अध्याय 02 भूगोल एक विषय के रूप में
क्या आपको वह कविता याद है जो आपने अपनी नर्सरी की कक्षा में पढ़ी थी? “ट्विंकल-ट्विंकल लिटिल स्टार ………” बचपन से ही तारों भरी रातों ने हमें हमेशा आकर्षित किया है। आपने भी इन तारों के बारे में सोचा होगा और असंख्य प्रश्न आपके दिमाग में आए होंगे। कुछ इस प्रकार के प्रश्न जैसे-आकाश में कितने तारे हैं? ये तारे कैसे बने? क्या कोई आकाश के अंत तक पहुँच सकता है? इन प्रश्नों के अतिरिक्त भी कई प्रश्न आपके दिमाग में आए होंगे। इस अध्याय में आप जानेंगे कि ‘ये टिमटिमाते छोटे तारे’ कैसे बनें? इसके साथ ही आप पृथ्वी की उत्पत्ति व विकास की कहानी भी पढ़ेंगे।
आरंभिक सिद्धांत
पृथ्वी की उत्पत्ति
पृथ्वी की उत्पत्ति के संबंध में विभिन्न दार्शनिकों व वैज्ञानिकों ने अनेक परिकल्पनाएँ प्रस्तुत की हैं। इनमें से एक प्रारंभिक एवं लोकप्रिय मत जर्मन दार्शनिक इमैनुअल कान्ट (Immanuel Kant) का है। 1796 ई० में गणितज्ञ लाप्लेस (Laplace) ने इसका संशोधन प्रस्तुत किया जो नीहारिका परिकल्पना (Nebular hypothesis) के नाम से जाना जाता है। इस परिकल्पना के अनुसार ग्रहों का निर्माण धीमी गति से घूमते हुए पदार्थों के बादल से हुआ जो कि सूर्य की युवा अवस्था से संबद्ध थे। 1950 ई॰ में रूस के ऑटो शिमिड (Otto schmidt) व जर्मनी के कार्ल वाइज़ास्कर (Carl weizascar) ने नीहारिका परिकल्पना (Nebular hypothesis) में कुछ संशोधन किया। उनके विचार से सूर्य एक सौर नीहारिका से घिरा हुआ था जो मुख्यतः हाइड्रोजन, हीलीयम और धूलिकणों की बनी थी। इन कणों के घर्षण व टकराने (Collision) से एक चपटी तश्तरी की आकृति के बादल का निर्माण हुआ और अभिवृद्धि (Accretion) प्रक्रम द्वारा ही ग्रहों का निर्माण हुआ। अंततोगत्वा, वैज्ञानिकों ने पृथ्वी या अन्य ग्रहों की ही नहीं वरन् पूरे ब्रह्मांड की उत्पत्ति संबंधी समस्याओं को समझने का प्रयास किया।
आधुनिक सिद्धांत
ब्रह्मांड की उत्पत्ति
आधुनिक समय में ब्रह्मांड की उत्पत्ति संबंधी सर्वमान्य सिद्धांत बिग बैंग सिद्धांत (Big bang theory) है। इसे विस्तरित ब्रह्मांड परिकल्पना (Expanding universe hypothesis) भी कहा जाता है। 1920 ई० में एडविन हब्बल (Edwin Hubble) ने प्रमाण दिये कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है। समय बीतने के साथ आकाशगंगाएँ एक दूसरे से दूर हो रही हैं। आप प्रयोग कर जान सकते हैं कि ब्रह्मांड विस्तार का क्या अर्थ है। एक गुब्बारा लें और उसपर कुछ निशान लगाएँ जिनको आकाशगंगायें मान लें। जब आप इस गुब्बारे को फुलाएँगे, गुब्बारे पर लगे ये निशान गुब्बारे के फैलने के साथ-साथ एक दूसरे