अध्याय 08 पोषण, स्वास्थ्य एवं स्वस्थता
8.1 प्रस्तावना
क्या आपको अध्याय 5 में भोजन एवं पोषण संबंधी की गई चर्चा याद है? आपने पिछले अध्याय में बच्चों की उत्तरजीविता, विकास तथा वृद्धि के बारे में भी जाना। आइए, हम संक्षेप में कुछ महत्वपूर्ण बातों पर पुनः चर्चा करें। हमारे आहार में, हमारे द्वारा खाए जाने वाले खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं। पोषण का अर्थ ‘शरीर में भोजन का कार्य’ करना है। यह एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम पोषण प्राप्त करते हैं तथा वृद्धि, पुनर्निमाण एवं स्वस्थता के लिए इनका उपापचयन करते हैं। जब हम पोषण की बात करते हैं तो हमें खाद्य पदार्थों के संघटन को समझने तथा यह जानने की आवश्यकता होती है कि कौन-सा खाद्य पदार्थ कौन-कौन-सा पोषक तत्व प्रदान करता है।
आइए, अब हम बच्चों के पोषण, स्वास्थ्य एवं स्वस्थता पर प्रकाश डालें।
बच्चों में वृद्धि निरंतर होती रहती है इसलिए उनकी पोषण संबंधी आवश्यकताएँ उनकी वृद्धि-दर, शरीर के वज़न तथा उनके विकास की प्रत्येक अवस्था में प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किए गए पोषक तत्वों पर निर्भर करती हैं। चूँकि बच्चों में शारीरिक एवं मानसिक विकास काफ़ी तेज़ी से होता है इसलिए इस अवस्था में पोषण की न्यूनता के परिणामस्वरूप आजीवन क्षति एवं अक्षमताएँ उत्पन्न हो सकती हैं। दूसरी ओर पर्याप्त पोषण यह सुनिश्चित करता है कि बच्चे पूर्ण क्षमताओं के साथ वृद्धि कर रहे हैं। अतः हमें उनके भोजन को संतुलित रूप में ग्रहण करने की कला को सीखने की आवश्यकता है ताकि खाद्य समूहों से प्रत्येक भोजन का लुत्फ़ उठा सकें। सामान्यतया यह माना जाता है कि बच्चे का कद एवं वज़न में होने वाली बढ़ोतरी उसके अच्छे पोषण को परिलक्षित करती है, किंतु यह प्रभावी ढंग से उनके पूर्ण रूप से स्वस्थ रहने को बेहतर बनाता है। पर्याप्त पोषण निम्नलिखित में योगदान करता है -
- शरीर के अंगों के कार्य एवं प्रणाली में
- संज्ञानात्मक निष्पादन में
- रोगों से लड़ने तथा स्वास्थ्य सुधार के लिए शरीर की क्षमता में
- ऊर्जा-स्तरों की वृद्धि में
- सुखद एवं सकारात्मक दृष्टिकोण के विकास में
8.2 शैशव ( जन्म से 12 माह तक ) के दौरान पोषण, स्वास्थ्य एवं स्वस्थता
तेजी से वृद्धि करने की शैशवावस्था में तथा प्रारंभिक शैशवावस्था के दौरान (जन्म से 6 माह तक) होने वाले परिवर्तन विशेष रूप से दृष्ट्रिगत होते हैं। वास्तव में यह विदित है कि शिशुओं को उनके प्रतिकिलो शरीर वज़न से लगभग दुगुनी कैलोरी की आवश्यकता होती है जो कि भारी कार्य करने वाले व्यक्ति के लिए आवश्यक कैलोरी की मात्रा के बराबर होती है। पर्याप्त पोषण के द्वारा इस आवश्यकता की पूर्ति बच्चों को निम्नलिखित अवश्य मिलने चाहिए -
क्या आपको पता है?
शिशुओं में -
- वज़न -6 माह में दुगुना एवं 1 वर्ष में तिगुना हो जाता है।
- कद - जन्म के समय $50-55$ से.मी. तथा 1 वर्ष तक 75 सेमी. तक बढ़ जाता है।
- सिर की परिधि एवं सीने की परिधि दोनों में वृद्धि होती है। करना संभव है। ऊर्जा के अतिरिक्त,
प्रोटीन - हड्डियों एवं पेशियों की तीव्र वृद्धि के लिए
कैल्सियम - हड्डियों के तीव्र कैल्सियमीकरण के लिए
लौह तत्व - रुधिर आयतन में विस्तार एवं वृद्धि के लिए
शिशुओं की आहार संबंधी आवश्यकताएँ
शिशु अपनी ज़रूरत के अनुसार अधिक दूध अथवा कम दूध पीकर अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं। उनकी पोषण संबंधी आवश्यकताएँ माँ के दूध के संघटन तथा उनको दिए जाने वाले अनुपूरक भोजन से पूरी हो जाती हैं।
माँ के दूध के संघटन के आधार पर अनुशंसित पोषक तत्वों की गणना की जाती है। सुपोषित माँ के 850 मि. ली. दूध में प्रथम 4-6 माह तक के लिए सभी पोषक तत्व होने चाहिए। यदि माँ को अच्छी खुराक दी जाती है तो शिशु भी अच्छी तरह बढ़ता और फलता-फूलता है। इसलिए माँ को प्रोटीन, कैल्सियम, तथा लौह तत्व युक्त भोजन करना चाहिए तथा कुपोषण से बचने के लिए उसे पर्याप्त मात्रा में दूध, सूप, फलों का जूस तथा जल जैसे तरल पदार्थ लेने चाहिए।
सारणी 1 - शिशुओं के पोषक तत्वों की अनुर्शंसित दैनिक मात्रा | ||
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आई.सी.एम.आर. द्वारा अनुशंसित | ||
पोषक तत्व | जन्म से 6 माह तक | 6-12 माह तक |
ऊर्जा (किलो कैलोरी) | 108 कि.ग्रा. शरीर वज़न | 98 कि.ग्रा. शरीर वज़न |
प्रोटीन (ग्राम) | 2.05 कि.ग्रा. शरीर वज़न | 1.65 कि.ग्रा. शरीर वज़न |
कैल्सियम (मि.ग्रा. ) | 500 | 500 |
विटामिन ए रेटिनॉल (माइक्रो ग्राम) अथवा बीटा कैरोटीन (माइक्रो ग्राम) |
1200 | 350 |
थायमिन (माइक्रो ग्राम) | 55 / कि.ग्रा. शरीर वज़न | 50 / कि.ग्रा. शरीर वज़न |
नियासीन (माइको ग्राम) | 710 / कि.ग्रा. शरीर वज़न | 650 / कि.ग्रा. शरीर वज़न |
राईबोफ्लैबिन (माइको ग्राम) | 65 / कि.ग्रा. शरीर वज़न | 60 / कि.ग्रा. शरीर वज़न |
पाईरिडॉक्सिन (माइक्रो ग्राम) | 0.1 | 0.4 |
ऐस्कार्बिक अम्ल (विटामिन सी) (माइक्रो ग्राम) |
25 | 25 |
फॉलिक अम्ल (माइको ग्राम) | 25 | 25 |
विटामिन बी 12 (माइक्रो ग्राम) | 0.2 | 0.2 |
- भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आई.सी.एम.आर.)
