अध्याय 05 व्यवसाय की उभरती पद्धतियाँ

‘आओ कुछ खरीददारी करते हैं’, रीता ने अपने गाँव की सहेली रेखा को जगाया, जोकि छुट्टियों में दिल्ली आई हुई है। अपनी आँखें मलते हुए रेखा बोली, “इस आधी रात में! इस समय कौन अपनी दुकान तुम्हारे लिए खोले बैठा होगा?"

‘ओह! शायद मैं तुम्हें यह ठीक से नहीं बता सकी’, रीता बोली। “हम कहीं जा नहीं रहे हैं! मैं तो इंटरनेट पर ऑनलाइन खरीददारी की बात कर रही हूँ|"

“हाँ! मैंने भी ऑनलाइन खरीददारी के बारे में सुना है लेकिन कभी की नहीं है,"… और रेखा सोचने लगी। “इंटरनेट पर क्या बेचते होंगे? वह सामान को खरीददारों के पास कैसे पहुँचाते होंगे? उनके भुगतान का क्या होता होगा? और इंटरनेट अब तक गाँवों में लोकप्रिय क्यों नहीं हो पाया है?" जब तक रेखा इन प्रश्नों में उलझी रही, तब तक रीता में लॉगऑन (प्रवेश) कर चुकी थी, भारत के एक अग्रणी ऑनलाइन खरीददारी मॉल में।

5.1 परिचय

पिछले दशक और उसके बाद व्यवसाय करने के तरीके में अनेक मूलभूत परिवर्तन हुए हैं। व्यवसाय करने के तरीके को व्यवसाय पद्धति कहा जाता है और उपसर्ग ‘उभरते’ इस तथ्य को रेखांकित करता है कि ये परिवर्तन अब यहाँ हो रहे हैं और ऐसी प्रवृत्तियाँ आगे भी बनी रहेंगी। यदि किसी को व्यवसाय को आकार देने वाली तीन सशक्त रुझानों की सूची बनाने को कहा जाए तो उसमें निम्न बातें शामिल होंगी—

(क) अंकीयकरण (डिजिटाइजेशशन)— उद्धरण, ध्वनि, प्रतिकृतियों, वीडियो एवं अन्य विषयवस्तु का 1 और 0 की भृंखला में रूपांतरण, जिनका इलेक्ट्रॉनिक प्रसारण हो सकता है;

(ख) बाह्यस्त्रोतीकरण (आउटसोर्सिंग); और

(ग) अंतर्राष्ट्रीयकरण और वैश्वीकरण
(भूमंडलीकरण)।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के बारे में आप अध्याय-11 में पढ़ेंगे।

इस अध्याय में हम आपको पहली दो घटनाओं, अर्थात् व्यवसाय का अंकीयकरण (इलेक्ट्रॉनिक्स का एक शब्द) जिसे इलेक्ट्रॉनिक व्यवसाय (ई-बिजनेस) भी कहा जाता है, और व्यवसाय प्रक्रिया बाह्यस्त्रोतीकरण (बी.पी.ओ) से परिचित कराएँगे। यह सब करने से पहले, इन दोनों व्यवसाय पद्धतियों के लिए उत्तरदायी तत्वों का संक्षिप्त विवेचन आवश्यक है।

व्यवसाय की ये नई पद्धतियाँ नया व्यवसाय नहीं हैं वरन् ये तो व्यवसाय करने के नये तरीके हैं, जिनके कई कारण हैं। आप जानते ही हैं कि एक गतिविधि के रूप में व्यवसाय का उद्देश्य वस्तुओं एवं सेवाओं के रूप में उपयोगिता एवं मूल्य का सृजन होता है, जिन्हें गॄहस्थ एवं व्यावसायिक क्रेता अपनी आवश्यकता एवं इच्छापूर्ति के लिए खरीदते हैं। व्यवसाय प्रक्रियाओं को उन्नत करने के प्रयत्न मेंचाहे वह क्रय और उत्पादन, विपणन, वित्त अथवा मानव संसाधन हो, व्यवसाय प्रबंधक और व्यवसाय चिंतक हमेशा कार्य करने के नए एवं बेहतर तरीकों को विकसित करने में लगे रहते हैं। व्यावसायिक फर्मों को अच्छी गुणवत्ता, कम मूल्य, तीव्र सुपुर्दगी और

अच्छी ग्राहक सेवा के लिए ग्राहकों की बढ़ती माँग और बढ़ते प्रतिस्पर्धा दबाव को सफलतापूर्वक झेलने के लिए अपनी उपयोगिता, सृजन एवं मूल्य सुपुर्दगी क्षमताओं को मजबूत बनाना पड़ता है। इसके अलावा उभरती तकनीकों से लाभ प्राप्त करने की चाह से भी आशय यही है कि एक गतिविधि के रूप में व्यवसाय लगातार विकसित हो।

5.2 ई-व्यवसाय

यदि व्यवसाय शब्द को कई तरह की गतिविधियों, जिनमें उद्योग, व्यापार एवं वाणिज्य शामिल हों, के अर्थ में लिया जाए तो ई-व्यवसाय को ऐसे उद्योग, व्यापार और वाणिज्य के संचालन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम कंप्यूटर नेटवर्क (तंत्र) का प्रयोग करते हैं। एक विद्यार्थी या उपभोक्ता के रूप में आप जिस नेटवर्क से भलीभाँति परिचित होंगे, वह है इंटरनेट। जहाँ इंटरनेट एक सार्वजनिक व सुगम मार्ग है, वहीं फर्में नितांत निजी और अधिक सुरक्षित नेटवर्क का प्रयोग अपने आंतरिक कार्यों के अधिक प्रभावी एवं कुशल प्रबंधन के लिए करती हैं।

ई-व्यवसाय बनाम ई-कॉमर्स- हालाँकि, अनेक मौकों पर ई-व्यवसाय और ई-कॉमर्स शब्द का प्रयोग समानार्थी शब्दों की तरह किया जाता है पर इनकी अधिक सुस्पष्ट परिभाषाओं से दोनों में अंतर साफ हो जाएगा।

जिस प्रकार व्यापार, वाणिज्य के मुकाबले एक अधिक व्यापक शब्द है, उसी तरह ई-व्यवसाय भी एक अधिक विस्तृत शब्द है और इसमें इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से किए जाने वाले विभिन्न व्यावसायिक लेन-देन और कार्य एवं लेन-देनों का एक अधिक लोकप्रिय क्षेत्र जिसे ई-कॉमर्स कहा जाता है, भी शामिल है। ई-कॉमर्स एक फर्म के अपने ग्राहकों और पूर्तिकर्ताओं के साथ इंटरनेट पर पारस्परिक संपर्क को सम्मिलित करता है। ई-व्यवसाय न केवल ई-कॉमर्स वरन् व्यवसाय द्वारा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम द्वारा संचालित किए गए अन्य कार्यों, जैसे— उत्पादन, स्टॉक प्रबंध, उत्पाद विकास, लेखांकन एवं वित्त और मानव संसाधन को भी सम्मिलित करता है। इस प्रकार ई-व्यवसाय स्पष्ट रूप से इंटरनेट पर क्रय एवं विक्रय अर्थात् ई-कॉमर्स से कहीं अधिक है।

5.2.1 ई-व्यवसाय का कार्यक्षेत्र

जैसा कि ऊपर उल्लेख किया जा चुका है, ई-व्यवसाय का कार्यक्षेत्र बहुत व्यापक है, अधिकतर सभी व्यावसायिक कार्य जैसे कि उत्पादन, वित्त, विपणन और कार्मिक प्रबंधन और प्रबंधकीय गतिविधियाँ, जैसे- नियोजन, संगठन और नियंत्रण को कंप्यूटर नेटवर्क पर कार्यांवित किया जा सकता है। ई-व्यवसाय के कार्यक्षेत्र के अवलोकन की एक अन्य विधि इलेक्ट्रॉनिक लेन-देनों में सम्मिलित व्यक्तियों एवं पक्षों के परित्रेक्ष्य में इसे जाँचना है। इस परित्रेक्ष्य में अवलोकन करने पर एक फर्म के इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के लेन-देनों और नेटवर्कों के विस्तार को निम्न तीन दिशाओं में परिकल्पित किया जा सकता है-

(क) फर्म से फर्म, अर्थात् एक फर्म का अन्य व्यवसायों से पारस्परिक संवाद/ संपर्क

(ख) फर्म से ग्राहक, अर्थात् एक फर्म का अपने ग्राहकों से पारस्परिक संवाद/संपर्क और

(ग) अंत: बी अथवा फर्म की आंतरिक प्रक्रियाएँ।

प्रदर्श 5.1 में ई-व्यवसाय में संमाहित पक्षों के नेटवर्क एवं पारस्परिक संपर्क/संवाद का सारांश दर्शाया गया है।

ई-व्यवसाय के विभिन्न घटकों के बीच अंतर एवं अंत: लेन-देनों का संक्षिप्त विवेचन नीचे किया गया है-

