अध्याय 09 हमारे परिधान

9.1 वस्त्रों के कार्य और उनका चयन

आपने जो कपड़े आज पहने हैं उन पर ध्यान दें, और यह सोचकर बताएँ कि आज आपने उन्हें क्यों पहना है? हो सकता है कि मौसम के कारण आपने ये कपड़े पहनने का निश्चय किया हो या स्कूल के किसी विशेष क्रियाकलाप के कारण आपको ये कपड़े पहनने पड़े या कोई समारोह हो सकता है जिसमें आप अपने परिवार या मित्रों के साथ भाग लेने वाले हैं या कोई खास कारण नहीं भी हो सकता है।

हम सब कपड़े पहनते हैं और हमारे पहनावे विभिन्न प्रकार के होते हैं। बहुधा हम अपने कपड़ों के बारे निश्चित रहते हैं। आइए हम समझने का प्रयास करें कि हम उन कपड़ों का चयन क्यों करते हैं जिन्हें हम पहनते हैं। साथ-ही-साथ अपने कपड़ों के चयन के लिए दूसरे लोगों के कारणों के विषय में भी जानकारी प्राप्त करें। यह जानकारी प्राप्त करने का भी प्रयास करें कि दूसरे लोग किन कारणों के आधार पर अपने कपड़ों का चयन करते हैं।

शालीनता ( मर्यादा )

कपड़े पहनने का संभवतः सर्वाधिक स्पष्ट कारण यह है कि हमारे समाज में प्रत्येक व्यक्ति के लिए कपड़े पहनना अनिवार्य है। हम मर्यादावश भी कपड़े पहनते हैं। आप शायद जानते हैं कि छोटे बच्चे बिना कपड़े पहने भी इधर-उधर घूमते हैं और उन्हें शर्म महसूस नहीं होती है। अपने शरीर को ढँक कर रखने की आवश्यकता के बारे में उन्हें सिखाना पड़ता है।

मर्यादा संबंधी धारणाएँ उस समाज द्वारा बनाई जाती हैं, जिसमें हम रहते हैं। जो एक समाज में शालीनता समझी जाती है संभवतः वह दूसरे समाज में मर्यादा नहीं समझी जाती हो। उदाहरण के लिए कुछ समुदायों में महिलाओं का सिर न ढकना अमर्यादा माना जाता है जबकि अन्य समुदायों में महिलाओं का अपनी टाँगे न ढँकना अश्लीलता माना जाता है।

सुरक्षा

हम पर्यावरण से अपनी सुरक्षा के लिए कपड़े पहनते हैं- मौसम की कठोर स्थितियों, धूल, मिट्टी तथा प्रदूषण से बचने के लिए पहनते हैं। हम विभिन्न मौसमों के अनुसार अपने कपड़ों में बदलाव लाते हैं। गर्मी के महीनों में हम हल्के सूती कपड़े पहनते हैं और चिलचिलाती धूप से अपनी सुरक्षा करने के लिए सिर ढकते हैं, जबकि सर्दी के मौसम में अपने बचाव के लिए कई ऊनी कपड़ों से स्वयं को ढँककर रखते हैं।

कपड़े हमें शारीरिक हानि से भी बचा सकते हैं। अग्निशमन कर्मी आग, धुएँ, तथा पानी से सुरक्षा के लिए विशेष प्रकार की पोशाक पहनते हैं, बहुत से खेलों जैसे कि फुटबॉल, हॉकी और क्रिकेट के लिए ऐसी पोशाकों की आवश्यकता होती है जो कि खिलाड़ियों की सुरक्षा के लिए विशेष रूप से तैयार किया जाता है। आपने आर्म गार्ड, लेग गार्ड्स, रिस्ट बैंड आदि देखे होंगे जिन्हें खिलाड़ी सामान्य वेशभूषा के साथ-साथ विशेष सुरक्षा के लिए पहनते हैं।

क्रियाकलाप 1

क्या आप ऐसे कपड़ों के बारे में बता सकते हैं जिनकी आवश्यकता बारिश के मौसम में होती है? इस मौसम में किस प्रकार के वस्त्र, पोशाक और सहायक वस्तुओं की आवश्यकता होगी? एक सूची बनाएँ और मित्रों के साथ चर्चा करें।

सामाजिक स्तर और प्रतिष्ठा

कपड़े प्रतिष्ठा के प्रतीक भी हो सकते हैं। यह सही है कि आप व्यक्तियों के पहनावे से लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का पता लगा सकते हैं। आपने कुछ ऐतिहासिक फ़िल्मों में देखा होगा कि राजा और दरबारियों के कपड़े आम जनता के कपड़ों से बिल्कुल भिन्न होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की पहचान के संदर्भ में सामाजिक स्थिति और प्रतिष्ठा की भावना और पहनावे का तरीका शामिल है जिसके द्वारा व्यक्ति के स्तर और प्रतिष्ठा का पता लगाया जा सकता है। भारत में त्योहारों और महत्वपूर्ण पारिवारिक उत्सवों में लोगों द्वारा पहने गए कपड़े उनकी सामाजिक स्थिति को परिलक्षित करते हैं।

तथापि, जैसे-जैसे उचित कीमतों पर अधिकाधिक फ़ैशनेबुल और आकर्षक कपड़े उपलब्ध हो रहे हैं, आज ज़्यादा से ज़्यादा युवा उन्हें खरीद सकते हैं। इस प्रकार से एक ही प्रकार के कपड़े (टी-शर्ट, जीन्स, सलवार-कुर्ता) सभी आयु और आर्थिक स्तरों के लोगों के लिए उपलब्ध हो जाते हैं, ये भी सामाजिक वर्गों को समान धरातल पर लाने का कार्य करते हैं, जो प्रजातांत्रिक समाज में सामाजिक समानता की दिशा में एक कदम है।

शृंगार

आप कपड़े क्यों पहनते हैं, इसलिए कि आप आकर्षक दिखाई दे सकें? जी हाँ, हम अच्छे कपड़े अपनी उपस्थिति को बढ़ाने के लिए पहनते हैं। शरीर को सजाना-संवारना और शृंगार करना पुरुषों और महिलाओं सभी की चाहत होती है और कुछ हद तक सभी समाजों में देखी जा सकती है। कान छिदवाना, नाखून पॉलिश लगाना, गोदना, चोटी और जूड़ा बाँधना अभी तक प्रयुक्त होने वाले शारीरिक सज्जा के रूप हैं। प्रत्येक प्रकार के शृंगार की कामना समाज द्वारा निर्धारित होती है।

