अध्याय 07 कंपनी निर्माण

अवतार जो एक कुशल बुद्धि का इंजिनियर है, ने अपने कारखाने में, जिसे वह एक एकल स्वामित्व के रूप में चला रहा है, हाल ही में एक नये कारबोरेटर को विकसित किया है। इस नये कारबोरेटर से कार इंजन की पेट्रोल खपत 40 प्रतिशत कम हो सकती है। अब वह इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन करने की सोच रहा है जिसके लिए उसे बड़ी मात्र में धन की आवश्यकता है। अपने कारबोरेटर के निर्माण एवं विपणन का व्यवसाय करने के लिए उसे संगठन के विभिन्न स्वरूपों का मूल्यांकन करना होगा। उसने अपने एकल स्वामित्व को साझेदारी में परिवर्तन के विरुद्ध निर्णय लिया क्योंकि इसके लिए अधिक धन की आवश्यकता होगी तथा उत्पाद नया है इसमें जोखिम भी अधिक है। उसे सलाह दी गई कि वह एक कंपनी बनाए। वह कंपनी के निर्माण में आवश्यक औपचारिकताओं के संबंध में जानना चाहता है।

7.1 परिचय

आज के युग में व्यवसाय के लिए बड़ी मात्रा में धन की आवश्यकता होती है। प्रतियोगिता में वृद्धि हो रही है। परिणामस्वरूप जज्यादातर व्यावसायिक विशेषत: मध्य पैमाने एवं बड़े पैमाने के संगठनों की स्थापना हेतू कंपनी संगठन को प्राथमिकता दे रही हैं।

व्यवसाय के विचार के जन्म से कंपनी के वैधानिक रूप से व्यवसाय प्रारंभ तक के विभिन्न चरण कंपनी निर्माण की विभिन्न स्थितियाँ कहलाती हैं। जो लोग यह कदम उठाते हैं एवं इनसे जुड़े जोखिम उठाते हैं, कंपनी का प्रवर्तन करते हैं, वे इसके प्रवर्तक कहलाते हैं।

इस पाठ में कंपनी के निर्माण की विभिन्न स्थितियों एवं प्रत्येक स्थिति के विभिन्न चरणों का विस्तृत वर्णन किया गया है जिससे कि इन पहलूओं के संबंध में सही रूप से जानकारी प्राप्त की जा सके।

7.2 कंपनी की संरचना

कंपरी की संरचना एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें काफी वैधानिक औपचारिकताएँ एवं प्रक्रियाएँ सम्मिलित हैं। प्रक्रिया को भलीभाँति समझने के लिए इन औपचारिकताओं को तीन अलग-अलग चरणों में बाँटा जा सकता है जो इस प्रकार हैं- (क) प्रवर्तन (ख) समामेलन (ग) पूँजी का अभिदान।

ध्यान रहे कि ये स्थितियाँ एक कंपनी के निर्माण की दृष्टि से उचित हैं। एक निजी कंपनी समामेलन प्रमाण पत्र की प्राप्ति के तुरंत पश्चात् अपना व्यापार प्रारंभ कर सकती है, क्योंकि इस पर जन साधारण से धन जुटाने पर प्रतिबंध है। इसे प्रविवरिण पत्र जारी करने तथा न्यूनतम अभिदान की औपचारिकता की आवश्यकता नहीं है। दूसरी ओर एक सार्वजनिक कंपरी पूँजी को अभिदान की स्थिति से गुज़रना होता है।

आइए, अब कंपनी निर्माण की इन परिस्थितियों का विस्तार से वर्णन करें।

7.2.1 कंपनी प्रवर्तन

कंपनी निर्माण में प्रवर्तन प्रथम स्थिति है। इसमें व्यवसाय के अवसरों की खोज एवं कंपनी स्थापना के लिए पहल करना सम्मिलित है जिससे कि व्यवसाय

के प्राप्त सुअवसरों को व्यावहारिक स्वरूप प्रदान किया जा सके। इस प्रकार से किसी के द्वारा सशक्त व्यवसाय के अवसर की खोज से इसका प्रारंभ होता है। यदि ऐसा कोई व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह अथवा एक कंपनी, कंपनी स्थापना की दिशा में कदम बढ़ाती है तो उन्हें कंपनी का प्रवर्तक कहा जाता है। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 92 के अनुसार, एक प्रवर्तक-

(i) जिसका नाम प्रविवरण में लिखा रहता है अथवा धारा 92 के संदर्भ में वार्षिक रिटर्न में कंपनी द्वारा निर्धारित किया जाता है।

(ii) जो एक अंशधारक, निदेशक अथवा किसी अन्य रूप में, प्रत्यक्षतः अथवा अप्रत्यक्षत:, कंपनी के मामलों पर नियंत्रण रखते हैं।

(iii) जिसके सलाह, निर्देशों अथवा अनुदेशों के अनुरूप कंपनी का संचालक मंडल कार्य करने का अभ्यस्त हो जाता है। यद्यपि यह उपबंध किसी ऐसे व्यक्ति पर लागू नहीं होता जो केवल एक पेशेवर के रूप में कार्य कर रहा हो। प्रवर्तक वह है जो दिए गए प्रायोजन के संदर्भ में एक कंपरी के निर्माण का कार्य करता है एवं इसे चालू करता है तथा उस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक कदम उठाता है। इस प्रकार से प्रवर्तक व्यवसाय के अवसर कल्पना करने के अतिरिक्त इसकी संभावनाओं का विश्लेषण करते हैं तथा व्यक्ति, माल, मशीनरी, प्रबंधकीय योग्यताओं तथा वित्तीय संसाधनों को एक जुट करते है तथा संगठन तैयार करते हैं।

परिकल्पना की संभावना को भली-भाँति जाँच कर लेने के पश्चात् प्रर्वतक संसाधनों को एकत्रित करता है, आवश्यक अभिलेखों को तैयार करता है। नाम निश्चित करता है तथा कंपनी का पंजीयन कराने तथा प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए दूसरी अन्य क्रियाएँ करता है। इस प्रकार से कंपनी को अस्तित्व में लाने के लिए प्रवर्तक विभिन्न कार्य करता है जिन पर परिचर्चा नीचे की गई है।

एक प्रवर्तक के कार्य

प्रवर्तकों के महत्वपूर्ण कार्यों को इस प्रकार सूचीबद्ध किया जा सकता है-

(i) व्यवसाय के अवसर की पहचान करना- एक प्रवर्तक का पहला कार्य व्यवसाय के अवसर की पहचान करना हैं। यह अवसर एक नई वस्तु अथवा सेवा के उत्पादन की हो सकती है या फिर किसी उत्पाद की किसी अन्य माध्यम के द्वारा उपलब्ध कराने को अथवा अन्य कोई अवसर जिसमें निवेश की संभावना हो। ऐसे अवसर की तकनीकी एवं प्राथमिक संभावना को देख कर फिर इसका विश्लेषण किया जाता है।

