अध्याय 06 संचार माध्यम और संचार कौशल

संचार माध्यम और संचार अध्ययन का एक ऐसा महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसका किशोरों पर प्रभाव पड़ता है। इस अध्याय में हम यह चर्चा करेंगे कि हमारी प्रतिदिन की पारिस्थितिकी के ये दो पहलू कैसे हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं, जो सामान्यतया हमारे जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं। हम पहले संचार की संकल्पना से शुरू करेंगे।

6.1 संचार और संचार प्रौद्योगिकी

मानव जीवन के लिए संचार आधारभूत और अति आवश्यक है। यह धरती पर जीवन आरंभ होने के समय से ही विद्यमान रहा है। आधुनिक समय में, तेजी से विकसित होती प्रौद्योगिकियों के साथ, लगभग हर सप्ताह बाजार में नयी संचार विधियाँ और उपकरण आ रहे हैं। इनमें से कुछ अपनी गुणवत्ता और उपयोग के कारण लोकप्रिय हो गए हैं और काफी समय से कायम हैं।

आगे दिए गए चित्रों को ध्यान से देखिए और इनमें चित्रित विभिन्न व्यक्तियों की स्थितियों, भावनाओं और उनके विचारों को समझने का प्रयास करिए-

संचार क्या है?

संचार विविध परिस्थितियों पर विचार-चिंतन करने, उनका अवलोकन करने, उन्हें समझने, उनका विश्लेषण करने तथा इन सबको विभिन्न संचार माध्यमों द्वारा दूसरों तक संप्रेषित करने की प्रक्रिया है। यह स्वयं देखने या अवलोकन करने, सुनने या ध्यान देने या फिर औरों के साथ विचारों, मतों, अनुभवों, तथ्यों, जानकारी, प्रभावों, अवसरों और संवेगों के आदान-प्रदान से भी संबंधित है।

संचार शब्द अँग्रेज़ी के कम्युनिकेशन का पर्याय है जो लैटिन कॉम्यूनिस से निकला है, जिसका अर्थ है सर्वसामान्य। इसलिए, यह न केवल विचारों, मतों को व्यक्त करने या ज्ञान और सूचना प्रदान करने से संबंधित है, बल्कि इसमें विषय को बिलकुल उसी अर्थ में समझना भी शामिल है, जो संप्रेषक और ग्राही के लिए समान हो। व्यक्तियों के बीच संदेश द्वारा संपूर्ण आशय पहुँचाने का चैतन्य प्रयास ही प्रभावी संचार कहलाता है। संचार की प्रक्रिया एक सतत् प्रक्रिया है। यह घर, स्कूल, समुदाय और उससे भी आगे सामुदायिक जीवन के सभी क्षेत्रों में व्याप्त है।

संचार का वर्गीकरण

संचार को स्तरों, प्रकारों, रूपों और माध्यमों के आधार पर निम्नलिखित रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है -

क. पारस्परिक क्रिया के आधार पर वर्गीकरण

(i) एकतरफ़ा संचार - ऐसी परिस्थितियों में ग्राही सूचना प्राप्त तो करता है, पर वह प्रेषक को बदले में कुछ लौटा नहीं पाता, या तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाता। इसलिए संचार एकतरफा रहता है। भाषण, व्याख्यान, प्रवचन, रेडियो या म्यूज़िक सिस्टम पर संगीत सुनना, टेलीविज़न पर कोई भी मनोरंजक कार्यक्रम देखना, वेबसाइट पर सूचना ढूँढ़ने के लिए इंटरनेट का उपयोग करना आदि, एकतरफा संचार के उदाहरण हैं।

(ii) दुतरफ़ा संचार - यह ऐसा संचार है जो दो या अधिक व्यक्तियों के बीच होता है, जहाँ एक-दूसरे से संप्रेषण करने वाले सभी पक्ष, मतों, विचारों, सूचना आदि का आदान-प्रदान शाब्दिक या अशाब्दिक रूप में करते हैं। मोबाइल फोन पर बात करना, माँ के साथ भविष्य की योजनाओं पर विचार-विमर्श करना, चैटिंग के लिए इंटरनेट का प्रयोग करना आदि इसके कुछ उदाहरण हो सकते हैं।

जब अपनी भूख जताने के लिए कोई शिशु रोता है तो उसकी अनुक्रिया में उसकी माँ उसका पेट भरती है। शिशु का रोना वह संदेश है जो बच्चे की भूख को संप्रेषित करता है और शिशु के जीवन के लिए अत्यावश्यक है। इस प्रकार यह संचार दुतरफा है।

ख. संचार के स्तरों पर आधारित वर्गीकरण

(i) अंतरा-वैयक्तिक संचार - यह स्वयं से संवाद करने से संबंधित है। यह अवलोकन करने, विश्लेषण करने और ऐसे निष्कर्षों पर पहुँचने की एक प्रकार की मानसिक प्रक्रिया है जो किसी व्यक्ति के वर्तमान, भूत और भविष्य के व्यवहार और जीवन के लिए अर्थपूर्ण हो। यह एक सतत् प्रक्रिया है जो किसी व्यक्ति के भीतर चलती रहती है, उदाहरण के लिए किसी साक्षात्कार अथवा मौखिक परीक्षा में उपस्थित होने से पूर्व उसका मानसिक पूर्वाभ्यास।

(ii) अंतर्वैयक्तिक संचार - इसका संबंध दो या उनसे अधिक लोगों के बीच आमने-सामने होने की स्थिति में विचारों और मतों की साझेदारी से है। यह औपचारिक अथवा अनौपचारिक स्थिति में संपन्न हो सकता है। इस प्रकार के संचार के लिए संचार के विविध साधनों का, जैसे शारीरिक संचालन, मुखमुद्राएँ, हाव-भाव, भंगिमाएँ, लिखित पाठ एवं शब्द और ध्वनि जैसे मौखिक तरीकों का प्रयोग किया जा सकता है। इसके उदाहरण हैं- पढ़ाई के दौरान या कोई प्रयोग करने के दौरान आने वाली समस्याओं के बारे में अपने मित्र से बातचीत करना या फिर किसी परिसंवाद में भाग लेना, जिसके बाद प्रश्न-उत्तर सत्र हो।

