अध्याय 11 वस्त्रों की देखभाल तथा रखरखाव

11.1 परिचय

आपने पिछले कुछ अध्यायों में हमारे आस-पास के कपड़ों के महत्त्व के बारे में जाना है। ये मनुष्य को तथा उसके आस-पास के परिवेश को बाह्य वातावरण से सुरक्षित एवं संरक्षित करते हैं। कपड़े के उत्पादों अर्थात वस्त्रों, फ़र्निशिंग (सजावट) या, घर के भीतर किसी अन्य रूप में प्रयोग में लाए जाने वाले कपड़ों की देखभाल तथा रखरखाव अत्यंत आवश्यक और महत्वपूर्ण है। किसी भी उत्पाद या सामग्री (कपड़े) का अंतिम रूप से चयन तथा खरीदारी उसके रंग-रूप, बुनावट की किस्म और उपयोगिता पर अधिकांशतः निर्भर होती है। अतः यह अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है कि कपड़े के उपयोग किए जाने की संभावित अवधि के लिए ये विशेषताएँ उस में कायम रहें। इस प्रकार, कपड़ों की देखभाल तथा रखरखाव में निम्नलिखित बातें शामिल हैं -

  • कपड़े को बाहरी क्षति से मुक्त रखना
  • उसके रंगरूप को कायम रखना
  • उसके रंग को नुकसान पहुँचाए बिना दाग-धब्बों तथा धूल-मिट्टी को दूर करना
  • इसकी चमक तथा बुनावट की विशेषताओं जैसे कोमलता, कड़ापन या मज़बूती को बनाए रखना या पुनः कायम करना
  • इसे सिलवटों से मुक्त रखना तथा इसकी तह बनाए रखना अथवा यथा आवश्यकतानुसार सिलवटों को हटाना और तह बनाना।

11.2 मरम्मत

मरम्मत एक सामान्य शब्द है जिसका प्रयोग हम कपड़े को उसके सामान्य प्रयोग के दौरान अथवा आकस्मिक क्षति से मुक्त रखने के प्रयास में करते हैं। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं -

  • कटे, फटे, छेद हुए कपड़ों की मरम्मत करना
  • बटनों/बंधनों, रिबन, लेस या आकर्षक बंधनों को पुनः लगाना
  • सिलाई तथा तुरपाई को पुनः करना, यदि वे खुल गई हों।

जैसे ही ये क्षतियाँ उत्पन्न होती हैं इनकी देखभाल उसी समय करना सर्वोत्तम है। यह नितांत आवश्यक है कि धुलाई करने से पूर्व ही यह मरम्मत कर ली जाए क्योंकि धुलाई की रगड़ से कपड़े को और अधिक क्षति पहुँच सकती है।

11.3 धुलाई

कपड़ों की दैनिक देखभाल में सामान्यतः साफ़ रखने के लिए उन्हें धोना तथा सिलवट रहित दिखाई देने के लिए इस्तरी करना शामिल है। कई प्रकार के कपड़ों को अकस्मात् लगे दाग हटाने, मटमैला या पीला पड़ने से बचाने के लिए, जैसे कि बार-बार कपड़े के धुलने के कारण हो जाता है, तथा उसमें कड़ापन या चरचरापन लाने के लिए अक्सर विशेष उपचार की आवश्यकता होती है। धुलाई में यह समस्त बातें शामिल हैं-दाग-धब्बे हटाना, धुलाई के लिए कपड़ों को तैयार करना, धुलाई द्वारा कपड़ों से गंदगी हटाना, सुंदर दिखने के लिए अंतिम रूप देना (नील लगाना तथा स्टार्च लगाना) तथा अंततः आकर्षक रूप देने के लिए उन पर इस्तरी करना ताकि उन्हें प्रयोग में लाने के लिए तैयार करके रखा जा सके।

दाग-धब्बे हटाना

दाग-धब्बा एक ऐसा अवांछित चिह्न है या फिर रंग का लगना है जो किसी कपड़े पर बाहरी पदार्थ के संपर्क में आने से लग जाता है जिसे सामान्य धुलाई प्रक्रिया द्वारा हटाया नहीं जा सकता तथा जिसके लिए विशेष उपचार किया जाना आवश्यक होता है।

धब्बे को हटाने के लिए सही प्रक्रिया का प्रयोग करने के उद्देश्य से दाग-धब्बे की पहले पहचान की जानी आवश्यक है। यह पहचान रंग, गंध तथा स्पर्श के आधार पर की जा सकती है। दाग-धब्बों को निम्नलिखित रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है -

(i) वनस्पति के दाग धब्बे - चाय, काफी, फल तथा सब्ज़ियाँ। ये धब्बे अम्लीय होते हैं तथा इन्हें क्षारीय माध्यम से ही हटाया जा सकता है।

(ii) जंतुजन्य धब्बे - रक्त, दूध, मांस, अंडा इत्यादि। ये धब्बे प्रोटीनी होते हैं तथा इन्हें केवल ठंडे पानी में डिटर्जेंट का प्रयोग करके हटाया जा सकता है।

(iii) तैलीय धब्बे - तेल, घी, मक्खन इत्यादि। इन्हें ग्रीज़ घोलकों तथा अवशोषकों के प्रयोग द्वारा हटाया जाता है।

(iv) खनिज धब्बे - स्याही, जंग, कोयला, तारकोल, दवाई इत्यादि। इन धब्बों को पहले अम्लीय माध्यम में धोना चाहिए और फिर क्षारीय माध्यम में।

(v) रंग छूटना - धोने आदि के दौरान दूसरे कपड़ों से लगा रंग। कपड़े की कोटि पर निर्भर करते हुए, इन धब्बों को तनु अम्ल द्वारा या तनु क्षार द्वारा छुड़ाया जा सकता है।

दाग-धब्बे हटाना - सामान्य विचार

  • दाग-धब्बे को तभी हटाना सर्वोत्तम है जब वह ताज़ा-ताज़ा लगा हो।
  • दाग-धब्बे को पहचानें तथा उसे हटाने की सही क्रियाविधि का प्रयोग करें।
  • अज्ञात दाग-धब्बों के लिए पहले सरल प्रक्रिया का प्रयोग करें और फिर जटिल प्रक्रिया की ओर बढ़ें।
  • एक ही बार किसी तीव्र कर्मक का प्रयोग करने की अपेक्षा मृदु अभिकर्मक का बार-बार प्रयोग बेहतर है।
  • कपड़ों में से सभी रासायनिक अवशिष्टों को हटाने के लिए दाग-धब्बे हटाने के पश्चात सभी कपड़ों को साबुन के घोल से धोएँ।
  • कपड़ों को धूप में सुखाएँ क्योंकि धूप प्राकृतिक विरंजक के रूप में कार्य करती है।
  • नाज़ुक कपड़ों के लिए पहले रसायनों का प्रयोग कपड़े के छोटे से भाग पर करें, यदि कपड़े को क्षति पहुँचती है तो उनका प्रयोग न करें।