(क) फर्म से फर्म कॉमर्स— यहाँई-कॉमर्स लेन-देनों में शामिल दोनों पक्ष व्यावसायिक फर्में हैं, इसलिए इसे फर्म से फर्म अर्थात् व्यवसाय से व्यवसाय नाम दिया गया है। उपयोगिता सृजन अथवा मूल्य सुपुर्दगी के लिए किसी व्यवसाय को अन्य अनेक व्यावसायिक फर्मों से पारस्परिक संवाद करना होता है, जोकि पूर्तिकर्ता अथवा विविध आगतों के विक्रेता हो सकते हैं अथवा उस माध्यम का हिस्सा हो सकते हैं जिसके द्वारा फर्म अनेक उत्पादों को उपभोक्ताओं तक पहुँचाती है। उदाहरणस्वरूप, एक ऑटोमोबाइल उत्पादनकर्ता को ऐसी स्थिति में अधिक संख्या में कलपुर्जों के संग्रहण की आवश्यकता होगी, जब वह कहीं और ऑटोमोबाइल फैक्ट्री के आस-पास या फिर विदेश में निर्मित होते हों। एक पूर्तिकर्ता पर

चित्र 5.1 व्यवसाय से व्यवसाय ई-वाणिज्य

निर्भरता समाप्त करने के लिए ऑटोमोबाइल फैक्ट्री को अपने प्रत्येक कलपुर्जे के लिए एक से अधिक विक्रेता खोजने होंगे। कंप्यूटर नेटवर्क का प्रयोग क्रय आदेश (ऑर्डर) देने, उत्पादन के निरीक्षण और कलपुर्जों की सुपुर्दगी और भुगतान करने के लिए किया जाता है। इसी तरह एक फर्म अपनी वितरण प्रणाली को बेहतर बनाने और उसमें सुधार लाने के लिए अपने स्टॉक की आवाजाही पर उस समय भी वास्तविक नियंत्रण रख सकता है, जब ऐसा हो रहा हो। साथ ही वह विभिन्न स्थानों पर स्थित मध्यस्थों को भी नियंत्रित कर सकता है। उदाहरण के लिए, एक मालगोदाम से वस्तुओं के प्रत्येक प्रेषण और अपने पास स्थित स्टॉक का निरीक्षण किया जा सकता है, तथा जब और जहाँ आवश्यक हो वस्तुओं की पुन:पूर्ति निश्चित की जा सकती है या फिर, विक्रेता के माध्यम से ग्राहक की वांछित आवश्कताओं को फैक्ट्री में पहुँचाकर ग्राहकों के हिसाब से उत्पादन के लिए उत्पादन प्रणाली में भेजा जा सकता है।

ई-कॉमर्स का प्रयोग सूचना, प्रलेखों के साथ ही मुद्रा हस्तांतरण की गति में वृद्धि के लिए भी किया जाता है।

ऐतिहासिक रूप से ई-कॉमर्स शब्द का मूल आशय इलेक्ट्रॉनिक डाटा अंतर्विनिमय (ई.डी. आई.) तकनीक का प्रयोग कर व्यावसायिक प्रलेखों, जैसे क्रय आदेशों अथवा बीजकों को भेजकर एवं प्राप्तकर फर्म से फर्म लेन-देनों को सुगम बनाना है।

(ख) फर्म से ग्राहक कॉमर्स- जैसे कि नाम में निहित है, फर्म से ग्राहक (व्यवसाय से ग्राहक) लेन-देनों में एक छोर पर व्यावसायिक फर्म और दसरे छोर पर इसके ग्राहक होते हैं। हालाँकि दिमाग में जो बात तुरंत आती है। वह है- ऑनलाइन खरीददारी, पर यह समझना चाहिए कि विक्रय, विपणन प्रक्रिया का परिणाम है और विपणन की शुरूआत उत्पाद को विक्रय के लिए प्रस्तुत करने से बहुत पहले हो जाती है और इस उत्पाद की बिक्री के बाद तक चलती है। इस तरह फर्म से ग्राहक कॉमर्स में विपणन गतिविधियों, जैसे- गतिविधियों को पहचानना, सवर्द्धन और कभी-कभार उत्पादों की ऑनलाइन सुपुर्दगी (उदाहरणार्थ संगीत एवं फ़िल्में) का विस्तृत क्षेत्र शामिल होता है। ई-कॉमर्स इन गतिविधियों को बहुत कम लागत परंतु उच्च गति से सुगम बनाता है। उदाहरण के लिए, ए.टी.एम. ने धन की निकासी को तेज़ बना दिया है। आजकल ग्राहक बहुत समझदार हो रहे हैं और उन पर वांछित व्यक्तिगत ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्हें न केवल ऐसी उत्पाद विशेषताएँ चाहिए, जोकि उनकी ज़ूरततों के अनुसार हों वरन् उन्हें सुपुर्दगी की सहूलियत और अपनी इच्छानुसार भुगतान की सुविधा भी चाहिए। ई-कॉमर्स के प्रादुर्भाव से यह सब किया जा सकता है।

साथ ही, ई-कॉमर्स का फर्म से ग्राहक रूप एक व्यवसाय के लिए हर समय अपने ग्राहकों के संपर्क

चित्र 5.2 व्यवसाय से व्यवसाय ई-वाणिज्य

में रहना संभव बनाता है। कंपनियाँ यह जानने के लिए कि कौन क्या खरीद रहा है और ग्राहक संतुष्टि का स्तर क्या है, ऑनलाइन सर्वेक्षण करा सकती हैं।

अब तक आपने यह धारणा बना ली होगी कि ‘फर्म से ग्राहक’, व्यवसाय से ग्राहक तक का एकतरफा आवागमन है। परंतु यह भी ध्यान रखें कि इसका परिणाम, ‘ग्राहक से फर्म कॉमर्स’ भी एक वास्तविकता है, जो ग्राहकों को इच्छानुसार खरीददारी की स्वतंत्रता उपलब्ध कराती है। ग्राहक कंपनियों द्वारा स्थापित कॉल सेंटरों का प्रयोग कर किसी भी समय बिना किसी अतिरिक्त लागत के नि:शुल्क फ़ोन कर अपनी शंकाओं का समाधान एवं शिकायतें दर्ज करा सकते हैं। इस प्रक्रिया की खासियत यह है कि इन कॉल सेंटरों अथवा हेल्पलाइनों की स्थापना स्वयं करने की आवश्यकता नहीं होती है, वरन् इसका बाह्यस्त्रोतीकरण किया जा सकता है। इस पहलू की चर्चा हम बाद में उस भाग में करेंगे जो व्यवसाय प्रक्रिया बाह्यस्त्रोतीकरण के विषय में है।

(ग) अंत: बी कॉमर्स- यहाँ इलेक्ट्रॉनिक लेन-देनों में सम्मिलित पक्ष एक ही व्यावसायिक फर्म के भीतर ही होते हैं इसलिए इसे अंत: बी कॉमर्स नाम दिया गया है। जैसे कि पहले उल्लेख किया जा चुका है कि ई-कॉमर्स और ई-व्यवसाय में एक सूक्ष्म अंतर यह है कि ई-कॉमर्स में व्यावसायिक फर्मों के इंटरनेट पर उसके पूर्तिकर्ताओं और वितरकों/अन्य व्यावसायिक फर्मों के साथ (फर्म से फर्म) और ग्राहकों के साथ (फर्म से ग्राहक) पारस्परिक संत्रेषण सम्मिलित होते हैं, जबकि ई-व्यवसाय में एक फर्म के भीतर विभिन्न विभागों और व्यक्तियों के मध्य इंटरेट के प्रयोग द्वारा पारस्परिक संपर्क एवं लेन-देनों का प्रबंधन भी शामिल होता है। वृहद् रूप से अंत: बी कॉमर्स के प्रयोग के कारण ही यह संभव हुआ है कि फर्में लचीले उत्पादन की ओर उन्मुख हो सकी हैं। कंप्यूटर नेटवर्क के प्रयोग ने विपणन विभाग के लिए यह संभव बनाया है कि वह उत्पादन विभाग के सतत् संपर्क में रहे और प्रत्येक ग्राहक की आवश्यकतानुसार उत्पाद प्राप्त करे। इसी तरह कंप्यूटर आधारित अन्य विभागों के मध्य नजदीकी पारस्परिक संपर्क फर्म के लिए यह संभव बनाता है कि वह कुशल माल सूची और नकद प्रबंध, मशीनरी एवं संयंत्र के वृहद् इस्तेमाल, ग्राहक क्रयादेशों के कुशल संचालन और मानव संसाधन के कुशल प्रबंधन के लाभ उठाए।

जिस प्रकार इंटरकॉम ऑफ़िस के अंदर मौखिक संग्रेषण को सुगम बनाता है, उसी प्रकार इंटरनेट, संगठन की विभिन्न इकाइयों के मध्य, पूरी जानकारी के आधार पर निर्णय के लिए, मल्टीमीडिया और यहाँ तक कि त्रि-आयामी आलेखीय त्रेषण को सुगम बनाता है। इससे बेहतर समन्वय, तीव्र निर्णय और द्रुत कार्यप्रवाह संभव होता है। एक फर्म के अपने कर्मचारियों से पारस्परिक संपर्क के उदाहरण को लीजिए, कभी-कभी इसे ‘बी2ई कॉमर्स’ भी कहा जाता है। कंपनियाँ ई-कॉमर्स द्वारा कर्मचारियों की

ई-वाणिज्य के लाभ

1. व्यवसाय संगठन को लाभ-

  • बाजजार स्थान का राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक विस्तार|