स्तनपान
माँ का दूध नवजात शिशु के लिए प्राकृतिक उपहार है। यह उन सभी पोषक-तत्वों से युक्त होता है जो आसानी से अवशोषित हो जाते हैं विश्व स्वास्थ्य संगठन 6 माह तक विशेष रूप से स्तनपान कराने की सिफ़ारिश करता है। स्तनपान के दौरान शिशु को पानी की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है। शिशु को जन्म के तुरंत बाद स्तनपान कराना चाहिए। प्रथम 2-3 दिन नवदुग्ध ( कोलॉस्ट्रम ) नाम का पीले रंग का एक तरल पदार्थ उत्पन्न होता है। शिशु को इसे अवश्य पिलाया जाना चाहिए क्योंकि यह प्रतिरक्षी तत्वों से भरपूर होता है तथा शिशु को संक्रमणों से बचाता है।
स्तनपान के लाभ
- यह शिशुओं की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पोषण की दृष्टि से अनुकूल होता है।
- यह अपेक्षित अनुपात एवं रूपों (उदाहरणतः - मौजूद वसा घुले रूप में होती है) में सभी पोषक-तत्वों से भरपूर होता है। इसकी प्रोटीन की कम मात्रा गुर्दों पर दबाव को कम करती है तथा विटामिन-‘सी’ नष्ट नहीं होता।
- यह माँ तथा शिशु दोनों के लिए सरल, स्वच्छ एवं सुविधाजनक आहार का तरीका है। यह दूध हर समय एवं उचित तापमान पर उपलब्ध होता है।
- इसमें प्रतिरक्षी तत्व मौजूद होने के कारण यह शिशुओं को जठरांत्र संबंधी (गैस्ट्रो-इंटेस्टाइनल) सीने एवं मूत्र संबंधी संक्रमण से बचाता है, उसे प्राकृतिक प्रतिरक्षा देता है तथा यह एलर्जन से मुक्त होता है।
- यह माँ को स्तन एवं अंडाशय के कैंसर से सुरक्षा प्रदान करता है तथा आपकी हड्डियों को कमज़ोर होने से बचाता है।
- यह माँ तथा शिशु के मध्य स्वस्थ, सुखद भावात्मक संबंध के लिए बहुत ही सहायक होता है।
शिशु जानते हैं कि कब और कितना दूध चाहिए तथा इसलिए कहा गया है “शिशु की भूख ही उत्तम घड़ी है”, फिर भी, जब शिशु एक माह का हो जाता है तो स्तनपान के समय-अंतरालों को नियमित करने की दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए।
कुछ कम लागत वाले पूरक भोजन
- भारतीय बहुद्देशीय आटा - कम वसा वाला मूँगफली का आटा तथा चने का आटा $(75: 25)$
- खमीरीकृत भोजन - खमीरीकृत अनाज, कम वसा वाला मूंगफली का आटा तथा चने का आटा $(4: 4: 2)$
- बाल आहार - छिलका युक्त गेहूँ, मूँगफली तथा चने का आटा $(7: 2: 2)$
- विन आहार -ज्वार-बाजरा, मूंग दाल, मूंगफली तथा गुड़ $(5: 2: 2: 2)$
- पोषक-अनाज (गेंहूँ / मक्का / चावल / ज्वार) दाल (चना/मूँग), मूँगफली तथा गुड़ ( $4: 2: 1: 2$ )
- अमूथम — चावल, रागी, चने की दाल तथा तिल, मूँगफली का आटा तथा गुड़
$(1.5: 1.5: 1.5: 2.5: 2.5)$
- अमृथम - गेंूूँ, चना दाल, सोया तथा मूँगफली-आटा तथा चुकंदर से बनी चीनी ( $4: 2: 1: 1: 2$ )
- ये सभी खाद्य-पदार्थ स्थानीय रूप से उपलब्ध अनाजों से बनाए जाते हैं। इन सभी को दर्शाए गए संगत अनुपातों में भूना एवं मिलाया जाता है, एवं विटामिन और कैल्सियम मिलाकर अधिक स्वादिष्ट और आरक्षित किया जाता है। ये बहुत ही पौष्टिक होते हैं तथा घर पर आसानी से तैयार किए जा सकते हैं।
जन्म के समय कम वज़़न वाले शिशुओं का आहार
आपको पता होगा कि कुछ शिशु जन्म के समय कम वज़न के होते हैं। जन्म के समय 2.5 कि.ग्रा. से कम वज़न वाले शिशु को जन्म के समय कम वज़न वाला शिशु माना जाता है। ऐसे शिशुओं को चूसने एवं निगलने की पर्याप्त सामर्थ्य न होने के कारण समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उनकी अवशोषण क्षमता काफ़ी कम होती है क्योंकि उनके पेट एवं आंत का आकार छोटा होता है, किन्तु उनकी कैलोरी की आवश्यकता सापेक्ष रूप से उच्च होती है। शिशुओं को माँ के दूध से सभी आवश्यक एमीनो अम्ल, कैलोरी, वसा तथा सोडियम के तत्व मिलते हैं। इससे उनकी सभी आवश्यकताएँ पूरी हो जाती हैं। उनकी माँ के दूध का रोगाणुनिरोधी गुण उन्हें संक्रमणों से बचाता है।
इसलिए, निस्संदेह जन्म से ही कम वज़न वाले शिशुओं के लिए माँ का दूध सर्वोत्तम भोजन होता है। साथ ही साथ, उनकी सतत वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए विटामिन, कैल्सियम, फॉस्फोरस तथा लौह तत्व की आवश्यकता होती है। आहार संबंधी संपूरकों पर तभी विचार किया जाना चाहिए यदि शिशु का वज़न संतोषजनक रूप से नहीं बढ़ता है।
पूरक भोजन
पूरक भोजन माँ के दूध के साथ-साथ धीरे-धीरे अन्य खाद्य पदार्थों को भी देना शुरू करने की एक प्रक्रिया है। इस प्रकार जो खाद्य पदार्थ देने शुरू किए जाते हैं उन्हें पूरक भोजन कहा जाता है। इन्हें 6 माह की आयु से शुरू किया जा सकता है। यह महत्वपूर्ण है कि पूरक भोजन की प्रक्रिया में दूध पिलाने की बोतलों या अन्य बर्तनों का इस्तेमाल करते समय अत्यधिक साफ-सफाई तथा स्वच्छता का ध्यान रखा जाए ताकि बच्चे को संक्रमण से बचाया जा सके।
सारणी 2 - पूरक आहार के प्रकार
शिशुओं की पोषण संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए पूरक भोजन कैलोरी से भरपूर होना चाहिए तथा उनसे प्रोटीन के रूप में कम-से-कम 10 प्रतिशत ऊर्जा प्राप्त होनी चाहिए।
पूरक आहार के लिए दिशा-निर्देश
- एक बार में केवल एक ही भोजन से शुरूआत की जानी चाहिए।
- शुरूआत में थोड़ी मात्रा में खिलाया जाना चाहिए, फिर धीरे-धीरे बढ़ाया जा सकता है।
- यदि बच्चा भोजन पसंद नहीं करता है तो उसे खाने के लिए बाध्य न करें। किसी और चीज़ को खिलाने की कोशिश करें तथा बाद में उसे वही भोजन पुन: देने का प्रयास करें।
- छोटे बच्चों को मसालेदार एवं तला हुआ भोजन नहीं दिया जाना चाहिए।
- व्यक्तिगत नापसंद को दिखाए बिना सभी प्रकार के भोजन को खाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- नये भोजन को स्वीकार्य बनाने के लिए भोजन में विविधता आवश्यक है।
क्रियाकलाप 1
आप अपने माता-पिता / दादा-दादी / चाचा-चाची से अपने क्षेत्र के पारंपरिक पूरक भोजन के बारे में पूछिए। क्या आप सोचते हैं कि ये भोजन पौष्टिक हैं? कारण देते हुए अपने उत्तर को स्पष्ट कीजिए।
प्रतिरक्षण
अच्छा स्वास्थ्य एवं स्वस्थता पूर्णतया अच्छे पोषण पर ही निर्भर नहीं है। बच्चों को विभिन्न रोगों से बचाने के लिए प्रतिरक्षण की महत्वपूर्ण भूमिका से हम सभी अवगत हैं।
