अध्याय 08 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान
क्या आप अपने चारों तरफ वायु को महसूस करते है? क्या आप जानते हैं कि हम वायु के एक बहुत भारी पुलिंदे (Pile) के तल में रहते हैं? हम वायु में साँस लेते हुए साँस द्वारा वायु को बाहर निकालते हैं, परंतु उसे महसूस तभी करते हैं, जब यह गतिमान होती है। इस का तात्पर्य यह है कि गतिमान वायु ही पवन है। आप जानते हैं कि पृथ्वी चारों ओर से वायु से घिरी हुई है। वायु का यह आवरण ही वायुमंडल है, जो बहुत-सी गैसों से बना है। इन्हीं गैसों के कारण ही पृथ्वी पर जीवन पाया जाता है।
पृथ्वी अपनी ऊर्जा का लगभग संपूर्ण भाग सूर्य से प्राप्त करती है। इसके बदले पृथ्वी सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को अंतरिक्ष में वापस विकरित कर देती है। परिणामस्वरूप पृथ्वी न तो अधिक समय के लिए गर्म होती है ओर न ही अधिक ठंडी अतः हम यह पाते हैं कि पृथ्वी के अलग-अलग भागों में प्राप्त ताप की मात्रा समान नहीं होती। इसी भिन्नता के कारण वायुमंडल के दाब में भिन्नता होती है एवं इसी कारण पवनों के द्वारा ताप का स्थानांतरण एक स्थान से दूसरे स्थान पर होता है। इस अध्याय में वायुमंडल के गर्म तथा ठंडे होने की प्रक्रिया एवं परिणामस्वरूप पृथ्वी की सतह पर तापमान के वितरण को समझाया गया है।
सौर विकिरण
पृथ्वी के पृष्ठ पर प्राप्त होने वाली ऊर्जा का अधिकतम अंश लघु तरंगदैर्ध्य के रूप में आता है। पृथ्वी को प्राप्त होने वाली ऊर्जा को ‘आगमी सौर विकिरण’ या छोटे रूप में ‘सूर्यातप’ (Insolation) कहते हैं।
पृथ्वी भू-आभ (Geoid) है। सूर्य की किरणें वायुमंडल के ऊपरी भाग पर तिरछी पड़ती है, जिसके कारण पृथ्वी सौर ऊर्जा के बहुत कम अंश को ही प्राप्त कर पाती है। पृथ्वी औसत रूप से वायुमंडल की ऊपरी सतह पर 1.94 कैलोरी/प्रति वर्ग सेंटीमीटर प्रतिमिनट ऊर्जा प्राप्त करती है। वायुमंडल की ऊपरी सतह पर प्राप्त होने वाली ऊर्जा में प्रतिवर्ष थोड़ा परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन पृथ्वी एवं सूर्य के बीच की दूरी में अंतर के कारण होता है। सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान पृथ्वी 4 जुलाई को सूर्य से सबसे दूर अर्थात् 15 करोड़, 20 लाख किलोमीटर दूर होती है। पृथ्वी की इस स्थिति को अपसौर (Aphelion) कहा जाता है। 3 जनवरी को पृथ्वी सूर्य से सबसे निकट अर्थात् 14 करोड़, 70 लाख किलोमीटर दूर होती है। इस स्थिति को ‘उपसौर’ (Perihelion) कहा जाता है। इसलिए पृथ्वी द्वारा प्राप्त वार्षिक सूर्यातप (insolation) 3 जनवरी को 4 जुलाई की अपेक्षा अधिक होता है फिर भी सूर्यातप की भिन्नता का यह प्रभाव दूसरे कारकों, जैसे स्थल एवं समुद्र का वितरण तथा वायुमंडल परिसंचरण के द्वारा कम हो जाता है। यही कारण है कि सूर्यातप की यह भिन्नता पृथ्वी की सतह पर होने वाले प्रतिदिन के मौसम परिवर्तन पर अधिक प्रभाव नहीं डाल पाती है।
पृथ्वी की सतह पर सूर्यातप में भिन्नता
