अध्याय 03 भोजन, पोषण, स्वास्थ्य और स्वस्थता
3.1 परिचय
किशोरावस्था के आरंभ के साथ ही कई महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। विकास की गति आकस्मिक रूप से तीव्र हो जाती है। चूँकि यह विकास हार्मोनों की गतिविधि के कारण होता है जो कि शरीर के प्रत्येक अंग को प्रभावित करते हैं अतः ऐसे समय में पौष्टिक भोजन खाना अति महत्वपूर्ण है। संपूर्ण बाल्यावस्था में पोषक तत्त्वों की आवश्यकता बढ़ती रहती है, किशोरावस्था में यह शीर्ष पर होती है तत्पश्चात् किशोर के वयस्क होने पर उतनी ही रहती है अथवा उससे कम भी हो सकती है। पुरानी कहावत “जैसा अन्न वैसा तन” अर्थात् आप वैसे ही बनेंगे जैसा आहार लेंगे, सही प्रतीत होती है। हम विभिन्न प्रकार का भोजन जैसे दाल, रोटी, डबलरोटी, चावल, सब्जियाँ, दूध, लस्सी इत्यादि लेते हैं। ये भिन्न प्रकार के भोजन हमें स्वस्थ और स्फूर्त रखने के लिए पोषक तत्त्व प्रदान करते हैं। यह जानना महत्वपूर्ण है कि स्वस्थ रहने के लिए किस प्रकार का भोजन खाना चाहिए भोजन और पोषक तत्त्वों के हमारे स्वास्थ्य पर पड़ने-वाले प्रभाव का विज्ञान “पोषण” कहलाता है।
वास्तव में पोषण और स्वास्थ्य एक सिक्के के दो पहलू हैं। अतः इन्हें एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। स्वास्थ्य, काफी हद तक पोषण पर निर्भर करता है और पोषण जो भोजन हम खाते हैं उस पर निर्भर करता है। अतः स्वास्थ्य और स्वास्थ्य के रख-रखाव का एकमात्र महत्वपूर्ण कारक भोजन ही है।
आइए अब भोजन, पोषण, स्वास्थ्य और स्वास्थ्य के रख-रखाव को परिभाषित करते हैं-
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भोजन वह ठोस अथवा द्रव पदार्थ है जो भीतर निगलने, पचाने और स्वांगीकृत या अवशोषित होने के पश्चात् शरीर को पोषक तत्त्व जैसे अनिवार्य पदार्थ प्रदान करता है और इसे स्वस्थ रखता है। यह जीवन की मूल आवश्यकता है। भोजन ऊर्जा प्रदान करता है, शारीरिक विकास में सहायक होता है तथा ऊत्तकों और अंगों की मरम्मत करता है। यह शरीर की रोगों से रक्षा भी करता है तथा विभिन्न शारीरिक क्रियाओं में मदद करता है।
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पोषण एक विज्ञान है। इस विज्ञान में भोजन, पोषक तत्त्वों और इसमें समाविष्ट अन्य पदार्थों का विवरण शामिल है। इन्हीं पदार्थों से हमारे शरीर के भीतर अनेक कार्य जैसे अन्तर्ग्रहण, पाचन, अवशोषण, उपापचय और उत्सर्जन आदि पूरे होते हैं। हालांकि यह शारीरिक आयामों को दर्शाता है परंतु पोषण के सामाजिक, मनोवैज्ञानिक तथा आर्थिक पहलू भी हैं।
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पोषक तत्त्व भोजन में विद्यमान वे घटक होते हैं जिनकी शरीर को पर्याप्त मात्रा में आवश्यकता होती है। इनमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज, विटामिन, जल तथा रेशा (फाइबर) शामिल हैं। हमें स्वस्थ रहने के लिए सभी पोषक तत्त्वों की आवश्यकता होती है। अधिकांश खाद्य पदार्थों में एक से अधिक पोषक तत्त्व होते हैं, जैसे - दूध में प्रोटीन, वसा इत्यादि होते हैं। पोषक तत्त्वों को हमारे दैनिक उपभोग के लिए आवश्यक मात्रा के आधार पर वृहत् पोषकों (मैक्रोन्यूट्रिएंट्स) तथा सूक्ष्म पोषकों (माइक्रोन्यूट्रिएंट्स) में वर्गीकृत किया जा सकता है। अगले पृष्ठ पर वर्णित चित्र वृहत्पोषक तत्त्वों और सूक्ष्मपोषक तत्त्वों में अंतर दर्शाता है -
3.2 संतुलित आहार
संतुलित आहार वह है जिसमें विभिन्न प्रकार के वे सभी खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं जिनमें दैनिक आवश्यकता के सभी अनिवार्य पोषक तत्त्व जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन, खनिज, जल तथा रेशे समुचित मात्रा और सही अनुपात में विद्यमान होते हैं। संतुलित आहार अच्छे स्वास्थ्य के लिए और स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायक होता है इसके अतिरिक्त यह ऐसी लघु अवधियों, जब आहार की आपूर्ति नहीं हो पाती, का सामना करने के लिए पोषक तत्त्वों की अतिरिक्त सुरक्षा मात्रा अथवा भंडारण भी उपलन्ध कराता है।
अतिरिक्त सुरक्षा मात्रा उपवास के दिनों में अथवा दैनिक आहार में कुछ पोषक तत्त्वों की अल्पकालिक कमी को पूरा करती है। यदि संतुलित आहार व्यक्ति की संस्तुत आहारीय मात्रा (आर.डी.ए. - रिकमैंडिड डायटरी एलाउंसेस) की पूर्ति करता है तो अतिरिक्त मात्रा भी इसमें पहले से शामिल होती है क्योंकि आर.डी.ए. अतिरिक्त मात्रा को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है।
निर्धारित आहार संबंधी मात्रा ( आर.डी.ए. ) = आवश्यकता + अतिरिक्त सुरक्षा मात्रा संतुलित आहार में निम्न बातों पर ध्यान दिया जाता है-
1. इसमें विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं।
2. इसमें सभी पोषक तत्त्व ‘आर. डी. ए.’ के अनुसार होते हैं।
3. इसमें सही अनुपात में पोषक तत्त्व शामिल होते हैं।
4. यह पोषक तत्त्वों हेतु अतिरिक्त सुरक्षा मात्रा उपलब्ध कराते हैं।
5. अच्छे स्वास्थ्य को बनाए और बचाए रखने में मदद करते हैं।
6. लंबाई के अनुपात में अपेक्षित शारीरिक वजन बनाए रखते हैं।
चित्र 1 - हमारे भोजन के आधारभूत पोषक तत्त्व
3.3 स्वास्थ्य और स्वस्थता
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू. एच. ओ.) के अनुसार “स्वास्थ्य शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक रूप से पूरी तरह अच्छा होने की स्थिति है, यह केवल रोगों अथवा अशक्तता के न होने की स्थिति नहीं है।" इस परिभाषा में 1948 से कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।
