अध्याय 10 वित्तीय प्रबंधन एवं योजना

10.1 प्रस्तावना

(i) वित्तीय प्रबंधन का परिवार के संदर्भ में सामान्य अर्थ वित्त के प्रबंधन से है। परिवार को उपलब्ध सभी प्रकार की आय वित्त के अंतर्गत आती है जिनमें वेतन, मज़दूरी, किराया, ब्याज, लाभांश, बोनस, सेवानिवृत्ति लाभ तथा अन्य प्रकार की सभी आर्थिक प्राप्तियाँ शामिल हैं। इन सभी प्रकार की आय का उपयोग करने की योजना बनाना, नियंत्रण तथा मूल्यांकन वित्त प्रबंधन कहलाता है। इसका उद्देश्य परिवार को उपलब्ध स्रोतों से अधिकतम संतोष प्रदान करना है।

जीवन की गुणवत्ता जिसे वित्तीय संसाधनों के बदले प्राप्त किया जा सकता है, केवल इस बात पर निर्भर नहीं करती है कि कितनी आय उपलब्ध है, अपितु आय की नियमितता तथा स्थिरता पर यह महत्वपूर्ण रूप से निर्भर करती है। इसलिए, स्रोत के रूप में धन के प्रबंधन का कौशल सीखना महत्वपूर्ण है। यह अध्याय पारिवारिक आय के प्रकार, आय का प्रबंधन तथा पारिवारिक बजट बनाने के सम्मिलित चरणों से संबंधित है।

(ii) वित्तीय नियोजन वित्तीय प्रबंधन का एक घटक है। बजट शब्द का इस्तेमाल प्राय: वित्तीय प्रबंधन के नियोजन चरण के लिए किया जाता है। जब परिवारों द्वारा बजट बनाया जाता है तो वे यह सुनिश्चित करते हैं कि पारिवारिक आय का उपयोग उस तरीके से किया जाए जिससे परिवार के सदस्यों की वर्तमान सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके तथा परिवार के दीर्घकालिक लक्ष्यों का भी ध्यान रखा जा सके। इस प्रकार परिवार अपने संसाधनों का इष्टतम उपयोग करके अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर लेते हैं। इसके अतिरिक्त वित्तीय नियोजन गैर ज़रूरी मदों पर किए जाने वाले खर्च को कम करता है। इस प्रकार परिवार अपनी आय का एक भाग भावी उपयोग के लिए बचा लेते हैं। तथापि, यह तभी संभव है जब परिवार अपनी वित्तीय योजनाओं को मॉनीटर करता हो तथा समय-समय पर योजनाओं का मूल्यांकन करता हो। वित्तीय नियोजन की सफलता के लिए पारिवारिक सदस्यों की प्रतिबद्धता बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि इसी प्रतिबद्धता के फलस्वरूप हमें परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।

प्रबंधन से अभिप्राय है जो आप पाना चाहते हैं (लक्ष्य एवं उद्देश्य) उसे प्राप्त करने के लिए जो आपके पास है (संसाधन) उसका उपयोग करना। पारिवारिक संसाधन ऐसे संसाधन हैं जो समय विशेष में व्यक्ति अथवा परिवार को उपलब्ध होते हैं और जो उनके पारिवारिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करते हैं। पारिवारिक संसाधनों में मानव संसाधन जैसे ज्ञान, कौशल, स्वास्थ्य, समय और ऊर्जा सामग्री संसाधन जैसे आवास, धन, तथा निवेश तथा सामुदायिक संसाधन जैसे पुस्तकालय, पार्क, सामुदायिक केंद्र, अस्पताल आदि शामिल हैं। संसाधनों के अधिकतम उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए उनका उचित प्रबंधन ज़रूरी है।

सामाजिक इकाई होने के नाते परिवार एक उपभोग (खपत) इकाई है तथा इसका उद्देश्य इसके सदस्यों के हित के लिए परिवार के वित्त का प्रबंधन करना है। धन एक महत्वपूर्ण पारिवारिक संसाधन है। पर्याप्त धन के अभाव में परिवार एक सुखद और सुविधापूर्ण जीवन व्यतीत नहीं कर सकता है। मौजूदा आवश्यकताओं की पूर्ति तथा भावी लक्ष्यों को कारगर ढंग से प्राप्त करने के लिए धन प्रबंधन एक पांडित्यपूर्ण कौशल है। आइए, हम पारिवारिक आय के आशय को समझें।

10.2 पारिवारिक आय

पारिवारिक आय का तात्पर्य सभी प्रकार की आय तथा एक निश्चित अवधि में सभी पारिवारिक सदस्यों की सभी स्रोतों से प्राप्त आय के कुल योग से है। यह वार्षिक, मासिक, साप्ताहिक अथवा दैनिक आय हो सकती है। हालाँकि सरकारी उद्देश्यों के लिए इसे वित्त वर्ष की वार्षिक आय माना जाता है और यह वित्त वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होता है।

क्रियाकलाप 1

अपनी कक्षा में “संचार प्रौद्योगिकी - एक अभिशाप या एक वरदान विषय पर एक समूह चर्चा में भाग लें।

आय निम्नलिखित रूपों में हो सकती है -

  • मज़दूरी
  • वेतन
  • कारोबार से लाभ
  • कमीशन
  • संपत्तियों से आने वाला किराया
  • नकद ऋणों पर ब्याज
  • लाभांश
  • पेंशन
  • उपहार
  • रॉयल्टी (स्वामित्व)
  • बख्शीश एवं दान
  • बोनस
  • सब्सिडी, (आर्थिक सहायता), चैरिटी आदि।

पारिवारिक आय के प्रकार

पारिवारिक आय तीन प्रकार की होती है।

इससे पहले कि हम विभिन्न प्रकार की पारिवारिक आय के बारे में विस्तार से जानें, हमें समझना चाहिए कि धन क्या है और इसके क्या कार्य हैं।

