अध्याय 05 कपड़े - हमारे आस-पास

5.1 परिचय

कपड़े हमारे चारों ओर हैं। वे हमारे जीवन का महत्वपूर्ण भाग हैं। कपड़े आराम और ऊष्मा प्रदान करते हैं। इनमें विभिन्न रंग, सजावट शैलियाँ और बुनावट होती हैं। किसी एक दिन के कार्यकलाप के बारे में सोचें और याद करें कि स्पर्श आपको कैसा लगता है। बिस्तर से उठने पर आपके चादर और तकिए के लिहाफ कपड़े ही होते हैं। जब आप स्कूल के लिए तैयार होते हैं, नहाने के बाद जिस तौलिए का उपयोग करते हैं, वह एक नरम और सोखता कपड़ा ही होता है, आप स्कूल की ड्रेस पहनते हैं, वह भी एक विशेष प्रकार का कपड़ा ही होता है। जिस स्कूल बैग में आप अपनी किताबें और अन्य वस्तुएँ ले जाते हैं, वह कपड़ा ही है, लेकिन इसकी बनावट अलग प्रकार की होती है वह अलग तरह से बुना होता है। यह थोड़ा सख्त और खुरदरा होता है, लेकिन भार उठाने के लिए काफी मज़बूत होता है। आप अपना घर देखें, लगभग सभी स्थानों पर कपड़े पाएँगे, पर्दों से लेकर किचन के डस्टर तक और पोंछे से लेकर दरी तक। कपड़े, वजन और मोटाई में विभिन्न प्रकार के होते हैं तथा उनके चयन का संबंध - उनके उपयोग के अनुसार होता है।

हाथ में कोई विशेष कपड़ा लेकर उसे खोलते हैं तो आप अधिकांश में धागे जैसी संरचनाएँ निकाल सकते हैं। ये एक-दूसरे के समकोण पर अंतर्ग्रथित अथवा आपस में गुंथे हुए होते हैं जैसे

चित्र 1 - कपड़े से धागे तक

ऊनी कार्डिगन अथवा टी-शर्ट में होता है। इनकी गाँठ बँधी हुई होती है जैसे जाल अथवा लेस में होता है। इन्हें सूत कहा जाता है। अगर आप सूत को खोलने का प्रयास करते हैं तो आप छोटे और स्पष्ट पतले धागे जैसी संरचनाएँ पाते हैं। ये रेशे होते हैं। ये रेशे सभी वस्त्रों की मूल इकाई होते हैं। रेशे, सूत और कपड़ा इन सभी वस्तुओं को वस्त्र उत्पाद अथवा वस्त्र कहा जाता है। एक बार तैयार होने के बाद आगे कई बार कपड़े को संसाधित किया जाता है, संसाधित करने से कपड़े की बनावट में सुधार आ जाता है (सफ़ाई, चमकाना, रंग करना) अथवा यह कपड़े को अधिक चमकीला बना देता है अथवा इसके स्पर्श की गुणवत्ता को बढ़ा देता है, और इसे टिकाऊ बना देता है। इसे परिष्करण (फ़िनिशिंग) कहा जाता है। आजकल बाज़ार में कई प्रकार के कपड़े उपलब्ध हैं, और प्रत्येक की अलग-अलग उपयोगिता है। प्रयोग किया जाने वाला कपड़ा कैसा है, इसका अनुरक्षण कैसे किया जाए, यह रेशा, सूत, कपड़ा और परिष्करण जैसे विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है।

क्रियाकलाप 1

घर, दर्ज़ी की दुकान, कपड़े की दुकान अथवा मित्रों से विभिन्न प्रकार के कपड़ों (फैव्रिक) के नमूने एकत्र करें, प्रत्येक कपड़े का नाम लिखें।

5.2 रेशे के गुण

रेशे के गुण कपड़े के गुणों को निर्धारित करते हैं। रेशा सचमुच महत्वपूर्ण और उपयोगी हो, इसके लिए उसे भारी मात्रा में उपलब्ध होना चाहिए और किफायती होना चाहिए। सबसे अनिवार्य गुण है उसका कताई योग्य होना। यह इसको सूत और कपड़े में सरलता से परिवर्तित करने वाली अनिवार्य विशेषता है। जैसे लंबाई, मजबूती, नम्यता और रेशे की ऊपरी बनावट है। उपभोक्ता के संतोष की दृष्टि से रंग, चमक, भार, आर्द्रता, डाई अवशोषण, लोच जैसे गुण इसमें वांछनीय होते हैं। कपड़े की देखभाल और अनुरक्षण को प्रभावित करने वाले कारक जैसे अपघर्षण, प्रतिरोधक क्षमता, रसायन, साबुन, डिटर्जेट, ताप आदि का प्रभाव और जैविक जीवों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता भी उपभोक्ता के लिए महत्वपूर्ण है।

5.3 वस्त्र रेशों का वर्गीकरण

वस्त्र रेशों को उनके उद्भव के आधार पर (जैसे प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित अथवा विनिर्मित), सामान्य रसायन प्रकार के आधार पर (जैसे - सेल्युलोसिक, प्रोटीन अथवा सिंथेटिक), जातिगत प्रकार के आधार पर (जैसे - जंतु के रोम अथवा जंतु स्राव) और सामान्य ट्रेड नाम के आधार पर (जैसे - पोलीएस्टर, जैसे - टेरीन अथवा डेकरान) वर्गीकृत किया जा सकता है। इसे, कम लंबाई वाला, जैसे - कपास या तंतु, अधिक लंबाई वाला, जैसे रेशम, पोलीएस्टर आदि की कोटि में बाँटा जा सकता है।

प्राकृतिक रेशे

प्राकृतिक रेशे वे होते हैं जो रेशों के रूप में प्रकृति में पाए जाते हैं। प्राकृतिक रेशे चार प्रकार के होते हैं -

(क) सेलुलोसिक रेशे

  1. सीड हेयर्स - कॉटन, कापोक
  2. बास्ट रेशा - लेक्स (लिनेन), हेम्प, जूट
  3. लीफ रेशा - अनानास, अगेव (सीसल)
  4. नट हस्क रेशा - कॉयर (नारियल)

(ख) प्रोटीन रेशे

  1. जंतु रोम - ऊन, विशिष्ट बाल (बकरी, ऊँट), फ़र रेशा
  2. जंतु स्राव - रेशम

(ग) खनिज रेशे - एस्बेस्टस

(घ) प्राकृतिक रबड़

विनिर्मित रेशे (अन्य अध्यायों में इन्हें मानव निर्मित रेशा भी कहा गया है)