(ii) संभाव्यता का अध्ययन- संभाव्यता का अध्ययन इसलिए हो सकता है ताकि पहचान कर लिए गए, सभी अवसरों को वास्तविक परियोजनाओं में परिवर्तित करना, सदा संभव अथवा लाभप्रद न हो। प्रवर्तक इसीलिए जिन व्यवसायों को प्रारंभ करना चाहते हैं। उनके सभी पहलुओं की जाँच पड़ताल के लिए विस्तृत संभाव्य अध्ययन करते हैं।

इसकी जाँच के लिए कि क्या विदित व्यावसायिक अवसर में लाभ उठाया जा सकता है। इंजिनियर्स, चार्टर्ड एकाउंटेंट्स आदि विशेषज्ञों की सहायता से नीचे दिए गए संभाव्य अध्ययन किए जा सकते हैं, जो परियोजना की प्रकृति पर निर्भर करते हैं।

(क) तकनीकी संभाव्यता- कभी-कभी कोई विचार अच्छा होता है लेकिन उसका क्रियान्वयन तकनीकी रूप से संभव नहीं होता है। ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि आवश्यक कच्चामाल अथवा तकनीक सरलता से उपलब्ध नहीं होता है। उदाहरण के लिए हमारे पिछले उदाहरण में माना कि अवतार को कार्बोरेटर के उत्पादन के लिए एक विशेषज्ञ धातु की आवश्यकता है। माना इस धातु का उत्पादन देश में नही होता है एवं बुरे आर्थिक संबंधों के कारण इसका उस देश से आयात नहीं किया जा सकता जो इसका उत्पादन करता है। ऐसी स्थिति में जब तक धातु को उपलब्ध कराने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हो जाती है। परियोजना तकनीकी रूप से अव्यावहारिक होगी।

(ख) वित्तीय संभाव्यता- सभी व्यावसायिक कार्यों के लिए धन की आवश्यकता का अनुमान लगाना होता है। यदि परियोजना पर होने वाला व्यय इतना अधिक है कि इसे उपलब्ध साधनों से सरलता, से नहीं जुटाया जा सकता तो परियोजना को त्यागना होगा। उदाहरण के लिए कोई यह सोच सकता है कि नगरों का विकास करना बहुत लाभप्रद होता है लेकिन पाया गया कि इसके लिए कई करोड़ो रुपयों की आवश्यकता होती है जिसकी प्रवर्तकों द्वारा एक कंपनी की स्थापना कर व्यवस्था नहीं की जा सकती। परियोजना की वित्तीय अंसभाव्यता के कारण इस विचार को त्यागना पड़ सकता है।

(ग) आर्थिक संभाव्यता- कभी-कभी ऐसा भी होता है कि परियोजना तकनीकी एवं वित्तीय रूप से व्यावहारिक है लेकिन इसकी लाभप्रदता की संभावना बहुत कम हैं ऐसी परिस्थिति में भी यह विचार त्यागना होगा। इन विषयों के अध्ययन के लिए प्रवर्तक साधारणतया विशेषज्ञों की सहायता लेते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि क्योंकि ये विशेषज्ञ प्रवर्तकों को इन अध्ययनों में सहायता कर रहे हैं। मात्र इससे वह स्वयं प्रवर्तक नहीं बन जाते हैं।

केवल तभी जबकि इन जाँच पड़तालों के सकारात्मक परिणाम निकलते हैं, प्रवर्तक वास्तव में कंपनी बनाने का निर्णय ले सकते हैं।

(iii) नाम का अनुमोदन- कंपनी की स्थापना का निर्णय लेने के पश्चात् प्रवर्तकों को इसके लिए एक नाम का चुनाव करना होगा एवं इसके अनुमोदन के लिए जिस राज्य में कंपनी का पंजीकृत कार्यालय होगा उस राज्य के कंपनी रजिस्ट्रार के पास एक आवेदन के पत्र जमा करना होगा।

प्रस्तावित नाम का अनुमोदन कर दिया जाएगा। यदि इस अनुपयुक्त नहीं माना गया है। ऐसा भी हो सकता है कि पहले से ही इसी नाम की अथवा इससे मिलते जुलते नाम ही एक कंपनी है या फिर पंसद का नाम गुमराह करने वाला है जैसे कि नाम से ही ऐसा लगता है कि कंपनी एक व्यवसाय विशेष में है, जबकि यह सत्य नहीं है। ऐसी स्थिति में प्रस्ताविक नाम को स्वीकृति नहीं मिलेगी लेकिन किसी वैकल्पिक नाम को मंज़री मिल जाएगी। इसीलिए कंपनी रजिस्ट्रार को दिए गए प्रार्थना पत्र (आई.एन.सी. -1 फॉर्म का प्रारूप किताब के अंत में दिया गया है) में तीन नाम प्राथमिकता दर्शाते हुए दिए जाते हैं।

(iv) संस्थापन प्रलेख के हस्ताक्षरकर्ताओं को निश्चित करना- प्रर्वतक को उन सदस्यों के संबंध में निर्णय लेना होगा जो प्रस्तावित कंपनी के उद्देश्य पत्र पर हस्ताक्षर करेंगे। सामान्यत: जो लोग उद्देश्य पत्र पर हस्ताक्षर करते हैं। वही कंपनी के प्रथम निर्देशक बनना एवं कंपनी के योग्यता अंश खरीदने के संबंध में लिखित स्वीकृति लेनी आवश्यक है।

(v) कुछ पेशेवर लोगों की नियुक्ति- प्रर्वतक उन आवश्यक प्रलेखों के बनाने में जिन्हें कंपनी रजिस्ट्रार के पास जमा कराना होता है। उनकी सहायता करने के लिए मर्केटाइल बैंकर्स, आडिटर्स आदि पेशेवर लोगों की नियुक्ति करते हैं। एक कंपनी के रजिस्ट्रार के पास एक विवरणी भी जमा करानी होगी जिसमें अंशधारियों के नाम और उनके पते तथा आंबटित अंशों की संख्या लिखी होगी। इसे आवंटन विरणी कहते हैं।

(vi) आवश्यक प्रलेखों को तैयार करना- प्रवर्तक अब कुछ वैधानिक प्रलेखों को तैयार करने के लिए कदम उठाएगा। जिन्हें कंपनी के पंजीयन के लिए कानूनन कंपनी रजिस्ट्रार के पास जमा करना आवश्यक है।

जमा किए जाने वाले आवश्यक प्रलेख

(क) संस्थापन प्रलेख- संस्था का संस्थापन प्रलेख कंपनी का प्रमुख प्रलेख होता है क्योंकि यह कंपनी के उद्देश्यों को परिभाषित करता है। कानूनन कोई भी कंपनी संस्था के संस्थापन प्रलेख से हट कर कोई कार्य नही कर सकती। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(56) के अनुसार संस्थापन प्रलेख से अभिप्राय एक कंपनी के ऐसे संस्थापन प्रलेख से है जो इस अधिनियम अथवा किसी पूर्व कंपनी अधिनियम के अनुसरण में मूल रूप से बनाया गया हो अथवा समय-समय पर संशोधित किया गया हो। संस्थापन प्रलेख में विभिन्न धाराएँ होती हैं, जो नीचे दी गई हैं-