अंतर्वैयक्तिक संचार सर्वाधिक प्रभावी और आदर्श होता है। इसके दो कारण हैं, पहला यह कि इसमें ग्राही और संचारक के बीच सदैव निकटता और प्रत्यक्ष संपर्क रहता है और इसलिए ग्राही को किसी प्रस्तावित विचार या अभिमत को स्वीकार करने के लिए मनाना, प्रेरित करना और राजी करना आसान होता है। दूसरे, प्रस्तावित अभिमत के विषय में ग्राही की प्रत्यक्ष अनुक्रिया के रूप में त्वरित और दृढ़ प्रतिपुष्टि संभव है।

(iii) समूह संचार - यह अंतर्वैयक्तिक संचार की ही तरह प्रत्यक्ष और वैयक्तिक ढंग का संचार है, किंतु इस संचार प्रक्रिया में दो से अधिक व्यक्ति शामिल होते हैं। समूह संचार, परस्पर-स्वीकृत दृष्टिकोण और सामूहिक निर्णय को सुनकर बनाने में सहायता करता है और आत्म-अभिव्यक्ति का अवसर देता है और किसी सभा में व्यक्ति के प्रभाव को बढ़ाता है, जिससे समूह में उसका स्थान सुदृढ़ होता है। यह मनोविनोद और तनावमुक्त होने में, समाजीकरण में और प्रेरित करने में सहायक होता है। समूह संचार को बढ़ाने के लिए कई प्रकार के दृश्य-श्रव्य साधनों का प्रयोग किया जा सकता है।

(iv) जनसंचार - प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण विकास होने के परिणामस्वरूप मतों, विचारों और नव-प्रवर्तनों या नए विचारों को समाज के विशाल हिस्से तक पहुँचाना संभव हो गया है। जनसंचार को किसी यांत्रिक युक्ति की सहायता से संदेशों को बहुगुणित करते जाने की प्रक्रिया तथा उन्हें जनता तक पहुँचाने की प्रक्रिया के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। जनसंचार के साधन और माध्यम हैं- रेडियो, टी.वी., उपग्रह संचार, अखबार और पत्रिकाएँ। जन संचार के दर्शकों/भ्रोताओं की संख्या बहुत विशाल और विविधतापूर्ण है। ये परस्पर भिन्न प्रकार के तथा नामरहित होते हैं, ये काफी बड़े क्षेत्र में फैले हुए हैं तथा देश और काल की दृष्टि से संप्रेषक से दूर स्थित होते हैं। इन्हीं कारणों से उनसे कोई सही, पूर्ण, प्रत्यक्ष और तत्काल प्रतिपुष्टि पाना संभव नहीं है; बल्कि यह प्रतिपुष्टि काफी समय के बाद प्राप्त होती है और संचित रूप से प्राप्त होती है।

(v) अंतरा-संस्था संचार - संस्थागत संचार सुव्यवस्थित संगठनों में होता है। मानवों की ही तरह, जब लोग एक साथ किसी संस्था या संगठन में कार्य करते हैं, तो संस्था भी संबंध स्थापित करती है और उन संबंधों का निर्वाह करती है। ये अपने माहौल में और अपने विभागों या अनुभागों के बीच संचार के विभिन्न स्तरों का प्रयोग करते हैं। प्रत्येक संस्था में पदों के अलग-अलग स्तर अथवा पदानुक्रम होते हैं, जो सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मिलकर कार्य करते हैं। ऐसी संस्थाओं में सूचना का प्रवाह समान स्तर पर दुतरफा होता है और विभिन्न स्तरों के बीच एकतरफा।

(vi) अंतःसंस्था संचार - इसका संबंध किसी संस्था द्वारा अन्य संस्थाओं के साथ आपसी सहयोग और समन्वय से काम करने के लक्ष्य की दृष्टि से विकसित संचार प्रणाली से है। उदाहरणार्थ, देश के विकासात्मक कार्यकलापों में तकनीकी और वित्तीय सहायता (दोनों ही) अंतर्राष्ट्रीय अभिकरणों द्वारा दी जाती है, जबकि प्रशासनिक सहायता केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा दी जाती है।

उल्लेखनीय है कि अंतरा-संस्थागत और अंतःसंस्थागत संगठनों में, विभागों अथवा संस्थाओं के बीच संचार नहीं होता; बल्कि इन संस्थाओं में कार्य करने वाले व्यक्ति ही एक-दूसरे से संचार करते हैं। अतः, व्यक्ति का विवेक अति महत्वपूर्ण है।

चित्र 1 - विभिन्न संस्थाओं के बीच संचार प्रणाली

ग. संचार के साधन अथवा विधि पर आधारित वर्गीकरण

(i) शाब्दिक या मौखिक संचार - श्रवण साधन अथवा मौखिक माध्यम, जैसे - बोलना, गाना और कभी-कभी स्वर का लहज़ा इत्यादि भी मौखिक संचार के लिए महत्वपूर्ण हैं।

अनुसंधान से स्पष्ट है कि सभी व्यक्ति अपने सक्रिय समय का लगभग 70 प्रतिशत समय मौखिक रूप से संचार करने, अर्थात् सुनने, बोलने और जोर से पढ़ने में बिताते हैं।

(ii) गैर-शाब्दिक संचार - संचार के गैर-शाब्दिक साधन हैं-हाव-भाव, मुखमुद्राएँ, मिज़ाज, भंगिमाएँ, नेत्र संपर्क, स्पर्श, परा-भाषा, लिखाई, पहनावा, केश-सज्जा आदि साथ ही वास्तुकला, प्रतीकों और संकेतों की भाषा, जैसे - कुछ जनजातीय लोगों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले धूम्र संकेत।

पिछले अध्याय ‘हमारे आस-पास के परिधान’ में आपने पढ़ा कि हम अलग-अलग अवसरों के लिए अलग-अलग पोशाक पहनते हैं। वास्तव में हमारी पोशाक पहनने की शैली हमारे कुछ कहे बिना भी हमारे व्यक्तित्व और हमारी मनोदशा को ज़ाहिर करती है।

घ. एक से अधिक इंद्रियों से काम लेने के आधार पर वर्गीकरण

आपने कभी यह जानने की कोशिश की है कि किताब में पढ़ने की तुलना में केवल टीवी पर अथवा जीवंत लोकनृत्य या शास्त्रीय नृत्य प्रस्तुति देखने से अपनी समृद्ध परंपरा के बारे में जानने-समझने में अधिक आसानी होती है और यह अधिक रुचिकर होता है?