आप में से अधिकतर लोगों ने कपास का फूल (जिसमें बीज से रेशे चिपके होते हैं) और अत्यधिक लंबे बालों वाली भेड़ देखी होगी। क्या आप यह सोच सकते हैं कि सूत और कपड़ा निर्माण में इनका उपयोग कैसे किया जाता होगा? फिर भी यह समझना कठिन है कि विनिर्मित अथवा सिथेंटिक रेशे कैसे तैयार हुए।

सबसे पहला विनिर्मित रेशा - रेयान, वाणिज्यिक रूप से सन् 1895 में निर्मित किया गया जबकि अन्य अधिकांश रेशे 20 वीं सदी के उत्पाद हैं।

रेशम जैसा कोई रेशा बनाने की मानवीय इच्छा से संभवतः रेशा बनाने की संकल्पना उत्पन्न हुई होगी। शायद उन्होंने यह सोचा हो कि - रेशम का कीड़ा जो शहतूत के पत्ते खाता है, उन्हें पचाता है और अपनी तंतु-र्गंथियों (दो छिद्र) से तरल पदार्थ उगलता है जो ठोस होने पर रेशम का तंतु (फिलामेंट, कोकून) बन जाता है। इस प्रकार सेल्युलोज पदार्थ के पाचन से रेशम जैसा कुछ निर्मित करना संभव है। अतः काफी लंबे समय तक रेयान को कृत्रिम रेशम अथवा केवल कलात्मक (आर्ट) रेशम कहा जाता था।

गैर-तंतुमय सामग्री को तंतुमय प्रकार में बदलकर सबसे पहले विनिर्मित होने वाले रेशों को बनाया गया। ये मुख्यतः सेलुलोसिक पदार्थ, जैसे कपास अपशिष्ट, अथवा लकड़ी की लुगदी से बनाए गए थे। दूसरी कोटि के रेशे को पूरी तरह रसायनों के उपयोग से संश्लेषित किया गया था। कच्चा-माल चाहे कुछ भी हो, इसे तंतुमय रूप देने की प्रक्रिया समान है।

  • ठोस कच्चे माल को विशिष्ट श्यानता के तरल में परिवर्तित किया जाता है। ऐसा रासायनिक क्रिया, विलयन, ताप अनुप्रयोग अथवा मिश्रण के कारण हो सकता है। इसे चक्रण घोल (स्पिनिंग सोल्यूशन) कहा जाता है।

  • इस घोल को स्पिनरेट - बहुत छोटे छिद्रों वाली सीरीज वाले एक छोटे थिम्बिल आकार के चंचु से ऐसे स्थान में डाला जाता है जिसमें यह ठोस हो जाता है, अथवा पतले तंतुओं के रूप में जम जाता है।

  • जब ये तंतु ठोस हो जाते हैं तब इन्हें एकत्र किया जाता है और अधिक सूक्ष्मता तथा अभिविन्यास के लिए ताना जाता है अथवा इनको ताने और/अथवा बहुल विशेषताओं में सुधार करने के लिए इसे पुनः संसाधित किया जाता है।

चित्र 2 - स्पिनरेट

विनिर्मित रेशों के प्रकार

(क) पुनर्योजित सेलुलोसिक रेशा - रेयान - क्यूप्रैमोनियम, विस्कोस, अति-आर्द्र-मॉड्यूल्स।

(ख) आशोधित सेलुलोसिक एसीटेट- सैकेंडरी एसीटेट, ट्राईएसीटेट।

(ग) प्रोटीन रेशे - अजलॉन

(घ) गैर-सेलुलोसिक (सिंथेटिक) रेशे

(i) नायलॉन

(ii) पोलीएस्टर-टेरीलीन, टेरीन

(iii) एक्रीलिक-ऑर्लान, कैशमीलॉन

(iv) मोडेक्रीलिक

(v) स्पैंडेक्स

(vi) रबड़

(ङ) खनिज रेशे

(i) ग्लास - फाइबर ग्लास

(ii) मैटेलिक - ल्यूरेक्स

कपड़े - हमारे आस-पास

5.4 सूत

सर्जिकल कॉटन, तकियों, रज़ाइयों में भरने के लिए - मैट्रेस और कुशन के लिए वस्त्र जैसे उत्पादों को छोड़कर रेशों के रूप में वस्त्रों का उपयोग हमेशा उपभोक्ता उत्पादों के लिए नहीं किया जा सकता। रेशों को हमारे आस-पास उपलब्ध कपड़ों में परिवर्तित करने के लिए उन्हें बटने की आवश्यकता होती है। यद्यपि कुछ कपड़े जैसे फेल्ट्स अथवा बिना बुने कपड़े ऐसे हैं जिन्हें सीधे रेशों से बनाया जाता है, लेकिन अधिकांश स्थितियों में रेशे मध्यम चरण में संसाधित किए जाते हैं जिन्हें सूत कहा जाता है।

(क) सूत को वस्त्र रेशे फ़िलामेंट अथवा ऐसी सामग्री की लंबी-लंबी बटों के रूप में परिभाषित किया जा सकता हैं जो कपड़ा तैयार करने के लिए हर प्रकार के धागों की बुनाई के लिए उपयुक्त हैं।

सूत प्रसंस्करण

प्राकृतिक स्टेपल रेशे से सूत को संसाधित करने को कताई कहते हैं यद्यपि कताई संसाधित करने का अंतिम चरण है।

पहले सामान्यतया युवा अविवाहित लड़कियाँ बेहतरीन सूत की कताई करती थीं, क्योंकि उनकी उँगलियाँ दक्ष होती थीं। इसी संदर्भ में अविवाहित महिलाओं के लिए ‘स्पिन्सटर’ शब्द का उद्भव हुआ।

सूत संसाधित करने अर्थात् रेशे को सूत में परिवर्तित करने के कई चरण हैं।

अब हम उन पर बारी-बारी से विचार करें -

(i) सफ़ाई - प्राकृतिक रेशों में सामान्यतया उनके स्रोत के आधार पर कपास में बीज अथवा पत्तियाँ, ऊन में टहनियाँ और ऊर्णस्वेद जैसी बाहय अशुद्धियाँ होती हैं । इन्हें हटाया जाता है, रेशों को अलग किया जाता है और लैप्स (ढीले रेशों की वेल्लित शीट) में परिवर्तित किया जाता है।

