अध्याय 09 सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उद्यम और व्यावसायिक उद्यमिता
मणिपुर के रोमी बैग्स
खुंबोंगमयूम धनचन्द्र सिंह के जीवन में जज्यादा कुछ नहीं था। एक गरीब दर्जी का बेटा, वह कई विशेषाधिकारों के साथ बढ़ा नहीं हुआ था। उसने अपने पिता को दिन-रात मेहनत करके अल्प आय कमाते हुए देखा था। उसने अमीरों को अमीर होते और गरीबों को गरीब ही रहते देखा था। लड़का जीवन में कुछ और करना चाहता था। वह बिना कपड़ों के सिलाई करने की जिंदगी और मात्र जीवित रहने के लिए पर्याप्त कमाने की कल्पना भी नहीं कर सकता था।
इम्फाल मणिपुर में एक छोटा सा शहर है। मेहनती पुरुष और महिलाएँ अपने बच्चों को बड़े शहरों में भेजते हैं ताकि उन्हें प्रगति के अवसर मिल सकें। खुंबोंगमयूम के पिता उसे भेजने या उसे शिक्षित करने में सक्षम नहीं थे। उसने उसे वही सिखाया जो वह जानता था— कपड़े सिलना। लड़का कपड़ों, सिलाई और कपड़ों की शैलियों के साथ बढ़ा हुआ। केवल एक सिलाई मशीन थी और लड़का उसका उपयोग तब करता था जब उसके पिता उसका उपयोग नहीं कर रहे होते थे। उसने इसे चुपचाप सीखा क्योंकि वह जानता था कि उसके पिता यह चाहते थे, लेकिन उसका मन इसमें नहीं था।
कभी-कभी कोई घटना आपके जीवन को बदल सकती है। यही खुंबोंगमयूम के साथ हुआ था जब उसने अपने पिता की दुकान के बचे हुए कपड़ों की कतरनों की सिलाई कर एक पर्स बना दिया था। खुंबोंगमयूम ने वह पर्स अपने दोस्त को भेंट किया, जो उसके अद्वितीय डिज़ाइन से आश्चर्य चकित हुआ। बदले में दोस्त ने अपने अन्य दोस्तों को वह दिलचस्प पर्स दिखाया। उन्होंने खुंबोंगमयूम से पूछा कि क्या वह उनके लिए भी इस तरह के पर्स बना सकता है। इसने उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया कि क्या उसके डिज़ाइनों के लिए कोई बाज़ार था और वह जानता था कि उसने अपने व्यावसायिक साहस पर ठोकर खाई थी। उसने एक व्यावसायिक योजना बनाई और 1996 में एक पर्स बनाने वाले उद्यम ‘रोमी बैग्स’ का शुभारंभ किया। खुंबोंगमयूम ऐसा नहीं था कि वह मौज-मस्ती में कुछ करे। उसने अपने उत्पाद की माँगों पर ध्यान दिया और उसने अपनी लागत, खर्च और अपेक्षित आय की गणना की। वर्ष 2007 में, उन्हें सूक्ष्म और मध्यम उद्यमों (माइक्रो एंड मीडियम एंटरप्राइजेज़) के अंतर्गत बैग बनाने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। उसके लिए, यद्यपि यह अभी शुरुआत है, खुंबोंगमयूम धनचन्द्र सिंह ने मात्र धैर्य, दृढ़ता और कड़ी मेहनत से अपना जीवन बदल दिया है। आप किसी को भी आगे बढ़ने से नहीं रोक सकते। आप सफल नहीं हो सकते या शीर्ष पर नहीं पहुँच सकते, यदि आप ध्यान से और प्रभावी ढंग से सुनते नहीं हैं।
9.1 प्रस्तावना
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) विकास की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं और उद्यमशीलता के आधार को व्यापक बनाकर और स्थानीय कच्चे माल तथा स्वदेशी कौशल का उपयोग करके आर्थिक समृद्धि के लिए उत्पादन, रोज़गार और निर्यात के संदर्भ में औद्योगीकरण की महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करते हैं। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम देश में औद्योगिक परिदृश्य पर श्रम बल के काफी बड़े अनुपात और ज़बरदस्त निर्यात क्षमता के साथ छा गया है।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम आर्थिक वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और सकल घरेलू उत्पाद के 29.7 प्रतिशत और निर्यात में 49.66 प्रतिशत योगदान करते हैं। यह क्षेत्र कृषि क्षेत्र के बाद 28.5 मिलियन उद्यमों के माध्यम से लगभग 60 मिलियन लोगों को रोज़गार देता है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम सहायक इकाइयों के रूप में बड़े उद्योगों के पूरक हैं और स्वदेशी कौशलों, आधारिक नवाचारों और उद्यमिता विकास के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए मूल्य शृंखला का एक अभिन्न अंग बनाते हैं। यह क्षेत्र साधारण उपभोक्ता वस्तुओं से लेकर उच्च-परिशुद्धता, परिष्कृत तैयार उत्पादों तक की एक विस्तृत श्रृंखला का उत्पादन करता है। राष्ट्रीय विकास के लिए इस क्षेत्र की क्षमता को पहचानते हुए, उद्योग के इस भाग को आत्मनिर्भरता और ग्रामीण औद्योगीकरण के उद्देश्य को पूरा करने के लिए सुधार-पूर्व और सुधार-पश्चात् दोनों अवधिओं में प्रोत्साहित किया जाता है।
भारत में, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम में ‘पारंपरिक’ और ‘आधुनिक’ दोनों प्रकार के छोटे उद्योग शामिल हैं। इस क्षेत्र में आठ उपसमूह हैं। ये हथकरघा, हस्तशिल्प, नारियल-जटा (कॉइअर), रेशम-उत्पादन, खादी और ग्रामोद्योग, लघु उद्योग और पावरलूम हैं। एम.एस.एम.ई. के विकास में खादी और ग्रामोद्योग तथा नारियल-जटा (कॉइअर) खंड अन्य प्रमुख योगदाता हैं। कई वैश्विक कंपनियाँ कम लागत वाले विनिर्माण और स्थानीय कौशलों और क्षमताओं के साथ नवाचारी क्षमताओं के कारण आपसी लाभ की रणनीतिक साझेदारी के लिए भारतीय एम.एस. एम.ई. की ओर तेज़ी से देख रही हैं।
भारतीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र की विविधता
MSME टूल रूम को भारत के पहले अंतर-ग्रहीय अंतरिक्ष मिशन, मंगलयान (मार्स ऑर्बिटर मिशन प्रोब) के लिए कम से कम 10 घटक प्रदान करने का श्रेय दिया गया है। इसने चंद्रयान जैसे अन्य अंतरिक्ष उपग्रहों के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत का दूसरा चंद्रमा मिशन, चंद्रयान-2, जिसे 22 जुलाई, 2019 को भारत के चंद्रमा मिशन ने सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था, ने केंद्रीय उपकरण कक्ष और प्रशिक्षण केंद्र (CTTC), भुवनेश्वर और इंस्टीट्यूट फ़ॉर डिज़ाइन ऑफ़ इलेक्ट्रिकल मेज़रिंग इंस्ट्रूमेंट्स (IDEMI), मुंबई के प्रति लॉन्च व्हीकल के क्रायोजेनिक इंजन, लूनर ऑर्बिटर की नेविगेशनल असेंबली और मून लॉन्च के लिए व्हील असेंबली के कई महत्वपूर्ण घटकों को विकसित करने में योगदान देने के लिए आभार प्रकट करता है। एम.एस.एम.ई. अब केवल छोटे व्यवसाय तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि उनका योगदान जमीनी स्तर से शुरू होता है, जो सीधे तौर पर ऐसे बड़े मिशनों पर एक बड़ा प्रभाव डालता है। इस प्रकार, यह क्षेत्र समावेशी विकास के लिए महत्वपूर्ण है और भारत के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