सूर्यातप की तीव्रता की मात्रा में प्रतिदिन, हर मौसम और प्रति वर्ष परिवर्तन होता रहता है। सूर्यातप में होने वाली विभिन्नता के कारक हैं : (i) पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना (ii) सूर्य की किरणों का नति कोण (iii) दिन की अवधि (iv) वायुमंडल की पारदर्शिता (v) स्थल विन्यास। परंतु अंतिम दो कारकों का प्रभाव कम पड़ता है।
यह तथ्य है कि पृथ्वी का अक्ष सूर्य के चारों ओर परिक्रमण की समतल कक्षा से $661^{\circ}$ का कोण बनाता है, जो विभिन्न अक्षांशों पर प्राप्त होने वाले सूर्यातप की मात्रा को बहुत प्रभावित करता है।
सूर्यातप की मात्रा को प्रभावित करने वाला दूसरा कारक किरणों का नति कोण है। यह किसी स्थान के अक्षांश पर निर्भर करता है। अक्षांश जितना उच्च होगा (अर्थात् ध्रुवों की ओर) किरणों का नति कोण उतना ही कम होगा। अतएव सूर्य की किरणें तिरछी पड़ेगी। तिरछी किरणों की अपेक्षा सीधी किरणें कम स्थान पर पड़ती हैं। किरणों के अधिक क्षेत्र पर पड़ने के कारण ऊर्जा वितरण
चित्र 8.1 : उत्तर अयनांत
बड़े क्षेत्र पर होता है तथा प्रति इकाई क्षेत्र को कम ऊर्जा मिलती है। इसके अतिरिक्त तिरछी किरणों को वायुमंडल की अधिक गहराई से गुज़रा पड़ता है। अतः अधिक अवशोषण, प्रकीर्णन एवं विसरण के द्वारा ऊर्जा का अधिक हास होता है।
सौर विकिरण का वायुमंडल से होकर गुज़रना
लघु तरंगदैर्ध्य वाले सौर-विकिरण के लिए वायुमंडल अधिकांशतः पारदर्शी होता है। पृथ्वी की सतह पर पहुँचने से पहले सूर्य की किरणें वायुमंडल से होकर गुजरती हैं। क्षोभमंडल में मौजूद जलवाष्प, ओज़ोन तथा अन्य किरणें अवरक्त विकिरण (Infrared radiation) को अवशोषित कर लेती हैं। क्षोभमंडल में छोटे निलंबित कण दिखने वाले स्पेक्ट्रम को अंतरिक्ष एवं पृथ्वी की सतह की ओर विकीर्ण कर देते हैं। यही प्रक्रिया आकाश में रंग के लिए उत्तरदायी है। इसी से उदय एवं अस्त होने के समय सूर्य लाल दिखता है तथा आकाश का रंग नीला दिखाई पड़ता है। ऐसा वायुमंडल में प्रकाश के प्रकीर्णन द्वारा संभव होता है।
सूर्यातप का पृथ्वी की सतह पर स्थानिक वितरण
धरातल पर प्राप्त सूर्यातप की मात्रा में उष्ण कटिबंध में 320 वाट/प्रति वर्गमीटर से लेकर ध्रुवों पर 70 वाट/प्रति वर्गमीटर तक भिन्नता पाई जाती है। सबसे अधिक सूर्यातप उपोष्ण कटिबंधीय मरुस्थलों पर प्राप्त होता है, क्योंकि यहाँ मेघाच्छादन बहुत कम पाया जाता है। उष्ण कटिबंध की अपेक्षा विषुवत् वृत्त पर कम मात्रा में सूर्यातप प्राप्त होता है। सामान्यतः एक ही अक्षांश पर स्थित महाद्वीपीय भाग पर अधिक और महासागरीय भाग में अपेक्षतया कम मात्रा में सूर्यातप प्राप्त होता है। शीत ॠतु में मध्य एवं उच्च अक्षांशों पर ग्रीष्म ऋतु की अपेक्षा कम मात्रा में विकिरण प्राप्त होता है।
वायुमंडल का तापन एवं शीतलन