बाजार में विविध प्रकार के कपड़े उपलब्ध हैं जिनमें से अधिकांश का उपयोग पहनावे और परिधान के लिए किया जाता है। पिछले एक अध्याय (अध्याय 7) में आपने कपड़े (फैब्रिक) की रचना, धागे और प्रकारों तथा उत्पादन के समय की जाने वाली परिसज्जा के बारे में भी पढ़ा। इस प्रकार आप कपड़े की विशेषताओं को उनके विभिन्न उपयोगों और देखभाल की ज़रूरतों के अनुसार संबद्ध कर सकते हैं। कपड़ों और परिधानों के प्रकार का चयन करने में न केवल कपड़े की विशेषताएँ देखी जाती हैं बल्कि कपड़े के फ़ैशन (प्रचालन) और इसकी सहायक सामग्री के ब्यौरों पर भी विचार किया जाता है। पहले कपड़े पहनने के कारणों की चर्चा करने के बाद अब हम कपड़े पहनने की आवश्यकताओं और विभिन्न आयु वर्गों के लिए वेशभूषा के चयन पर विचार करेंगे।

9.2 भारत में वस्त्रों ( वेशभूषा) के चयन को प्रभावित करने वाले कारक

पहनावे की आवश्यकताओं का आकलन करना और उनके चयन से संबंधित अंतिम निर्णय करना उस क्षेत्र की भौगोलिक विशेषताओं, जलवायु और मौसम संबंधी विशेषताओं पर निर्भर करता है जहाँ उनका उपयोग किया जाना है। यह आसान उपलब्धता, सांस्कृतिक प्रभावों और इससे भी अधिक पारिवारिक परंपराओं से भी प्रभावित होता है। सामान्य तौर पर वे कारक जो कपड़े के चयन को प्रभावित करते हैं उनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित तरीके से किया जा सकता है -

आयु

जीवन की सभी अवस्थाओं पर विचार करने के लिए आयु महत्वपूर्ण कारक है। बच्चों की वेशभूषा और परिधान का चयन करते समय यह और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। चूँकि माता-पिता या परिवार के बड़े बुजुर्ग उनके कपड़ों के संबंध में निर्णय लेते हैं। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि बच्चे विशेषतया शिशु और छोटे बच्चे वयस्कों की संतुष्टि के लिए पहनाए या सजाए जाने वाले गुड्डे, गुड़िया नहीं हैं। उनका शारीरिक वृद्धि क्रियात्मक विकास, लोगों और अपने चारों ओर की चीज़ों के साथ संबंध, उनके द्वारा किए जाने वाले क्रियाकलापों इन सब पर भी सुविधा और सुरक्षा की दृष्टि से विचार किया जाता है।

जैसे-जैसे बच्चे पनपते-बढ़ते हैं अपने परिवार के बाहर के लोगों के साथ उनका संबंध और परस्पर क्रिया बढ़ती जाती है। दूसरे लोग जो पहनते हैं उन कपड़ों और दूसरे उनके कपड़ों को कैसे देखते हैं, इसके प्रति सजग होने लगते हैं। मित्र मंडली में समानुरूपता मध्य बाल्यावस्था में महत्वपूर्ण स्थान लेने लगती है और उम्र के साथ इसका महत्त्व और अधिक बढ़ता है। वेशभूषा और परिधान बढ़ते हुए बच्चे में संबंधित और स्वीकृत होने की भावना का अनुभव करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जैसे-जैसे बच्चे बढ़ते हैं उनके पहनावे का रूप बदल जाता है और लड़के और लड़कियों के पहनावे अलग-अलग हो जाते हैं। किशोरावस्था में तीव्र गति से होने वाले शारीरिक परिवर्तनों के कारण पहनावे में और अंतर आ जाता है। किशोर सांस्कृतिक, सामाजिक मानदंडों और समकालीन प्रवृत्तियों से परिचित होने लगते हैं और ये उनके कपड़ों के चयन को प्रभावित करता है। वे बहुधा यह मानते हैं कि समूह में उनकी लोकप्रियता और संबंध उनके रूप-रंग पर निर्भर करते हैं और रूप-रंग ‘उचित कपड़ों’ के कारण ही आ सकता है।

जलवायु और मौसम

पिछले भाग में आपने पढ़ा कि पर्यावरण और मौसम से बचने के लिए कपड़े पहने जाते हैं। इसलिए बच्चों के लिए कपड़ों का चयन जलवायु के आधार पर किया जाना चाहिए। ठण्डे मौसम में या ऐसे जलवायु में पहने जाने वाले कपड़े, गर्म या शीतोष्ण मौसम में पहने जाने वाले कपड़ों से बहुत भिन्न होंगे, यहाँ तक कि भारी वर्षा वाले क्षेत्रों या अधिक आर्द्रता वाले क्षेत्रों में भी कपड़ों के प्रकार भिन्न होंगे। कुछ किस्म के कपड़े और पहनावे वर्ष में $3-4$ माह के लिए ही उपयुक्त होते हैं अतः उनकी कीमत और मात्रा पर भली-भाँति विचार किया जाना चाहिए। यह बढ़ते बच्चों के मामले में और अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि अगले मौसम तक वे बड़े हो जाते हैं और ये कपड़े उन्हें छोटे हो जाएँगे।

अवसर

कपड़ों का चयन अवसर और दिन के समय पर बहुत अधिक निर्भर करता है। प्रत्येक अवसर के लिए वस्त्र संबंधी अलिखित नियम और परंपराएँ भी हैं। अधिकांश स्कूलों की वर्दी (यूनिफ़ार्म) और अपने नियम होते हैं, जहाँ आभूषण आदि पहनने की अनुमति नहीं होती। जिन स्कूलों में यूनिफ़ार्म पहनना अनिवार्य नहीं है, वहाँ बहुत ही औपचारिक, बहुत दिखावटी कपड़े बच्चों के लिए अनुशासन संबंधी समस्याएँ उत्पन्न कर सकते हैं। वे हमउम्र बच्चों के बीच परिहास का कारण बन सकते हैं या सामूहिक कार्यकलापों में सच्चे मन से भाग लेने में बाधक बन सकते हैं।

सामाजिक समारोह और पार्टियाँ ऐसे अवसर हैं जब बच्चे अपना व्यक्तित्व उजागर करने के लिए ‘अच्छे’ परिधान पहनना पसंद करते हैं। शादी-ब्याह जैसे पारिवारिक समारोहों में बच्चों को भी पारंपरिक मानकों का अनुसरण करना पड़ता है और वे वही कपड़े पहनते हैं जो उपयुक्त समझे जाते हैं। अधिकांश समुदायों में जीवन पथ से जुड़े धार्मिक अनुष्ठान और रीति-रिवाज हैं और वे पारंपरिक मानकों और कुछ समय के साथ परिवर्तित मानकों का पालन करते रहते हैं। वेशभूषा का चयन न केवल पहनावे की शैली में अपितु कपड़े के प्रकार, बनावट, रंग और सहवस्त्रों में भी परिलक्षित होता है। मर्यादा और सुरक्षा के अर्थ में पहनावे की अवधारणाएँ, अवसर, कार्यकलाप और दिन के समय के अनुसार भिन्न-भिन्न होती हैं। सही समय पर सही कपड़े पहनना अति महत्वपूर्ण है।