हमारी इंद्रियाँ और संचार

  • लोग जो पढ़ते हैं, उसका 10 प्रतिशत याद रखते हैं
    $ \qquad $ $ \qquad $ पढ़ना $ \qquad $ दृश्य
  • लोग जो सुनते हैं, उसका लगभग 20-25 प्रतिशत याद रखते हैं
    $ \qquad $ $ \qquad $ सुनना $ \qquad $ श्रव्य
  • लोग जो देखते हैं, उसका लगभग 30-35 प्रतिशत उनके दिमाग में रहता है
    $ \qquad $ $ \qquad $ देखना $ \qquad $ दृश्य
  • लोग जो देखते और सुनते हैं, उसका 50 प्रतिशत या उससे अधिक वे याद रखते हैं, देखा और सुना
    $ \qquad $ $ \qquad $ दृश्य $ \qquad $ दृश्य-श्रव्य
  • लोग जो देखते, सुनते और करते हैं, उसका 20-25 प्रतिशत या उससे अधिक याद रखते हैं देखा, सुना और किया
    $ \qquad $ $ \qquad $ दृश्य $ \qquad $ श्रव्य

अधिक इंद्रियों से काम लेने पर अध्ययन, अधिक स्पष्ट रूप से समझ में आता है और स्थायी रहता है।

सारणी 1 - संबद्ध इंद्रियों की संख्या के आधार पर संचार का वर्गीकरण

संचार का प्रकार उदाहरण
श्रव्य रेडियो, श्रव्य रिकॉर्डिंग, सीडी प्लेयर, व्याख्यान, लैंड लाइन या मोबाइल फ़ोन
दृश्य संकेत या प्रतीक, मुद्रित सामग्री, चार्ट, पोस्टर
श्रव्य-दृश्य टेलीविज़न, वीडियो फ़िल्में, मल्टी-मीडिया, इंटरनेट

क्रियाकलाप 1

निम्नलिखित कार्य में शामिल किए गए संचार के विभिन्न साधनों अथवा माध्यमों, प्रकारों, और स्तरों की सूची बनाएँ। अपने पर्यवेक्षण दर्ज करें - क्या आपको देश के किसी ग्रामीण क्षेत्र, किसी गाँव अथवा किसी छोटे शहर में रहने, या वहाँ जाने का मौका मिला है? आपका क्या अनुभव रहा? क्या आपने वहाँ उन्नत प्रौद्योगिकी और संचार के चिह्न जैसे मोबाइल फ़ोन, फ़ैक्स मशीनें और अन्य उपस्कर, बिजली के खंभे और अन्य ऐसी ही वस्तुएँ देखीं? वहाँ के नौजवानों, महिलाओं और बूढ़े लोगों से मिलने और उनसे बातचीत करने का अनुभव कैसा रहा? इस पर अपनी कक्षा में चर्चा करें।

संचार कैसे होता है?

संचार की प्रक्रिया

किसी माध्यम के ज़रिए प्रेषक से प्राप्तकर्त्ता तक सूचना अथवा विषय के संप्रेषण की प्रक्रिया संचार कहलाती है। इस प्रक्रिया में विभिन्न तरीकों से सूचना के आदान-प्रदान में वह लचीलापन शामिल है, जिससे प्रेषक और प्राप्तकर्त्ता दोनों सूचना को ठीक-ठीक स्पष्टतः और पूर्ण रूप से समझ लें। संदेश पर आगे की योजना बनाने के लिए श्रोताओंदर्शकों की प्रतिपुष्टि भी यह ठीक उसी प्रकार प्राप्त करता है, जैसे बाजार में कोई उत्पाद भेजने से पहले बाज़ार सर्वेक्षण द्वारा किया जाता है।

चलिए देखते हैं कि संचार प्रक्रिया किस क्रम में चलती है। इसके वर्णन का एक तरीका इस प्रकार है - किसने, क्या, किससे, कब, किस प्रकार, किन परिस्थितियों में कहा और उसका क्या प्रभाव रहा। आमतौर पर, किसी भी संचार प्रक्रिया के आधारभूत घटकों का चक्र पूरा करने के लिए इसे एक निश्चित क्रम में व्यवस्थित किया जाता है। प्रभावी और सफल संचार के लिए नीचे दिए गए पाँच घटकों का कुशलता से नियंत्रण किया जाना चाहिए। इसे संचार के ‘एस.एम. सी.आर.ई. मॉडल’(SMCRE Model) के ज़रिए आसानी से समझा जा सकता है-

चित्र 2 - संचार का एस.एम.सी.आर.ई. मॉडल

एस.एम.सी.आर.ई. मॉडल (आकृति 2) संचार की संपूर्ण प्रक्रिया और उसमें शामिल घटकों को दर्शाता है।

1. स्रोत - स्रोत वह व्यक्ति है जो संचार की प्रक्रिया को शुरू करता है। वह पूरी संचार-प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए उत्तरदायी मुख्य घटक है। वह श्रोता/दर्शक के एक विशिष्ट समूह को इस प्रकार संदेश देता है/देती है कि यह न केवल संदेश के सही संप्रेषण में परिलक्षित होता है बल्कि इससे अपेक्षित अनुक्रिया भी प्राप्त होती है। वह आपके शिक्षक, माता-पिता, मित्र, सहपाठी, विस्तार कार्यकर्ता, नेता, प्रशासक, लेखक, किसान अथवा देश के दूरस्थ क्षेत्र से देशज जानकारी रखने वाला कोई जनजातीय व्यक्ति हो सकता/सकती है।