दाम कराए काम अर्थात वह धन जिससे हम अपने काम करा सकें। धन के दो महत्वपूर्ण कार्य हैं -

  • विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करना तथा
  • मूल्य माप

इस प्रकार धन “ऐसी चीज़ है जो सामान्यतया वस्तुओं के बदले में स्वीकार्य होती है तथा जिसके संदर्भ में अन्य वस्तुओं का मूल्य निर्धारित किया जाता है।”

धन का महत्त्व

  • धन विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करता है तथा विनिमय में होने वाले खर्च को समाप्त करता है।
  • धन मूल्य का मानक अर्थात सामान्य मूल्य वर्ग के रूप में कार्य करता है अर्थात जिसके संदर्भ में अन्य वस्तुओं का मूल्य अभिव्यक्त किया जाता है।
  • यह आस्थगित अदायगियों के मानक के रूप में कार्य करता है जिससे बचत और निवेश को बढ़ावा मिलता है जो पूँजी निर्माण का आधार है तथा इसलिए यह बेहतर जीवन स्तर के लिए ज़रूरी है।
  • धन का संग्रह लंबे समय के लिए होता है जिससे उत्पादन में निवेश के लिए संचयन तथा परिवार के लिए बेहतर जीवन स्तर को बढ़ावा मिलता है।

क्रियाकलाप 2

अपने परिवार को प्रति माह उपलब्ध होने वाले धन आय के सभी स्रोतों की पहचान कीजिए।

(क) धन आय रुपयों तथा पैसे के रूप में क्रय शक्ति है जो एक निश्चित अवधि में पारिवारिक कोष में जाती है। यह परिवार को मज़दूरी, वेतन, बोनस, कमीशन, किराया, लाभांश, ब्याज, सेवानिवृत्ति आय, रॉयल्टियाँ और परिवार के किसी सदस्य को भत्ते के रूप में प्राप्त होती है। धन आय दैनिक जीवन के लिए वस्तुओं तथा आवश्यक सेवाओं में परिवर्तित (खर्च) होती है तथा उसका एक भाग अक्सर भविष्य में इस्तेमाल के लिए अथवा निवेश उद्देश्यों हेतु बचत के लिए किया जाता है।

विभिन्न परिवारों में धन आय की आवृत्ति और प्रवाह की प्रणाली अलग-अलग होती है। उदाहरण के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि मुख्य पेशा है। किसान की आय नियमित नहीं होती है किंतु जब वह अपनी फसल बेचता है तो वह धन अर्जित करता है। वर्ष में दो फसलरबी और खरीफ होती है। इसके विपरीत नौकरीपेशा व्यक्ति की आय नियमित होगी।

(ख) वास्तविक आय की परिभाषा अर्थशास्त्रियों द्वारा एक निश्चित अवधि के भीतर मानवीय ज़रूरतों एवं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपलब्ध वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह के रूप में की गई है।

इस परिभाषा में तीन महत्वपूर्ण बातें हैं, जो इस प्रकार हैं-

  • वास्तविक आय वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रवाह है, यह स्थिर नहीं होती।
  • इसमें ऐसी वस्तुएँ एवं सेवाएँ शामिल हैं जो धन से उपलब्ध हो भी सकती हैं या नहीं भी। उदाहरण के लिए अपने खेत के उत्पाद, घरेलू सेवाएँ।
  • इसमें समय सम्मिलित है - यह एक माह अथवा एक वर्ष हो सकता है।

वास्तविक आय दो प्रकार की होती है - प्रत्यक्ष आय तथा अप्रत्यक्ष आय।

1. प्रत्यक्ष आय - इसमें धन का उपयोग किए बिना परिवार के सदस्यों को उपलब्ध वस्तुएँ तथा सेवाएँ शामिल हैं। उदाहरण के लिए परिवार के सदस्यों, विशेषकर महिलाओं द्वारा प्रदान की गई सेवाएँ जैसे भोजन पकाना, कपड़े धुलना, सिलाई करना, घरेलू बागवानी आदि। एक घर जिसके लिए पूर्णतया भुगतान किया जाता है तथा सामुदायिक सेवाएँ जैसे उद्यान, सड़कें, पुस्तकालय भी प्रत्यक्ष आय के अंतर्गत आते हैं।

2. अप्रत्यक्ष आय - इसमें वे वस्तुएँ तथा सेवाएँ शामिल हैं जो विनिमय (सामान्यतया धन) के कुछ साधनों के उपरांत ही प्राप्त हो पाती हैं। उदाहरण के लिए अच्छी किस्म की सब्ज़ी खरीदने के लिए धन का इस्तेमाल क्योंकि इसके चयन में व्यक्ति की योग्यता एवं कौशल निहित होता है।

(ग) मानसिक आय वह संतोष है जो सेवाओं तथा माल के स्वामित्व एवं उपयोग के फलस्वरूप प्राप्त होता है। इसे वास्तविक आय से प्राप्त संतोष के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। मानसिक आय को रुपये या राशि में बता पाना कठिन है। यह गुप्त आय का एक रूप है। यह अगोचर एवं वस्तुपरक होती है तथा जीवन की गुणवत्ता के संदर्भ में बहुत आवश्यक है।

10.3 आय प्रबंधन

आय प्रबंधन को सभी प्रकार की आय के इस्तेमाल के नियोजन नियंत्रण तथा मूल्यांकन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसका उद्देश्य उपलब्ध स्रोत से पूर्ण संतुष्टि प्राप्त करना है।

आय समान होने के बावजूद किन्ही दो परिवारों की आवश्यकताएँ एवं इच्छाएँ समान नहीं होंगी। अतः प्रत्येक परिवार को अपने लक्ष्यों, ज़रूरतों और इच्छाओं को ध्यान में रखकर व्यय की योजना बनानी चाहिए। कारगर आय प्रबंधन के लिए यह आवश्यक है कि परिवार अपने सभी उपलब्ध स्रोतों को पहचाने तथा उनका विश्लेषण करे।