से दूर जाते प्रतीत होंगे। इसी प्रकार आकाशगंगाओं के बीच की दूरी भी बढ़ रही है और परिणामस्वरूप ब्रहांड विस्तारित हो रहा है। यद्यपि आप यह पाएँगे कि गुब्बारे पर लगे चिह्नों के बीच की दूरी के अतिरिक्त, चिह्न स्वयं भी बढ़ रहे हैं। जबकि यह तथ्य के अनुरूप नहीं है। वैज्ञानिक मानते हैं कि आकाशगंगाओं के बीच की दूरी बढ़ रही है, परंतु प्रेक्षण आकाशगंगाओं के विस्तार को नहीं सिद्ध करते। अतः गुब्बारे का उदाहरण आंशिक रूप से ही मान्य है।
बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड का विस्तार निम्न अवस्थाओं में हुआ है:
चित्र 2.1 : बिग बैंग
(i) आरम्भ में वे सभी पदार्थ, जिनसे ब्रह्मांड बना है, अति छोटे गोलक (एकाकी परमाणु) के रूप में एक ही स्थान पर स्थित थे। जिसका आयतन अत्यधिक सूक्ष्म एवं तापमान तथा घनत्व अनंत था।
(ii) बिग बैंग की प्रक्रिया में इस अति छोटे गोलक में भीषण विस्फोट हुआ। इस प्रकार की विस्फोट प्रक्रिया से वृहत् विस्तार हुआ। वैज्ञानिकों का विश्वास है कि बिग बैंग की घटना आज से 13.7 अरब वर्षों पहले हुई थी। ब्रह्मांड का विस्तार आज भी जारी है। विस्तार के कारण कुछ ऊर्जा पदार्थ में परिवर्तित हो गई। विस्फोट (Bang) के बाद एक सैकेंड के अल्पांश के अंतर्गत ही वृहत् विस्तार हुआ। इसके बाद विस्तार की गति धीमी पड़ गई। बिग बैंग होने के आरंभिक तीन मिनट के अंर्तगत ही पहले परमाणु का निर्माण हुआ।
(iii) बिग बैंग से 3 लाख वर्षो के दौरान, तापमान $4500^{\circ}$ केल्विन तक गिर गया और परमाणवीय पदार्थ का निर्माण हुआ। ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया।
ब्रह्मांड के विस्तार का अर्थ है आकाशगंगाओं के बीच की दूरी में विस्तार का होना। हॉयल (Hoyle) ने इसका विकल्प ‘स्थिर अवस्था संकल्पना’ (Steady state concept) के नाम से प्रस्तुत किया। इस संकल्पना के अनुसार ब्रह्मांड किसी भी समय में एक ही जैसा रहा है। यद्यपि ब्रह्मांड के विस्तार संबंधी अनेक प्रमाणों के मिलने पर वैज्ञानिक समुदाय अब ब्रह्मांड विस्तार सिद्धांत के ही पक्षधर हैं।
तारों का निर्माण
प्रारंभिक ब्रहांड में ऊर्जा व पदार्थ का वितरण समान नहीं था। घनत्व में आरंभिक भिन्नता से गुरुत्वाकर्षण बलों में भिन्नता आई, जिसके परिणामस्वरूप पदार्थ का एकत्रण हुआ। यही एकत्रण आकाशगंगाओं के विकास का आधार बना। एक आकाशगंगा असंख्य तारों का समूह है। आकाशगंगाओं का विस्तार इतना अधिक होता है कि उनकी दूरी हजारों प्रकाश वर्षों में (Light years) मापी जाती है। एक अकेली आकाशगंगा का व्यास 80 हजार से 1 लाख 50 हजार प्रकाश वर्ष के बीच हो सकता है। एक आकाशगंगा के निर्माण की शुरूआत हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के संचयन से होती है जिसे नीहारिका (Nebula) कहा गया। क्रमशः इस बढ़ती हुई नीहारिका में गैस के झुंड विकसित हुए। ये झुंड बढ़ते-बढ़ते घने गैसीय पिंड बने, जिनसे तारों का निर्माण आरंभ हुआ। ऐसा विश्वास किया जाता है कि तारों का निर्माण लगभग 5 से 6 अरब वर्षों पहले हुआ।