हम सभी अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखना चाहते हैं अर्थात् जिसमें शारीरिक, सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य सभी शामिल हों। अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आहार में अनिवार्य पोषक तत्त्वों की पर्याप्त मात्रा लेना आवश्यक है।
शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में समझना शायद सबसे अधिक आसान है। मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ है भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से स्वस्थ होने की वह स्थिति जिसमें व्यक्ति अपनी संज्ञानात्मक और भावनात्मक क्षमताओं का उपयोग करने, समाज में कार्य करने और जीवन की रोज़मर्रा की सामान्य माँगों की पूर्ति करने में सक्षम होता है। दूसरे शब्दों में, मान्यता प्राप्त मानसिक विकृति का न होना ही मानसिक स्वास्थ्य का अनिवार्य सूचक नहीं है। मानसिक स्वास्थ्य के मूल्यांकन का एक तरीका यह देखना भी है कि व्यक्ति कितने प्रभावी रूप से और सफलतापूर्वक कार्य करता है। समर्थ और सक्षम महसूस करना, तनाव के सामान्य स्तरों से निपटने में सक्षम होना, संतोषजनक संबंध बनाए रखना, स्वतंत्र जीवन व्यतीत करना; और कठिन परिस्थितियों से उबरना और पुनः संभलना, ये सभी मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण हैं।
स्वस्थता ( फिटनेस ) का मतलब शरीर का बेहतर होना है; यह नियमित व्यायाम, समुचित आहार और पोषण तथा शारीरिक स्वास्थ्य लाभ हेतु उचित विश्राम से प्राप्त होता है। स्वस्थता शब्द का उपयोग दो प्रकार से होता है- सामान्य स्वस्थता (स्वास्थ्य और स्वास्थ्य कल्याण) और विशिष्ट स्वस्थता (खेल अथवा व्यवसाय के विशिष्ट पहलुओं को निष्पादित करने की क्षमता पर आधारित कार्योंमुख परिभाषा)। शारीरिक स्वास्थ्य के रख-रखाव का अर्थ हृदय, रुधिर वाहिकाओं, फेफड़ों और माँसपेशियों की इष्टतम सक्षमता से कार्य करने की क्षमता है। पहले, स्वस्थता से अभिप्राय अकारण थकान के बगैर दैनिक कार्यकलापों को करने की क्षमता होना था। औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप स्वचालन, अधिक खाली समय और जीवनशैली में परिवर्तन के कारण अब यह मानदंड पर्याप्त नहीं है। वर्तमान संदर्भ में, इष्टतम क्षमता अधिक महत्वपूर्ण है।
अब शारीरिक स्वस्थता से अभिप्राय है कार्य और रुचि संबंधी कार्यकलापों को सक्षम और प्रभावी ढंग से करने की शारीरिक क्षमता, स्वस्थ रहना, रोगों के लिए प्रतिरोधकता तथा आकस्मिक परिस्थितियों का सामना करना। स्वस्थता को पाँच श्रेणियों में भी बाँटा जा सकता है- ऐरोबिक व्यायाम द्वारा स्वस्थता, मांसपेशीय मजबूती, मांसपेशीय सहनशीलता, लचीलापन तथा शारीरिक संरचना। स्वस्थ होने से आप मानसिक और भावात्मक चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होते हैं। यदि व्यक्ति स्वस्थ है तो वह तन्दुरुस्त और ऊर्जावान महसूस करता है। स्वस्थता से व्यक्ति नियमित शारीरिक माँगों की शरीर में सुरक्षित ऊर्जा से ही पूर्ति करने में सक्षम होता है ताकि वह अचानक आई चुनौती का सामना कर सके जैसे बस पकड़ने के लिए अचानक भागना।
इस प्रकार स्वास्थ्य पूर्ण मानसिक, शारीरिक और सामाजिक स्वास्थ्य कल्याण की स्थिति है जबकि स्वस्थता शारीरिक श्रम के कार्यों को कर सकने की क्षमता है। एक सुपोषित और स्वस्थ व्यक्ति सीखने में अधिक सक्षम होता है और उसमें अधिक ऊर्जा, सहनशक्ति और स्वाभिमान भी होता है। खान-पान के स्वस्थ तरीके और नियमित व्यायाम से स्वस्थ रहने में निश्चित रूप से सहायता मिलेगी। 12-18 वर्ष की किशोरावस्था में जिनका खान-पान सही नहीं होता और जो अल्पपोषित होते हैं उनमें खान-पान संबंधी विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
3.4 संतुलित आहार की योजना बनाने में आधारभूत खाद्य वर्गों का उपयोग
संतुलित आहार तैयार करने का एक आसान तरीका है, खाद्य पदार्थों को वर्गों में विभाजित करना और फिर यह सुनिश्चित करना कि प्रत्येक वर्ग को भोजन में शामिल किया जाए। प्रत्येक खाद्य वर्ग में समान विशेषताओं वाले विभिन्न खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं। यह समान विशेषताएँ खाद्य पदार्थों का स्रोत, इनके द्वारा निष्पादित की जाने वाली शरीर क्रियात्मक क्रियाएँ अथवा इनमें उपस्थित पोषक तत्त्व हो सकते हैं।
खाद्य पदार्थों को उनमें विद्यमान मुख्य पोषक तत्त्वों के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है। यह वर्गीकरण अनेक कारकों के आधार पर एक देश से दूसरे देश में भिन्न होता है। भोजन-योजना को सुलभ करने के लिए भारत में पाँच खाद्य वर्गों का उपयोग किया जाता है। इन खाद्य वर्गों का वर्गीकरण करते समय खाद्य पदार्थों की उपलब्धता, लागत, भोजन पद्धति और कमी से होने वाले प्रचलित रोगों आदि कारकों को ध्यान में रखा जाता है। प्रत्येक वर्ग में सम्मलित सभी खाद्य पदार्थों में पोषक तत्त्वों की मात्रा बराबर नहीं होती। इसलिए प्रत्येक वर्ग के विभिन्न खाद्य पदार्थों को अदल-बदल कर आहार में शामिल किया जाना चाहिए।
विद्यमान पोषक तत्त्वों के आधार पर हुए वर्गीकरण से यह सुनिश्चित होता है कि शरीर को सभी पोषक तत्त्व प्राप्त हो रहे हैं और प्रत्येक वर्ग में खाद्य पदार्थों की विविधता भी है।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् (आई.सी.एम.आर.) द्वारा पाँच मूलभूत खाद्य वर्गों का सुझाव दिया गया है। यह इस प्रकार हैं -
- अनाज, खाद्यात्र और उनके उत्पाद
- दालें और फलियाँ
- दूध और मांस के उत्पाद