  • प्रचालन लागत में धीमी गिरावट।

  • आपूर्ति शृंखला प्रबंधन में खींच (चनसस) की सुविधा।

  • प्रतिस्पर्द्धियों पर प्रतिस्पर्द्धा लाभ।

  • उचित समय प्रबंधन तथा व्यवसाय प्रक्रिया को बल मिलना।

  • बड़ी फर्मों के साथ-साथ छोटी फर्मों का सह-अस्तित्व।

2. ग्राहकों तथा समाज को लाभ-

  • लोचशीलता

  • प्रतिस्पर्द्धात्मक मूल्य/छूट/मूल्य त्यागना

  • अन्य विकल्प तथा पसंद

  • त्वरित एवं समयानुसार सुपुर्दगी (डिजिटाइज्ड उत्पाद)

  • ग्राहकोनुसार उत्पाद

  • ई-नीलामी की सुविधा

  • रोज़गार की संभावनाएँ

  • दूर तक पहुँच

ए.टी.एम. मुद्रा निकासी को गति देता है

ई-कॉमर्स ने पूरी फर्म से ग्राहक प्रक्रिया को बहुत हद तक सुगम एवं गतिमान बनाया है। उदाहरण के लिए, पूर्व में बैंक से अपना धन निकालना एक थका देने वाली प्रक्रिया हुआ करती थी। भुगतान प्राप्त करने से पहले व्यक्ति को प्रक्रियागत औपचारिकताओं की एक पूरी भृंखला से गुजरना होता था। ए.टी.एम. के आने के बाद, अब यह सब तेजी से इतिहास बन चुका है। अब सबसे पहली चीज जो होती है, वह ये है कि ग्राहक अपना धन निकाल सकता है और बाकी बची पार्श्व प्रक्रियाएँ बाद में पूरी होती हैं।

भर्ती, साक्षात्कार और चयन, प्रशिक्षण, विकास और शिक्षा इत्यादि की ओर उन्मुख हो रही हैं। ग्राहकों से बेहतर पारस्परिक संत्रेषण के लिए कर्मचारी इलेक्ट्रॉनिक सूची-पत्रों और आदेश पत्रों का प्रयोग कर सकते हैं एवं माल सूची की सूचना प्राप्त कर सकते हैं। वे ई-डाक के द्वारा कार्यक्षेत्र रिपोर्ट भेज सकते हैं और प्रबंधन उन्हें वास्तविक समयाधार पर ग्रहण कर सकता है। वास्तव में, आभासी निजी नेटवर्क तकनीक का आशय होगा कि कर्मचारियों को कार्यालय नहीं आना होगा। इसके बजाय कार्यालय एक प्रकार से उनके पास जाएगा और वह जहाँ हैं, वहाँ से अपनी गति एवं समय सुविधा के अनुसार कार्य कर सकेंगे। बैठकें टेली/वीडियो कांफ्रेसिंग के द्वारा हो सकती हैं।

(घ) ग्राहक से ग्राहक कॉमर्स- यहाँ व्यवसाय की उत्पत्ति ग्राहकों से होती है और उसका अंतिम गंतव्य भी ग्राहक ही है, इसीलिए इसे ग्राहक से ग्राहक नाम दिया गया है। इस तरह का वाणिज्य उस प्रकार की वस्तुओं के लेन-देनों के लिए अधिक उचित है जिनके लिए कोई स्थायी बाज़ार तंत्र नहीं होता है। उदाहरणस्वरूप— किताबों अथवा कपड़ों की बिक्री नकद अथवा वस्तु विनिमय आधार पर की जा सकती है। इंटरनेट की वृहद् स्थान उपलब्धता एक व्यक्ति को वैश्विक स्तर पर भावी खरीददार ढूँढने की अनुमति प्रदान करता है। इसके अलावा, ई-कॉमर्स तकनीक ऐसे लेने-देन को बाज़ार प्रणाली सुरक्षा उपलब्ध कराती है जोकि अन्यथा लुप्त हो गई होती यदि क्रेताओं और विक्रेताओं को आमनेसामने के लेन-देनों में अनामतापूर्वक संपर्क स्थापित करना होता। इसका एक श्रेष्ठ अत्युत्तम उदाहरण ई-वे में मिलता है, जहाँ उपभोक्ता अपनी वस्तुएँ एवं सेवाएँ दूसरे उपभोक्ता को बेचते हैं। इस गतिविधि को अधिक सुरक्षित एवं मज़बूत बनाने के लिए अनेक तकनीकों का उद्भव हुआ है। ई-वे सभी विक्रेताओं एवं क्रेताओं को एक-दूसरे को आँकने की अनुमति देता है। इस प्रकार भावी खरीददार यह देख सकते हैं कि एक विशेष विक्रेता ने 2,000 से अधिक ग्राहकों को बिक्री की है और उन सभी ने विक्रेता को अत्युत्तम आँका है। एक अन्य उदाहरण में भावी खरीददार देख सकता है कि विक्रेता ने इससे पहले सिर्फ चार बार बिक्री की है और सभी चारों ने विक्रेता को ‘दयनीय’ आँका है। इस तरह की सूचनाएँ सहायक होती हैं। अन्य तकनीक ‘भुगतान मध्यस्थ’ है जिसका उद्भव ग्राहक से ग्राहक गतिविधियों के सहयोग के लिए हुआ है। पे-पल इस तरह का एक अच्छा उदाहरण है।

ई-कॉमर्स ने लोचदार उत्पादन और व्यापक स्तर पर उपभोक्तानुरूप उत्पादन संभव बनाया है

उपभोक्तानुरूप उत्पाद पारंपरिक रूप से दस्तकार को आदेश देकर बनवाए जाते थे। परिणामतः यह महँगे होते थे और सुपुर्दगी में भी अधिक समय लेते थे। औद्योगिक क्राँति से आशय यह है कि संस्थाएँ व्यापक स्तर पर उत्पादन कर सकती थीं और वृहृ् पैमाने पर उत्पादन के लाभ के कारण वे एक ही तरह के उत्पाद को कम कीमत पर उत्पादित कर सकती थीं। वर्तमान में भी संस्थाएँ उपभोक्तानुरूप उत्पाद एवं सेवाएँ कम लागत पर प्रस्तुत कर सकती हैं; इसके लिए हमें ई-कॉमर्स को धन्यवाद देना चाहिए। नीचे इसके कुछ उदाहरण दिए गए हैं-

$401(\mathrm{k})$ फोरम
(अमेरिका)
उपभोक्तनुरूप शैक्षणिक विषयवस्तु एवं व्यक्तिगत साक्षात्कार पर आधारित
निवेश सलाह।
एक्यूमिन कॉर्पोरेशन
(अमेरिका)
इंटरनेट के प्रयोग से ग्राहकों की आवश्यकतानुरूप विटामिन की गोलियाँ
निर्मित कीं। ग्राहक जीवन शैली एवं स्वास्थ्य संबंधी सूचनाएँ प्रश्न सूची में भरना।
डेल (अमेरिका) अपने कंप्यूटर का निर्माण स्वयं कीजिए।
ग्रीन माउंटेन एर्जी
रिसोर्सेज (अमेरिका)
विद्युत पूर्तिकर्ता (परजेनरेटर नहीं)। ग्राहक अपने लिए विद्युत साधन चुन सकते
हैं। उदाहरणस्वरूप— जल, सौर इत्यादि।
लिवाइस जींस
(अमेरिका)
सिलीसिलाई जींस सेवा। वेबसाइट सेवा ग्राहकों की शिकायत के बाद स्थगित
कर दी गई। अब सेवाएँ फुटकर विक्रेताओं के माध्यम से उपलब्ध कराई जाती हैं।
यह 49,500 विभिन्न आकार, 30 तरह की शैलियाँ और तकरीबन 15 लाख
विकल्प सिर्फ 55 डॉलर की लागत पर उपलब्ध करवाती है। आदेश इंटरनेट द्वारा
प्रेषित किए जाते हैं और जींस का उत्पादन एवं सुपुर्दगी $2-3$ हप्ते में की जाती है।
एन.वी. नट्सबेडरिफ़
वेस्टलैंड
(न्यूजीलैंड)
वैस्टलैंड, नीदरलैंड कई ट्यूलिप उगाने वालों को प्राकृतिक गैस की पूर्तिकर्ता
है। ग्रीनहाउस में कंप्यूटर, ग्रीनहाउस स्वामियों को तापमान, कार्बन डाइऑक्साइड
उत्सर्जन, आर्द्रता, रोशनी एवं अन्य कारकों को अधिलागत रूप में नियंत्रित रखने
में सहायक होते हैं।
नेशनल बाइसिकल (जापान)
साइमन एंड शस्टर
(अमेरिका)
ऑर्डर लेने के 2 / 3 दिनों के भीतर आवश्यकतानुसार साइकिल निर्माण।
अध्यापक, पाठ्यक्रम एवं छात्र की आवश्यकता के अनुरूप पुस्तकों का आदेश
दे सकते हैं। जोरॉक्स डॉक्यूटेक प्रिंटर्स आज $1,25,000$ से अधिक उपभोक्तानुरूप
पुस्तकों का सृजन करते हैं।
स्काईवे (अमेरिका) संपूर्ण आदेश सुपुर्दुगी प्रदान करने वाली एक वितरण कंपनी है। यातायात के विभिन्न
स्त्रोतों एवं माध्यमों से एकत्रित माल को रास्ते में ही इकट्ठा कर एक आदेश के
रूप में एक ही कागज़ी कार्यवाही के सेट के द्वारा स्टोर अथवा ग्राहक को सुप्दर्
कर दिया जाता है।
स्मिथलाइन बेखम
(अमेरिका)
ग्राहकों के लिए उनके आवश्यकतानुरूप धूम्रपान रोकने वाले प्रोग्राम बनाती है।
कॉल सेंटर प्रश्नसूची के प्रयोग द्वारा वैयक्तिक संचार की एक भृंखला का सृजन।
स्त्रोत- Adapted from http:/www.managingchange.com