(i) दाग-धब्बे हटाने की तकनीकें

(क) खुरचना - जमे हुए सतही दाग-धब्बों को भोथरे चाकू का प्रयोग करके हल्के से खुरचा जा सकता है।

(ख) डुबोना - दाग-धब्बे वाले कपड़ों को किसी अभिकर्मक में डुबोया जाता है तथा फिर उसे रगड़ा जाता है।

(ग) स्पंज से साफ़ करना - कपड़े के दाग-धब्बे वाले भाग को एक समतल सतह पर रखा जाता है। दाग-धब्बों वाले भाग पर स्पंज से अभिकर्मक लगाया जाता है तथा उसे नीचे रखे ब्लॉटिंग पेपर द्वारा सोख लिया जाता है।

(घ) ड्रॉपर विधि - दाग-धब्बे लगे कपड़े को एक कटोरे पर फेला दिया जाता है। उस पर ड्रॉपर से अभिकर्मक डाला जाता है।

(ii) दाग-धब्बे हटाने के साधन / दाग-धब्बे हटाने के लिए अभिकर्मक - दाग-धब्बे हटाने के लिए प्रयुक्त विभिन्न अभिकर्मकों का प्रयोग द्रव रूप में तथा सांद्र रूप में, जैसा बताया गया हो, किया जाना चाहिए। इन अभिकर्मकों को निम्नलिखित रूप से वर्गीकृत किया जा सकता है -

(क) ग्रीज़ (चिकनाई) सॉल्वेंट (घोल) - तारपीन, मिट्टी का तेल, श्वेत पेट्रोल, मेथीलेटिड स्प्रिट, एसिटोन, कार्बन टेट्राक्लोराइड

(ख) ग्रीज़ (चिकनाई) अवशोषक - भूसा, कुम्हार की मिट्टी (फुलर अर्थ), टेलकम पाउडर, स्टार्च, फेंच चॉक

(ग) पायसीकारक - साबुन, डिटर्जेंट

(घ) अम्लीय अभिकर्मक - एसेटिक एसिड (सिरका), ऑक्सेलिक एसिड, नींबू, टमाटर, खट्टा दूध, दही

(ङ) क्षारीय अभिकर्मक - अमोनिया, बोरेक्स, बेकिंग सोडा

(च) विरंजक अभिकर्मक -

  • ऑक्सीकारी विरंजक - धूप, सोडियम हाइपोक्लोराइट (जैवल पानी), सोडियम परवोरेट, हाइड्रोजन परऑक्साइड।
  • अपचयनकारी विरंजक - सोडियम हाइड्रोसल्फ़ाइट, सोडियम बाइसल्फ़ेट, सोडियम थायोसल्फ़ेट।

तालिका 1 - सामान्य दाग-धब्चे तथा सती कपड़े से उन्हें हटाने की विधि

दाग धब्बा हटाने की विधि
टासंजक टेप $ \bullet $ बर्फ से कड़ा करें, खुरच कर उखाड़ लें, कोई भी साबुन युक्त घोल का प्रयोग
कर धो दें।
रक्त $ \bullet $ ताज़ा दाग-धब्बा - ठंडे पानी सेD धो दें।
$ \bullet $ पुराना दाग धब्बा - नमक के घोल में भिगो दें, रगड़ें और धो दें।
बॉल प्वांइट पेन $ \bullet $ नीचे ब्लॉटिंग कागज़ रखें तथा मेथिलेटिड स्प्रिट के साथ स्पंज से साफ़ करें।
मोमबत्ती की मोम $ \bullet $ तत्काल ठंडे पानी में भिगो दें, खुरचें, सफ़ेद सिरके में डुबोएँ, ठंडे पानी से
खंगाल लें और निचोड़ दें।
च्यूइंग गम $ \bullet $ बर्फ लगाएँ, खुरचें, ठंडे पानी में भिगो दें, साबुन के किसी घोल के साथ
स्पंज से साफ़ करें।
चॉकलेट $ \bullet $ ठंडे पानी हाइपोक्लोराइट विरंजक (जैवल जल) में भिगो दें।
करी (हल्दी तथा तेल) $ \bullet $ साबुन तथा पानी से धोएँ, धूप में विरंजित करें।
$ \bullet $ ताज़े दाग-धब्बे के नीचे ब्लॉटिंग पेपर रखें तथा उसे इस्तरी कर दें। फिर साबुन
और पानी से धो लें।
$ \bullet $ पुराने धब्बों को जावेल के पानी में भिगो कर हटाया जा सकता है।
अंडा $ \bullet $ ठंडे पानी से धोएँ, साबुन तथा गुनगुने पानी से धोएँ।
फल तथा सब्ज़ियाँ $ \bullet $ ताजे़ धब्बे पर स्टार्च का पेस्ट लगाएँ। फिर रगड़ें और धो दें।
$ \bullet $ इसे हटाने के लिए बोरिक, नमक तथा गर्म पानी का प्रयोग करें।
ग्रीज़ (चिकनाई) $ \bullet $ ग्रीज़ (चिकनाई) के विलायक - पेट्टोल, स्प्रिट या केरोसिन तेल में डुबोएँ या
स्पंज करें, गर्म पानी तथा साबन से धो दें।
$ \bullet $ स्टार्च का पेस्ट लगाएँ और छाया में सुखाएँ। ऐसा $2-3$ बार करने पर धब्बा
छूट जाएगा।
$ \bullet $ जावेल के पानी में भिगो दें तथा साबुन और पानी से धोएँ।
स्याही $ \bullet $ ताज़े धब्बे को साबुन और पानी से हटाया जा सकता है।
$ \bullet $ नींबू का रस, दही या खट्रा दूध और नमक लगाएँ और फिर उन्हें सुखा दें।
$ \bullet $ जावेल के पानी से भी धब्े को हटाया जा सकता है।
$ \bullet $ पोटेशियम परमेंगनेट के घोल में रगड़ें और फिर ऑक्सेलिक अम्ल में डुबो दें।
आइसक्रीम $ \bullet $ चिकनाई के विलायक में स्पंज से साफ़ करें, साबुन वाले गर्म पानी से धो दें।
लिपिस्टिक $ \bullet $ मेथीलेटिड स्पिरिट में भिगो दें, साबुन और पानी से धोएँ।
$ \bullet $ ग्लिसरीन रगड़े़ा, साबुन से धो दें।
दवाइयाँ $ \bullet $ मेथिल अल्कोहल में डुबोएँ अथवा ऑक्सेलिक एसिड के हल्के घोल में डुबोएँ।
गर्म पानी से धो दें।
मिल्ड्यू (ओस के दाग) हाइपोक्लोराइट ब्लीच द्वारा स्पंज से साफ़ करें।
दूध या क्रीम $ \bullet $ किसी विलायक से स्पंज द्वारा साफ़ करें। ठंडे पानी से धो दें।
पेंट या पॉलिश $ \bullet $ केरोसिन तथा/अथवा तारपीन के तेल से रगड़ें।
$ \bullet $ सोडियम थायोसल्फ़ेट के साथ ब्लीच करें।
जंग $ \bullet $ ऑक्सेलिक एसिड में भिगो दें तथा रगड़ें।
$ \bullet $ स्याही के दाग की भांति उपचार करें।
जलने का दाग $ \bullet $ हाइड्रोजन परऑक्साइड के साथ स्पंज से साफ़ करें। यदि कपड़े को नुकसान पहुँचा है तो दाग दूर नहीं होगा।