स्त्रोत— एम.एस.एम.ई. मंत्रालय, एम.एस.एम.ई. इनसाइडर, 2019, भारत सरकार।
9.2 सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उद्यम
यह जानना महत्वपूर्ण है कि सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उद्यम प्रतिष्ठानों के संदर्भ में हमारे देश में आकार कैसे परिभाषित किया गया है। व्यावसायिक इकाइयों के आकार को मापने के लिए कई मापदंडों का उपयोग किया जा सकता है। इनमें व्यवसाय में नियोजित व्यक्तियों की संख्या, व्यापार में निवेश की गई पूँजी, व्यवसाय की कुल बिक्री या कारोबार आदि शामिल हैं।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम का वर्णन करने के लिए भारत सरकार द्वारा उपयोग की जाने वाली परिभाषा संयंत्र और मशीनरी में निवेश और कुल बिक्री या कारोबार पर आधारित है। यह माप भारत में सामाजिक-आर्थिक वातावरण को ध्यान में रखता है जहाँ पूँजी दुर्लभ है और श्रम प्रचुर मात्रा में है।
एक बड़े सेवा क्षेत्र के उद्भव ने सरकार को लघु उद्योग (SSI) क्षेत्र और संबंधित सेवा इकाइयों को एक ही छत के नीचे कवर करने वाले अन्य उद्यमों, दोनों को शामिल करने के लिए बाध्य किया है। छोटे उद्यमों का विस्तार मध्यम उद्यमों में हो रहा था और उन्हें तेज़ी से वैश्वीकृत दुनिया में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए उच्च स्तर की तकनीकों को अपनाना आवश्यक था। इस प्रकार, ऐसे उद्यमों के सरोकारों को सूक्ष्म, लघु और मध्यम के रूप में संबोधित करना और उन्हें एक एकल कानूनी ढाँचा प्रदान करना आवश्यक था। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम अधिनियम, 2006 अक्तूबर 2006 से लागू हुआ। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (MSMED) अधिनियम, 2006 ने इसकी परिभाषा, ऋण, विपणन और प्रौद्योगिकी से संबंधित इन मुद्दों को क्रमिक रूप से संबोधित किया। मध्यम स्तर के उद्यम और सेवा संबंधी उद्यम भी इस अधिनियम के क्षेत्र में आते हैं।
9.3 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम की भूमिका
भारत में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में अपने योगदान की दृष्टि से एक विशेष स्थान रखते हैं। सूक्ष्म, लघु और
इकाइयों का प्रकार | संयंत्र और मशीनरी में निवेश | कुल बिक्री या कारोबार |
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सूक्ष्म उद्यम | 1 करोड़ | 5 करोड़ से अधिक नहीं होता |
लघु उद्यम | 10 करोड़ | 50 करोड़ से अधिक नहीं होता |
मध्यम उद्यम | 50 करोड़ | 250 करोड़ से अधिक नहीं होता |
लघु तथा मध्यम उद्यम के $\%$ शेयर
सूक्ष्म उद्यम $99.4 %$ लघु उद्यम $0.52 %$ मध्यम उउ्यम $0.1 %$
ग्रामीण उद्योग
ग्राम उद्योग को ग्रामीण क्षेत्र में स्थित किसी भी उद्योग के रूप में परिभाषित किया गया है जो ऊर्जा के उपयोग के साथ या उसके बिना किसी भी माल का उत्पादन करता है, कोई सेवा देता है और जिसमें प्रति मुखिया या कारीगर या श्रमिक के निश्चित पूँजी निवेश का केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर उल्लेख किया जाता है।
कुटीर उद्योग
कुटीर उद्योगों को ग्रामीण उद्योगों या पारंपरिक उद्योगों के रूप में भी जाना जाता है। वे अन्य लघु उद्योगों की तरह पूँजी निवेश मानदंडों से परिभाषित नहीं होते हैं।
मध्यम उद्यम पर हमेशा भारत की औद्योगिक रणनीति का एक अभिन्न अंग बनने के लिए ज़ोर रहा है। एम.एस.एम.ई. का विकास रोज़गार की तलाश में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में प्रवास को रोकता है और अन्य सामाजिक-आर्थिक पहलुओं, जैसे कि आय असमानताओं, उद्योगों के बिखरे विकास में कमी लाने और अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों के साथ जुड़ाव में योगदान देता है।
वास्तव में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम और ग्रामीण औद्योगिकीकरण को भारत सरकार ने “त्वरित औद्योगिक विकास और ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्रों में अतिरिक्त उत्पादक रोज़गार की संभावनाएँ उत्पन्न करने” के दोहरे उद्देश्यों को साकार करने के लिए एक शक्तिशाली साधन के रूप में माना है।
निम्नलिखित बिंदु उनके योगदान को उजागर करते हैं।
(i) हमारे देश के संतुलित क्षेत्रीय विकास में इन उद्योगों का योगदान उल्लेखनीय है। भारत में छोटे उद्योग देश की औद्योगिक इकाइयों का 95 प्रतिशत हिस्सा हैं।
(ii) कृषि के बाद, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मानव संसाधन का दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता है। वे बड़े उद्योगों की तुलना में निवेश की गई पूँजी की प्रति इकाई, रोज़गार के अवसरों की अधिक संख्या उत्पन्न करते हैं। इसलिए, उन्हें अधिक गहन श्रम और कम गहन पूँजी माना जाता है। यह भारत जैसे श्रमिक अधिशेष देश के लिए एक वरदान है।
(iii) हमारे देश में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम, उत्पादों की एक विशाल विविधता की आपूर्ति करते हैं, जिसमें बड़े पैमाने पर उपभोग का सामान, बने-बनाए वस्त्र, होज़री की वस्तुएँ, स्टेशनरी की वस्तुएँ, साबुन और डिटर्जेंट, घरेलू बर्तन, चमड़े, प्लास्टिक और रबर से बनी वस्तुएँ, तैयार खाद्य पदार्थ और सब्ज़याँ, लकड़ी और स्टील फ़र्नीचर, पेंट, वार्निश, माचिस इत्यादि शामिल हैं। निर्मित जटिल वस्तुओं में टेलीविजजन, कैलकुलेटर, इलेक्ट्रो-मेडिकल उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक शिक्षण सहायक उपकरण जैसे ओवरहेड प्रोजेक्टर, एयर कंडीशनिंग उपकरण, ड्रग्स और औषधियाँ, कृषि औज़ार तथा उपकरण और कई अन्य इंजीनियरिंग उत्पाद शामिल हैं। पारंपरिक ग्रामोद्योगों से हथकरघा, हस्तशिल्प और अन्य उत्पादों का, उनके निर्यात महत्व को देखते हुए, विशेष उल्लेख किया जाना चाहिए।
(iv) सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम, जो सरल तकनीकों का उपयोग करके सरल उत्पादों का उत्पादन करते हैं और स्थानीय उपलब्ध सामग्री और श्रम दोनों संसाधनों पर निर्भर करते हैं, देश में कहीं भी स्थापित किए जा सकते हैं। चूँकि वे बिना किसी स्थानीय अवरोध के व्यापक रूप से फैलाए जा सकते हैं, इसलिए औद्योगीकरण के लाभों को हर क्षेत्र द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार, वे देश के संतुलित विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
