अध्याय 04 आँकड़ों का प्रस्तुतीकरण

1. प्रस्तावना

पिछले अध्यायों में आप यह पढ़ चुके हैं कि आँकड़ों को कैसे संगृहीत और व्यवस्थित किया जाता है। सामान्यतः आँकड़ों का परिमाण अधिक होता है, जिन्हें सुसंबद्ध एवं प्रस्तुति-योग्य रखने की आवश्यकता होती है। इस अध्याय में आँकड़ों के प्रस्तुतीकरण की जानकारी दी जाएगी, ताकि संग्रह किए गए वृहद् आँकड़ों को आसानी से समझ कर उनका प्रयोग किया जा सके। सामान्यतः आँकड़े तीन प्रकार से प्रस्तुत किए जा सकते हैं:

  • पाठ-विषयक या वर्णनात्मक प्रस्तुतीकरण
  • सारणीबद्ध प्रस्तुतीकरण
  • आरेखीय प्रस्तुतीकरण

2. आँकड़ों का पाठ-विषयक प्रस्तुतीकरण

पाठ-विषयक प्रस्तुतीकरण में आँकड़ों का विवरण पाठ में ही दिया जाता है। जब आँकड़ों का परिमाण बहुत अधिक न हो तो प्रस्तुतीकरण का यह स्वरूप अधिक उपयोगी होता है। निम्नलिखित स्थितियों को देखें:

स्थिति 1

बिहार के एक शहर में, 8 सितंबर 2005 को पेट्रोल तथा डीजलों की कीमतों की वृद्धि के विरोध में आयोजित एक बंद के दौरान 5 पेट्रोल पंप खुले तथा

17 बंद पाए गए और इसी प्रकार से 2 विद्यालय बंद तथा 9 विद्यालय खुले पाए गए।

स्थिति 2

भारत की जनगणना 2001 की रिपोर्ट के अनुसार भारत की जनसंख्या बढ़कर 102 करोड़ हो गई, जिसमें 53 करोड़ पुरुषों के मुकाबले 49 करोड़ महिलाएँ थीं। 74 करोड़ लोग अभी भी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में और केवल 28 करोड़ लोग शहरों एवं कस्बों में रह रहे थे। पूरे देश में 40 करोड़ श्रमिकों के मुकाबले गैर-श्रमिकों की संख्या 62 करोड़ थी। शहरी जनसंख्या में गैर-श्रमिकों की संख्या ग्रामीण जनसंख्या की अपेक्षा अधिक ( 19 करोड़) थी, जहाँ 74 करोड़ की ग्रामीण जनसंख्या में 31 करोड़ श्रमिक हैं।

इन दोनों ही स्थितियों में आँकड़ों को पाठ्य-सामग्री के रूप में ही प्रस्तुत किया गया है। इस स्वरूप में प्रस्तुतीकरण की एक महत्वपूर्ण कमी यह है कि आँकड़ों को समझने के लिए पूरा पाठ पढ़ना होगा। किंतु, यह भी सत्य है कि यह मसला हमें अकसर प्रस्तुतीकरण के खास बिंदुओं को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने के योग्य बना देता है।

3. आँकड़ों का सारणीबद्ध प्रस्तुतीकरण

सारणीबद्ध प्रस्तुतीकरण में, आँकड़ों को पंक्तियों (क्षैतिज) तथा स्तंभों (ऊर्ध्वाधर) के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। उदाहरण के लिए नीचे दी गई सारणी 4.1 को देखें, जिसमें साक्षरता दर के बारे में जानकारी दी गई है। इसमें तीन पंक्तियाँ (पुरुष, स्त्री तथा योग) और तीन स्तंभ दिए गए (शहरी, ग्रामीण एवं योग) हैं। इसे $3 \times 3$ सारणी कहा जाता है, जिसमें 9 बॉक्स में 9 मदों की जानकारी दी गई है, जिसे ‘सारणी की कोष्ठिका’ कहा जाता है। प्रत्येक कोष्ठिका किसी लिंग (‘स्त्री’, ‘पुरुष’ या ‘योग’) की विशेषता और उसकी संख्या (ग्रामीण व्यक्तियों, शहरी व्यक्तियों तथा उनके योग का कुल साक्षरता प्रतिशत) की जानकारी देता है। आँकड़ों के सारणीयन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लाभ यह है कि आँकड़ों को सांख्यिकीय प्रयोग एवं उसके आधार पर निर्णय लेने के लिए व्यवस्थित करता है। सारणीयन में प्रयुक्त वर्गीकरण चार प्रकार के होते हैं:

  • गुणात्मक
  • मात्रात्मक
  • कालिक, और
  • स्थानिक

गुणात्मक वर्गीकरण

जब वर्गीकरण गुणात्मक विशिष्टता के साथ किया जाता है, जैसे कि सामाजिक स्थिति, भौतिक स्थिति, राष्ट्रीयता, इत्यादि, तो इसे गुणात्मक वर्गीकरण कहा जाता है। उदाहरण के लिए, सारणी 4.1 में वर्गीकरण की विशिष्टता लिंग एवं स्थान के आधार पर है, जो स्वभाव में गुणात्मक है।

सारणी 4.1

लिंग एवं स्थान के अनुसार भारत में साक्षरता (प्रतिशत)

लिंग ग्रामीण शहरी योग
पुरुष 79 90 82
स्त्री 59 80 65
योग 68 84 74

स्रोतः ‘भारत की जनगणना’ 2011, साक्षरता दर का संबंध 7 वर्ष या अधिक आयु वाली जनसंख्या से है।

मात्रात्मक वर्गीकरण

मात्रात्मक वर्गीकरण में आँकड़ों का वर्गीकरण उन विशिष्टताओं के आधार पर किया जाता है जो स्वाभाविक रूप से मात्रात्मक होती हैं। दूसरे शब्दों में, इन विशिष्टताओं को मात्रात्मक रूप से मापा जा सकता है, जैसे आयु, कद, उत्पादन, आय इत्यादि मात्रात्मक विशिष्टताएँ हैं। विचाराधीन विशेषताओं के मानों को दर्शाने के लिए सीमाएँ निर्धारित करके वर्गों का गठन किया जाता है, जिन्हें वर्ग-सीमाएँ कहते हैं। मात्रात्मक वर्गीकरण का एक उदाहरण सारणी 4.2 में दिया गया है। सारणी में छूटे हुए अंकों की गणना करें।