टिप्पणी

(क) ये विधियाँ सफ़ेद सूती कपड़ों से दाग धब्बे हटाने के लिए हैं। अन्य कपड़ों पर या रंगीन वस्त्रों पर इनका प्रयोग करते समय उपयुक्त सावधानी बरती जानी चाहिए।

(ख) दाग-धब्बे हटाना धुलाई करने का प्रारंभिक चरण है। इसके पश्चात कपड़ों को धोना या ड्राइक्लीन किया जाना चाहिए तथा उनमें से प्रयुक्त किए गए रसायन के समस्त अवशेष हटा दिए जाने चाहिए।

गंदगी हटाना - सफ़ाई की प्रक्रिया

गंदगी, कपड़े के ताने-बाने के बीच फंसी चिकनाई, कालिख तथा धूल के लिए प्रयुक्त किया गया शब्द है। गंदगी दो प्रकार की होती है- एक तो वह जो कपड़े की ऊपरी सतह पर लगी होती है तथा आसानी से हटाई जा सकती है तथा दूसरी जो पसीने तथा चिकनाई के द्वारा उस पर जमी होती है। ऊपर लगी गंदगी को केवल ब्रश से या झाड़ कर हटाया जा सकता है अथवा उसे पानी में खंगाल कर दूर किया जा सकता है। जमी हुई चिकनाई खंगालने की प्रक्रिया में थोड़ी कम हो सकती है किंतु उसे हटाने के लिए अभिकर्मकों की आवश्यकता होती है जो गंदगी को हटाने के लिए चिकनाई को कम करेंगे। चिकनाई को हटाने की तीन मुख्य विधियाँ है-विलायकों, अवशोषकों या पायसीकारकों का प्रयोग। जब सफ़ाई विलायकों या अवशोषकों द्वारा की जाती है तो उसे ड्राइक्लीनिंग कहते हैं। सामान्य सफ़ाई-धुलाई साबुन तथा डिटर्जेटों की सहायता से पानी में की जाती है जिससे चिकनाई अति सूक्ष्म कणों में टूट जाती है और छूटने लगती है। तब इसे पानी में खंगाल दिया जाता है।

(i) पानी धुलाई के कार्य के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला सर्वाधिक महत्वपूर्ण अभिकर्मक है। कपड़े और पानी के बीच एक प्रकार का जुड़ाव होता है। डुबोने के दौरान पानी कपड़े में प्रविष्ट हो जाता है तथा उसे गीला कर देता है। पेडेसिस या जल कणों का संचलन कपड़े में चिकनाई रहित गंदगी को हटाने में सहायक होता है। हाथ द्वारा या मशीन में संचलन द्वारा केवल पानी में धोने से कुछ गंदगी तथा मिट्टी के कण हट जाते हैं। पानी के तापमान में वृद्धि से जलकणों की हलचल तथा भेदन शक्ति बढ़ जाती है। यदि गंदगी चिकनाई युक्त हो तो यह और भी लाभप्रद होता है। किंतु केवल पानी उस गंदगी को दूर नहीं कर सकता जो पानी में घुलनशील नहीं है। इसमें गंदगी को निलंबित रखने का सामर्थ्य भी नहीं है जिसके परिणामस्वरूप हटी हुई गंदगी पुन: कपड़े पर जम जाती है। बार-बार धोने के पश्चात् कपड़े के मटमैले हो जाने का मुख्य कारण गंदगी का पुनः कपड़े पर जम जाना है।

(ii) साबुन तथा डिटर्जेंट धुलाई के कार्य में प्रयुक्त होने वाले सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथा आवश्यक सफ़ाई अभिकर्मक हैं। साबुन प्राकृतिक तेलों या वसा एवं क्षार से बनाया जाता है। यदि क्षार का अधिक प्रयोग किया जाए तो कपड़े पर साबुन का प्रयोग करते समय वह निकल जाता है। संश्लिष्ट डिटर्जेटों को रसायनों से बनाया जाता है। साबुन तथा डिटर्जेंट दोनों को पाउडर, फ्लेक, बार (चक्की) तथा तरल स्वरूपों में बेचा जाता है। प्रयुक्त किए जाने वाले साबुन या डिटर्जेंट की किस्म, कपड़े की किस्म, रंग तथा कपड़े पर जमी गंदगी की किस्म पर निर्भर करती है।

साबुन तथा डिटर्जेंट दोनों में एक जैसी महत्वपूर्ण रासायनिक विशिष्टता पाई जाती है-वे सतह पर क्रिया करने वाले अभिकर्मक होते हैं और सरफेक्टेंट कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में, अभिकर्मक पानी के पृष्ठ तनाव को कम कर देते हैं। इस प्रभाव के कम होने से पानी कपड़ों को अधिक सहजता से डुबो लेता है तथा धब्बों और गंदगी को अधिक तेज़ी से दूर करता है। धुलाई डिटर्जेटों के सरफेक्टेंट तथा अन्य तत्व भी धुलाई के पानी में हटाई गई मिट्टी/गंदगी को निलम्बित रखने का कार्य भी करते हैं जिससे वह पुनः साफ़ कपड़ों पर नहीं जमती। इससे कपड़ों के मटमैलेपन को रोका जा सकता है।