(i) नाम खंड- इस धारा में कंपनी का नाम दिया होता है। जिससे कंपनी जानी जाएगी एवं जिसका अनुमोदन रजिस्ट्रार ने पहले ही कर दिया है।

(ii) पंजीकृत कार्यालय खंड- इस धारा में उस राज्य का नाम दिया जाता है जिसमें कंपनी का प्रस्तावित पंजीकृत कार्यालय इस अवस्था में कंपनी के पंजीकृत कार्यालय के निश्चित पते की आवश्यकता नहीं होती है लेकिन कंपनी के समसमेलन के तीस दिन के भीतर इसे कंपनी रजिस्ट्रार को सूचित करना होता है।

(iii) उद्देश्य खंड- यह खंड संस्थापन प्रलेख की सबसे महत्वपूर्ण धारा है। इसमें उन उद्देश्यों से हटकर कोई कार्य नहीं कर सकती। उद्देश्यों से हटकर कोई कार्य नहीं कर सकती। उद्देश्य की धारा दो उपधाराओं में विभाजित है। जो इस प्रकार है-

  • मुख्य उद्देश्य- इस उपखंड में उन मुख्य उद्देश्यों को सूचीबद्ध किया जाता है जिनको लेकर कंपनी का निर्माण किया गया है। ध्यान रहे कि कोई भी कार्य जो कंपनी के प्रमुख उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है अथवा संयोगिक है। न्याय-युक्त माना जायेगा भले ही उपखंड में स्पष्ट रूप से इसकी व्याख्या नहीं की गई है।

  • अन्य उद्देश्य- जिन उद्देश्यों को प्रमुख उद्देश्यों में सम्मिलित नहीं किया गया है। उन्हें इस उप-खंड में रखा जाता है। वैसे यदि कंपनी चाहती है कि इस उपखंड में सम्मिलित व्यवसायों को करें तो उसे या तो विशेष प्रस्ताव पारित करना होगा अथवा साधारण प्रस्ताव पारित कर केंद्रीय सरकार से अनुमोदन कराना होगा।

(iv) दायित्व खंड- यह खंड सदस्यों की देयता को उन के स्वामित्व के अंशों पर अदत्तराशि तक सीमित करती है। उदाहरण के लिए माना एक अंश धारक ने 1000 शेयर 10 रु. प्रति शेयर से क्रय किये हैं एवं 6 रु. प्रति शेयर से उन पर भुगतान कर चुका है। ऐसे उसकी देनदारी 4 रु. प्रतिअंश होगी। अर्थात् खराब से खराब स्थिति में भी उससे 4000 रु. माँगें जाएंगे।

(v) पूँजी खंड- इस धारा में उस अधिकतम पूँजी का वर्णन किया जाता है जिसे अंशों के निर्गमन द्वारा जुटाने के लिए कंपनी अधिकृत होगी। प्रस्तावित कंपनी की अधिकृत पूँजी को एवं निर्धारित अंकित मूल्य को कितने अंशों में विभक्त किया गया है, का इस धारा में वर्णन किया जाता है। उदाहरण के लिए माना कंपनी की अधिकृत पूँजी 25 लाख रु. है जो 10 रु. के 25 लाख अंशों में बँटी हुई है। यह कंपनी इस धारा में वर्णित राशि से अधिक की पूँजी के अंश निर्गमित नहीं कर सकती है। संस्थापन प्रलेख पर हस्ताक्षरकर्ता कंपनी निर्माण के लिए इच्छा दर्शाते हैं एवं योग्यता अंशो, जो उनके नामों के सामने दर्शाये गए हैं, के क्रय के लिए भी अपनी सहमति दर्शाते हैं। एक कंपनी के संस्थापन प्रलेख अनुसूची- 1 की सारणी ए,बी,सी,डी और ई में विशिष्टिकृत किए गए प्रारूप में होने चाहिए, जो ऐसी कंपनियों के अनुरूप हों।

संघ के सीमा नियमों पर सार्वजनिक कंपनी होने पर कम से कम सात एवं निजी कंपनी है तो दो व्यक्तियों के हस्ताक्षर होने आवश्यक हैं।

(ख) कंपनी के अंतर्नियम- कंपनी के अंतर्नियम में कंपनी के अतिरिक्त मामलों के प्रबंधन से संबंधित नियम दिए होते है। यह नियम कंपनी के संस्थापन प्रलेख के सहायक नियम होते हैं व संस्थापन प्रलेख में वर्णित किसी भी व्यवस्था केन तो विरोध में होंगे और न ही उनसे ऊपर होंगे।

एक कंपनी के पार्षद अंतर्नियम कंपनी अधिनियम 2013 की अनुसूची 1 की सारणी एफ़, जी,एच,आई, तथा जे में दिए गए प्रारूप के अनुसार होने चाहिए जो संबंधित कंपनियों के अनुरूप हों। कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 2(5) के अनुसार एक कंपनी के पार्षद अंतर्नियम वह हैं जो इस अधिनियम अथवा किसी पूर्व कंपनी अधिनियम के अनुसरण में मूल रूप से बनाए गए हों अथवा समय-समय पर संशोधित किए गए हों।

पार्षद अंतर्नियम में सामान्यत: निम्नलिखित विषयवस्तु होती है

1. सारणी एफ. का पूर्णत: अथवा अंशत: अपवर्जन

2. प्रारंभिक अनुबंधों का स्वीकरण

3. अंशों की संख्या व मूल्य

4. पूर्वाधिकारी अंशों का निर्गमन

5. अंशों का आवंटन

6. अंशों पर याचनाएँ

7. अंशों पर ग्रहणधिकार

8. अंशों का हस्तांतरण एवं प्रसारण

9. नामांकन

10. अंशों का हरण

11. पूँजी का प्रत्यावर्तन

12. पुनर्खरीद

13. अंश प्रमाण-पत्र

14. डिमेटीरियलाइजेशन

15. अंशों का स्टॉक में परिवर्तन/कंपनियों का समामेलन तथा प्रासंगिक मामले

16. मतदान अधिकार एवं प्रतिपत्री

17. सभाओं तथा समितियों से संबंधित नियम

18. निदेशक, उनकी नियुक्ति तथा अधिकारों का अंतरण

19. नामांकित निदेशक

20. ऋणपत्रों तथा स्टॉक का निर्गमन

21. अंकेक्षण समिति

22. प्रबंधकीय निदेशक, पूर्णकालिक निदेशक, प्रबंधक, सचिव

23. अतिरिक्त निदेशक

24. सील (मुद्रा, मोहर)

25. निदेशकों का पारिश्रमिक

26. सामान्य सभाएँ

27. निदेशकों की सभाएँ

28. उधार ग्रहण के अधिकार

29. लाभांश तथा संचय

30. लेखे तथा अंकेक्षण

31. समापन

32. क्षतिपूर्ति

33. संचयों का पूँजीकरण


पार्षद सीमा नियम के विभिन्न प्रारूप

1. सारणी ए अंशों द्वारा सीमित कंपनी का पार्षद सीमा नियम
2. सारणी बी गारंटी द्वारा सीमित कंपनी तथा बिना अंश पूँजी वाली कंपनी का पार्षद सीमा नियम
3. सारणी सी अंश पूँजी वाली गारंटी द्वारा सीमित कंपनी का पार्षद सीमा नियम
4. सारणी डी बिना अंश पूँजी वाली असीमित कंपनी का पार्षद सीमा नियम
5. सारणी ई अंश पूँजी वाली असीमित कंपनी का पार्षद सीमा नियम