सारणी 4.2

बिहार में एक चुनावी अध्ययन हेतु 542 उत्तरदाताओं का आयु के अनुसार वितरण

आयु समूह
(वर्ष)
उत्तरदाताओं
की संख्या
प्रतिशत
$20-30$ 3 0.55
$30-40$ 61 11.25
$40-50$ 132 24.35
$50-60$ 153 28.24
$60-70$ 140 25.83
$70-80$ 51 9.41
$80-90$ 2 0.37
योग 542 100.00

स्रोतः एसेंबली इलेक्शन, पटना सेन्ट्रल कॉस्ट्टीट्यूएंसी, ए. एन. सिन्हा इसंटीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज, पटना।

यहाँ पर वर्गीकरण की विशेषता आयु (वर्षों में) है, जिसका मात्रात्मक वर्गीकरण किया जा सकता है। विवेचना करें कि कैसे सारणी 4.1 में कुल मान तक पहुँचा गया।

क्रियात्मक गतिविधियाँ

  • अपनी कक्षा के छात्रों की रुचि के क्रमानुसार विभिन्न समाचार चैनलों, जैसे स्टार न्यूज, जी न्यूज, बी.बी.सी. वर्ल्ड, सी.एन.एन., आजतक तथा डी.डी. न्यूज के लिए एक सारणी बनाएँ।
  • एक सारणी बनाएँ, जिसमें, आपकी कक्षा के छात्रों के संबंध में निम्नलिखित दर्शाए गए हों:

(क) कद (सें.मी. में) और

(ख) वजन (किग्रा में)

कालिक वर्गीकरण

इस वर्गीकरण में वर्गीकरण का आधार समय होता है तथा आँकड़ों को समय के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है। समय घंटों, दिनों, हफ्तों, महीनों, वर्षोंत्यादि में हो सकता है। उदाहरण के लिए सारणी 4.3 देखें।

सारणी 4.3

एक चाय की दुकान की 1995 से 2000 तक की वार्षिक बिक्री का विवरण

वर्ष बिक्री (लाख रु० में)
1995 79.2
1996 81.3
1997 82.4
1998 80.5
1999 100.2
2000 91.2

आँकड़ा स्रोतः अप्रकाशित आँकड़े

उपर्युक्त सारणी में वर्गीकरण का आधार एक ‘वर्ष’ में बिक्री है जिसके मान समय के स्केल पर दिखाए गए हैं।

क्रियात्मक गतिविधि

  • अपने विद्यालय के कार्यालय में जाइए और विद्यालय की प्रत्येक कक्षा में अध्ययन करने वाले छात्रों की संख्या का पिछले 10 वर्षो के आँकड़ों का संग्रह कीजिए। इन आँकड़ों को सारणीबद्ध ढंग से प्रस्तुत करें।

स्थानिक वर्गीकरण

जब कोई वर्गीकरण इस प्रकार से किया जाए, कि वर्गीकरण का आधार स्थान हो, तो इसे स्थानिक-वर्गीकरण कहते हैं। यह स्थान कोई गाँव/कस्बा, खंड, जिला, राज्य या देश आदि हो सकता है।

सारणी 4.4 स्थानिक वर्गीकरण का एक उदाहरण है।

सारणी 4.4

एक वर्ष में भारत द्वारा शेष विश्व में कुल निर्यात की भागीदारी (का प्रतिशत)

गंतव्य स्थान निर्यात भागीदारी
यू.एस.ए. 12.5
जर्मनी 2.4
अन्य यूरोपीय संघ के देश 10.9
यू.के. 3.1
जापान 2.2
रूस 0.7
चीन 4.7
पश्चिमी एशिया- गल्फ सहकारी परिषद् 15.3
शेष एशिया 29.4
अन्य 18.8
सभी 100.0

( कुल निर्यातः यु.एस.डॉलर 314.4 बिलियन)

क्रियात्मक गतिविधि

  • अपनी कक्षा के छात्रों के मूल राज्यों/रिहायशी इलाकों के आधार पर उन से प्राप्त आँकड़ों को प्रस्तुत करते हुए एक सारणी बनाएँ।

4. आँकड़ों का सारणीकरण तथा सारणी के अंग

सारणी के निर्माण के लिए, सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि एक अच्छी सांख्यिकीय सारणी के कौन-कौन से महत्वपूर्ण अंग हैं। जब इन सभी अंगों को सुव्यस्थित कर एक साथ प्रस्तुत किया जाता है, तो ये ‘सारणी’ के रूप में हो जाते हैं। सारणी की संकल्पना का सबसे सरल तरीका यह है कि आँकड़ों को कुछ व्याख्यात्मक सूचनाओं के साथ पंक्तियों एवं स्तंभों में व्यवस्थित कर दिया जाए। सारणीकरण के कार्य को एकविध, द्वविध या त्रिविध वर्गीकरण द्वारा किया जा सकता है जो कि आँकड़ों की विशिष्टताओं की संख्या पर निर्भर करता है। एक अच्छी सारणी में निम्न बातें आवश्यक रूप से होनी चाहिए:

(क) सारणी संख्या

किसी सारणी की संख्या उसकी पहचान के लिए निर्धारित की जाती है। यदि कहीं एक से अधिक सारणियाँ प्रस्तुत की जाती हैं, तो उन सारणियों की संख्या ही उन्हें एक-दूसरे से अलग करती है। इसे सारणी के ऊपर या शीर्षक की शुरुआत के साथ दिया जाता है। यदि एक पुस्तक में बहुत सारी सारणियाँ हैं, तो संख्या आरोही क्रम में दी जाती है। सामान्यतः सारणी की अवस्थिति के अनुसार सारणी की पहचान के लिए संख्याएँ जैसे $1.2,3.1$ इत्यादि भी दी जा सकती हैं। उदाहरण के लिए, सारणी संख्या 4.5 को अध्याय 4 की सारणी संख्या 5 (देखें सारणी 4.5) के रूप में पहचाना जा सकता है।

(ख) शीर्षक

सारणी का शीर्षक सारणी की विषयवस्तु की व्याख्या करता है। इसे बहुत ही स्पष्ट, संक्षिप्त एवं सावधानी पूर्ण चुने गए शब्दों में होना चाहिए, ताकि सारणी का भाव बिल्कुल स्पष्ट हो जिसमें अस्पष्टता न हो। इसे सारणी के बिल्कुल ऊपर तथा सारणी संख्या के ठीक बाद में या इसके ठीक नीचे दिया जाता है। (देखें सारणी 4.5)

(ग) उप शीर्षक या स्तंभ शीर्षक

सारणी के प्रत्येक स्तंभ के ऊपर की ओर एक स्तंभ नाम दिया जाता है जो स्तंभ के अंतर्गत दी गई संख्याओं की व्याख्या करता है। इसे उपशीर्षक या स्तंभ शीर्षक कहते हैं। (देखें सारणी 4.5)