साबुन तथा डिटर्जेटों में कुछ अंतर होते हैं। साबुन में अनेक ऐसे गुण होते हैं जिनके कारण वे डिटर्जेंट की अपेक्षा अधिक पसंद किए जाते हैं। जैसा पहले उल्लेख किया गया है, ये प्राकृतिक उत्पाद हैं तथा त्वचा एवं पर्यावरण के लिए कम हानिकारक हैं। साबुन जैवअपघटनीय होते हैं तथा हमारी नदियों तथा झरनों को प्रदूषित नहीं करते। दूसरी ओर, साबुन कठोर जल में प्रभावी नहीं होते जिसके परिणामस्वरूप अपव्यय होता है। साबुन की एक और कमी यह है कि यह संश्लिष्ट डिटर्जेंट की तुलना में कम सक्षम होता है तथा कुछ समय बाद इसकी साफ़ करने की क्षमता समाप्त हो जाती है। डिटर्जेंट का एक अतिरिक्त लाभ यह है कि उन्हें सफ़ाई के प्रत्येक कार्य के लिए तथा विभिन्न प्रकार की मशीनों में प्रयोग हेतु विशिष्ट रूप से अनुकूलित किया जा सकता है।

(iii) धुलाई की विधियाँ - साबुन या डिटर्जेट से एक बार गंदगी युक्त चिकनाई के छोटे-छोटे कणों में टूट जाने के पश्चात इसे खंगाल दिए जाने तक डुबाए रखना पड़ता है। वस्त्र के कुछ हिस्सों पर ऐसी गंदगी लगी होती है जो उसके साथ चिपकी होती है। धुलाई के लिए प्रयुक्त विधियाँ इन दो कार्यों में सहायता करती हैं - वस्त्र के साथ चिपकी गंदगी को अलग करना तथा उसे निलंबित रखना। चयनित विधि रेशे के अंश, धागे की किस्म तथा वस्त्र निर्माण एवं धुलाई की जाने वाली वस्तु के आकार तथा भार पर निर्भर करती है। धुलाई की विधियों को निम्नलिखित रूप से वर्गीकृत किया गया है -

  • घिसकर रगड़ना
  • मलना तथा निचोड़ना
  • चूषण-पंप
  • मशीनों द्वारा धुलाई

आइए अब हम इन विधियों पर विस्तार से चर्चा करें -

(क) रगड़ना - यह धुलाई की सर्वाधिक प्रचलित विधि है। सफ़ाई की यह विधि मज़बूत सूती वस्त्रों के लिए उपयुक्त है। रगड़ वस्त्र के एक भाग को वस्त्र के दूसरे भाग के साथ हाथ से रगड़-रगड़ कर उत्पन्न किया जा सकता है। वैकल्पिक रूप से हाथ की हथेली पर या किसी स्क्रबिंग बोर्ड पर वस्त्र के गंदे भागों को रखकर ब्रश से रगड़ा जाता है। रगड़ना

धुलाई का एक उदाहरण है। रेशम तथा ऊन जैसे नाज़ुक कपड़ों पर तथा पाइल छल्लेदार वस्त्र अथवा कढ़ाई किए गए वस्त्रों की सतहों पर रगड़ाई नहीं की जाती।

(ख) मलना तथा निचोड़ना - जैसा कि नाम से ही पता चलता है, इस विधि में कपड़े को साबुन के घोल में हाथों से धीरे-धीरे मलना तथा मसलना शामिल है। चूँकि इस विधि में बहुत कम ज़ोर लगाया जाता है, अतः यह कपड़े के तंतुओं, रंग या बुनाई को हानि नहीं पहुँचाती। इस प्रकार, ऊन, रेशम, रेयॉन तथा रंगदार वस्त्रों जैसे नाज़ुक कपड़ों को साफ़ करने के लिए इस विधि का सहजता से प्रयोग किया जा सकता है। अत्यधिक गंदे कपड़ों के लिए यह विधि प्रभावपूर्ण नहीं होगी।

(ग) चूषण-पंप द्वारा धुलाई - इस विधि का प्रयोग तौलिए जैसे कपड़ों के लिए किया जाता है जिन पर ब्रश का प्रयोग नहीं किया जाता तथा जब वस्त्र इतना बड़ा या भारी हो कि उस पर मलने तथा दबाने की तकनीक का प्रयोग नहीं किया जा सकता। कपड़े को एक टब में साबुन के घोल में डाला जाता है तथा चूषण-पंप को बार-बार दबाया तथा उठाया जाता है। दबाने के कारण उत्पत्न हुआ निर्वात गंदगी के कणों को ढीला कर देता है।

(घ) मशीन से धुलाई - धुलाई मशीन मेहनत को बचाने वाली युक्ति है जो विशेष रूप से बड़ी संस्थाओं, जैसे- अस्पतालों तथा होटलों के लिए उपयोगी है। आजकल बाज़ार में विभिन्न कंपनियों की विविध धुलाई मशीनें उपलब्ध हैं। प्रत्येक मशीन में धुलाई की तकनीक एक ही है। वह है गंदगी को निकालने के लिए वस्त्रों को मसलना। इन मशीनों में धुलाई के लिए, दबाव या तो मशीन में टब के घूमने से उत्पन्न किया जाता है या मशीन के साथ जुड़ी केंद्रीय छड़ के दोलन से उत्पन्न होता है। धुलाई का समय वस्त्र की किस्म तथा गंदगी की मात्रा के अनुसार, भिन्न होता है। धुलाई मशीनें हस्तचालित, अर्द्ध स्वचालित तथा पूर्णतया स्वचालित होती हैं।

अंतिम रूप देना

धुलाई के पश्चात् कपड़े को साफ़ पानी में खंगालना अत्यधिक आवश्यक है जब तक कि इसमें से साबुन या डिटर्जेंट पूरी तरह निकल नहों जाता। अकसर अंतिम बार खंगालने की प्रक्रिया में कुछ अन्य अभिकर्मक भी पानी में मिलाए जाते हैं जो वस्त्र की चमक को बहाल करने में सहायक होते हैं। कपड़े को अधिक कड़ा तथा चरचरा बनाने के लिए भी कपड़े पर कुछ अन्य अभिकर्मक प्रयुक्त किए जाते हैं।

(i) नील तथा चमक पैदा करने वाले पदार्थ - आपने देखा होगा कि बार बार प्रयोग किए जाने पर तथा धुलाई के साथ सफ़ेद सूती कपड़ों की सफ़ेदी समाप्त होने लगती है तथा वे पीले पड़ने लगते हैं। संश्लेषित या विनिर्मित वस्त्रों या उनके मिश्रण वाले वस्त्रों के मामले में यह रंग खराब होकर मटमैला-सा हो जाता है।