पार्षद अंतर्नियम के विभिन्न प्रारूप

6. सारणी एफ़ अंशों द्वारा सीमित कंपनी का पार्षद अंतर्नियम
7. सारणी जी अंश पूँजी वाली गारंटी द्वारा सीमित कंपनी का पार्षद अंतर्नियम
8. सारणी एच बिना अंश पूँजी वाली गारंटी द्वारा सीमित कंपनी का पार्षद अंतर्नियम
9. सारणी आई अंश पूँजी वाली असीमित कंपनी का पार्षद अंतर्नियम
10. सारणी जे बिना अंश पूँजी वाली असीमित कंपनी का पार्षद अंतर्नियम

(ग) प्रस्तावित निर्देशकों की सहमति- कंपनी के संस्थापन प्रलेख एवं अंतर्नियमों के अतिरिक्त प्रत्येक मनोनित निर्देशक द्वारा इसकी पुष्टि, कि वे निदेशक के पद कार्य करने एवं अंतर्नियमों में वर्णित योग्यता अंश में खरीदने एवं उनका भुगतान करने के लिए तैयार हैं, करते हुए लिखित में सहमति।

(घ) समझौता- कंपनी अधिनियम के अंतर्गत कंपनी के पंजीयन के लिए रजिस्ट्रार को दिए जाने वाला एक और प्रलेख है जो कंपनी द्वारा प्रस्तावित किसी भी व्यक्ति के साध्ज्ञ उसे प्रबंधक निदेशक अथवा पूर्णकालिक निदेशक या फिर प्रबंधक की नियुक्ति के लिए समझौता होता है।

(ङ) वैधानिक घोषणा- कंपनी के पंजीयन के लिए कानून उपर्युक्त प्रलेखों के अतिरिक्त रजिस्ट्रार के पास एक घोषणा, की पंजीयन से संबंधित सभी वैधानिक आवश्यकतओं की पूर्ति कर ली गई है, भी जमा करानी होती है। इस घोषणा पर कोई भी व्यक्ति जो वकील, चार्टेड एकाउंटेंट, लागत लेखाकार, प्रैक्टिस करने वाला कंपनी सचिव तथा अंतर्नियमों में नामित निदेशक, प्रबंधक अथवा कंपनी सचिव हो, हस्ताक्षर कर सकता है।

(च) फीस भुगतान की रसीद- कंपनी के पंजीयन के लिए उपर्युक्त वर्णित प्रलेखों के अतिरिक्त आवश्यक फीस भी जमा कराई जाती है। इस फीस की राशि कंपनी की अधिकृत पूँजी पर निर्भर करेगी।

प्रर्वतकों की स्थिति

प्रर्वतक कंपनी को पंजीकृत कराने एवं उसे व्यापार प्रारंभ की स्थिति तक लाने के लिए विभिन्न कार्यों को करता है लेकिन न तो वह कंपनी के एजेंट और न ही उसके ट्रस्टी, वह कंपनी के एजेंट तो इसीलिए नहीं हो सकते, क्योंकि कंपनी का समामेलन अभी होना है। इससे स्पष्ट है, कि प्रर्वतक उन सभी समामेलन से पूर्व के समझौतों के लिए उत्तरदायी होंगे, जिनको कंपनी समामेलन के पश्चात् मान्यता नहीं दी गई है। इसी प्रकार से वे प्रवर्तक कंपनी के ट्रस्टी नहीं होते। कंपनी के प्रवर्तकों की स्थिति एक न्यासी की होती है, जिसका उन्हें दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। वे, यदि लाभ कमाते हैं तो उन्हें इसे उजागर करना चाहिए एवं गुप्त रूप से लाभ नहीं कमाना चाहिए। यदि वे इसको स्पष्ट नहीं करते हैं तो कंपनी प्रसविदों को रद्द कर सकती हैं एवं प्रवर्तकों को भुगतान किए गए क्रय मूल्य को वसूल कर सकते हैं। महत्वपूर्ण सूचना के छिपाने से यदि कोई हानि होती है तो कंपनी क्षति पूर्ति का दावा कर सकती है।

प्रवर्तक कंपनी के प्रवर्तन पर किए गए व्यय को प्राप्त करने का कानूनी रूप से दावा नहीं कर सकते। वैसे कंपनी चाहे तो समामेलन से पूर्व किए गए व्ययों का भुगतान कर सकती है। कंपनी प्रवर्तकों के माध्यम से क्रय की गई संपत्ति की क्रय राशि अथवा अंशों की बिक्री पर उनकी सेवाओं के बदले एक-मुश्त राशि अथवा कमीशन का भुगतान कर सकती है। कंपनी उन्हें अथवा ऋण पत्रों का आबंटन कर सकती है या फिर भविष्य में प्रतिभूतियों के क्रय की सुविधा दे सकती है।

7.2.2 समामेलन

उपर्युक्त औपचारिकताओं के पूरा कर लेने के पश्चात् प्रवर्तक कंपनी के समामेलन के लिए आवेदन पत्र तैयार करते हैं। पंजीकृत कार्यालय की सूचना राज्य के रजिस्ट्रार के पास समामेलन के 30 दिनों के भीतर भेजना कंपनी के लिये अनिवार्य है। आवेदन पत्र के साथ अन्य प्रलेख भी जमा किये जाते हैं जिनकी चर्चा हम पहले भी कर चुके हैं। संक्षेप में इनका वर्णन पुन: किया जा रहा है-

(क) कंपनी के संस्थागत प्रलेख- जिन पर आवश्यक मोहर लगी होती है एवं हस्ताक्षर किए होते हैं एवं गवाही की होती है। यदि यह सार्वजनिक कंपनी है तो इस पर कम से कम सात सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए। यदि कंपनी निजी है तो दो सदस्यों के हस्ताक्षर ही पर्याप्त हैं। हस्ताक्षरकर्ताओं के लिए अपने घर का पता, रोज़गार एवं उनके द्वारा क्रय किए गए अंशों की जानकारी देना आवश्यक है।

(ख) कंपनी के अंतर्नियम- जिस पर संस्थापन प्रलेख के समान मोहर लगी होनी चाहिए एवं गवाही होनी चाहिए। जैसा पहले ही कहा जा चुका यदि चाहे तो कंपनी, कंपनी अधिनियम में दी गई तालिका ‘एफ़’ जो अंतर्नियमों का एक आदर्श संग्रह है, को अपना सकती है। ऐसा करने पर अंतर्नियमों के स्थान पर कंपनी स्थानापन्न प्रविवरण पत्र जमा कराएगी।

(ग) प्रस्तावित निदेशकों द्वारा निदेशक बनने के लिए लिखित सहमति एवं योग्यता शेयरों के क्रय का वचन।