(v) सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम उद्यमिता के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करते हैं। लोगों के अव्यक्त कौशलों और प्रतिभाओं को व्यावसायिक कार्यों में लगाया जा सकता है, जिसे एक छोटा व्यवसाय शुरू करने के लिए थोड़ी पूँजी लगाकर और लगभग शून्य औपचारिकताओं के साथ वास्तविक रूप दिया जा सकता है।
(vi) सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को उत्पादन की कम लागत का लाभ भी मिलता है। स्थानीय उपलब्ध संसाधन कम महँगे होते हैं। कम ऊपरी खर्चों के कारण छोटे उद्योगों को स्थापित करने और चलाने की लागत कम होती है। वास्तव में, छोटे उद्योगों को मिलने वाली उत्पादन की कम लागत उनकी प्रतिस्पर्धी शक्ति है।
(vii) सूक्ष्मम, लघु और मध्यम उद्यम संगठनों के छोटे आकार के कारण, कई लोगों से परामर्श किए बिना त्वरित और समय पर निर्णय लिया जा सकता है, जैसा कि बड़े आकार के संगठनों में होता है। नए व्यावसायिक अवसरों को सही समय पर पकड़ा जा सकता है।
9.4 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के साथ जुड़ी समस्याएँ
आकार और संचालन से संबंधित कई समस्याओं के कारण सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों की क्षमता को अक्सर पूरी तरह से महसूस नहीं किया जाता है। अब हम कुछ प्रमुख समस्याओं की जाँच करेंगे, जिनका छोटे व्यवसायों, चाहे शहरी या ग्रामीण क्षेत्रों में हों, को उनके दिन-प्रतिदिन के कामकाज में सामना करना पड़ रहा है।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम बड़े पैमाने के उद्योगों की तुलना में एक अलग घाटे में हैं। संचालन का पैमाना, वित्त की उपलब्धता, आधुनिक तकनीक का उपयोग करने की योग्यता, कच्चे माल की खरीद, इनमें से कुछ क्षेत्र हैं। यह असुविधा कई समस्याओं को जन्म देती है।
समस्याओं में प्रमुख रूप से कम विकसित आधारिक-संरचना सुविधाओं के साथ स्थान की दूरी, प्रबंधकीय प्रतिभा की कमी, खराब गुणवत्ता, पारंपरिक प्रौद्योगिकी और वित्त की अपर्याप्त उपलब्धता शामिल हैं। निर्यात करने वाली छोटी इकाइयों की समस्याओं में विदेशी बाजारों पर पर्याप्त आँकड़ों की कमी, बाजार की खुफिया जानकारी की कमी, विनिमय दर में उतार-चढ़ाव, गुणवत्ता मानकों और लदान-पूर्व वित्त शामिल हैं। सामान्य तौर पर छोटे व्यवसायों को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है-
(i) अर्थ-व्यवस्था- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के सामने आने वाली गंभीर समस्याओं में से एक अपने संचालन के लिए पर्याप्त वित्त की अनुपलब्धता होती है। सामान्यता ये व्यवसाय एक छोटे पूँजी आधार के साथ शुरू होते हैं। छोटे क्षेत्र की कई इकाइयों में पूँजी बाज़ारों से पूँजी के रूप में जुटाने के लिए आवश्यक साख योग्यता का अभाव होता है। परिणामस्वरूप, वे स्थानीय वित्तीय संसाधनों पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं और अक्सर साहूकारों द्वारा शोषण का शिकार होती हैं। ये इकाइयाँ या तो उन पर बकाया भुगतान में देरी के कारण या बिना बिके माल में अपनी पूँजी के फँसने के कारण अक्सर पर्याप्त कार्यशील पूँजी की कमी से पीड़ित होती हैं। बैंक भी पर्याप्त समर्थक प्रतिभूति या गारंटी और सीमांत धन के बिना पैसा उधार नहीं देते हैं, जो उनमें से कई देने की स्थिति में नहीं होते हैं।
(ii) कच्चा माल- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम की एक और बड़ी समस्या कच्चे माल की अधिप्राप्ति होती है। यदि अपेक्षित सामग्री उपलब्ध नहीं है, तो उन्हें गुणवत्ता पर समझौता करना होगा या अच्छी गुणवत्ता वाली सामग्री प्राप्त करने के लिए उच्च कीमत चुकानी होगी। उनके द्वारा की गई कम मात्रा की खरीद के कारण उनकी सौदेबाज़ी का सामर्थ्य अपेक्षाकृत कम होता है। इसके अलावा, वे थोक में खरीदने का जोखिम नहीं उठा सकते क्योंकि उनके पास सामग्रियों को रखने की कोई सुविधा नहीं होती है। अर्थव्यवस्था में धातुओं, रसायनों और निकाले जाने वाले कच्चे माल की सामान्य कमी के कारण, लघु क्षेत्र सबसे अधिक नुकसान उठाते हैं। इसका अर्थ अर्थव्यवस्था के लिए उत्पादन क्षमता की बर्बादी और आगे की इकाइयों की क्षति भी है।
(iii) प्रबंधकीय कौशल- इन व्यवसायों को सामान्यता एक व्यक्ति द्वारा आगे बढ़ाया और चलाया जाता है, जिनके पास हो सकता है कि व्यवसाय चलाने के लिए आवश्यक सभी प्रबंधकीय कौशल न हों। कई छोटे व्यवसाय उद्यमियों के पास अच्छा तकनीकी ज्ञान तो होता है, लेकिन उत्पाद के विपणन में कम सफल होते हैं। इसके अलावा, हो सकता है कि उन्हें सभी कार्यों संबंधी गतिविधियों की देखभाल करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता हो। साथ ही वे व्यावसायिक प्रबंधकों का वित्तीय भार वहन करने की स्थिति में नहीं होते हैं।
(iv) विपणन (क्रय-विक्रय)- विपणन सबसे महत्वपूर्ण गतिविधियों में से एक है क्योंकि इससे आय होती है। वस्तुओं के प्रभावी विपणन के लिए ग्राहक की आवश्यकताओं और माँगों के बारे में पूरी समझ की आवश्यकता होती है। अधिकांश मामलों में, विपणन छोटे संगठनों का एक कमजोर क्षेत्र है। इसलिए, इन संगठनों को बिचौलियों पर बहुत अधिक निर्भर रहना पड़ता है, जो कई बार कम कीमत और देरी से भुगतान करके उनका शोषण करते हैं। इसके अलावा, छोटी कंपनियों के लिए प्रत्यक्ष विपणन संभव नहीं होता है क्योंकि उनके पास आवश्यक बुनियादी ढाँचे का अभाव होता है।
(v) गुणवत्ता- कई सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम गुणवत्ता के वांछित मानकों का पालन नहीं करते हैं। इसके बजाय वे लागत में कटौती और कीमतों को कम रखने पर ध्यान देते हैं। उनके पास गुणवत्ता अनुसंधान में निवेश करने और उद्योग के मानकों को बनाए रखने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं होते हैं, न ही उनके पास प्रौद्योगिकी के उन्नयन के लिए विशेषज्ञता होती है। वास्तव में वैश्विक बाज़ारों में प्रतिस्पर्धा के लिए गुणवत्ता बनाए रखना उनका सबसे कमजोर पक्ष होता है।
(vi) क्षमता उपयोग- विपणन कौशलों की कमी या माँग की कमी के कारण, कई कंपनियों को उनकी पूरी क्षमता से कम काम करना पड़ता है, जिसके कारण उनकी परिचालन लागत में वृद्धि होती है। इससे धीरे-धीरे व्यवसाय मंद पड़ जाता है और फिर बंद हो जाता है।