पीलेपन को दूर करने के लिए तथा सफ़ेदी को वापस लाने के लिए नील का प्रयोग करने की सिफ़ारिश की जाती है। इससे मटमैलेपन का उपचार नहीं हो सकता। नील बाज़ार में अल्ट्रामेरीन नील (अत्यधिक बारीक पाउडर वर्णक के रूप में) के रूप में तथा तरल रासायनिक रंजक के रूप में उपलब्ध है। अंतिम बार खंगालते समय नील की सही मात्रा का प्रयोग किया जाना चाहिए। पाउडर वाले नील को पानी की थोड़ी-सी मात्रा मिलाकर पेस्ट बना लिया जाता है तथा फिर उसे और अधिक पानी में मिला दिया जाता है। इस घोल का प्रयोग तत्काल किया जाता है - क्योंकि रखे रहने से यह पाउडर तल पर जम जाता है तथा इसके परिणामस्वरूप कपड़े पर धब्बे पड़ सकते हैं। तरल नील का प्रयोग करना अपेक्षाकृत सहज है तथा इससे अधिक एकसार प्रभाव पड़ता है। इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि नील का प्रयोग वस्त्र पर पूर्णतया गीली स्थिति में (किंतु टपकती हुई नहीं) किया जाए जो निचोड़ने की सलवटों से मुक्त हो। वस्त्र को कुछ समय के लिए नील के घोल में घुमाएँ, अधिक नमी को निकाल दें तथा उसे सूखने डाल दें।

चमक पैदा करने वाले अभिकर्मक या फ्लूरोसेंट चमक पैदा करने वाले अभिकर्मक वे सम्मिश्रण होते है जिनमें निम्न ग्रेड वाले या कमज़ोर रंजक प्रयुक्त होते हैं और जिनमें फ्लूरोसेंस की विशिष्टता निहित होती है। ये सम्मिश्रण कम तरंग दैधर्य (वेव लेंथ) पर प्रकाश को समाहित कर सकते हैं तथा अधिक तरंगदैधर्य पर पुन: निस्रावित करते हैं। किसी वस्त्र पर फ्लूरोसेंट चमक लाने वाले अभिकर्मक का प्रयोग करने से उसमें गहन चमकदार सफ़ेदी आ जाती है जो पीलेपन तथा मटमैलेपन, दोनों को दूर कर देती है। इनका प्रयोग रंगीन प्रिंटेड वस्त्रों पर भी किया जा सकता है। चमक लाने वाले अभिकर्मकों को कई बार श्वेतकर्ता भी कहा जाता है। किंतु ये रंग को खराब नहीं करते तथा इसलिए इन्हें विरंजक नहीं समझा जाना चाहिए।

(ii) स्टार्च तथा कड़ा करने वाले अभिकर्मक - बार-बार धुलाई से वस्त्र के ताने-बाने को नुकसान पहुँचता है जिससे इसकी चमक तथा चटक भी कम हो जाती है। वस्त्र को कड़ा तथा चिकना एवं चमकीला बनाने की सर्वाधिक आम तकनीक स्टार्च लगाना तथा कड़ा करने वाले अभिकर्मकों का प्रयोग करना है। इस फिनिश से न केवल कपड़े के रूप-रंग तथा बुनावट में सुधार आता है बल्कि वस्त्र पर सीधी गंदगी के संपर्क से भी बचाव होता है। स्टार्च लगाने से बाद की धुलाई भी सहज हो जाती है क्योंकि गंदगी वस्त्र के बजाय स्टार्च के साथ चिपकती है। कड़ा करने वाले अभिकर्मक प्रकृति से मुख्यतः पशुओं या पौधों से प्राप्त होते हैं। कड़ा करने वाले सर्वाधिक सामान्य अभिकर्मक हैं-स्टार्च, बबूल का गोंद, बोरेक्स तथा जिलेटिन।

(क) स्टार्च गेहूँ (मैदा), चावल, अरारोट, टेपियोका (कसावा) इत्यादि से प्राप्त होते हैं। ये बाज़ार में पाउडर के रूप में उपलब्ध होते हैं तथा प्रयोग से पूर्व इन्हें पकाना पड़ता है। स्टार्च का गाढ़ापन स्टार्च किए जाने वाले वस्त्र की मोटाई पर निर्भर करता है। कड़ा करने वाले अभिकर्मक के रूप में इसका प्रयोग केवल सूती या लिनन के कपड़ों पर किया जाता है। मोटे सूती कपड़ों पर हल्का स्टार्च लगाने की आवश्यकता होती है जबकि पतले वस्त्रों पर अधिक स्टार्च लगाया जाना आवश्यक होता है। बाज़ार में उपलब्ध व्यापारिक रूप से तैयार किए गए स्टार्च का प्रयोग करना सहज है तथा उन्हें तैयार करने के लिए सामान्यतः गर्म पानी की आवश्यकता नहीं होती।

(ख) बबूल का गोंद या अरेबिक गोंद - बबूल के पौधे से प्राप्त प्राकृतिक गोंद है जो दानेदार गाँठों में उपलब्ध होती है। कड़ा करने का घोल बनाने के लिए इसे रात भर पानी में भिगो दिया जाता है और फिर उसे एक गाँठ रहित घोल बनाने के लिए छान

लिया जाता है। इससे केवल हल्का कड़ापन ही आता है जो चरचरेपन के स्वरूप में अधिक होता है। इसका प्रयोग रेशमी वस्त्रों, अत्यधिक महीन सूती वस्त्रों, रेयान तथा रेशमी एवं सूती मिश्रित वस्त्रों के लिए किया जाता है।

(ग) जिलेटिन - इसे बनाना तथा प्रयोग में लाना सहज है किंतु अन्य गृह निर्मित स्टार्चो की तुलना में यह महंगी होती है।

(घ) बोरेक्स - यह वस्तुतः स्टार्च नहीं है किंतु स्टार्च के घोल में इसकी एक छोटी-सी मात्रा मिला देने से कड़ाई की प्रक्रिया में सुधार आता है। जब स्टार्च लगाने के पश्चात् वस्त्र पर इस्तरी की जाती है तो बोरेक्स पिघल जाता है तथा वस्त्र की सतह पर एक पतली-सी परत बन जाती है। यह जलरोधी स्वरूप का होता है तथा इस प्रकार इसके प्रयोग से नम जलवायु में भी कपड़े में कड़ापन बना रहता है।

कड़ा करने वाले अभिकर्मक का प्रयोग वस्त्र में रेशे के अंश पर तथा वस्त्र के विशिष्ट प्रयोग पर आधारित होता है। व्यक्तिगत वस्त्रों के लिए यह प्रयोक्ता की पसंद पर भी निर्भर है। स्टार्च का घोल लगाते समय सावधानी बरती जानी चाहिए कि स्टार्च को सही मात्रा में लिया जाए तथा कपड़ा पूर्णतया गीला हो (किंतु पानी न टपक रहा हो)। कपड़े को अच्छी प्रकार घोल में मला जाता है, पानी की अतिरिक्त मात्रा को दबाकर निकाल दिया जाता है और फिर उसे सुखाया जाता है। गहरे रंग के सूती वस्त्रों पर स्टार्च लगाते समय नील या चाय के घोल की एक छोटी-सी मात्रा को स्टार्च के घोल में मिलाया जा सकता है ताकि कपड़े पर सफ़ेद धब्बे न पड़ें।