वायुमंडल के गर्म और ठंडा होने के अनेक तरीके हैं। प्रवेशी सौर विकिरण से गर्म होने के बाद पृथ्वी सतह के निकट स्थित वायुमंडलीय परतों में दीर्घ तरंगों के रूप में ताप का संचरण करती है, पृथ्वी के संपर्क में आने वाली वायु धीरे-धीरे गर्म होती है। निचली परतों के संपर्क में आने वाली वायुमंडल की ऊपरी परतें भी गर्म हो जाती हैं। इस प्रक्रिया को चालन (Conduction) कहा जाता है। चालन तभी होता है जब असमान ताप वाले दो पिंड एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं। गर्म पिंड से ठंडे पिंड की ओर ऊर्जा का प्रवाह चलता है। ऊर्जा का स्थानांतरण तक तब होता रहता है जब तक दोनों पिंडों का तापमान एक समान नहीं हो जाता अथवा उनमें संपर्क टूट नहीं जाता। वायुमंडल की निचली परतों को गर्म करने में चालन (Conduction) महत्त्वपूर्ण है।
पृथ्वी के संपर्क में आई वायु गर्म होकर धाराओं के रूप में लंबवत् उठती है और वायुमंडल में ताप का संचरण करती है। वायुमंडल के लम्बवत् तापन की यह प्रक्रिया संवहन (Convection) कहलाती है, ऊर्जा के स्थानांतरण का यह प्रकार केवल क्षोभमंडल तक सीमित रहता है।
वायु के क्षैतिज संचलन से होने वाला ताप का स्थानांतरण अभिवहन (Advection) कहलाता है। लम्बवत् संचलन की अपेक्षा वायु का क्षैतिज संचलन सापेक्षिक रूप से अधिक महत्वपूर्ण होता है। मध्य अक्षांशों में दैनिक मौसम में आने वाली भिन्नताएँ केवल अभिवहन के कारण होती हैं। उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में, विशेषत: उत्तरी भाग में गर्मियों में चलने वाली स्थानीय पवन लू इसी अभिवहन का ही परिणाम है।
पृथ्वी द्वारा प्राप्त प्रवेशी सौर विकिरण, जो लघु तरंगों के रूप में होता है, पृथ्वी की सतह को गर्म करता है। पृथ्वी स्वयं गर्म होने के बाद एक विकिरण पिंड बन जाती है और वायुमंडल में दीर्घ तरंगों के रूप में ऊर्जा का विकिरण करने लगती है। यह ऊर्जा वायुमंडल को नीचे से गर्म करती है। इस प्रक्रिया को ‘पार्थिव विकिरण’ कहा जाता है। दीर्घ तरंगदैर्ध्य विकिरण वायुमंडलीय गैसों, मुख्यत: कार्बन डाईऑक्साइड एवं अन्य ग्रीन हाऊस गैसों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। इस प्रकार वायुमंडल पार्थिव विकिरण द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से गर्म होता है न कि सीधे सूर्यातप से। तदुपरांत वायुमंडल विकीर्णन द्वारा ताप को अंतरिक्ष में संचरित कर देता है। इस प्रकार पृथ्वी की सतह एवं वायुमंडल का तापमान स्थिर रहता है।
पृथ्वी का ऊष्मा बजट
चित्र 8.2 में पृथ्वी के ऊष्मा बजट को दर्शाया गया है। पृथ्वी ऊष्मा का न तो संचय करती है न ही हास करती है। यह अपने तापमान को स्थिर रखती है। ऐसा तभी सम्भव है, जब सूर्य विकिरण द्वारा सूर्यातप के रूप में प्राप्त ऊष्मा एवं पार्थिव विकिरण द्वारा अंतरिक्ष में संचरित ताप बराबर हों।
मान लें कि वायुमंडल की ऊपरी सतह पर प्राप्त सूर्यातप 100 प्रतिशत है। वायुमंडल से गुज़रते हुए ऊर्जा का कुछ अंश परावर्तित, प्रकीर्णित एवं अवशोषित हो जाता है। केवल शेष भाग ही पृथ्वी की सतह तक पहुँचता है। 100 इकाई में से 35 इकाइयाँ पृथ्वी के धरातल पर पहुँचने से पहले ही अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाती है। 27 इकाइयाँ बादलों के ऊपरी छोर से तथा 2 इकाइयाँ पृथ्वी के हिमाच्छादित क्षेत्रों द्वारा परावर्तित होकर
