अध्याय 12 चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती

त्रिलोचन

( सन् 1917-2007 )

मूल नाम: वासुदेव सिंह

जन्मः सन् 1917 चिरानी पट्टी, ज़िला सुल्तानपुर (उ.प्र.)

प्रमुख रचनाएँ: धरती, गुलाब और बुलबुल, दिगंत, ताप के ताये हुए दिन, शब्द, उस जनपद का कवि हूँ, अरघान, तुम्हें सौंपता हूँ, चैती, अमोला, मेरा घर, जीने की कला (काव्य); देशकाल, रोज़नामचा, काव्य और अर्थबोध, मुक्तिबोध की कविताएँ (गद्य); हिंदी के अनेक कोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान

प्रमुख सम्मानः साहित्य अकादमी, शलाका सम्मान, महात्मा गांधी पुरस्कार (उ.प्र.)

निधनः सन् 2007

हिंदी साहित्य में त्रिलोचन प्रगतिशील काव्य धारा के प्रमुख कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। रागात्मक संयम और लयात्मक अनुशासन के कवि होने के साथ-साथ ये बहुभाषाविज्ञ शास्त्री भी हैं, इसीलिए इनके नाम के साथ शास्त्री भी जुड़ गया है। लेकिन यह शास्त्रीयता उनकी कविता के लिए बोझ नहीं बनती। त्रिलोचन जीवन में निहित मंद लय के कवि हैं। प्रबल आवेग और त्वरा की अपेक्षा इनके यहाँ काफी कुछ स्थिर है।

इनकी भाषा छायावादी रूमानियत से मुक्त है तथा उसका ठाट ठेठ गाँव की ज़मीन से जुड़ा हुआ है। त्रिलोचन हिंदी में सॉनेट (अंग्रेज़ी छंद) को स्थापित करने वाले कवि के रूप में भी जाने जाते हैं।

त्रिलोचन का कवि बोलचाल की भाषा को चुटीला और नाटकीय बनाकर कविताओं को नया आयाम देता है। कविता की प्रस्तुति का अंदाज़ कुछ ऐसा है कि वस्तु और रूप की प्रस्तुति का भेद नहीं रहता। उनकाकवि इन दोनों के बीच फाँक को गुंजाइश नहीं छोड़ता।

चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती नामक कविता धरती संग्रह में संकलित है। यह पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त करती है। कविता में ‘अक्षरो’ के लिए ‘काले काले’ विशेषण का प्रयोग किया गया है, जो एक ओर शिक्षा-व्यवस्था के अंतर्विरोधों को उजागर करता है तो दूसरी ओर उस दारुण यथार्थ से भी हमारा परिचय कराता है जहाँ आर्थिक मजबूरियों के चलते घर टूटते हैं। काव्य नायिका चंपा अनजाने ही उस शोषक व्यवस्था के प्रतिपक्ष में खड़ी हो जाती है जहाँ भविष्य को लेकर उसके मन में अनजान खतरा है। वह कहती है ‘कलकत्ते पर बजर गिरे’। कलकत्ते पर वज्र गिरने की कामना, जीवन के खुरदरे यथार्थ के प्रति चंपा के संघर्ष और जीवट को प्रकट करती है।

चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती

चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती

मैं जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है

खड़ी खड़ी चुपचाप सुना करती

है उसे बड़ा अचरज होता है:

इन काले चीन्हों से कैसे ये सब स्वर

निकला करते हैं

चंपा सुन्दर की लड़की है

सुन्दर ग्वाला है: गायें-भैंसें रखता है

चंपा चौपायों को लेकर

चरवाही करने जाती है

चंपा अच्छी है

चंचल है

न ट ख ट भी है

कभी कभी ऊधम करती है

कभी कभी वह कलम चुरा देती है

जैसे तैसे उसे ढूँढ़ कर जब लाता हूँ

पाता हूँ-अब कागज़ गायब

परेशान फिर हो जाता हूँ

चंपा कहती है:

तुम कागद ही गोदा करते हो दिन भर

क्या यह काम बहुत अच्छा है

यह सुनकर मैं हँस देता हूँ

फिर चंपा चुप हो जाती है

उस दिन चंपा आई, मैंने कहा कि

चंपा, तुम भी पढ़ लो

हारे गाढे काम सरेगा

गांधी बाबा की इच्छा है-

सब जन पढ़ना-लिखना सीखें

चंपा ने यह कहा कि

मैं तो नहीं पढूँगी

तुम तो कहते थे गांधी बाबा अच्छे हैं

वे पढ़ने लिखने की कैसे बात कहेंगे

मैं तो नहीं पढूँगी

मैंने कहा कि चंपा, पढ़ लेना अच्छा है

ब्याह तुम्हारा होगा, तुम गौने जाओगी,

कुछ दिन बालम संग साथ रह चला जाएगा जब कलकत्ता

बड़ी दूर है वह कलकत्ता

कैसे उसे सँदेसा दोगी

कैसे उसके पत्र पढ़ोगी

चंपा पढ़ लेना अच्छा है !

चंपा बोली: तुम कितने झूठे हो, देखा,

हाय राम, तुम पढ़-लिख कर इतने झूठे हो

मैं तो ब्याह कभी न करूँगी

और कहीं जो ब्याह हो गया

तो मैं अपने बालम को सँग साथ रखूँगी

कलकत्ता मैं कभी न जाने दूँगी

कलकत्ते पर बजर गिरे।

अभ्यास

कविता के साथ

1. चंपा ने ऐसा क्यों कहा कि कलकत्ता पर बजर गिरे?

2. चंपा को इसपर क्यों विश्वास नहीं होता कि गांधी बाबा ने पढ़ने-लिखने की बात कही होगी?

3. कवि ने चंपा की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?

4. आपके विचार में चंपा ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मैं तो नहीं पढूँगी?

कविता के आस-पास

1. यदि चंपा पढ़ी-लिखी होती, तो कवि से कैसे बातें करती?

2. इस कविता में पूर्वी प्रदेशों की स्त्रियों की किस विडंबनात्मक स्थिति का वर्णन हुआ है?

3. संदेश ग्रहण करने और भेजने में असमर्थ होने पर एक अनपढ़ लड़की को किस वेदना और विपत्ति को भोगना पड़ता है, अपनी कल्पना से लिखिए।

4. त्रिलोचन पर एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा बनाई गई फ़िल्म देखिए।

शब्द-छवि

चीन्हती - पहचानती
चीन्हों - चिहनों, अक्षरों
चौपायों - चार पैरों वाले (जानवरों के लिए) यहाँ गाय-भैसों के लिए प्रयुक्त हुआ है
कागद - कागज़
हारे गाढ़े काम सरेगा - कठिनाई में काम आएगा
बालम - पति
बजर गिरे - वज्र गिरे, भारी विपत्ति आए


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