क्रियाकलाप 3

अपने परिवार की प्रत्यक्ष आय के विभिन्न स्रोतों का पता लगाइए।

10.4 बजट

धन के उपयोग के लिए बजट, नियोजन का एक आम तरीका है। बजट भावी व्यय की एक योजना है। यह प्रबंधकीय प्रक्रिया का प्रथम चरण है जैसा कि धन पर लागू होता है। इसकी सफलता निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है -

  • इसके यथार्थवादी एवं लचीले होने पर
  • जिस समूह के लिए यह तैयार की जाती है, उसके लिए उपयुक्त होने पर
  • नियंत्रण एवं मूल्यांकन के चरण की गुणवत्ता पर

पारिवारिक बजट एक माह अथवा वर्ष के लिए परिवार की आय एवं व्यय का ब्यौरा प्रस्तुत करता है। इसमें उस अवधि के दौरान आय के सभी स्रोतों तथा विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत व्यय की सभी मदों जैसे भोजन, वस्त्र, आवास, मनोरंजन, यात्रा, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा औषधि एवं बचत, का उल्लेख भी किया जाता है।

बजट निर्माण के चरण

बजट बनाने के मुख्यतया पाँच चरण हैं जो निम्नलिखित हैं -

(i) प्रस्तावित बजट योजना के दौरान परिवार के सदस्यों के लिए आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं की सूची तैयार करें। संबंधित वस्तुओं तथा सेवाओं को समूह में वर्गीकृत करें। निम्नलिखित समूह सहायक हो सकते हैं -

  • भोजन तथा संबंधित लागत
  • आवास
  • घरेलू कार्य - ईंधन, उपयोगी वस्तुएँ
  • शिक्षा
  • परिवहन
  • वस्त्र
  • आय कर
  • चिकित्सा
  • व्यक्तिगत भत्ते
  • विविध-मनोरंजन, घर की साज-सज्जा
  • भविष्य के लिए प्रावधान - बचत, सेवानिवृत्ति।

(ii) प्रत्येक वर्गीकरण एवं समग्र रूप से बजट का योग करते हुए वांछित मदों की लागत का पूर्व आकलन करके अनुमान लगाएँ। अनुमान लगाते समय सामान्य बाज़ार प्रवृत्तियों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि कीमतों में वृद्धि हो रही है, तो ऐसी वृद्धि को ध्यान में रखकर पर्याप्त गुंजाइश रखी जानी चाहिए।

(iii) कुल संभावित आय का अनुमान कीजिए। आय को दो शीर्षकों-सुनिश्चित एवं संभावित, के अंतर्गत रखते हुए तैयार करना सहायक है। बजट द्वारा सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सुनिश्चित आय द्वारा आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाए और ‘अच्छी किंतु आवश्यक नहीं’ मदों को संभावित आय से प्राप्त किया जा सकता है।

(iv) संभावित आय तथा व्यय के बीच संतुलन रखें। कभी-कभी व्यय आय से अधिक होता है। उसे संतुलित करने के दो तरीके हैं। एक आय में वृद्धि के द्वारा (उदाहरण के लिए, अतिरिक्त कार्य करके) अथवा व्यय में कटौती द्वारा (बाहर जाना कम करना अथवा उत्सवों पर व्यय कम करके)।

(v) यह सुनिश्चित करने के लिए योजनाओं की जाँच करें कि उनके सफल होने के लिए तर्कसंगत समय है। निम्नलिखित कारकों के मद्देनज़र योजनाओं की जाँच की जाती है-

  • परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति हो गई है।
  • आपातकाल के लिए बजट में प्रावधान होने चाहिए। आपातकालीन अवधि के लिए अलग से एक संयुक्त निधि रखी जानी चाहिए।
  • समाशोधन की सुनिश्चितता हो। समाशोधन, जैसे कि बिल या ऋण के देय होने पर उनका भुगतान कर देना।
  • राष्ट्रीय तथा विश्वव्यापी दशाओं पर विचार किया जाए। (उदाहरण के लिए वैश्विक आर्थिक मंदी)
  • परिवार के दीर्घकालिक लक्ष्यों की पहचान की जाए।

पारिवारिक बजट की योजना बनाने के लाभ

  • नियोजन से परिवार अपनी आय के इस्तेमाल की समीक्षा कर सकता है।
  • विभिन्न श्रेणियों के लिए आवंटित राशि का कुल आय के संदर्भ में अध्ययन किया जा सकता है।
  • बजट से परिवार उन लक्ष्यों को पहले प्राप्त करने के लिए अपनी आय का इस्तेमाल कर सकते हैं जिन्हें वे अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं। बार-बार बिना योजना के खर्च करने से धन की बर्बादी होती है।
  • परिवार के सदस्यों के विचलित होने की संभावना कम होती है, क्योंकि वे तर्कसंगत निर्णय ले सकते हैं जो परिवार के दीर्घकालीन लक्ष्यों को दर्शाते हैं।

10.5 धन प्रबंधन में नियंत्रण

नियोजन के उपरांत धन प्रबंधन में नियंत्रण दूसरा कदम है। सामान्यतया वित्त प्रबंधन में नियंत्रण दो प्रकार का होता है - यह देखने के लिए जाँच करना कि योजना कितने अच्छे ढंग से आगे बढ़ रही है तथा जहाँ कहीं आवश्यक हो, उसका समायोजन करना।

जाँच करना महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें यह पता चलता है कि योजना कैसे आगे बढ़ रही है तथा समायोजन की कहाँ आवश्यकता है। जाँच दो तरह की हो सकती है -