क्रियाकलाप 2

ग्रामोंग्रामीण क्षेत्रों में सूचना के संभावित स्रोतों की पहचान कीजिए।

2. संदेश - यह वह विषय या सूचना है जिसे संचारक प्राप्त करने की इच्छा करता है, स्वीकार करता है या उस पर कार्रवाई करता है। यह कोई भी ऐसी तकनीकी, वैज्ञानिक, आम जानकारी हो सकती है या किसी व्यक्ति, समूह अथवा अधिक बड़े जनसमुदाय की रोज़मर्रा की जिंदगी या ज्ञान के किसी क्षेत्र से संबंधित सामान्य या विशिष्ट विचार हो सकता है। अच्छा संदेश सरल, आकर्षक और स्पष्ट होता है। इसे अपनाए गए चैनलों और ग्राही समूह की प्रकृति और स्वरूप की दृष्टि से भी बहुत ही विशिष्ट, प्रामाणिक, समयोचित, उपयुक्त और प्रयोज्य होना चाहिए।

3. चैनल - संचार का वह माध्यम जिसके द्वारा कोई जानकारी प्रेषक से ग्राहियों तक पहुँचती है, चैनल कहलाता है। आमने-सामने बैठकर किया गया संचार एवं मौखिक संचार, संचार के सर्वाधिक सहज और प्रभावी साधनों में से एक है। यह विश्व के बहुसंख्य विकासशील और अल्प-विकसित देशों में सर्वाधिक प्रचलित संचार का माध्यम है। किंतु समय के बीतने के साथ-साथ और समाज में हुए सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से अब यह रुख उन्नत जन संचार माध्यमों और बहु माध्यम प्रौद्योगिकियों को ओर हो गया है।

चैनल दो प्रकार के हो सकते हैं -

(i) अंतर्वैयक्तिक संचार चैनल, जैसे -

अलग-अलग व्यक्ति और समूह।

(ii) जनसंचार माध्यम द्वारा संचार के चैनल जैसे - उपग्रह, बेतार और ध्वनि तरंगें।

क्रियाकलाप 3

किन्हीं दो संचार माध्यमों, जैसे - रेडियो, पत्र-पत्रिका या टीवी से एक समाचार कथा या अभियान या सामाजिक संदेश पर ध्यान दें।

4. ग्राही ( प्राप्तकर्ता ) - संदेश या संचार कार्य के लक्ष्य के रूप में ग्राही या श्रोता या दर्शक। ग्राही कोई व्यक्ति या समूह, आदमी या औरत, ग्रामीण या शहरी, वृद्ध या जवान हो सकते हैं। ग्राही समूह जितना अधिक समरूप होगा, सफ़ल संचार के अवसर उतने ही अधिक होंगे।

क्रियाकलाप 4

किसी ऐसे पारंपरिक तरीके का पता लगाएँ जिसका उपयोग देश के जनजातीय और/या ग्रामीण लोग अपने क्षेत्रों में महत्वपूर्ण घोषणा करने के लिए करते हैं।

क्रियाकलाप 5

जानकारी के ग्राही के रूप में लिखिए कि आप अपने विद्यालय से किस प्रकार की और किस कोटि की जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं।

5. सूचना का प्रभाव ( प्रतिपुष्टि ) - संचार प्रक्रिया तब तक अधूरी रहती है जब तक प्रेषित संदेश के संबंध में अनुक्रिया प्राप्त नहों हो जाती। यह किसी भी संचार प्रक्रिया का पहला कदम होने के साथ-साथ अंतिम घटक भी है। यदि संदेश की अनुक्रिया वही हो जिसकी संभावना थी तो यह चक्र पूरा हो जाता है। तथापि, यदि लक्षित दर्शकों/श्रोताओं की प्रतिक्रिया से अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं होते, तो संदेश पर पुनर्विचार और संशोधन होता है और संपूर्ण संचार प्रक्रिया दोहराई जाती है। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं - (क) जब कोई शिक्षक पाठ पढ़ा देता है, तो वह विद्यार्थियों से यह जानने के लिए प्रश्न पूछता है कि उन्होंने पाठ समझ लिया या नहीं। प्रश्न पूछने और उत्तर जानने की यह क्रिया कि क्या विषय-वस्तु और पाठ समझे गए हैं, और फिर से किन विषयों को समझाने की आवश्यकता है, प्रतिपुष्टि कहलाती है। (ख) समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं में छपे पाठकों के पत्र, संपादकों और लेखकों को दी गई प्रतिपुष्टि के ही एक रूप हैं। (ग) टेलीविज़न कार्यक्रमों की उत्तमता-निर्धारण बिंदु (रेटिंग या टी.आर.पी.), दर्शकों से प्राप्त प्रतिपुष्टि का एक अन्य रूप है।

6.2 संचार माध्यम ( मीडिया ) क्या है?

रेडियो सुनते समय या टेलीविज़न देखते समय आप जो सुनते या देखते हैं, वह आपको किसी-न-किसी रूप में प्रभावित करता है। यह संचार माध्यम का प्रभाव है। चलिए इसके बारे में और पढ़ते हैं।

निम्नलिखित में से सबसे अधिक विद्यमान घटक को पहचानिए - विज्ञापन और कार्यक्रम, जिन्हें हम टीवी पर देखते हैं, थिएटर या टीवी पर जो फ़िल्में देखते हैं, अखबार में जो समाचार पढ़ते हैं, राजनेता का भाषण, कक्षा में शिक्षक द्वारा दिए गए अनुदेश, अथवा किसी उपकरण के ठीक से काम न करने पर की गई शिकायत या घर बैठे इंटरनेट द्वारा की गई खरीदारी।