आप यह जानने के इच्छुक होंगे कि प्रतिरक्षण बच्चों की विभिन्न रोगों से किस प्रकार रक्षा करता है। एक टीका जिसमें कीटाणु द्वारा निर्मित जीवाणु/विषाणु/आविष का एक निष्क्रिय रूप में होता है, बच्चे को लगाया जाता है। निष्क्रिय होने के कारण यह संक्रमण नहों करता है किंतु श्वेत रक्त कोशिकाओं को प्रतिरक्षी तत्व पैदा करने के लिए प्रेरित करता है। तत्पश्चात् जब कीटाणु बच्चे की स्वास्थ्य प्रणाली पर प्रहार करते हैं तो ये प्रतिरक्षी तत्व इन कीटाणुओं को मार डालते हैं।
सारणी 3 - राष्ट्रीय प्रतिरक्षण कार्यक्रम | |
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( आईसीएमआर द्वारा निर्धारित ) | |
बच्चे की उम्र | टीका |
जन्म के तुरंत बाद | बीसीजी 1 |
6 सप्ताह | ओपीवी 2, डीपीटी 3, हेपेटाइटिस बी |
10 सप्ताह | ओपीवी, डीपीटी, हेपेटाइटिस बी |
14 सप्ताह | ओपीवी, डीपीटी, हेपेटाइटिस बी |
$9-12$ माह | खसरा |
1. बी.सी.जी. - बैसिलस केलमिटि-ग्वेरिन ( क्षय रोग प्रतिरोधी)
2. ओ.पी.वी. - ओरल पोलियो वैक्सीन
3. डी.पी.टी. - डिफ्थीरिया, परट्यूसिस तथा टिटनेस,
शिशुओं एवं छोटे बच्चों में स्वास्थ्य एवं पोषण संबंधी समस्याएँ
हमने अध्याय 19 में पढ़ा है कि कुपोषण एवं संक्रमण किस प्रकार एक दूसरे से संबंधित हैं। वास्तव में कुपोषण एक राष्ट्रीय समस्या है। यह विशेष रूप से गाँवों एवं जनजातीय क्षेत्रों में महिला निरक्षरता, निर्धनता, बच्चों की पोषण संबंधी आवश्यकताओं के बारे में अज्ञानता तथा स्वास्थ्य की देखभाल हेतु अपर्याप्त सुविधा आदि जैसे अनेक कारकों का परिणाम है।
जब माँ का दूध पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होता है तो बच्चे कुपोषण का शिकार होने लगते हैं तथा वे तब तक कुपोषित रहते हैं जब तक वे परिवार के सदस्य की तरह पूरा आहार नहीं लेते। इस अवधि के दौरान शिशुओं में अतिसार (डायरिया) की समस्या एक आम बात होती है। जिसके परिणामस्वरूप शरीर में पानी तथा इलैक्ट्रोलाइट की कमी हो जाती है और यह दशा शिशु की मृत्यु का प्रमुख कारण होती है। अनुसंधान प्रमाण इस विचार का समर्थन करते हैं कि पोषण संबंधी कारक क्षय रोग होने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, विशेष रूप से उस जनसमुदाय में जहाँ भोजन की कमी होती है। प्राइमरी हर्पीज़ सिम्प्लेक्स एक अन्य संक्रामक रोग है जो बच्चों को प्रभावित करता है, यदि वे कुपोषण से ग्रस्त हों।
यदि शिशु को विशेष रूप से स्तनपान न कराया गया हो तथा जब पूरक भोजन से शिशुओं की पोषण संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति न हुई हो तो इस अवस्था में पोषक तत्वों की कमी से होने वाले रोग भी हो जाते हैं। आइए, हम पोषक तत्वों की कमी से होने वाले उन महत्वपूर्ण रोगों की सूची बनाएँ जो बचपन में हो सकते हैं -
- प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण (पीईएम)-इसके कारण वृद्धि मंद हो जाती है और संक्रमण होने पर अतिसार (डायरिया) तथा निर्जलीकरण की संभावना बढ़ जाती है।
- रक्त की कमी (एनीमिया) - लौह तत्व की कमी होने के कारण होता है।
- पोषणात्मक अंधापन-विटामिन ए की कमी के कारण होती है।
- हड्डी से संबंधित सूखा रोग (रिकेट्स) एवं ओस्टोपीनिया-विटामिन डी एवं कैल्सियम की कमी के कारण होते हैं।
- गलगंड ( थाइरॉइड ग्रंथि का बढ़ जाना) - आयोडीन की कमी के कारण होता है।
संचारी रोगों पर पोषण के महत्वपूर्ण प्रभावों के बारे में पिछले अध्याय में प्रकाश डाला गया है। पोलियो, डिफ्थीरिया, क्षयरोग, परट्यूसिस, खसरा तथा टिटनेस जैसे 6 घातक संचारी रोग भारत जैसे विकासशील देश में मृत्युदर और रुग्णता दर को बढ़ा देते हैं। इन रोगों का अल्प आयु में होना उच्च मृत्यु दर का एक अन्य उत्तरदायी कारक है। जब संक्रमण तथा कुपोषण बच्चे में साथ-साथ हो जाते हैं तब समस्या बिगड़ जाती है। जीवन के प्रथम वर्ष में विभिन्न अवस्थाओं में कराया गया टीकाकरण बच्चों को संचारी रोगों के प्रति जीवन-पर्यंत प्रतिरक्षा (प्रतिरोधक्षमता) प्रदान करता है।
ग्रामीण तथा जनजातीय क्षेत्रों के स्वास्थ्य कंद्रों में अपर्याप्त सुविधाएँ, जलवायु दशाएँ, कुछ स्थानीय रीति-रिवाज़ जैसे - कारक, तथा उपचार के बिना जाँचे-परखे पारंपरिक तरीके, बच्चों को संक्रामक रोगों के प्रति संवेदनशील बना देते हैं। संदूषित भोजन के खतरों, खराब पर्यावरणीय स्वच्छता और अपर्याप्त व्यक्तिगत सफाई (स्वच्छता) के कारण उत्पन्न स्वास्थ्य समस्याएँ तथा संचारी रोगों को उत्पन्न करने में उनकी भूमिका के बारे में लोगों को जानकारी देने की आवश्यकता है।
अपनी प्रगति की जाँच करें
- डी.पी.टी., ओ.पी.वी. तथा बी.सी.जी. टीकों के पूरे नाम लिखिए।
- अतिसार से निर्जलीकरण कैसे होता हैं?
- शिशुओं में पोषक तत्वों की कमी से होने वाले रोगों से बचने के लिए माँ का स्वास्थ्य एवं पोषण क्यों महत्वपूर्ण है
- पूरक आहार का वर्गीकरण कीजिए।
8.3 विद्यालय-पूर्व बच्चों ( 1-6 वर्ष) का पोषण, स्वास्थ्य एवं स्वस्थता
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि विद्यालय पूर्व बच्चे बहुत ऊर्जावान, चुस्त एवं उत्साही होते हैं। शैशवावस्था में होने वाली तीव्र वृद्धि अब अपेक्षाकृत धीमी हो जाती है। किंतु बच्चा काफ़ी चुस्त-दुरूस्त रहता है। उसका शारीरिक, मानसिक तथा मनोवैज्ञानिक विकास होता रहता है।
विद्यालय-पूर्व बच्चे अभी भी अपनी खाने की आदतों में विकास कर रहे होते हैं तथा चबाने एवं निगलने का कौशल सीख रहे होते हैं। अतः यह बच्चों को पौष्टिक आहार तथा अल्पाहार खाने की सही आदत सीखाने का सबसे उत्तम समय होता है। इन दिनों सीखी गई खान-पान संबंधी अच्छी आदतें ही भविष्य में उनके भोजन व्यवहार में परिलक्षित होती हैं।
विद्यालय-पूर्व बच्चों की पोषण संबंधी आवश्यकताएँ
विद्यालय-पूर्व बच्चों की मूलभूत पोषण आवश्यताएँ परिवार के अन्य सदस्यों की पोषण आवश्यकताओं के समान ही होती हैं। इसकी आवश्यक मात्रा उम्र, कद, उसके वज़न और स्वास्थ्य स्थिति तथा उनकी सक्रियता स्तर के अनुसार अलग-अलग होती है। विकास एवं वृद्धि में सहयोग के लिए उनमें ऊर्जा की माँग भी अधिक होती है।
सारणी 4 - विद्यालय-पूर्व बच्चों के लिए पोषक तत्वों की अनुर्शंसित मात्रा | ||
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( आई.सी.एम.आर. द्वारा निर्धारित ) | ||