(घ) प्रस्तावित प्रबंध निदेशक, प्रबंधक अथवा पूर्वकालिक निदेशक के साथ समझौता यदि कोई है तो रजिस्ट्रार द्वारा

(ङ.) कंपनी के नाम के अनुमोदन के पत्र की प्रति प्रमाण स्वरूप।

(च) वैधानिक घोषणा कि पंजीकरण से संबंधित यह भलीभाँति हस्ताक्षरित होनी चाहिए।

(छ) इन प्रलेखों के साथ पंजीकृत के सही पतों की सूचना भी दी जानी चाहिए। यदि समामेलन के समय यह सूचना नहीं दी गई है तो इस समामेलन प्रमाण पत्र मिलने के 30 दिन के अंदर जमा कराया जा सकता है।

(ज) पंजीयन के शुल्क के भुगतान के प्रमाण स्वरूप प्रलेख।

रजिस्ट्रार के पास आवश्यक प्रलेखों के साथ आवेदन जमा हो जाने के पश्चात् रजिस्ट्रार इस बात की संतुष्टि करेगा कि सभी प्रलेख सुव्यवस्थित हैं एवं पंजीयन से संबंधित सभी वैधनियम औपचारिकताएँ पूरी कर ली गई हैं। इन प्रलेखों में वर्णित तथ्यों की प्रमाणिकता की जाँच के लिए भली-भाँति जाँच पड़ताल करने का दायित्व रजिस्ट्रार का नहीं है।

जब रजिस्ट्रार पंजीयन की औपचारिकताओं के पूरा होने के संबंध में संतुष्ट हो जाता है तो वह कंपनी को समामेलन प्रमाण पत्र जारी कर देता है जिसका अर्थ है कि कंपनी अस्तित्व में आ गई है। कंपनी समामेलन प्रमाण पत्र को कंपनी के जन्म का प्रमाण पत्र भी कहा जाता है।

01 नवंबर 2000 से कंपनी रजिस्ट्रार कंपनी को सी.आई.एन. (निगम पहचान नंबर) का आवंटन करता है।

समामेलन प्रमाण पत्र का प्रभाव

कानूनी रूप से कंपनी का जन्म समामेलन प्रमाण पत्र छपी तिथि का होता है। उस तिथि को यह शाश्वत उत्तराधिकार के साथ पृथक वैधानिक अस्तित्व प्राप्त कर लेती हैं एवं वैधानिक प्रंसविदों को करने के लिए अधिकृत हो जारी है। समामेलन प्रमाण पत्र कंपनी समामेलन के नियम का निर्णायक प्रमाण है। कल्पना करें कि उस पक्ष के साथ क्या होगा जिससे कंपनी ने कोई प्रसंविदा किया है और उसे किसी भी प्रकार की कोई आशंका नहीं है। उसे बाद में पता लगता है कंपनी का समामेलन विधि सम्मत नहीं था इसीलिए अवैध था। इसीलिए वैधानिक स्थिति यह है कि कंपनी को समामेलन प्रमाण जारी हो जाने के पश्चात् कंपनी के पंजीयन में दोष रह जाने पर भी इसको वैधानिक व्यावसायिक अस्तित्व प्राप्त हो जाता है। इसीलिए कंपनी का समामेलन प्रमाण पत्र कंपनी के वैधानिक अस्तित्व का निर्णायक प्रमाण है। कुछ ऐसे दिलचस्प उदाहरण है जो कंपनी समामेलन प्रमाण पत्र निर्णायक होने के प्रभाव को दर्शाता है। यह इस प्रकार है-

(क) पंजीयन के लिए 6 जनवरी को आवश्यक प्रलेख जमा कराए गए। समामेलन प्रमाण पत्र 8 जनवरी को जारी किया गया लेकिन प्रमाण पत्र पर तिथि 6 जनवरी लिखी थी। यह निर्णय दिया गया कि कंपनी का अस्तित्व था। इसीलिए 6 जनवरी को जिस समझौतों पर हस्ताक्षर हुए थे, वे न्यायोचित थे।

(ख) एक व्यक्ति ने संस्थापना प्रलेख पर दूसरे व्यक्ति के जाली हस्ताक्षर कर लिए समामेलन फिर भी वैधानिक माना गया।

इस प्रकार औपचारिकताओं में कितनी भी कमी क्यों न हो, एक बार इसके जारी हो जाने पर यह कंपनी की स्थापना का पक्का प्रमाण है। यद्यपि कंपनी का पंजीयन अवैधातिक उद्देश्यों को लेकर हुआ है फिर भी कंपनी के जन्म को नकारा नहीं जा सकता। कंपनी का समापन हो इसका एकमात्र हल है। समामेलन प्रमाण पत्र जारी हो जाने के पश्चात् निजी एवं सार्वजनिक कंपनियों को 180 दिनों के भीतर व्यवसाय प्रारंभ करने का प्रमाण-पत्र लेना होता है और तद्पश्चात् ये कंपानियाँ व्यापार प्रारंभ कर सकती हैं।

7.2.3 पूँजी अभिदान

सार्वजनिक कंपनी जनसाधारण से अंशों-एवं-ऋण पत्रों का निर्गमन कर आवश्यक धनराशि जुटा सकता है। इसके लिए इस प्राधिकरण पत्र जारी करना होगा,

निदेशक पहचान संख्या (DIN)

प्रत्येक व्यक्ति, जो किसी कंपनी के निदेशक के रूप में नियुक्त होना चाहता है, उसे निदेशक पहचान संख्या के (DIN) आवंटन हेतु विहित फॉर्म पर आवश्यक शुल्क सहित केंद्रीय सरकार को आवेदन करना होता है। आवेदन प्राप्त होने के एक माह के भीतर केंद्रीय सरकार द्वारा आवेदक को निदेशक पहचान संख्या (DIN) आवंटित कर देती है।

कोई भी व्यक्ति जिसे निदेशक पहचान संख्या आवंटित हो चुकी हो वह इसके लिए पुन: आवेदन नहीं कर सकता।

जो जन साधारण को कंपनी की पूँजी के अभिदान के लिए आमंत्रण है, एवं अन्य औपचारिकताएँ पूरी करनी होंगी। जनता से धन एकत्रित करने के लिए निम्न कदम उठाने होंगे—

(क) भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) का अनुमोदन- जो हमारे देश का नियमन प्राधिकरण है, ने सूचना को प्रकट करने एवं निवेशकों की सुरक्षा प्रदान करने के लिए कुछ दिशा-निर्देश दिए हैं। जो सार्वजनिक कंपनी जनता से धन माँगती है। उसे सभी आवश्यक सूचना को भली-भाँति प्रकट कर देना चाहिए एवं संभावित निवेशकों से कोई सारयुक्त सूचना छुपानी नहीं चाहिए। निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए यह आवश्यक है। इसीलिए जनता से धन जुटाने से पहले सभी की पुर्नानुमति आवश्यक है।