चित्र 8.2 : पृथ्वी का ऊष्मा बजट
लौट जाती हैं। सौर विकिरण की इस परावर्तित मात्रा को पृथ्वी का एल्बिडो कहते हैं।
प्रथम 35 इकाइयों को छोड़कर बाकी 65 इकाइयाँ अवशोषित होती है- 14 वायुमंडल में तथा 51 पृथ्वी के धरातल द्वारा। पृथ्वी द्वारा अवशोषित ये 51 इकाइयाँ पुन: पार्थिव विकिरण के रूप में लौटा दी जाती हैं। इनमें से 17 इकाइयाँ तो सीधे अंतरिक्ष में चली जाती हैं और 34 इकाइयाँ वायुमंडल द्वारा अवशोषित होती है- 6 इकाइयाँ स्वयं वायुमंडल द्वारा, 9 इकाइयाँ संवहन के जरिए और 19 इकाइयाँ संघनन की गुप्त ऊष्मा के रूप में। वायुमंडल द्वारा 48 इकाइयों का अवशोषण होता है इनमें 14 इकाइयाँ सूर्यातप की और 34 इकाइयाँ पार्थिव विकिरण की होती हैं। वायुमंडल विकिरण द्वारा इनको भी अंतरिक्ष में वापस लौटा देता है। अतः पृथ्वी के धरातल तथा वायुमंडल से अंतरिक्ष में वापस लौटने वाली विकिरण की इकाइयाँ क्रमशः 17 और 48 हैं, जिनका योग 65
चित्र 8.3 : शुद्ध विकिरण संतुलन में अनुदैर्ध्य परिवर्तन
होता है। वापस लौटने वाली ये इकाइयाँ उन 65 इकाइयों का संतुलन कर देती हैं जो सूर्य से प्राप्त होती हैं। यही पृथ्वी का ऊष्मा बजट अथवा ऊष्मा संतुलन है।
यही कारण है कि ऊष्मा के इतनी बड़े स्थानांतरण के बावजूद भी पृथ्वी न तो बहुत गर्म होती है और न ही ठंडी होती है।
**पृथ्वो की सतह पर कुल ऊष्मा बजट में भिन्तता **
जैसा कि पहले व्याख्या की जा चुकी है, पृथ्वी की सतह पर प्राप्त विकिरण की मात्रा में भिन्नता पाई जाती है। पृथ्वी के कुछ भागों में विकिरण संतुलन में अधिशेष (Surplus) पाया जाता है, परंतु कुछ भागों में ऋणात्मक संतुलन होता है। चित्र 8.3 में पृथ्वी वायुमंडल-तंत्र के शुद्ध विकिरण में अक्षांशीय भिन्नता को दर्शाया गया है। यह चित्र दर्शाता है कि शुद्ध विकिरण में अधिशेष $40^{\circ}$ उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों में अधिक है, परंतु ध्रुवों के पास कमी (Deficit) पाई जाती है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों से ताप ऊर्जा ध्रुवों की ओर पुनर्वितरण होता है फलस्वरूप उष्णकटिबंध ताप संचयन के कारण बहुत अधिक गर्म नही हो और न ही उच्च अक्षांश अत्यधिक कमी के कारण पूरी तरह जमे हुए हैं।
तापमान
वायुमंडल एवं भू-पृष्ठ के साथ सूर्यातप की अन्योन्यक्रिया द्वारा जनित ऊष्मा तापमान के रूप में मापा जाता है। जहाँ ऊष्मा किसी पदार्थ कणों के अणुओं की गति को दर्शाती है, वहीं तापमान किसी पदार्थ या स्थान के गर्म या ठंडा होने का डिग्री में माप है।
तापमान के वितरण को नियंत्रित करने वाले कारक किसी भी स्थान पर वायु का तापमान निम्नलिखित कारकों द्वारा प्रभावित होता है:
(i) उस स्थान की अक्षांश रेखा (ii) समुद्र तल से उस स्थान की उत्तुंगता (iii) समुद्र से उसकी दूरी (iv) वायु संहति का परिसंचरण (v) कोष्ण तथा ठंडी महासागरीय धाराओं की उपस्थिति (vi) स्थानीय कारक।