(घ) अवशीर्ष या पंक्ति शीर्षक

उपशीर्षक या स्तंभशीर्षक की भाँति सारणी की प्रत्येक पंक्ति को भी एक शीर्षक दिया जाता है। पंक्तियों के नाम को अवशीर्ष या अवशीर्ष मदें भी कहते हैं और संपूर्ण बायें स्तंभ को अवशीर्ष स्तंभ कहा जाता है। पंक्तिशीर्षकों का संक्षिप्त विवरण सारणी के बिल्कुल ऊपर बायों ओर दिया जा सकता है।(देखें सारणी 4.5)|

(ङ) सारणी का मुख्य भाग

सारणी का मुख्य भाग वह होता है, जिसमें वास्तविक आँकड़े होते हैं। सारणी में किसी भी संख्या/आँकड़े की अवस्थिति उसकी पंक्ति एवं स्तंभ के अनुसार सुनिश्चित होती है। उदाहरण के लिए द्वितीय पंक्ति एवं चौथे स्तंभ के आँकड़ों से यह संकेत मिलता है कि 2001 में ग्रामीण भारत में 25 करोड़ गैर श्रमिक महिलाएँ थीं(देखें सारणी 4.5)|

(च) माप की इकाई

यदि पूरी सारणी में माप की इकाई समान रहे, तो सारणी की संख्याओं (वास्तविक आँकड़ों) को सदैव सारणी के शीर्षक के साथ लिखा जाना चाहिए। यदि सारणी की पंक्तियों या स्तंभों के लिए भिन्न माप इकाइयाँ हों, तो उन इकाइयों की चर्चा निश्चित रूप से ‘उपशीर्षक’ या ‘अवशीर्ष’ के साथ की जानी चाहिए। यदि संख्याएँ बहुत बड़ी हैं तो इन्हें पूर्णांक बना देना चाहिए और पूर्णांक बनाने की विधि का संकेत दिया जाना चाहिए (देखें सारणी 4.5)।

(सूचनाः सारणी 4.5 में उन्हीं आँकड़ों को सारणीबद्ध रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिन्हें पाठ-विषयक प्रस्तुतीकरण के क्रम में उदाहरण 2 में प्रस्तुत किया गया था)।

(छ) स्रोत

यह एक संक्षिप्त विवरण या वाक्यांश होता है जिसमें सारणी में प्रस्तुत किए गए आँकड़ों के स्रोत के बारे में बताया जाता है। यदि एक से अधिक स्रोत हैं, तो सभी स्रोतों के बारे में लिखा जाना चाहिए। स्रोत को प्रायः सारणी के नीचे दिया जाता है। (देखें सारणी $4.5)$ ।

(ज) टिप्पणी

टिप्पणी किसी सारणी का अंतिम अंग होता है। पाद टिप्पणी के अंतर्गत किसी सारणी के आँकड़ों की विषय-वस्तु की उन विशिष्टताओं के बारे में व्याख्या की जाती है, जो कि स्वतः स्पष्ट नहीं होती हैं और न ही पहले कहीं उनकी व्याख्या की गई होती है।

क्रियात्मक गतिविधियाँ

  • किसी सारणी के निर्माण में कम से कम कितनी पंक्तियों एवं स्तंभों की आवश्यकता होती है?
  • क्या किसी सारणी के स्तंभ शीर्षक / पंक्ति शीर्षक मात्रात्मक हो सकते हैं?
  • पृष्ठ 40 पर दिए गए स्थिति 2 के प्रथम दो पंक्तियों को सारणी के रूप में प्रदर्शित करें। इस अध्याय में भी इसका कुछ विस्तार मिल जाएगा।
  • क्या आप सारणी 4.2 और 4.3 में अंकों का ठीक-ठाक निकटन करने के बाद उसे प्रदर्शित कर सकते हैं?

5. आँकड़ों का आरेखी प्रस्तुतीकरण

आँकड़ों को प्रस्तुत करने की यह तीसरी विधि है। यह विधि सारणीकृत या पाठ-विषयक प्रस्तुतीकरण की तुलना में, आँकड़ों के आधार पर, वस्तु-स्थिति को जल्दी समझने में सबसे अधिक सहायक होती है। आँकड़ों के आरेखी प्रस्तुतीकरण से संख्याओं में निहित अमूर्तता कम हो जाती है और वे अधिक मूर्त एवं आसानी से समझने योग्य बन जाते हैं।

सारणी में प्रस्तुत किए गए आँकड़ों की अपेक्षा आरेखी प्रस्तुतीकरण में आँकड़ों की परिशुद्धता थोड़ी कम हो सकती है, किंतु ये सारणी की तुलना में अधिक प्रभावी होते हैं।

सामान्यतः कई प्रकार के आरेखों का प्रयोग होता है। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण इस प्रकार हैं:

(क) ज्यामितीय आरेख

(ख) बारंबारता आरेख

(ग) अंकगणितीय रैखिक आलेख

ज्यामितीय आरेख (Geometric Diagram)

दंड आरेख तथा वृत्त आरेख ज्यामितीय आरेख की श्रेणी में आते हैं। दंड आरेख तीन प्रकार के होते है: सरल दंड आरेख, बहु दंड आरेख तथा घटक दंड-आरेख।

दंड-आरेख (Bar Diagram)

सरल दंड-आरेख (Simple Bar Diagram)

सरल दंड आरेख के अंतर्गत समान अंतरालों तथा समान विस्तार वाले आयताकार दंडों का एक समूह प्रत्येक श्रेणी/वर्ग के आँकड़ों को दर्शाता है। दंड की ऊँचाई या लंबाई आँकड़े के परिमाण को प्रकट करती है। दंड का निचला छोर आधार रेखा को इस प्रकार स्पर्श करता है कि दंड की ऊँचाई शून्य इकाई से शुरू होती है। दंड-आरेख के दंडों की सापेक्ष ऊँचाई को देखकर, आँकड़ों को अपेक्षाकृत आसानी से समझा जा सकता है। इसके लिए आँकड़े बारंबारता वाले या गैर-बारंबारता वाले दोनों प्रकार के हो सकते हैं। गैर-बारंबारता वाले आँकड़ों में किसी खास विशिष्टता जैसे उत्पादन, फसल, जनसंख्या आदि को विभिन्न समयों या विभिन्न राज्यों के आधार पर लिया जाता है और विशिष्टताओं के मूल्यों के अनुरूप दंडों को आरेख की ऊँचाई के रूप में रखा जाता है। विशिष्टताओं का मापा हुआ (गणना किया हुआ) मान प्रत्येक मान की पहचान को बनाए रखता है। चित्र 4.1 दंड-आरेख का एक उदाहरण है।