पोषक तत्व | वर्षों में उम्र -1 -3 वर्ष | वर्षों में उम्र $-4-6$ वर्ष |
ऊर्जा (किलो कैलोरी) | 1240 | 1690 |
प्रोटीन (ग्राम) | 22 | 30 |
वसा (ग्राम ) | 25 | 25 |
कैल्सियम ( मि. ग्रा. ) | 400 | 400 |
लौह तत्व (मि. ग्रा.) | 12 | 18 |
विटामिन - रेटनॉल (माइक्रो ग्रा.) | 400 | 400 |
अथवा बीटा केरोटीन (माइक्रो ग्रा.) | 1600 | 1600 |
थायमिन (मि. ग्रा.) | 0.6 | 0.9 |
राइबोफ़लेविन (मि. ग्रा.) | 0.7 | 1.0 |
नियासिन (मि. ग्रा.) | 8 | 11 |
विटामिन सी (मि. ग्रा.) | 40 | 40 |
पाइरिडॉक्सिन (मि. ग्रा.) | 0.9 | 0.9 |
फॉलिक अम्ल (माइक्रो ग्रा.) | 30 | 40 |
विटामिन बी-12 (माइक्रो ग्रा.) | $0.2-1$ | $0.2-1$ |
यहाँ ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि आधारभूत (बेसल) क्षतियों एवं अतिरिक्त आवश्यकताओं के कारण एक बच्चे से दूसरे में पोषक तत्वों की आवश्यकताएँ थोड़ी बहुत अलग-अलग हो सकती हैं।
विद्यालय-पूर्व बच्चों को पौष्टिक भोजन देने के लिए दिशा-निर्देश
हम जानते हैं कि अन्य आदतों की तरह बच्चों को जीवन के आरम्भ में ही खान-पान संबंधी अच्छी आदतें विकसित करनी चाहिए। उनको यह सिखाने के लिए कि “पौष्टिक खान-पान स्वस्थ जीवन शैली का एक अंग है” हर व्यक्ति को निम्नलिखित सुझावों का पालन करना चाहिए-
- भोजन करने का समय वह समय है जब परिवार एक साथ इकट्ठा होता है। परिवार का एक साथ बैठकर सुखद एवं आनंदमय वातावरण में भोजन करना बच्चों के लिए बहुत सहायक होता है। बच्चे परिवार के अन्य सदस्यों के खान-पान संबंधी व्यवहार का अनुकरण करते हैं।
- विविधता एक महत्वपूर्ण पहलू है तथा बच्चे की आवश्यकता के अनुरूप उसे थोड़ी मात्रा में विभिन्न तरह के भोजन को देना महत्वपूर्ण है। बच्चों को खाने के लिए प्लेट में रखी हर वस्तु को समाप्त करने की आदत सिखाई जानी चाहिए। साथ-ही-साथ उन्हें समाप्त करने के लिए पर्याप्त समय भी दें।
- भोजन तथा अल्पाहार देने के समय में नियमितता बरती जाए ताकि बच्चे को विधिवत् भूख लगे।
- बच्चे के पसंदीदा भोजन के साथ-साथ व्यंजन-सूची (मेन्यू) में नयी-नयी चीज़ें रखें। भोजन में रुचि जागृत करने के लिए सख्त, मुलायम एवं रंगीन भोज्य पदार्थों के मध्य संतुलन को बनाए रखना चाहिए।
- व्यंजन-सूची (मेन्यू) में ऐसे व्यंजन रखे जाएँ जिन्हें आसानी से खाया जा सके जैसे कि हाथ से खाए जाने वाले भोजन के रूप में छोटे-छोटे सैंडविच, चपाती रोल्स, छोटे आकार के समोसे, इडली, पूरा फल अथवा उबला हुआ अंडा।
- एक स्थान पर ही बच्चे को भोजन परोसिए न कि बच्चा जब इधर-उधर घूम रहा हो तब उसे भोजन दिया जाए। आप बच्चे के शारीरिक सुविधा के अनुसार उसके बैठने के लिए उपयुक्त स्थान चुन सकते हैं।
- इन सबसे अच्छा बच्चे को भोजन से पहले आराम करने दें। थका हुआ बच्चा भोजन में रुचि नहीं ले सकता।
- यह सुझाव भी है कि आप बच्चे को कोई विशेष खाद्य पदार्थ खाने के लिए किसी प्रकार का लालच या दंड कभी भी न दें।
विद्यालय-पूर्व बच्चों के लिए संतुलित भोजन की योजना बनाना
विद्यालय-पूर्व वाले सक्रिय बच्चे की ऊर्जा की आवश्यकता बड़ी महिलाओं की तुलना में अधिक होती है। इसलिए हमें उनकी कैलोरी की खपत का पता लगाने की ज़रूरत नहीं है। किंतु विकास एवं सक्रियता के स्तर को ध्यान में रखते हुए, यदि बच्चे को पौष्टिक एवं संतुलित भोजन नहीं दिया जाता है, तो वह वयस्क अवस्था तक अपना/अपनी पूर्ण आनुवंशिक क्षमताओं को प्राप्त नहीं कर सकता है/सकती है। इससे स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है। यदि बच्चों के भोजन में प्रोटीन, विटामिन ए, तथा लौह तत्व की कमी हो तो बच्चे क्रमशः कुपोषण (पी.ई.एम.), जीरोथैलमिया (विटामिन ए की कमी) तथा रक्ताल्पता (एनीमिया) से ग्रस्त हो सकते हैं। आयोडीन युक्त नमक का सार्वभौमिक उपयोग आयोडीन की कमी से होने वाले विकारों को रोकने का सबसे सरल एवं सस्ता तरीका है।
विद्यालय-पूर्व बच्चे के आहार में तीन पहलुओं पर ज़ोर दिया जाना चाहिए -
- बच्चे के पोषणात्मक भोजन एवं खाने के अनुभव को व्यापक बनाने के लिए संरचना, स्वाद, गंध एवं रंगों में विविधता,
- जटिल कार्बोहाइड्रेट्स, चर्बी रहित माँस प्रोटीन तथा आवश्यक वसा के बीच संतुलन,
- मिठाई, आइसक्रीम, वसा से भरपूर फ़ास्ट फ़ूड तथा रिफाइन्ड आटे के उपभोग पर संयम क्या तुम्हें अब अध्याय-3 में पढ़े गए पाँच खाद्य समूह याद हैं? आई.सी.एम.आर. द्वारा सुझाए गए पाँच खाद्य वर्गों से हम निर्धारित पोषक तत्वों की मात्रा के अनुसार संतुलित भोजन की योजना बना सकते हैं। दैनिक आहारों की आयोजना करते समय सभी खाद्य समूहों से खाद्य पदार्थ का चयन किया जाना चाहिए। आयोजना को अधिकाधिक सुविधाजनक बनाने के लिए आई.सी.एम. आर. ने विभिन्न आयु वर्गों के लिए आहारों का सुझाव दिया है। विद्यालय-पूर्व बच्चों के संतुलित आहार में शामिल किए जाने वाले विभिन्न खाद्य समूहों की मात्रा के लिए हम नीचे सारणी 5 को देख सकते हैं।
( आई.सी.एम.आर. द्वारा अनुशंसित ) | |||
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क्र.सं. | खाद्य समूह | मात्रा ( ग्राम ) | |
1-3 वर्ष | $4-6$ वर्ष | ||
1. | अनाज एवं मिलेट (ज्वार-बाजरा आदि) | 120 | 210 |
2. | दालें | 30 | 45 |
3. | दूध (मिली) | 500 | 500 |
4. | फल तथा सब्ज़ियाँ जड़ें तथा कंद हरी पत्ती वाली सब्ज़ियाँ अन्य सब्ज़ियाँ फल |
50 50 50 100 |
100 50 50 100 |
5. | चीनी घी/तेल |
25 20 |
30 25 |
अब हम विद्यालय-पूर्व बच्चे के लिए तीन आहार एवं दो अल्पाहार तैयार कर सकेंगे। आपको आश्चर्य हो रहा होगा कि अल्पाहार (स्नैक्स) क्यों? इसका कारण है विद्यालय-पूर्व बच्चे के लिए तीनों आहारों को पर्याप्त मात्रा में खा पाना मुश्किल है, अतः आहारों के मध्य पौष्टिक अल्पाहार (स्नैक्स) बच्चों को आवश्यक कैलोरी एवं पोषक तत्व प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त नये खाद्य-पदार्थों को शुरू करने के लिए अल्पाहार अच्छा होता है। अल्पाहार स्कूल वाले टिफ़िन में भी भेजे जा सकते हैं।
आइए हम स्थिति पर नज़र डालें तथा विश्लेषण करें कि हम विद्यालय-पूर्व बच्चे के लिए अल्पाहार (स्नैक्स) एवं आहारों की योजना किस प्रकार बना सकते हैं?
