अध्याय 04 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था
आज के विश्व में, उपभोक्ता के रूप में हममें से कुछ के सामने वस्तुओं और सेवाओं के विस्तृत विकल्प हैं। विश्व के शीर्षस्थ विनिर्माताओं द्वारा निर्मित डिजिटल कैमरे, मोबाइल फोन और टेलीविज़न के नवीनतम मॉडल हमारे सुलभ हैं। हमेशा भारत की सड़कों पर गाड़ियों के नए मॉडल देखे जा सकते हैं। वो दिन गुज़र गए, जब भारत की सड़कों पर केवल एम्बेसडर और फिएट कारें ही दिखाई देती थीं। आज भारतीय विश्व की लगभग सभी शीर्ष कंपनियों द्वारा निर्मित कारें खरीद रहे हैं। अनेक दूसरी वस्तुओं के ब्रांडों में भी इसी प्रकार की तीव्र वृद्धि देखी जा सकती है कमीज़ों से लेकर टेलीविज़नों और प्रसंस्करित फलों के रस तक।
हमारे बाज़ारों में वस्तुओं के बहुव्यापी विकल्प अपेक्षाकृत नवीन परिघटना है। दो दशक पहले भी आपको भारत के बाज़ारों में वस्तुओं की ऐसी विविधता नहीं मिलेगी। कुछ ही वर्षों में हमारा बाज़ार पूर्णतः परिवर्तित हो गया है।
हम इस तीव्र परिवर्तन को कैसे समझ सकते हैं? ऐसे कौन से कारक हैं जो इन परिवर्तनों को ला रहे हैं और ये परिवर्तन लोगों का जीवन किस प्रकार प्रभावित कर रहे हैं? इस अध्याय में हम इन प्रश्नों पर विचार करेंगे।
अन्तरदेशीय उत्पादन
बीसवी शताब्दी के मध्य तक उत्पादन मुख्यतः देशों की सीमाओं के अंदर ही सीमित था। इन देशों की सीमाओं को लांघने वाली वस्तुओं में केवल कच्चा माल, खाद्य पदार्थ और तैयार उत्पाद ही थे। भारत जैसे उपनिवेशों से कच्चा माल एवं खाद्य पदार्थ निर्यात होते थे और तैयार वस्तुओं का आयात होता था। व्यापार ही दूरस्थ देशों को आपस में जोड़ने का मुख्य जरिया था। यह बड़ी कंपनियों, जिन्हें बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ कहते हैं, के परिदृश्य पर उभरने से पहले का युग था। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी वह है, जो एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियंत्रण अथवा स्वामित्व रखती है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उन प्रदेशों में कार्यालय तथा उत्पादन के कारखाने स्थापित करती हैं, जहाँ उन्हें सस्ता श्रम एवं अन्य संसाधन मिल सकते हैं। उत्पादन लागत में कमी करने तथा अधिक लाभ कमाने के बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ ऐसा करती हैं। निम्न उदाहरण पर विचार करते हैं -
एक बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा उत्पादन का विस्तार
औद्योगिक उपकरण बनाने वाली एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी संयुक्त राज्य अमेरिका के अनुसंधान केन्द्र में अपने उत्पादों का डिजाइन तैयार करती है। उसके पुर्ज़े चीन में विनिर्मित होते हैं। फिर इन्हें जहाज़ में लादकर मेक्सिको और पूर्वी यूरोप ले जाया जाता है, जहाँ उपकरण के पुर्ज़ों को जोड़ा जाता है और तैयार उत्पाद को विश्व भर में बेचा जाता है। इस बीच, कंपनी की ग्राहक सेवा का भारत स्थित कॉल सेंटरों के माध्यम से संचालन किया जाता है।
यह बेंगलुरु स्थित एक कॉल सेंटर है जो पर्याप्त दूरसंचार सुविधाओं और इंटरनेट से सुसज्जित है। यह विदेशी ग्राहकों को सूचना एवं मदद उपलब्ध कराता है।