क्रियात्मक गतिविधियाँ

  • आपने अपने विद्यालय की प्रत्येक कक्षा में इस वर्ष अध्ययन कर रहे छात्रों की संख्या का संग्रह क्रियाएं कीजिए। अब उसी सारणी को दंड-आरेख द्वारा दिखाएँ।

विभिन्न प्रकार के आँकड़ों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के आरेखी प्रस्तुतीकरण की आवश्यकता हो सकती है। दंड-आरेख बारंबारता एवं गैर-बारंबारता दोनों प्रकार के चरों एवं गुणों के लिए उपयुक्त होते हैं। विविक्त चर जैसे, परिवार के आकार, पाँसे पर बिंदु, परीक्षा में प्राप्त ग्रेड आदि और लिंग, धर्म, जाति, देश इत्यादि गुण दंड-आरेख के द्वारा प्रस्तुत किए जा सकते हैं। दंड-आरेख गैर-बारंबारता आँकड़ों को प्रस्तुत करने के लिए अधिक सुविधाजनक होते हैं, जैसे कई वर्षों के लिए आय-व्यय लेखा, आयात/निर्यात आदि।

जिस वर्ग का दंड अधिक लंबा है (जैसे केरल में साक्षरता) वह किसी दूसरे वर्ग (पं. बंगाल की साक्षरता) की अपेक्षा विशेषता की अधिक माप दिखाता है। दंडों का प्रयोग (जिन्हें स्तंभ भी कहते हैं) सामान्यतः काल-श्रेणी के आँकड़ों के प्रस्तुतीकरण के लिए किया जाता है (1980-2000 के बीच अन्न उत्पादन, कार्य सहभागिता दर में एक दशक में उतार चढ़ाव, कई वर्षों के दौरान पंजीकृत बेरोजगारी, साक्षरता दर आदि ), (चित्र 4.2)।

सारणी 4.6

भारत के प्रमुख राज्यों में साक्षरता दर

2001 2011
भारत के प्रमुख राज्य पुरुष स्त्री पुरुष स्त्री
आंध्र प्रदेश (आ.प्र.) 70.3 50.4 75.6 59.7
आसाम (आसा.) 71.3 54.6 78.8 67.3
बिहार ( बि.) 59.7 33.1 73.4 53.3
झारखंड (झार.) 67.3 38.9 78.4 56.2
गुजरात (गुज.) 79.7 57.8 87.2 70.7
हरियाणा (हरि. ) 78.5 55.7 85.3 66.8
कर्नाटक (कर्ना.) 76.1 56.9 82.9 68.1
केरल (के.) 94.2 87.7 96.0 92.0
मध्य प्रदेश (म.प्र.) 76.1 50.3 80.5 60.0
छत्तीसगढ़ ( छत्त.) 77.4 51.9 81.5 60.6
महाराष्ट्र (महा.) 86.0 67.0 89.8 75.5
ओडिशा ( ओडी.) 75.3 50.5 82.4 64.4
पंजाब ( पंजा.) 75.2 63.4 81.5 71.3
राजस्थान (राज. ) 75.7 43.9 80.5 52.7
तमिलनाडु (तमिण) 82.4 64.4 86.8 73.9
उत्तर प्रदेश (उ.प्र.) 68.8 42.2 79.2 59.3
उत्तराखंड (उत्त.) 83.3 59.6 88.3 70.7
पश्चिम बंगाल (प.बं.) 77.0 59.6 82.7 71.2
भारत 75.3 53.7 82.1 65.5

चित्र 4.12011 में भारत के प्रमुख राज्यों की साक्षरता दर (पुरुष) को दिखाता हुआ दंड-आरेख।

दंड-आरेख के कई रूप हो सकते हैं, जैसे कि बहु दंड-आरेख तथा घटक दंड-आरेख।

क्रियात्मक गतिविधियाँ

  • सन् 2011 में भारत के (प्रमुख राज्यों में से) कितने राज्यों में महिलाओं की साक्षरता दर औसत साक्षरता दर से अधिक थी?
  • क्या 1991 और 2011 के लगातार दो जनगणना वर्षों में, इन राज्यों में अधिकतम एवं न्यूनतम महिला साक्षरता दर के अंतर में कमी आई है?

बहु दंड-आरेख (Multiple Bar Diagram)

बहु दंड-आरेखों का प्रयोग (चित्र 4.2) दो या अधिक आँकड़ा-समुच्चयों की तुलना के लिए किया जाता है, उदाहरण के लिए विभिन्न वर्षों में आय और व्यय या आयात और निर्यात या विभिन्न विषयों एवं विभिन्न कक्षाओं में प्राप्त किए गए अंक आदि।

घटक दंड-आरेख (Component Bar Diagram)

घटक दंड आरेख (चित्र 4.3) या चार्ट (जिन्हें उप-आरेख भी कहा जाता है) का प्रयोग विभिन्न घटकों (ऐसे तत्व या भाग जिनसे वस्तु का निर्माण होता है) के आकारों की तुलना करने के लिए तथा इन घटकों तथा उनके अभिन्न अंगों के संबंधों पर प्रकाश डालने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए विभिन्न उत्पादों की बिक्री से प्राप्त धन, किसी प्ररूपी भारतीय परिवार के व्यय की मदें (जैसे खान-पान, किराया, दवा, शिक्षा, बिजली आदि घटक), आय और व्यय के लिए बजट परिव्यय, जनसंख्या, श्रमशक्ति के घटक आदि। घटक दंड-आरेखों को सामान्यतः उपयुक्त छायाओं या रंगों से भरा जाता है।

चित्र 4.2 दंड-आरेख दो जनगणना वर्षों 2001-2011 के दौरान भारत के प्रमुख राज्यों में महिला साक्षरता दर को दिखा रहा है।

अर्थ निर्वचन: चित्र 4.2 के द्वारा आसानी के साथ यह पता किया जा सकता है कि पूरे देश में पिछले कई वर्षों में महिला साक्षरता की दर में वृद्धि हुई है। ठीक इसी प्रकार से कई अर्थ निकाले जा सकते हैं। जैसे यह आरेख दर्शाता है कि बिहार, झारखंड तथा उत्तर प्रदेश में महिला साक्षरता दर में सर्वाधिक वृद्धि हुई है।

सारणी 4.7

बिहार के एक जिले में $4-6$ वर्ष की आयु के बच्चों का लिंग के अनुसार विद्यालय में नामांकन (प्रतिशत)