कामकाजी माँ अपर्णा का एक चार वर्ष का बेटा राघव है। उसके लिए वह जो आहार बनाती है, वह इस प्रकार है -
सुबह का नाश्ता - तीन बादाम तथा 5-6 किशमिश के साथ दूध में पकाया गया गेूूँ का दलिया और एक सेब
स्कूल टिफ़िन - इसमें मसले हुए उबले अंडे के साथ दो बड़े सैंडविच, कदूकस किया हुआ गाजर और चटनी तथा पेय के रूप में फल का जूस होता है।
दोपहर का भोजन - जिसे उसने उसके लिए तैयार करके रखा वह है पालक-चावल, दही तथा उबले हुए चने एवं टमाटर की चाट।
वह शाम के अल्पाहार के लिए दूध का शेक, उसकी पसंद का स्नैक तथा थोड़ी-सी मूंगफली देने की योजना बना रही थी।
रात्रि के भोजन के लिए दाल/चिकन, चपाती तथा एक पकाई गई मौसमी सब्ज़ी।
अब आप अपर्णा द्वारा अपने इस बच्चे के लिए संतुलित आहार की योजना बनाने एवं परोसने के स्तर को कैसे जाँचेंगे।
ग्रामीण बच्चों को दिए जाने वाले अल्पाहार में प्रायः मुरूक्कु, लड्डू, उपमा, मटी, चुरूटु जैसे सामान शामिल होते हैं। चूँकि ये प्रायः पारंपरिक रूप से निर्मित होते हैं, अतः वे पौष्टिक होते हैं किंतु इनमें वसा एवं शर्करा की प्रचुरता समृद्ध होती हैं। ग्रामीण बच्चों के अत्यधिक सक्रिय होने के कारण उनकी ऊर्जा आवश्यकता बढ़ जाती है और इसलिए उनकी इन ज़रूरतों के अनुसार पर्याप्त कैलोरी देने में ये अल्पाहार (स्नैक्स) लाभदायक हो सकते हैं।
कम लागत वाले अल्पाहार ( स्नैक्स) के कुछ उदाहरण
- सोयाबीन की दाल तथा सूरजमुखी के बीज को समान मात्रा में लेकर उन्हें पीसना, मिलाना एवं इस मिश्रण का खमीर उठाना।
- मीठी चिक्की (पारम्परिक मूंगफली चिक्की) भारत के ग्रामीण क्षेत्रों एवं कस्बों में काफ़ी पसंद की जाती है।
- देशी खाद्य पदार्थ जैसे-चावल, लोबिया, काले चने तथा चौलाई का आटा और गुड़ समान मात्रा में मिलाकर इससे मूँगफली का तेल डालकर विभिन्न प्रकार के स्नैक्स तैयार किए जाते हैं।
- संदल, प्यासम, ढोकला तथा उपमा भी प्रसिद्ध अल्पाहार हैं।
- मौसमी एवं स्थानिक रूप से उपलब्ध सब्ज़यो से सब्जी का सूप तैयार किया जाता है। यहाँ तक कि बची-खुची सब्ज़ियों, दालों एवं अनाजों को भी मिलाया जा सकता है।
- मसालेयुक्त भुने हुए आलू (बेक्ड)
- पास्ता (नूडल्स अथवा मैकरोनी) पनीर, तथा सब्ज़ियो के साथ।
- चावल, गेहूँ अथवा मक्का का आटा अथवा अन्य उत्पादों से निर्मित चिवड़ा में मौसमी सब्ज़ियाँ डालकर सॉस के साथ परोसा जा सकता है।
क्रियाकलाप 2
आप से एक चार वर्षीय बच्चे की एक दिन प्रातः 10 बजे से सायं 6 बजे तक देखभाल करने के लिए कहा गया है। संतुलित आहार को ध्यान में रखते हुए सुझाव दीजिए कि उसके आहार और अल्पाहार में आप क्या देंगे?
विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों को खिलाना
प्रायः भोजन के समय विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों को खिलाना चुनौतियों वाला कार्य है। भोजन एवं अन्य पोषण संबंधी मुद्दों पर उनकी सहायता करते हुए तीन मुख्य पहलुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए -
प्रेक्षण - भोजन के समय बच्चे के व्यवहार एवं प्रगति पर बारीकी से निगाह रखिए। भोजन, भोजन के प्रति रुचियों और अरुचियों, एलर्जी तथा किसी विशिष्ट स्थिति से निपटने में उसकी योग्यता पर ध्यान दीजिए। उन्हें उस कौशल को विकसित करने में मदद कीजिए जिसकी उन्हें पर्याप्त पोषण प्राप्त करने एवं भोजन करने के समय का सुखद अनुभव करने की आवश्यकता है।
भोजन करने के कौशल का विकास करना - अशक्त बच्चों को भोजन करने के लिए अधिक समय की आवश्यकता की संभावना रहती है। वे प्रायः स्वयं को खिलाने के लिए संघर्ष करते हैं तथा भोजन इधर-उधर बिखेरकर बड़ी अव्यवस्था देते हैं। सीखने की प्रक्रिया के दौरान गलती करने के लिए उन्हें भी दण्डित न करें। (उन्हें प्रेरित करने और अवरोध से बचने के लिए मात्र सकारात्मक प्रतिबल पर ज़ोर दें।)
सुनिश्चित कीजिए कि बच्चा आरामदायक स्थिति से बैठा है और यदि वह स्वयं खा सकता/ सकती है तो उसे आप स्वयं खाने दें। इस तरह के कौशल को विकसित करने में उनकी सहायता करें।
जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है उसे जटिल संरचनाओं वाले खाद्य को स्वयं ही अच्छी तरह खाने दें। यदि आवश्यकता पड़े तो अनुकूलित उपकरणों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
बच्चे की खाद्य वरीयता, भोजन स्थल का चुनाव तथा वह खाना चाह रहा है या नहीं आदि बातों का सम्मान कीजिए। खान-पान का समय नियमित करने का प्रयास कीजिए।
विशेष आहार - कुछ बच्चों को उनकी योग्यता के आधार पर उनके आहारों एवं दैनिक आहार के समय में परिवर्तन की आवश्यकता पड़ सकती है। स्पास्टिक बच्चों को विभिन्न खाद्य संरंचनाओं वाला खाद्य पदार्थ अप्रिय लग सकता है। पतले तरल पदार्थ को गाढ़ा किया जा सकता है तथा सूखे अथवा ढेलेदार भोजन को टुकड़ों मे काटा अथवा मुलायम बनाया जा सकता है ताकि इसे बच्चा आसानी से निगल सके। यदि आवश्यकता पड़े तो फ़ीडिंग ट्यूब का इस्तेमाल किया जा सकता है।
कुछ अशक्त बच्चों में मोटे होने की प्रवृत्ति होती है जिससे भोजन करना कठिन हो जाता है। स्वलीनता रोग (ऑटिज्म) वाले बच्चों में स्वाद अथवा गंध की इंद्रियाँ परिवर्तित हुई होती हैं जिसके कारण भोजन ग्रहण करने के उनके गुण पर दुष्प्रभाव पड़ता है। उनकी पसंद को ध्यान में रखते हुए अतिरिक्त वसा, सीमित तरल पदार्थ, विशेष फार्मूला अथवा अन्य आहार संबंधी परिवर्तन किए जा सकते हैं।
वे सभी खाद्य पदार्थ जिसके प्रति विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चे को एलर्जी है, उन्हें उसके आहार से तुरंत हटा दिया जाए क्योंकि इससे नुकसान हो सकता है।
प्रतिरक्षण
संचारी रोगों का सामना करने के लिए अब कुछ टीके उपलब्ध हैं। नीचे सारणी 6 को देखें तथा ध्यान दें कि विद्यालय-पूर्व बच्चों को डी.पी.टी. एवं ओ.पी.वी. की बूस्टर खुराक के अतिरिक्त एम.एम.आर. तथा टाइफॉइड के टीके लगाए जाने हैं।
सारणी 6 - विद्यालय-पूर्व बच्चों के लिए प्रतिरक्षण कार्यक्रम | |
---|---|
बच्चे की उम्र | टीका |
$15-18$ माह | एम.एम.आर. (खसरा, कनपेड़ा एवं रूबेला) |
16 माह-2 वर्ष | डी.पी.टी., ओ.पी.वी. - बूस्टर खुराक |
2 वर्ष | टाइफॉइड टीका |
5 वर्ष | डी टी |
10 वर्ष से 16 वर्ष | टिटनेस टॉक्सॉइड (टीटी) |
18, 24, 30, 36 माह | विटामिन ए (ड्राप्स) |
अब तक क्या सीखा
1. आपके चार वर्षीय बच्चे को कितनी किलो कैलोरी ऊर्जा की आवश्यकता होती है?
2. विद्यालय-पूर्व बच्चों के आहार में आयोडीन, लौह तत्व, कैल्सियम तथा प्रोटीन का क्या महत्त्व है?
3. विद्यालय-पूर्व बच्चों के लिए आहारों की योजना बनाते समय किन तीन पहलुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए?
4. विद्यालय-पूर्व बच्चों के आहार में स्नैक्स क्यों महत्वपूर्ण है?
5. एम.एम.आर. टीका किस लिए लगाया जाता है?