(ङ) सुखाना - कपड़ों को धोने, उन पर नील तथा स्टार्च लगाने के पश्चात् उन्हें इस्तरी करने या रखने से पूर्व सुखाया जाना आवश्यक है। सुखाने का सर्वाधिक उपयुक्त तरीका कपड़ों को उल्टा करके बाहर धूप में सुखाना है। धूप में न केवल कपड़े जल्दी सूखते हैं बल्कि यह एक एंटीसेप्टिक का काम भी करती है तथा श्वेत कपड़ों के लिए विरंजक अभिकर्मक का काम भी करती है, रेशम तथा ऊन के वस्त्रों जैसे नाजुक कपड़ों को बहुत अधिक समय तक धूप में लटकाया नहीं जा सकता क्योंकि तेज़ धूप से इन वस्त्रों को क्षति पहुँचती है। संश्लेषित वस्त्रों की धूप में अधिक देर रहने से मज़बूती कम हो जाती है, ये कपड़े पीले भी पड़ जाते हैं और इनकी सफ़ेदी फिर वापस नहीं आती। अतः इन वस्त्रों को घर के भीतर सुखाना ही बेहतर है।

इस्तरी करना

अपने वस्त्रों को धोने के बाद आपने देखा होगा कि उन पर सलवटें तथा अवांछित तहें बन जाती हैं। इस्तरी करने से इन सलवटों तथा तहों को दूर करने में तथा इच्छानुसार तह बनाने में सहायता मिलती है। अच्छी तरह से इस्तरी करने के लिए तीन चीज़ों की आवश्यकता होती है - तापमान, नमी तथा दवाब।

इस्तरी का तापमान उच्च हो सकता है। कोयले की इस्तरी या वैद्युत (बिजली की) इस्तरी का प्रयोग किया जा सकता है। यद्यपि कोयले की इस्तरी सस्ती होती है, पर इसमें कुछ कमियाँ भी होती हैं। ताप को उत्पन्न करने के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले कोयले से इस्तरी किए जाने वाले कपड़े पर दाग लग सकता है तथा सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस प्रकार की इस्तरी में तापमान को नियंत्रित नहीं किया जा सकता। विभिन्न रेशा समूहों की विभिन्न तापीय विशेषताएँ होती हैं। इसके कारण उन पर उनके विशिष्ट तापमानों के अनुसार इस्तरी किया जाना आवश्यक है। ऐसा बिजली की इस्तरी का प्रयोग करके किया जा सकता है जिसमें तापमान को नियंत्रित किया जा सकता है। इसलिए, यदि बिजली की समस्या न हो तो स्वचालित वैद्युत इस्तरी सर्वोत्तम विकल्प है।

अच्छी इस्तरी करने के लिए दूसरी आवश्यकता नमी है। वस्त्रों को धोने के बाद पूरी तरह सूखने से पहले ही यदि इस्तरी किया जाए तो उनमें नमी स्वतः ही मौजूद होती है। अगर वस्त्र अच्छी तरह सूख चुके हैं तो उन पर पानी का छिड़काव करके तौलिए में लपेट कर रख सकते हैं ताकि पानी पूरे कपड़े में समान रूप से फैल जाए। स्र्रे करने वाली बोतल से भी पानी छिड़का जा सकता है।

अच्छी इस्तरी करने के लिए तीसरी आवश्यकता दबाव की है। इसकी व्यवस्था हस्तचालित रूप से इस्तरी किए जाने वाले वस्त्र पर इस्तरी को चला कर की जाती है। सामान्यतः इस्तरी कपड़ों की लंबाई की दिशा में चलाई जाती है ऐसे हिस्से जो इस्तरी चलाने से खिंच सकते हैं या आकार में ढीले पड़ सकते हैं, उदाहरण के लिए लेस पर, इस्तरी नहीं की जानी चाहिए, इन्हें दबाया जाना चाहिए। दबाने का अर्थ है, गर्म इस्तरी को कपड़े पर एक स्थान पर रखना और फिर उसे उठाकर कपड़े पर दूसरे स्थान पर रखना। तह, तुरपाई किए गए मोड़, जेब, प्लैकेट तथा चुन्नटों को सेट करने के लिए भी दबाने की विधि का प्रयोग किया जा सकता है।

इस्तरी करने के लिए प्रयुक्त की जाने वाली मेज अच्छी प्रकार की गद्देदार किंतु ठोस होनी चाहिए। इसकी ऊपरी सतह समतल होनी चाहिए तथा इसका आकार तथा ऊँचाई ऐसी होनी चाहिए कि वह इस्तरी करने वाले के लिए आरामदायक हो। आजकल गद्देदार इस्तरी करने वाले बोर्ड बाज़ार में उपलब्ध हैं। यदि ये उपलब्ध न हों, तो किसी भी समतल सतह पर किसी मोटे कपड़े की तीन-चार तह करके उसका प्रयोग इस्तरी करने के लिए किया जा सकता है।

इस्तरी करने के पश्चात्, कपड़ों को या तो विशिष्ट प्रकार से तह करके रखा जाता है अथवा उन्हें हैंगरों में टाँग दिया जाता है, जैसा भी स्थान उपलब्ध हो। यह आवश्यक है कि जब प्रयोग में लाने के लिए कपड़ों की आवश्यकता हो, तो वे तैयार अवस्था में उपलब्ध हों।

ड्राइ-क्लीनिंग

ड्राइ-क्लीनिंग को एक जल-रहित तरल माध्यम में वस्त्रों की सफाई करने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। शुष्क तथा आर्द्र घोलकों के बीच महत्वपूर्ण अंतर यह है कि रेशों द्वारा जल सोख लिया जाता है जिससे कपड़ा सिकुड़ जाता है, उस पर सिलवटें पड़ जाती है तथा उसका रंग निकल जाता है। परंतु वाष्पशील (शुष्क) विलायकों से रेशे फूलते नहीं हैं। अतः ड्राइ-क्लीनिंग नाज़ुक वस्त्रों को साफ़ करने के लिए एक सुरक्षित विधि है। ड्राई-क्लिनिंग के लिए, सर्वाधिक सामान्य रूप से प्रयुक्त विलायक हैं- परक्लोरो-एथीलीन, पेट्रोलियम विलायक या फ्लोरो कार्बन विलायक।