फैशन

“फ़ैशन” शब्द से अभिप्राय एक ऐसी शैली से है जिसका जनसमूह पर प्रभाव समकालीन होता है। बच्चों के टी.वी. के निरंतर संपर्क में रहने से वे भी फ़ैशन के प्रति बहुत अधिक सचेत हो जाते हैं। फ़ैशन महत्वपूर्ण व्यक्तियों, सामाजिक या राजनीतिक नेताओं, फ़िल्मी सितारों या यहाँ तक कि महत्वपूर्ण राष्ट्रीय घटनाओं से प्रेरित हो सकता है। ये फ़ैशन कपड़े के प्रकार, रंग, कपड़े के ड़िजाइन, आकृति या परिधान की सिलाई या सामान्य रूप से कहें तो उप-साधनों/सहवस्त्रों (जैसे स्कार्स्स, बैग, बैज, बेल्ट आदि) में परिलक्षित हो सकते हैं। कुछ फ़ैशन, जो ड्रेस की किसी विशेषता को बहुत अधिक उजागर करते हैं, या केवल समाज के केवल किसी वर्ग या किसी विशिष्ट क्षेत्र को प्रभावित करते हैं वे ज़्यादा समय तक प्रचलित नहीं रह पाते। फ़ैशन के ये रूप फैड्स कहलाते हैं। बच्चे और किशोर इनसे ज़्यादा प्रभावित हो सकते हैं।

आय

धन-सामर्थ्य भी कपड़ों के चयन को प्रभावित करता है। खरीदारी के दौरान यह न केवल आरंभिक कीमत में परिलक्षित होता है अपितु विभिन्न प्रयोजनों में उसका प्रयोग कितना टिकाऊ है इसे कितनी देखभाल एवं रख-रखाव की आवश्यकता होगी इन सभी में भी यह परिलक्षित होता है। परिवार में बच्चों की संख्या, उनकी आयु में अंतर और लिंग भी अंतिम चयन को प्रभावित करते हैं। उच्च-आय वर्ग वाले परिवारों में प्राय: वेशभूषा (परिधानों) की बहुत ज़्यादा वैरायटी होती है विशेषतया विशिष्ट अवसरों पर उनके पास पहनने के लिए अलग-अलग प्रकार की कई पोशाकें होती हैं। मध्यम या निम्न आय वाले परिवारों में बड़े बच्चों के कपड़ों को पुनः प्रयोग में लाया जाता है अर्थात् उन्हीं के कपड़े पुन: छोटे बच्चों द्वारा पहने जाते हैं जिससे कपड़ों पर व्यय में किफ़ायत होती है।

स्कूली बच्चों के लिए स्कूल की वर्दी (यूनिफार्म) क्यों निर्धारित की जाती है, इसका एक कारण छात्रों के बीच सामाजिक-आर्थिक अंतरों को कम करना है।

9.3 बच्चों की वस्त्र संबंधी मूल आवश्यकताओं को समझना

जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं वे उन हमउम्र और/या वयस्कों के साथ तादात्म्य स्थापित करना चाहते हैं जो उन्हें अच्छे लगते हैं जिन्हें वे पसंद करते हैं। ऐसा करने का एक तरीका उन्हीं की तरह कपड़े पहनना है। यह उनके लिए भावात्मक अनुभव होता है। बच्चों के कपड़े उनकी विभिन्न गतिविधियों के अनुकूल होने चाहिए, ये उनके खेल में बाधक नहीं होने चाहिए, अर्थात् ऐसे कपड़े पहनाए जाने चाहिए जिनमें वे खेलते समय सुविधाजनक महसूस करें। क्योंकि उनके शारीरिक विकास के लिए यह अनिवार्य है। बच्चों की शैशवावस्था से किशोरावस्था तक वस्त्र संबंधी आवश्यकताओं की चर्चा नीचे विस्तार से की गई है।

आराम और सुविधा

बच्चों के कपड़े उनके लिए आरामदायक होने चाहिए। उन्हें लोट-पोट होने, घुटनों के बल चलने, पालथी मारने, ऊपर चढ़ने, भागने आदि क्रियाएँ करने के लिए ऐसे पहनावे की आवश्यकता होती है जो इन क्रियाओं में बाधा न डाले। उन्हें खेलते समय कपड़े गंदे होने का डर नहीं होना चाहिए। चुस्त कपड़े नहीं पहनाए जाने चाहिए क्योंकि वे क्रियाकलाप और स्वाभाविक रक्त प्रवाह में रुकावट डालते हैं। इसी प्रकार कपड़ो में प्रयुक्त इलास्टिक भी इतनी कसी हुई नहीं होनी चाहिए जिससे कि दर्द होने लगे।

भारी और बड़े कपड़ों को संभालना कठिन होता है और बच्चों को इनसे परेशानी होती है। हल्के कपड़ों का चयन करें जो एक्रिलिक और नायलॉन धागे से बने होते हैं, विशेषकर सर्दी के परिधान के लिए, ताकि बच्चे को कपड़े की गर्माहट मिलती रहे। बच्चे बहुधा झुकते और इधरउधर मुड़ते रहते हैं अतः आरामदायक शारीरिक चेष्टा के लिए कपड़ों का पर्याप्त ढीला होना अनिवार्य है। कमर के नीचे ढीले कपड़ों की तुलना में कंधों से ढीले कपड़े अधिक आरामदायक होते हैं। गला पर्याप्त चौड़ा होना चाहिए ताकि गले में कोई खिंचाव न हो। इसी प्रकार सिरों पर बैंड लगी आस्तीन आरामदायक नहीं होती है क्योंकि ये मुक्त रूप से शरीर को हिलाने-डुलाने में अड़चन डालती है।

हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कपड़े मुलायम और नमी-पसीना सोखने वाले हों, जो बच्चे की कोमल त्वचा के लिए उपयुक्त हों। लड़कियों के फ़ॉॉक के लिए महीन मलमल कॉलर और छोटे लड़कों के लिए अधिक माड़ लगी कमीज़ें पहनने में आरामदायक नहों होती हैं। बहुत बड़े कपड़े भी बहुत छोटे कपड़ों की तरह ही आरामदायक नहीं होते हैं। इससे बचने के लिए, शरीर के सही फ़िंटिंग वाले परिधान चुनें परंतु उनमें बच्चे की वृद्धि का ध्यान रखते हुए पर्याप्त गुंजाइश होनी चाहिए। आस्तीन के संबंध में रैगलिन आस्तीनें, फिट आस्तीन की तुलना में अधिक आरामदायक होती हैं तथा वृद्धि के लिए समुचित होती हैं।