8.4 विद्यालय जाने वाले बच्चों का स्वास्थ्य, पोषण एवं स्वस्थता ( $7-12$ वर्ष )
विद्यालय जाने वाले बच्चे शारीरिक रूप से अत्यंत ही सक्रिय होते हैं। संचारी रोगों से बच्चा अब ज़्यादा प्रभावित नहीं होता, क्योंकि इस अवस्था तक वह काफ़ी शक्तिशाली हो जाता है। आप देखेंगे कि अब विकास प्रक्रिया अपेक्षाकृत धीमी हो जाती है। शरीर में धीरे-धीरे परिवर्तन होने लगता है, विशेष रूप से 9 से 10 वर्ष तथा उससे आगे के वर्षो में बालक एवं बालिकाओं के विकास के पैटर्न में भिन्नता दिखाई देती है।
विद्यालय जाने वाले (विद्यालयी) बच्चों की पोषण संबंधी आवश्यकता
यद्यपि यह वृद्धि की एक अव्यक्त अवधि है अर्थात वृद्धि स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर नहीं होती परंतु अब बच्चे की अनेक गतिविधियों के कारण उसकी दिनचर्या व्यस्त होती है। इसलिए उसकी ऊर्जा को बचाए रखना बहुत महत्वपूर्ण है। 9 वर्ष की आयु तक के बालक एवं बालिकाओं दोनों के लिए पोषण संबंधी आवश्यकताएँ समान होती हैं। उसके पश्चात् बालक एवं बालिका की कुछ पोषक तत्वों की आवश्यकताओं में अंतर आ जाता है। आपको याद होगा कि बालिकाओं के लिए ऊर्जा की आवश्यकता लगभग वही रहती है किंतु अस्थि की वृद्धि एवं मासिक स्राव की तैयारी में सहायता के लिए उन्हें प्रोटीन, लौह तत्व तथा कैल्सियम की अधिक मात्रा की आवश्यकता पड़ती है। 10-12 वर्ष के लड़कों को अधिक कैलोरी की आवश्यकता पड़ती है ताकि किशोरावस्था के दौरान उनकी वृद्धि में तेज़ी के लिए कैलोरी के पर्याप्त संचय (रिजर्व) को बनाए रखा जा सके।
सारणी 7 - विद्यालय जाने वाले बच्चों की पोषक तत्चों की अनुर्शंसित मात्रा ( 7-12 वर्ष)
$\qquad$ ( आई.सी.एम.आर. द्वारा अनुशंसित ) | |||
पोष | आयु (वर्षों में) | ||
7.9 | 10.12 | ||
बालक | बालिका | ||
ऊर्जा (कि. कैलोरी) | 1950 | 2190 | 1970 |
प्रोटीन (ग्राम) | 41 | 54 | 57 |
वसा (ग्राम) | 25 | 22 | 22 |
कैल्सियम (मि. ग्रा.) | 400 | 600 | 600 |
लौह तत्व (मि. ग्रा.) | 26 | 34 | 19 |
विटामिन ए रेटिनॉल (माइक्रो ग्राम) अथवा बी केरोटीन (माइक्रो ग्राम) |
600 | 600 | 600 |
2400 | 2400 | 2400 | |
थायमिन (मि. ग्रा.) | 1.0 | 1.1 | 1.0 |
राइबोलेविन (मि. ग्रा.) | 1.2 | 1.3 | 1.2 |
पाइरिडॉक्सिन (मि. ग्रा.) | 1.6 | 1.6 | 1.6 |
फोलिक अम्ल (माइक्रो ग्राम) | 60 | 70 | 70 |
ऐस्कार्बिक अम्ल (मि. ग्रा.) | 40 | 40 | 40 |
विटामिन बी 12 (मि. ग्रा.) | 0.2 .1 | 0.2-1 | 0.2-1 |
नियासिन (मि. ग्रा.) | 13 | 15 | 13 |
विद्यालय जाने वाले बच्चों के लिए आहार योजना
विद्यालय पूर्व बच्चों के लिए आहार योजना के सभी पहलुओं तथा दिशा-निर्देशों का अनुसरण करते हुए ऐसा लग सकता है कि विद्यालय जाने तक बच्चे आहार अंतर्ग्रहण का एक विशेष पैटर्न स्थापित कर लेते हैं। कुछ सीमा तक आप सही हैं किंतु विद्यालयगामी बच्चों के लिए संतुलित आहार की योजना अन्य पहलुओं से भिन्न हो सकती है। आइए हम इन पर संक्षेप में चर्चा करें-
विविधता लाना - हम जानते हैं कि कोई भी एक भोजन निर्धारित मात्रा में सभी पोषक तत्व प्रदान नहीं कर सकता जिनकी बच्चे को प्रतिदिन आवश्यकता पड़ती है। अतः विविध प्रकार के भोजन या खाद्य पदार्थ खाना सबसे अधिक तर्कसंगत पोषण संदेश है। विविधता होने से नए खाद्य-पदार्थों को स्वीकार किए जाने की संभावना भी बढ़ जाती है।
अच्छा पोषण सुनिश्चित करना - हम जानते हैं कि इस उम्र में बच्चों को अपेक्षाकृत अधिक प्रोटीन, कैल्सियम, लौह तत्व तथा आयोडीन की आवश्यकता पड़ती है। उन्हें सब्ज़यों, फल, साबुत अनाज खाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। फल तथा सब्ज़़याँ उनके आहारों में वृहत् पोषक तत्वों की सघनता को बेहतर करती हैं तथा साबुत अनाज हृदय रोग तथा मधुमेह जैसे रोगों के खतरों को कम करते हैं। जैसा कि पहले बताया जा चुका है, आयोडीन युक्त नमक आयोडीन की कमी से बचने का सबसे सरल रास्ता है।
संतृप्त वसा, नमक एवं चीनी का सीमित मात्रा में सेवन - आप जानते हैं कि स्कूल जाने वाले बच्चों का विकास अब धीमा हो गया है। कुल कैलोरी में से 20 प्रतिशत कैलोरी वसा के रूप में ली जानी चाहिए। वसा एवं चीनी की प्रचुरता वाले आहार मोटापे के खतरे तथा इसे संबंधित समस्याओं को बढ़ाते हैं। अधिक चीनी युक्त खाद्य-पदार्थ दांत संबंधी बीमारियों का कारण बनते हैं। सोडियम का अधिक मात्रा में सेवन रक्तदाब को बढ़ा सकता है। जिसके फलस्वरूप लकवा, गुर्दा एवं हृदय की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। क्या आप जानते हैं कि आजकल छोटे बच्चे भी प्रायः मधुमेह, तथा उच्च रक्तदाब का बार-बार शिकार हो रहे हैं।
नाश्ता अवश्य करें - नाश्ता एक विशेष आहार है। इसमें प्रोटीन एवं ऊर्जा अधिक-सेअधिक होनी चाहिए। रातभर खाली पेट रहने के उपरांत बच्चे को सुबह का नाश्ता कभी भी छोड़ने नहीं देना चाहिए। सुबह का नाश्ता न खाने से उसके शारीरिक एवं मानसिक कार्य निष्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, तथा कैलोरी एवं पोषक तत्वों की क्षति शेष दिन में पूरी नहीं की जा सकती।
भोजन बनाने की योजना में बच्चों को शामिल करें - जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं उन्हें उनके भोजन की योजना में शामिल किया जाना चाहिए। इससे उनकी पौष्टिक खाना खाने में रुचि बढ़ेगी। अमृता का 8 वर्ष का एक बेटा तथा एक 10 वर्ष की बेटी है। वह, उनके पसंद एवं संतुलित आहारों की योजना बनाने के लिए उनसे विचार-विमर्श करती है। वह उन्हें सामग्री खरीदने के लिए अपने साथ ले जाती है तथा उन्हें यह भी बताती है कि कच्ची भोजन सामग्री खरीदते समय क्या-क्या ध्यान में रखना चाहिए। क्या आप नहीं सोचते हैं कि वह उनके पौष्टिक भोजन परोसने के कार्य को आकर्षक बना देती है? इसके अतिरिक्त, बच्चों को उनकी उम्र के अनुरूप अपने भोजन को पकाने तथा परोसने के समुचित कार्य सिखाती है। ऐसा करने से बच्चों का उत्साह बढ़ता है और उनमें भोजन के प्रति स्वस्थ और सकारात्मक धारणाएँ विकसित होती हैं।
संतुलित भोजन की योजना बनाने के दिशा-निर्देशों का अनुपालन करने के अतिरिक्त, स्कूल जाने वाले बच्चों द्वारा खाए जाने वाले भोजन की मात्रा जो आई.सी.एम.आर. द्वारा अनुशंसित है, के लिए सारणी-8 को देखिए।
सारणी 8 - विद्यालयी बच्यों के लिए संतुलित आहार (आई.सी.एम.आर. )
क्र.सं. | खाद्य वर्ग | मात्रा (ग्राम) | ||||||||||||||
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10-12 वर्ष | |||||||||||||||
लड़का | लड़की | |||||||||||||||
1. | अनाज एवं मिलेट (ज्वार-बाज़ार इत्यादि) | 270 | 330 | 270 | ||||||||||||
2. | दालें एवं फलियाँ | 60 | 60 | 60 | ||||||||||||
3. | दुग्ध एवं उनके उत्पाद | 500 | 500 | 500 | ||||||||||||
4. |
फल तथा सब्ज़ियाँ जडें एवं कंद हरे पत्ते वाली सब्जियाँ अन्य सब्जियाँ, फल |
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5. | चीनी वसा(घी) |
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अमृता विद्यालय जाने वाले अपने बच्चों को तीन संतुलित भोजन एवं दो पौष्टिक स्नैक्स परोसने का खास खयाल रखती है। आइए, हम आज उसके द्वारा तैयार किए गए आहार सूची को देखें। आप परस्पर संदर्भ के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
- सुबह का नाश्ता- दूध एवं कॉर्नफ़्लेक्स, रवा उपमा तथा एक सेब अथवा कोई मौसमी फल
- स्कूल टिफ़िन - अपनी बेटी के लिए अंडा भरकर बनाए गए ग्रिल्ड सैंडविच किंतु बेटे के लिए पनीर भरकर बनाए गए सैंडविच (जिसे अंडे से एलर्जी है) तथा फल का रस।
- दोपहर का भोजन - सब्ज़्यो का पुलाव, सलाद के लिए टमाटर एवं खीरे के टुकड़े तथा छाछ।
- शाम का अल्पाहार - उबले हुए आलू एवं अंकुरित मूंग की चाट
- रात्रि भोजन - चने की दाल अथवा चिकन करी, ओकरा (भिंडी) एवं प्याज की सब्जी, रोटी तथा कच्चा सलाद।
दक्षिण के ग्रामीण क्षेत्रों में नाश्ते में उपमा (केले के साथ), पूतू (चना अथवा केले के साथ), इडली अथवा डोसा (साम्बर/नारियल की चटनी के साथ) अथवा अप्पमा, (आलू/चिकन करी के साथ) अथवा उत्तर में छाछ के साथ परांठे या आलू के साथ पूड़ी जैसे खाद्य-पदार्थ खाए जाते हैं। कटहल और सूखे मेवों की पेस्ट को चावल के आटे में भरकर भाप से पकाना या चावल के आटे को सांचों में से पतली सेवियों के रूप में निकालकर भाप से पकाना भी अल्पाहार के ही रूप हैं। मुरूक्कु एक अन्य खाद्य पदार्थ है जो बच्चों को स्नैक के रूप में परोसा जा सकता है। जनजातीय क्षेत्रों में जंगल से एकत्र किए गए भोजन जैसे सूखे मेवे, बेर तथा पेड़ों से प्राप्त अन्य फलों/फूलों पर ज़ोर दिया जाता है। दोपहर एवं रात्रि के भोजन में रोटी तथा चावल, दाल/दाल तथा एक सब्ज़ी हो सकती है।
क्रियाकलाप 3
मान लीजिए आपकी एक 9 वर्षीया बहन तथा 11 वर्षीय भाई है, दोनों शाकाहारी हैं। सुझाव दीजिए कि आप उन्हें सुबह के नाश्ते एवं रात्रि के भोजन में क्या परोसेंगे?