किसी अनजान, अविश्वसनीय विक्रेता से सामान सीधे खरीदने के बजाय, क्रेता धनराशि सीधे पे-पल के पास भेज सकता है वहाँ से पेल विक्रेता को सूचित कर देता है कि वह धनराशि तब तक अपने पास रखेगा जब तक कि वस्तुओं कलदान न हो जाए और क्रेता द्वारा स्वीकृत न कर ली जाएँ। पारस्परिक संपर्क वाले कॉमर्स का एक महत्वपूर्ण ग्राहक से ग्राहक क्षेत्र उपभोक्ता मंच और दबाव समूहों का गठन भी हो सकता है। आपने याहू समूहों के बारे में तो सुना ही होगा। जिस प्रकार एक वाहन स्वामी यातायात जाम में फँसने पर अन्य लोगों को रेडियो पर उस स्थान की यातायात स्थिति संबंधित संदेश देकर सावधान कर सकता है (आपने एफ़.एम. रेडियो पर यातायात सूचनाएँ जरूर सुनी होंगी), उसी प्रकार एक भुक्तभोगी ग्राहक एक उत्पाद/सेवा विक्रेता से संबंधित अनुभवों को अन्य लोगों के साथ बाँट सकता है और सिर्फ एक संदेश लिखकर और इसे पूरे समूह की जानकारी में लाकर अन्य लोगों को भी सावधान कर सकता है और यह नितांत संभव है कि समूह दबाव के चलते समस्या का समाधान भी निकल आए।

ई-व्यवसाय से संबंधित उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि ई-व्यवसाय प्रयोज्यताएँ विभिन्न एवं अनेक हैं।

ई-व्यवसाय बनाम पारंपरिक व्यवसाय

अब तक आप यह विचार बना चुके होंगे कि किस प्रकार ई-सामर्थ्य ने व्यवसाय करने के तरीकों में मूलभूत परिवर्तन कर दिया है। सारणी 5.1 पारंपरिक व्यवसाय और ई-व्यवसाय के लक्षणों की तुलना को दर्शाती है। सारणी 5.1 में सूचीबद्ध ई-व्यवसाय के लक्षणों का तुलनात्मक आकलन ई-व्यवसाय के विशिष्ट लाभों एवं सीमाओं को इंगित करता है जिनका विवेचन हम नीचे करेंगे।

5.3 ई-व्यवसाय के लाभ

(क) निर्माण में आसानी एवं निम्न निवेश आवश्यकताएँ- एक उद्योग की स्थापना के लिए प्रक्रियागत् आवश्यकताओं के विपरीत ई-व्यवसाय को प्रारंभ करना आसान है। इंटरनेट तकनीक का लाभ छोटे अथवा बड़े व्यवसायों को समान रूप से पहुँचाता है। यहाँ तक कि इंटरनेट इस लोकप्रिय उक्ति के लिए भी उत्तरदायी है कि नेटवर्क से बंधे व्यक्ति एवं फर्में, नेटवर्थ (पूँजी) व्यक्तियों से ज़्यादा कुशल होते हैं। इसका अर्थ यह है कि यदि आपके पास निवेश (पूँजी) के लिए कुछ अधिक नहीं है परंतु संपर्क सूत्र (नेटवर्क) है तो आप बहुत अच्छा व्यवसाय कर सकते हैं।

एक ऐसे रेस्तरां की कल्पना कीजिए जिसमें किसी भौतिक स्थान की आवश्यकता नहीं है। हाँ, आपकी एक ऑनलाइन व्यंजन सूची हो सकती है जोकि संसार भर के उन रेस्तराओं के सर्वोत्तम पकवान प्रस्तुत करती है जिनसे आप नेटवर्क द्वारा जुड़े हों। ग्राहक आपकी वेबसाइट में जाकर व्यंजन सूची निश्चित करके क्रयादेश देते हैं जोकि आपसे होते हुए उस रेस्तरां तक

विज्ञापन प्रेक्षित करना

चित्र 5.3 उपभोक्ता से उपभोक्ता ई-कॉमर्स


कुछ ई-व्यवसाय अनुप्रयोग

ई-अधिप्राप्ति— इसमें व्यावसायिक फर्मों के मध्य इंटरनेट आधारित विक्रय लेन-देन संबद्ध होते हैं, जिसमें विपरीत नीलामी जोकि अकेले क्रेता व्यवसायी और अनेक विक्रेताओं के मध्य ऑनलाइन व्यापार को सुगम बनाती है और अंकीय बाज़ार स्थलों (डिजिटल मार्केट प्लेस), जोकि क्रेताओं एवं विक्रेताओं के मध्य ऑनलाइन व्यापार को सुगम बनाते हैं, भी सम्मिलित होते हैं।

ई-बोली/ई-नीलामी— बहुत-सी खरीददारी वेबसाइटों पर अपने आप मूल्य प्रस्तुत करने की सुविधा होती है ताकि आप वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए बोली लगा सकें (जैसे कि एयरलाइन टिकटें)। इसमें ई-निविदाएँ भी शामिल होती हैं, जिसमें कोई भी अपना निविदा मूल्य ऑनलाइन प्रस्तुत कर सकता है।

ई-संचार/ई-संवर्द्धन— इसमें उन ऑनलाइन सूची पत्रकों का प्रकाशन जोकि वस्तुओं की छवि प्रदर्शित करते हैं, बैनरों के द्वारा प्रचार, मत सर्वेक्षण और ग्राहक सर्वेक्षण इत्यादि शामिल होते हैं। सभाएँ एवं सम्मेलन भी वीडियो कांफ्रेसिंग द्वारा किए जा सकते हैं।

ई-सुपुर्दगी— समें कंप्यूटर सॉफ़्टवेयर, फ़ोटो, वीडियो, पुस्तकें (ई-पुस्तकें) और पत्रिकाएँ (ई-पत्रिकाएँ) और अन्य मल्टीमीडिया सामग्री की कंप्यूटर प्रयोगकर्ता को इलेक्ट्रॉनिक सुपुर्दगी भी सम्मिलित होती है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से कानूनी, लेखांकन, वित्त एवं अन्य सलाहकारी सेवाएँ भी सम्मिलित होती हैं। इंटरनेट फर्मों को, सूचना प्रौद्योगिकीजन्य सूचना सेवाओं को, जिनका विवेचन हम व्यवसाय प्रक्रिया बाह्यस्त्रोतीकरण में करेंगे, इनके मेजबान से इन्हें बाह्यस्त्रोतीकरण करवाने के अवसर भी उपलब्ध कराता है। अब आप हवाई जहाज़ और रेल टिकट भी अपने घर पर मुद्रित कर सकते हैं।

ई-व्यापार— इसमें प्रतिभूति व्यापार, अंशों एवं अन्य वित्तीय प्रपत्रों का ऑनलाइन क्रय एवं विक्रय सम्मिलित होता है। उदाहरण के लिए, शेअरखानडॉटकॉम भारत की एक विशालतम ऑनलाइन व्यापार फर्म है।


सारणी 5.1 पारंपरिक व्यवसाय एवं ई-व्यवसाय में अंतर

अंतर का आधार पारंपरिक व्यवसाय ई-व्यवसाय
निर्माण में आसानी मुश्किल सरल
भौतिक उपस्थिति आवश्यक है आवश्यक नहीं
अवस्थिति संबंधी
आवश्यकताएँ
कच्चे माल के स्त्रोत अथवा उत्पाद के लिए
बाज़ार की संभाव्यता
कुछ नहीं
प्रचालन लागत अधिप्राप्ति और संग्रहण, उत्पाद, विपणन
और वितरण सुविधाओं में निवेश से संबंधित
स्थायी दायित्वों के कारण उच्च लागत
निम्न लागत क्योंकि भौतिक
सुविधाओं की आवश्यकता ही
नहीं होती
पूतिकर्ताओं एवं ग्राहकों से
संपर्क की प्रकृति
परोक्ष मध्यस्थों के द्वारा प्रत्यक्ष
आंतरिक संचार की प्रकृति लंबी अवधि तुरंत/ तत्काल
ग्राहकों/आंतरिक
आवश्यकताओं को पूरा
करने में लगने वाला प्रत्युतर
समय
सोपान-उच्च स्तरीय प्रबंध से मध्य स्तरीय
प्रबंध, निम्न स्तरीय प्रबंध और प्रचालक
बिना सोपान के सीधा उर्ध्वाधर
समांतर और विकर्ण संचार को
अनुमति देना
संगठनात्मक ढाँचे का
आकार
आदेश की शृंखला अथवा सोपान के
कारण-ऊर्ध्वाधर/लंबा
सीधे आदेश एवं संचार के
कारण समस्तर/समतल
व्यावसायिक प्रक्रियाएँ एवं
चक्र की लंबाई
अनुक्रमिक पूर्वता-क्रमानुसार संबंध, अर्थात्
क्रय-उत्पादन/प्रचालन-विपणन-विक्रय
इसीलिए व्यवसाय प्रक्रिया चक्र
लंबा होता है
विभिन्न प्रक्रियाओं की
सहकालिकता। व्यवसाय प्रक्रिया
चक्र इसीलिए छोटा होता है।
अंतर वैयक्तिक स्पर्श के
अवसर
बहुत अधिक कम
उत्पादों के भौतिक
पूर्व-प्रतिचयन के अवसर
बहुत अधिक कम। हालाँकि अंकीय उत्पादों
के लिए अत्यधिक अवसर/
आप संगीत, पुस्तकों, पत्रिकाओं
सॉफ़्टवेयर, वीडियो इत्यादि
पूर्व-प्रतिचयन कर सकते हैं।
वैश्वीकरण में आसानी कम बहुत अधिक क्योंकि साइबर क्षेत्र
सही में सीमा विहीन है।
सरकारी संरक्षण कम हो रहा है बहुत अधिक, क्योंकि सूचना
तकनीक क्षेत्र सरकार की उच्च
प्राथमिकताओं में से है
मानव पूँजी की प्रकृति अर्ध-कुशल। यहाँ तक कि अकुशल
मानवश्रम की आवश्यकता होती है
तकनीकी एवं पेशवर रूप से योग्य
कर्मियों की आवश्यकता होती है
लेन-देन जोखिम आमने-सामने संपर्क एवं लेन-देन होने के
कारण कम जोखिम
अधिक दूरी एवं पक्षों की अनामता
के कारण उच्च जोखिम