(vii) वैश्विक प्रतिस्पर्धा- ऊपर बताई गई समस्याओं के अलावा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को, विशेष रूप से वैश्वीकरण के वर्तमान संदर्भ में, कई डर बने रहते हैं। इन उद्यमों की प्रतिस्पर्धा न केवल मध्यम और बड़े उद्योगों से होती है, बल्कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों से भी होती है, जो अपने आकार और व्यवसाय के परिमाणों के संदर्भ में दिगज होती हैं।
9.5 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम और उद्यमिता विकास
उद्यमिता किसी अन्य आर्थिक गतिविधि को आगे बढ़ाने से अलग अपना व्यवसाय स्थापित करने की प्रक्रिया है, चाहे वह रोज़गार हो या किसी पेशे को चलाना हो। अपना व्यवसाय स्थापित करने वाले व्यक्ति को उद्यमी कहते हैं। प्रक्रिया के आउटपुट, अर्थात, व्यवसाय इकाई को एक उद्यम कहा जाता है। यह ध्यान रखना रोचक है कि उद्यमी को स्वरोजजगार प्रदान करने के अलावा उद्यमिता अन्य दो आर्थिक गतिविधियों, अर्थात् रोज़ार और पेशे के लिए अवसरों के निर्माण और विस्तार के लिए काफी सीमा तक उत्तरदायी है और इस प्रक्रिया में, उद्यमिता राष्ट्र के समग्र आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हो जाती है।
प्रत्येक देश को, चाहे वह विकसित हो या विकासशील हो, उद्यमियों की ज़रूरत होती है। जहाँ, एक विकासशील देश को विकास की प्रक्रिया शुरू करने के लिए उद्यमियों की आवश्यकता होती है, वहीं विकसित देश को इसे बनाए रखने के लिए उद्यमिता की आवश्यकता होती है। वर्तमान भारतीय संदर्भ में, जहाँ एक ओर, सार्वजनिक क्षेत्र और बड़े क्षेत्र में रोज़गार के अवसर कम होते जा रहे हैं और दूसरी ओर, वैश्वीकरण से उत्पन्न होने वाले विशाल अवसर लाभ देने की प्रतीक्षा में हैं; उद्यमिता वास्तव में भारत को एक सुपर आर्थिक शक्ति बनने की ऊँचाइयों पर ले जा सकती है। इस प्रकार, उद्यमिता की आवश्यकता उन कार्यों से उत्पन्न होती है जो उद्यमी आर्थिक विकास की प्रक्रिया के संबंध में और व्यावसायिक उद्यम के संबंध में करते हैं।
उद्यमिता की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) व्यवस्थित गतिविधि- उद्यमिता एक रहस्यमय उपहार या आकर्षण और कुछ ऐसा नहीं है जो संयोग से होता है! यह एक व्यवस्थित, चरण-दर-चरण और उद्देश्यपूर्ण गतिविधि है। इसकी कुछ स्वाभाविक कौशलों और अन्य ज्ञान और क्षमताओं की आवश्यकताएँ हैं, जिन्हें औपचारिक शैक्षिक और व्यावसायिक प्रशिक्षण दोनों के साथ-साथ अवलोकन और कार्य अनुभव द्वारा प्राप्त किया, सीखा और विकसित किया जा सकता है। उद्यमिता की प्रक्रिया की ऐसी समझ उस मिथक को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण है कि उद्यमी पैदा होते हैं न कि बनाए जाते हैं।
(ii) वैध और उद्देश्यपूर्ण गतिविधि- उद्यमिता का उद्देश्य वैध व्यवसाय है। इसका ध्यान रखना महत्वपूर्ण है क्योंकि कोई व्यक्ति गैरकानूनी कार्यों को उद्यमिता के रूप में वैध बनाने की कोशिश कर सकता है, इस आधार पर कि क्योंकि जिस तरह उद्यमिता जोखिम उठाती है, वैसा ही जोखिम अवैध कारोबार उठाते हैं। उद्यमिता का उद्देश्य व्यक्तिगत लाभ और सामाजिक प्राप्ति के लिए मूल्य का निर्माण है।
(iii) नवाचार- फर्म के दृष्टिकोण से, नवाचार लागत कम करने वाला या राजस्व बढ़ाने वाला हो सकता है। यदि यह दोनों करता है तो यह अत्यंत स्वागत योग्य है। अगर यह कोई भी नहीं करता है, तब भी स्वागत योग्य है क्योंकि नवाचार एक आदत बन जाना चाहिए।
उद्यमिता इस अर्थ में रचनात्मक है कि इसमें मूल्य का सर्जन शामिल है। उत्पादन के विभिन्न कारकों को मिलाकर, उद्यमी वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करते हैं जो समाज की ज़रूरतों और माँगों को पूरा करते हैं। प्रत्येक उद्यमी कार्य आय और धन कमाने में परिणित होता है। उद्यमिता इस अर्थ में भी रचनात्मक है कि इसमें नवाचार शामिल है— नए उत्पादों को बाज़ार में लाना, नए बाज़ारों की खोज और निवेशों की आपूर्ति के स्त्रोतों, तकनीकी सफलताएँ और साथ ही नए संगठनात्मक रूपों को शामिल करें जो काम को बेहतर, सस्ता, तेज़ और वर्तमान संदर्भ में, इस तरह से जो पारिस्थितिकी/पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुँचाते हैं।
(iv) उत्पादन प्रबंध- उत्पादन, रूप, स्थान, समय, व्यक्तिगत उपयोगिता के लिए उत्पादन, भूमि, श्रम, पूँजी और प्रौद्योगिकी के विभिन्न कारकों के संयुक्त उपयोग की आवश्यकता है। उद्यमी, एक कथित व्यावसायिक अवसर की प्रतिक्रिया में, इन संसाधनों को एक उत्पादक उद्यम या फर्म में जुटाता है। यह बताया जा सकता है कि उद्यमी के पास इनमें से कोई भी संसाधन न हो; उसके पास केवल ‘विचार’ हो सकता है जिसे वह संसाधन प्रदाताओं के बीच बढ़ावा देता है। एक अच्छी तरह से विकसित वित्तीय प्रणाली वाली अर्थन्यवस्था में, उसे सिर्फ वित्त-पोषी संस्थाओं को विश्वास दिलाना होगा और इस प्रकार व्यवस्था की गई पूँजी के साथ वह उपकरण, सामग्री, उपयोगिताओं (जैसे — पानी और बिजली) और प्रौद्योगिकी की आपूर्ति के लिए अनुबंध कर सकता है। उत्पादन के संगठन के केंद्र में संसाधनों की उपलब्धता और स्थान के साथ-साथ उन्हें संयोजित करने का ज्ञान होता है। एक उद्यमी को उद्यम के सर्वोत्तम हितों में इन्हें बढ़ाने के लिए बातचीत के कौशलों की आवश्यकता होती है।
(v) जोखिम उठाना- सामान्यता यह माना जाता है कि उद्यमी उच्च जोखिम उठाते हैं। हाँ, उद्यमिता में करियर बनाने के इच्छुक व्यक्ति एक बड़ा जोखिम उठाते हैं, जो नौकरी के करियर या किसी पेशे में शामिल नहीं होता है, क्योंकियहाँ “आश्वस्त” भुगतान नहीं होता है। व्यवहार में, उदाहरण के लिए, जब कोई व्यक्ति अपने दम पर व्यवसाय शुरू करने के लिए नौकरी छोड़ता है, तो वह यह गणना करने की कोशिश करता है कि क्या वह आय का समान स्तर अर्जित कर पाएगा या नहीं। किसी देखने वाले के लिए, एक अच्छी तरह से संस्थापित और आशाजनक करियर छोड़ने का जोखिम “उच्च" जोखिम लगता है, लेकिन व्यक्ति ने जो कुछ भी लिया है वह एक नापा-तोला जोखिम है। वे अपनी क्षमताओं के बारे में इतने सुनिश्चित हैं कि वे $50 %$ अवसरों को $100 %$ सफलता में बदल देते हैं। वे उच्च जोखिम वाली स्थितियों से बचते हैं क्योंकि वे विफलता से नफरत करते हैं जैसा कोई भी करेगा; वे कम जोखिम की स्थितियों को नापसंद करते हैं क्योंकि व्यवसाय एक खेल/मौज मस्ती नहीं होता! इस तरह जोखिम वित्तीय बाजी से अधिक, व्यक्तिगत बाज़ी का विषय बन जाता है, जहाँ अपेक्षा से कम प्रदर्शन अप्रसन्नता और दु:ख का कारण बनता है।
9.6 बौद्धिक संपदा अधिकार (आई.पी.आर.)