- फल और सब्जियाँ
- वसा और शर्करा
क्रियाकलाप 1
10 ऐसे खाद्य पदार्थों की सूची बनाएँ जो आप आमतौर पर खाते हैं। यह जानने का प्रयत्न करें कि प्रत्येक खाद्य पदार्थ किस खाद्य समूह से संबंधित है। तत्पश्चात् सूचीबद्ध खाद्य पदार्थों में वृहत् पोषक तत्त्वों और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की सूची बनाएँ। उन खाद्य पदार्थों की भी सूची बनाएँ जो सर्वाधिक ऊर्जा के स्रोत हैं।
पाँच खाद्य वर्गों को संक्षिप्त रूप में निम्न सारणी में दिया गया है -
स्रोत- गोपालन सी, राम शास्त्री, बी.वी. और बालासुबह्मण्यम, एस.सी. (1989), न्यूट्रिटिव वैल्यू ऑफ इंडियन फूड्स, हैदराबाद, नेशनल इंस्टीट्ययट ऑफ़ न्यट्रीशन, आई.सी.एम.आर.।
याद रखें
एक ग्राम
कार्बोहाइड्रेट से मिलती है - 4 किलो कैलोरी ऊर्जा
प्रोटीन से मिलती है -4 किलो कैलोरी ऊर्जा
वसा से मिलती है - 9 किलो कैलोरी ऊर्जा
मूलभूत खाद्य वर्गों के उपयोग हेतु दिशा-निर्देश
पाँच खाद्य वर्ग प्रणाली का उपयोग संतुलित आहार की योजना और मूल्यांकन दोनों के लिए किया जाता है। यह दैनिक भोजन संबंधी दिशा-निर्देश है जिसका उपयोग पोषण शिक्षण हेतु भी किया जा सकता है। दिशा-निर्देशों को खाद्य वर्गों के आधार पर अपनाया जा सकता है।
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प्रत्येक आहार में प्रत्येक खाद्य वर्ग से खाद्य पदार्थों को कम-से-कम एक अथवा अधिक बार परोसना (सर्विंग) चाहिए।
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खाद्य पदार्थों का चयन प्रत्येक वर्ग में से करें क्योंकि प्रत्येक वर्ग में खाद्य पदार्थ भले ही समान हैं लेकिन उनमें पोषक तत्त्व एक जैसे नहीं हैं।
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यदि भोजन शाकाहारी है तो आहार में संपूर्ण प्रोटीन गुणवत्ता बढ़ाने के लिए उपयुक्त संयोजनों का उपयोग करें। उदाहरण के लिए अनाज और दालों का संयोजन अथवा भोजन में थोड़ी मात्रा में दूध अथवा दही भी शामिल करना।
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कच्ची सब्जियों और फलों को भोजन में शामिल करना।
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कैल्सियम और अन्य पोषक तत्त्वों की आपूर्ति हेतु कम-से-कम एक बार दूध अवश्य लेना चाहिए क्योंकि दूध में लोहा, विटामिन सी और रेशे के अलावा सभी पोषक तत्त्व शामिल होते हैं।
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अनाज द्वारा कुल कैलोरी के 75 प्रतिशत से अधिक की आपूर्ति नहीं होनी चाहिए।
संतुलित आहार की योजना बनाते समय प्रत्येक खाद्य वर्ग में से खाद्य पदार्थ पर्याप्त मात्रा में चुने जाने चाहिए। अनाज और दालों को पर्याप्त मात्रा में लेना चाहिए। फल और सब्जियाँ भरपूर मात्रा में, मांस आदि आहार सीमित मात्रा में तथा तेल और शर्करा अल्प मात्रा में लेनी चाहिए।
आइए, अब हम आहार मार्गदर्शक पिरामिड के बारे में जानते हैं।
आहार मार्गदर्शक पिरामिड
निम्नलिखित चित्र भारतीयों हेतु आहार मार्गदर्शक पिरामिड को दर्शाता है।
चित्र 2 - आहार मार्गदर्शक पिरामिड
आहार मार्गदर्शक पिरामिड दैनिक खाद्य संबंधी दिशा-निर्देशों का ग्राफिक चित्रण है। यह चित्रण विविधता, संतुलन और अनुपात को दर्शाने हेतु तैयार किया गया है। प्रत्येक खंड का आकार प्रत्येक दिन परोसी जाने वाली निर्धारित मात्रा (सर्विंग्स) को दर्शाता है। नीचे का चौड़ा आधार यह बताता है कि खाद्यात्र प्रचुर मात्रा में लिए जाने चाहिए और ये स्वस्थ आहार की नींव है। अगले स्तर पर फल तथा सब्जियाँ आती हैं, जो यह दर्शाता है कि उनकी आहार में खाद्यात्र से कम प्रधानता है लेकिन फिर भी ये आहार में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। मांस और दूध शिखर के पास एक छोटी पट्टी में हैं। इनमें से प्रत्येक की अल्प आपूर्ति से ही महत्वपूर्ण पोषक तत्त्व जैसे प्रोटीन, विटामिन और खनिज को अत्यधिक वसा और कोलेस्ट्रॉल के बगैर प्राप्त किया जा सकता है। वसा, तेल और मिठाई के लिए शिखर पर थोड़ी-सी जगह है जो दर्शाती है कि इनका बहुत कम उपयोग किया जाना चाहिए।
पिरामिड में एल्कोहलयुक्त पेय पदार्थों को नहीं दर्शाया गया है लेकिन इन्हें भी सीमित मात्रा में लिया जाना चाहिए। मसाले, कॉफी, चाय और डाइट सॉफ्ट ड्रंक्स शायद ही कोई पोषक तत्त्व प्रदान करते हों लेकिन विवेकपूर्ण ढंग से प्रयोग किए जाने पर ये भोजन का स्वाद और आनंद बढ़ा देते हैं।
दैनिक आहार मार्गदर्शक योजना और खाद्य निर्देश पिरामिड खाद्यान्नों, सब्जियों और फलों पर जोर देते हैं। ये सभी वनस्पतिजन्य खाद्य पदार्थ हैं। एक दिन के संपूर्ण आहार का लगभग 75 प्रतिशत इन तीन वर्गों से होना चाहिए। इस कार्यनीति द्वारा सभी लोगों को जटिल कार्बोज, रेशा, विटामिन और खनिज तथा बहुत कम मात्रा में वसा प्राप्त होगी। इसके द्वारा शाकाहारी लोगों के लिए आहार-योजना सरलता से तैयार की जा सकती है।
3.5 शाकाहारी आहार
शाकाहारी आहार मुख्यतः वनस्पतिजन्य खाद्य पदार्थों पर निर्भर होता है जैसे- खाद्यान्न, सब्जियाँ, फली, फल, बीज और सूखे मेवे। कुछ शाकाहारी आहारों में अंडा, दूध से बनी वस्तुएँ अथवा दोनों शामिल होते हैं। जो लोग मांस अथवा दूध से बनी वस्तुएँ नहीं खाते वे आहार को पर्याप्त बनाने हेतु दैनिक खाद्य निर्देशिका का उपयोग कर सकते हैं। इनमें खाद्य वर्ग एक समान होते हैं और परोसनों (सर्विंग्स) की संख्या भी बराबर होती है। शाकाहारी लोग मांस के विकल्प के रूप में फली, बीज, सूखे मेवे, टोफू का और जो अंडे खाते हों वे अंडों का चयन कर सकते हैं। फली और कम-से-कम एक कप हरी पत्तेदार सब्जियाँ उतना लौह तत्त्व प्रदान करती हैं जितना सामान्यतया मांस द्वारा प्राप्त होता है। जो शाकाहारी लोग गाय का दूध नहीं पीते वे ‘सोया-दूध’ ले सकते हैं जो सोयाबीन से बना होता है और यदि इसे अतिरिक्त कैल्शियम, विटामिन डी और विटामिन बी-12 से युक्त करके अधिक पौष्टिक बनाया गया हो (अर्थात् इन पोषक तत्त्वों को इसमें मिलाया गया हो) तो यह उसी के समान पोषक तत्त्व प्रदान करता है।