लिंग नामांकित (प्रतिशत) गैर नामांकित (प्रतिशत)
लड़के 91.5 8.5
लड़कियाँ 58.6 41.4
कुल 78.0 22.0

आँकड़ा स्रोतः अप्रकाशित आँकड़े

किसी घटक दंड-आरेख के अंतर्गत दो या दो से अधिक घटकों को दंडों और उसके उपभागों के द्वारा प्रकट किया जाता है। उदाहरण के लिए, दंड के द्वारा 6-14 आयु-वर्ग के सभी बच्चों की जनसंख्या को प्रदर्शित कर सकते हैं। ये घटक नामांकित और गैर-नामांकित बच्चों का अनुपात दर्शाते हैं। घटक दंड-आरेख के अंतर्गत लड़के, लड़कियों तथा आयु विशेष के बच्चों के कुल योग को भिन्न-भिन्न घटक-दंडों द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है, जैसा चित्र 4.3 में दिखाया गया है। घटक दंड-आरेख बनाने के लिए, सबसे पहले $\mathrm{X}$-अक्ष पर एक दंड बनाया जाता है, जिसकी कुल ऊँचाई आँकड़ों के कुल मान के बराबर होती है (प्रतिशत आँकड़ों के लिए दंड की ऊँचाई 100 इकाइयों के बराबर होगी, देखें चित्र 4.3) अन्यथा दंड की ऊँचाई दंड के कुल मान के बराबर बनायी जाती है तथा घटकों की आनुपातिक ऊँचाई ऐकिक विधि के द्वारा निर्धारित की जाती है। दंड को विभाजित करने के क्रम में छोटे घटकों को अधिक प्राथमिकता दी जाती है।

वृत्त आरेख (Pie Diagram)

वृत्त आरेख भी एक घटक आरेख है, पर घटक दंड-आरेखों के स्थान पर इसे एक ऐसे वृत्त द्वारा प्रस्तुत किया जाता है, जिसके क्षेत्र को आनुपातिक रूप से उन घटकों में विभाजित किया जाता है, जिन्हें यह दर्शाता है (चित्र 4.4)।

इसे वृत्त चार्ट भी कहते हैं। यहाँ पर वृत्त को केंद्र से परिधि की ओर सीधी रेखाओं के द्वारा उतने ही भागों में विभाजित किया जाता है जितनी घटकों की संख्या होती है।

चित्र 4.3 बिहार के एक जिले में प्राथमिक स्तर पर नामांकन (बहुखंड दंड-आरेख)

सामान्यतः वृत्त चार्टो को किसी वर्ग विशेष के निरपेक्ष मान के आधार पर नहीं बनाया जाता। यहाँ पर सबसे पहले प्रत्येक वर्ग के मान को वर्गों के कुल मान के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। वृत्त आरेख में वृत्त को 100 बराबर भागों में बाँट लिया जाता है, जिसमें प्रत्येक अंश $3.6^{\circ}\left(360^{\circ} / 100\right)$ के बराबर होता है, चाहे त्रिज्या का मान कुछ भी हो। कोण को जानने के लिए घटक को वृत्त के केंद्र से कक्षांतरित करना होगा, जिसमें प्रत्येक घटक के प्रतिशत अंकों को $3.6^{\circ}$ से गुणा करना होगा। घटकों के प्रतिशतों के वृत्त के कोणीय घटकों के रूप में परिवर्तन का एक उदाहरण सारणी 4.8 में प्रदर्शित किया गया है।

यह जानना रोचक हो सकता है कि दंड-आरेख द्वारा प्रस्तुत किए गए आँकड़े भी अच्छी तरह वृत्त चार्ट द्वारा दिखाए जा सकते हैं। यहाँ पर केवल इसकी आवश्यकता होती है कि वृत्त आरेख बनाने से पहले घटकों के निरपेक्ष मान को प्रतिशत में बदलना होता है।

सारणी 4.8

कार्य-स्थिति के अनुसार भारत की जनसंख्या का वितरण (करोड़ में)

स्थिति जनसंख्या प्रतिशत कोणीय घटक
सीमांत श्रमिक 9 8.8 $32^{\circ}$
मुख्य श्रमिक 31 30.4 $109^{\circ}$
गैर श्रमिक 62 60.8 $219^{\circ}$
कुल 102 100.0 $360^{\circ}$

चित्र 4.4 सन् 2001 में कार्य की स्थिति के अनुसार विभिन्न श्रेणियों के लिए भारत की जनसंख्या का वृत्त आरेख।

क्रियात्मक गतिविधियाँ

  • चित्र 4.4 में प्रस्तुत आँकड़ों को दंड-आरेख द्वारा प्रस्तुत कीजिए?
  • क्या वृत्त आरेख द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले आँकड़ों के कुल मान का वृत्तखंड के क्षेत्रफल से कोई संबंध होता है?

बारंबारता आरेख (Frequency Diagram)

समूहीकृत बारंबारता वितरण के रूप में प्रस्तुत आँकड़ों को सामान्यतः बारंबारता आरेखों के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है, जैसे कि आयत चित्र, बारंबारता बहुभुज बारंबारता वक्र तथा ओजाइव आदि।

आयत चित्र (Histogram)

आयत चित्र एक द्विविम आरेख है। यह आयतों का एक ऐसा समुच्चय है, जिसमें वर्ग सीमाओं के अंतराल ( $\mathrm{x}$ - अक्ष पर) आधार का कार्य करते हैं तथा जिनके क्षेत्रफल वर्ग बारंबारता के अनुपात में होते हैं (चित्र 4.5)। यदि वर्ग के अंतराल का विस्तार एक समान हो जैसा कि सामान्यतः होता है तो आयतों का क्षेत्रफल उनकी बारंबारताओं के अनुपात में होता है। हालाँकि कई प्रकार के आँकड़ों में विभिन्न विस्तार वाले अंतरालों का उपयोग सुविधाजनक होता है तथा कई बार आवश्यक भी हो जाता है। उदाहरण के लिए, आयु के अनुसार मृत्यु का सारणीयन करते समय आरंभ में, जब अधिक आयु वर्ग की जनसंख्या की तुलना में कम आयु वालों की मृत्युदर काफी ऊँची हो तो संक्षिप्त आयु-अंतराल (जैसे कि $0,1,2$ वर्ष / $0,7,28 \ldots$ दिवस आदि), अधिक सार्थक और उपयोगी होंगे। इस प्रकार के आँकड़ों के आलेखी निरूपण में किसी आयत के क्षेत्रफल की ऊँचाई, इसकी ऊँचाई (यहाँ बारंबारता) तथा आधार (यहाँ पर वर्ग अंतराल का विस्तार) का भागफल है। जब अंतराल समान हों, अर्थात् जब सभी आयतों का आधार सामान हों, तब तुलना के उद्देश्य से क्षेत्रफल को किसी भी अंतराल की बारंबारता के द्वारा आसानी से प्रस्तुत किया जा सकता है। जब आधारों का विस्तार भिन्न-भिन्न होता है, तब आयतों की ऊँचाई को समायोजित किया जाता है, ताकि तुलनात्मक मापों को प्राप्त किया जा सके। इस प्रकार की स्थिति में निरपेक्ष बारंबारता के स्थान पर बारंबारता घनत्व (जिसमें वर्ग बारंबारता का विभाजन वर्ग अंतराल के विस्तार से होता है) अधिक सार्थक होगा।