पिछले दो दशकों में, बौद्धिक संपदा अधिकार एक ऐसी ऊँचाई तक बढ़ गए हैं जहाँ से ये वैश्विक अर्थन्यवस्था के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। बौद्धिक संपदा सभी स्थानों, अर्थातृ, आप जो संगीत सुनते हैं, वह तकनीक जो आपके फ़ोन में काम करती है, आपकी पसंदीदा कार का डिजाइन, आपके स्नीकर्स पर प्रतीक (लोगो) आदि पर है। यह उन सभी चीजों में मौजूद है जिन्हें आप देख सकते हैं- मानव रचनात्मकता और कौशल के सभी उत्पाद, जैसे कि
स्टार्टअप इंडिया योजना
स्टार्टअप इंडिया योजना का उद्देश्य देश में नवाचार और स्टार्टअप के पोषण के लिए एक मजजबूत पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है। योजना विशेष रूप से निम्नलिखित पर लक्षित है-
(i) एक उद्यमशील संस्कृति को गति प्रदान करना और बड़े पैमाने पर समाज में उद्यमिता के मूल्यों को मन में बैठाना और उद्यमिता के प्रति लोगों की मानसिकता को प्रभावित करना,
(ii) एक उद्यमी होने के आकर्षणों और उद्यमिता की प्रक्रिया के बारे में जागरूकता पैदा करना।
(iii) शिक्षित युवाओं, वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों को उद्यमिता को एक आकर्षक, पसंदीदा और व्यवहारिक करियर बनाने के लिए प्रेरित करके और अधिक गतिशील स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित करना, और
(iv) पिरामिड के तल पर आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने हेतु समावेशी और सतत विकास प्राप्त करने के लिए निम्न प्रतिनिधित्व वाले लक्षित समूहों के तहत महिलाओं, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों और निम्न प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करके उद्यमिता की आपूर्ति को व्यापक बनाना।
आविष्कार, पुस्तकें, पेंटिंग, गीत, प्रतीक, नाम, चित्र या व्यवसाय में उपयोग किए जाने वाले डिज़ाइन, आदि। सभी रचनाओं का आविष्कार एक ‘विचार’ से शुरू होता है। एक बार जब विचार एक वास्तविक उत्पाद अर्थात् बौद्धिक संपदा बन जाता है, तो व्यक्ति भारत सरकार के संबंधित प्राधिकरण को संरक्षण के लिए आवेदन कर सकता है। ऐसे उत्पादों पर प्रदत्त कानूनी अधिकारों को ‘बौद्धिक संपदा अधिकार’ (IPR) कहते हैं। इसलिए बौद्धिक संपदा (आई.पी.) मानव मन के उत्पादों से संबंध रखता है, इसलिए, अन्य प्रकार की संपत्ति की तरह, बौद्धिक संपदा के मालिक इसे अन्य लोगों को किराए पर दे सकते हैं, दे या बेच सकते हैं।
विशेष रूप से, बौद्धिक संपदा (आई.पी.) मानव दिमाग की कृतियों से संबंधित होती है, जैसे आविष्कार, साहित्यिक और कलात्मक कार्य, प्रतीक, नाम, चित्र और व्यवसाय में उपयोग किए गए डिज़ाइन।
बौद्धिक संपदा दो व्यापक वर्गों में विभाजित हैऔद्योगिक संपदा, जिसमें आविष्कार (पेटेंट), व्यापार चिह्न (ट्रेडमार्क), औद्योगिक डिज़ाइन और भौगोलिक संकेत शामिल हैं, जबकि दूसरा कॉपीराइट है, जिसमें साहित्यिक और कलात्मक कार्य, जैसे- उपन्यास, कविता, नाटक, फ़िल्में, संगीत कलाकृतियाँ, कलात्मक कार्य, जैसे — पेंटिंग, चित्र, फ़ोटोग्राफ़ और मूर्तियाँ तथा वास्तुशिल्प डिज़ाइन शामिल हैं।
बौद्धिक संपदा और अन्य प्रकार की संपदा के बीच सबसे अधिक ध्यान देने योग्य अंतर यह है कि बौद्धिक संपदा अमूर्त है यानी इसे अपने स्वयं के भौतिक मापदंडों द्वारा परिभाषित या प्रेरित नहीं किया जा सकता है। नए रूपों के समावेश के साथ बौद्धिक संपदा का दायरा और परिभाषा लगातार विकसित हो रहे हैं। हाल ही में, भौगोलिक एकीकृत क्षेत्र और अघोषित संकेत, पौधों की किस्मों की सुरक्षा, जानकारी को अर्द्धचालकों और बौद्धिक संपदा की छतरी के संरक्षण में लाया गया है। भारत में निम्न प्रकार के प्राज्ञ संपत्ति अधिकारों को मान्यता दी गई है- कॉपीराइट, ट्रेडमार्क, भौगोलिक संकेत, पेटेंट, डिज़ाइन, पौधों की किस्में, अर्द्धचालक एकीकृत परिपथ खाका डिजाइन। इसके अतिरिक्त, पारंपरिक ज्ञान भी बौद्धिक संपदा के अंतर्गत आता है। आपने अक्सर किसी बीमारी के लिए अपने दादा-दादी और परदादा-परदादी से आगे से आगे प्राप्त घरेलू उपचार लिया होगा। ये घरेलू उपचार पारंपरिक औषधियाँ हैं जो पिछली कई सदियों से भारत में काम में ली जा रही हैं। इन्हें ‘पारंपरिक ज्ञान’ भी कहते हैं। भारतीय पारंपरिक औषधीय प्रणालियों के कुछ नाम आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध और योग हैं। पारंपरिक ज्ञान का अर्थ, दुनिया भर में स्थानीय समुदायों का ज्ञान, पद्धतियाँ, नवाचार और प्रथाएँ हैं। इस तरह के ज्ञान को कई वर्षों में विकसित और संचित किया गया है और कई पीढ़ियों द्वारा उपयोग में लिया गया है और इनके माध्यम से आगे की पीढ़ियों को दिया गया है। एक पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (TKDL) भारत सरकार द्वारा विकसित की गई है, जो निश्चित रूप से पारंपरिक ज्ञान का एक डिजिटल ज्ञान भंडार है, जो विशेष रूप से भारतीय चिकित्सा पद्धति में उपयोग किए जाने वाले औषधीय पौधों और सूत्रों के बारे में हमारी प्राचीन सभ्यता में मौजूद रहा है। ज्ञान का यह समृद्ध ढाँचा हमारे पारंपरिक ज्ञान के गलत पेटेंट होने को रोकने में मदद करता है।
एक अन्य प्रकार की बौद्धिक संपदा व्यापार भेद (ट्रेड सीक्रेट्स) हैं। आपने लोकप्रिय पेय, कोका कोला के बारे में सुना होगा। लेकिन आप नहीं जानते हैं कि इस पेय का नुस्खा पूरी दुनिया में केवल तीन लोगों को ही पता है? इस गुप्त सूचना को ‘व्यापार भेद’ कहते हैं। एक व्यापार भेद मूल रूप से कोई भी गोपनीय जानकारी है जो प्रतिस्पर्धी बढ़त प्रदान करती है। भारत में व्यापार भेद भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 के अंतर्गत संरक्षित हैं।
9.6.1 उद्यमियों के लिए बौद्धिक संपदा अधिकार क्यों महत्वपूर्ण है?