खाद्य निर्देश पिरामिड में दर्शाए गए पाँच खाद्य वर्गों में से तीन निचले भागों के खाद्य पदार्थों पर अधिक बल दिया गया है। इनमें से प्रत्येक खाद्य वर्ग आपके लिए आवश्यक सभी पोषक तत्त्व प्रदान न कर केवल कुछ पोषक तत्त्व प्रदान करते हैं। एक वर्ग के खाद्य पदार्थ अन्य वर्ग के खाद्य पदार्थों की जगह प्रयुक्त नहीं किए जा सकते। कोई भी एक वर्ग दूसरे से अधिक महत्वपूर्ण नहों है- अच्छे स्वास्थ्य के लिए आपको इन सभी की आवश्यकता है।
पिरामिड वह रूपरेखा है जो बताती है कि आपको प्रतिदिन क्या खाना है। यह बिलकुल सही नुस्खा नहीं है बल्क एक सामान्य दिशा-निर्देश है जिससे आपको अपने लिए सही और स्वास्थ्यवर्धक आहार का चयन करने में सहायता मिलती है। पिरामिड में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ खाने की सलाह दी गई है ताकि आपको आवश्यक पोषक तत्त्व मिलें और साथ ही उपयुक्त वज़न बनाए रखने के लिए सही मात्रा में कैलोरी भी मिले।
3.6 किशोरावस्था में आहार संबंधी पैटर्न
किशोर के स्वास्थ्य और गुणवत्ता के लिए स्वास्थ्यवर्धक भोजन खाना महत्वपूर्ण है। किशोरों की पोषण संबंधी आवश्यकताएँ अत्यधिक भिन्न होती हैं लेकिन सामान्यतया वयः संधि (यौवनारंभ) के दौरान तीव्र वृद्धि तथा शारीरिक संरचना में परिवर्तन के कारण ये बढ़ जाती हैं। समग्र भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त पोषण महत्वपूर्ण है। खान-पान संबंधी अच्छी आदतों से भविष्य में मोटापा, हृदय संबंधी रोग, कैंसर और मधुमेह जैसे चिरकालिक रोगों से बचा जा सकता है।
पोषक तत्त्व अंतर्ग्रहण संबंधी अध्ययनों से पता चलता है कि किशोरों में निर्धारित मात्रा से कम मात्रा में विटामिन-ए, थायमिन, लौह तत्त्व और कैल्शियम लेने की संभावना रहती है। वर्तमान में जितना इष्टतम माना जाता है वे उससे अधिक मात्रा में वसा, शर्करा, प्रोटीन और सोडियम लेते हैं।
दो भोजनों के बीच में खाने की आदत पर तो अक्सर चिंता व्यक्त की जाती है परंतु यह देखा जाता है कि किशोर पारंपरिक भोजन से हटकर खाए गए भोजन से काफी पोषण प्राप्त करते हैं। उनके द्वारा खाए जाने वाले भोजन का चयन खाने के समय अथवा स्थान से अधिक महत्वपूर्ण है। वे अधिक ऊर्जा और प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थ आमतौर पर चुनते हैं। इनके पूरक के रूप में ताजा सब्जियों और फलों तथा संपूर्ण खाद्यान्न उत्पादों पर बल दिया जाना अति आवश्यक है।
किशोरों की खान-पान संबंधी सामान्य आदतें क्या हैं और उन्हें पहचानना क्यों आवश्यक है? उनके आहार पैटर्न को समझने से हमें आहार की पोषण संबंधी पर्याप्तता का बेहतर मूल्यांकन करने में और यह सुनिश्चित करने में कि वे स्वास्थ्य और कुशलता हेतु न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहे हैं, सहायता मिलेगी। सामान्य खान-पान संबंधी सनक में भोजन न खाना, नियमित रूप से फ़ास्ट फ़ूड खाना, फल और सब्जियाँ न खाना, बार-बार नाश्ता (स्नैक) लेना और डाइटिंग करना शामिल हैं। इन सभी मुद्ों को अलग-अलग संबोधित करके आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि आप पोषण संबंधी न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा कर रहे हैं।
भोजन में अनियमितता और एक बार भोजन न करना - किशोरावस्था आरंभ होने से इसके अंतिम वर्षों तक किशोरों में खाना न खाने और घर से बाहर खाने की संख्या बढ़ती जाती है जो स्वतंत्रता और घर से बाहर समय बिताने की बढ़ती आवश्यकता को दर्शाती है। रात्रि का भोजन दिन का सर्वाधिक नियमित रूप से खाया जाने वाला भोजन है। लड़कों की तुलना में लड़कियाँ अधिकतर शाम का खाना, सुबह का नाश्ता और दोपहर का भोजन खाना छोड़ देती हैं। सीमित संसाधनों वाले कई घरों में किशोरों को पर्याप्त संख्या अथवा मात्रा में भोजन भी नहीं मिलता जिससे उनके भीतर पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है।
जनसमुदाय के अन्य किसी आयु-वर्ग की तुलना में किशोरों और 25 वर्ष की आयु से कम के युवाओं द्वारा अकसर नाश्ते की उपेक्षा की जाती है और नाश्ता नहीं खाया जाता। लड़कियाँ, लड़कों की अपेक्षा ज़्यादातर नाश्ता नहीं लेती हैं, इसका एक संभावित कारण पतला होने की कोशिश करना और बार-बार डाइटिंग करने के प्रयास हो सकते हैं। बहुत-सी किशोर लड़कियाँ यह मानती हैं कि वे नाश्ता अथवा दोपहर का भोजन नहीं खाएँगी तो अपना वजन नियंत्रित कर सकती हैं। वास्तव में, इस प्रयास से बिल्कुल विपरीत प्रभाव होता है। मध्याह्न या दोपहर के भोजन के समय तक उन्हें इतनी अधिक भूख लग आती है कि वे “बचाई हुई किलोकैलोरी” की क्षतिपूर्ति के लिए और अधिक कैलोरी ग्रहण कर लेती हैं। वस्तुतः नाश्ता न खाने से चयापचय धीमा हो जाता है और इसके परिणामस्वरूप वजन बढ़ता है और कार्य क्षमता में कमी आती है।