सारणी 4.9

किसी कस्बे के एक इलाके में दैनिक

मज़दूरी का वितरण

दैनिक मज़दूरी (रु) मज़दूरों की संख्या (बारंबारता)
$45-49$ 2
$50-54$ 3
$55-59$ 5
$60-64$ 3
$65-69$ 6
$70-74$ 7
$75-79$ 12
$80-84$ 13
$85-89$ 9
$90-94$ 7
$95-99$ 6
$100-104$ 4
$105-109$ 2
$110-114$ 3
$115-119$ 3

स्रोतः अप्रकाशित आँकड़े

चूँकि आयत चित्र आयताकार होते हैं, वर्ग अंतराल की बारंबारता (या बारंबारता घनत्व) के बराबर ऊर्ध्वाधर दूरी पर आधार रेखा पर उसी परिमाण की एक समांतर रेखा खींची जाती है। आयत चित्र कभी विविक्त चर आँकड़ों के लिए नहीं खींचा जाता है। चूँकि, सतत चरों के लिए वर्ग अंतराल की निचली सीमा पूर्व अंतराल की ऊँची सीमा के साथ मिल जाती है (भले ही वह समान हो या असमान), अतः सभी आयत साथ-साथ होते हैं और दो आसन्न आयतों के बीच कोई खाली स्थान नहीं होता। यदि वर्ग संतत नहीं होते हैं तो पहले उन्हें संतत वर्गों में बदला जाता है, जैसा कि अध्याय 3 में बताया जा चुका है। कई बार दो आसन्न आयतों के बीच के समान अंश को हटा दिया जाता है, ताकि संततता का बेहतर प्रभाव पड़े। इसके परिणामस्वरूप जो आकृति बनती है वह दोहरे सोपान की तरह लगती है।

आयत चित्र दंड-आरेख के समान दिखता है। परन्तु, इनके बीच समानताओं से कहीं अधिक भिन्नताएँ हैं, जिसका पता पहली बार में नहीं चलता। स्तंभों का क्षेत्रफल, अंतराल तथा चौड़ाई सभी यादृच्छिक होते हैं। स्तंभों की ऊँचाई महत्त्वपूर्ण है, न कि इनकी चौड़ाई या क्षेत्रफल। एक ऊर्ध्वाधर रेखा भी ठीक उसी उद्देश्य को पूरा कर सकती है जितना कि उसी चौड़ाई का एक दंड करता है। इसके अतिरिक्त आयत चित्र में दो आयतों के बीच कोई रिक्त स्थान नहीं छोड़ा जाता है, जबकि दंड-आरेख में दो क्रमिक दंडों के बीच कुछ रिक्त स्थान अवश्य छोड़ा जाता है (बहुदंड आरेख या घटक-दंड आरेखों को छोड़कर)। यद्यपि सभी दंडों की चौड़ाई समान होती है तथापि तुलना की दृष्टि से इनकी चौड़ाई का कोई महत्व नहीं होता है। आयत चित्र में चौड़ाई उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी ऊँचाई। दंड-आरेख विविक्त एवं संतत दोनों ही चरों के लिए बनाये जा सकते हैं, जबकि आयत चित्र केवल संतत चर के लिए ही बनाए जाते हैं। आयत चित्र बारंबारता वितरण के बहुलक के मान को भी आलेखी रूप में दिखा सकता है, जैसा चित्र 4.5 में दिखाया गया है तथा ग-निर्देशांक पर बिंदुओं से बनी क्षैतिज रेखा बहुलक को दर्शाती है।

बारंबारता बहुभुज (Frequency Polygon)

बारंबारता बहुभुज सीधी रेखाओं से घिरा हुआ एक समतल है, जिसमें सामान्यतः चार या अधिक रेखाएँ होती हैं। बारंबारता बहुभुज आयत चित्र का विकल्प होता है, जो आयत चित्र से ही व्युतपन्न होता है। बारंबारता बहुभुज को वक्र के आकार के अध्ययन के लिए किसी आयत चित्र के ऊपर लगाया जा सकता है। आयत चित्र के क्रमिक आयतों के ऊपरी छोर के मध्य बिंदुओं को जोड़ कर बारंबारता बहुभुज का निर्माण बहुत आसानी से किया जा सकता है। आवृत्ति बहुभुज आधार रेखा से दूर दो छोरों पर समाप्त हो जाता है, जिससे वक्र के अंतर्गत आनेवाले क्षेत्रफल का परिकलन संभव नहीं होता। इसका समाधान आधार रेखा से दोनों वर्गों के मध्यमानों को वितरण के प्रत्येक छोर पर शून्य बारंबारता से मिलाकर किया जाता है। आधार के दोनों छोरों को खंडित रेखाओं या बिंदु रेखाओं द्वारा जोड़ा जा सकता है। अतः वक्र का कुल क्षेत्रफल, आयत चित्र के क्षेत्रफल की भाँति,कुल बारंबारता या प्रतिदर्श के आकार का प्रतिनिधित्व करता है।

चित्र 4.5 एक कस्बे के एक स्थानिक क्षेत्र के 85 दैनिक मजदूरों के वितरण के लिए आयत चित्र।