(ii) पूनी बनाना - लैप्स को खोला जाता है और उन्हें सीधा किया जाता है, इस प्रक्रिया को कार्डिंग (धुनना) और कॉम्बिंग (झाड़न) कहा जाता है। यह प्रक्रिया बालों में कंघी करने तथा उन पर ब्रश करने के समान है। कार्डिंग में रेशों को अलग-अलग किया जाता है और उन्हें सीधा एक-दूसरे के समानांतर रखा जाता है। बेहतरीन कपड़े के लिए लैप्स की धुनाई के बाद उसकी कॉम्बिंग की जाती है। इस प्रक्रिया से छोटी-मोटी अशुद्धियाँ और छोटे-छोटे रेशे दूर हो जाते हैं। तत्पश्चात् लैप को कीप के आकार के यंत्र से निकाला जाता है जिससे इसकी पूनी बनाने में सहायता मिलती है। पूनी खुले रेशों की रस्सी जैसा ढेर होता है जिसका व्यास $2-4$ सेंटीमीटर होता है।

(iii) तनुकरण, तानना और बटना - अब चूँकि रेशों को लंबे तंतुओं में परिवर्तित कर दिया गया है, इन्हें अपेक्षित आकार में बदले जाने की आवश्यकता होती है। इसे तनुकरण कहा जाता है। समरूपता के लिए कई पूनियों को जोड़ा जाता है। पूनियों को धीरे-धीरे ताना जाता है ताकि वे लंबी और बेहतर हो जाएँ। यदि मिश्रित सूत (जैसे कॉट्सवूल - कॉटन और ऊन) की आवश्यकता होती है तो इस चरण में विभिन्न रेशों की पूनियों को एक साथ जोड़ा जाता है। परिणामतः प्राप्त होने वाली पूनी भी मूल पूनी के समान आकार की ही होती है।

तानने के पश्चात् पूनी को रोविंग मशीन (पूनी बनाने वाली मशीन) में डाला जाता है, जहाँ इसे तब तक तनु किया जाता है जब तक यह अपने मूल व्यास $1 / 4-1 / 8$ के माप की नहीं हो जाती रेशों को जोड़े रखने के लिए इन्हें और बटा जाता है। अगला चरण कताई है। इसमें तंतु को सूत के रूप में अंतिम आकार दिया जाता है। इसे अपेक्षित शुद्धता के लिए और फैलाया जाता है और वांछित मात्रा में गूँथा जाता है और शंकु (कोन) पर लपेट दिया जाता है।

चित्र 3 - कपास की कताई

सभी विनिर्मित रेशों को पहले तंतु के रूप में तैयार किया जाता है। एक तंतु से भी सूत बनाया जा सकता है या बहुत सारे तंतुओं को मिलाकर तथा उन्हें गूंथकर एक सूत बनाया जा सकता है। तंतु को स्टेपल लंबाई के रेशों में काटना भी संभव है। तत्पश्चात् इनकी कताई की जाती है जैसा प्राकृतिक रेशों में किया जाता है। इसे काता हुआ सूत (स्पन सूत) कहा जाता है। जब मिश्रित कपड़ा/ सम्मिश्रण की आवश्यकता होती है, जैसे टेरीकोट (टेरीन और सूती) अथवा ‘टेरीवूल’ (टेरीन और ऊन) अथवा पोलीकोट (रेयान और सूती), तब स्टेपल लंबाई के रेशों की भी आवश्यकता होती है।

सूत संबंधी पारिभाषिक शब्दावली

(क) सूत संख्या - आपने धागे की रीलों के लेबल पर कुछ संख्याएँ $20,30,40$ इत्यादि देखी होंगी। यदि आप ध्यान से देखें और तुलना करें कि धागा कितना अच्छा है, तो आपको पता चलेगा कि अधिक संख्या वाली रील अधिक अच्छी होगी। रेशे के भार और इससे बनाए गए सूत की लंबाई के बीच निश्चित संबंध है। इसे सूत संख्या कहा जाता है, जो सूत को बेहतरी का सूचक है।

(ख) सूत की बटें - जब रेशों को सूत में बदला जाता है तो रेशों को साथ जोड़ने के लिए बटें बनाई जाती हैं। इन्हें ट्विस्ट प्रति इंच (टी.पी.आई. या बटें प्रति इंच) कहा जाता है। ढीले बटे हुए सूत मुलायम और अधिक चमकीले होते हैं, जबकि कसकर बटे गए सूत में लकीरें होती हैं, जैसे - जीन्स की डेनिम सामग्री।

(ग) सूत और धागा - सूत और धागा मूलतः समान होते हैं। सूत शब्द अक्सर कपड़े के विनिर्माण में उपयोग किया जाता है जबकि धागा वह उत्पाद है जिसे कपड़ों को जोड़ने के लिए उपयोग में लाया जाता है।

5.5 कपड़ा उत्पादन

बाजार में कई प्रकार के कपड़े उपलब्ध हैं। अभी बताया गया कि मूल रेशे की मात्रा (कपास, ऊन इत्यादि) अथवा सूत के प्रकार, के कारण विभिन्न कपड़ों में भिन्नता होती है। जब आप कपड़े को देखेंगे तो आप विभिन्न संरचनाओं में अंतर कर सकेंगे।

अब हम यह चर्चा करेंगे कि इन कपड़ों का उत्पादन कैसे किया जाता है। अधिकांश कपड़े जो आप देखते हैं, सूत से बने होते हैं। फिर भी, कुछ कपड़े सीधे रेशों से ही बनाए जा सकते हैं।

सीधे रेशों से बनाए जाने वाले कपड़े मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं - फ़ेल्ट्स ( नमदा) और बिना बुने अथवा ब्रॉन्डेड फाइबर वाले कपड़े। ये कपड़े (धुनाई और काम्बिंग के बाद) रेशों को मैट ( matt) का रूप देकर बनाए जाते हैं और फिर उन्हें आसंजित किया जाता है। मैट्स को किसी भी मोटाई और आकार का बनाया जा सकता है।

क्रियाकलाप 2

अपनी कमीज़ अथवा ड्रेस, पैंट/जीन्स, तौलिए, जुराबें, जूतों के फीते, फर्श पर बिछाने वाले फेल्ट्स (नमदा) और कॉर्पेट की सामग्री की संरचना में अंतर जानने का प्रयास करें और उन्हें लिखें।