स्वल्पाहार ( स्नैकिंग) - स्वल्पाहार (स्नैकिंग) किशोरों के लिए शायद जीने का तरीका है। ज़रूरी नहीं कि यह खराब आदत हो। विशेष तौर पर सक्रिय और बढ़ते हुए किशोरों में यह ऊर्जा स्तर बनाए रखने में सहायता करता है। कई किशोर प्रतिदिन तीन बार नियमित भोजन नहीं कर पाते क्योंकि उनमें कोई-न-कोई भोजन छोड़ देने की प्रवृत्ति होती है। इसलिए वास्तव में स्नैकिंग अनिवार्य पोषक तत्त्वों के पर्याप्त अंतर्ग्रहण को सुनिश्चित रखने के लिए लाभकारी है। फिर भी केवल स्वल्पाहारों पर जीवित रहना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
फ़ास्ट फ़ूड - किशोरों में, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में, फ़ास्ट फ़ूड खाने की अधिक प्रवृत्ति होती है क्योंकि यह सुविधाजनक होता है और यह प्रारूपिक रूप से एक सामाजिक मसला है और उनका यह मानना है कि यह आजकल का फ़ैशन है। अक्सर फ़ास्ट फ़ूड में “वसा” और “कैलोरी” भरपूर मात्रा में होती है। फ़ास्ट फ़ूड रेस्टोरेंट में भी खाना खाने के संबंध में हमें बेहतर विकल्प चुनने चाहिए। सारणी 2 में फ़ास्ट फ़ूड के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है।
डाइटिंग- किशोरों में मोटापा एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। संपूर्ण जनसमुदाय में शरीर का आदर्श वजन बनाए रखने के लिए हस्तक्षेप किए जाने की आवश्यकता है। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो उनमें से 80 प्रतिशत लोग वयस्क होने पर सामान्य से अधिक मोटे होंगे। इससे उन्हें डायबिटीज़, उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल और स्लीप एपनिया (सोते समय श्वास-रोध) सहित कई चिकित्सा संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।
सारणी 2 - फास्ट फूड्स की पोषण संबंधी परिसीमाएँ
निम्नलिखित कारक फ़ास्ट फूड भोजनों की पोषण संबंधी प्रमुख सीमाएँ दर्शाते हैं-
कैल्शियम, राइबोलोविन, विटामिन ए - दूध अथवा मिल्कशेक को छोड़कर बाकी फास्टफूड में ये तीनों अनिवार्य पोषक तत्त्व कम होते हैं।
फ़ोलिक अम्ल, फ़ाइबर - बहुत कम फ़ास्ट फ़ूड्स इन प्रमुख कारकों के स्रोत होते हैं।
वसा - कई भोजन संयोजनों में वसा से प्राप्त ऊर्जा की उच्च मात्रा होती है।
सोडियम - फ़ास्ट फ़ूड भोजन में सोडियम की मात्रा अधिक होती है जो कि वांछनीय नहीं है।
ऊर्जा - सामान्य भोजन संयोजनों में अन्य पोषक तत्त्वों की मात्रा की तुलना में ऊर्जा की मात्रा बहुत अधिक होती है।
यद्यपि फ़ास्ट फ़ूड आहार पोषक तत्त्व प्रदान करते हैं लेकिन वे किशोरों की पोषण संबंधी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करते। किशोरों और स्वास्थ्य कर्मियों दोनों को यह समझना चाहिए कि फ़ास्ट फूड पोषणीय दृष्टि से तभी स्वीकार्य होते हैं यदि इनका उपभोग उपयुक्त तरीके से और संतुलित आहार के एक भाग के रूप में किया जाए। लेकिन जब वे आहार का मुख्य भाग बन जाते हैं तो यह चिता का कारण है। पोषक तत्त्व संबंधी असंतुलन कुछ वर्षों तक समस्या नहीं लगता जब तक कि कोई विशिष्ट समस्या जैसे कोई पुराना रोग उत्पत्न नहीं होता। तथापि यह दर्शाने के लिए काफी प्रमाण हैं कि किशोरों का भोजन अंतर्ग्रहण पैटर्न जीवन में आगे चलकर उनके स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
फिर भी सामान्य वजन वाले किशोर अक्सर इसलिए डाइटिंग करते हैं क्योंकि उनकी धारणा है कि ‘पतला होना’ फैशन में है। मीडिया से लड़कियों को ‘पतला होने’, सुंदर शरीर की धारणाओं और शरीर का वजन कम करने के संबंध में बहुत जानकारियाँ मिलती रहती हैं। ऐसे समाज के संदर्भ में जो शारीरिक सुंदरता को अधिक महत्त्व देता है, ये छवि किशोरों को मिश्रित संदेश देती है जिसके परिणामस्वरूप वजन कम करने के हानिकारक और अनावश्यक प्रयास किए जाते हैं।
विशेषज्ञों की निगरानी में न की गई डाइटिंग के परिणाम हानिकारक हो सकते हैं जिसमें किशोरों में खान-पान संबंधी विसंगतियाँ भी शामिल हैं। डाइटिंग के कुछ लक्षण हैं - भोजन छोड़ देना, थोड़ा थोड़ा करके खाना, उपवास करना अथवा विरेचक दवाओं अथवा डाइट पिल्स का उपयोग करना। इस प्रकार की डाइटिंग के परिणामों में वजन कम करने और पुनः वही वजन प्राप्त करने के चक्र के साथ, खान-पान संबंधी विकृतियाँ और मोटापा, आत्मविश्वास में कमी होना और अन्य मनोवैज्ञानिक समस्याएँ होने की संभावना होती है। इसके परिणामस्वरूप कार्डियोवेस्कुलर (हृदय संबंधी समस्याएँ) जोखिम और बढ़ सकता है और मृत्यु भी हो सकती है।
डाइटिंग से संबंधित समस्याओं को दूर करने के लिए एक उपाय यह है कि ‘डाइट’ शब्द को हटाकर इसके स्थान पर स्वस्थ खान-पान को प्रतिस्थापित किया जाए। यदि आप जीवन में नियमित रूप से स्वस्थ जीवनशैली और स्वस्थ आहार पद्धति अपनाते हैं तो आपको निरंतर डाइटिंग करने की आवश्यकता नहीं होगी। स्वस्थ आहार को बढ़ावा देने के लिए खान-पान संबंधी अच्छी आदतों की पहचान करना पहला कदम है। स्वस्थ जीवन शैली अपनाना सर्वोत्तम है जिसमें स्वस्थ खान-पान संबंधी आदतें और नियमित व्यायाम शामिल है।
3.7 आहार संबंधी व्यवहार में परिवर्तन करना
आपने ‘स्वयं पर आधारित अध्याय में पढ़ा है कि किशोरावस्था वह समय है जब व्यक्ति प्राधिकार के संबंध में प्रश्न करना आरंभ कर देता है और अपनी हैसियत को स्थापित करने का प्रयास करता है। खान-पान संबंधी आचरण उन माध्यमों में से एक है जिनके द्वारा किशोर वैयक्तिकता को अभिव्यक्त करते हैं। अतः कई बार साथियों के कहे अनुसार घर का नियमित खाना (जो स्वास्थ्यकारी है) न खाना और बाहर खाना (जो स्वास्थ्यकारी नहीं है) किशोरावस्था में एक सामान्य-सी बात है। हमारे लिए जीवनशैली और आहार पद्धति को बदलना तभी सरल है, यदि हमें यह विश्वास हो कि हम ऐसा करना चाहते हैं। ऐसे कौन से तरीके हैं जिनसे किशोर अपने खुद के व्यवहार को बदल सकते हैं? अगले भाग में स्वस्थ आहार पद्धतियों को कैसे अपनाया जाए, इस बारे में हम और अधिक विस्तार से पढ़ेंगे।