बारंबारता बहुभुज समूहित बारंबारता वितरण के प्रस्तुतीकरण के लिए सर्वाधिक प्रचलित विधि है। वर्ग सीमाएँ तथा वर्ग-चिह्न, दोनों को $\mathrm{X}$-अक्ष पर प्रदर्शित किया जा सकता है तथा दो क्रमिक वर्ग-चिह्नों के बीच की दूरी वर्ग अंतराल की चौड़ाई वे आनुपातिक/समान होती है। आँकड़ों का आलेखन तब आसान होता है जब वर्ग चिह्न ग्राफ पेपर की मोटी रेखाओं के ऊपर आपतित (पड़ते) होते हैं। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता है कि वर्ग सीमाओं या वर्ग चिह्नों का प्रयोग $\mathrm{X}$-अक्ष पर किया गया है या नहीं, बारंबारताएँ (निर्देशांकों के रूप में) सदैव वर्ग-अंतराल के मध्यबिंदु पर आलेखित होती हैं। जब आलेख पर सभी बिंदु आलेखित हो जाते हैं, तो इन्हें क्रमिक सरल रेखाओं के द्वारा सावधानी से आपस में जोड़ दिया जाता है। खंडित रेखाएँ दो अंतरालों के बीच मध्य बिंदु को जोड़ती हैं, एक शुरू में और दूसरी अंत में, जो आलेखित वक्र के दो छोर होते हैं (चित्र 4.6)। जब एक ही अक्ष पर दो या दो से अधिक आलेखित वितरणों की तुलना की जाती है, तो बारंबारता बहुभुज संभवतः अधिक उपयोगी होता है, क्योंकि आयत-चित्र में दो या दो से अधिक वितरणों की ऊर्ध्वाधर रेखाएँ एवं क्षैतिज रेखाएँ आपस में मिल सकती हैं।

बारंबारता वक्र (Frequency Curve)

बारंबारता वक्र को, बारंबारता बहुभुज के बिंदुओं से निकटतम गुजरते हुए मुक्त-हस्त से वक्र बनाकर आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि यह बारंबारता बहुभुज के सभी बिंदुओं से होकर गुजरे, परंतु यह उन बिंदुओं से निकटतम होकर गुजरता है (चित्र 4.7)।

तोरण (Ogive)

तोरण को संचयी बारंबारता वक्र के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि संचयी बारंबारताएँ दो प्रकार की होती

चित्र 4.6 सारणी 4.9 में दिए गए आँकड़ों के लिए बारंबारता बहुभुज का रेखांकन।

चित्र 4.7 सारणी 4.9 के लिए बारंबारता वक्र

सारणी 4.10

गणित में प्राप्त अंकों का बारंबारता वितरण

सारणी 4.10 (क) सारणी 4.10 (ख) सारणी 4.10 (ग)
गणित में प्राप्त अंकों का
बारंबारता वितरण
गणित में प्राप्त अंकों का
‘से कम’ संचयी बारंबारता
गणित में प्राप्त अंकों का ‘से
अधिक’ संचयी बारंबारता
अंक छात्रों की संख्या अंक छात्रों की संख्या अंक छात्रों की संख्या
$0-20$ 6 20 से कम 6 0 से अधिक 64
$20-40$ 5 40 से कम 11 20 से अधिक 58
$40-60$ 33 60 से कम 44 40 से अधिक 53
$60-80$ 14 80 से कम 58 60 से अधिक 20
$80-100$ 6 100 से कम 64 80 से अधिक 6
योग 64

आकृति 4.8 ( अ) सारणी 4.10 में दिए गए आँकड़ों के लिए ‘से कम’ और ‘से अधिक’ तोरण।


आकृति 4.8 ( ब) सारणी 4.10 के लिए ‘से कम’ तथा ‘से अधिक’ तोरण।

हैं, उदाहरण के लिए, ‘से कम’ प्रकार एवं ‘से अधिक’ प्रकार की। तदनुसार, किसी समूहित बारंबारता वितरण आँकड़ों के लिए दो प्रकार के तोरण भी होते हैं। यहाँ, बारंबारता बहुभुज की भाँति साधारण बारंबारताओं के स्थान पर बारंबारता वितरण की वर्ग-सीमाओं के सामने संचयी बारंबारताओं को $\mathrm{Y}$-अक्ष पर आलेखित किया जाता है। संचयी बारंबारताओं को ‘से कम’ तोरण के लिए क्रमशः वर्ग अंतरालों की ऊपरी सीमा के सामने आलेखित किया जाता है, जबकि ‘से कम’ तोरण के लिए क्रमशः वर्ग अंतरालों की निम्नतम सीमा के सामने आलेखित किया जाता है। इन दोनों ही तोरणों की एक रोचक विशेषता यह है कि इन का परस्पर प्रतिच्छेद बिंदु बारंबारता वितरण की मध्यिका (आकृति 4.8 ब) बनाता है। जैसा कि दोनों तोरणों के आकार से स्पष्ट होता है, ‘से कम’ प्रकार का तोरण कभी घटता नहीं है और ‘से अधिक’ प्रकार का तोरण कभी बढ़ता नहीं है।

अंकगणितीय रेखा चित्र (Arithmetic Line Graph)

अंकगणितीय रेखा चित्र को काल श्रेणी आलेख भी कहा जाता है। इस आलेख के अंतर्गत समय (घंटा, दिन/तारीख, सप्ताह/माह, वर्ष इत्यादि) को $\mathrm{x}$-अक्ष पर आलेखित किया जाता है और चरों के मानों (काल-श्रेणी आँकड़ों) को $\mathrm{y}$-अक्ष पर आलेखित किया जाता है। इन आलेखित बिंदुओं को जोड़ने से प्राप्त रेखा-चित्र अंकगणितीय रेखा-चित्र (काल-श्रेणी आलेख) कहलाता है। यह लंबी अवधि के काल-श्रेणी आँकड़ों की प्रवृत्ति और आवर्तिता इत्यादि को समझने में सहायक होता है।

क्रियात्मक गतिविधि

  • क्या तोरण वितरण के उन विभागकारी मानों की जानकारी देने में सहायक हो सकता है, जिन्हें यह प्रदर्शित करता है?