पहुँच जाता है जो उस ग्राहक के नज़दीक स्थित होता है; भोजन की सुपुर्दगी हो जाती है और भुगतान की प्राप्ति रेस्तरां कर्मचारी द्वारा कर ली जाती है और आपको ग्राहक प्रदानकर्ता के रूप में देय राशि किसी इलेक्ट्रॉनिक समाशोधन प्रणाली के द्वारा आपके खाते में जमा कर दी जाती है।

(ख) सुविधापूर्ण— इंटरनेट 24 घंटे $\times$ सप्ताह के 7 दिन $\times$ वर्ष के 365 दिन व्यवसाय की सुविधा प्रस्तुत करता है जिसके कारण ही पिछले एक उदाहरण में आधी रात को भी रीता और रेखा खरीददारी कर सकीं थीं। इस तरह की लोच संगठन के कर्मचारियों को भी उपलब्ध होती है जिसके द्वारा वह जब चाहे और जहाँ चाहे अपने कार्य कर सकते हैं। हाँ, ई-व्यवसाय सही मायनों में इलेक्ट्रॉनिकी द्वारा समर्थित एवं संबंधित व्यवसाय है जो किसी भी वस्तु की किसी भी समय और कहीं भी सुलभता के लाभ प्रस्तावित करता है।

(ग) गति— जैसे कि पहले उल्लेख किया जा चुका है, क्रय एवं विक्रय में बहुत-सी सूचनाओं का विनिमय शामिल होता है जोकि इंटरनेट द्वारा सिर्फ ‘माउस’ के क्लिक भर करने से हो जाती है। यह सुविधा सूचना उत्पादों, जैसेसॉफ़्टवेयर, फ़िल्मों, ई-पुस्तकों एवं पत्रिकाओं जिनकी ऑनलाइन सुपुर्दगी की जा सकती है, के संदर्भ में अधिक आकर्षक हो जाती है। चक्र समय, अर्थात् माँग की उत्पत्ति से इसकी पूर्ति तक के चक्र को पूरा होने में लगे समय में, व्यवसाय प्रक्रियाओं के अनुक्रमिक से समानांतर अथवा सहकालिक रूपांतरण होने पर अभूतपूर्व कमी हो जाती है। आप जानते हैं कि अंकीयकरण काल में मुद्रा को प्रकाश की गति युक्त धड़कन के रूप में परिभाषित किया गया है। इसके लिए, ई-कॉमर्स की कोष हस्तांतरण तकनीक का आभारी होना चाहिए।

(घ) वैश्विक पहुँच/प्रवेश— इंटननेट सही अर्थों में सीमाविहीन है। एक तरफ यह विक्रेता को बाज़ार की वैश्विक पहुँच प्रदान करता है तो दूसरी तरफ यह क्रेता को संसार के किसी भी हिस्से से उत्पाद चयन करने की स्वतंत्रता वहन करता है। यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इंटरनेट की अनुपस्थिति में वैश्वीकरण का कार्यक्षेत्र एवं गति काफी हद तक प्रतिबंधित हो जाएगी।

(ङ) कागज़रहित समाज की ओर संचलन- इंटरनेट के प्रयोग ने काफी हद तक कागज़ी कार्यवाही और परिचर ‘लालफीताशाही’ पर निर्भरता को कम कर दिया है। आप जानते हैं कि मारुति उद्योग बहुत बड़ी मात्रा में अपने कच्चे माल और कलपुर्जों की पूर्ति का स्त्रोतीकरण बिना किसी कागज़ी कार्यवाही के करता है। यहाँ तक कि सरकारी विभाग एवं नियामक प्राधिकरण भी इस दिशा में तेज़ी से संचलन कर रहे हैं जिसके अंतर्गत वह विवरणियों एवं प्रतिवेदनों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से फ़ाइल करने की अनुमति प्रदान करते हैं। ई-कॉमर्स औजार उन प्रशासनिक सुधारों को भी प्रभावित कर रहे हैं जिनका उद्देश्य अनुमति, अनुमोदन और लाइसेंस प्रदान करने की प्रक्रिया को गति प्रदान करना है। इस संदर्भ में सूचना तकनीक अधिनियम, 2000 के प्रावधान उल्लेखनीय है।

5.4 ई-व्यवसाय की सीमाएँ

ई-व्यवसाय इतना भी लुभावना नहीं है। इलेक्ट्रॉनिक पद्धति से व्यवसाय करने की कई सीमाएँ हैं। यह उचित होगा कि इन सीमाओं के प्रति भी सचेत रहा जाए।

(क) अल्प मानवीय स्पर्श— हालाँकिई-व्यवसाय अत्याधुनिक हो सकता है परंतु इसमें अंतरव्यक्ति पारस्परिक संपर्क की गर्माहट का अभाव होता है, इस सीमा तक यह उन उत्पाद श्रेणियों जिनमें उच्च वैयक्तिक स्पर्श की आवश्यकता होती हैं, जैसे— वस्त्र, प्रसाधन इत्यादि के व्यवसाय के लिए अपेक्षाकृत कम उपयुक्त विधि है।

(ख) आदेश प्राप्ति/प्रदान और आदेश पूरा करने की गति के मध्य असमरूपता- सूचना माउस को क्लिक करने मात्र से ही प्रवाहित हो सकती है, परंतु वस्तुओं की भौतिक सुपुर्दुगी में समय लगता ही है।

यह असमरूपता ग्राहक के सत्र पर भारी पड़ सकती है। कई बार तकनीकी कारणों से वेबसाइट खुलने में असामान्य रूप से अधिक समय ले सकती है। यह बात भी प्रयोगकर्ता को हतोत्साहित कर सकती है।

(ग) ई-व्यवसाय के पक्षों में तकनीकी क्षमता और सामर्श्य की आवश्यकता- तीन पारंपरिक विधाओं (पठन, लेखन और अंकगणित) के अलावा ई-व्यवसाय में सभी पक्षों की कंप्यूटर के संसार से उच्च कोटि के परिचय की आवश्यकता होती है और यही आवश्यकता समाज में विभाजन, जिसे कि अंकीय-विभाजन कहा जाता है, के लिए उत्तरदायी होती है, जिसमें समाज का अंकीय तकनीक से परिचितता और अपरिचितता के आधार पर विभाजन हो जाता है।

(घ) पक्षों की अनामता और उन्हें ढूँढ पाने की अक्षमता के कारण जोखिम में वृद्धि- इंटरनेट लेन-देन साइबर व्यक्तियों के मध्य होते हैं, ऐसे में पक्षों की पहचान सुनिश्चित

करना मुश्किल हो जाता है। यहाँ तक कि कोई यह भी नहीं जान सकता कि पक्ष किस स्थान से प्रचालन कर रहे हैं। यह जोखिम भरा होता है, इसलिए इंटरनेट पर लेन-देन भी जोखिम भरा होता हैं। इसमें अप्रतिरूपण (किसी अन्य का आपके नाम पर लेन-देन करना) और गुप्त सूचनाओं के बाहर निकलने, जैसे— क्रेडिट कार्ड विवरण जैसे अतिरिक्त खतरे भी हो सकते हैं। इसके बाद वायरस और हैकिंग की समस्या भी हो सकती है जिनके बारे में आपने अवश्य

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम-2000 कागज़ रहित समाज के लिए राह तैयार कर रहा है

नीचे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम-2000 के कुछ प्रावधान दिए गए हैं, जोकि व्यवसाय जगत और सरकारी क्षेत्र में कागज़रहित लेन-देनों को संभव बनाते हैं-

इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों को कानूनी मान्यता (खंड 4)— जहाँ कोई कानून यह व्यवस्था देता है कि सूचना अथवा कोई भी अन्य सामग्री लिखित अथवा टाइप की हुई अथवा मुद्रित रूप में होनी चाहिए, तब ऐसा होते हुए भी उस कानून में समाविष्ट ऐसी कोई भी आवश्यकता संतुष्ट मानी जाएगी। यदि ऐसी सूचना अथवा विषय सामग्री इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रस्तुत की जाती है अथवा उपलब्ध कराई जाती है और बाद में संदर्भ हेतु उपयोग के लिए उपलब्ध रहती है।

अंकीय (डिजिटल) हस्ताक्षरों को कानूनी मान्यता (खंड 5)— जहाँ कोई कानून यह व्यवस्था देता है कि सूचना अथवा किसी भी अन्य सामग्री की प्रमाणिकता हस्ताक्षर करने से सिद्ध होगी अथवा कोई प्रप्र हस्ताक्षरित होना चाहिए अथवा उस पर किसी व्यक्ति के हस्ताक्षर होने चाहिए, इसलिए ऐसा होते हुए भी उस कानून में समाविष्ट ऐसी कोई भी आवश्यकता संतुष्ट मानी जाएगी यदि ऐसी सूचना अथवा विषय सामग्री अंकीय हस्ताक्षर द्वारा प्रमाणित हो तथा यह हस्ताक्षर उस तरीके से किए गए हो जिस प्रकार से केंद्र सरकार ने निर्धारित किया हो।

इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों और अंकीय हस्ताक्षरों का सरकार एवं दूसरी एजेंसियों द्वारा उपयोग (खंड 6.1)— जाँ कोई कानून, किसी फार्म, प्रार्थनापत्र अथवा किसी अन्य प्रपत्र को किसी कार्यालय, प्राधिकरण, किसी सरकारी स्वामित्व अथवा नियंत्रण वाली एजेंसी में विशेष प्रकार से जमा कराने में, एक विशेष प्रकार से लाइसेंस, परमिट, अनुशस्ति अथवा किसी भी नाम से अनुमोदन जारी करने अथवा स्वीकृति देने में, एक विशेष प्रकार से धन की प्राप्ति एवं भुगतान करने में, व्यवस्था देता है तो ऐसा होते हुए भी उस समय प्रचलित किसी अन्य कानून में समाविष्ट ऐसी आवश्यकताएँ संतुष्ट मानी जाएँगी, यदि वह जमा कराने, स्वीकृति जारी करने, प्राप्ति अथवा भुगतान, जैसा भी मामला हो, में उस इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से प्रभावी होगा जैसा कि सरकार द्वारा निर्धारित है।

इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों का प्रतिधारण (खंड 7.1)— जहाँ कानून यह व्यवस्था देता है कि प्रपत्रों, अभिलेखों अथवा सूचनाओं को एक विशिष्ट अवधि तक संभालकर रखा जाए, तब वह आवश्यकता संतुष्ट मानी जाएगी यदि वह प्रपत्र, अभिलेख अथवा सूचना इलेक्ट्रॉनिक रूप में संभाल कर रखे गए हों।

स्त्रोत— सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 ।

सुना होगा? यदि नहीं तो इनका विवेचन हम ऑनलाइन व्यवसाय के सुरक्षा और बचाव सरोकारों का विवेचन करते समय करेंगे।

(ङ) जन प्रतिरोध— नई तकनीक के साथ समायोजन की प्रक्रिया एवं कार्य करने के नए तरीके तनाव एवं असुरक्षा की भावना पैदा करते हैं। इसके परिणामस्वरूप लोग संस्था के ई-व्यवसाय के प्रवेश की योजना का विरोध कर सकते हैं।

(च) नैतिक पतन- “तो, तुम नौकरी छोड़ने की योजना बना रही हो, अच्छा यह होगा कि तुम आज ही नौकरी छोड़ दो”, मानव संसाधन प्रबंधक ने उसे उस ई-मेल की प्रति दिखाते हुए कहा जो उसने अपने मित्र को लिखी थी। सबीना अचंभित और सन्न रह गई कि किस प्रकार उसके बॉस को उसके ई-मेल खाते का पता चला? आजकल कंपनियाँ आपके द्वारा प्रयोग की गई कंप्यूटर फाइलों, आपके ई-मेल खातों, वेबसाइट जिन पर आप जाते हैं और ऐसी अन्य जानकारियों के लिए एक विशेष सॉफ़्वेयर (जैसे— इलेक्ट्रॉनिक आई) का प्रयोग करते हैं। क्या यह नैतिक है?

सीमाओं के बावजूद भी ई-कॉमर्स एक साधन है

यह कहा जा सकता है कि ई-व्यवसाय की उपरोक्त विवेचित अधिकतर सीमाएँ अब उबरने की प्रक्रिया में हैं। निम्न स्पर्श की समस्या से उबरने के लिए वेबसाइट अब ज़्यादा से ज़्यादा जीवंत हो रही हैं। संचार तकनीक, इंटरनेट के द्वारा संचार की गति एवं गुणवत्ता में लगातार वृद्धि कर रही है। अंकीय विभाजन से उबरने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। उदाहरणस्वरूप ऐसी व्यूह रचनाओं की ओर उन्मुख होना, जैसे कि भारत के गाँवों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी संस्थाओं, गैर सरकारी संस्थाओं और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सम्मिलित प्रयासों से सामुदायिक टेली केंद्रों की स्थापना। देश के कोने-कोने में ई-कॉमर्स के प्रसार के लिए भारत ने ऐसी 150 परियोजनाएँ हाथ में ली हैं।

उपरोक्त विवेचन की दृष्टि से यह स्पष्ट है कि ई-व्यवसाय यहाँ बना रहेगा और व्यवसायों, शासन और अर्थव्यवस्थाओं को नया आकार प्रदान करेगा। इसलिए, यह आवश्यक है कि हम अपने आपको इस बात से परिचित बनाएँ कि ई-व्यवसाय किस प्रकार किया जाता है।

5.5 ऑनलाइन लेन-देन

प्रचालन के आधार पर, कोई भी ऑनलाइन लेन-देनों में तीन अवस्थाओं की कल्पना कर सकता है। पहली, क्रय-पूर्व/विक्रय अवस्था जिसमें प्रचार एवं सूचना जानकारी शामिल हैं; दूसरी, क्रय/विक्रय अवस्था जिसमें मूल्य मोलभाव, क्रय/विक्रय लेन-देन को अंतिम रूप देना और भुगतान इत्यादि शामिल होते हैं; और तीसरी, सुर्दुरी अवस्था है। सूचनाओं का आदान-प्रदान पारंपरिक व्यवसाय पद्धति में भी होता है परंतु यह समय एवं लागत की गंभीर बाधाओं के साथ होता है। आमने-सामने संवाद के लिए, उदाहरणस्वरूप पारंपरिक व्यवसाय पद्धति में एक व्यक्ति को दूसरे पक्ष से बात करने के लिए यात्रा करनी पड़ेगी जिसके लिए यात्रा प्रयत्न, अधिक समय और लागत की ज़रूत होती है। टेलीफ़ोन द्वारा सूचनाओं का आदान-प्रदान भी कष्टकारी होता है। सूचना के मौखिक आदान-र्रदान के लिए दोनों पक्षों की सहकालिक उपस्थिति आवश्यक होती है। सूचना का प्रसारण डाक द्वारा भी हो सकता है। परंतु यह भी काफी समय लेने वाली एवं मंहगी प्रक्रिया है। इंटरनेट ऐसे चौथे माध्यम के रूप में आता है जोकि उपरोक्त उल्लेखित लगभग सभी समस्याओं से मुक्त है। सूचना गहन उत्पादों एवं सेवाओं के संदर्भ में सुपुर्दगी ऑनलाइन भी हो सकती है जैसे कि सॉफ़्टवेयर और संगीत इत्यादि। यहाँ, जिसे उल्लेखित किया गया है वह एक ग्राहक विचारबिंदु से ऑनलाइन व्यापार प्रक्रिया है। हम नीचे दिए गए अनुच्छेद में विक्रेता के दृष्टिकोण से ई-व्यवसाय के लिए संसाधन आवश्यकताओं का विवेचन करेंगे। तो क्या आप अपनी खरीददारी सूची के साथ तैयार हैं अथवा आप शॉपिंग मॉल में घूमते समय अपनी सहज प्रवृत्ति पर निर्भर रहेंगे? आइए, रीता और रेखा का अनुसरण करें जो इंडियाटाइम्सडॉटकॉम का अवलोकन कर रही हैं।

(क) पंजीकरण- ऑनलाइन खरीददारी से पूर्व व्यक्ति को एक पंजीकरण फार्म भरकर ऑनलाइन विक्रेता के पास पंजीकरण करवाना पड़ता है। पंजीकरण का अर्थ है कि आपका ऑनलाइन विक्रेता के पास एक खाता है। संकेत शब्द (पासवर्ड) आपके खाते के उपखंडों से संबंधित अन्य विभिन्न विवरणों में से एक है जिन्हें आपको भरना पड़ता है, और ‘शॉपिंग कार्ट’ आपके संकेत शब्द के सुरक्षक होते हैं। अन्यथा कोई भी आपके नाम का प्रयोग कर आपके नाम पर खरीददारी कर सकता है। यह स्थिति आपको संकट में डाल सकती है।