टीवी देखने के समय को सीमित करना - टीवी देखने का समय प्रतिदिन लगभग एक या दो घंटे तक सीमित होना चाहिए (इसमें वीडियो गेम खेलना अथवा कंप्यूटर का उपयोग करना भी शामिल है)। टीवो देखने में अधिक कैलोरी का उपयोग नहीं होता है और यह गलत ढंग से खाने को बढ़ावा देता है क्योंकि टीवी देखते हुए कुछ न कुछ खाते रहना सामान्य-सी बात है। जो ऐसा करते हैं उनमें सामान्यतः अत्यधिक भोजन खाने या अत्यधिक कम भोजन खाने की आदत पाई जाती है।
खान-पान संबंधी स्वस्थ आदतें - प्रतिदिन तीन बार औसत मात्रा में पूर्ण संतुलित आहार तथा दो बार पोषक तत्त्वों से भरपूर नाश्ता लें। कोशिश करें कि आप कोई भी भोजन न छोड़ें।
स्वल्पाहार (स्नैक्स ) - दिन में केवल दो बार स्नैक्स लिए जाने चाहिए और इसमें कम कैलोरी वाले खाद्य पदार्थ जैसे कच्चे फल अथवा सब्जियाँ शामिल की जा सकती हैं। स्नैक्स के लिए उच्च कैलोरी अथवा उच्च वसा युक्त भोजन विशेषकर आलू के चिप्स, बिस्कुट और तले हुए खाद्य पदार्थों का उपयोग न करें। निस्संदेह आप एकाध बार अपना मनपसंद स्नैक खा सकते हैं लेकिन इसे आदत नहीं बनाया जाना चाहिए।
पानी पीना - रोज चार से छह गिलास पानी पीना विशेषकर भोजन से पहले पानी पीना अच्छी आदत है। पानी में कोई कैलोरी नहीं होती और इससे पेट भरा होने का एहसास होगा। सॉफ्ट ड्रिंक्स और फलों के जूस बार-बार न पीएँ क्योंकि इनमें अत्यधिक ऊर्जा होती है (150-170 कैलोरी प्रति आपूर्ति)।
डाइट जर्नल - इससे भोज्य पदार्थ और पेय पदार्थ के अंतर्ग्रहण, टीवी देखने, वीडियो गेम खेलने और व्यायाम के समय का साप्ताहिक ब्यौरा रखने में सहायता मिलेगी। प्रत्येक सप्ताह शरीर का वजन मापना अच्छी आदत है।
व्यायाम - यह स्वस्थ जीवन के लिए अनिवार्य है। पाठ्येतर कार्यकलापों जैसे खेल इत्यादि में भाग लेने से सक्रियता स्तर को उच्च बनाए रखने में सहायता मिलती है। शारीरिक कार्यकलापों को बढ़ाने संबंधी कुछ संकेत निम्नलिखित हैं-
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थोड़ी दूरी तक जाना हो तो पैदल चलें अथवा साइकिल चलाएँ।
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बिल्डिंग में लिफ्ट के बजाय सीढ़ियों का उपयोग करें।
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प्रत्येक सप्ताह में 3-4 बार, 20-30 मिनट के लिए नियमित व्यायाम करें। इसमें टहलने, जॉगिंग करने, तैरने अथवा बाइक चलाने को शामिल किया जा सकता है। खेल क्रीड़ाएँ जैसे रस्सी कूदना, हॉकी, बास्केट बॉल, वॉलीबॉल अथवा फुटबॉल खेलना और योग करना सभी आयु वर्गों के लिए उचित है।
नशीले पदार्थों का उपयोग एवं दुरुपयोग - किशोरावस्था में मादक पदार्थों का सेवन और दुरुपयोग बहुत महत्वपूर्ण और चिंताजनक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। किशोरों द्वारा तंबाकू, शराब (ऐल्कोहल), मेरीज़ुआना और अन्य नशीली दवाओं का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। नशीली दवा और शराब के सेवन से किशोरों के पोषण और स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। ऐसे किशोरों की शारीरिक और मनो-सामाजिक पुनर्वास प्रक्रिया में पोषण संबंधी हस्तक्षेप, समर्थन और परामर्श महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अभी तक जो चर्चा हमने की है वह शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में रहने वाले किशोरों के संदर्भ में अधिक संगत है। ग्रामीण परिवेश इससे भिन्न होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में लड़के और लड़कियाँ अकसर कृषि संबंधी कार्यों में संलग्न रहते हैं। वे अपने माता-पिता को मुर्गी पालन, पशु पालन, मधुमक्खी पालन जैसे उद्यमों में भी सहायता कर रहे हो सकते हैं। लड़के खेती में सहायता करते हैं। जब माता-पिता आजीविका के लिए कार्य करते हैं तो लड़कियाँ छोटे भाई-बहनों की देखभाल करने, खाना बनाने और साफ-सफाई करने में भी सहायता करती हैं। इसके अलावा पशुओं के लिए चारा इकट्ठा करने, लकड़ी इकट्ठा करने और पानी लाने का कार्य भी होता है। जनजातीय क्षेत्रों में अधिकांश लोग वन उत्पादों जैसे - सरस फलों (बौरो), फूल, पत्तियों, कंद-मूलों पर निर्भर होते हैं। वे इन उत्पादों को एकत्र करने और इनको संसाधन करने में समय व्यतीत करते हैं।
इन कार्यों में संलग्न लड़कियों और लड़कों का सक्रियता स्तर उच्च होगा और इसलिए उनकी ऊर्जा संबंधी आवश्यकताएँ अधिक होंगी। किशोरावस्था में वृद्धि के उच्च दर के कारण प्रोटीन संबंधी आवश्यकताएँ भी अधिक होती हैं। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों के अत्यधिक गरीब समुदायों में किशोरों के कुपोषित होने की संभावनाएँ अधिक होती हैं। लड़कियाँ विशेष रूप से रक्ताल्पता (खून में लौह तत्त्व की कमी) से पीड़ित होती हैं और उन्हें स्वस्थ रहने के लिए ऐसे खाद्य पदार्थों की आवश्यकता होती है जिनमें लौह तत्त्व प्रचुर मात्रा में मौजूद हों। ग्रामीण क्षेत्रों में धनी परिवारों के किशोरों को शहरी परिवारों में उच्च आय वर्गों के किशोरों के समान ही कई समस्याएँ होंगी। वे अधिकतर निष्क्रिय रहने वाले और वसा एवं कार्बोहाइड्रेट की प्रचुर मात्रा वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करने वाले होंगे।
किशोरावस्था और एनीमिया (रक्ताल्पता)