अक्षांश (Latitude) : किसी भी स्थान का तापमान उस स्थान द्वारा प्राप्त सूर्यातप पर निर्भर करता है। यह पहले ही बताया जा चुका है कि सूर्यातप की मात्रा में अक्षांश के अनुसार भिन्नता पाई जाती है। अतः तद्नुसार तापमान में भी भिन्नता पाई जाती है।
उत्तुंगता (Altitude) : वायुमंडल पार्थिव विकिरण द्वारा नीचे की परतों में पहले गर्म होता है। यही कारण है कि समुद्र तल के पास के स्थानों पर तापमान अधिक तथा ऊँचे भाग में स्थित स्थानों पर तापमान कम होता है। अन्य शब्दों में तापमान सामान्यतः उत्तुंगता बढ़ने के साथ घटता
चित्र 8.4 (अ) : भूपृष्ठीय वायु तापक्रम वितरण (जनवरी)
है। उत्तुंगता के बढ़ने के साथ तापमान के घटने की दर को ‘सामान्य हास दर’ (Normal lapse rate) कहते हैं। सामान्य हास दर प्रति 1,000 मीटर की ऊँचाई बढ़ने पर $6.5^{\circ}$ सेल्सियस है।
समुद्र से दूरी : किसी भी स्थान के तापमान को प्रभावित करने वाला दूसरा कारक समुद्र से उस स्थान की दूरी है। स्थल की अपेक्षा समुद्र धीरे-धीरे गर्म और धीरे-धीरे ठंडा होता है। स्थल जल्दी गर्म और जल्दी ठंडा होता है। इसलिए समुद्र के ऊपर स्थल की अपेक्षा तापमान में भिन्नता कम होती है। समुद्र के निकट स्थित क्षेत्रों पर समुद्र एवं स्थली समीर का सामान्य प्रभाव पड़ता है और तापमान सम रहता है।
वायुसंहति तथा महासागरीय धाराएं : स्थलीय एवं समुद्री समीरों की तरह वायु संहतियाँ भी तापमान को प्रभावित करती हैं। कोष्ण वायु संहतियों (Warm airmasses) से प्रभावित होने वाले स्थानों का तापमान अधिक एवं शीत वायुसंहतियों (Cold airmasses) से प्रभावित स्थानों का तापमान कम होता है। इसी प्रकार ठंडी महासागरीय धारा के प्रभाव के अंतर्गत आने वाले समुद्र तटों की अपेक्षा गर्म महासागरीय धारा के प्रभाव में आने वाले तटों का तापमान अधिक होता है।
तापमान का वितरण
जनवरी और जुलाई के तापमान के वितरण का अध्ययन करके हम पूरे विश्व के तापमान वितरण के बारे में जान सकते हैं। मानचित्रों पर तापमान वितरण समान्यतः समताप रेखाओं की मदद से दर्शाया जाता है। यह वह रेखा है, जो समान तापमान वाले स्थानों को जोड़ती है। चित्र 8.4 (अ एवं ब) जनवरी तथा जुलाई में होने वाले धरातल पर वायु के तापमान के वितरण को दर्शाता है।
सामान्यतः तापमान पर अक्षांश के प्रभाव को मानचित्र में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। क्योंकि, समताप रेखायें प्रायः अक्षांश के समानांतर होती हैं। इस सामान्य प्रवृत्ति में विचलन, विशेष रूप से उत्तरी गोलार्ध में जुलाई की
चित्र 8.4 ( ब) : भूपृष्ठीय वायु तापक्रम का वितरण ( जुलाई )
अपेक्षा जनवरी में अधिक स्पष्ट होता हैं। दक्षिणी गोलार्ध की अपेक्षा उत्तरी गोलार्ध में स्थलीय भाग अधिक है। इसलिए भूसंहति और समुद्री धारा का प्रभाव वहाँ स्पष्ट होता है। जनवरी में समताप रेखायें महासागर के उत्तर और महाद्वीपों पर दक्षिण की ओर विचलित हो जाती हैं। इसे उत्तरी अटलांटिक महासागर पर देखा जा सकता है। कोष्ण महासागरीय धाराएं गल्फ स्ट्रीम तथा उत्तरी अटलांटिक महासागरीय ड्रिफ्ट की उपस्थिति से उत्तरी अटलांटिक महासागर अधिक गर्म होता है तथा समताप रेखायें उत्तर की तरफ मुड़ जाती हैं। सतह के ऊपर तापमान तेजी से कम हो जाता है और समताप रेखायें यूरोप में दक्षिण की ओर मुड़ जाती हैं।