(ख) प्रविवरण पत्र जमा करना- कंपनी रजिस्ट्रार के पास प्रविवरण पत्र अथवा स्थानापन्न प्रविवरण पत्र की प्रति जमा करानी होती है। प्रविवरण पत्र ऐसा कोई भी दस्तावेज़ है, जिसमें कोई भी सूचना, परिपत्र, विज्ञापन और अन्य दस्तावेज़ शामिल हैं जो जनता से जमा आमंत्रित करता है या एक निगमित संस्था की प्रतिभूतियाँ खरीदने के लिए जनता से प्रस्ताव आमंत्रित करता है। दूसरे शब्दों में यह जनसाधारण से कंपनी की प्रतिभूतियाँ खरीदने के लिए प्रस्ताव आमंत्रित करता है। इस दस्तावेज़ में दी गई सूचना के आधार पर निवेशक किसी कंपनी में निवेश के लिए आधार बनाते हैं। इसीलिए प्रविवरण पत्र में कोई गलत सूचना नहीं होनी चाहिए एवं सभी महत्वपूर्ण सूचनाएँ पूरी तरह से दी जानी चाहिए।

(ग) बैंकर, ब्रोकर एवं अभिगोपनकर्ता की नियुक्ति- जनता से धन जुटाना अपने आप में एक भारी कार्य होता है। कंपनी के बैंक प्रार्थना राशि प्राप्त करते हैं। ब्रोकर्स फार्मों का वितरण करते हैं एवं जनता को शेयर खरीदने के लिए आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इस प्रकार यह कंपनी के अंशों को बेचने का प्रयत्न करते हैं। यदि कंपनी को जनता द्वारा निर्गम के प्रति यथोचित अनुक्रिया की आश्वस्ति नहीं है तो वह अंशों के अभिगोपनकर्ताओं की नियुक्ति कर सकती है। अभिगोपनकर्ता जनता द्वारा अंशों के अभिदान न करने पर स्वंय खरीदने का वचन देते हैं। वे इसके बदले कमीशन लेते हैं। अभिगोपनकर्ताओं की नियुक्ति आवश्यक नहीं है।

(घ) न्यूनतम अभिदान- कंपनियाँ अपर्याप्त साधनों से व्यापार प्रारंभ न करें, इसके लिए ऐसी व्यवस्था की गई है कि अंशों के आवंटन से पूर्व कंपनी के पास अंशों की एक न्यूनतम संख्या आवेदन आ जाने चाहिए। कंपनी अधिनियम के अनुसार इस न्यूनतम अभिदान कहते हैं। सेबी के दिशा-निर्देशों के अनुसार न्यूनतम अभिदान की सीमा निर्गम के आकार के 90 प्रतिशत है। यदि 90 प्रतिशत से कम की राशि के लिए शेयरों के लिए आवेदन प्राप्त होते हैं तो आंवटन नहीं किया जाएगा एवं प्राप्त आवेदन राशि को आवेदनकर्ताओं को लौटा दी जाएगी।

(ङ.) शेयर बाज़ार में आवेदन- कंपनी की प्रतिभूतियों में व्यापार की अनुमति के लिए कम से कम एक ‘शेयर बाजार’ में आवेदन किया जायेगा। अभिदान सूची वे बंद होने की तिथि से इस सप्ताह पूरे होने तक यदि अनुमति नहीं मिलती है तो आवंटन अमान्य होगा तथा आठ दिन के अंदर आवेदकों से प्राप्त राशि उन्हें लौटा दी जाएगी।

(च) अंशों का आवंटन- यदि आवंटित शेयरों की संख्या आवेदन की संख्या से कम है या फिर आवेदक को कोई भी शेयर आवंटित नहीं किए हैं तो अतिरिक्त आवेदन राशि या तो आवेदकों को लौटा दी जायेगी या फिर उन पर देय आवंटन राशि में उसका समायोजन कर दिया जाएगा। सफल आवंटन प्राप्तकर्ताओं को आवंटन पत्र भेजा जाएगा। आवंटन के 30 दिन के अंदर निदेशक अथवा सचिव के हस्ताक्षरयुक्त ‘आवंटन विवरणी’ कंपनी रजिस्ट्रार के पास जमा कराई जाएगी। एक सार्वजनिक कंपनी के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह अपने अंश अथवा ऋण पत्रों को खरीद के लिए जनता को आमंत्रित करे। इसके स्थान पर यह एक निजी कंपनी की तरह मित्रों; सगे संबंधियों अथवा निजी स्त्रोतों से धन

संस्थापन प्रलेख एवं अंतर्नियम में अंतर

आधार संस्थापन प्रलेख अंतर्नियम
उद्देश्य सीमा नियम कंपनी स्थापना के उद्देश्यों को
परिभाषित करते हैं।
अंतर्नियम कंपनी के आंतरिक प्रबंध के नियम
होते है। यह इंगित करता है।
स्थिति यह कंपनी का मुख्य प्रलेख है तथा कंपनी
अधिनियम के अधीन है।
यह सहायक प्रलेख है तथा सीमा नियम एवं
कंपनी अधिनियम के दोनों के अधीन है।
संबंध सीमा नियम कंपनी के बाहरी दुनिया से संबंध
निश्चित करता है।
अंतर्नियम कंपनी तथा उसके सदस्यों के
बीच आंतरिक संबंधों को परिभाषित करता है।
बाध्यता सीमा नियम के क्षेत्र के बाहर के कार्य अमान्य
होते हैं एवं सभी सदस्यों के एक मत से भी
अनुमोदित नहीं हो सकता।
अंतर्नियम के बाहर के कार्यों की अंशधारी
अनुमोदित कर सकते हैं।
आवश्यकता प्रत्येक कंपनी को सीमा नियम जमा कराना अंतर्तियमों को जमा कराना अनिवार्य नहीं है।
यह कंपनी अनिवार्य है। अधिनियम 2013 की
सारणी एफ़ को अपना सकती है।

जुटा सकती है। ऐसी स्थिति में प्रविवरण पत्र जारी करने की आवश्यकता नहीं है। आवंटन से कम से कम तीन दिन पहले रजिस्ट्रार के पास स्थनापन्न प्रविवरण पत्र जमा कराया जाएगा।

एक व्यक्ति कंपनी

कंपनी अधिनियम, 2013 के लागू होने पर, एक व्यक्ति वाली कंपनी (ओ.पी.सी.) अवधारणा के अंतर्गत एक एकल व्यक्ति एक कंपनी बना सकता है।

कानूनी तंत्र में ओ.पी.सी. की शुरुआत एक ऐसा परिर्तन है जो सूक्ष्म व्यवसायों तथा उद्यमशीलता के समामेलीकरण को प्रोत्साहन देता है। भारत में वर्ष 2005 में जे.जे. ईरानी विशेषज्ञ समिति ने ओ.पी.सी. के निर्माण की सलाह दी। उसने सुझाव दिया कि छूटों के माध्यम से एक सहज कानूनी व्यवस्था वाली ऐसी इकाई उपलब्ध कराई जाए ताकि छोटे उद्यमियों को जटिल कानूनी व्यवस्था हेतु विवश न होना पड़े।