इन सभी में सामान्य बात यह है कि इन संदेशों को विविध क्षेत्रों में पहुँचाने के लिए किसी-न-किसी माध्यम का प्रयोग किया गया है। उदाहरणार्थ, जब हम किसी से बात करते हैं या किसी को बात करते हुए सुनते हैं, तो हवा उस माध्यम के रूप में काम करती है जिससे ध्वनि-तरंग संचरित होती है क्योंकि कोई भी ध्वनि शून्य में संचरित नहीं हो सकती।

अतः, संचार यदि एक प्रक्रिया है तो, संचार-माध्यम (मीडिया) ही वह साधन है, जो धारणाओं, विचारों, भावनाओं, नए तथ्यों, अनुभवों आदि को प्रेषित और प्रसारित करने के लिए संचार के विभिन्न तरीकों का प्रयोग करता है। जनसंचार माध्यमों में संचार के लिए मूलतः आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जाता है, किंतु प्रौद्योगिकी की मात्र उपस्थिति ही जन संचार की अभिव्यक्ति नहों है। जनसंचार माध्यमों का लक्ष्य हमेशा भिन्न-भिन्न वर्गों के अज्ञातनामा दर्शक/श्रोता समूह होते हैं।

क्या संचार-माध्यम या मीडिया का अर्थ केवल रेडियो और टीवी है? नहीं, सभी प्रकार के उपग्रह संचार, कंप्यूटर और बेतार प्रौद्योगिकी भी इसमें शामिल हैं। मीडिया काफी परिवर्तन और विकास से गुज़रा है। अब संचार प्रक्रिया के लिए मीडिया के रूप में असंख्य आधुनिक प्रौद्योगिकियाँ उपलब्ध हैं।

संचार माध्यमों का वर्गीकरण और कार्य

संचार माध्यमों को दो वृहत् श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है, पारंपरिक और आधुनिक संचार माध्यम।

पारंपरिक संचार माध्यम - पिछले कुछ समय तक अधिकांश ग्रामीण विस्तार-कार्य पूर्णतः मेलों और रेडियो जैसे पारंपरिक संचार माध्यमों पर निर्भर था। आज भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में अंतर्वैयक्तिक संचार माध्यम मुख्य रूप से संचार का सर्वाधिक प्रयुक्त और प्रभावी माध्यम है। अन्य पारंपरिक लोक संचार माध्यम के उदाहरण हैं- कठपुतली, लोक नृत्य, लोक रंगमंच, मौखिक साहित्य, मेले और त्यौहार, अनुष्ठान और प्रतीक, संकेत, पोस्टर, पत्र-पत्रिकाएँ और अन्य स्थानीय मुद्रित सामग्री। पुरातन काल से ही विभिन्न पारंपरिक लोक संचार माध्यमों का उपयोग संचार के देशी माध्यमों के रूप में किया जाता रहा है। इसके कुछ अति लोकप्रिय उदाहरण हैं- पारंपरिक लोक रंगमंच अथवा नाटक, जैसे जात्रा (बंगाल), रामलीला और नौटंकी (उत्तर प्रदेश), बिदेसिया (बिहार), तमाशा (महाराष्ट्र), यक्षगान, दशावतार (कर्नाटक) या भवाई (गुजरात)। इसी प्रकार के विभिन्न मौखिक साहित्य और संगीत के मिश्रित रूपों में मूलतः लोक या जनजातीय गीत और नृत्य, जैसे - बोल और भतियाली (बंगाल), स्ना और दादोरिया (मध्य प्रदेश), दूहा और गरबा (गुजरात), चकरी (कश्मीर), भांगड़ा और गिद्दा (पंजाब), कजरी, चैती (उ.प्र.) और आल्हा (उ.प्र. और बिहार,) पौडा और लावनी (महाराष्ट्र), बिहू (असम), मांड और पनिहारी तथा चारणों, भाटों (राजस्थान) द्वारा गाए जाने वाले गीत शामिल हैं। देश के उत्तर-पूर्वी और अन्य जनजातीय समूहों के ऐसे विभिन्न ढोल महोत्सव हैं, जिनमें ढोल की अत्यंत लयबद्ध तालों के साथ नाच और गाने का आयोजन होता है। अनेक प्रकार के कठपुतली कार्यक्रम भी मनोरंजन के साथ-साथ संदेश पहुँचाने के लिए आम संचार माध्यम की भूमिका निभाते हैं। इसमें सबसे आम हैं, डोरी से नचाई जाने वाली कठपुतली अथवा ‘सूत्रधारिका’, जिसका प्रचलन मुख्यतः राजस्थान और गुजरात में है, और छाया पुतली, जो देश के दक्षिणी हिस्सों में अधिक प्रचलित है। इसके साथ ही असंख्य त्यौहार, मेले, सामाजिक अनुष्ठान, उत्सव और यात्राएँ भी हैं जिनके द्वारा देश भर के विविध संप्रदायों के संदेशों, अभिव्यक्तियों, भावनाओं और परंपराओं का संप्रेषण होता है।

बदलते समय के साथ यह स्पष्ट है कि पारंपरिक संचार माध्यम आधुनिक दर्शकों/श्रोताओं के लिए विविध जानकारी या सूचना संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए न तो पर्याप्त हैं और न ही पूर्णतः समर्थ हैं। अतः संचार माध्यम की अनेक नयी प्रौद्योगिकियाँ लोकप्रिय बन गई हैं।

आधुनिक संचार माध्यम- आधुनिक प्रौद्योगिकी के आगमन से, संचार माध्यमों का आश्चर्यजनक विस्तार हुआ है। नयी संचार प्रौद्योगिकियाँ, जैसे मोबाइल फ़ोन, ऐसी आकर्षक विशेषताओं के साथ आ रहे हैं, जिनसे ब्रॉडकास्ट (प्रसारण) की गुणवत्ता और क्षमता में सुधार हुआ है। इन उपस्करों का आकार सुविधाजनक होता है जिसके कारण ये ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में उपयोग के लिए सुकर हो गए हैं। इनसे आधुनिक संचार प्रौद्योगिकी की पहुँच भी बढ़ी है। कंप्यूटरों की उपलब्धता और इंटरनेट सुविधा से संचार माध्यम ने एक नए युग में प्रवेश किया है। रेडियो, उपग्रह टेलीविज़न, आधुनिक मुद्रण माध्यम, फ़िल्म प्रदर्शन की विभिन्न पद्धतियाँ, ऑडियो कैसेट और कॉम्पैक्ट डिस्क प्रौद्योगिकी, केबल और बेतार प्रौद्योगिकी, मोबाइल फ़ोन, वीडियो फ़िल्म और वीडियो कॉन्फैंसिंग आधुनिक संचार माध्यम के कुछ उदाहरण हैं।