सुरक्षा

बच्चों के कपड़ों के संबंध में आराम और सुरक्षा दोनों पहलुओं को समान रूप से ध्यान में रखना ज़रूूरी है। जो कपड़े बहुत ही बड़े होते हैं वे आरामदायक नहीं होते और असुरक्षित भी हो सकते हैं। खाना पकाने वाले क्षेत्र (रसोईघर) में ढीले कपड़े (उपयुक्त आकार के) आसानी से आग पकड़ सकते हैं। लटके हुए दुप्टे/कमरबंद/गुलुबंद और झालर आदि तिपहिया साइकिल या घूमती वस्तु में फँस सकते हैं। चूँकि वाहन चलाने वालों को गहरे और भूरे रंगों की तुलना में चटक रंग सरलता से दिखाई दे जाते हैं अतः बच्चों के कपड़ों के लिए ऐसे ही रंगों का उपयोग करना उपयुक्त है। ढीले बटन और झालर ऐसे शिशुओं और बच्चों (एक-डेढ़ साल के बच्चे) के लिए असुरक्षित होते हैं जो हर चीज़ को अपने मुँह में डालते रहते हैं।

स्व-सहायता

खुद ही कपड़े पहनना और उन्हें उतारना बच्चों में आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की भावना प्रदान करता है। बहुत से आकर्षक कपड़े बच्चे स्वयं पहन और उतार नहीं पाते हैं। स्मरण रहे ऐसे कपड़े स्वयं कपड़े पहनने वाले बच्चे में निराशा की भावना ला सकते हैं।

स्व-सहायता की अति अनिवार्य विशेषता परिधान का खुला भाग है। यह पर्याप्त बड़ा होना चाहिए ताकि बच्चा आसानी से परिधान पहन और उतार सके। सामने से खुले कपड़ों को पहनाना और उतारना आसान होता है। बटन इतने बड़े होने चाहिए कि बच्चा उन्हें हाथ से पकड़ सके। परिधान के अगले और पिछले हिस्से में कोई ऐसी पहचान होनी चाहिए ताकि बच्चा इसे आसानी से पहचानना सीख जाए। छोटे टिच बटन, हुक, लूप और कमर पर या गले में लगे बो-टाई और धागे के लूप्स के साथ छोटे बटन परिधान को स्वयं पहनने /उतारने में बाधा डालते हैं।

दिखावट

बच्चों के अपने कपड़ों के बारे में अपने खुद के विचार होते हैं और उन्हें अपनी पसंद व्यक्त करने की अनुमति मिलनी चाहिए। छोटी उम्र में कपड़ों का चयन करना उनमें उपयुक्त कपड़े चुनने की क्षमता विकसित करने में सहायता करेगा। बाहर आने-जाने के लिए चटकीले और चमकीले रंग के परिधान से खेल के मैदान या गली में बच्चे को पहचानने में आसानी होगी। लाइनों में वांछुनीय विशेषताएँ उजागर होनी चाहिए और अवांछित विशेषताओं का छद्मावरण होना चाहिए। कपड़े की डिज़ाइन बच्चों की छोटी लंबाई के अनुरूप होनी चाहिए। बड़े-बड़े प्रिंट और डिज़ाइइन छोटे बच्चों के अनुरूप नहीं होते। साधारणतः छोटे-छोटे चैक, घटिया और हलके-फुलके तथा छोटे-छोटे सुंदर प्रिंट सर्वोत्तम होते हैं। यद्यपि बड़े डिज़ाइन रुचिकर हो सकते हैं, परतु इनमें अक्सर बच्चों का व्यक्तित्व छुप जाता है।

वृद्धि के लिए गुंजाइश

बच्चों की शारीरिक वृद्धि और विकास को ध्यान में रखते हुए कपड़ों में वृद्धि के लिए गुंजाइश होनी चाहिए विशेषकर लंबाई बढ़ने के लिए। हालाँकि बहुत बड़े कपड़े खरीदने की सलाह नहीं दी जाती है क्योंकि वे न तो आरामदायक होते हैं और न ही सुरक्षित होते हैं। इतना फिट कपड़े चुनना होगा जिनमें लंबाई बढ़ने का प्रावधान हो। ऐसे कपड़े चुनें जो सिकुड़ते न हों। पैंटों के निचले किनारे पर अतिरिक्त कपड़ा लगा होना चाहिए ताकि लंबाई बढने पर पैंट को लंबा किया जा सके। एक्रों पर छोटा या बड़ा करने वाली पट्दियाँ होनी चाहिए। रेगलिन आस्तीन सेट इन आस्तीनों की तुलना में बेहतर रहती है। कंधे पर प्लेटें और चुन्टें होने से चौड़ाई बढ़ने पर ढोला करने की गुंजाइश रहती है।

सरल देखभाल

बच्चे उन कपड़ों से ज़्यादा आराम महसूस करते हैं जिनके गंदे होने की चिंता नहीं होती। यहाँ तक कि माताएँ भी ऐसे कपड़ों को ज़्यादा पसंद करती हैं, जिनके देख-रेख की अधिक आवश्यकता नहीं पड़ती, जिन्हें आसानी से धोया जा सकता है और इस्त्री करने की जरूरत नहीं होती या बहुत कम होती है। दुहरी सिलाई अनिवार्य है क्योंकि यह सीधी सिलाई की तुलना में अधिक समय तक चलती है। घुटने, जेब के कोने और कोहनियों जैसे खिंचने वाले हिस्सों को अतिरिक्त मजबूत बनाया जा सकता है।

वस्त्र

मुलायम अच्छी तरह बुने हुए कपड़े जिनकी देख-रेख करना सरल होता है, त्वचा के लिए आरामदायक होते हैं, जो सिकुड़ते नहीं हैं या तुरंत गंदे भी नहीं होते, बच्चों के पहनावे के लिए बेहतर कपड़े हैं। ड्राइक्लीन कराए जाने वाले कपड़ों का प्रयोग न करें। प्रिन्टेड कपड़े, मोटे सूती और बुनावट वाले कपड़े में कम सिलवटें पड़ती है और वे गंदे भी कम होते हैं। सूती कपड़ा व्यापक रूप से प्रयुक्त होने वाला कपड़ा है, यह धोने में आसान है और पहनने में आरामदायक होता है। ऊनी कपड़े गर्म होते हैं किंतु इनको विशेष देख-रेख की आवश्यकता होती है यह बच्चों की मुलायम त्वचा पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं अतः त्वचा पर यह प्रत्यक्ष नहीं पहनाए जाने चाहिए। पोलीएस्टर, नायलोन और एक्रिलिक कपड़े आसानी से पहने जाते हैं और उनकी देख-रेख आसानी से हो जाती है। शुद्ध पोलीएस्टर की तुलना में सूती और पोलीएस्टर का मिश्रण बच्चे के लिए अधिक आरामदायक होता है क्योंकि इसमें पानी-पसीना सोखने की क्षमता (अवशोषी) अधिक होती है।