जैसा कि पहले बताया गया है, अधिकांश कपड़ों के निर्माण में मध्यम सूत चरण आवश्यक होता है। कपड़ा बनाने की विधियाँ बुनाई तथा कुछ हद तक गुँथाई ( बेर्डिंग ) और गाँठ लगाना (नॉटिंग) है।

बुनाई

यह वस्त्र कला का सबसे पुराना रूप है, जिसका उपयोग आरंभ में चटाइयाँ और टोकरियाँ बनाने के लिए किया जाता था। बुने हुए कपड़े में सूत के दो सेटों का उपयोग किया जाता है जिन्हें समकोण पर एक-दूसरे में अंतर्ग्रथित किया जाता है ताकि एक सुसंहत निर्माण किया जा सके। इसे करघा मशीनों पर किया जाता है। सूत के एक सेट को करघे पर लगाया जाता है जो बुने जाने वाले कपड़े की लंबाई और चौड़ाई निर्धारित करता है। इन्हें ताना सूत कहा जाता है। करघे की सहायता से इन सूतों को एक निर्धारित प्रतिबल और समान दूरी पर रखा जाता है। तत्पश्चात् दूसरे सूत को जो पूरक (फिलिंग) सूत है, कपड़ा बनाने के लिए अंतर्ग्रथित किया जाता है। सबसे साधारण अंतर्ग्रथन वह है जब पूरक सूत एकांतर रूप में एक पंक्ति में ताना सूत के ऊपर और नीचे से निकाला जाता है और दूसरी पंक्ति में यह प्रक्रिया उलट हो जाती है। पूरक सूत को ताना सूत की भिन्न संख्या के ऊपर और नीचे एक विनिर्दिष्ट क्रम में निकालकर विभिन्न डिज़ाइन बनाए जा सकते हैं। करघे से जुड़े डोबी और जैक्वार्ड जैसे अटेचमेंट्स से प्रतीकात्मक डिज़ाइन बनाने में भी सहायता मिल सकती है। ताना और पूरक सूत के लिए अलग-अलग रंगों के सूत का उपयोग करने से ये डिज़ाइन और स्पष्ट हो जाते हैं। कुछ डिज़ाइनों में अतिरिक्त सूत का उपयोग किया जाता है, जो ताना अथवा पूरक सूत के समानांतर चलता है। इसे बुनाई के दौरान लूप के रूप में छोड़ दिया जाता है, जिसे बाद में या तो काट दिया जाता है या फिर ऐसे ही रहने दिया जाता है। इसकी बुनावट वैसी ही हो जाती है, जैसी हम तौलिए में देखते हैं (बिना कटा हुआ) अथवा मखमल और कॉर्डुरॉय में देखते है (जिसे काटा गया है)।

बुने हुए कपड़े में सूत की दिशा को ग्रेन कहा जाता है। ताना सूत लंबाई के ग्रेन की ओर अथवा किनारे की ओर जाता है। पूरक सूत चौड़ाई के ग्रेन अथवा वेट (बाना) की ओर जाता है। अतः बुने हुए कपड़े में लंबाई और चौड़ाई को किनारा (सेल्वेज) और बाना (वेट) कहा जाता है। जब आप कपड़ा खरीदते हैं, तब आपने देखा होगा कि इसमें दो कटे हुए और दो आबद्ध किनारे होते हैं। आबद्ध किनारा सेल्वे है। किनारे की ओर कपड़ा सबसे अधिक मजबूत होता है।

ऊन की बुनाई (निटिंग)

सूत के कम-से-कम एक सेट की इंटरलूपिंग को निटिंग (बुनाई) कहते हैं। यह सपाट कपड़े के लिए दो सलाइयों और गोलाकार कपड़े के लिए चार सलाइयों के उपयोग से हाथ द्वारा भी की जा सकती है। मशीन पर भी निटिंग की जा सकती है। इस प्रक्रिया में निटिंग वाली सलाई अथवा मशीन बेड के साथ-साथ फंदे डाले जाते हैं। प्रत्येक अगली पंक्ति पिछली पंक्ति के फंदों के साथ इंटरलूपिंग से बनाई जाती है। सामग्री की चौड़ाई के साथ-साथ सूत आगे बढ़ता है, और इसलिए इसे पूरक अथवा वेफ़्ट निटिंग कहा जाता है। निटिंग की इस विधि का प्रयोग उन वस्तुओं को बनाने के लिए किया जाता है जिन्हें बनाते हुए आकार दिया जा सकता है।

औद्योगिक स्तर पर प्रयुक्त होने वाली निटिंग मशीनें बुनाई वाले करघों की तरह होती हैं। उनमें सूत का सेट मशीन पर फिट किया जाता है (तान सूत की तरह)। संगत सूत के साथ इंटरलूपिंग की जाती है। इसे ताना निटिंग कहा जाता है। इससे सतत् लंबाई वाली सामग्री बनाई जा सकती है जिसे काट कर सिला जा सकता है जैसा कि वेट निटिंग से बने कपड़ों में नहीं होता।

चित्र - 4 वेट निटिंग

चित्र - 5 वार्प निटिंग

बुने हुए कपड़े तेजी से बनाए जा सकते हैं। क्योंकि उनमें फंदे होते हैं, इसलिए उनमें अधिक सुनम्यता होती है और ये चुस्त वस्तुओं, जैसे - बनियान, अंडरवियर, ज़ुराबों इत्यादि के लिए उपयुक्त होती हैं। ये सरंध्र होते हैं और इनमें वायु मुक्त रूप से आ-जा सकती है तथा इनमें आराम से घूमा-फिरा जा सकता है, इसी कारण ये खेल के दौरान पहने जाने वाले वस्त्रों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं।

ब्रेडिंग (गूँथना)

गूँथे गए कपड़ों की सतह विकर्ण रूप में होती है और इन्हें तीन या अधिक सूत को गूँथकर बनाया जाता है, जो एक स्थान से आरंभ होती हैं और अंतर्ग्रथित होने से पूर्व समानांतर होती है। जूते के फीतों, रस्सियों, तारों के लिए रोधन और झालर जैसी वस्तुओं में वेणी (ब्रेड) दिखाई देती है।

नेट्स ( जाल)

ये खुले जालीदार कपड़े होते हैं जिनमें सूतों के बीच में बड़े ज्यामितीय अंतराल होते हैं। इन्हें हाथ अथवा मशीन से सूत में आपस में गाँठ बाँधकर (इंटरनॉटिंग करके) बनाया जाता है।