यह कैंसर को ठीक करने वाली दवाइयों, जैसेनवीन, अनुपम आविष्कारों के सर्जन को प्रोत्साहित करता है। यह आविष्कारकों, लेखकों, रचनाकारों आदि को उनके काम के लिए प्रोत्साहित करता है। यह किसी व्यक्ति द्वारा सर्जित कार्य को उसकी अनुमति के साथ ही जनसाधारण को वितरित और संप्रेषित होने देता है। इसलिए, यह आय के नुकसान को रोकने में मदद करता है। यह लेखकों, रचनाकारों, निर्माताओं और मालिकों को उनके कार्यों के लिए मान्यता प्राप्त करने में मदद करता है।
9.6.2 बौद्धिक संपदा अधिकार के प्रकार
बौद्धिक संपदा अधिकार रचनात्मकता को बढ़ावा देने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं और एक राष्ट्र के आर्थिक विकास में योगदान करते हैं। इस तरह के अधिकार रचनाकारों और आविष्कारकों को अपनी रचनाओं और आविष्कारों पर नियंत्रण रखने देते हैं। ये अधिकार कलाकारों, उद्यमियों और आविष्कारकों के लिए नई प्रौद्योगिकी और रचनात्मक कार्यों के अनुसंधान, विकास और विपणन के लिए आवश्यक संसाधनों को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन पैदा करते हैं। बदलती वैश्विक अर्थव्यवस्था मानव विकास में निरंतर प्रगति के लिए अभूतपूर्व चुनौतियाँ और अवसर पैदा कर रही हैं। दुनिया भर में बौद्धिक संपदा के विपणन या बेचने के लिए व्यावसायिक अवसर हैं। भौगोलिक सीमाएँ कोई बाधा पेश नहीं करती हैं- उपभोक्ता लगभग हर चीज़ की तुरंत प्राप्ति का आनंद लेते हैं। ऐसे रोमांचक समय में, यह महत्वपूर्ण है कि हम बौद्धिक संपदा अधिकारों के महत्व और यह दैनिक जीवन को कैसे प्रभावित करता है, के बारे में जानते हैं।
आइए अब प्रत्येक बौद्धिक संपदा को समझें।
प्रकाशनाधिकार (कॉपीराइट)
प्रकाशनाधिकार “प्रकाशन न करने” का अधिकार है। यह तब प्रस्तुत किया जाता है जब रचनाकार या लेखक द्वारा एक मूल विचार व्यक्त किया जाता है। यह साहित्यिक, कलात्मक, संगीतमय, ध्वनि रिकॉर्डिंग और सिनेमैटोग्राफ़िक फ़िल्म के रचनाकारों को प्रदत्त अधिकार है। प्रकाशनाधिकार विषयवस्तु के अनधिकृत उपयोग को रोकने के लिए निर्माता का एक विशेष अधिकार है जिसमें विषयवस्तु की प्रतिलिपि बनाना और वितरित करना शामिल है। प्रकाशनाधिकार की अनूठी विशेषता यह है कि कार्य के अस्तित्व में आते ही कार्य की सुरक्षा अपने आप हो जाती है। विषयवस्तु का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, लेकिन उल्लंघन के मामले में विशेष अधिकारों का उपयोग करने के लिए यह आवश्यक है।
व्यापार चिह्न (ट्रेडमार्क)
व्यापार चिह्न (ट्रेडमार्क) एक शब्द, नाम या प्रतीक (या उनका संयोजन) है जिससे हमें किसी व्यक्ति, कंपनी, संगठन आदि द्वारा बनाई गई वस्तुओं की पहचान करते हैं। व्यापार चिह्न से हम एक कंपनी की वस्तु की दूसरी कंपनी की वस्तु से अलग पहचान कर सकते हैं। किसी ब्रांड या लोगो में, व्यापार चिह्न आपको किसी कंपनी की प्रतिष्ठा, ख्याति, उत्पादों और सेवाओं के बारे में कई बातें बता सकता है। एक व्यापार चिह्न बाज़ार में अपने समान उत्पादों को प्रतिस्पर्धियों से अलग करने में मदद करता है। कोई प्रतियोगी बाज़ार में अपने उत्पाद को बेचने के लिए
प्रकाशनाधिकार के तहत क्या संरक्षित है? | |
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साहित्यिक कार्य | पैम्फ़लेट्स, ब्रोशर, उपन्यास, किताबें, कविताएँ, गीत के बोल, कंप्यूटर प्रोग्राम |
कलात्मक कार्य | चित्र, पेंटिंग, मूर्तिकला, वास्तुकला चित्र, तकनीकी चित्र, मानचित्र, लोगो |
नाटक संबंधी कार्य | नृत्य या माइम, स्क्रीनप्ले, संगीत संबंधी कार्य, साउंड रिकॉर्डिंग, सिनेमैटोग्राफ़िक फ़िल्मों सहित |
समान, या समरूप व्यापार चिह्न का उपयोग नहीं कर सकता है, क्योंकि समरूप भ्रामक समानता की अवधारणा के अंतर्गत आता है, जिसे ध्वन्यात्मक, संरचनात्मक या दृश्य समानता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। व्यापार चिह्न को पारंपरिक और गैर-परंपरिक व्यापार चिह्न के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है-
(i) पारंपरिक व्यापार चिह्न- शब्द, रंग संयोजन, लेबल, लोगो, पैकेजिंग, वस्तु की आकृति आदि।
(ii) गैर-पारंपरिक व्यापार चिह्न- इस श्रेणी के तहत उन चिह्नों पर विचार किया जाता है, जिन्हें पहले विशिष्ट नहीं माना जाता था, लेकिन समय के साथ ध्वनि चिह्न, गतिशील चिह्न आदि के साथ मान्यता मिलनी शुरू हो गई थी।
इनके अलावा, गंध और स्वाद पर भी दुनिया के कुछ हिस्सों में व्यापार चिह्न के रूप में संरक्षण के लिए विचार किया जाता है, लेकिन इन्हें भारत में व्यापार चिह्न के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं है। व्यापार चिह्न अधिनियम 1999 के अंतर्गत व्यापार चिद्न का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, लेकिन व्यापार चिह्न का पंजीकरण निशान पर एकाधिकार स्थापित करने में मदद करता है। चिह्न को पंजीकृत करने के लिए आप http// www ipindia nic in पर जा सकते हैं, जो भारतीय व्यापार चिह्न रजिस्ट्री की वेबसाइट है।
भौगोलिक संकेत
एक भौगोलिक संकेत (जी.आई.) मुख्य रूप से एक संकेत है जो कृषि, प्राकृतिक या निर्मित उत्पादों (हस्तशिल्प, औद्योगिक वस्तुएँ और खाद्य पदार्थों) की पहचान करता है, जो एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न होते हैं, जहाँ दी गई गुणवत्ता, प्रतिष्ठा या अन्य विशेषता अनिवार्य रूप से इसके भौगोलिक मूल के लिए उत्तरदायी होती हैं। भौगोलिक संकेत हमारी सामूहिक और बौद्धिक विरासत का हिस्सा हैं जिन्हें संरक्षित और बढ़ावा देने की आवश्यकता है। भौगोलिक संकेत के रूप में संरक्षित और पंजीकृत वस्तुओं को कृषि उत्पादों, प्राकृतिक, हस्तशिल्प, निर्मित वस्तुओं और खाद्य पदार्थों में वर्गीकृत किया जाता है। नागा मिर्च, मिजोो मिर्च, शाफेलेनफे, मोइरांगफे और चखेशैन्ग शॉल, बस्तर ढोकरा, वारली पेंटिंग, दार्जिलिंग चाय, काँगड़ा पेंटिंग, नागपुर के संतरे, बनारसी ब्रोकेड और साड़ियाँ तथा कश्मीर पश्मीना भौगोलिक संकेतों के कुछ उदाहरण हैं। पिछले कुछ दशकों से भौगोलिक संकेत का महत्व बढ़ता जा रहा है। भौगोलिक संकेत एक भौगोलिक क्षेत्र की सामूहिक ख्याति का प्रतिनिधित्व करता है, जिसने सदियों से खुद को बनाया है। आज, उपभोक्ता उत्पादों के भौगोलिक मूल पर अधिक से अधिक ध्यान दे रहे हैं और उन उत्पादों, जिन्हें वे खरीदते हैं, में मौजूद विशिष्ट गुणों का बहुत ध्यान रखते हैं। कुछ मामलों में, “उत्पत्ति के स्थान" और “भौगोलिक संकेतों’’ के बीच एक अंतर होता है, जो उपभोक्ताओं को सुझाव देता है कि उत्पाद की एक विशेष गुणवत्ता या विशेषता होगी, जिसे वे महत्व दे सकते हैं।