क्रियाकलाप 2

विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों का अवलोकन करें और यह नोट करें कि 2 वर्ष, 5 वर्ष, 8 वर्ष, 11 वर्ष और 16 वर्ष की उम्र में वे किस प्रकार के कपड़े पहनते हैं।

9.4 बाल्यावस्था की विभिन्न अवस्थाओं में परिधान संबंधी आवश्यकताएँ

हमने पिछले भाग में बच्चों की पहनावे संबंधी सामान्य आवश्यकताओं के बारे में जानकारी प्राप्त की। बाल्यावस्था की प्रत्येक अवस्था की अपनी-अपनी खास विशेषताएँ होती हैं और कपड़ों का चयन करते समय उनको ध्यान में रखना आवश्यक है।

शैशवकाल ( जन्म से छह माह )

प्रारंभिक महीनों के दौरान अति महत्वपूर्ण कारक हैं - ऊष्णता, आराम और स्वच्छता। इस आयु में शिशु मूल रूप से केवल अनुभव करते हैं, सोते हैं और मल, मूत्र का त्याग करते हैं। अतः कपड़े आरामदायक होने चाहिए। ऐसे कपड़े सिले जाएँ या चुने जाएँ जो सामने की ओर से नीचे तक खुले हों या गला बड़ा खुला हो जिससे कि सिर के ऊपर से कपड़े को न पहनाना पड़े। धागे विशेषकर गले के चारों ओर खींचने वाले धागों से बचें चूँकि ये उलझ सकते हैं। बांधने के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले हुक-बरत आदि इस तरह लगाए जाएँ ताकि उन तक आसानी से पहुँचा जा सके और वे इस प्रकार के हों कि वे किसी प्रकार से शिशु को चोट न पहुचाएँ। ऐसी सलाह दी जाती है कि कमीज़ें और डायपर्स (लंगोट) जैसे परिधान ज़्यादा होने चाहिए क्योंकि इन्हें बार-बार बदलना पड़ता है।

शारीरिक रूप से इस उम्र में शिशु की त्वचा बहुत नाजुक होती है और संवेदनशील होती है इसलिए बहुत मुलायम, हल्के एवं पहनने एवं उतारने में सरल कपड़ों की ज़रूरत होती है। बिलकुल ही शरीर में फिट आने वाले कपड़े शिशु के लिए उपयुक्त नहीं होते चूँकि इससे त्वचा पर खरोंच पड़ सकती है। यहाँ तक कि सर्दी के लिए शुद्ध ऊनी कपड़े भी त्वचा को नुकसान पहुँचाएँगे, अतः शिशु के ऊनी कपड़ों में ऊनी और सूती का मिश्रण जिसे फलालेन कहते हैं या सिल्क बेहतर रहेगा। शिशु इस उम्र में बहुत तेजी से बढ़ते हैं अतः यह सलाह दी जाती है कि बिलकुल पूरे माप के ही बहुत अधिक कपड़े न खरीदे जाएँ।

चित्र 1 - शिशुओं की पोशाकें

शिशुओं के लिए डायपर्स (लंगोट) प्राथमिक और अति अनिवार्य होते हैं। ये मुलायम, अवशोषी, आसानी से धोए जा सकने वाले और जल्दी सूखने वाले होने चाहिए। घर पर ही सूती डायपर्स बनाना बहुत ही आम बात है। यदि इस काम के लिए पुराने सूती कपड़ों का उपयोग किया जाए तो उन्हें अच्छी तरह रोगाणुरहित और विसंक्रमित करना ज़रूरी है। बहुत से परिवार घर पर बने डायपर्स की जगह बाजार में उपलब्ध ‘गॉज’ से बने और ‘बर्डस’ आई डायपर्स का प्रयोग करते हैं। पहले से तैयार (Pre-shaped) डायपर्स भी उपलब्ध होते हैं परंतु यह निश्चित करना चाहिए कि वह शिशु के लिए उपयुक्त साइज़ का हो।

चित्र 2 - पहले से तैयार विभिन्न आकृतियों वाले (Pre-shaped) डायपर

अधिकांश स्थानों पर बनियान पहनी जाती है; मौसम और भौगोलिक स्थिति के आधार पर सूती/ऊनी बनियान का चयन किया जाना चाहिए। गर्म जलवायु के लिए सूती बनियान और सर्दी के लिए मुलायम सूती-ऊनी मिश्रण वाली बनियान ठीक रहती है। सामान्यतः कमीज़ें और डायपर्स शिशुओं के मुख्य परिधान हैं। विभिन्न शैली में बनी सूती कमीज़ें जो आसानी से पहनी जा सकती हैं, अधिक पसंद की जाती हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में यह देखा गया है कि शिशु ऐसे कपड़े पहनते हैं, जो सादे होते हैं और प्रयुक्त सामग्रियों से घर पर बनाए जाते हैं।

घुटनों के बल चलने वाली आयु ( छह माह से एक वर्ष)

यह ऐसी आयु है जिसमें बच्चा आत्मनिर्भर होने के लक्षण दिखाता है। बच्चे को खड़े होने के लिए फर्नीचर का सहारा लेना, वस्तुओं तक पहुँचने का प्रयास करना, अपने-आप बैठना या खड़ा होना आदि क्रियाएँ करते देखना अच्छा लगता है। आप देखेंगे कि इन सभी क्रियाकलापों में सुरक्षित और आरामदायक कपड़ों की आवश्यकता होगी।

इस आयु वर्ग में बच्चों के लिए ऐसा परिधान होता है जिसमें वे आसानी से घूम-फिर सकें। इस प्रकार के कपड़े की मूल आवश्यकताएँ हैं- ढीले और बाधा-मुक्त परिधान। ढीले फिट होने वाले कपड़े, बुने हुए और तिरछी काट वाले परिधान बहुत उपयुक्त होते हैं क्योंकि वे खिंचते हैं और उनमें बढ़ने की गुंजाइश होती है। चूँकि यह शारीरिक मुद्रा विकसित होने की अवस्था