विद्यालय-पूर्व बच्चे एवं विद्यालय जाने वाले बच्चों की आहार मात्रा को प्रभावित करने वाले कारक
बच्चे के भोजन की सभी योजना एवं तैयारियों के बावजूद ऐसे अवसर आते हैं कि छोटा बच्चा कुछ महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से वंचित रह जाता है। क्या आप जानते है क्यों? क्योंकि बच्चे की खान-पान की आदतें विकसित हो रही होती हैं तथा बहुत से कारक इन आदतों को प्रभावित कर रहे होते हैं। इन पर नीचे चर्चा की जा रही है-
पारिवारिक माहौल - सामान्य तौर पर, जो परिवार में बच्चों के पालन-पोषण के लिए सकारात्मक तरीकों का प्रयोग करते हैं, वे उनके समग्र-विकास को प्रोत्साहित करते हैं। सामान्यतया हम देखते हैं कि कोई परिवार अपने स्कूली बच्चों को आहार संबंधी मार्गदर्शन देते हैं, आहार के प्रति अभिरुचि बढ़ाने का प्रयास करते हैं तथा उनके आहार पैटर्नों को सुनिश्चित करते हैं। इसलिए माता-पिता को पोषण संबंधी उचित ज्ञान प्राप्त करना चाहिए तथा इसे अपने बच्चों के आहार योजना बनाने में इस्तेमाल करना चाहिए। सुखद एवं आरामदेह वातावरण में साथ-साथ खाना अच्छी भोजन की आदतों एवं पोषक तत्वों के ग्रहण करने के लिए उपयुक्त होता है।
संचार माध्यम - टी.वी. विज्ञापन और उनके लोकप्रिय फिल्मी कलाकार जो उत्पादों का समर्थन करते हैं, गहरा प्रभाव डालते हैं। अधिक खुलापन, अधिक स्वतंत्रता तथा इन सबसे ऊपर आकर्षक नारे इस उम्र के बच्चों को आकर्षित करते हैं। विज्ञापनों द्वारा दिए गए संदेशों से आकर्षित होकर वे उन्हीं भोजनों पर ज़ोर देते हैं जिनमें रेशे की कमी होती है, चीनी तथा वसा एवं सोडियम ज़्यादा मात्रा में होते हैं। इसी तरह त्योहारों के दौरान नुकसानदेह चीज़ें मिलाकर बनाए गए भोजनों का आकर्षण उन्हें भोजन के बीच अल्पाहार लेने के लिए विवश कर देता है जिनके कारण नियमित भोजन के लिए उनकी भूख कम हो जाती है। एक अनुकूल पारिवारिक पर्यावरण होने से इस मुद्दे से निपटने में मदद मिलेगी।
मित्र मंडली - जैसे ही बच्चा विद्यालय में प्रवेश करता है, तब हमउम्र मित्र समूह द्वारा स्थापित मानकों के कारण, माता-पिता के मानकों पर उसकी निर्भरता में परिवर्तन होता है। इसलिए घर पर ली जा रही भोजन मात्रा में दोस्त द्वारा खाई जाने वाली मात्रा के प्रभाव के कारण परिवर्तन हो सकता है। पोषक तत्वों के मामले में पर्याप्तता इस उम्र के बच्चों को उपलब्ध भोजन पर निर्भर नहीं करती हैं किंतु उस पर निर्भर करती है जो उसके दोस्त खाते हैं। बच्चे प्रायः दोस्तों के साथ बैठकर अच्छी तरह खाते हैं। विद्यालय के लिए दिया गया भोजन प्रायः खत्म हो जाता है। जब वे अपने मित्रों के साथ खाते हैं, तो वे नए भोजन खाने के इच्छुक होते हैं जिसे वे अन्यथा मना कर देते हैं। विद्यालय-पूर्व बच्चों में अच्छी खान-पान की आदतों की दिशा में एक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए सामूहिक व्यवस्था का होना सर्वोत्तम है।
सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव - प्रत्येक क्षेत्र का अपना विशिष्ट भोजन एवं स्वाद होता है। प्रायः परिवार युवा बच्चों को वही भोजन परोसता है जो बड़े लोग खाते हैं। परिवार के साथ खाने से बच्चों को अपने क्षेत्र एवं अन्य क्षेत्र के भी विशिष्ट भोजन खाने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। उदाहरण के रूप में, भारत के उत्तरी भाग में बच्चे इडली तथा स्वादिष्ट डोसा जैसे दक्षिणी भोजन को खाने का लुत्फ़ उठाते हैं, जबकि दक्षिणी राज्यों में बच्चे उत्तर का परांठा एवं राजमा चावल पसंद करते हैं।
अनियमित भूख - आप देख सकते हैं कि बच्चा एक भोजन अच्छी तरह खा सकता है जबकि उसके साथ-साथ दूसरे खाद्य-पदार्थ को मना कर सकता है। इससे चिंता नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह अस्थायी मनोदशा होती है तथा यदि प्रलोभन, दण्ड अथवा कठोर नियम लागू न किए जाएँ तो गायब हो जाती है।
स्वस्थ आदतें
अब आप समझ सकते हैं कि अच्छा स्वास्थ्य शारीरिक एवं भावनात्मक स्वस्थता का मिश्रण है। पोषक तत्वों के मामले में पर्याप्त भोजन के अतिरिक्त विद्यालय जाने वाले बच्चों को कुछ स्वस्थ आदतें विकसित करने की आवश्यकता होती है।
- खान-पान की अच्छी आदतें विकसित करना - इस उम्र में बच्चे कभी-कभी ज़्यादा टी.वी. देखते-देखते व एक ही जगह चिपके बैठे रहते हैं और कोई शारीरिक कार्य नहीं करते हैं। राधा के पास इस जैसी समस्या का एक समाधान है। वह बाउल भरकर फल तथा सब्जी तैयार करती है जिसमें ढेर सारे सलाद के पत्ते, कुछ सूखे मेवे/अंकुरित/उबले हुए चने/भाप द्वारा पकाई गई फलियाँ अथवा गाजर/टोफू अथवा पनीर के टुकड़े होते है तथा यह आकर्षक रूप से सजी होती है इन्हें भरपूर मात्रा में परोसती हैं। वह कहती हैं कि वह उन्हें काल्पनिक नाम देते हुए मिश्रण में अदला-बदली करती रहती हैं।
- शारीरिक गतिविधि के लिए प्रोत्साहित करना - स्वस्थ खान-पान एवं शारीरिक गतिविधि साथ-साथ चलती है तथा 45-60 मिनट की सीमित गतिविधि में अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं। सीमित समय के लिए टेलीविज़न देखने दें और खेल को बढ़ावा दें। बच्चों को विद्यालय एवं समुदाय की पाठ्येतर गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके लिए माता-पिता को सक्रिय जीवन शैली एवं स्वस्थ खान-पान के तरीकों का एक आदर्श बनना होगा।
- भोजन की सुरक्षा सुनिश्चित करना - बच्चों को स्वच्छ स्थितियों में खाने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। भोजन को खाने के पहले वह स्वच्छ एवं सुरक्षित होना चाहिए। खाने से पहले हाथ धोने चाहिए। फल और सब्ज़ियो को भी खाने से पहले धो लेना चाहिए। मेरी पड़ोसन कांता अपने बच्चों को धोने, काटने, मिलाने, पकाने (अपनी देख-रेख में) में शामिल करती हैं। स्वच्छ माहौल में भोजन बनाना एवं खाना उनकी आदत बन गई है।
