अध्याय 09 कबीर

कबीर

( सन् 1398-1518 )

जन्म: सन् 1398, वाराणसी ${ }^{1}$ के पास ‘लहरतारा’ (उ.प्र. )

प्रमुख रचनाएँ: ‘बीजक’ जिसमें साखी, सबद एवं रमैनी संकलित हैं

मृत्यु: सन् 1518 में बस्ती के निकट मगहर में

कबीर भक्तिकाल की निर्गुण धारा (ज्ञानाश्रयी शाखा) के प्रतिनिधि कवि हैं। वे अपनी बात को साफ़ एवं दो टूक शब्दों में प्रभावी ढंग से कह देने के हिमायती थे, ‘बन पड़े तो सीधे-सीधे नहीं तो दरेरा देकर।’ इसीलिए कबीर को हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ‘वाणी का डिक्टेटर’ कहा है।

कबीर के जीवन के बारे में अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। उन्होंने अपनी विभिन्न कविताओं में खुद को काशी का जुलाहा कहा है। कबीर के विधिवत साक्षर होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता। मसि कागद छुयो नहि कलम गहि नहि हाथ जैसी कबीर की पंक्तियाँ भी इसका प्रमाण देती हैं। उन्होंने देशाटन और सत्संग से ज्ञान प्राप्त किया। किताबी ज्ञान के स्थान पर आँखों देखे सत्य और अनुभव को प्रमुखता दी। उनकी रचनाओं में नाथों, सिद्धों और सूफ़ी संतों की बातों का प्रभाव मिलता है। वे कर्मकांड और वेद-विचार के विरोधी थे तथा जाति-भेद, वर्ण-भेद और संप्रदाय-भेद के स्थान पर प्रेम, सद्भाव और समानता का समर्थन करते थे।

यहाँ प्रस्तुत पद में कबीर ने परमात्मा को सृष्टि के कण-कण में देखा है, ज्योति रूप में स्वीकारा है तथा उसकी व्याप्ति चराचर संसार में दिखाई है। इसी व्याप्ति को अद्वैत सत्ता के रूप में देखते हुए विभिन्न उदाहरणों के द्वारा रचनात्मक अभिव्यक्ति दी है।

पद जयदेव सिंह और वासुदेव सिंह द्वारा संकलित-संपादित कबीर वाड्मयखंड 2 (सबद) से लिया गया है।

पद 1

हम तौ एक एक करि जांनां।

दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां ॥

एकै पवन एक ही पानीं एकै जोति समांनां।

एकै खाक गढ़े सब भांड़ै एकै कोंहरा सांनां।

जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटै कोई।

सब घटि अंतरि तूँही व्यापक धरै सरूपै सोई।।

माया देखि के जगत लुभांनां काहे रे नर गरबांनां।

निरभै भया कछू नहिं ब्यापै कहै कबीर दिवांनां।

अभ्यास

पद के साथ

1. कबीर की दृष्ट्टि में ईश्वर एक है। इसके समर्थन में उन्होंने क्या तर्क दिए हैं?

2. मानव शरीर का निर्माण किन पंच तत्वों से हुआ है?

3. जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटै कोई।

सब घटि अंतरि तूँही व्यापक धरै सरूपै सोई॥

इसके आधार पर बताइए कि कबीर की दृष्टि में ईश्वर का क्या स्वरूप है?

4. कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है?

पद के आस-पास

1. अन्य संत कवियों नानक, दादू और रैदास आदि के ईश्वर संबंधी विचारों का संग्रह करें और उनपर एक परिचर्चा करें।

2. कबीर के पदों को शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत दोनों में लयबद्ध भी किया गया है। जैसेकुमारगंधर्व, भारती बंधु और प्रह्लाद सिंह टिपाणिया आदि द्वारा गाए गए पद। इनके कैसेट्स अपने पुस्तकालय के लिए मँगवाएं और पाठ्यपुस्तक के पदों को भी लयबद्ध करने का प्रयास करें।

शब्द-छवि

दोजग (फा. दोज़ख) - नरक
समांना - व्याप्त
खाक - मिट्टी
कोंहरा - कुम्हार, कुंभकार
सांनां - एक साथ मिलाकर
बाढ़ी - बढ़ई
अंतरि - भीतर
सरूपै - स्वरूप
गरबांनां - गर्व करना
निरभै - निर्भय


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