चित्र 3 - घुटनों के बल चलने वाली आयु के बच्चों के लिए आरामदायक कपड़े

होती है, अतः उचित पोशाकों के चयन की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। बहुत अधिक भारी पोशाक शारीरिक गति में बाधक हो सकती है। कसकर बुने हुए या बुनकर बनाए गए कपड़ों की अपेक्षा हल्के परिधान ज़्यादा उचित रहते हैं। यह खेल के दौरान सुविधाजनक होने के साथ-साथ हवा रोकने के लिए विशेषकर सर्दी में अपेक्षाकृत गर्म होगा। बच्चों को बहुत अधिक कपड़े न पहनाएँ। परिधान ऐसे कपड़ों से बनाया जाना चाहिए जो मुलायम, चिकना हो और आसानी से गंदा नहीं होता हो। उनकी देख-रेख करना अर्थात् धोना और इस्त्री करना सरल होना चाहिए। कुछ कपड़े जैसे हल्के-फुल्के एवं लहरिया धारीदार बुने हुए (पट्टीदार सामग्री) उत्कृष्ट होते हैं। उन्हें इस्त्री करने की आवश्यकता नहीं होती है। कुछ सूती और रेयान सिकुड़ते नहीं हैं क्योंकि वे विशेष प्रक्रिया से परिष्कृत किए जाते हैं। चूँकि बच्चे अपना अधिकांश समय खेल में बिताते हैं, उनके कपड़ों को गंदा हो जाने के कारण बार-बार बदलने की आवश्यकता होती है। अतः यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि परिधान में खुले भाग सुविधाजनक हों। जिससे उतारना और पहनाना आसान हो जाए।

इस आयु के लिए सर्वाधिक उपयुक्त रोम्पर्स और सन सूट्स परिधान हैं जो बुने हुए होते हैं या बुनाई वाली सामग्री से बनाए जाते हैं।

चित्र 4 - घुटनों के बल चलने वाली आयु में उपयुक्त डिज़ाइन वाले परिधान

इन परिधानों का चयन करते समय इनके आकार और ढीलेपन जैसी विशेषताओं पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है ताकि परिधान बच्चे की गतिविधि में बाधा न पहुँचाएँ। सरकने की अवस्था के दौरान यदि सर्दी से बचाने की आवश्यकता हो तो मुलायम तली (sole) वाले जूते पहनाए जाएँ। जब शौचालय आदि से संबंधित प्रशिक्षण शुरू होता है तब बहुधा प्रशिक्षण पैंट्स पहनाई जाती हैं। ये ऐसे कपड़े होते हैं जो कूल्हे पर अच्छी तरह आराम से फिट होते हैं।

टोडलर अवस्था ( 1-2 वर्ष की आयु)

यदि आप इस आयु वर्ग में कुछ बच्चों को देखेंगे तो पाएँगे कि वे बहुत सक्रिय हैं। उन्हें घर के अंदर तथा बाहर खेलने के लिए स्वतंत्रता की आवश्यकता होती है। वे अधिकांश कार्य अपने-आप करना चाहते हैं। अब चूँकि वे चलना शुरू करते हैं तो जो भी चीज़ देखते हैं वहाँ अपने-आप पहुँचना चाहते हैं। इस अवस्था में जूते, मोज़े या चप्पल पहनावे के अनिवार्य अंग बन जाते हैं। छोटे बच्चे के लिए जूते और मोज़े का पाँव में सही फिट होना पाँव के आराम और विकास के

चित्र 5 - जूते की सही फ़िटिंग

सही फ़िटिंग वाला जूता वही है जो बच्चे के पैर में सही फ़िट हो। जो जूते सही फ़िट होते हैं वे संतुलन बनाने, चढ़ने और दौड़ने के दौरान शारीरिक कौशलों का सही निर्माण करने में सहायता करते हैं। चूँकि बच्चे के पैर जल्दी बड़े हो जाते हैं अतः जूतों को बार-बार बदलने की आवश्यकता होती है ताकि पाँव के विकास पर प्रतिकूल या हानिप्रद प्रभाव न पड़े।

टोडलर्स (1 - 2 वर्ष के बच्चे) के लिए झबले सबसे उपयुक्त परिधान हैं। यह उस संधि वाले भाग में थोड़ा बड़ा होना चाहिए ताकि डायपर्स ठीक से लगाया जा सके। जब बच्चे 2 वर्ष के हो जाते हैं वे अपने-आप कपड़े पहनना चाहते हैं तब स्व-सहायता विशेषताओं वाले परिधान का चयन करना महत्वपूर्ण हो जाता है, जिनकी सूची पहले ही दी गई है।

क्रियाकलाप 3

1 - 2 वर्ष की आयु वर्ग के चार बच्चों, दो लड़कियाँ और दो लड़कों के वज़न और ऊँचाई का माप लेकर उसी के अनुसार उनका माप चार्ट बनाएँ।

विद्यालय-पूर्व आयु ( 2-6 वर्ष )

अन्य आयु वर्गों की तरह ही पूर्व विद्यालयी बच्चों के लिए कपड़ों के चयन में स्वास्थ्य, आराम और सुविधा महत्वपूर्ण पहलू हैं। इन बच्चों के लिए कपड़ों का चयन उपयुक्त रूप से किया जाना चाहिए क्योंकि वे बहुत अधिक खेलते हैं। अतः परिधान मज़बूत होना चाहिए जो टूटफूट को झेल सके। कपड़ों को हल्की सामग्री से निर्मित होना चाहिए जिसे पहले से ही सिकुड़ाया गया हो और देखभाल करना आसान हो। पूर्व विद्यालयी बच्चों के लिए सूती कपड़ा अति उपयुक्त कपड़ा है। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा होता है, यह जल अवशोषी होता है और इसे धोना सरल है।

पूर्व विद्यालयी बच्चों के बने-बनाए (रेडिमेड) परिधानों का डिज़ाइन ऐसा हो जिनकी देखभाल सरलता से की जा सके। कभी-कभी परिधान में झालर आदि लगी होती है जिससे परिधान को धोना और इस्त्री करना कठिन हो जाता है। यह ऐसा होना चाहिए कि यह कई बार धोने और पहनने पर भी ज्यों का त्यों रहे। यह निश्चित कर लें कि हुक/बटन आदि और झालरें ठीक से सिली हों, सजावटी सामग्री को इस्त्री कराना आसान हो और सीवन सपाट और अच्छी तरह बनाए गए हों।

चित्र 6 - विद्यालय-पूर्व आयु के बच्चों के लिए परिधान

इस उम्र के बच्चे तेज़ी से बढ़ते हैं अतः केवल इतने ही परिधान बनाए या खरीदे जाते हैं जिनका उपयोग सभी अवसरों और प्रयोजनों के लिए किया जा सकता है। महँगा कपड़े खरीदते समय शारीरिक वृद्धि संबंधी विशेषताओं का ध्यान रखें जिनकी पिछले भाग में चर्चा की गई है। इससे परिधान को अपेक्षाकृत अधिक समयावधि तक पहनना संभव हो सकेगा।