एक सदस्य के रूप में केवल एक व्यक्ति की कंपनी ‘एक व्यक्ति कंपनी’ है। वह एक व्यक्ति कंपनी का अंशधारी होगा। एक निजी सीमित कंपनी के सभी लाभ इसे प्राप्त होंगे, जैसे— पृथक वैधानिक इकाई, व्यवसाय के दायित्वों से निजी संपत्ति का सुर्कित होना तथा शाश्वत उत्तराधिकार। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(62) के अनुसार, ‘एक व्यक्ति कंपनी का आशय ऐसी कंपनी से है जिसका सदस्य केवल एक व्यक्ति हो।’

कंपनी (समामेलन) नियम, 2014 का नियम 3-

एक व्यक्ति कंपनी-

1. केवल एक प्राकृतिक व्यक्ति जो भारतीय नागरिक है तथा ‘भारत का निवासी’ है-

(क) एक व्यक्ति कंपनी के समामेलन हेतू योग्य है।

(ख) एक व्यक्ति कंपनी के एकल सदस्य का नामांकित है।

स्पष्टीकरण- इस नियम के उद्देश्य से ‘भारत का निवासी’ वह व्यक्ति है जो ठीक पिछले कैलेंडर वर्ष में न्यूनतम 182 दिन भारत में रहा हो।

2. कोई भी व्यक्ति एक से अधिक ‘एक व्यक्ति कंपनी’ के समामेलन अथवा एक से अधिक ऐसी कंपनी में नामांकित बनने हेतु योग्य नहीं है।

3. जब कोई प्राकृतिक व्यक्ति इस नियम के अनुक्रम ‘एक व्यक्ति कंपनी’ में सदस्य होने के साथ-साथ किसी अन्य ‘एक व्यक्ति कंपनी’ में नामांकित होने के कारण उस कंपनी का सदस्य बन जाता है तो वह उप-नियम(2) में विशिष्टीकृत योग्यता कसौटी को 180 दिन में ही पूरा कर सकता है।

4. ‘एक व्यक्ति कंपनी’ में कोई अवयस्क सदस्य अथवा नामांकित नही बन सकता अथवा लाभप्रद हित के अंश का धारण नहीं कर सकता।

5. ऐसी कंपनी अधिनियम की धारा 8 के अंतर्तत समामेलित नहीं की जा सकती अथवा कंपनी के रूप में परिवर्तित नहीं की जा सकती।

6. ऐसी कंपनी गैर-बैंकिंग वित्तीय निवेश क्रियाएँ, जिनमें निगमित निकायों की प्रतिभूतियों में निवेश सम्मिलित है, नहीं कर सकती।

7. ‘एक व्यक्ति कंपनी’ के समामेलन के दो वर्ष व्यतीत होने से पूर्व ऐसी कंपनी स्वैच्छिक रूप से कंपनी के किसी अन्य प्रकार में परिवर्तित नहीं हो सकती, सिवाय उन कंपनियों के जिनकी प्रदत्त अंश पूँजी की सीमा 50 लाख रुपये से आगे बढ़ाई गई है अथवा संबद्ध अवधि में इसकी औसत वार्षिक आवर्त दो करोड़ रुपये से अधिक है।


$$ अनुसूची \quad {\text {I}} $$

$$ \text{(देखें धारा 4 एवं 5)} $$

$$\text {सारणी ए}$$

$$\text {अंशों द्वारा सीमित कंपनी का पार्षद सीमा नियम} $$


1. कंपनी का नाम “………………………………………. लिमिटेड/प्राइवेट लिमिटेड" है।

2. कंपनी का पंजीकृत कार्यालय …………………………………………………………..राज्य में स्थित होगा।

3. (क) कंपनी के समामेलन से पूरे किए जाने वाले उद्देश्य हैं -

…………………………………………………………..

…………………………………………………………..

…………………………………………………………..

(ख) उपवाक्य 3 (क) में विशिष्टीकृत किए गए उद्देश्यों की सहायता हेतु आवश्यक विषय हैं-

…………………………………………………………..

…………………………………………………………..

…………………………………………………………..

4. सदस्यों का दायित्व सीमित होगा तथा यह दायित्व उनके द्वारा धारित अंशों पर अदत्त राशि, यदि कोई है, तक सीमित होगा।

5. कंपनी की अंश पूँजी ………….. रुपये है जो ………….. रुपये प्रत्येक वाले ………….. अंशों में बँटी है।

6. हम विभिन्न व्यक्ति, जिनके नाम तथा पते उल्लेखित हैं, इस पार्षद सीमा नियम के अनुसरण में एक कंपनी बनाने के इच्छुक हैं तथा कंपनी की अंश पूँजी में हम क्रमश: अपने नामों के सामने उल्लेखित अंशों को लेने पर सहमत हैं-


अभिदाताओं के नाम, पते,
विवरण तथा व्यवसाय
प्रत्येक अभिदाता द्वारा
लिए गए अंशों की संख्या
अभिदाता के
हस्ताक्षर
साक्षियों के हस्ताक्षर, नाम,
पते, विवरण तथा व्यवसाय
…………………
के व्यापारी क, ख,
………………… मेरे समक्ष हस्ताक्षरित-
हस्ताक्षर …………………
…………………
के व्यापारी ग, घ,
………………… मेरे समक्ष हस्ताक्षरित-
हस्ताक्षर………………….
…………………
के व्यापारी ड., च,
………………… मेरे समक्ष हस्ताक्षरित-
हस्ताक्षर…………………..
…………………
के व्यापारी छ, ज,
………………… मेरे समक्ष हस्ताक्षरित-
हस्ताक्षर…………………..
…………………
के व्यापारी झ, ज,
………………… मेरे समक्ष हस्ताक्षरित-
हस्ताक्षर…………………..
……………………….
के व्यापारी ट, ठ,
…………………………… मेरे समक्ष हस्ताक्षरित—
हस्ताक्षर……………………
……………………….
के व्यापारी ड, ढ,
………………………. मेरे समक्ष हस्ताक्षरित -
हस्ताक्षर…………………..
लिए गए कुल अंश-

7. मैं, जिसका नाम तथा पता नीचे दिया गया है, इस पार्षद सीमा नियम के अनुसरण में एक कंपनी बनाने का इच्छुक हूँ तथा इस कंपनी की पूँजी के सभी अंश लेने को सहमत हूँ। (एक व्यक्ति कंपनी के मामले में लागू)।


अभिदाता का नाम व्यवसाय अभिदाता के हस्ताक्षर साक्षी का नाम, पता, विवरण तथा व्यवसाय

8. एकल सदस्य की मृत्यु की घटना में श्री/श्रीमती ………………………. पुत्र/पुत्री श्री ……………………….