लेसें

यह विवृत कार्य वाला कपड़ा है जिसमें सूत के जाल से बनाए गए सूक्ष्म डिज़ाइन होते हैं। यह सूत बटने, अंतरवयन (आर-पार बुनाई) और गाँठ बाँधने (नॉटिंग) की प्रक्रियाओं के सम्मिश्रण का उत्पाद है।

5.6 वस्त्र परिष्करण

करघे से तैयार होने के पश्चात् यदि आप वस्त्र को देखेंगे तो आप यह नहीं जान पाएँगे कि यह वही वस्त्र है जो आप बाज़ार में देखते हैं। बाज़ार में उपलब्ध सभी कपड़ों का एक या अधिक बार परिष्करण किया जाता है और सफेद कपड़ों को छोड़कर किसी-न-किसी रूप में उनमें रंग मिलाया जाता है।

क्रियाकलाप 3

कपड़ों के पाँच लेबल एकत्र करें। उक्त जानकारी को उससे मिलाएँ जिसका आपने अभी अध्ययन किया है।

परिष्करण वह विधि है जिससे कपड़े का रूप-रंग, इसकी बुनावट अथवा विशिष्ट उपयोग के लिए उसका प्रयोग बदल सकता है। जो परिष्करण अत्यंत आवश्यक माने जाते हैं उन्हें ‘नियमित’ कहा जाता है। परिष्करण टिकाऊ भी होते हैं (धोने अथवा ड्राइक्लीन करने पर खराब नहीं होते हैं) जैसे डाई करना अथवा इसका नवीकरण करना, जिन्हें धोने पर हट जाने के बाद दोबारा लगाना पड़ता है, जैसे मांड लगाना (स्टार्च करना) अथवा नील चढ़ाना। कार्यों के आधार पर कुछ महत्वपूर्ण परिष्करण इस प्रकार हैं -

  • रूप रंग में परिवर्तन - सफाई करना (रगड़ना, ब्लीचिंग), सीधा करना और चिकना बनाना (कैलेंडर परिष्कृत करना और टेंटरिंग)।

  • बुनावट में परिवर्तन - स्टार्च करना अथवा सरेस लगाना, विशेष कैलेंडर परिष्कृत करना।

  • प्रयोग में परिवर्तन - धोना और पहनना, स्थायी प्रेस, जल विकर्षक अथवा जल रोधक, शलभ अभेद्य, अग्निमंदक अथवा अग्निरोधक, सिकुड़न मुक्त है (सैनफोराइजे़ेशन)।

(क) रंगों से परिष्करण - कपड़े के चयन में, चाहे उसे परिधान के लिए उपयोग किया जाना हो अथवा घर के अन्य कामों में, रंग एक महत्वपूर्ण घटक होता है। जो पदार्थ कपड़े को इस तरह रंगते हैं कि आसानी से रंग नहीं निकलता, उन्हें डाई कहते हैं। डाई करने का तरीका रेशे और डाई की रासायनिक प्रकृति, और वांछित प्रभाव पर निर्भर करता है। रंग चढ़ाने का काम निम्नलिखित स्तरों पर हो सकता है -

  • रेशे के स्तर पर - विभिन्न रंगों के सूत अथवा डिज़ाइन वाले नमदा (फेल्ट) के लिए।
  • सूत स्तर पर - बुने हुए चेक, धारीदार अथवा अन्य बुने हुए पैटर्नों के लिए।
  • कपड़े के स्तर पर - पक्की रंग डाई के लिए सर्वाधिक सामान्य विधि (जैसे - डिज़ाइन रंजन के बाटिक तथा टाइ एंड डाई, और र्पिटिंग)।

(ख) छपाई ( प्रिंटिंग ) - यह डाई (रंग) करने की सबसे उन्नत अथवा विशिष्ट विधि है। इसमें रंगों का स्थानीकृत अनुप्रयोग होता है, जो डिज़ाइन तक ही सीमित होता है। र्पिटिंग में विशेष उपकरणों का उपयोग होता है, जिससे रंग केवल विशिष्ट क्षेत्रों तक ही पहुँचता है। इसलिए इससे कपड़े पर कई रंगों का उपयोग किया जा सकता है। ब्लॉक, स्टेंसिल अथवा स्क्रीन जैसे हाथ के उपकरणों द्वारा र्पिटिंग की जा सकती है और औद्योगिक स्तर पर रोलर र्पिटिंग अथवा ऑटोमैटिक स्क्रीन र्पिटिंग की जाती है।

5.7 कुछ महत्वपूर्ण रेशे

कपास

परिधान और घरेलू वस्त्रों में कपास के रेशे का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। भारत पहला देश है जहाँ कपास उगाई और उपयोग की जाती थी। अभी भी यह सर्वाधिक कपास उगाने वाले क्षेत्रों में से एक है। कपास के रेशे कपास के पौधों के बीजफल से प्राप्त होते हैं। प्रत्येक बीज में काफी मात्रा में रुएँ होते हैं। जब बीज पक जाते हैं तो फली फूट जाती है। ओटाई प्रक्रिया द्वारा रेशों से बीज अलग किया जाता है और इन्हें बड़े-बड़े बंडलों (गठुरों) में कताई के लिए भेजा जाता है।

गुणधर्म

  • कपास एक प्राकृतिक सेलुलोसिक, स्टेपल रेशा है। यह सबसे छोटा रेशा है जिसकी लंबाई 1 सेमी. से 5 सेमी. तक होती है, इसलिए सूत अथवा बनाया गया कपड़ा देखने में चमकहीन होता है और छूने में थोड़ा खुरदरा। यह वज़न में अन्य अधिकांश रेशों की तुलना में भारी होता है।
  • कपास में नमी सोखने की अच्छी क्षमता होती है और यह सरलता से सूख भी जाता है इसलिए गर्मियों में उसका उपयोग आरामदायक होता है।
  • भिन्न-भिन्न भार, सूक्ष्मता, बनावट तथा परिष्करण वाले सभी वस्त्र कपास के सूत से बनते हैं जैसे मसलिन, कैम्ब्रिक, पापलीन, लंबे कपड़े (लठ्ठा), केसमेंट, डेनिम, चादर बनाने का वस्त्र और परिष्करण और फर्नीशिंग सामग्री इत्यादि कुछ सूती कपड़े जो बाज़ार में उपलब्ध हैं।