(i) मानसिक एवं यांत्रिकीय जाँच - मानसिक जाँच प्राय: आवंटनों को इकाइयों में विभाजित करके की जाती है जो वास्तविक व्यय से संबंधित हो सकती है। उदाहरण के लिए किसी विद्यार्थी को 1000 रुपए की राशि बहुत बड़ी लग सकती है, किंतु जब वह महसूस करता है कि उसे एक बार में एक जोड़ी जूते, उत्सव के लिए एक नयी पोशाक तथा कुछ पुस्तकें खरीदनी हैं, तो यह साफ़ है कि उसे उपलब्ध कुल राशि के आधार पर बड़ी सावधानी से चयन करना चाहिए और कीमत को भी ध्यान में रखना चाहिए। इस प्रकार, मानसिक रूप से सोच-विचार करके व्यक्ति उन मदों के बारे में जान सकता है जिसके लिए एक विशेष धन राशि की आवश्यकता पड़ेगी।

यांत्रिकीय जाँच ऐसी जाँच है जिसमें किसी विशेष मद के लिए इस्तेमाल की जाने वाली नकद धनराशि को अलग से निकाल लेते हैं। उदाहरण के लिए, कई गृहिणियों ने एक अलग पर्स बनाया होता है जिसमें माह में भोजन पर खर्च की जाने वाली राशि रखी जाती है। भोजन संबंधी सभी व्यय इस लिफ़ाफ़े की राशि से किए जाते हैं। धन के अचानक समाप्त हो जाने से पता चलता है कि धन कितनी तेज़ी से खर्च हो रहा है।

(ii) अभिलेख एवं खाते - अभिलेखों एवं खातों में व्यय किए जाने के उपरांत धन का वितरण दर्शाया जाता है। ऐसे अभिलेख आकस्मिक हो सकते हैं जैसे प्रतिदिन का लिखित खाता अथवा प्राप्त बिलों को रखना अथवा वे औपचारिक एवं विस्तृत खाते भी हो सकते हैं। परिवार के लिए अभिलेख का उद्देश्य धन के वितरण को दर्शाना है जिसे व्यय किया गया है तथा विशेष समूह के लिए आवंटित मदों की राशि के साथ खर्च की गई राशि की तुलना करना है।

क्रियाकलाप 4

आपका परिवार जिन तरीकों से व्यय के खातों को रखता है उन तरीकों का पता लगाइए

  • मासिक व्यय की तुलना खर्च योजना से की जा सकती है। इससे ज्ञात होता है कि अतिरिक्त व्यय से बचने के लिए समायोजन कहाँ किए जाने चाहिए।
  • इससे उन श्रेणियों अथवा उप श्रेणियों की पहचान करने में मदद मिलती है जहाँ व्यय बहुत ज्यादा है अथवा बहुत ही कम है इससे हम बेहतर भावी बजट तैयार कर सकते हैं।
  • रिकॉर्ड रखने/बनाने के कुछ तरीकों के लिए बिल तथा रसीद रखने की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार अदायगी (भुगतान) का प्रमाण हमारे पास होता है उत्पाद अथवा सेवा खराब होने पर उसके विषय में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।

एकल पत्रक विधि रिकॉर्ड रखने की एक सरल लचीली विधि है। व्यय के रिकॉर्ड एकल पत्रक में रखे जाते हैं। (देखें चित्र 1)

योजना को सही दिशा में रखने के लिए योजना का समायोजन करना बहुत महत्वपूर्ण है। परिवार के बाहरी कारकों जैसे - आपातकाल, परिवार का बिना योजना के खरीदारी अथवा अपर्याप्त जाँच प्रक्रिया जिससे योजना तथा इसके निष्पादन का सही अंतर पता न चल सके, के कारण यदि मूल योजना खराब हो तो समायोजन की आवश्यकता होती है।

धन प्रबंधन में मूल्यांकन अंतिम कदम है। व्ययों से प्राप्त संतुष्टि बजट की सफलता को निर्धारित करने के महत्वपूर्ण साधनों में से एक है। विशिष्ट लक्ष्यों के मद्देनज़र मूल्यांकन किया जाता है, जैसे - व्यय किए गए धन का उचित मूल्य प्राप्त करना, जब बिल देय हों तो उनको चुकता करने की सामर्थ्य, भविष्य के लिए व्यवस्था तथा परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार।

व्यय के रिकॉर्ड (अभिलेख) एकल, दोहरे अथवा बहुपत्रकों में रखे जा सकते हैं। यह विधि सरल एवं लचीली है। यह पत्रक दरवाजे अथवा कैबिनेट के पीछे लगाए जा सकते हैं जिसके साथ एक पेंसिल भी लगाना सुविधाजनक होता है। यद्यपि दोहरी एवं बहुप्रक विधियाँ एकल पत्रक की तुलना में अधिक उपयुक्त हो सकती हैं, फिर भी एकल पत्रक अच्छी तरह निर्मित किया जाए इसमें आवश्यक आँकड़े शामिल किए जा सकते हैं। निम्नलिखित उदाहरण पर विचार कीजिए-

अक्तूबर 2008 के लिए एकल पत्रक विधि

श्रेणी आवंटित राशि व्यय की गई राशि योग
व्यय की गई राशि
1. भोजन
खाद्य वस्तुएँ
दूध
फल/सब्ज़ी
मांस/मुर्गी
खाना(रेस्तरां आदि में)
2. आवास
किराया
मरम्मत
ॠण
3. वस्त्र
बच्चों के कपड़े
वयस्कों के कपड़े
स्कूल की वर्दी (यूनिफॉर्म)
4. शिक्षा
फ़ीस
कापियाँ
पुस्तकें
5. चिकित्सा
6. कोई अन्य