ड्राई-क्लीनिंग सामान्यतः औद्योगिक स्थापनाओं में की जाती है, घरेलू स्तर पर नहीं। वस्त्रादि क्लीनर के पास ले जाए जाते हैं तथा उन पर पहचान के लिए एक टैग लगाया जाता है जिसमें विशेष अनुदेश लिखे होते हैं। वस्त्रादि का पहले निरीक्षण किया जाता है तथा उसकी स्पॉट बोर्ड पर सफ़ाई की जाती है। क्योंकि विलायक का प्रयोग किया जाता है, अतः जल में घुलनशील दाग-धब्बों तथा अन्य कठिनाई से हटाए जा सकने वाले दागों की सफ़ाई स्पॉट बोर्ड पर की जानी आवश्यक है। जो ग्राहक ड्राइक्लीनर को कपड़ों के दाग धब्बे दिखा देते हैं, वे सफ़ाई के कार्य को अपेक्षाकृत सरल बना देते हैं और अंततः ड्राइ-क्लीनिंग भी अधिक संतोषजनक होती है।

कई ड्राइक्लीनर अतिरिक्त प्रबंध करने का प्रावधान रखते हैं, जैसे बटन बदलना, वस्त्रों में छोटी-मोटी मरम्मत करना, आकार को बदलना, जलरोधन करना तथा अन्य फिनिशिंग जैसे स्थायी क्रीज़, कीड़ा रोधन तथा फर एवं चमड़े की सफ़ाई। कुछ ड्राइक्लीनर फ़ेदर के तकियों, कंबलों, रज़ाइयों तथा कारपेटों की सफाई तथा स्वच्छता भी करते हैं, तथा पर्दों आदि को साफ़ और प्रेस भी करते हैं।

11.4 वस्त्र उत्पादों का भंडारण

हमारे देश में मौसम पूरे वर्ष एक समान नहों रहता( अतः हमारे पास सभी तापमानों के अनुरूप वस्त्र होते हैं। विशिष्ट मौसम संबंधी स्थितियों के लिए विशिष्ट कपड़ों की आवश्यकता के कारण यह आवश्यक हो जाता है कि उन वस्त्रों को संभाल कर रख दिया जाए जिनकी आवश्यकता उस खास समय पर नहीं है। कपड़े कैसे भी हों, उन्हें पैक करके संभाल कर रखने से पूर्व यह आवश्यक है कि वे साफ़ तथा सूखे हों। ऊनी कपड़ों को रखने से पहले उन्हें भलीभांति ब्रश करना और ड्राइक्लीन कराना आवश्यक है उसमें से सभी दाग-धब्बे हटा दिए गए हों तथा सभी फटे हुए स्थानों की मरम्मत की गई हो। जेबों को अंदर से बाहर उल्टा किया जाना चाहिए, ट्राउज़र तथा बाजू को भी उल्टा किया जाना चाहिए, उनकी जाँच की जानी चाहिए तथा उनमें से समस्त धूल, गंदगी इत्यादि झाड़ दी जानी चाहिए। सभी वस्त्रों को झाड़ना, ब्रश किया जाना, धोना, प्रेस करना तथा तह लगाया जाना आवश्यक है। अलमारियों या ट्रंकों में उन्हें खुला-खुला पैक करें। अत्यधिक कस कर पैक किए गए वस्त्रों में उनकी तह पर स्थायी सलवटें पड़ सकती हैं। कपड़े रखने के लिए चुनी गई शेल्फ़, बक्से या अल्मारियाँ साफ़, सूखी तथा कीटमुक्त होनी चाहिए, उनमें धूल तथा गंदगी नहीं होनी चाहिए। यह आवश्यक है कि पैकिंग अत्यंत कम नमी वाले वातावरण में की जाए। विभिन्न प्रकार के कपड़ों के लिए भंडारण के समय भिन्न प्रकार की देखभाल की आवश्यकता होती है क्योंकि प्रत्येक प्रकार के वस्त्र अलग-अलग सूक्ष्म जीवाणुओं से क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।

11.5 वस्त्र की देखभाल को प्रभावित करने वाले कारक

कपड़ों का चयन, प्रयोग तथा देखभाल कई कारकों पर निर्भर करता है। उत्पाद के लिए कुछ विचारणीय महत्वपूर्ण कारक हैं-कपड़े में रेशे का अंश, धागे की संरचना, रंग अनुप्रयोग, कपड़े का अंतिम रूप आदि। प्रत्येक प्रकार के कपड़े की अपनी विशिष्ट विशेषताएँ होती हैं, इसलिए इनके लिए विशिष्ट देखभाल की आवश्यक होती है।

जिन रेशों से वस्त्र निर्मित होते हैं, वे उनकी देखभाल संबंधी आवश्यकताओं को प्रभावित करते हैं, जैसा कि सारणी 2 में दर्शाया गया है-

सारणी 2 - रेशों की विशेषताएँ जो कपड़ों की देखभाल तथा रखरखाव को प्रभावित करती हैं

धागे की संरचना

धागे की संरचना (धागे की किस्म तथा मोड़) रखरखाव को प्रभावित कर सकती है। उदाहरणार्थ, अधिक मुड़े हुए धागे सिकुड़ जाएँगे अथवा नये तथा जटिल धागे उलझ या खुल सकते हैं। मिश्रित धागे होने का अर्थ है कि दोनों रेशों की देखभाल की जानी आवश्यक है। यदि सूत के साथ पोलिएस्टर को मिश्रित किया गया है तो आप अधिक गर्म जल का प्रयोग नहीं कर सकते क्योंकि वह सिकुड़ जाएगा तथापि उसमें अधिक सलवटें नहीं पड़ेंगी तथा इसलिए उसे इस्तरी करना आसान होगा।

वस्त्र निर्माण

वस्त्र निर्माण का रखरखाव के साथ घनिष्ठ संबंध है। सादा महीन बुने हुए वस्त्रों का रखरखाव करना सरल है। फैंसी बुनाइयाँ-साटिन, पाइल तथा लंबे फ्लोट वाले वस्त्र धुलाई के दौरान उलझ सकते हैं। बुने हुए वस्त्रों का आकार बिगड़ जाता है तथा उनकी पुनः ब्लॉकिंग (आकार देना) किया जाना आवश्यक हो सकता है। शियर फेब्रिक, लेस तथा जालियों के साथ-साथ फेल्ट तथा बिना बुनाई वाले वस्त्रों के प्रति सावधानी बरतना आवश्यक है।

रंग तथा अंतिम रूप

रंग भी देखभाल का एक महत्वपूर्ण पहलू है। रंगे हुए तथा प्रिंटेड वस्त्रों का सफ़ाई के दौरान रंग निकल सकता है तथा उनके रंग का दाग अन्य वस्त्रों पर लग सकता है। प्रयोग किए जाने से पूर्व वस्त्र के रंग का परीक्षण कर लिया जाना चाहिए तथा इसके प्रयोग के दौरान उचित देखभाल की जानी आवश्यक है।