यह साईबेरिया के मैदान पर ज्यादा स्पष्ट होता है। $60^{\circ}$ पूर्वी देशांतर के साथ-साथ $80^{\circ}$ उत्तरी एवं $50^{\circ}$ उत्तरी दोनों ही अक्षांशों पर जनवरी का माध्य तापमान $20^{\circ}$ सेल्सियस पाया जाता है। इसी प्रकार जनवरी का माध्य मासिक तापक्रम विषुवत्रेखीय महासागरों पर $27^{\circ}$ सेल्सियस से अधिक, उष्ण कटिबंधों में $24^{\circ}$ से॰ से अधिक, मध्य अक्षांशों पर $20^{\circ}$ से॰ से $0^{\circ}$ से॰ तथा यूरेशिया के आंतरिक भाग में $-18^{\circ}$ से० से $-48^{\circ}$ से० तक दर्ज होता है।
दक्षिणी गोलार्ध में तापमान पर महासागरों का स्पष्ट प्रभाव देखा जाता है। यहाँ समताप रेखाएं लगभग अक्षांशों के समानांतर चलती हैं तथा उत्तरी गोलार्ध की अपेक्षा भिन्नता कम तीव्र होती है। $20^{\circ}$ से॰, $10^{\circ}$ से० एवं $0^{\circ}$ से० की समताप रेखायें क्रमशः $35^{\circ}$ द० $45^{\circ}$ द० तथा $60^{\circ}$ दक्षिण के समानांतर पाई जाती हैं।
जुलाई में समताप रेखायें प्रायः अक्षांशों के समानांतर चलती हैं। विषुवत्रेखीय महासागरों पर तापमान $27^{\circ}$ से० से अधिक होता है। एशिया के उपोष्ण कटिबंधीय स्थलीय भागों में $30^{\circ}$ उत्तरी अक्षांश के साथ-साथ तापमान $30^{\circ}$ से॰ से अधिक पाया जाता है। $40^{\circ}$ उत्तरी एवं $40^{\circ}$ दक्षिणी अक्षांशों पर तापमान $10^{\circ}$ से० दर्ज किया गया है।
चित्र 8.5 जनवरी एवं जुलाई के बीच तापांतर को प्रदर्शित करता है। सर्वाधिक तापांतर यूरेशिया महाद्वीप के उत्तरी पूर्वी क्षेत्र में पाया जाता है, जो लगभग $60^{\circ}$ से० है।
चित्र 8.5 : जनवरी और जुलाई के मध्य तापांतर
इसका मुख्य कारण ‘महाद्वीपीयता’ (Continentality) है। सबसे कम $3^{\circ}$ से० का तापांतर $20^{\circ}$ दक्षिणी एवं $15^{\circ}$ उत्तरी अक्षांशों के बीच पाया जाता है।
तापमान का व्युत्क्रमण
सामान्यतः तापमान ऊँचाई के साथ घटता जाता है, जिसे सामान्य ह्रास दर कहते हैं। पर कई बार स्थिति बदल जाती है और सामान्य ह्रास दर उलट जाती है। इसे तापमान का व्युत्क्रमण कहते हैं। अक्सर व्युत्क्रमण बहुत थोड़े समय के लिए होता है, पर यह काफी सामान्य घटना है। सर्दियों की मेघ विहीन लंबी रात तथा शांत वायु, व्युत्क्रमण के लिए आदर्श दशाएँ हैं। दिन में प्राप्त ऊष्मा रात के समय विकिरित कर दी जाती है और सुबह तक भूपृष्ठ अपने ऊपर की हवा से अधिक ठंडी हो जाती है। ध्रुवीय क्षेत्रों में वर्ष भर तापमान व्युत्क्रमण होना सामान्य है।
भूपृष्ठीय व्युत्क्रमण वायुमंडल के निचले स्तर में स्थिरता को बढ़ावा देता है। धुआँ तथा धूलकण व्युत्क्रमण स्तर से नीचे एकत्र होकर चारों ओर फैल जाते हैं, जिनसे वायुमंडल का निम्न स्तर भर जाता है। इससे सर्दियों में सुबह के समय घने कुहरे की रचना सामान्य घटना है। यह व्युत्क्रमण कुछ ही घंटों तक रहता है। सूर्य के ऊपर चढ़ने और पृथ्वी के गर्म होने के साथ यह समाप्त हो जाता है।
पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में वायु अपवाह के कारण व्युत्क्रमण की उत्पत्ति होती है। पहाड़ियों तथा पर्वतों पर रात में ठंडी हुई हवा गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में भारी और घनी होने के कारण लगभग जल की तरह कार्य करती है और ढाल के साथ ऊपर से नीचे उतरती है। यह घाटी की तली में गर्म हवा के नीचे एकत्र हो जाती है। इसे वायु अपवाह कहते हैं। यह पाले से पौधों की रक्षा करती है।
- प्लैंक का नियम बताता है कि एक वस्तु जितनी गर्म होगी वह उतनी ही अधिक ऊर्जा का विकिरण करेगी और उसकी तरंग दैर्ध्य उतनी लघु होगी।
- एक ग्राम पदार्थ का तापमान एक अंश सेल्सियस बढ़ाने के लिए जितनी ऊर्जा की आवश्यकता है, वह विशिष्ट ऊष्मा कहलाती है।
अभ्यास
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न :
(i) निम्न में से किस अक्षांश पर 21 जून की दोपहर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं?
(क) विषवुत् वृत्त पर
(ख) $23.5^{\circ}$ उ०
(ग) $66.5^{\circ}$ द०
(घ) $66.5^{\circ}$ उ०
(ii) निम्न में से किन शहरों में दिन ज्यादा लंबा होता है?
(क) तिरुवनंतपुरम
(ख) हैदराबाद
(ग) चंडीगढ़
(घ) नागपुर
(iii) निम्नलिखित में से किस प्रक्रिया द्वारा वायुमंडल मुख्यतः गर्म होता है।
(क) लघु तरंगदैर्ध्य वाले सौर विकिरण से
(ख) लंबी तरंगदैर्ध्य वाले स्थलीय विकिरण से
(ग) परावर्तित सौर विकरण से
(घ) प्रकीर्णित सौर विकरण से
(iv) निम्न पदों को उसके उचित विवरण के साथ मिलाएँ।
1. सूर्यातप | (अ) सबसे कोष्ण और सबसे शीत महीनों के माध्य तापमान का अंतर |
2. एल्बिडो | (ब) समान तापमान वाले स्थानों को जोड़ने वाली रेखा |
3. समताप रेखा | (स) आनेवाला सौर विकिरण |
4. वार्षिक तापांतर | (द) किसी वस्तु के द्वारा परावर्तित दृश्य प्रकाश का प्रतिशत |
(v) पृथ्वी के विषुवत् वृत्तीय क्षेत्रों की अपेक्षा उत्तरी गोलार्ध के उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों का तापमान अधिकतम होता है, इसका मुख्य कारण है
(क) विषुवतीय क्षेत्रों की अपेक्षा उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में कम बादल होते हैं।
(ख) उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में गर्मी के दिनों की लंबाई विषुवतीय क्षेत्रों से ज्यादा होती है।
(ग) उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में ‘ग्रीन हाऊस प्रभाव’ विषुवतीय क्षेत्रों की अपेक्षा ज्यादा होता है।
(घ) उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र विषुवतीय क्षेत्रों की अपेक्षा महासागरीय क्षेत्र के ज्यादा करीब है।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए :
(i) पृथ्वी पर तापमान का असमान वितरण किस प्रकार जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है?