सारणी 4.11

भारत के निर्यात एवं आयात के मान (100 करोड़ रु में)

वर्ष निर्यात आयात
$1993-94$ 698 731
$1994-95$ 827 900
$1995-96$ 1064 1227
$1996-97$ 1188 1389
$1997-98$ 1301 1542
$1998-99$ 1398 1783
$1999-2000$ 1591 2155
$2000-01$ 2036 2309
$2001-02$ 2090 2452
$2002-03$ 2549 2964
$2003-04$ 2934 3591
$2004-05$ 3753 5011
$2005-06$ 4564 6604
$2006-07$ 5718 8815
$2007-08$ 6559 10123
$2008-09$ 8408 13744
$2009-10$ 8455 13637
$2010-11$ 11370 16835
$2011-12$ 14660 23455
$2012-13$ 16343 26692
$2013-14$ 19050 27154

चित्र 4.9 सारणी 4.11 में दिए गए कालश्रेणी आँकड़ों का अंकगणितीय रेखा चित्र।

यहाँ आप आरेख 4.9 में देख सकते हैं कि यद्यपि वर्ष 1993-94 से 2013-14 के बीच सभी वर्षों में निर्यात की अपेक्षा आयात अधिक थे। आप देख सकते हैं कि 2001-02 के बाद आयात और निर्यात दोनों के मानों में लगातार वृद्धि हुई है तथा 2001-02 के बाद दोनों (निर्यात व आयात) के बीच का अंतर बढ़ गया।

6. सारांश

अब तक आपने समझ लिया होगा कि आँकड़ों को विभिन्न रूपों में किस प्रकार प्रस्तुत किया जाए जैसे, पाठ-विषयक, सारणीबद्ध तथा रेखीय रूप में। साथ ही आप संगृहीत आँकड़ों की प्रस्तुति के लिए उपयुक्त विधि तथा आरेख के प्रकार का चुनाव भी कर सकेंगे। इस तरह से आप आँकड़ों को अर्थपूर्ण, बोधगम्य तथा उद्देश्यपूर्ण तरीके से प्रस्तुत कर सकते हैं।

पुनरावर्तन

  • आँकड़े (परिमाण में अधिक होने पर भी) उचित प्रस्तुति द्वारा अर्थ प्रकट करते हैं।
  • आँकड़े छोटे (मात्रा में) हों तो पाठ-विषयक प्रस्तुति बेहतर रहती है।
  • भारी मात्रा वाले आँकड़ों के लिए सारणीबद्ध प्रस्तुतीकरण सहायक होता है। इससे आँकड़ों की किसी भी मात्रा को, एक या अधिक चरों की दृष्टि से, समंजित किया जाता है।
  • सारणीबद्ध आँकड़ों को आरेख के माध्यम से भी प्रस्तुत किया जा सकता है जो, अन्य माध्यमों की अपेक्षा, उन्हें अधिक बोधगम्य बनाता है।

अभ्यास

निम्नलिखित 1 से 10 तक के प्रश्नों के सही उत्तर चुनें:

1. दंड-आरेख

(क) एक विमी आरेख है

(ख) द्विविम आरेख है

(ग) विम रहित आरेख है

(घ) इनमें से कोई नहीं है

2. आयत चित्र के माध्यम से प्रस्तुत किए गए आँकड़ों से आलेखी रूप से निम्नलिखित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं:

(क) माध्य

(ख) बहुलक

(ग) मध्यिका

(घ) उपर्युक्त सभी

3. तोरणों के द्वारा आलेखी रूप में निम्न की स्थिति जानी जा सकती है:

(क) बहुलक

(ख) माध्य

(ग) मध्यिका

(घ) उपर्युक्त कोई भी नहीं

4. अंकगणितीय रेखा चित्र के द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों से निम्न को समझने में मदद मिलती है:

(क) दीर्घकालिक प्रवृत्ति

(ख) आँकड़ों में चक्रीयता

(ग) आँकड़ों में कालिकता

(घ) उपर्युक्त सभी

5. निम्नलिखित कथनों में से सही या गलत बताएँ :

(i) दंड-आरेख के दंडों की चौड़ाई का एक समान होना जरूरी नहीं है।

(ii) आयत चित्र में आयतों की चौड़ाई अवश्य एक समान होनी चाहिए

(iii) दंड आयत चित्र में आयतों की चौड़ाई अवश्य एक समान होनी चाहिए

(iv) आयत चित्र की रचना केवल आँकड़ों के संतत वर्गीकरण के लिए की जा सकती है

(v) आयत चित्र एवं स्तंभ आरेख आँकड़ों को प्रस्तुत करने के लिए एक जैसी विधियाँ है

(vi) आयत चित्र की मदद से बारंबारता वितरण के बहुलक को आलेखी रूप में जाना जा सकता है

(vii) तोरणों से बारंबारता वितरण की मध्यिका को नहों जाना जा सकता है

6. निम्नलिखित को प्रस्तुत करने के लिए किस प्रकार का आरेख अधिक प्रभावी होता है?

(क) वर्ष-विशेष की मासिक वर्षा

(ख) धर्म के अनुसार दिल्ली की जनसंख्या का संघटन

(ग) एक कारखाने में लागत-घटक

7. मान लीजिए, आप भारत में शहरी गैर-कामगारों की संख्या में वृद्धि तथा भारत में शहरीकरण के निम्न स्तर पर बल देना चाहते हैं, जैसा कि उदाहरण 4.2 में दिखाया गया है, तो आप उसका सारणीयन कैसे करेंगे?

8. यदि किसी बारंबारता सारणी में समान वर्ग अंतरालों की तुलना में वर्ग अंतराल असमान हों, तो आयत-चित्र बनाने की प्रक्रिया किस प्रकार भिन्न होगी।

9. भारतीय चीनी कारखाना संघ की रिपोर्ट में कहा गया है कि दिसंबर 2001 के पहले पखवाड़े के दौरान $3,87,7000$ टन चीनी का उत्पादन हुआ, जबकि ठीक इसी अवधि में पिछले वर्ष (2000 में) $3,78,7000$ टन चीनी का उत्पादन हुआ था। दिसम्बर 2001 में घरेलू खपत के लिए चीनी मिलों से $2,83,000$ टन चीनी उठाई गई और 41,000 टन चीनी निर्यात के लिए थी, जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में घरेलू खपत की मात्रा $1,54,000$ टन थी और निर्यात शून्य था।

(क) उपर्युक्त आँकड़ों को सारणीबद्ध रूप में प्रस्तुत करें।

(ख) मान लीजिए, आप इस आँकड़े को आरेख के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं तो आप कौन सा आरेख चुनेंगे और क्यों?

(ग) इन आँकड़ों को आरेखी रूप में प्रस्तुत करें।

10. निम्नलिखित सारणी में कारक लागत पर सकल घरेलू उत्पाद में क्षेत्रकवार अनुमानित वास्तविक संवृद्धि दर को (पिछले वर्ष से प्रतिशत परिवर्तन) प्रस्तुत किया गया है:

वर्ष कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्रक उद्योग सेवाएँ
1994-95 5.0 9.2 7.0
$1995-96$ -0.9 11.8 10.3
$1996-97$ 9.6 6.0 7.1
$1997-98$ -1.9 5.9 9.0
$1998-99$ 7.2 4.0 8.3
$1999-2000$ 0.8 6.9 8.2

उपर्युक्त आँकड़ों को बहु काल-श्रेणी आरेख द्वारा प्रस्तुत करें।



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