अनेक अंतिम उपचार वस्त्रों की रंगत को बदल सकते हैं जिससे वे वस्त्र बेहतर हो सकते हैं या समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। कुछ फिनिश को प्रत्येक धुलाई के पश्चात् फिर से किया जाना आवश्यक है।

इस प्रकार हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि सभी वस्त्र उत्पादों के लिए ध्यान में रखे जाने वाले महत्वपूर्ण कारक हैं-रेशे का अंश, तंतु संरचना, वस्त्र निर्माण, रंग अनुप्रयोग तथा फिनिशिंग। ये सब मिलकर रूप-रंग, आराम, टिकाऊपन तथा रखरखाव संबंधी आवश्यकताओं का निर्धारण करते हैं। रूप-रंग, आराम, टिकाऊपन तथा रखरखाव का महत्त्व सापेक्ष है। यह हमारा उत्तरदायित्व बन जाता है कि हम वस्त्र की विशेषताओं का उसके अंतिम उपयोग के संदर्भ में मूल्यांकन करें और फिर उसकी देखभाल तथा प्रयोग के बारे में निर्णय लें।

11.6 देखभाल संबंधी लेबल

देखभाल संबंधी लेबल एक स्थायी लेबल या टैग होता है जिसमें नियमित देखभाल, जानकारी तथा अनुदेश दिए जाते हैं। इसे वस्त्र के साथ इस प्रकार जोड़ा गया होता है कि वह उत्पाद से अलग नहीं होता तथा वस्त्र के उपयोग में आने की अवधि के दौरान पढ़ने योग्य रहता है।

आगे आने वाले अंतिम अध्यायों में हमने संप्रेषण के महत्त्व का पुनः उल्लेख किया है - वैसे ही जैसे आपने इस बारे में देखभाल लेबलों पर पढ़ा। अगले अध्याय में हमें उन विभिन्न कारणों की जानकारी दी गई है कि क्यों विभिन्न लोग संप्रेषणों को भिन्न-भिन्न तरीके से ग्रहण करते हैं।

मुख्य शब्द

मरम्मत, धुलाई, दाग-धब्बे हटाना, पानी, साबुन तथा डिटर्जेंट, ड्राईक्लीनिंग, रगड़ना, सक्शन, मलना तथा निचोड़ना, नील तथा स्टार्च, देखभाल के लेबल।

अंत में कुछ प्रश्न

1. वस्त्रों की देखभाल तथा रखरखाव के विभिन्न पहलू कौन से हैं?

2. ‘दाग’ शब्द को परिभाषित कीजिए विभिन्न प्रकार के धब्बे कौन-कौन से हैं और इन्हें हटाने के लिए कौन-सी विभिन्न प्रकार की तकनीकों का प्रयोग किया जा सकता है?

3. वस्त्रों से अज्ञात दागों को हटाने के लिए किए जा सकने वाले तरीके लिखें।

4. गंदगी क्या है? पानी, साबुन तथा डिटर्जेंट किस प्रकार मिल कर वस्त्रों से गंदगी को दूर करते हैं?

5. धुलाई के पश्चात फिनिशिंग से वस्त्रों की चमक तथा बुनावट की विशेषताओं में किस प्रकार सुधार आता है?

6. ड्राई-क्लीनिंग क्या है? किस प्रकार के वस्त्रों के लिए ड्राई-क्लीनिंग की सिफ़ारिश की जाती है?

प्रयोग 17

वस्त्रों की देखभाल तथा रखरखाव

थीम - वस्त्रों के पक्के रंग

अभ्यास - धुलाई के लिए रंग के पक्के होने का विश्लेषण

**प्रयोग का प्रयोजन **- इस प्रकार की जानकारी उपभोक्ता को रंगीन वस्त्र धोते समय की जाने वाली देखभाल का समझदारी से चयन करने में सहायता करेगी।

क्रियाविधि

  • रंगीन वस्त्र तथा सफ़ेद सूती वस्त्र के $2 " \times 4 “$ के चार-चार नमूने लें।
  • रंगीन नमूने को श्वेत नमूनों के साथ जोड़कर ( $4 " \times 4$ “) के चार नमूने (एबीसीडी) तैयार करें।
  • (ए) को नियंत्रण नमूने के रूप में रखें तथा बी.सी.डी नमूनों को पहले से ही गुनगुने पानी (40 डिग्री से.) में तैयार किए गए 0.5 प्रतिशत साबुन के घोल में डालें, हल्के से रगड़ें।
  • पाँच मिनट के पश्चात खंगाल कर सुखा लें।
  • इस प्रक्रिया को नमूने सी और डी पर दोहराएँ, धोएँ, खंगालें और सुखाएँ।
  • नमूने डी के साथ यही प्रक्रिया दोहराएँ और प्रेक्षण को लिखें।

प्रेक्षण

नमूने परीक्षण नमूनों के रंग में परिवर्तन संलग्न सफ़ेद कपड़े पर दाग लगना
कंट्रोल नमूना

4-5 विद्यार्थियों का समूह बनाएँ तथा अन्य वस्त्रों के प्रेक्षणों की भी तुलना करें।

प्रयोग 18

वस्त्रों की देखभाल तथा रखरखाव

थीम - वस्त्रों तथा परिधानों पर लगे लेबलों का अध्ययन

अभ्यास - वस्त्रों तथा परिधानों के लेबलों पर दी गई जानकारी का विश्लेषण करना।

उद्देश्य - वस्त्रों से बने परिधानों तथा अन्य उत्पादों का रंग रूप, देखभाल तथा उनका टिकाउपन उपभोक्ताओं के लिए एक चिंता का विषय है। यह जानकारी उन पर लगे लेबलों अथवा हाथ से टाँके गए लेबल के माध्यम से उपलब्ध कराई जाती है। वस्त्र अथवा लंबाई-चौड़ाई के बारे में जानकारी एक सिरे पर या किनारों के नियमित अंतरालों पर छपी होती है। ये लेबल उपभोक्ता को उनके उत्पादों की गुणों की जानकारी देने तथा समुचित तरीके से उनकी देखभाल करने में सहायता करते हैं ताकि दावा की गई वे विशेषताएँ पर्याप्त समय तक बनी रहें।

क्रियाविधि - तैयार परिधानों पर लगे लेबलों तथा लंबाई-चौड़ाई के बारे में लगी छापों के 5-5 नमूने इकट्डे करें।

  • धुलाई, इस्तरी, भंडारण, इत्यादि के बारे में उनकी स्पष्टता, रेशों के प्रकारों, आमाप तथा देखभाल अनुदेशों के संदर्भ में परिधानों पर लगे लेबलों का विश्लेषण करें।
  • इसी प्रकार रेशे के प्रकारों, धागे तथा वस्त्र के विवरण तथा प्रयुक्त परिष्करण के बारे में छापों का भी विश्लेषण करें।


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