(ii) वे कौन से कारक है, जो पृथ्वी पर तापमान के वितरण को प्रभावित करते हैं?
(iii) भारत में मई में तापमान सर्वाधिक होता है, लेकिन उत्तर अयनांत के बाद तापमान अधिकतम नहीं होता। क्यों?
(iv) साइबेरिया के मैदान में वार्षिक तापांतर सर्वाधिक होता है। क्यों?
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए :
(i) अक्षांश और पृथ्वी के अक्ष का झुकाव किस प्रकार पृथ्वी की सतह पर प्राप्त होने वाली विकिरण की मात्रा को प्रभावित करते हैं?
(ii) उन प्रक्रियाओं की व्याख्या करें जिनके द्वारा पृथ्वी तथा इसका वायुमंडल ऊष्मा संतुलन बनाए रखते हैं।
(iii) जनवरी में पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध के बीच तापमान के विश्वव्यापी वितरण की तुलना करें।
परियोजना कार्य
अपने शहर या शहर के आस-पास के किसी वेधशाला का पता लगायें। वेधशाला की मौसम विज्ञान संबंधी सारणी में दिये गये तापमान को सारणीबद्ध करें। (i) वेधशाला कि तुंगता अक्षांश और उस समय को जिसके लिए माध्य निकाला गया है, लिखें। (ii) सारणी में तापमान के संबंध में दिये गये पदों को परिभाषित करें। (iii) एक महीने तक प्रतिदिन के तापमान के माध्य की गणना करें। (iv) ग्राफ द्वारा प्रतिदिन का अधिकतम माध्य तापमान, न्यूनतम माध्य तापमान तथा कुल माध्य तापमान दर्शायें। (v) वार्षिक तापांतर की गणना करें। (vi) पता लगायें कि किन महीनों के प्रतिदिन का माध्य तापमान सबसे अधिक और सबसे कम है। (vii) उन कारकों को लिखें, जो किसी स्थान के तापमान का निर्धारण करते हैं और जनवरी, मई, जुलाई और अक्तूबर में होने वाले तापमान में अंतर के कारणों को समझायें।
महीना | प्रतिदिन के अधिकतम तापमान का माध्य ( ${ }^{\circ}$ से०) |
प्रतिदिन के न्यूनतम तापमान का माध्य ( ${ }^{\circ}$ से०) |
उच्चतम तापमान ( ${ }^{\circ}$ से० |
न्यूनतम तापमान ( ${ }^{\circ}$ से०) |
---|---|---|---|---|
जनवरी | 21.1 | 7.3 | 29.3 | 0.6 |
मई | 39.6 | 25.9 | 47.2 | 17.5 |
उदाहरण
वेधशाला $\qquad$ : $\qquad$ सफदरजंग, नयी दिल्ली
अक्षांश $\qquad$ : $\qquad$ $28^{\circ} 35^{\circ}$ उत्तरी
अवलोकन वर्ष $\qquad$ : $\qquad$ 1951 से 1980
समुद्री सतह के माध्यम से तुंगता $\qquad$ : $\qquad$ 216 मी॰
एक महीने के प्रतिदिन का माध्य तापमान
$$ \begin{aligned} & \text { जनवरी } \frac{21.1+7.3}{2}=14.2^{\circ} \mathrm{C} \ & \text { मई } \frac{39.6+25.9}{2}=32.75^{\circ} \mathrm{C} \end{aligned} $$
वार्षिक तापांतर
मई का अधिकतम माध्य ताप - जनवरी का माध्य तापमान
वार्षिक तापांतर $=32.75^{\circ}$ से. $-14.2^{\circ}$ से. $=18.55^{\circ}$ से.