क्रियाकलाप 6

अपने राज्य के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रयुक्त विभिन्न लोक संचार माध्यमों के बारे में सूचना एकत्र करें। यदि आपके राज्य में जनजातीय क्षेत्र हैं, तो वहाँ से संबंधित लोकसंचार माध्यमों की जानकारी एकत्र कीजिए।

संचार माध्यमों के कार्य - पिछले अध्यायों में आपको जानकारी मिली कि आपकी किशोरावस्था में संचार माध्यम आपको प्रभावित कर सकता है। आइए देखें, यह कैसे होता है -

1. सूचना - इसमें सूचना प्रदान करना और सूचना का आदान-प्रदान करना दोनों शामिल हैं। आज सूचना एक शक्ति है। विभिन्न संचार माध्यमों, जैसे - रेडियो, टेलीविज़न, पत्रिकाएँ और समाचार-पत्रों आदि के ज़रिए संचार को सुकर बनाया जाता है।

2. सहमत कराना/प्रेरणा देना - हम अपने समक्ष आई धारणा या विचार को हमेशा स्वीकार नहीं करते। दर्शक//्रोता को किसी धारणा के स्वीकार करने के लिए तैयार करने के लिए उपयुक्त संचार माध्यम का उपयोग किया जा सकता है। इसके लिए दर्शक/श्रोता की मनोदशा और उसकी सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की गहन समझ ज़रूरी है।

3. मनोरंजन - पारंपरिक और आधुनिक संचार माध्यम, मनोरंजन के अनेक विकल्प प्रदान करते हैं, जो लोक संचार माध्यम से शुरू होकर मौखिक परंपरा से ‘सीधे घर तक’ (डी.टी.एच.) टेलीविज़न द्वारा प्रसारित होता है। शैक्षिक प्रयोजनों में भी शिक्षा को आसान और रोचक बनाने के लिए संचार माध्यमों का प्रयोग मनोरंजक रूप से किया जाता है।

4. व्याख्या - संचार माध्यम का प्रयोग विशेषकर चित्रलेखीय प्रस्तुतीकरण, तथा तथ्यों एवं आंकड़ों, कई जटिल और कठिन संकल्पनाओं को आसान बनाता है। उदाहरण के लिए, मानचित्र या ग्लोब के मॉडल की सहायता से किसी भूगोलीय क्षेत्र को ढूँढ़ना और समझना, उसके बारे में केवल किसी पुस्तक में पढ़ने से आसान होता है।

5. मूल्यों का संप्रेषण - संचार माध्यमों से यह भी अपेक्षा है कि वे हितकारी मूल्यों के संप्रेषण के द्वारा एक स्वस्थ समाज के विकास को बढ़ावा दें, उदाहरणार्थ - मूल्यों के बारे में शिक्षा देने हेतु कहानी के रूप में कठपुतली और कार्टून फ़िल्मों का प्रयोग।

6. शिक्षण अथवा प्रशिक्षण - उपयुक्त संचार माध्यम की सहायता से स्थानीय भाषा में नए अधिगम अनुभवों और स्थानीय समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करना हमेशा अध्ययन अध्यापन अनुभव में वृद्धि करता है। इनमें विभिन्न संकल्पनाओं पर आधारित मुद्रित शिक्षण - अधिगम सामग्री के अंतःक्रियापरक अनुदेश वाले, वीडियो, ऑडियो कैसेट और डिस्क शामिल हैं।

7. समन्वयन - आधुनिक पारस्परिक क्रियापरक संचार प्रौद्योगिकियों के आने से, दूरी और पारस्परिक निकटता का महत्त्व कम हो गया है। संचार की गति, कार्यक्षेत्र और परिशुद्धता इस सीमा तक बढ़ गई है कि अब एक स्थान पर बैठकर पूरे भौगोलिक क्षेत्र में फैली वृहत् परियोजनाओं का समन्वय करना बहुत आसान है।

8. व्यवहारगत परिवर्तन - विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित सभी विस्तार शिक्षा कार्यक्रम, चाहे वह स्वास्थ्य हो, साक्षरता हो, पर्यावरणीय मुद्दा हो, सशक्तीकरण कार्यक्रम हो और नव-प्रवर्तनों को अपनाना हो, प्रभावी संचार की कला और तकनीक पर निर्भर करता है। संचार माध्यम ऐसे सभी उपयोगी संदेशों के संप्रेषण का मुख्य वाहक बना रहता है, जिसकी स्वीकार्यता से लक्षित लोगों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष व्यवहारगत परिवर्तन होता है।

9. विकास - संचार माध्यम राष्ट्रीय विकास का एक उत्प्रेरक (माध्यम) है। यह विशेषजों और आम व्यक्तियों को आपस में मिलाता है। इसलिए विकास प्रक्रिया में संचार का स्थान अग्रणी है। संचार माध्यमों ने विकास की गति को तीव्रता प्रदान की है और संचार के माध्यम से लोगों को निकट लाकर, इस विश्व को परस्पर जोड़ दिया है।

लोगों तक पहुँचने के लिए संचार और संचार माध्यम, आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हैं। इसके विषय में हम अगले भाग में पढ़ेंगे।

6.3 संचार प्रौद्योगिकी क्या है?