चित्र 1 - एकल पत्रक विधि

पारिवरिक आय तथा योजना, नियंत्रण तथा मूल्यांकन द्वारा इसके प्रबंधन के बारे में जानने के बाद हमें इस बात का पूरा अंदाज़ा है कि अपने संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग करने के लिए हमें क्या करना चाहिए। अब अगला चरण होगा बचत और निवेश के बारे में सीखना ताकि हम भविष्य में उनका बेहतर उपयोग कर सकें ।

10.6 बचत

बचत का तात्पर्य है भविष्य में इस्तेमाल अथवा अधिक उत्पादन के लिए अपने धन अथवा अन्य संसाधन के एक भाग को अलग रखना। परिवार की भावी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बचत महत्वपूर्ण है। किसी अर्थव्यवस्था के अस्तित्व एवं विकास के लिए भी बचत महत्वपूर्ण है क्योंकि बचत में पूँजी निर्माण एवं संचयन होता है। ऐसा तब होता है जब कारोबार शुरू करके अथवा बैंकों और वित्तीय संस्थाओं में धन जमा करके बचत का उपयोग उत्पादक रूप में किया जाता है, जिसे सार्वजनिक बचत के लिए एकत्रित किया जाता है तथा उत्पादन के प्रयोजनार्थ उसका इस्तेमाल किया जाता है।

बचत, परिवार की बचत करने की क्षमता तथा बचत करने की इच्छा पर निर्भर करती है। बचत करने की योग्यता प्रति व्यक्ति आय पर निर्भर करती है। उच्च आय वाले परिवारों में अपनी मूलभूत बचत की ज़्यादा संभावना होती है। कम आय वाले परिवार अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के उपरांत कम बचत कर पाते हैं। कम आय वाले परिवार की बचत करने की इच्छा, परिवार के दीर्घकालीन लक्ष्यों पर तथा भविष्य का ध्यान रखते हुए वर्तमान में कुछ विलासिताओं का त्याग कैसे कर सकते हैं, इस बात पर निर्भर करती है।

धन बचाना आसान नहीं है। इसमें परिवार के सदस्यों की ओर से अनुशासन, नियोजन, सहयोग तथा परिश्रम की आवश्यकता होती है। किंतु परिवार की सुरक्षा एवं खुशी के लिए धन की बचत बहुत ज़रूरी है। बचत के लिए बचत करना निरर्थक है। बचत तभी सार्थक है जब इसका लक्ष्य परिवार के सभी सदस्यों द्वारा सुनियोजित एवं समझा जाए तथा धन के भावी प्रयोग के लिए बुद्धिमता पूर्ण ढंग से निवेश किया जाए।

10.7 निवेश

निवेश का तात्पर्य है अधिक उत्पादन के लिए धन का उपयोग करना। यदि बचत राशि को साड़ियों के नीचे अथवा घड़े में छिपा कर रखा जाए तब इसका कोई फायदा निवेश में नहीं होगा। बचत को आर्थिक मायने में इस तरह उपयोग में लाना चाहिए जिसके फलस्वरूप निवेश लाभकारी हो। निवेश दो प्रकार की परिसंपत्तियों के रूप में हो सकता है, भौतिक परिसंपत्ति तथा वित्तीय परिसंपत्ति।

बचत को यदि बैंक खातों, डाक घरों अथवा वित्तीय साख समिति, संस्थाओं, शेयरों तथा प्रतिभूतियों में बीमा पॉलिसियों आदि में लगाया जाए तो इसके फलस्वरूप वित्तीय परिसंपत्तियों का निर्माण होगा। वे परिवार को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती हैं तथा आर्थिक संदर्भ में उत्पादक होती हैं। भौतिक परिसंपत्तियों में बचत का आशय भूमि, संपत्ति, घर, सोना, घर-गृहस्थी के सामान आदि के क्रय के लिए बचत का इस्तेमाल करना है। इस प्रकार का निवेश आर्थिक मायने में उत्पादक नहीं होता है तथा इसके फलस्वरूप पूँजी निर्माण नहीं होता है। तथापि, इसका प्राय: दीर्घकालिक लाभ होता है।

क्रियाकलाप 5

बचत एवं निवेश के विभिन्न साधनों का पता लगाइए जिनका इस्तेमाल आपका परिवार कर रहा है।

10.8 विवेकपूर्ण निवेशों में अंतर्निहित सिद्धांत

परिवार बचत का संचयन करते-करते पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं। इन बचतों का निवेश बुद्धिमत्तापूर्वक किया जाना चाहिए ताकि परिवार को इसकी अच्छी वापसी प्राप्त हो सके तथा यह सुनिश्चित हो सके कि धन सुरक्षित है और आवश्यकता पड़ने पर वह उनको उपलब्ध हो सकेगा। आइए अब हम विवेकपूर्ण निवेश के प्रमुख सिद्धांतों पर चर्चा करें।

(i) मूल धन राशि की सुरक्षा - मूल धन पर यदि लाभांश या ब्याज अर्जित करना है तो इसका सुरक्षित होना ज़रूरी है। सुरक्षित निवेश के लिए मूलधन सबसे महत्वपूर्ण कारक है। निम्नलिखित के द्वारा धन की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।

  • राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र, लोक भविष्य निधि (PPF), किसान विकास पत्र, बैंकों में सावधि जमा जैसे सरकारी एवं निजी दोनों क्षेत्रों में प्रतिभूतियों में धन लगाकर
  • विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों की कंपनियों में निवेश करके
  • विभिन्न कंपनियों में शेयरों एवं बंध पत्रों में धन का निवेश करके
  • प्रतिभूतियों के मुद्दों की बाज़ार-प्रवृत्तियों का अध्ययन करके
  • क्रय की गई प्रतिभूतियों की किस्म में अंतर करना - कृषि भूमि, भू-संपदा (रियल स्टेट) स्टॉक्स, बंधपत्र, सावधि जमा आदि
  • व्यवसाय चक्र के मौजूदा चरण को समझना।