लिनेन

लिनेन एक बास्ट रेशा है जो लैक्स के पौधे के तने से प्राप्त होता है। छाल के भीतर का गूदेदार भाग बास्ट कहलाता है। रेशे प्राप्त करने के लिए तनों को लंबे समय तक पानी में भिगोया जाता है, ताकि इसका नरम भाग गल जाए इस प्रक्रिया को अपगलन ( रैटिंग ) कहा जाता है। अपगलन के पश्चात् लकड़ी वाले आग को अलग किया जाता है और लिनेन के रेशों को एकत्र किया जाता है, फिर उन्हें कताई हेतु भेजा जाता है।

गुणधर्म

  • लिनेन एक सेलुलोसिक रेशा भी है, इसलिए उसके कई गुणधर्म कपास जैसे होते हैं।
  • रेशा कपास से लंबा और सूक्ष्म होता है, इसलिए इससे बना सूत मजबूत और अधिक चमकीला होता है।
  • कपास की तरह लिनेन भी नमी को तत्काल सोख लेता है, इसलिए आरामदायक होता है। लेकिन यह रंगों को बहुत जल्दी अवशोषित नहीं करता, इसलिए उत्पन्न रंग अधिक चमकदार नहीं होता।

लैक्स पौधा विश्व में बहुत कम क्षेत्रों में उगाया जाता है। साथ ही इसे संसाधित करने के लिए लंबे समय की आवश्यकता होती है, इसलिए लिनेन का उपयोग कपास से कम होता है।

जूट और सन भी लिनेन की तरह बास्ट रेशे हैं। इसके रेशे मोटे होते हैं, और उनकी सुनम्यता अच्छी नहीं होती, इसलिए इनका उपयोग केवल रस्सियाँ और बोरे तथा इसी प्रकार के अन्य उत्पाद बनाने के लिए किया जाता है।

ऊन

ऊन भेड़ के बालों से प्राप्त होती है। इसे बकरी, खरगोश, ऊँट जैसे अन्य पशुओं से भी प्राप्त किया जा सकता है। इन रेशों को विशिष्ट बाल के रेशे कहा जाता है। विभिन्न प्रजाति की भेड़ों के बाल भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं, कुछ भेड़ों को केवल इसलिए पाला जाता है कि वे अच्छी गुणवत्ता के रेशे प्रदान करती हैं। पशु से बाल उतारने की प्रक्रिया को कतरना (शीयरिंग) कहते हैं। यह जलवायु दशाओं के अनुसार वर्ष में एक या दो बार उतारी जा सकती है। कतरने के दौरान बाल को एक पीस में ही रखने का प्रयास किया जाता है जिसे कर्तित ऊन (फ़्लीस) कहते हैं। इससे रेशे अलग करना आसान हो जाता है, क्योंकि शरीर के विभिन्न अंगों के बालों की लंबाई और सूक्ष्मता अलग-अलग होती है। छंटाई के पश्चात् उनसे धूल, ग्रीस, शुष्क स्वेदन हटाने के लिए उन्हें अभिमाजित किया जाता है। फिर कार्बनीकरण किया जाता है जिससे इसमें फंसी हुई पत्तियाँ, और डंठल हटाए जाते हैं। फिर रेशों को कताई के लिए भेज दिया जाता है।

गुणधर्म

  • ऊन एक प्राकृतिक प्रोटीन रेशा है। इसके रेशों की लंबाई 4 सेमी. से 40 सेमी. तक होती है और वह भेड़ की प्रजाति और पशु के शरीर के अंग के अनुसार खुरदरा या नरम होता है। इसमें प्राकृतिक सिकुड़न होती है अथवा यह पहले ही मुड़ा हुआ होता है, जिस कारण इसमें लोच और लंबाई जैसे गुणधर्म होते हैं।
  • अन्य रेशों की तुलना में ऊन में कम मजबूती होती है, लेकिन इसमें लचीलापन और सुनम्यता होती है।
  • ऊन में सतही-शल्क होते हैं जो जल विकर्षक होते हैं। फिर भी यह काफी पानी सोख सकता है, लेकिन सतह गीली महसूस नहों होती। इस क्षमता के कारण यह आर्द्र और ठंडे पर्यावरण में आरामदायक होती है।

सूती, रेयान और पोलीएस्टर के साथ ऊन का मिश्रण किया जाता है, जो इसकी देखभाल और अनुरक्षण गुणधर्मों में सुधार लाती है।

रेशम

रेशम एक प्राकृतिक तंतु रेशा है, जो रेशम के कीड़े के स्राव से निर्मित होता है। यदि रेशम नियंत्रित दशाओं में निर्मित किया जाए, (उगाया गया अथवा शहतूत रेशम) तो मुलायम होता है और लंबे रेशे प्राप्त होते हैं उसके परिणामस्वरूप प्राप्त होने वाला कपड़ा सूक्ष्म, बेहतरीन और चमकीला होता है। यदि रेशम वन्य अथवा प्राकृतिक दशाओं में निर्मित हो तो रेशम खुरदरा, मजबूत और कम लंबाई का होता है। परिणामतः कपड़ा मोटा, खुरदरा लेकिन मजबूत होता है (जैसे टसर रेशम)। अच्छी गुणवत्ता वाले रेशम के उत्पादन के लिए रेशम के कीड़े की खेती सावधानीपूर्वक नियंत्रित की जाती है। इसे रेशम कीट पालन कहा जाता है। तंतु रेशा होने के कारण रेशम की कताई प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन इसे कोकून से रील में सावधानीपूर्वक लपेटा जाना चाहिए। कई तंतुओं को एक साथ मोड़कर सूत बनाया जाता है। यदि तंतु टूट जाता है या कीड़ा कोकून तोड़ देता है, तो टूटे हुए फिलामेंट को कपास की तरह कताई द्वारा संसाधित किया जाता है, इसे कताई की गई रेशम या स्पन सिल्क कहा जाता है।

यह माना जाता है कि रेशम की खोज अचानक उस समय हुई जब एक कीड़े का कोकून चीन की राजकुमारी के चाय के कप में गिर गया। उसने इसे निकाला और पाया कि वह कोकून से एक लंबा तंतु निकाल सकती है। चीनियों ने रेशम उत्पादन की कला को लगभग 500 ई. तक अर्थात् 2000 वर्षों से भी अधिक समय तक गोपनीय बनाए रखा।