वैश्विक परिदृश्य संचार क्रांति से गुज़र रहा है और संचार प्रौद्योगिकी बहुत तेज़ी से बदल रही है। जो आज नया है, वह कल पुराना हो सकता है। बहुत कम समय में लोग सब कुछ जानना चाहते हैं। सूचना की अत्यधिकता है, और वह आसानी से उपलब्ध है, तथा पारंपरिक और आधुनिक माध्यमों की विस्तृत विविधता के माध्यम सबकी पहुँच में हैं। यहीं पर संचार प्रौद्योगिकी एक अहम भूमिका निभा रही है।

हम अलग-अलग समय में (भूत और वर्तमान में), अलग-अलग पृष्ठभूमियों में, उदाहरण तर्थ ग्रामीण/शहरी/जनजातीय, संचार के लिए अलग-अलग माध्यमों और संचार प्रौद्योगिकियों का प्रयोग करते रहे हैं।

अब हम अपने आस-पास देखें। आप महसूस कर सकते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से जुड़ी नयी प्रौद्योगिकियों ने संचार माध्यमों में क्रांति ला दी है।

क्या आप जानते हैं कि भारत का पहला टीवी ट्रान्समीटर गुजरात के पिज गाँव में लगाया गया था, जिससे उपग्रह द्वारा दिल्ली से अन्य कार्यक्रमों के साथ-साथ स्थानीय भाषा के कार्यक्रम भी आते थे।

संचार प्रौद्योगिकी का संबंध सूचना को नियंत्रित करने और संचार को सहायता देने के लिए विकसित और प्रयुक्त विभिन्न प्रौद्योगिकियों से है। इसमें आधुनिक प्रौद्योगिकियाँ शामिल हैं, जिनका प्रयोग डाटा के प्रेषण के लिए किया जाता है, जो अनुरूप (इलेक्ट्रॉनिक संकेत) या अंकीय (डिजिटल) हो सकते हैं। ऐसे हार्डवेयर, संस्थागत-तंत्र तथा सामाजिक मूल्य हैं, जिनका उपयोग व्यक्ति सूचना एकत्र करने, संसाधित करने और आदान-प्रदान करने के लिए करते हैं।

संचार प्रौद्योगिकियों का वर्गीकरण

संचार प्रौद्योगिकियों की एक विस्तृत शृंखला उपलब्ध है। प्रायः ये दो समूहों में आती हैं-

(i) केबल ( भूमि ) आधारित प्रौद्योगिकियाँ - ये अधिक सस्ती और कम जटिल हैं। लैंडलाइन टेलीफ़ोन या बिना इंटरनेट के पर्सनल कंप्यूटर इस प्रौद्योगिकी के उदाहरण हैं।

(ii) बेतार प्रौद्योगिकियाँ - सामान्यतया इसमें कम आधारिक संरचना की आवश्यकता होती है, किंतु इनका प्रयोग केबलआधारित प्रौद्योगिकियों से अधिक महंगा हो सकता है। रेडियो, माइक्रोवेव, उपग्रह बेतार टेलीफ़ोनी अथवा मोबाइल फ़ोन में ‘ब्लू टूथ’ प्रौद्योगिकी का प्रयोग इसके रेडियो और टेलीविज़न ऐसी दो महत्वपूर्ण सूचना प्रौद्योगिकियाँ हैं जिन्होंने संचार माध्यम के रूप में कार्य करके पूरे संसार के परिदृश्य को बदल दिया।

क्रियाकलाप 7

‘सूचना प्रौद्योगिकी - एक अभिशाप या वरदान?’ पर अपनी कक्षा में एक सामूहिक चर्चा आयोजित करें और उसमें भाग लें। उदाहरण हैं।

रेडियो - भौगोलिक विस्तार, आय, शिक्षा, आयु, लिंग और धर्म की दृष्टि से रेडियो का पूरे विश्व के दर्शकों/श्रोताओं पर प्रभाव रहता है। घटना-स्थल पर (ऑन-द-स्पॉट) प्रसारण या अनुकारी प्रसारण के ज़ारिए यह समय और स्थान के अवरोधों को पार कर सकता है। छोटे आकार के ट्रांजिस्टरों के प्रयोग से देश के दूरस्थ भागों में संचार प्राप्त करना संभव हो गया है।

टेलीविज़न - टेलीविज़न भारत में सन् 1959 में प्रारंभिक तौर पर शिक्षा के प्रभाव को बढ़ाने और ग्रामीण विकास की वृद्धि के लिए आया था। टेलीविज़न के प्रोग्रामों को बनाने में चाक्षुष आवर्धन, ध्वनि प्रवर्धन, अध्यारोपण, स्प्लिट-स्क्रीन प्रक्रिया, फेडिंग, जूमिंग इत्यादि विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है। ये तकनीकें इसे और अधिक प्रभावी बनाती हैं और दर्शक पर इसके प्रभाव को बढ़ाती हैं।

आधुनिक संचार प्रौद्योगिकियाँ

आधुनिक संचार प्रौद्योगिकियों की सूची लंबी है, हर दूसरे दिन हम मौजूदा प्रौद्योगिकी में नए विकासों के बारे में सुनते हैं। आधुनिक संचार प्रौद्योगिकियों के प्रमुख रूप, जिनका उपयोग व्यापक प्रयोजनों के लिए किया जाता है, निम्नलिखित हैं।

1. माइक्रो कंप्यूटर - कंप्यूटरों को मेनफ्रेम्स (बड़े आकार के और महंगे), मिनी कंप्यूटर (कम शक्तिशाली) और माइक्रो कंप्यूटर (माइक्रोचिप प्रौद्योगिकी पर आधारित) में वर्गीकृत किया जाता है। यह वर्गीकरण उनकी शक्ति, अनुदेशों के समुच्चय को पूरा करने में उनकी गति, और डाटा को एकत्र करके उसका संग्रह करने के लिए उपलब्ध स्मृति (मेमोरी), तथा उस कंप्यूटर द्वारा दी जाने वाली परस्पर संबद्धता की क्षमता पर आधारित है। माइक्रो कंप्यूटर के कार्यों में, खासकर विस्तार कार्य में संसाधन (प्रोसेसिंग), सभी प्रकार की सूचनाओं का रिकॉर्ड रखना, लेखाकरण, अनुसंधान तथा क्षेत्रकार्य के प्रयोजन के लिए अनुभवों और विविध विषयों के संग्रह की भूमिका निभाना और उचित मूल्य पर सूचना सामग्री को प्रकाशित करना आदि शामिल हैं। इसे इस दृष्टि से पारस्परिक क्रियात्मक कहा जा सकता है कि देखने वाले के पास अभीष्ट डाटा को देखने का विकल्प रहता है।

ब्लू टूथ प्रौद्योगिकी क्या है?