इस उदाहरण में, बहुराष्ट्रीय कंपनी केवल वैश्विक स्तर पर ही अपना तैयार उत्पाद नहीं बेच रही है बल्कि अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन विश्व स्तर पर कर रही है। परिणामतः उत्पादन प्रक्रिया क्रमशः जटिल ढंग से संगठित हुई है। उत्पादन-प्रक्रिया छोटे भागों में विभाजित है और विश्व भर में, फैली हुई है। ऊपर दिए गए उदाहरण में चीन एक सस्ता विनिर्माण केन्द्र होने का लाभ प्रदान करता है। मेक्सिको और पूर्वी यूरोप, अमेरिका और यूरोप के बाज़ारों से अपनी निकटता के कारण लाभप्रद हैं। भारत में अत्यंत कुशल इंजीनियर उपलन्ध हैं, जो उत्पादन के तकनीकी पक्षों को समझ सकते हैं। यहाँ अंग्रेज़ी बोलने वाले शिक्षित युवक भी हैं, जो ग्राहक देखभाल सेवायें उपलब्ध करा सकते हैं। ये सभी चीज़ें बहुराष्ट्रीय कंपनी की लागत का लगभग 50-60 प्रतिशत बचत कर सकती हैं। अतः वास्तव में, सीमाओं के पार बहुराष्ट्रीय उत्पादन प्रक्रिया के प्रसार से असीमित लाभ हो सकता है।
आओ-इन पर विचार करे
यह दर्शाने के निम्न कथन की पूर्ति करें कि वस्त्र उद्योग में उत्पादन-प्रक्रिया कैसे विश्व-भर में फैली हुई है। एक ब्रांड लेबल पर ‘मेड इन थाइलैण्ड’ लिखा है, परन्तु उसमें एक भी थाई उत्पाद नहीं है। हम विनिर्माण-प्रक्रिया का विश्लेषण करते हैं और प्रत्येक चरण में सर्वोत्तम निर्माण को देखते हैं। हम इसे विश्व स्तर पर कर रहे हैं। जैसे, वस्त्र निर्माण में कंपनी कोरिया से सूत ले सकती है
विश्व-भर के उत्पादन को एक-दूसरे से जोड़ना
सामान्यतः बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उसी स्थान पर उत्पादन इकाई स्थापित करती हैं जो बाज़ार के नज़ादीक हो, जहाँ कम लागत पर कुशल और अकुशल श्रम उपलब्ध हो और जहाँ उत्पादन के अन्य कारकों की उपलब्धता सुनिश्चित हो। साथ ही, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ सरकारी नीतियों पर भी नज़र रखती हैं, जो उनके हितों का देखभाल करती हैं। आप बाद में, इस अध्याय में सरकारी नीतियों के बारे में और अध्ययन करेंगे।
इन परिस्थितियों को सुनिश्चित करने के बाद ही बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उत्पादन के कार्यालयों और कारखानों की स्थापना करती हैं। परिसंपत्तियों जैसे - भूमि, भवन, मशीन और अन्य उपकरणों की खरीद में व्यय की गई मुद्रा को निवेश कहते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा किए गए निवेश को विदेशी निवेश कहते हैं। कोई भी निवेश इस आशा से किया जाता है कि ये परिसंपत्तियाँ लाभ अर्जित करेंगी।
कभी-कभी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ इन देशों की स्थानीय कंपनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन करती हैं। संयुक्त उत्पादन से स्थानीय कंपनी को दोहरा लाभ होता है। पहला बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अतिरिक्त निवेश के धन प्रदान कर सकती हैं, जैसे कि तीव्र उत्पादन के मशीनें खरीदने के । दूसरा, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उत्पादन की नवीनतम प्रौद्योगिकी अपने साथ ला सकती हैं।
लेकिन, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के निवेश का सबसे आम रास्ता स्थानीय कंपनियों को खरीदना और उसके बाद उत्पादन का प्रसार करना है। अपार संपदा वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ यह आसानी से कर सकती हैं। उदाहरण के , एक बहुत बड़ी अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी कारगिल फूड्स ने परख फूड्स जैसी छोटी भारतीय कंपनियों को खरीद लिया है। परख फूड्स ने भारत के विभिन्न भागों में एक बड़ा विपणन तंत्र तैयार किया था, जहाँ उसके ब्राण्ड काफी प्रसिद्ध थे। परख फूड्स के चार तेल शोधक केन्द्र भी थे, जिस पर अब कारगिल का नियंत्रण हो गया है। अब कारगिल 50 लाख पैकेट प्रतिदिन निर्माण क्षमता के साथ भारत में खाद्य तेलों की सबसे बड़ी उत्पादक कंपनी है।