गुणधर्म

  • रेशम एक प्राकृतिक प्रोटीन रेशा है। रेशम का स्वाभाविक रंग श्वेताभ से लेकर क्रीम तक होता है। जंगली रेशम भूरे रंग का होता है। रेशम के तंतु बहुत लंबे, सूक्ष्म और चिकने होते हैं। इनकी द्युति अथवा चमक अपेक्षाकृत अधिक होती है। इनमें प्राकृतिक गोंद होता है, जो रेशम को विशद बनावट प्रदान करता है।
  • जिन मजबूत रेशों से कपड़ा बनाया जाता है, रेशम उनमें से एक है। इसकी सुनम्यता अच्छी और सामान्य दीर्घता होती है।

रेयान

यह विनिर्मित सेलुलोसिक रेशा है। सेलुलोसिक इसलिए कि यह लकड़ी की लुगदी से बनता है और विनिर्मित इसलिए कि यह लुगदी रसायनों से संसाधित की जाती है और इसको रेशों के रूप में पुन: निर्मित किया जाता है।

गुणधर्म

  • चूँकि रेयान एक विनिर्मित रेशा है, इसलिए इसके आकार एवं आकृति को नियंत्रित किया जा सकता है। इसका व्यास समान होता है और यह स्वच्छ तथा चमकीला होता है।
  • सेलुलोसिक रेशा होने के कारण इसके अधिकांश गुणधर्म कपास जैसे होते हैं। लेकिन यह कम मजबूत और कम टिकाऊ होता है।

रेयान और विनिर्मित सेलुलोसिक रेशों का मुख्य लाभ यह है कि उसे अपशिष्ट सामग्री से फिर पुनः संसाधित किया जा सकता है। वे देखने में रेशम जैसे होते हैं।

नायलॉन

नायलॉन, पूर्णत: रसायनों से विनिर्मित पहला वास्तविक कृत्रिम रेशा है। सबसे पहले इनका उपयोग टूथब्रश के शूक के रूप में किया गया। सन् 1940 में नायलॉन से बनने वाले प्रारंभिक वस्त्र ज़ुराबें और स्टॉकिंग्स थीं, जिन्हें बेहद सफलता मिली। बाद में इसका उपयोग सभी प्रकार के वस्त्रों के लिए किया जाने लगा। इससे बाद में आने वाले अन्य कृत्रिम रेशों के प्रेरणास्रोत बने।

गुणधर्म

  • नायलॉन तंतु सामान्यतः नरम, चमकीले और समान व्यास के होते हैं।
  • नायलॉन काफी मजबूत और अपघर्षण रोधी होता है। अपघर्षण रोधी होने के कारण इसका उपयोग ब्रश, कार्पेट इत्यादि में उपयुक्त रहता है।
  • नायलॉन अत्यधिक लचीला रेशा है। स्टाकिंग्स जैसे ‘एक आकार’ के वस्त्र हेतु बहुत महीन और पारदर्शी रेशों का उपयोग किया जाता है।
  • नायलॉन एक लोकप्रिय कपड़ा है जिसका उपयोग परिधान, जुराबों, भीतर पहनने के वस्त्रों, तैराकी सूटों, दस्तानों, जाल, साड़ियों आदि में किया जाता है। होज़री और लैंजरी विनिर्माण में मुख्य रूप से इस रेशे का उपयोग होता है। बाह्य परिधान के लिए इसे अन्य रेशों के साथ मिलाया जा सकता है।

पोलीएस्टर

पोलीएस्टर एक अलग किस्म का विनिर्मित कृत्रिम रेशा है। इसे टेरीलीन अथवा टेरीन भी कहा जाता है।

गुणधर्म

  • पोलीएस्टर रेशे का व्यास एक समान होता है, इसकी सतह नरम होती है और यह देखने में सीधा होता है। अंतिम उपयोग की आवश्यकतानुसार इसे कितना भी मजबूत, लंबा और व्यास का बनाया जा सकता है। यह रेशा आंशिक रूप से पारदर्शी और चमकीला होता है।
  • पुनः आर्द्रता ग्रहण करने की क्षमता पोलीएस्टर में कम होती है अर्थात् यह सरलता से पानी को नहीं सोख पाता। गर्म शुष्क-ग्रीष्म काल के महीनों में इसे पहनना आरामदेह नहीं होता।
  • पोलीएस्टर का सर्वाधिक लाभदायक गुणधर्म यह है कि इसमें सलवटें नहीं पड़ती। सामान्य रूप से रेयान, कपास, ऊन और कुछ हद तक बुने हुए रेशम के साथ मिलाकर इस रेशे का अधिक प्रयोग किया जाता है।

एक्रीलिक

यह एक दूसरा कृत्रिम रेशा है। यह ऊन से इतना अधिक मिलता है कि कोई विशेषज्ञ भी दोनों में अंतर नहीं बता सकता। इसे सामान्यतया कैशमिलॉन कहा जाता है। यह ऊन से सस्ता होता है। गुणधर्म

गुणधर्म

सभी विनिर्मित रेशों की तरह इस रेशे की लंबाई, व्यास और महीनता निर्माता द्वारा नियंत्रित की जाती है। इसका रेशा अलग-अलग प्रकार से लहरदार और चमकीला बनाया जा सकता है।

  • एक्रीलिक बहुत अधिक मजबूत नहों होता। मजबूती में यह कपास के रेशे के समान होता है। इसके रेशों में उच्च दीर्घरूपता और बेहतर सुनम्यता होती है।

एक्रीलिक को ऊन के स्थान पर प्रयोग में लाया जाता है और इसका बच्चों के कपड़ों, वस्त्रों, कंबलों और बुने हुए उत्पादों में उपयोग किया जाता है।

इलैस्टोमरी रेशे

अभी तक जिन रेशों का उल्लेख किया गया है, उनके अतिरिक्त कुछ कम प्रचलित रेशे भी हैं। ये हैं इलास्टिक, रबड़ आदि, जिनका विभिन्न रूपों में उत्पादन किया जा सकता है। प्राकृतिक रूप में इसमें रबड़ आता है और इसका कृत्रिम समरूप स्पैंडेक्स अथवा लाइक्रा है। सामान्यतया इनका उपयोग कम सुनम्यता वाले उक्त किसी भी रेशे के साथ मिलाकर किया जा सकता है।

इस अध्याय में कपड़ों के बारे में जानकारी देने के पश्चात् आपको ‘बाल्यावस्था’ खंड के अंतर्गत रेशे से बने परिधानों की दुनिया, जैसे कि वस्त्र के बारे में अवगत कराया जाएगा।