(ii) प्रतिलाभ की तर्कसंगत दर - सामान्य तौर पर किसी निवेश पर प्रतिलाभ की दर जितनी अधिक होगी जोखिम उतना अधिक होगा, अर्थात मूलधन की सुरक्षा एवं उस पर मिलने वाले लाभ की दर विलोमानुपाती रूप से संबंधित है। कुछ लोगों के विचार से, विशेषकर उन लोगों के विचार से जो आय के प्रमुख स्रोत के रूप में निवेशों पर निर्भर हैं उच्च एवं अस्थिर आय की अपेक्षा आय की नियमितता ज़्यादा महत्त्व रखती है। इसका निर्धारण प्रतिभूतियों के चयन द्वारा किया जाता है। अतः धन को निवेश करने से पहले व्यक्ति को विभिन्न योजनाओं एवं विकल्पों के अंतर्गत ब्याज की दर तथा संबंधित खतरे की तुलना करनी चाहिए।

(iii) तरलता - यह मूल्य के साथ समझौता किए बिना प्रतिभूतियों को नकदी में परिवर्तित करने की योग्यता है। कोई निवेश जितना अधिक तरल होगा उसकी कीमत उतनी अधिक होगी, अथवा दूसरे शब्दों में, निवेशक को मिलने वाली आय उतनी कम होगी। इसलिए आय तथा तरलता में संतुलन होना ही चाहिए।

(iv) वैश्विक स्थितियों के प्रभाव की मान्यता - कारोबार प्रवृत्ति में परिवर्तन अपेक्षित आवश्यक सुरक्षा, इसके प्रदान करने की सुगमता तथा इसे प्रदान करने के लिए चुने गए तरीके दोनों को प्रभावित करेगा। दीर्घकालीन कारोबार प्रवृत्तियों पर विचार करके परिवार को संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर अपनी बचत के प्रभाव को स्वीकार करना चाहिए। चक्र में विभिन्न चरणों पर कारोबार उद्यम में निवेश करने की इच्छा अथवा अनिच्छा चक्र की चरम सीमा को कम करने में प्रभावी होगी।

(v) सुलभ पहुँच तथा सुविधा - पारिवारिक निधि के लिए निवेश का चयन करते समय व्यक्ति को इसकी सफलता के लिए अपेक्षित जानकारी पर विचार करना चाहिए। परिवार ऐसे निवेश का चयन कर सकता है जिसमें उसे हानि हो सकती है क्योंकि वे सुरक्षा के प्रबंधन अथवा अधिप्राप्त संपत्ति में निहित समस्या का पता पहले नहों लगा पाए।

(vi) आवश्यक वस्तुओं में निवेश - जिस तारीख को निवेश परिपक्व होता है वह तिथि उस परिवार के लिए महत्वपूर्ण होती है। इससे ज्ञात भावी ज़रूरतों के लिए निधियाँ उपलब्ध रखने की योजना बनाई जाती है। अतएव, धन का निवेश करते समय परिवार को लंबी अवधि वाली प्रतिभूतियाँ खरीदनी चाहिए ताकि वे सुविचारित आवश्यकता अथवा आवश्यकताओं के समय परिपक्व हो सकें उदाहरण के लिए, बच्चे की उच्च शिक्षा के लिए।

(vii) कर कुशलता - निवेश उन योजनाओं में किया जाना चाहिए जिसके परिणामस्वरूप कर में बचत होती है। करों की बचत के लिए आयकर अधिनियम में उपलब्ध अनेक उपबंधों का इस्तेमाल किया जा सकता है। बीमा पॉलिसियों, कर्मचारी भविष्य निधि, पीपीएफ आदि में निवेश विशिष्ट सीमा सहित कर में छूट का प्रावधान देता है।

(viii) निवेश उपरांत सेवा - निवेश का चयन करते समय ग्राहक देखभाल अथवा ग्राहक सेवा निर्णायक कारक होना चाहिए। अच्छी ग्राहक सेवा में प्रतिभूतियों का आसान नकदीकरण, अच्छा संचार नेटवर्क, ब्याज अथवा लाभांश वारंटों का समय से प्रेषण, निवेश अवधि के पूरा होने के उपरांत देय राशि का समय पर वितरण, पॉलिसियों, ब्याज दर आदि में परिवर्तनों के बारे में ग्राहक को अवगत कराते रहना शामिल है। ग्राहक हितैषी कंपनी ज़रूरत पड़ने पर निवेशक को आवश्यक समर्थन एवं संरक्षण प्रदान करती है।

(ix) समयावधि - लॉक इन अवधि (वह अवधि जिसमें धन को एक निश्चित अवधि के बाद ही निकाला जा सकता है) एक महत्वपूर्ण पहलू है जिस पर किसी निवेश पर निर्णय लेने के पहले विचार किया जाना चाहिए। निवेश की अवधि जितनी लंबी होगी, वापसी की राशि उतनी अधिक होगी। उदाहरण के लिए अधिकतम सावधि योजनाओं में अल्पावधि जमा की तुलना में दीर्घकालीन जमाओं के लिए ब्याज की दर अधिक होती है। इस प्रकार निवेश को अधिक समय तक प्रतीक्षा अवधि वाली उच्च आय अथवा अपने परिवार की आवश्यकता एवं अपेक्षा के आधार पर अल्प ‘लॉक इन’ के लिए सापेक्षतया कम आय के मध्य चयन करना चाहिए।

(x) क्षमता - व्यक्ति को अपनी क्षमता से अधिक निवेश नहीं करना चाहिए ताकि निवेश अनावश्यक कठिनाइयों से मुक्त रह सके। वर्तमान आवश्यकताओं का भावी आवश्यकताओं एवं सुरक्षा के साथ संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