- आहार की मात्रा पर नियंत्रण सुनिश्चित करना - 9-12 वर्ष के बच्चे अपनी भूख के बारे में बता सकते हैं। यदि वे खाना न चाहते हों तो हमें उनको अधिक खाने के लिए बाध्य नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से वे पेट-भरने की अनुभूति को समझ नहीं पाएंगे। भोजन का इस्तेमाल प्यार दिखाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, जब तक बच्चा स्वस्थ है, कोई एक नियमित भोजन छोड़ना कोई समस्या नहीं हैं। लेकिन इसे आदत नहीं बनाना चाहिए।
विद्यालयी बच्चों को स्वास्थ्य एवं पोषण संबंधी मुद्धे
प्रतिरक्षण कार्यक्रमों एवं पौष्टिक भोजन के तरीकों के अनुपालन में माता-पिता के संयुक्त प्रयास से इस समय तक बच्चा कभी-कभी होने वाले खांसी, ज़ुकाम जैसे रोगों से लड़ने के लिए काफ़ी मज़बूत हो जाता है।
आप जानते होंगे कि अब बच्चों में मोटापा स्वास्थ्य के लिए खतरा बनता जा रहा है। ऐसा, आहार में अत्यधिक वसा युक्त भोजन, अधिक नमक, कम रेशा एवं चीनी मिले पेय के कारण है। असक्रिय जीवन-शैली इस स्थिति को और गंभीर बना देती है। यह समस्या हमारे समाज के उच्च सामाजिक-आर्थिक वर्गों के बच्चों के मध्य अधिक है।
टाइप 2 मधुमेह तथा अतिरिक्त रक्तदाब - पहले यह रोग बच्चों में बहुत ही कम पाया जाता था किंतु आजकल यह बच्चों में बहुत अधिक हो रहा है। ऐसा बाल्यावस्था में मोटापे के बढ़ने से है।
अल्पपोषण - निम्न सामाजिक-आर्थिक समूहों के मध्य यह एक गम्भीर स्वास्थ्य संकट है। गरीब परिवारों के बच्चों को खाली पेट विद्यालय जाना पड़ता है। परिणाम यह होता है कि ये कुपोषित बच्चे विद्यालय में शिक्षा में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं। बल्कि उनमें रुग्णता एवं मृत्यु का अत्यधिक जोखिम मंडराता रहता है।
हमारी सरकार द्वारा कार्यान्वित मध्याह्न भोजन योजना (MDMS) के अंतर्गत विद्यालय में पहली से आठवों कक्षा वाले बच्चों को निःशुल्क भोजन प्रदान किया जाता है। इस योजना के अच्छे परिणाम दिखाई पड़े हैं। अध्यापक बताते हैं कि कक्षा में उनका कार्य निष्पादन एवं ध्यान लगा पाने में काफ़ी सुधार हुआ है। न केवल विद्यालय में नामांकन बढ़ा है अपितु विद्यालय छोड़ने की दर में भी कमी आई है। मध्याह्न भोजन की योजना के कारण विद्यालयी बालिकाओं की संख्या बढ़ने से शिक्षा में लिंग भेद कम हुआ है।
अपने देश में हम अल्पपोषण तथा अतिपोषण की दोहरी समस्या का सामना करते हैं। इसलिए यदि हम पौष्टिक भोजन के लाभों का प्रचार करते रहें तो भविष्य में इसका प्रभाव पड़ेगा। इसके अतिरिक्त निःशुल्क स्वास्थ्य जाँच एवं उपचार प्रदान करने वाले “विद्यालय स्वास्थ्य” कार्यक्रमों से बच्चे के स्वस्थ रहने में सुधार आएगा।
बच्चों के समग्र विकास के लिए संबंधित देखभाल एवं गुणवत्ता वाली शिक्षा की ज़रूरत है। इस पर अगले अध्याय में चर्चा की जाएगी।
महत्वपूर्ण शब्द एवं उनका अर्थ
पूरक भोजन - माँ के दूध के अतिरिक्त बच्चों के आहार में अन्य खाद्य पदार्थों को शामिल करना।
कुपोषण - यह अल्पपोषण एवं अतिपोषण से संबंधित है। अल्पपोषण में पोषक तत्व की कमी से शरीर प्रभावित होता है तथा अतिपोषण में अतिरिक्त पोषक तत्वों की वजह से शरीर प्रभावित होता है।
मोटापा - शरीर में अतिरिक्त वसा का जमाव जिसके फलस्वरूप शरीर का वज़न बढ़ता है तथा वह सामान्य स्तर से अधिक हो जाता है। यह शारीरिक उपापचय तथा शारीरिक गतिविधियों पर खर्च की जा सकने वाली कैलोरी की अपेक्षा अधिक कैलोरी लेने के कारण है।
उच्च रक्तदाब - रक्तदाब का सामान्य से अधिक होना।
मधुमेह - शरीर में इंसुलिन की कमी जिसके फलस्वरूप रक्त में शर्करा एवं मूत्र में शर्करा की उपस्थिति में वृद्धि हो जाती है।
- अंत में कुछ प्रश्न
1. हमें विद्यालय जाने वाले बच्चे के आहार में संतृप्त वसा, अतिरिक्त चीनी तथा नमक की मात्रा को सीमित क्यों करना चाहिए?
2. भोजन की योजना बनाने में बच्चों को शामिल करना स्वस्थ खान-पान में किस प्रकार सहायक होता है?
3. बचपन में मोटापे में वृद्धि हो रही है। कारण बताइए?
4. “मध्याह्न भोजन योजना” से किस प्रकार बच्चों के स्वास्थ्य एवं विद्यालय के कार्य निष्पादन में वृद्धि हुई है?
- प्रस्तावित क्रियाकलाप
(क) आप अपने पैतृक गाँव अथवा किसी अन्य गाँव में जा रहे हैं जहाँ आप पाते हैं कि बच्चे कुपोषित हैं और इसके कारण होने वाले रोगों के शिकार हैं। यदि आपको बच्चों के माता-पिता से बात करने के लिए कहा जाए तो आप किसके बारे में बात करेंगे?
(i) बच्चों की रोगों से सुरक्षा करने के लिए पर्याप्त पोषण की भूमिका?
(ii) छोटे बच्चों के लिए संतुलित भोजन की योजना?
(iii) संचारी रोग तथा प्रतिरक्षण का महत्त्व?
(iv) विद्यालय पूर्व वर्षों के दौरान प्रतिरक्षण कार्यक्रम?
(ख) आपके पड़ोसी का दो वर्षीय बच्चा बार-बार डायरिया से पीड़ित होता है। उसको इसके बारे में बताएँ-
- शिशुओं की पोषण संबंधी आवश्यकता
- शिशु के स्वास्थ्य एवं विकास के लिए अनन्य स्तनपान का महत्त्व।
- अल्प लागत वाले पूरक भोजन तथा स्थानीय रूप से उपलब्ध भोजन पदार्थों से उनका निर्माण
(ग) विद्यालय जाने वाले बच्चों में पौष्टिक भोजन करने की आदतें विकसित करने के लिए उपायों की सूची बनाइए एवं उनकी व्याख्या कीजिए।
(घ) पोषण संबंधी मुद्दों सहित विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की सहायता करने के लिए उन पहलुओं की व्याख्या कीजिए जिन्हें आप ध्यान में रखेंगे -
(i) प्रेक्षण (निगरानी)
(ii) शारीरिक गतिविधियाँ
(iii) खाने के कौशल का विकास
(iv) विविधता
(v) विशेष आहार
(ङ) परिवार, संचार माध्यम एवं दोस्त बच्चों की भोजन की मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?