विश्वभर में लगभग दो बिलियन लोग एनीमिया से ग्रस्त हैं जो कि मुख्यतः लौह तत्त्व की कमी से होता है। यह मुख्यतः महिलाओं और लड़कियों को प्रभावित करता है। 2005-2006 में हुए नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3 (एन.एफ.एच.एस.-3) से पता चलता है कि तीस प्रतिशत किशोर लड़कों की तुलना में 56 प्रतिशत किशोर लड़कियाँ एनीमिया से ग्रस्त हैं। इसकी तुलना में 6 से 59 माह की आयु-वर्ग के छोटे बच्चों में यह आँकड़ा 70 प्रतिशत है। यह भी देखा गया है कि 1991-92 में हुए पिछले सर्वेक्षण की तुलना में एनीमिया के मामले इस समय वास्तव में बढ़ रहे है।
भारत जैसे विकासशील देशों में गरीबी, अपर्याप्त आहार, खास बीमारियों, बार-बार गर्भधारण करने और स्तनपान कराने तथा स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच की कमी के कारण एनीमिया असंगत रूप से अधिक है।
एनीमिया दूर करने के प्रयास करने हेतु किशोरावस्था सबसे बेहतर समय है। वृद्धि संबंधी आवश्यकताओं के अतिरिक्त गर्भावस्था से पूर्व लड़कियों को लौह तत्त्व के स्तर को सुधारना आवश्यक है। लड़कों और लड़कियों को स्कूलों द्वारा मनोरंजन संबंधी कार्यकलापों और जनसंचार माध्यमों के द्वारा एनीमिया के बारे में जानकारी दी जा सकती है। लौह तत्त्व युक्त खाद्य पदार्थों और जहाँ आवश्यक हो लौह तत्त्व संपूरकों के बारे में जानकारी देने के लिए भी इनका प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सकता है।
चित्र 3 - किशोरों के खान-पान संबंधी आचरण को प्रभावित करने वाले कारक
3.8 खान-पान संबंधी आचरण को प्रभावित करने वाले कारक
किशोरावस्था में पहुँचने पर व्यक्ति की खान-पान संबंधी आदतों को कई चीज़ें प्रभावित करती हैं और इन आदतों का निर्माण अत्यंत जटिल होता है, जैसा कि चित्र 3 में दर्शाया गया है। किशोरों की बढ़ती हुई स्वतंत्रता, सामाजिक जीवन में बढ़ती भागीदारी और सामान्य तौर पर व्यस्त कार्यक्रम का उनके खान-पान पर निश्चित प्रभाव पड़ता है। अब वे अपने लिए खाना खरीदने और स्वयं बनाने के लिए सक्षम होने लगते हैं और अक्सर जल्दी-जल्दी खाते हैं और घर से बाहर खाते हैं।
किशोरों को समुचित रूप से स्वस्थ खान-पान संबंधी आदतें बनाने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए अभिभावकों (माता-पिता) को बच्चों को उनके विकासकाल के दौरान विभिन्न प्रकार के पोषणीय खाद्य पदार्थों में से चुनने का अवसर देना चाहिए। जब तक वे किशोरावस्था में पहुँचेंगे उन्हें रसोई घर का उपयोग करने के लिए कुछ स्वतंत्रता चाहिए होगी। यह लड़कों और लड़कियों दोनों पर सटीक बैठता है।
वैसे तो खान-पान संबंधी आदतों का मूल आधार परिवार है, लेकिन इन पर बाहर का भी कुछ प्रभाव पड़ता है। किशोरावस्था में हमजोलियों की संगति का प्रभाव समर्थन और तनाव दोनों के लिए कारगर हो सकता है। हमजोलियों की सहायता सामान्य से अधिक वजन वाले किशोरों के लिए सहायक हो सकती है, लेकिन वही दोस्त कभी उसे चिढ़ाने का कारण भी बन सकते हैं।
विज्ञापनों में दिए गए संदेशों के प्रति किशोर अत्यधिक संवेदनशील होता है। टीवी में खाद्य पदार्थों के विज्ञापनों और कार्यक्रम में दर्शाई गई खान-पान की आदतों ने दशक से अधिक समय से लोगों को प्रभावित किया है। अधिकांश विज्ञापन अत्यधिक शर्करा और वसा वाले उत्पादों के लिए होते हैं। अतः किशोरों को इन खाद्य उत्पादों का उपयोग विवेक से करना चाहिए।
तैयार भोजन (रेडी टू ईट) की सरल उपलब्धता भी किशोरों की खान-पान संबंधी आदतों को प्रभावित करती है। होम डिलीवरी द्वारा/वेंडिंग मशीनों से, सिनेमा हॉल में, मेलों में, खेल कार्यक्रमों में, फास्ट फूड बिक्री केंद्रों पर और सुविधाजनक किराने की दुकानों पर दिनभर खाना उपलब्ध रहता है। इसलिए किशोर कई बार खाते हैं, और ऐसे पदार्थ खाते हैं जो स्वास्थ्यकर नहीं होते। इन प्रवृत्तियों पर नज़र रखनी चाहिए।
3.9 किशोरावस्था में होने वाली खान-पान संबंधी विकृतियाँ
किशोरावस्था में शारीरिक विकास तीव्रता से होता है और शरीर की छवि के निर्माण का भी विकास होता है। इस समय खान-पान संबंधी विकृतियों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। ये परिवर्तन आत्मविश्वास संबंधी समस्याएँ बढ़ा देते हैं। उदाहरण के लिए ऐनोरेक्ज़या नर्वोसा वह विकृति है, जो शारीरिक छवि को बिगाड़ने से जुड़ी है, और सामान्यतया किशोरावस्था में ही दिखाई देती है। इस उम्र में व्यक्ति अपने पहचान के संकट से जूझ रहा होता है और शारीरिक छवि संबंधी समस्याओं के प्रति सर्वाधिक संवेदनशील होता है। खान-पान संबंधी अनियंत्रित आदतें किशोरों को सामान्य वयस्क के शरीर की छवि ग्रहण करने में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं।
ऐनोरेक्ज़िया नर्वोसा को हम, सोनम के उदाहरण से समझते हैं। वह एक आदर्श (परफेक्ट) शरीर चाहती है। उसने अपने माता-पिता और अध्यापकों की सलाह को ध्यान नहीं दिया और खाना लगभग बंद कर दिया। उस पर दुबले शरीर की सनक सवार हो गईं यद्यपि उसका वजन सामान्य है, तथापि वह हर समय इस दबाव में है कि उसे फिल्मों में दिखाई पड़ने वाली कुछ हीरोइनों अथवा पत्रिकाओं में दिखाई देने वाली मॉडलों जितना पतला होना है। उसमें आत्मविश्वास की कमी है, और वह उदास रहती है। इससे वह अपने परिवार और मित्रों से दूर होती जा रही है। वह यह नहीं समझती कि वह कुपोषण का शिकार हो रही है, और इस बात पर ज़ोर देती है कि वह मोटी है। वह स्पष्टतः ऐनोरेक्ज़िया नर्वोसा नामक खान-पान संबंधी विकार से ग्रस्त है। वह इस बात से अनभिज्ञ है कि अत्यधिक वजन कम होने से मृत्यु भी हो सकती है।