(ख) आदेश प्रेषित करना- ‘शॉपिंग कार्ट’ (खरीददारी गाड़ी/ट्रॉली) में आप किसी भी वस्तु को चुन सकते हैं और छोड़ भी सकते हैं। ‘शॉपिंग कार्ट’ उन सबका ऑनलाइन अभिलेख होता है जिनको आपने ऑनलाइन भंडार (स्टोर) पर ढूँढते समय चुना होगा। जिस प्रकार वास्तविक भंडार (स्टोर) में आप अपनी गाड़ी/ट्रॉली में वस्तुएँ रख सकते हैं और फिर उससे निकालकर ले जा सकते हैं। ठीक ऐसा ही आप ऑनलाइन खरीददारी करते समय कर सकते हैं। यह सुनिश्चित करने के बाद कि आप क्या खरीदना चाहते हैं, आप बाहर निकलकर अपने भुगतान विकल्पों को चुन सकते हैं।

(ग) भुगतान तंत्र- ऑनलाइन खरीददारी के माध्यम से किए गए क्रयों का भुगतान अनेक विधियों से किया जा सकता है-

  • सुपुर्दगी के समय नकद- जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, ऑनलाइन आदेशित वस्तुओं के लिए नकद में भुगतान वस्तुओं की भौतिक सुपुर्दगी के समय किया जाता है।

  • चेक- अन्य विकल्प के रूप में ऑनलाइन विक्रेता ग्राहक के पास से चेक उठाने का बंदोबस्त कर सकता है। वस्तु की सुपुर्दगी चेक की वसूली के बाद की जा सकती है।

  • नेट बैंकिंग हस्तांतरण— आधुनिक बैंक अपने ग्राहकों को इंटरनेट पर कोषों के इलेक्ट्रॉनिक हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करते हैं जिसमें आई.एम.पी.एस. (IMPS), एन.ई.एफ़.टी. (NEFT) और आर.टी. जी.एस. (RTGS) सम्मिलित हैं। इस स्थिति में क्रेता लेन-देन की एक निश्चित मूल्य राशि ऑनलाइन विक्रेता के खाते में हस्तांतरित कर सकता है, जोकि इसके बाद वस्तुओं की सुपुर्दुगी का प्रबंध करता है।

  • क्रेडिट और डेबिट कार्ड- ‘प्लास्टिक मुद्रा’ के रूप में विख्यात ये कार्ड ऑनलाइन लेन-देनों में सर्वाधिक प्रयुक्त माध्यम हैं। लगभग 95 प्रतिशत ऑनलाइन लेन-देन इनके द्वारा ही कार्यान्वित होते हैं। क्रेडिट कार्ड अपने धारक को उधार खरीद की सुविधा प्रदान करते हैं, कार्ड धारक पर बकाया राशि कार्ड जारीकर्ता बैंक अपने ऊपर ले लेता है और बाद में लेन-देन में प्रयुक्त इस राशि को विक्रेता के ‘जमा’ में हस्तांतरित कर देता है। क्रेता का खाता भी इस राशि से ‘नाम’ कर दिया जाता है जोकि अक्सर इसे किश्तों में एवं अपनी सुविधानुसार जमा कराने की स्वतंत्रता का आनंद उठाता है। डेबिट कार्ड धारक को उस सीमा तक खरीददारी करने की अनुमति प्रदान करता है, जिस राशि तक उसके खाते में धनराशि उपलब्ध होती है। जिस क्षण कोई लेन-देन किया जाता है, भुगतान के लिए बकाया राशि इलेक्ट्रॉनिक तरीके से उसके कार्ड से घट जाती है।
    क्रेडिट कार्ड को भुगतान के तरीके के रूप में स्वीकारने के लिए, विक्रेता को पहले उसके ग्राहकों के क्रेडिट कार्ड संबंधित सूचना प्राप्त करने के सुर्षित साधनों की आवश्यकता होती है। क्रेडिट कार्ड द्वारा भुगतान का प्रसंस्करण या तो हस्तचल या फिर ऑनलाइन प्राधिकृत प्रणाली द्वारा किया जा सकता है, जैसे कि एस.एस.एल. प्रमाणपत्र|

  • अंकीय (डिजिटल) नकद- यह इलेक्ट्रॉनिक मुद्रा का एक रूप है जिसका अस्तित्व केवल साइबर स्थान (स्पेस) में ही होता है। इस तरह की मुद्रा के कोई वास्तविक भौतिक गुण नहीं होते हैं, परंतु यह वास्तविक मुद्रा को इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में प्रस्तुत करने में सक्षम होती है। सबसे पहले आपको बैंक में इस राशि का भुगतान (चेक, ड्रॉफ्ट, इत्यादि द्वारा) करना होगा, जोकि उस अंकीय नकद के समतुल्य होगी, जिसे आप अपने पक्ष में जारी करवाना चाहते हों। इसके बाद कि ई-नकद में लेन-देन करने वाला बैंक आपको एक विशेष सॉफ़टवेयर भेजेगा (जिसे आप अपनी कंप्यूटर हार्ड डिस्क पर उतार सकते हैं) जोकि आपको, बैंक में स्थित अपने खाते से अंकीय नकद निकासी की अनुमति प्रदान करेगा। तब आप अंकीय कोषों का प्रयोग वेबसाइट पर क्रय करने में कर सकते हैं।
    इस तरह की भुगतान प्रणाली द्वारा इंटरनेट पर क्रेडिट कार्ड संख्याओं के प्रयोग संबंधी सुर्षा समस्याओं के दूर करने की आशा की जा सकती है।

5.6 ई-लेन-देनों की सुरक्षा एवं बचाव

ई-व्यवसाय जोखिम

ऑनलाइन लेन-देन, मौखिक विनिमय लेन-देनों से भिन्न, अनेक जोखिमों की ओर उन्मुख होते हैं। जोखिम से आशय किसी ऐसी अनहोनी की संभाव्यता से है जोकि एक लेन-देन में शामिल पक्षों के लिए वित्तीय प्रतिष्ठात्मक अथवा मानसिक हानि का परिणाम बने। ऑनलाइन लेन-देनों में इन जोखिमों की उच्च संभाव्यता के कारण ही ई-व्यवसाय में सुरक्षा एवं बचाव के मुद्दे बहुत अधिक महत्वपूर्ण बन गए हैं। इन मुद्दों का विवेचन निम्न तीन शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है- लेन-देन जोखिम, डाटा संग्रहण और प्रसारण जोखिम और बौद्धिक संपदा को खतरे व निजता जोखिम।

(क) लेन-देन जोखिम— ऑनलाइन लेन-देन निम्न प्रकार के जोखिमों के लिए सुमेद्य होते हैं-

  • विक्रेता इस बात के लिए मना कर सकता है कि ग्राहक ने उसे कभी आदेश प्रेषित किया था और ग्राहक यह मना कर सकता है कि उसने कभी विक्रेता को आदेश प्रेषित किया था। इसे ‘आदेश लेन/देन संबंधी चूक’ के रूप में उल्लेखित किया जा सकता है।
  • वांछित सुपुर्दगी न हो पाना, वस्तुओं की सुपुर्दुगी गलत पते पर हो गई, अथवा आदेश से अलग/भिन्न वस्तुओं की सुपर्दगी होना। इसे ‘सुपुर्दगी की चूक’ कहा जा सकता है।
  • विक्रेता पूर्ति की गई वस्तुओं के लिए भुगतान प्राप्त नहीं कर पाया हो जबकि ग्राहक दावा करे कि उसने भुगतान कर दिया है। इसे ‘भुगतान संबंधी चूक’ कहा जा सकता है। इस प्रकार क्रेता एवं विक्रेता के लिए आदेश लेन-देन में, सुपुर्दगी में, साथ ही भुगतान में

चित्र 5.4 ई-व्यापार के माध्यम से वस्तुओं एवं सेवाओं से घटता वितरण चक्र

चूक के कारण जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं। इस तरह की स्थिति से, पंजीकरण के समय पहचान और स्थिति/पते की जाँच द्वारा और आदेश स्वीकृति एवं भुगतान वसूली के लिए एक प्राधिकार प्राप्त कर बचा जा सकता है। उदाहरणार्थ— यह सुनिश्चित करने के लिए कि ग्राहक ने पंजीकरण फार्म में अपना सही विवरण प्रविष्ट कर दिया है, विक्रेता इसे कुकीज़ से सत्यापित करवा सकता है। कुकीज़ टेलीफ़ोन कॉल पहचानकर्त्ता के समान ही होते हैं जोकि टेलीविक्रेता को ग्राहक का नाम, पता और उसके पिछले क्रम भुगतान के विवरण जैसी जरूरी जानकारी उपलब्ध करवाता है। अनजान विक्रेताओं से ग्राहकों की सुरक्षा के लिए यह सलाह उचित है कि सुप्रतिष्ठित खरीददारी स्थानों (शॉपिंग साइट्स) से ही खरीददारी की जाए। ‘ई-वे’ जैसी वेबसाइट, विक्रेता की श्रेणी (रेटिंग) तक उपलब्ध करवाती हैं। ऐसी वेबसाइट ग्राहकों को सुपुर्दगी में चूक के प्रति सुरक्षा प्रदान कराती हैं और कुछ हद तक किए गए भुगतान की वापसी भी करवाती हैं।