10.9 बचत एवं निवेश के अवसर

भारतीय ग्राहक को उपलब्ध बचत एवं निवेश विकल्पों की सूची नीचे दी गई है -

  • डाक घर
  • बैंक
  • यूनिट ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
  • राष्ट्रीय बचत योजना
  • राष्ट्रीय बचत पत्र
  • शेयर एवं ऋण पत्र
  • बंधपत्र
  • म्युचुअल निधि
  • भविष्य निधि
  • लोक भविष्य निधि
  • चिट फ़ंड
  • जीवन बीमा एवं चिकित्सा बीमा
  • पेंशन योजना
  • स्वर्ण, घर और ज़मीन

क्रियाकलाप 6

अपने पड़ोस के बैंक में जाइए तथा ग्राहकों को उपलब्ध विभिन्न सुविधाओं, निवेश तथा बचत विकल्पों के बारे में पूछ्छिए।

10.10 साख ( क्रेडिट )

इस तथ्य के बावजूद कि परिवार धन की बचत एवं उसका निवेश करते हैं, कभी-कभी उन्हें अपनी आवश्यकताओं एवं दायित्वों के निर्वहन के लिए क्रेडिट (साख, उधार) का प्रयोग करना पड़ता है। अर्थात् परिवार माल तथा सेवाएँ प्राप्त करने के लिए क्रेडिट का इस्तेमाल करते हैं जिसकी आरंभिक कीमत तुरंत दे पाना मुश्किल होता है। “क्रेडिट” शब्द लैटिन भाषा के शब्द “क्रेडो’ से बना है जिसका अर्थ है - मैं विश्वास करता हूँ। क्रेडिट का आशय वर्तमान में धन तथा माल अथवा सेवा प्राप्त करना और भविष्य में उनके लिए भुगतान करना है। वास्तव में यह एक स्थगित भुगतान की प्रक्रिया है, इसका एक विशेषाधिकार यह है कि इसके लिए हमें कभी-कभी काफी उच्च दर पर भुगतान करना पड़ता है। किसी निश्चित समय पर क्रेडिट का इस्तेमाल क्रय शक्ति में वृद्धि करता है तथा इस प्रकार उपलब्ध नकदी की अपेक्षा अधिक माल और सेवाओं के प्रावधान को संभव बनाता है। परिवारों को क्रेडिट के स्वभाव एवं प्रचालन को समझना चाहिए क्योंकि उधार ली गई राशि तथा इसके इस्तेमाल के लिए ब्याज का पुनर्भुगतान अंततः करना ही होगा।

क्रेडिट की आवश्यकता

परिवार अपनी आवश्यकताओं अथवा दायित्वों के निर्वहन के लिए क्रेडिट का उपयोग करते हैं। ज़रूरत वास्तविक अथवा काल्पनिक हो सकती है। यदि क्रय करने के पहले वस्तु की आरंभिक लागत इतनी अधिक हो कि बचत न की जा सके, तो परिवार वस्तु को तत्काल लेने के लिए रुपये उधार लेते हैं, जैसे - ज़मीन के लिए। माल की लागत लंबे समय के लिए होती है तथा परिवार को भुगतान की अवधि के दौरान माल का उपयोग करने का लाभ मिल सकता है। उधार लेने का एक अन्य कारण परिवार के किसी सदस्य की बीमारी या आपात संकट से परिवार को निपटना होता है। परिवार बच्चों के विवाह अथवा सदस्य के निधन के दौरान धार्मिक रस्मों-रिवाजों का निष्पादन करने जैसी बाध्यताओं को पूरा करने के लिए भी ॠण लेते हैं। एक स्वसमर्थ अथवा आत्मनिर्भर परिवार संकटकाल में हमेशा क्रेडिट का इस्तेमाल कर सकता है तथा ऐसा वे विश्वास के साथ करते हैं।

कोई सेठ ऋण तभी देता है जब उसे विश्वास हो जाता है कि उधार लेने वाला उधार लिए हुए ऋण को वापस कर देगा। उधार देने वाला कोई बैंक अथवा वित्तीय संस्था हो सकती है। व्यक्तियों तथा परिवारों को क्रेडिट देने का उनका निर्णय $4 \mathrm{C}$ द्वारा नियंत्रित होता है जिनका उल्लेख नीचे किया जा रहा है-

क्रेडिट के 4C

चरित्र (Character) का आशय सहमति के अनुसार ऋण को अदा करने की इच्छा तथा निर्धारण से है, भले ही इसकी कीमत ज़्यादा हो तथा उधार लेने वाले के पूर्वानुमान की अपेक्षा असुविधाजनक हो।

क्षमता (Capacity) का आशय उन दायित्वों को पूरा करने की योग्यता है जब इनका समय आ गया हो। सामान्यतया, क्षमता आय पर निर्भर करती है। यह समझना ज़रूरी है कि ऋण को अदा करने के लिए परिवार की क्षमता कुल आय पर उतना निर्भर नहीं करती जितना कि आवश्यक व्यय के अतिरिक्त उपलब्ध गुंजाइश पर। ऋण को अदा करने के लिए परिवार की क्षमता का निर्धारण परिवार द्वारा प्राप्त आय तथा व्यय के बीच अंतर द्वारा किया जाता है।

पूँजी (Capital) का आशय निवल संपत्ति से है। परिवार की पूँजी का निर्धारण जो आपका अपना है और जो देनदारी है इन दोनों के बीच के अंतर द्वारा किया जाता है। इस पूँजी का अस्तित्व उधार देने वाले के लिए सुरक्षा की गुंजाइश प्रदान करता है। क्योंकि यदि परिवार की आय ॠण देने के लिए पर्याप्त नहीं है तब यह अपनी निवेश की गई पूँजी ले सकता है।