बुलीमिया एक अन्य प्रकार की खान-पान संबंधी विकृति है। बुलीमिया अकसर किशोरावस्था के अंतिम भाग में अथवा वयस्कावस्था के आरंभ में वज़न कम करने के असफल प्रयासों हेतु लिए गए विभिन्न प्रकार के आहारों से शुरू होता है। इससे ग्रस्त रोगी बार-बार खाने लगता है। अत्यधिक खाता है। उल्टी अथवा विरेचकों के उपयोग द्वारा पेट साफ करता है। यद्यपि यह महिलाओं में अधिक होता है, लेकिन पाँच से दस प्रतिशत खान-पान संबंधी विकृतियाँ पुरुषों में भी होती हैं।
ऐनोरेक्ज़िया और बुलीमिया के गंभीर परिणाम हो सकते हैं जैसे-ऐंठन होना, गुरदा खराब होना, हृदय गति असामान्य होना और दाँतों का क्षरण होना। किशोरवय की लड़कियों में ऐनोरेक्ज़्ता से मासिक धर्म देर से आरंभ हो सकता है, कद स्थायी रूप से कम हो सकता है और इससे ओस्टियोपोरोसिस (हड्डियाँ कमज़ोर होना) भी हो सकता है।
शायद इन विकृतियों से बचने के लिए व्यक्ति के पास सबसे अच्छा उपाय है अपनी विशिष्टता को सराहने की कला सीखना। स्वयं का आदर करना और स्वयं को महत्त्व देना निश्चित तौर पर जीवनरक्षक सिद्ध होगा। आहार संबंधी महत्वपूर्ण हस्तक्षेप में संतुलित आहार सुनिश्चित करना, आहार में रेशे अधिक मात्रा में लेना और क्षतिपूर्ति हेतु पोषक तत्त्वों/खाद्य संपूरकों का उपयोग करना शामिल है।
इस प्रकार किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक, सामाजिक और भावनात्मक परिवर्तन किशोर की पोषणीय स्थिति और खान-पान संबंधी आदतों को अत्यधिक प्रभावित करते हैं। यद्यपि युवा दीर्घायु होने के लिए, पोषण के बारे में जानने के लिए कभी-कभार ही प्रेरित होते हैं तथापि स्वास्थ्य के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए स्वस्थ आहार सिद्धांतों को कैसे अपनाया जाए, यह सीखने से स्वस्थ वर्तमान और भावी जीवन की नींव रखने में सहायता मिल सकती है।
स्वास्थ्य, युवाओं की मुख्य संपत्ति है; यह दैनिक जीवन के अन्य संसाधनों की उपलब्धता और उनके उपयोग को प्रभावित करता है। व्यक्ति के पास अन्य संसाधन कौन-से हैं? आगामी अध्याय - “संसाधनों का प्रबंधन” में इस प्रश्न का समाधान किया गया है और यह भी चर्चा की गई है कि व्यक्ति समय, ऊर्जा और धन जैसे प्रमुख संसाधनों का बेहतर ढंग से उपयोग और प्रबंधन कैसे कर सकता है?
महत्वपूर्ण शब्द और उनके अर्थ
सक्रियता का स्तर
व्यक्ति की सक्रियता का स्तर, अर्थात् वह कम चलने वाला या हल्का, संतुलित या अधिक भारी है, यह व्यक्ति के व्यवसाय से गहरे स्तर तक जुड़ा हुआ है।
भोजन, पोषण, स्वास्थ्य और स्वस्थता
संतुलित आहार
वह आहार जिसमें विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ पर्याप्त मात्रा और सही अनुपात में शामिल हों जो कि अच्छे स्वास्थ्य के विकास और उसे बनाए रखने के लिए सभी अनिवार्य पोषक तत्व प्रदान करते हों।
खाद्य वर्ग
अनेक समान गुणों वाले खाद्य पदार्थ जिन्हें एक साथ समूहित किया गया हो। समूहित करने की विशेषताएँ कार्य, पोषक तत्व अथवा स्रोत हो सकती हैं।
स्तनपान
वह अवधि जब माँ अपने शिशु को अपना दूध पिलाती है।
शरीर-क्रियात्मक स्थिति
वह स्थिति जब विशेष शारीरिक अवस्थाओं के कारण पोषक तत्वों की आवश्यकता बढ़ जाती है, जैसे - गर्भावस्था और स्तनपान।
संस्तुत आहारीय मात्रा
पोषक तत्वों की वे मात्राएँ जो व्यावहारिक रूप से सभी स्वस्थ व्यक्तियों की आवश्यकता को पूरा करते हैं। ये किसी एक व्यक्ति की आवश्यकता नहीं बल्कि ऐसे दिशा-निर्देश हैं जो हमें दैनिक रूप से खाए जाने वाले पोषकों की मात्रा के बारे में बताते हैं।
समीक्षात्मक प्रश्न
1. आर.डी.ए. और आवश्यकता के बीच अंतर बताएँ।
2. खाद्य वर्गों के प्रयोग से संतुलित भोजन की योजना बनाना किस प्रकार सरल हो जाता है, स्पष्ट रूप से समझाइए।
3. ऐसे 10 खाद्य पदार्थ बताएँ जो संरक्षी खाद्य वर्ग से संबंधित हैं। अपने चयन के लिए कारण भी बताएँ।
4. उन कारकों की चर्चा करें जो किशोरावस्था में खान-पान संबंधी आचरण को प्रभावित करते हैं।
5. खान-पान संबंधी ऐसी दो विकृतियों का विस्तार से वर्णन करें जो किशोरावस्था में हो सकती हैं। इनकी रोकथाम के सर्वोत्तम उपाय क्या हैं?
प्रायोगिक कार्य 3
खाद्य, पोषण, स्वास्थ्य और स्वास्थ्य का रख-रखाव
1. अच्छे स्वास्थ्य के 10 लक्षण बताइए। निम्नलिखित फॉर्मेट का प्रयोग करते हुए अपना मूल्यांकन कीजिए।
अच्छे स्वास्थ्य के लक्षण | आपकी श्रेणी (रेटिंग) | ||
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संतोषजनक | सामान्य | सामान्य से कम | |
1. | |||
2. | |||
3. | |||
4. | |||
5. | |||
6. | |||
7. | |||
8. | |||
9. | |||
10. |
2. अपने एक दिन के आहार को रिकॉर्ड करें। पाँच खाद्य वर्गों के समावेशन के संदर्भ में प्रत्येक भोजन का मूल्यांकन करें। क्या आपको लगता है कि आपका आहार संतुलित है? अपना उत्तर लिखने के लिए निम्नलिखित फॉर्मेट का प्रयोग करें-
भोजन/मेन्यू (आहार-सूची) | पाँच खाद्य वर्गों का समावेशन | भोजन संतुलित है/भोजन संतुलित नहीं है, इस पर टिप्पणी। |
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3. निम्नलिखित जानकारी प्राप्त करने के लिए अपने परिवार के सदस्यों, जैसे - दादी, माँ अथवा चाची/ताई/बुआ/मौसी का साक्षात्कार करें-
क. खान-पान संबंधी वर्जनाएँ और इनको अपनाए जाने के कारण
ख. भारत के जिस क्षेत्र से आप संबंध रखते हैं, वहाँ उपवास और त्यौहारों के दौरान अपनाई जाने वाली खान-पान संबंधी प्रथाएँ
ग. उपवास के दौरान बनाए जाने वाले व्यंजन
प्राप्त जानकारी को निम्नलिखित रूप से सारणीबद्ध करें -
क्षेत्र | अवसर (उपवास का स्वरूप) | व्यंजन | विद्यमान पोषक तत्व |
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सारणीबद्ध जानकारी के आधार पर दो निष्कर्ष बताएँ।