प्रकाश वर्ष (Light year) समय का नहीं वरन् दूरी का माप है। प्रकाश की गति 3 लाख कि0 मी० प्रति सैकेंड है। विचारणीय है कि एक साल में प्रकाश जितनी दूरी तय करेगा, वह एक प्रकाश वर्ष होगा। यह $9.46 \times 10^{12}$ कि० मी॰ के बराबर है। पृथ्वी व सूर्य की औसत दूरी 14 करोड़ 95 लाख, 98 हजार किलोमीटर है। प्रकाश वर्ष के संदर्भ में यह प्रकाश वर्ष का केवल 8.311 है।
ग्रहों का निर्माण
ग्रहों के विकास की निम्नलिखित अवस्थाएँ मानी जाती हैं:
(i) तारे नीहारिका के अंदर गैस के गुंथित झुंड हैं। इन गुंथित झुंडों में गुरुत्वाकर्षण बल से गैसीय बादल में क्रोड का निर्माण हुआ और इस गैसीय क्रोड के चारों तरफ गैस व धूलकणों की घूमती हुई तश्तरी (Rotating disc) विकसित हुई।
(ii) अगली अवस्था में गैसीय बादल का संघनन आरंभ हुआ और क्रोड को ढकने वाला पदार्थ छोटे गोलों के रूप में विकसित हुआ। ये छोटे गोले संसंजन (अणुओं में पारस्परिक आकर्षण) प्रक्रिया द्वारा ग्रहाणुओं (Planetesimals) में विकसित हुए। संघट्टन (Collision) की क्रिया द्वारा बड़े पिंड बनने शुरू हुए और गुरुत्वाकर्षण बल के परिणामस्वरूप ये आपस में जुड़ गए। छोटे पिंडों की अधिक संख्या ही ग्रहाणु है।
(iii) अंतिम अवस्था में इन अनेक छोटे ग्रहाणुओं के सहवर्धित होने पर कुछ बड़े पिंड ग्रहों के रूप में बने।
पृथ्वी का उद्भव
क्या आप जानते हैं कि प्रारंभ में पृथ्वी चट्टानी, गर्म और वीरान ग्रह थी, जिसका वायुमंडल विरल था जो हाइड्रोजन व हीलियम से बना था। यह आज की पृथ्वी के वायुमंडल से बहुत अलग था। अतः कुछ ऐसी घटनाएँ एवं क्रियाएँ अवश्य हुई होंगी जिनके कारण चट्टानी, वीरान और गर्म पृथ्वी एक ऐसे सुंदर ग्रह में परिवर्तित हुई जहाँ बहुत सा पानी, तथा जीवन के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध हुआ। अगले कुछ भागों में आप पढ़ंगे कि आज से 460 करोड़ सालों के दौरान इस ग्रह पर जीवन का विकास कैसे हुआ।
पृथ्वी की संरचना परतदार है। वायुमंडल के बाहरी छोर से पृथ्वी के क्रोड तक जो पदार्थ हैं वे एक समान नहीं हैं। वायुमंडलीय पदार्थ का घनत्व सबसे कम है। पृथ्वी की सतह से इसके भीतरी भाग तक अनेक मंडल हैं और हर एक भाग के पदार्थ की अलग विशेषताएँ हैं।
पृथ्वी की परतदार संरचना कैसे विकसित हुई?