जहाँ तक भुगतान का संबंध है, हम पहले ही देख चुके हैं कि ऑनलाइन खरीददारी करने के लिए लगभग 95 प्रतिशत लोग क्रेडिट कार्ड का प्रयोग करते हैं। आदेश स्वीकृति प्राप्त करते समय क्रेता को क्रेडिट कार्ड संख्या, कार्ड जारीकर्ता एवं कार्ड की वैधता अवधि जैसे विवरण ऑनलाइन उपलब्ध करवाने होते हैं। ऐसे विवरणों का प्रसंस्करण अलग से होता है और उधार सीमा की उपलब्धता इत्यादि से अपनी संतुष्टि करने के उपरांत ही विक्रेता वस्तुओं की सुप्दर्री के लिए आगे बढ़ सकता है। विकल्प के रूप में ई-कॉमर्स तकनीक आज क्रेडिट कार्ड सूचना के ऑनलाइन प्रसंस्करण की अनुमति तक भी प्रदान करती है। क्रेडिट कार्ड विवरणों को दुरुपयोग से बचाने के लिए आजकल खरीददारी मॉल सांकेतिक शब्द तकनीक, जैसे- नेट स्केप कर रहे हैं। एस.एस.एल. के बारे में अधिक जानकारी आप ‘ई-कॉमर्स के इतिहास’ से प्राप्त कर सकते हैं।

आगे के खंडों में हम आपको ऑनलाइन लेन-देनों में डाटा प्रसारण जोखिमों से बचाव के लिए प्रयोग किए जाने वाला एक महत्वपूर्ण औजार-सांकेतिक शब्द अथवा कूट लेखन विधि (क्रिप्टोग्राफी) से परिचित कराएँगे।

(ख) डाटा संग्रहण एवं प्रसारण जोखिम- सूचना वास्तव में शक्ति है परंतु उस क्षण का विचार कीजिए, जब यह शक्ति गलत हाथों में चली जाती है। डाटा चाहे कंप्यूटर प्रणाली में संग्रहीत हो या फिर मार्ग में हो, अनेक जोखिमों से आरक्षित होते हैं। महत्वपूर्ण सूचनाएँ कुछ स्वार्थी उद्देश्यों अथवा सिर्फ मज़ाक के लिए चोरी अथवा संशोधित कर ली जाती हैं। आपने ‘वायरस’ और ‘हैकिंग’ के बारे में तो सुना ही होगा। क्या आप परिवर्ती शब्द ‘वायरस’ का पूर्ण रूप/अर्थ जानते हैं- इसका अर्थ है महत्वपूर्ण सूचना की घेराबंदी/अवरोधित करना। वास्तव में, वायरस एक प्रोग्राम (आदेश की एक भृंखला) है, जोकि अपनी पुनरावृत्ति कंप्यूटर प्रणलियों पर करता रहता है। कंप्यूटर वायरस का प्रभाव क्षेत्र स्क्रीन प्रदर्शन में मामूली छेड़छाड़ (स्तर- 1 वायरस) से लेकर, कार्य प्रणाली में बाधा (स्तर-2 वायरस) तक, लक्षित डाटा फाइलों को क्षति (स्तर-3 वायरस) तक, समूची प्रणाली को क्षति (स्तर-4 वायरस) तक हो सकता है। एंटी वायरस प्रोग्रामों की स्थापना एवं समय-समय पर उनके नवीनीकरण और फाइलों एवं डिस्को की एंटी वायरस द्वारा जाँच आपकी डाटा फाइलों, फोल्डरों और कंप्यूटर प्रणाली को वायरस के हमले से बचाती है। प्रसारण के दौरान डाटा अवरुद्ध हो सकते हैं। इसके लिए क्रिप्टोग्राफी (कूटलेखन विधि) का प्रयोग किया जा सकता है। क्रिप्टोग्राफी से आशय सूचना बचाव की उस कला से है, जिसमें उसे एक अपठनीय प्रारूप जिसे साइबर उद्धरण (साइबर टेक्स्ट) कहते हैं, में बदल दिया जाता है। केवल वही व्यक्ति जिसके पास गुप्त कुंजी (पासवर्ड) होती है, संदेश को स्पष्ट कर सामान्य उद्धरण (प्लेन टेक्स्ट) में बदल सकता है। यह किसी व्यक्ति के साथ कूट शब्दों (कोड वर्ड) के प्रयोग के समान ही है जिससे कि कोई आपके वार्तालाप को समझ न पाए।

(ग) बौद्धिक संपदा एवं निजता पर खतरे के जोखिम- इंटरनेट एक खुला स्थान है। सूचना जब एक बार इंटरनेट पर उपलब्ध हो जाती है तो वह निजी क्षेत्र के दायरे से बाहर निकल आती है और तब इसकी नकल होने से रोकना मुश्किल हो जाता है। ऑनलाइन लेन-देनों के दौरान प्रस्तुत डाटा अन्य लोगों को भी पहुँचाए जा सकते हैं जोकि आपके ई-डाक (ई-मेल) बॉक्स में बेकार प्रचार एवं संवर्धन साहित्य भरना शुरू कर सकते हैं। इस तरह प्राप्ति छोर पर, आपके पास बेकार/रद्दी डाक प्राप्त करने के बाद प्राप्त करने के लिए बहुत कम बचता है।

5.7 सफल ई-व्यवसाय कार्यान्वयन के लिए आवश्यक संसाधन

किसी व्यवसाय की स्थापना के लिए धन, व्यक्ति और मशीनों (हार्डवेयर) की आवश्यकता होती है। ई-व्यवसाय के लिए, वेबसाइट के विकास, संचालन, रखरखाव और वर्द्धन के लिए अतिरिक्त संसाधनों की आवश्यकता होती है। यहाँ ‘साइट’ से आशय स्थिति/स्थान से है तथा ‘वेब’ से आशय विश्वव्यापी वेब (वर्ल्ड वाइड वेब) से है। सरल शब्दों में कहें तो वर्ल्ड वाइड वेब पर फर्म की स्थिति ही ‘वेबसाइट’ कहलाती है। स्पष्ट रूप से वेबसाइट भौतिक स्थिति नहीं है, अपितु यह तो उस विषयवस्तु का ऑनलाइन दृश्य स्वरूप है, जिसे फर्म दूसरों को उपलब्ध कराना चाहती है।

मुख्य शब्दावली
ई-व्यवसाय ई-कॉमर्स समस्तर
सिक्योर सॉकेट्स लेअर वायरस कॉल सैंटर
ई-व्यापार ऑनलाइन व्यापार ब्राउज़र
ई-बोली ई-अधिप्राप्ति परिश्रम (स्वेट) खरीददारी
ऊर्ध्वाधर ई-नकद
आबद्ध व्यवसाय प्रक्रिया बाह्यस्त्रोतीकरण इकाइयाँ

सारांश

व्यवसाय का संसार बदल रहा है। ई-व्यवसाय और बाह्यस्त्रोतीकरण इन परिवर्तनों के दो महत्वपूर्ण स्पष्ट सूचक हैं। यह परिवर्तन आंतरिक एवं बाह्य दोनों शक्तियों के प्रभाव से जन्मे हैं। आंतरिक रूप से यह व्यावसायिक फर्म की सुधार और कार्यकुशलता की अपनी खोज है, जिसने ई-व्यवसाय और बाह्यस्त्रोतीकरण को गति प्रदान की है। बाह्य रूप से लगातार बढ़ता प्रतिस्पर्धी दबाव और हमेशा माँग करते ग्राहक इन परिवर्तनों के पीछे की शक्तियाँ हैं।

व्यवसाय करने की इलेक्ट्रॉनिक पद्धति अथवा ई-व्यवसाय जैसे कि इसे कहा जाता है, ने फर्म को अपने ग्राहक के लिए कोई भी चीज़, कहीं भी और किसी भी समय उपलब्ध कराने के लिए आवश्यक अवसर प्रदान किए हैं।

ई-व्यवसाय और बाह्यस्त्रोतीकरण जैसी दो प्रवृत्तियाँ मिलकर व्यवसाय को चलाने के वर्तमान और भविष्यिक विधियों को पुर्नसरंचित कर रही हैं। ई-व्यवसाय और बाह्यस्त्रोतीकरण दोनों लगातार विकास कर रहे हैं और इसीलिए इन्हें व्यवसाय की उभरती पद्धतियाँ कहा गया है।

अभ्यास

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. ई-व्यवसाय और पारंपरिक व्यवसाय में कोई तीन अंतर बताइए।

2. बाह्यस्त्रोतीकरण किस प्रकार व्यवसाय की नई पद्धति का प्रतिनिधित्व करता है?

3. ई-व्यवसाय के किन्हीं दो अनुप्रयोगों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

4. ई-व्यवसाय में डाटा संग्रहण एवं प्रसारण जोखिमों का वर्णन कीजिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. ई-व्यवसाय और बाह्यस्त्रोतीकरण को व्यवसाय की उभरती पद्धतियाँ क्यों कहा जाता है? इन प्रवृत्तियों की बढ़ती महत्ता के लिए उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिए।

2. ऑनलाइन व्यापार में सम्मिलित कदमों का विस्तृत वर्णन कीजिए।

3. फर्म से ग्राहक कॉमर्स के प्रमुख पहलुओं का विवेचन कीजिए।

4. व्यवसाय करने की इलेक्ट्रॉनिक पद्धति की सीमाओं का विवेचन कीजिए। क्या यह सीमाएँ इसके कार्यक्षेत्रों को प्रतिबंधित करने के लिए काफी हैं? अपने उत्तर के लिए तर्क दीजिए।



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