ब्लू टूथ प्रौद्योगिकी, मोबाइल पी.सी., मोबाइल फोन, और ध्वनि संचार करने वाले अन्य लघु उपकरणों के बीच एक अल्प लागत, अल्प-दूरी रेडियो आवृत्ति संपर्क है, जो 1 एम.बी.पी.एस. की दर पर ध्वनि और डाटा प्रेषित करने में समर्थ है, जिसकी गति समान्तर और श्रेणीबद्ध पोर्टों की औसत गति की तुलना में तीन से आठ गुना अधिक होती है। यह ठोस, अधातु वस्तुओं के माध्यम से प्रेषण कर सकता है।

इससे सेल फोन और हैंड्स फ्री हेड सेट या कार किट के बीच संचार हो सकता है और उस पर बेतार नियंत्रण किया जा सकता है।

2. दृश्य पाठ - टेलीफ़ोन नेटवर्क या केबल सिस्टम के माध्यम से मुख्य कंप्यूटर से घर के टीवी सेट तक प्रेषित इलेक्ट्रॉनिक पाठ सेवा को दृश्य पाठ या दृश्य-डाटा कहते हैं।

3. इलेक्ट्रॉनिक मेल (ई-मेल) - यह वह प्रक्रिया है जो सूचना को इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रेषक से ग्राही (प्राप्तकर्ता) तक भेजती है। ई-मेल प्रक्रिया थल डाक की तरह है, जिसे कंप्यूटर पर टाइप किया जाता है और मोबाइल के ज़रिए दूसरे कंप्यूटर को भेजा जाता है। यह मेल बॉक्स की व्यवस्था से, दो या दो से अधिक व्यक्तियों के संचार की एक आसान विधि है। संदेश कंप्यूटर में सुरक्षित रहता है, जो डाकघर के रूप में तब तक कार्य करता है, जब तक ग्राही उसके बारे में न पूछे। इस संदेश को टेलीफ़ोन से जुड़े मोडेम का प्रयोग करके देखा जा सकता है।

4. पारस्परिक क्रियात्मक वीडियो - पारस्परिक क्रियात्मक वीडियो का संबंध ऐसे वीडियो-तंत्र से है जो कंप्यूटर और वीडियो का संयोजन है। यह पाठ स्थिर फोटो वीडियो, ऑडियो, स्लाइडों ओवरहेडों आदि का उपयोग करके बहु-माध्यम (मल्टी-मीडिया) को अपनाता है। विभिन्न रूपों में संगृहीत संदेशों से उपभोक्ता अपनी इच्छानुसार संदेश प्राप्त करते हैं। उपभोक्ता की सिस्टम के प्रति जो अनुक्रिया होती है उसी के अनुसार आगे का मार्ग निर्धारित होता है।

5. दूर-सम्मेलन - दूर-सम्मेलन एक पारस्परिक क्रियात्मक समूह संचार है। इसका संबंध भौगोलिक रूप से अलग स्थित व्यक्तियों, भौतिक रूप से दूरस्थ लोगों के बीच संवाद स्थापित करना है। दूर संचार में हुए विकास के फलस्वरूप लंबी दूरियों की यात्रा किए बिना भी बैठकें आयोजित करना संभव हो गया है।

क्रियाकलाप 8

कोई ऐसे दो संदेश लिखिए, जो सड़क के किनारे लगे विज्ञापनों में से आपको याद हैं-

  • संदेश …………………………………………….
    अर्थनिरूपण……………………………………………

  • संदेश …………………………………………….
    अर्थनिरूपण ………………………………………….

इस प्रकार संचार प्रौद्योगिकी ने संचार को अत्यधिक सुविधाजनक बना दिया है। विश्व भर में अधिक-से-अधिक लोग इन प्रौद्योगिकियों का प्रयोग कर रहे हैं। फिर भी मानव संपर्क की अनदेखी नहीं की जा सकती। रोज़मर्रा की जिदगी में भी हमें अलग-अलग व्यक्तियों से आमने-सामने संवाद करना पड़ता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावी संचार के लिए कुछ आधारभूत कौशलों का विकास करना चाहिए। इसके बारे में हम ‘प्रभावी संचार कौशल’ विषयक अगले अध्याय में जानेंगे।

मुख्य शब्द

संचार, सामूहिक संचार, जन संचार, शाब्दिक और गैर-शाब्दिक संचार, संचार माध्यम (मीडिया), संचार प्रौद्योगिकी, ब्लू-टूथ प्रौद्योगिकी, उपग्रह संचार।

समीक्षात्मक प्रश्न

1. संचार शब्द से आप क्या समझते हैं? मौखिक और गैर-शाब्दिक संचार की विभिन्न विधियाँ क्या हैं?

2. संचार प्रक्रिया को उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।

3. “संचार प्रक्रिया में जितनी अधिक इंद्रियाँ शामिल होंगी, संचार उतना ही प्रभावी और दीर्घ होगा”। औचित्य सहित टिप्पणी कीजिए।

4. संचार माध्यम दैनिक जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं? विभिन्न प्रकार के संचार माध्यमों की व्याख्या करें।

5. संचार प्रौद्योगिकी की परिभाषा लिखिए। ऐसी दो आवश्यक संचार प्रौद्योगिकियों की सविस्तार चर्चा करें, जिनसे संचार क्षेत्र में क्रांति आ गई है। अपने उत्तर का औचित्य भी दें।



विषयसूची