स्थलमंडल का विकास
ग्रहाणु व दूसरे खगोलीय पिंड ज्यादातर एक जैसे ही घने और हल्के पदार्थों के मिश्रण से बने हैं। उल्काओं के अध्ययन से हमें इस बात का पता चलता है। बहुत से ग्रहाणुओं के इकट्ठा होने से ग्रह बनें। पृथ्वी की रचना भी इसी प्रकम के अनुरूप हुई है। जब पदार्थ गुरुत्वबल के कारण संहत हो रहा था, तो उन इकट्डा होते पिंडों ने पदार्थ को प्रभावित किया। इससे अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न हुई। यह क्रिया जारी रही और उत्पन्न ताप से पदार्थ पिघलने/गलने लगा। ऐसा पृथ्वी की उत्पत्ति के दौरान और उत्पत्ति के तुरंत बाद हुआ। अत्यधिक ताप के कारण, पृथ्वी आंशिक रूप से द्रव अवस्था में रह गई और तापमान की अधिकता के कारण ही हल्के और भारी घनत्व के मिश्रण वाले पदार्थ घनत्व के अंतर के कारण अलग होना शुरू हो गए। इसी अलगाव से भारी पदार्थ (जैसे लोहा), पृथ्वी के केन्द्र में चले गए और हल्के पदार्थ पृथ्वी की सतह या ऊपरी भाग की तरफ आ गए। समय के साथ यह और ठंडे हुए और ठोस रूप में परिवर्तित होकर छोटे आकार के हो गए। अंततोगत्वा यह पृथ्वी की भूपर्पटी के रूप में विकसित हो गए। हल्के व भारी घनत्व वाले पदार्थों के पृथक होने की इस प्रक्रिया को विभेदन (Differentiation) कहा जाता है। चंद्रमा की उत्पत्ति के दौरान, भीषण संघट्ट (Giant impact) के कारण, पृथ्वी का तापमान पुनः बढ़ा या फिर ऊर्जा उत्पन्न हुई और यह विभेदन का दूसरा चरण था। विभेदन की इस प्रक्रिया द्वारा पृथ्वी का पदार्थ अनेक परतों में अलग हो गया। पृथ्वी के धरातल से क्रोड तक कई परतें पाई जाती हैं। जैसे-पर्पटी (Crust), प्रावार (Mantle), बाह्य क्रोड (Outer core) और आंतरिक क्रोड (Inner core)। पृथ्वी के ऊपरी भाग से आंतरिक भाग तक पदार्थ का घनत्व बढ़ता है। हर परत की विशेषताओं का विस्तारपूर्वक अध्ययन हम अगले अध्याय में करेंगे।
वायुमंडल व जलमंडल का विकास
पृथ्वी के वायुमंडल की वर्तमान संरचना में नाइट्रोजन एवं ऑक्सीजन का प्रमुख योगदान है। वायुमंडल की संरचना व संगठन आठवें अध्याय में बतायी गयी है।
वर्तमान वायुमंडल के विकास की तीन अवस्थाएँ हैं। इसकी पहली अवस्था में आदिकालिक वायुमंडलीय गैसों का ह्रास है। दूसरी अवस्था में, पृथ्वी के भीतर से निकली भाप एवं जलवाष्प ने वायुमंडल के विकास में सहयोग किया। अंत में वायुमंडल की संरचना को जैव मंडल के प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया (Photosynthesis) ने संशोधित किया।
प्रारंभिक वायुमंडल जिसमें हाइड्रोजन व हीलियम की अधिकता थी, सौर पवन के कारण पृथ्वी से दूर हो गया। ऐसा केवल पृथ्वी पर ही नहीं, वरन् सभी पार्थिव ग्रहों पर हुआ। अर्थात् सभी पार्थिव ग्रहों से, सौर पवन के प्रभाव के कारण, आदिकालिक वायुमंडल या तो दूर धकेल दिया गया या समाप्त हो गया। यह वायुमंडल के विकास की पहली अवस्था थी।
पृथ्वी के ठंडा होने और विभेदन के दौरान, पृथ्वी के अंदरूनी भाग से बहुत सी गैसें व जलवाष्प बाहर निकले। इसी से आज के वायुमंडल का उद्भव हुआ। आरंभ में वायुमंडल में जलवाष्प, नाइट्रोजन, कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन व अमोनिया अधिक मात्रा में, और स्वतंत्र ऑक्सीजन बहुत कम थी। वह प्रक्रिया जिससे पृथ्वी के भीतरी भाग से गैसें धरती पर आई, इसे गैस उत्सर्जन (Degassing) कहा जाता है। लगातार ज्वालामुखी विस्फोट से वायुमंडल में जलवाष्प व गैस बढ़ने लगी। पृथ्वी के ठंडा होने के साथ-साथ जलवाष्प का संघनन शुरू हो गया। वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाई ऑक्साइड के वर्षा के पानी में घुलने से तापमान में और अधिक गिरावट आई। फलस्वरूप अधिक संघनन व अत्यधिक वर्षा हुई। पृथ्वी के धरातल पर वर्षा का जल गर्तों में इकट्टा होने लगा, जिससे महासागर बनें। पृथ्वी पर उपस्थित महासागर पृथ्वी की उत्पत्ति से लगभग 50 करोड़ सालों के अंतर्गत बनें। इससे हमें पता चलता है कि महासागर 400 करोड़ साल पुराने हैं। लगभग 380 करोड़ साल पहले जीवन का विकास आरंभ हुआ। यद्यपि लगभर 250 से 300 करोड़ साल पहले प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया विकसित हुई। लंबे समय तक जीवन केवल महासागरों तक सीमित रहा। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा ऑक्सीजन में बढ़ोतरी महासागरों की देन है। धीरे-धीरे महासागर ऑक्सीजन से संतृप्त हो गए और वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा 200 करोड़ वर्ष पूर्व पूर्ण रूप से भर गई।
जीवन की उत्पत्ति
पृथ्वी की उत्पत्ति का अंतिम चरण जीवन की उत्पत्ति व विकास से संबंधित है। निःसंदेह पृथ्वी का आरंभिक वायुमंडल जीवन के विकास के लिए अनुकूल नहीं था। आधुनिक वैज्ञानिक, जीवन की उत्पत्ति को एक तरह की रासायनिक प्रतिक्रिया बताते हैं, जिससे पहले जटिल जैव (कार्बनिक) अणु (Complex organic molecules) बने और उनका समूहन हुआ। यह समूहन ऐसा था जो अपने आपको दोहराता था। (पुनः बनने में सक्षम था), और निर्जीव पदार्थ को जीवित तत्त्व में परिवर्तित कर सका। हमारे ग्रह पर जीवन के चिह्न अलग-अलग समय की चट्टानों में पाए जाने वाले जीवाश्म के रूप में हैं। 300 करोड़ साल पुरानी भूगर्भिक शैलों में पाई जाने वाली सूक्ष्मदर्शी संरचना आज की शैवाल (Blue green algae) की संरचना से मिलती जुलती है। यह कल्पना की जा सकती है कि इससे पहले समय में साधारण संरचना वाली शैवाल रही होगी। यह माना जाता है कि जीवन का विकास लगभग 380 करोड़ वर्ष पहले आरंभ हुआ। एक कोशीय जीवाणु से आज के मनुष्य तक जीवन के विकास का सार भूवैज्ञानिक काल मापक्रम से प्राप्त किया जा सकता है।
अभ्यास
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न :
(i) निम्नलिखित में से कौन-सी संख्या पृथ्वी की आयु को प्रदर्शित करती है?
(क) 46 लाख वर्ष
(ख) 4.6 अरब वर्ष
(ग) 13.7 अरब वर्ष
(घ) 13.7 खरब वर्ष
(ii) निम्न में कौन-सा तत्व वर्तमान वायुमंडल के निर्माण व संशोधन में सहायक नहीं है?
(क) सौर पवन
(ख) गैस उत्सर्जन
(ग) विभेदन
(घ) प्रकाश संश्लेषण
(iii) पृथ्वी पर जीवन निम्नलिखित में से लगभग कितने वर्षों पहले आरंभ हुआ।
(क) 1 अरब 37 करोड़ वर्ष पहले
(ख) 460 करोड़ वर्ष पहले
(ग) 38 लाख वर्ष पहले
(घ) 3 अरब, 80 करोड़ वर्ष पहले
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए :
(i) विभेदन प्रक्रिया से आप क्या समक्षते हैं।
(ii) प्रारम्भिक काल में पृथ्वी के धरातल का स्वरूप क्या था?
(iii) पृथ्वी के वायुमंडल को निर्मित करने वाली प्रारंभिक गैसें कौन सी थीं?
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए :
(i) बिग बैंग सिद्धांत का विस्तार से वर्णन करें।
(ii) पृथ्वी के विकास संबंधी अवस्थाओं को बताते हुए हर अवस्था/चरण को संक्षेप में वर्णित करें।
परियोजना कार्य
‘स्टार डस्ट’ परियोजना के बारे में निम्नलिखित पक्षों पर वेबसाइट से सूचना एकत्रित कीजिए :
(ww.sci.edu/public.html and ww.nasm.edu)
(अ) इस परियोजना को किस एजेंसी ने शुरू किया था?
(ब) स्टार डस्ट को एकत्रित करने में वैज्ञानिक इतनी रूचि क्यों दिखा रहे हैं?
(स) स्टार डस्ट कहाँ से एकत्र की गई है?