पेटेंट
पेटेंट (एकस्व) बौद्धिक संपदा अधिकारों का एक प्रकार है जो वैज्ञानिक आविष्कारों (उत्पादों और/ या प्रक्रिया) की रक्षा करता है और पहले से ज्ञात उत्पादों पर तकनीकी प्रगति दिखाता है। एक ‘पेटेंट’ सरकार द्वारा दिया गया एक विशिष्ट अधिकार है जो अन्य सभी को ‘बाहर करने का अधिकार’ देता है और उन्हें आविष्कार को बनाने, उपयोग करने, बिक्री के लिए प्रस्तुत करने, बेचने या आयात करने का अनन्य ‘अधिकार’ प्रदान करता है।
एक आविष्कार के लिए पेटेंट योग्य होने के लिए, वह किसी भी व्यक्ति के लिए नया, अस्पष्ट होना चाहिए, जो प्रौद्योगिकी के प्रासंगिक क्षेत्र में कुशल है और उसे औद्योगिक अनुप्रयोग के लिए सक्षम होना चाहिए।
(i) यह नया होना चाहिए, अर्थात् यह दुनिया में कहीं भी वर्तमान जानकारी में पहले से मौजूद नहीं होना चाहिए,
(ii) यह किसी भी व्यक्ति, जो प्रौद्योगिकी के प्रासंगिक क्षेत्र में कुशल हो, के लिए अस्पष्ट होना चाहिए। अर्थात्, मानक ऐसा व्यक्ति है जो अध्ययन के ऐसे क्षेत्र (आविष्कारी चरण) में काफी कुशल है।
(iii) अंत में, यह औद्योगिक अनुप्रयोग के योग्य होना चाहिए, अर्थात् उद्योग में उपयोग या विनिर्मित होने के योग्य होना चाहिए।
पेटेंट केवल किसी आविष्कार पर अधिकार पाने के लिए दायर किया जा सकता है, किसी खोज के लिए नहीं। न्यूटन ने सेब को गिरते देखा और गुरुत्वाकर्षण का पता लगाया, जिसे एक खोज माना जाता है। दसरी ओर, टेलीफ़ोन के जनक अलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने टेलीफ़ोन का आविष्कार किया। इस प्रकार जब हम किसी नवीन, या अद्वितीय को अस्तित्व में लाने के लिए अपनी क्षमता का उपयोग करते हैं, तो इसे एक आविष्कार कहते हैं, जबकि पहले से मौजूद चीज़ के अस्तित्व को उजागर करने की प्रक्रिया को खोज कहा जाता है।
पेटेंट का उद्देश्य वैज्ञानिक क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहित करना है। पेटेंट एक आविष्कारक को 20 वर्ष की अवधि के लिए विशेष अधिकार प्रदान करता है, जिसके दौरान कोई अन्य व्यक्ति जो पेटेंट विषयवस्तु का उपयोग करना चाहता है, तो उसे इस तरह के आविष्कार के व्यावसायिक उपयोग के लिए कुछ लागत का भुगतान करके, पेटेंटकर्ता से अनुमति लेने की आवश्यकता होती है। शुल्क देकर पेटेंटकर्ता के विशेष अधिकार प्राप्त करने की इस प्रक्रिया को लाइसेंसिंग (अनुज्ञापत्र प्राप्ति) कहते हैं।
पेटेंट एक अस्थायी एकाधिकार बनाता है। एक बार जब एक पेटेंट की अवधि समाप्त हो जाती है,
क्या पेटेंट नहीं कराया जा सकता है?
वैज्ञानिक सिद्धांत, अच्छी तरह से स्थापित प्राकृतिक नियमों के विपरीत, अमूर्त सिद्धांत का निर्माण, तुच्छ आविष्कार, नैतिकता के प्रतिकूल या सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक, कृषि की विधि या बागवानी, उपचार की विधि, मिलावट, पारंपरिक ज्ञान, निपुणता में वृद्धि के बिना वृद्धिशील आविष्कार और परमाणु ऊर्जा से संबंधित कुछ आविष्कार पेटेंट अधिनियम, 1970 की धारा 3 और 4 के अंतर्गत पेटेंट योग्य नहीं हैं।
तो आविष्कार सार्वजनिक क्षेत्र में होता है, जिसका अर्थ है कि यह लोगों द्वारा उपयोग में लिए जाने के लिए स्वतंत्र है। यह पेटेंटकर्ता को प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाओं जैसे एकाधिकार रखना आदि में शामिल होने से रोकता है।
डिज्ञाइन
एक ‘डिजाइन’ में आकृति, पैटर्न, और लाइनों की व्यवस्था या रंग संयोजन शामिल होते हैं जो किसी भी वस्तु पर लागू होते हैं। यह सौंदर्य-बोधक दिखावट या आकर्षक विशेषताओं को दिया गया संरक्षण है। किसी डिजाइन की सुरक्षा की अवधि 10 वर्षों के लिए मान्य होती है, जिसे इस अवधि की समाप्ति के बाद 5 वर्षों के लिए नवीनीकृत किया जा सकता है, जिसके दौरान एक पंजीकृत डिजाइन का उपयोग केवल उसके मालिक से लाइसेंस प्राप्त करने के बाद ही किया जा सकता है और वैधता अवधि समाप्त होने के बाद, डिजाइन सार्वजनिक क्षेत्र में आ जाता है।
पौधों की किस्में
पौधों की किस्में मुख्य रूप से विभिन्न पौधों को उनकी वानस्पतिक विशेषताओं के आधार पर श्रेणियों में समूहित करना है। यह एक प्रकार की किस्में हैं जो किसानों द्वारा पैदा और विकसित की जाती हैं। ये पौधों के आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण, सुधार और उपलब्ध कराने में मदद करती हैं। उदाहरण के लिए, आलू के संकर संस्करण। इस तरह की सुरक्षा अनुसंधान और विकास में निवेश को बढ़ावा देती है, भारतीय किसानों को खेती करने वाले, संरक्षक और प्रजनक के रूप में पहचानने के साथ-साथ उच्च गुणवत्ता वाले बीजों और रोपण सामग्री की सुविधा प्रदान करती है। इससे बीज उद्योग का विकास होता है।
अर्धचालक एकीकृत परिपथ खाका डिज़ाइन
क्या आपने कभी कंप्यूटर चिप देखी है? क्या आप एकीकृत परिपथ के बारे में जानते हैं जिसे ‘आई.सी.’ के रूप में भी जाना जाता है? एक अर्धचालक प्रत्येक कंप्यूटर चिप का एक अभिन्न अंग होता है। कोई भी उत्पाद जिसमें ट्रांजिस्टर और अन्य परिपथिय तत्व होते हैं जिन्हें एक अर्धचालक सामग्री पर, एक विद्युत-रोधक सामग्री के रूप में, या अर्धचालक सामग्री के अंदर उपयोग किया जाता है, अर्धचालक कहलाता है। इसका डिजाइइन इलेक्ट्रॉनिक परिपथ कार्य करने के लिए होता है।
