यक्षमता का राज क्या है?

डब्बा वालों की कहानी मुंबई के रसोई घरों से प्रारंभ होती है। जैसे ही वह अपने घरों से चलते हैं तो उनको ताजा घर का खाना बनाकर देने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है जिसमें काफी समय लगता है। इसके पश्चात् जो भी होता है वह डब्बावालों की पद्धति में समन्वय को दर्शाता है। पहला डब्बा वाला घर से टिफिन को लेता है और फिर उसे सबसे नज़दीक के रेलवे स्टेशन तक ले जाता है। दूसरा डब्बा वाला उन्हें गन्तव्य स्थलों के अनुसार अलग-अलग कर माल वाहक डब्बे में रख देता है। तीसरा डब्बा वाला गन्तव्य स्थल के सबसे समीप स्टेशन तक साथ-साथ जाता है। चौथा व्यक्ति रेलवे स्टेशन से डब्बों को लेकर दफ्तरों में दे देता है। दोपहर तक मुंबई की सड़कों पर हजारों डब्बे वाले साईकलों पर घर का बना गर्म-गर्म खाना ग्राहकों तक पहुँचा देते हैं। टिफिन वितरण के पूरे कार्य के लिए कम-से-कम तकनीक की आवश्यकता होती है। डब्बा वाले कम पूँजी से कार्य करते हैं एवं अपने कार्य के लिए साईकल, ठेलियाँ एवं स्थानीय रेलगाड़ियों का प्रयोग करते हैं। कई समूह हैं जो स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं तथा एक दूसरे से ताल-मेल कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं।

प्रत्येक क्षेत्र कई छोटी-छोटी वितरण इकाइयों में बंटा होता है जिसका उत्तरदायित्व एक व्यक्ति विशेष पर होता है। यह व्यक्ति उस क्षेत्र के पतों से भली-भाँति परिचित होता है। फिर पूर्णता कार्य को करते रहने पर आ जाती है, नए कर्मचारी महीनों तक अपने वरिष्ट कर्मचारियों की निगरानी में कार्य करते हैं। समय की पाबंदी एवं समय प्रबंधन डब्बा वालों की कार्य सूची में सर्वोच्च स्थान पर होता है। परिस्थितियाँ कैसी भी हों डब्बा वाले कुछ मिनट की भी देरी नहीं करते हैं।

मुख्य शब्दावली

प्रबंधन | नियोजन | प्रक्रिया संगठन | क्षमता | कर्मचारी | प्रभावयुक्त | नियुक्तिकरण| कला | निदेशन | विज्ञान | नियंत्रण | पेशा | समन्वय

सारांश

अवधारणा प्रबंध संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु उद्यम के संसाधनों का कुशलता एवं प्रभावी ढंग से नियोजन संगठन, अभिप्रेरण एवं नियंत्रण की प्रक्रिया है। वैकल्पिक रूप में प्रबंध को प्रबंधकों की भूमिका प्रणालियों का पारस्परिक कार्य एवं इन सभी पद्धतियों के मिश्रण के दृष्टिकोण से समझा जा सकता है।

विशेषताएँ प्रबंध की प्रमुख विशेषताएँ-एक सर्वव्यापी निरंतर चलने वाली प्रक्रिया, उद्देश्यमूलक सामूहिक क्रिया; गतिशील कार्य; बहुआयामी; अदृश्य शक्ति।

उद्देश्य प्रबंध के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं-संगठनात्मक, सामाजिक एवं व्यक्तिगत।

महत्त्व प्रबंध महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह समूह के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होता है, कार्यक्षमता में वृद्धि करता है, एक गतिशील संगठन की रचना करता है, व्यक्तिगत उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होता है एवं समाज के विकास में योगदान होता है।

प्रकृति प्रबंध व्यवस्थित ज्ञान (विज्ञान) एवं इसके कुशल उपयोग (कला) का समिश्रण है। यद्यपि यह पेशे की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करता है तथापि एक सीमा तक यह एक पेशा है।

स्तर प्रबंध को तीन स्तरीय क्रिया माना गया है। उच्च प्रबंध उद्देश्यों एवं नीतियों के निर्धारण पर ध्यान देता है, मध्य प्रबंध इन उद्देश्यों को निम्न स्तर के प्रबंधकों के कार्यों के माध्यम से प्राप्त करता है।

कार्य सभी प्रबंधक इन कार्यों को करते हैं जो एक दूसरे से संबंधित हैं: नियोजन, संगठन, नियुक्तिकरण, निदेशन एवं नियंत्रण।

समन्वय समन्वय प्रबंधक का सार है। यह संगठन के परस्पर निर्भर क्रियाओं एव विभागों में एकात्मकता लाने की प्रक्रिया है।

अभ्यास

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

(क) प्रबंधन से क्या आशय है?