…………………………………………………निवासी ……………………………………………….. आयु ………………………………………………..वर्ष नामांकित होंगे।

दिनांक- ………………………. की ………………………. तिथि


मुख्य शब्दावली
प्रवर्तन संस्थापन प्रलेख कंपनी के अंतर्नियम
समामेलन पूँजी व्यापार प्रारंभ

सारांश

निजी कंपनी के निर्माण के दो चरण हैं प्रवर्तन एवं समामेलन। सार्वजनिक कंपनी का पूँजी अभिदान की स्थिति से गुजरना होता है और तब परिचालन प्रारंभ करने के लिए व्यापार प्रारंभ प्रमाण पत्र प्राप्त होता है।

1. प्रवर्तन- इसका प्रारंभ एक लाभ योग्य संभावनाओं से पूर्ण व्यवसाय के विचार की कल्पना से होता है। क्या इस विचार को लाभप्रद बनाया जा सकता है। इसके लिए तकनीकी, वित्तीय एवं आर्थिक साध्यता अध्ययन किए जाते हैं। यदि जाँच के पक्ष में परिणाम निकलते हैं तो प्रवर्तक कंपनी के निर्माण का निर्णय ले सकते हैं। जो व्यक्ति व्यवसाय की कल्पना करते हैं। कंपनी निर्माण का निर्णय लेते हैं इसके लिए आवश्यक कदम उठाते हैं एवं संबद्ध जोखिम उठाते हैं। उन्हें प्रवर्तक कहते हैं।

प्रवर्तन के चरण

1. रजिस्ट्रार से कंपनी के नाम की स्वीकृति ली जाती हैं।

2. संस्थापन प्रलेख हस्ताक्षरकर्ता निश्चित किए जाते हैं।

3. प्रवर्तकों की सहायता के लिए पेशेवर नियुक्त किए जाते हैं।

4. पंजीयन के लिए आवश्यक प्रलेख तैयार किए जाएंगे।

आवश्यक प्रलेख

(क) संस्थापन प्रलेख

(ख) अंतर्नियम

(ग) प्रस्तावित निदेशकों की स्वीकृति

(घ) प्रस्तावित प्रबंध अथवा पूर्णकालिक निदेशक से समझौता यदि कोई है तो

(ङ) वैधानिक घोषणा

2. समामेलन- आवश्यक प्रलेख एवं पंजीयन शुल्क के साथ प्रवर्तकों द्वारा कंपनी रजिस्ट्रार के पास आवेदन किया जाता है। जाँच के पश्चात् रजिस्ट्रार समामेलन प्रमाण पत्र दे देता है। प्रलेखों में कोई बड़ी कमी होने पर ही पंजीयन से इंकार किया जा सकता है। समामेलन प्रमाण पत्र कंपनी के वैधानिक अस्तित्व का निश्चित प्रमाण होता है। समामेलन में बड़ी कमी होने पर भी कंपनी के वैधानिक अस्तित्व को नहीं नकारा जा सकता है।

3. पूँजी अभिदान- जनता से कोष जुटाने वाली कंपनी कोष जुटाने के लिए निम्न कदम उठाएगी—

(क) सेबी की अनुमति

(ख) कंपनी रजिस्ट्रार के पास प्रविवरण पत्र की प्रति जमा करना।

(ग) ब्रोकर, बैंकर एवं अभिगोपनकर्ता आदि की नियुक्ति।

(घ) न्यूनतम अभिदान की प्राप्ति को सुनिश्चित करना।

(ङ) कंपनी की प्रतिभूतियों के सूचियन के लिए आवेदन।

(च) अधिक प्रार्थना राशि को वापस करना, समायोजन करना।

(छ) सफल प्रार्थियों को आवंटन पत्र जारी करना।

(ज) कंपनी रजिस्ट्रार के पास आवंटन विवरणी जमा करना।

एक सार्वजनिक कंपनी जो मित्रों/सगे संबंधियों (जनता नहीं) से धन जुटा रही है। अंशों के आवंटन से कम से कम तीन दिन पूर्व ROC पास प्रविवरण पत्र का स्थानापन्न विवरण एवं आवंटन की समाप्ति पर आवंटन विवरणी जमा कराएगी।

प्रारंभिक प्रसंविदे- कंपनी समामेलन से पूर्व प्रवर्तकों द्वारा हस्ताक्षरित अन्य पक्षों से प्रसंविदे।

अभ्यास

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. कंपनी के निर्माण की विभिन्न स्थितियों के नाम लिखें।

2. कंपनी समामेलन के लिए आवश्यक प्रलेखों को सूचीबद्ध करें।

3. प्रविवरण पत्र क्या है? क्या प्रत्येक कंपनी के लिए प्रविवरण पत्र जमा कराना आवश्यक है?

4. ‘आवंटन विवरणी’ शब्द को संझेप में समझाइए।

5. कंपनी निर्माण के किस स्तर पर उसे सेबी (SEBI) से संपर्क करना होता है?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. प्रवर्तन शब्द का क्या अर्थ है? प्रवर्तकों ने जिस कंपनी का प्रवर्तन किया है उसके संदर्भ में उनकी कानूनी स्थिति की चर्चा कीजिए।

2. कंपनी के प्रवर्तन के लिए, प्रवर्तक क्या कदम उठाते हैं उनको समझाइए।

3. कंपनी के सीमा नियम क्या हैं? इसकी धाराओं को संक्षेप में समझाइए।

4. सीमा नियम एवं अंतर्नियम में अंतर कीजिए।

5. क्या एक सार्वजनिक कंपनी के लिए अपने शेयरों का किसी स्कंध विनिमय/स्टॉक एक्सचेंज में सूचियन आवश्यक है? एक सार्वजनिक कंपनी जो सार्वजनिक निर्गमन करने जा रही है यदि प्रतिभूतियों में व्यापार की अनुमति के लिए स्टॉक एक्सचेंज में आवेदन नहीं कर पाती है अथवा उसे इसकी अनुमति नहीं मिलती है तो इसके क्या परिणाम होंगे।

सत्य/असत्य उत्तरीय प्रश्न

1. चाहे कंपनी निजी है अथवा सार्वजनिक प्रत्येक का समामेलन कराना अनिवार्य है।

2. स्थानापन्न प्रविवरण पत्र को सार्वजनिक निर्गमन करने वाली सार्वजनिक कंपनी जमा कर सकती है।

3. एक निजी कंपनी समामेलन के उपरांत व्यापार प्रारंभ कर सकती है।

4. एक कंपनी के प्रवर्तन में प्रवर्तकों की सहायता करने वाले विशेषजों को भी प्रवर्तक कहते हैं।

5. एक निजी कंपनी समामेलन के उपरांत प्रारंभिक अनुबंधों का अनुमोदन कर सकती है।

6. यदि कंपनी का छद्म नाम से पंजीयन कराया जाता है तो इसका समामेलन अमान्य होगा।

7. कंपनी के अंतर्नियम इसका प्रमुख दस्तावेज़ होता है।

8. प्रत्येक कंपनी के लिए अंतर्नियम जमा कराना अनिवार्य है।

9. कंपनी के समामेलन से पूर्व अल्पकालिक अनुबंध पर प्रवर्तकों के हस्ताक्षर होते हैं।

10. यदि कंपनी को भारी हानि उठानी पड़ती है तथा इसकी परिसंपत्तियाँ इसकी देयताओं को चुकाने के लिए पर्याप्त नहीं है तो शेष को इसके सदस्यों की निजी संपत्ति से वसूला जा सकता है।



विषयसूची