विद्यालय-पूर्व बालकों की परिधानों के रंग और फ़ैशन के बारे में एक निश्चित पसंद हो सकती है। वे अपने पहनावे में रुचि दिखाना शुरू कर देते हैं। बच्चों के कपड़ों के चयन में उनके व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कुछ लड़कियाँ स्त्रियोचित शैली पसंद करती हैं और झालर वाली फ्रॉक पहनना चाहती हैं। लड़कियों की तरह पूर्व विद्यालयी आयु के लड़के पहनावे पर अधिक ध्यान नहीं देते हैं परंतु वे दूसरे लड़कों की तरह कपड़े पहनना चाहते हैं और अरामदेह कपड़े पसंद करते हैं। यह देखा गया है कि इस उम्र में लड़कियों को लड़कों की तरह पैंट्स/जीन्स/शॉर्ट पहनने की इजाज़त दी जाती है परंतु लड़कों को लड़कियों वाले कपड़े नहीं पहनाए जाते।

प्रत्येक बच्चे के व्यक्तित्व का कपड़ों द्वारा सम्मान किया जाना चाहिए चाहे वे जुड़वाँ ही क्यों न हों। एक समान दिखने वाले जुड़वाँ बच्चों को एक जैसे कपड़े नहीं पहनाने चाहिए जब तक उनकी यह अपनी इच्छा न हो। यह महत्वपूर्ण है कि पूर्व विद्यालयी आयु के बच्चे के कपड़े खरीदते समय उन्हें अपनी पसंद व्यक्त करने का अवसर दिया जाए।

बच्चे और माँ दोनों के लिए अपनी सहायता अपने-आप करना महत्वपूर्ण होता है। ये विशेषताएँ बच्चे को अधिक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनने में सहायता करती हैं। पूर्व विद्यालयी आयु के बच्चों के परिधानों में जो विशेषताएँ अपेक्षित हैं, वे यह हैं कि पूरा एक ही परिधान हो, जिसके अगले हिस्से का खुला भाग काफ़ी बड़ा/लम्बा हो जो आसानी से खोला जा सके, उसमें बड़े बटन हों, बड़ा और आरामदायक गला हो जिसमें कॉलर न हो और बगल (कंधे) बड़े हों।

संक्षेप में, विद्यालय-पूर्व आयु के बच्चों के लिए कपड़े पहनने में आरामदायक, रख-रखाव में आसान, प्रयोग में टिकाऊ हों जो बढ़ने की आवश्यकताओं के लिए उपयुक्त हों, डिजाइन और रंग आकर्षक हों और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देते हों।

प्रारंभिक स्कूली वर्ष ( $5-11$ वर्ष )

जैसा कि आपने पिछले भाग में पढ़ा यह मध्य बाल्यावस्था की अवस्था है। इसमें शारीरिक सक्रियता बहुत ज़्यादा होती है और लड़के एवं लड़कियाँ दोनों खेल-कूद में रुचि रखते हैं। उनके सामाजिक और भावात्मक विकास में परिधान अब महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

वे अपनी मित्रमंडली से स्वीकार्यता प्राप्त करने के लिए कुछ विशिष्ट कपड़ों के प्रति पसंद और नापसंद विकसित कर लेते हैं और माता-पिता को इस विकासात्मक परिवर्तन को समझना चाहिए। यदि बच्चे का कपड़ा उसकी मित्रमंडली के कपड़ों से बहुत अलग दिखाई देगा तो संवेदनशील बच्चा अपमान का अनुभव करेगा और उसमें विश्वास की कमी होगी।

इस उम्र में भी आरामदायक परिधान अनिवार्य है। अब लड़के बहुत सक्रिय हो जाते हैं और खुरदरे कपड़े पहनना पसंद करते हैं जो उनके उद्यम और उलट-पुलट के खेल में भी खराब न हों। लड़कियाँ ‘लड़कों’ जैसे कपड़े पसंद करती हैं या स्त्रियोचित कपड़े पहनना चाहती हैं।

चित्र $7-5-8$ वर्ष के बालकों के लिए खेल-कूद योग्य एवं आरामदायक कपड़े

अधिकांश बच्चे जो कपड़े पहनना चाहते हैं उनका चयन स्वयं कर सकते हैं और माता-पिता द्वारा सुझाव दिए जाने पर नाराज़ हो जाते हैं।

स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए परिधान का चयन करते समय फ़िटिंग एक महत्वपूर्ण पहलू है। खराब फ़िटिंग वाले कपड़ों को बच्चे पसंद नहीं करते हैं। तथापि, कुछ बच्चे फ़ैशन के आधार पर कपड़ों का चयन कर सकते हैं भले ही वह आरामदायक न हो।

चित्र 8 - प्राथमिक विद्यालय वर्ग के लिए आरामदायक परिधान

अपनी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बच्चों को ऐसे कपड़ों की आवश्यकता होगी जो आसानी से पसीना सोख सकें। अत्यंत उपयुक्त कपड़े हैं - सूती, वॉइल आदि। सुरक्षा, सरलता से देख-रेख, वृद्धि के लिए गुंजाइश और कद-काठी के लिए उपयुक्तता जैसे कारक भी विद्यालय जाने वाले बच्चों के लिए छोटे बच्चों की तरह ही महत्वपूर्ण हैं जैसी कि पिछले भाग में चर्चा की जा चुकी है।

किशोर ( $11-19$ वर्ष )

किशोरावस्था के दौरान वृद्धि तेज़ी से होती है और शरीर के भिन्न अंग अलग-अलग अनुपातों में विकसित होते हैं। प्रारंभिक किशोरावस्था में किसी एक अवधि में कम परिधान खरीदने का सुझाव दिया जाता है क्योंकि बच्चा बहुत तेज़ी से बढ़ता है और कपड़े छोटे हो जाते हैं।

किशोरों के लिए कपड़ों में जो चीज़ अत्यंत महत्वपूर्ण हैं वे हैं फ़िटिंग और फ़ैशन। वे कपड़े की गुणवत्ता नहीं देखेंगे और न ही इसकी बनावट पर ध्यान देंगे।

किशोर न केवल नए फ़ैशनेबल कपड़े पहनते हैं, वे नए फ़ैशन का सृजन भी करते हैं। वे फ़ैशन और सनक (धुन) का अंधाधुंध अनुसरण करते हैं। वे अपने पहनावे में बड़ी राशि खर्च करना चाहते हैं। हमउम्र साथियों की तरह कपड़े पहनना या पहनावे में अपने आदर्श व्यक्ति की नकल करना अपनी पहचान बनाने की भावना के लिए उनके संघर्ष का लक्षण है।