किशोरों को कपड़ों के बारे में जानना आवश्यक है, क्योंकि इससे वे बुद्धिमत्तापूर्वक वस्त्रों का चयन कर सकेंगे। यह एक ऐसी रुचि है जो सभी किशोरों में समान रूप से पाई जाती है। वस्त्रों के अतिरिक्त जो अन्य रुचि किशोरों को आपस में जोड़ती है, वह मीडिया और संचार है। आइए! मीडिया और संचार प्रौद्योगिकी के अगले अध्याय में आपस में जुड़े इन दोनों पहलुओं के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करें।

प्रमुख शब्द

कपड़े, सूत, रेशे, वस्त्र, वस्त्र परिष्करण, बुनाई, निटिंग, कपास, लिनेन, ऊन, रेशम, रेयान, नायलॉन, पोलीएस्टर, एक्रीलिक।

समीक्षात्मक प्रश्न

1. विभिन्न प्रकार के कपड़ों से बनी दैनिक उपयोग की पाँच वस्तुओं के नाम बताएँ।

2. वस्त्र रेशों को कैसे वर्गीकृत किया जाता है? संक्षेप में उनकी विशेषताएँ बताएँ।

3. सूत क्या होता है? सूत संसाधित करने की विभिन्न विधियाँ बताएँ?

4. कपड़ा उत्पादन की प्रक्रियाएँ बताएँ?

5. निम्नलिखित रेशों में से प्रत्येक के कोई तीन गुणधर्म बताएँ?

  • कपास
  • लिनेन
  • ऊन
  • रेशम
  • रेयान
  • नायलॉन
  • एक्रीलिक

- प्रायोगिक कार्य 5

हमारे आस-पास पाए जाने वाले कपड़े

थीम $ \qquad $ हमारे आस-पास पाए जाने वाले कपड़े

कार्य

  1. एक दिन में प्रयुक्त होने वाले कपड़ों और परिधानों को रिकॉर्ड करें।

  2. उत्पाद के प्रति कपड़े की उपयुक्तता का विश्लेषण करें।

प्रयोग की विधि - कोई एक दिन चुनें और उन कपड़ों और परिधानों को नोट करें, जिनका आप दिन भर में उपयोग और अनुभव करते हैं। आप विभिन्न संवर्गों में रिकॉर्ड करने के लिए निम्नलिखित तालिका का उपयोग कर सकते हैं - (स्वयं तथा आस-पास के लिए, तालिका में दिए गए उदाहरण की भाँति)

दिन का समय उपयोग उत्पाद कपड़ा
प्रातः 6.00 बजे स्वयं तौलिया कपास
प्रातः 6.00 बजे आस-पास तकिए का लिहाफ़ कपास

4-5 विद्यार्थियों का समूह बनाएँ और अपने प्रेक्षण एकत्र करें; तथा उनके द्वारा स्कूल और घर पर पहने जाने वाले परिधानों में प्रयुक्त कपड़े पर चर्चा करें।

- प्रायोगिक कार्य 6

हमारे आस-पास पाए जाने वाले कपड़े

थीम $\qquad $ कपड़ों की तापीय गुणधर्म और ज्वलनशीलता

अभ्यास $\qquad $ विभिन्न कपड़ों की दहन जाँच और उसका कोटि विश्लेषण

कार्य का उद्देश्य - कपड़ों की ज्वलनशीलता से कपड़ों को आग में या इसके निकट ले जाने पर होने वाली प्रतिक्रिया की जाँच करने में सहायता मिलेगी। यह उपभोक्ता द्वारा उपयोग के समय कपड़ों के रख-रखाव में मददगार सिद्ध होगा। यह ऐसे कपड़ों जिनमें पाँच तरह के संयोजन होते हैं, ऐसे कपड़ों में रेशे के अंश की पहचान करने की एक विधि भी है।

ताप विभिन्न रेशों को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करता है। कुछ रेशे झुलस जाते हैं, कुछ आग पकड़ लेते हैं, कुछ पिघल जाते हैं, या कुछ आग पकड़ते अथवा कुछ सिकुड़ जाते हैं। कुछ रेशों में आग स्वयं बुझ जाती है और अन्य पूर्णतः अदहनीय होते हैं।

रेशों की दहन संबंधी विशेषताएँ
रेशा आग के समीप आने पर आग में आग से हटाए जाने पर गंध राख अथवा अवशेष
कपास और लिनेन सिकुड़ता नहीं, आग पकड़ लेता है। शीश्र जल जाता है। जलता रहता है पश्चदीप्ति रहती है। जलते हुए कागज जैसी हल्की, मृदु राख, आकृति बनी रहती है।
ऊन और रेशम आग से कुंचित हो जाता है। धीरे-धीरे जलता है। स्वयं बुझ जाती है। जलते बाल जैसी भंगुर होना, कम मात्रा में, संदलन योग्य राख
रेयान सिकुड़ता नहीं है, आग पकड़ लेता है। तेजी से जलता है। तेजी से जलता रहता है। जलते कागज जैसी अत्यधिक कम मात्रा में हल्का, रोएँदार अवशेष
नायलॉन सिकुड़ जाता है। पिघलता है, आग पकड़ लेता है। पिघलता रहता है। तीक्ष्ण कठोर, कत्थई रंग का दाना
पोलीएस्टर सिकुड़ जाता है। पिघलता है, आग पकड़ लेता है। पिघलता रहता है। प्लास्टिक के जलने जैसी कठोर, काले रंग का दाना
एक्रीलिक सिकुड़ता नहीं है आग पकड़ लेता है। तेजी से पिघलने के साथ जलता भी है। जलता रहता है। तीक्ष्ण कठोर, काले रंग के सिलवटदार दानें

प्रयोग विधि

1. कपड़े की एक पतली पट्टी लें (आधा सेमी. से 5 सेमी.)

2. पट्टी को चिमटी अथवा सँडासी से पकड़ें और इसे जलती हुई मोमबत्ती अथवा स्प्रिट लैंप की जलती हुई लौ के पास लाकर दहन की जाँच करें।

सावधानी

इस प्रयोग को अध्यापक के पर्यवेक्षण में मोमबत्ती अथवा स्प्रिट लैंप की बहुत धीमी लौ पर करें। 3. विभिन्न कपड़ों के $4-5$ सैंपल लेकर प्रक्रिया को दोहराएँ और प्रेक्षणों को लिखें।

आग के समीप आने पर आग में आग से हटाए जाने पर गंध अवशेष के बनावट और रंग निष्कर्ष


विषयसूची