(ख) प्रबंधन की किन्हीं दो महत्त्वपूर्ण विशेषताओं का नाम दें।

(ग) उस घटक को पहचानें और बताएं जो प्रबंधन के सभी अन्य कार्यों को बांधता है।

(घ) किसी संगठन के विकास के किन्हीं भी दो संकेतकों की सूची बनाएं।

(ङ) भारतीय रेलवे ने एक नई ब्रॉड गेज सौर ऊर्जा ट्रेन शुरू की है जिसका उद्देश्य ट्रेनों को हरित और पर्यावरण के अनुकूल बनाना है। सौर ऊर्जा डी.ई.एम.यू. (डीजल इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट) में 6 ट्रेलर कोच हैं और इससे लगभग 21,000 लीटर डीजल की बचत और प्रति वर्ष $12,00,000$ रुपये की लागत बचत सुनिश्चित करने की उम्मीद है। उपरोक्त मामले में भारतीय रेलवे द्वारा हासिल प्रबंधन के उद्देश्यों का नाम दें।

लघु उत्तरीय प्रश्न

(क) रितु एक बड़े कॉर्पोरेट हाउस के उत्तरी प्रभाग की प्रबंधक है। वह संगठन में किस स्तर पर काम करती है? उसके बुनियादी कार्य क्या हैं?

(ख) एक पेशे के रूप में प्रबंधन की मूल विशेषताएँ बताइए।

(ग) प्रबंधन को बहु-आयामी अवधारणा क्यों माना जाता है?

(घ) इन दिनों कंपनी एक्स के सामने नई समस्याएं आ रही हैं। यह कंपनी वाशिंग मशीन, माइक्रोवेव ओवन, रेफ्रीजरेटर और एयर कंडीशनर्स जैसे उत्पाद बनाती है। कंपनी के मार्जिन दबाव में हैं और मुनाफा और बाजार हिस्सेदारी कम हो रही है। उत्पादन विभाग बिक्री लक्ष्यों को पूरा न करने के लिए विपणन को दोषी ठहराता है और विपणन ग्राहकों की अपेक्षा के अनुसार गुणवत्तायुक्त माल उत्पादन न करने के लिए उत्पादन विभाग को दोष देता है। वित्त विभाग घटते निवेश पर प्रतिफल और खराब विपणन के लिए उत्पादन और विपणन दोनों विभागों को पूरी तरह दोषी ठहराता है। आपके अनुसार कंपनी में किस प्रकार के प्रबंधन की कमी है? संक्षेप में बताएं। कंपनी को वापस पटरी पर लाने के लिए कंपनी प्रबंधन को क्या कदम उठाने चाहिए?

(ङ) समन्वय प्रबंधन का सार है। क्या आप सहमत हैं? कारण बताइए।

(च) अशिता और लक्षिता एक आभूषण उद्यम में काम करने वाली कर्मचारी हैं। फर्म को 1000 कंगन का एक तत्काल आदेश प्राप्त हुआ जिसे 4 दिनों के भीतर वितरित भी किया जाना था। उन दोनों में से प्रत्येक को 100 रुपये प्रति कंगन की दर से 500 कंगन बनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। अशिता निर्धारित समय के भीतर 55,000 रुपये की लागत से आवश्यक 500 कंगन का उत्पादन करने में सफल रही, जबकि लक्षिता 90 रुपये प्रति यूनिट की दर से केवल 450 इकाइयों का उत्पादन कर सकी। क्या अशिता और लक्षिता कुशल और प्रभावी हैं? अपने उत्तर का औचित्य सिद्ध करते हुए कारण दें।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(क) प्रबंधन को कला और विज्ञान दोनों माना जाता है। व्याख्या करें।

(ख) क्या आपको लगता है कि प्रबंधन में एक पूर्ण पेशे की विशेषताएं हैं?

(ग) “एक सफल उद्यम को अपने लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से और कुशलतापूर्वक हासिल करना होता है।” स्पष्ट करें।

(घ) प्रबंधन सतत् पारस्परिक कार्यों की एक शृंखला है। टिप्पणी कीजिए।

(ङ) एक कंपनी कम बिक्री के कारण बाजार में अपने मौजूदा उत्पाद को संशोधित करना चाहती है। आप किसी भी उत्पाद की कल्पना कर सकते हैं जिसके बारे में आप परिचित हैं। प्रबंधन के प्रत्येक स्तर को इस निर्णय को प्रभावी करने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए ?

(च) एक फर्म भविष्य की योजनाएँ तैयार करती है और कुशल पर्यवेक्षी कर्मचारियों और नियंत्रण प्रणाली के साथ उसके संगठन का ढाँचा भी मजबूत है, लेकिन कई अवसरों पर यह पाया जाता है कि योजनाओं का पालन नहीं किया जा रहा। इससे भ्रम और काम का दोहराव उत्पन्न होता है। उपाय सुझाएँ।



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