चित्र 9 - किशोरों के लिए वस्त्रों के डिज़ाइन

खेलकूद या कसरत के लिए तैयार होते समय ऐसे कपड़े और जूते पहनने चाहिए जो आरामदायक हों और खिंचाव, छाले, मोच या पैर और टखने में सूजन जैसी समस्याओं को रोक सकें। कपड़ों को धोना आसान हो, क्योंकि स्वच्छता से त्वचा को परेशानी और फोड़े-फुंसी से बचा सकते हैं। परिधान का डिज़ाइन और कपड़ा पसीना सोखने में सक्षम हो और गति में बाधक न बने।

9.5 विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए कपड़े

आप अब सहमत होंगे कि सुरक्षा के अलावा परिधान बच्चे में स्वायत्तता और सक्षमता की भावना का भी विकास करने का अवसर प्रदान करता है। यह सामाजिक माहौल में दूसरों पर व्यक्ति के निजी प्रभावों को अभिव्यक्त करता है। कभी-कभी अक्षम बच्चों की शारीरिक गतिविधि सीमित होती है परंतु उनके पास सीखने और वृद्धि करने की सभी क्षमताएँ होती हैं।

विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए कपड़े पहनने और उतारने का कार्य बहुत महत्वपूर्ण होता है। अक्षमता के स्वरूप के आधार पर कुछ बच्चे स्वतंत्र रूप से स्वयं कपड़े पहनने में समर्थ होते हैं। यह उन्हें भावात्मक संतुष्टि देता है और सम्मान की भावना प्रदान करता है। परंतु बच्चा यदि बहुत गंभीर रूप से अक्षम हो या असंयमी हो तो देखभाल करने वाला उसकी सहायता करता है, तब इस प्रक्रिया में बहुत समय लगता है और यह थकानपूर्ण होता है।

बच्चों के लिए परिधान का चयन अक्षमता के प्रकार और उसे संबंधित कठिनाइयों के अनुसार किया जाना चाहिए। चूँकि आराम प्राथमिक मानदंड है, गर्मी के लिए सूती कपड़ा अधिकांश लोगों की पसंद है और मखमली कोर्डूरॉय और सूती-ऊनी मिश्रण सर्दी के लिए। चुना गया परिधान मजबूत होना चाहिए ताकि यह बच्चे के चिकित्सा संबंधी उपकरण या क्हील चेयर उपयोग करने पर भी फट न सके। केलिपर्स और ब्रेसेज़ के लिए परिधान में विशिष्ट क्षेत्र में दोहरी सिलाई होनी चाहिए। खुला भाग आसानी से खोलने लायक और बाँधने में सरल हो। अतः वेलक्रोज़ और कीचेन के साथ ज़िपर्स लगाना अच्छा है। यह सब जानते हैं कि परिधान धोने में आसान होने चाहिए। कपड़े का पहनना और उतारना सरल हो और गला बड़ा हो। कमर की बैल्ट इलास्टिक वाली हो और खुली जेबें सामने की तरफ हों तो अच्छा रहेगा।

कपड़ों में सौंदर्यबोध देखना बहुत महत्वपूर्ण है। उन्हें किसी भी बच्चे के लिए ही बने कपड़े जैसा दिखना चाहिए जो अच्छी तरह सिला हुआ परंतु पहनने में सरल होना चाहिए। उनका रंग और प्रिंट लुभावना हो ताकि पहनने वाला अच्छा अनुभव करे। तथापि, उत्कृष्ट परिधान वह है जो पहनने वाले और देखभाल करने वाले की व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए बनाया गया हो।

समग्र रूप से यह अध्याय हमें जानकारी देता है कि बच्चे क्या पहनते हैं अर्थात उनके परिधान की उनके व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका है। कपड़े न केवल देखने में अच्छे और पहनने में आरामदायक हों अपितु पारिस्थितिकी और सामाजिक सांस्कृतिक रूप से भी उपयुक्त होने चाहिए।

बाल्यावस्था पर इकाई का यह अंतिम भाग है। पहली दो इकाइयों में किशोरावस्था का अध्ययन करने के बाद अब हम अगले भाग से वयस्कावस्था (प्रौढ़ावस्था) के बारे में चौथी इकाई में पढ़ेंगे।

मुख्य शब्द

परिधान, कपडे़, फ़ैशन, वस्त्र संबंधी आवश्यकताएँ, बाल्यावस्था की अवस्थाएँ, विशेष सहायता वाले बच्चे।

अंत में कुछ प्रश्न

1. आप कपड़े क्यों पहनते हैं? इसके कोई तीन कारण बताइए।

2. बच्चों के लिए कपड़ों के चयन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं?

3. बच्चों के परिधान की किन्हीं चार आवश्यकताओं की चर्चा कीजिए।

4. बच्चों के परिधान-संबंधी आवश्यकताएँ उम्र के साथ क्यों बदलती हैं? शैशवावस्था, पूर्व विद्यालयी आयु और प्राथमिक विद्यालय वर्षों में बच्चों के परिधान की विशेषताओं पर चर्चा कीजिए।

5. विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों के कपड़ों की क्या विशेषताएँ होनी चाहिए?

प्रायोगिक कार्य 15

हमारा परिधान

थीम - विभिन्न अवसरों पर पहने जाने वाले कपड़े

अभ्यास

1. विभिन्न व्यवसायों (पेशों), धार्मिक अनुष्ठानों के लिए प्रयुक्त विभिन्न प्रकार के परिधानों का रिकॉर्ड बनाएँ।

2. उनके उपयोग के महत्त्व का पता लगाएँ।

विभिन्न पेशों, धार्मिक अनुष्ठानों के लिए कपड़े पहनने के प्रचलनों के महत्त्व को समझने में छात्रों की सहायता करना।

क्रियाविधि -

(क) पेशे के संबंध में -

  • इनमें से किसी पेशे में कार्यरत् व्यक्ति को देखना और उनसे बातचीत करना-औषधि, रक्षा, सरकारी विभाग, निर्माण या अन्य कोई विभाग।
  • उनके द्वारा पहने जाने वाले कपड़े के प्रकार, रंग और परिधान की सूची बनाएँ।

(ख) अनुष्ठानों के संबंध में-

  • इनमें से किसी घटना के संबंध में लोगों को देखें और बातचीत करें- विवाह, बच्चे का जन्म, मृत्यु और दीक्षा समारोहों जैसे मुन्डन और नामकरण आदि।
  • उनके द्वारा पहने जाने वाले कपड़ों के प्रकार, परिधान, रंग और डिज़ाइन की सूची बनाएँ।

(ग) एक व्यापक रिपोर्ट तैयार करें जिसमें कपड़ा, रंग, डिज़ाइन और बुनावट के संदर्भ में परिधान की उपयुक्तता संबंधी चर्चा और सुझाव प्रस्तुत किए गए हों।



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