चाहे कोई व्यवसाय बाज़ार में अपने आप को स्थापित कर रहा है या पहले से ही अच्छी तरह से संस्थापित है, अपनी बौद्धिक संपदा की रक्षा और प्रबंधन करना व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण होता है। किसी भी व्यवसाय को लगातार नवीनता लानी होगी और आगे का सोचना होगा, अन्यथा वह निष्क्रिय हो जाएगा और शिथिल पड़ जाएगा। न केवल नैतिक आधार पर, बल्कि कानूनी रूप से भी दूसरों की बौद्धिक संपदा का सम्मान करना आवश्यक होता है। वास्तव में, दूसरों की बौद्धिक संपदा के सम्मान से अपनी बौद्धिक संपदा को सम्मान मिलता है। स्टार्ट-अप एक उद्यमशील साहसिक कार्य है जो लक्षित लोगों के लिए नए उत्पादों, प्रक्रियाओं और सेवाओं के विकास, सुधार और नवप्रवर्तन से लाभ उठाता है। आज स्टार्ट-अप कई विघटनकारी तकनीकों के लिए ज़िम्मेदार हैं, जिन्होंने हमारे सोचने और जीने के तरीके को बदल दिया है। $20,000+$ स्टार्ट-अप के साथ, भारत को दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र कहा जाता है। स्टार्ट-अप इंडिया पहल भारतीयों में उद्यमिता की लकीर को पकड़ने का प्रयास करती है, नौकरी-चाहने वालों का नहीं, नौकरियाँ उत्पन्न करने वालों का एक राष्ट्र बनाती है। बौद्धिक संपदा अधिकार नए उद्यमों को उनके अपने विचारों के मुद्रीकरण करने में सहायता प्रदान हेतु महत्वपूर्ण हो सकते हैं और बौद्धिक संपदा अधिकार द्वारा दी जाने वाली सुरक्षात्मक छाया को बढ़ाकर बाज़ार में अपनी प्रतिस्पर्धा स्थापित कर सकते हैं।
मुख्य शब्द | ||
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लघु उद्योग | कुटीर उद्योग | छोटे उद्योग |
सूक्ष्म व्यवसाय | उद्योग | खादी उद्योग |
उद्यमिता |
सारांश
भारत में छोटे व्यवसाय की भूमिका- लघु उद्योग देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन उद्योगों में 95 प्रतिशत औद्योगिक इकाइयाँ होती हैं, जो सकल औद्योगिक मूल्य में 40 प्रतिशत तक और कुल निर्यात का 45 प्रतिशत योगदान करती हैं। लघु उद्योग कृषि के बाद मानव संसाधन के दूसरे सबसे बड़े नियोक्ता हैं, और अर्थव्यवस्था के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। ये इकाइयाँ स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री और स्वदेशी तकनीक का उपयोग करके देश के संतुलित क्षेत्रीय विकास में योगदान करती हैं। ये उद्यमिता के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करती हैं; उत्पादन की कम लागत के लाभ उठाती हैं, इनमें त्वरित निर्णय लेने, और त्वरित अनुकूलन की क्षमता होती है और अनुकूलित उत्पादन के लिए सबसे उपयुक्त होती हैं।
ग्रामीण भारत में लघु व्यवसाय की भूमिका- लघु व्यवसाय इकाइयाँ गैर-कृषि गतिविधियों की एक विस्तृत शृंखला में आय के कई स्त्रोत प्रदान करती हैं, और विशेष रूप से पारंपरिक कारीगरों और समाज के कमज़ोर वर्गों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर प्रदान करती हैं।
उद्यमी- शब्द ‘उद्यमी’, ‘उद्यमिता’ और ‘उपक्रम’ को अंग्रेज़ी भाषा में वाक्य की संरचना के साथ सादृश्य बनाकर समझा जा सकता है। उद्यमी एक व्यक्ति (विषय) है, उद्यमिता एक प्रक्रिया (क्रिया) है और उपक्रम व्यक्ति का सर्जन और प्रक्रिया का उत्पादन (वस्तु) है।
अभ्यास-प्रश्न
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम किस वर्ष पारित हुआ?
2. सूक्ष्म उद्यम क्या है?
3. कुटीर उद्योग क्या है?
4. ग्राम और खादी उद्योग से क्या अभिप्राय है?
5. उद्यमिता विकास की कोई दो विशेषताएँ दें।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्या है?
2. उद्यमिता का अर्थ बताइए।
3. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम और उद्यमिता परस्पर जुड़े हुए हैं। क्या आप सहमत हैं? दो कारण बताइए।
4. किसी देश के विकास में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम की भूमिका बताइए।
5. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के आकार को मापने के लिए उपयोग किए जाने वाले विभिन्न मापदंड क्या हैं?
6. ग्राम और खादी उद्योगों का अर्थ बताइए।
7. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के सामने आने वाली तीन प्रमुख समस्याएँ बताइए।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. लघु उद्योग भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में कैसे योगदान करते हैं? चर्चा करें।
2. ग्रामीण भारत में छोटे व्यवसाय की भूमिका का वर्णन करें।
3. लघु उद्योगों के सामने आने वाली समस्याओं पर चर्चा करना।
4. लघु उद्योग क्षेत्र में वित्त और विपणन की समस्या को हल करने के लिए सरकार ने क्या उपाय किए हैं?
5. नवाचार सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों का अभिन्न अंग है। अपने उत्तर के लिए कारण देते हुए इस कथन पर चर्चा करें।
6. ‘रचनात्मकता और नवाचार सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम की कुंजी है’। कथन का औचित्य प्रस्तुत करें।
परियोजनाएँ/दत्तकार्य
1. अपने क्षेत्र में स्थानीय रूप से संचालित किसी भी सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम का प्रोफ़ाइल तैयार करें। यह जानने के लिए एक प्रश्नावली तैयार करें
(i) इकाई की विकास संभावनाएँ।
(ii) स्थानीय संसाधनों का उपयोग और उपयोग में लिए गए स्वदेशी कौशल।
(iii) सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम के मालिक के सामने आने वाली वास्तविक समस्याएँ— इस पर एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करें।
(iv) उत्पादों और सेवाओं का विपणन।
2. अपने साथी के लिए जी.आई. टैग(गों) का पता लगाएँ। एक चार्ट तैयार करें जो इसकी अनूठी विशेषताओं को दर्शाता है। कक्षा में चर्चा करें कि उत्पाद के लिए जी.आई. टैग ने क्षेत्रीय विकास को कैसे आगे बढ़ाया।