संपार्श्विक ( Collateral) में पूँजी की विशिष्ट इकाइयाँ शामिल हैं जो दिए गए ऋण के लिए सुरक्षा के रूप में गिरवी रखी जाती हैं। सामान्यतया ये यूनिटें इस शर्त पर उधार देने वाले के पास रखी जाती हैं कि यदि कर्जदार शर्त के अनुरूप ॠण की अदायगी नहीं कर पाता है तो साहूकार गिरवी रखे गए संपार्श्विक पूँजी की बिक्री से स्वयं प्रतिपूर्ति कर सकता है।

वाणिज्यिक बैंक, सहकारी बैंक तथा कृषि बैंक, क्रेडिट संघ आदि क्रेडिट (ऋण) लेने के मुख्य स्रोत हैं। कोई भी व्यक्ति स्व-सहायता समूहों, जिसका वह सदस्य है, से भी क्रेडिट ले सकता है। इस स्व सहायता समूह के सदस्य प्रतिमाह कुछ धन देते हैं तथा एक संग्रह निधि का निर्माण करते हैं। इससे ज़रूरतमंद सदस्य को उसकी जरूरत तथा पुनर्भुगतान क्षमता के आधार पर क्रेडिट दिया जाता है। इन समूहों के सदस्य एक दूसरे को जानते हैं तथा इसलिए किसी समर्थक (संपार्श्विक) की ज़रूरत नहीं पड़ती तथा ब्याज दर भी मामूली होती है।

क्रेडिट कार्ड का उपयोग करने से पहले परिवार को माल अथवा सेवा की प्राप्ति से संतोष पर ही विचार नहीं करना चाहिए, अपितु ॠण के पुनर्भुगतान द्वारा पारिवारिक बजट में जो भावी समायोजन करने पड़ेंगे उन पर भी विचार किया जाना चाहिए। क्रेडिट के प्रबंधन में यह निर्धारण करना शामिल है कि क्रेडिट का इस्तेमाल कब किया जाए तथा इसका प्रयोग कब सीमा से ज्यादा हो गया है। क्रेडिट एक उपयोगी संसाधन है अगर इसकी संभाव्यता एवं लागत को समझते हुए इस पर नियंत्रण रखा जाए।

यदि बेतरतीब ढंग से इसका इस्तेमाल किया जाता है तब क्रेडिट परिवार के लिए मुसीबत बन सकता है। क्रेडिट के प्रयोग से बचना तथा न्यूनतम कीमत पर क्रेडिट लेना ज्यादातर परिवारों का प्रथम लक्ष्य होना चाहिए।

आइए, इस समझ के साथ हम इस अध्याय को समाप्त करें कि अध्याय में उल्लिखित कुछ उपायों को अपना कर धन और अन्य वित्तीय संसाधनों को कई गुना बढ़ाया जा सकता है तथा इसका अधिकतम उपयोग किया जा सकता है। परिवार के वयस्क सदस्यों के नाते ज्यादातर लोगों को कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है। दैनिक जीवन का ऐसा ही एक क्षेत्र है घर के कपड़ों एवं वस्त्रों की देखभाल करना। वास्तव में कोई भी व्यक्ति बचपन से ही अपने कपड़ों की देखभाल करना सीख सकता है। आइए, अगले अध्याय में इस बारे में जानकारी हासिल करें।

मुख्य शब्द

वित्तीय प्रबंधन, वित्तीय नियोजन, धन आय, वास्तविक आय, मानसिक आय, पारिवारिक बजट, बचत, निवेश क्रेडिट (साख)

अंत में कुछ और अभ्यास

1. बताइए कि निम्नलिखित कथन “सत्य” हैं अथवा “असत्य”

(i) बजट धन प्रबंधन के अंतर्गत प्रथम चरण है। (सत्य/असत्य) ___________

(ii) धन वस्तुओं के आदान-प्रदान के माध्यम के रूप में कार्य करता है। (सत्य/असत्य) ___________

(iii) कारोबार तथा उपहार से प्राप्त लाभ आय के रूप हैं। (सत्य/असत्य) ___________

(iv) व्यक्ति को पहले लागत का आकलन करना चाहिए तत्पश्चात बजट बनाते समय आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं की सूची बनानी चाहिए। (सत्य/असत्य) ___________

(v) आर्थिक संदर्भ में भौतिक परिसंपत्तियों में बचतें उत्पादक होती हैं।(सत्य/असत्य) ___________

(vi) कारोबार चक्र में प्रवृत्ति, सुरक्षा के सिद्धांत के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण विचार है। (सत्य / असत्य) ___________

(vii) किसी निवेश पर विचार करने एवं निर्णय लेते समय समयावधि का ध्यान नहीं रखा जाना चाहिए। (सत्य/असत्य) ___________

(viii) क्रेडिट के चार सी चरित्र, क्षमता, पूँजी एवं संपार्श्वक हैं। (सत्य/असत्य) ___________

(ix) उद्यम की प्रकृति महत्वपूर्ण सुरक्षा विचार नहीं है। (सत्य/असत्य) ___________

अंत में कुछ और प्रश्न

(i) ‘वित्त प्रबंधन’ से आप क्या समझते हैं?

(ii) विभिन्न प्रकार की आय पर चर्चा करें।

(iii) बजट बनाने में सम्मिलित चरणों की चर्चा करें।

(iv) वे कौन से नियंत्रण हैं जिसका उपयोग धन प्रबंधन में किया जा सकता है?

(v) विवेकपूर्ण निवेशों के अंतर्निहित सिद्धांतों पर चर्चा करें।

प्रयोग 16

वित्तीय प्रबंधन एवं योजना

आपके विद्यालय में आयोजित किसी उत्सव के लिए एक बजट की योजना बनाइए। प्रत्येक शीर्षक के अंतर्गत एक उदाहरण दिया गया है।

विद्यार्थियों की संख्या - 30
अध्यापकों की संख्या - 5



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