वास्तव में, कई शीर्षस्थ बहुराष्ट्रीय कंपनियों की संपत्ति विकासशील देशों की सरकारों के सम्पूर्ण बजट से भी अधिक है। ऐसी अपार संपत्ति वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों की शक्ति और प्रभाव पर विचार करें।
बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ एक अन्य तरीके से उत्पादन नियंत्रित करती हैं। विकसित देशों की बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ छोटे उत्पादकों को उत्पादन का ऑर्डर देती हैं। वस्त्र, जूते-चप्पल एवं खेल के सामान ऐसे उद्योग हैं, जहाँ विश्वभर में बड़ी संख्या में
लुधियाना के एक घर में एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी के फुटबाल-निर्माण का चित्र
विकासशील देशों में उत्पादित जीन्स अमेरिका में 6500 रु. में बेची जा रही है।
छोटे उत्पादकों द्वारा उत्पादन किया जाता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों को इन उत्पादों की आपूर्ति की जाती है। फिर इन्हें अपने ब्राण्ड नाम से ग्राहकों को बेचती हैं। इन बड़ी कंपनियों में दूरस्थ उत्पादकों के मूल्य, गुणवत्ता, आपूर्ति और श्रम-शर्तो का निर्धारण करने की प्रचण्ड क्षमता होती है।
इस प्रकार, हम देखते हैं कि बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ कई तरह से अपने उत्पादन कार्य का प्रसार कर रही हैं और विश्व के कई देशों की स्थानीय कंपनियों के साथ पारस्परिक संबंध स्थापित कर रही हैं। स्थानीय कंपनियों के साथ साझेदारी द्वारा, आपूर्ति के स्थानीय कंपनियों का इस्तेमाल करके और स्थानीय कंपनियों से निकट प्रतिस्पर्धा करके अथवा उन्हें खरीद कर बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ दूरस्थ स्थानों के उत्पादन पर अपना प्रभाव जमा रही हैं। परिणामतः दूर-दूर स्थानों पर फैला उत्पादन परस्पर संबंधित हो रहा है।
आओ-इन पर विचार करे
एक अमेरिकी कंपनी फोर्ड मोटर्स विश्व के 26 देशों में प्रसार के साथ विश्व की सबसे बड़ी मोटरगाड़ी निर्माता कंपनी है। फोर्ड मोटर्स 1995 में भारत आयी और चेन्नई के निकट 1,700 करोड़ रुपए का निवेश करके एक विशाल संयंत्र की स्थापना की। यह संयंत्र भारत में जीपों एवं ट्रकों के प्रमुख निर्माता महिन्द्रा एंड महिन्द्रा के सहयोग से स्थापित किया गया। वर्ष 2017 तक फोर्ड मोटर्स भारतीय बाज़ारों में 88,000 कारें बेच रही थी, जबकि $1,81,000$ कारों का निर्यात भी भारत से दक्षिण अफ्रीका, मेक्सिको, ब्राज़ील और संयुक्त राज्य अमेरिका किया गया। कंपनी विश्व के दूसरे देशों में अपने संयंत्रों के फोर्ड इंडिया का विकास पुर्जा आपूर्ति केन्द्र के रूप में करना चाहती है। बायें दिए अनुच्छेद को पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें।
क्या आप मानते हैं कि फोर्ड मोटर्स एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है? क्यों?
विदेशी निवेश क्या है? फोर्ड मोटर्स ने भारत में कितना निवेश किया था?
भारत में उत्पादन संयंत्र स्थापित करके फोर्ड मोटर्स जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ केवल भारत जैसे देशों के विशाल बाज़ार का ही लाभ नहीं उठाती हैं, बल्कि कम उत्पादन लागत का भी लाभ प्राप्त करती हैं। कथन की व्याख्या करें।
आपके विचार से कंपनी अपने वैश्विक कारोबार के कार के पुर्जों के विनिर्माण केन्द्र के रूप में भारत का विकास क्यों करना चाहती है? निम्न कारकों पर विचार करें-
(अ) भारत में श्रम और अन्य संसाधनों पर लागत (ब) कई स्थानीय विनिर्माताओं की उपस्थिति, जो फोर्ड मोटर्स को कल-पुर्जों की आपूर्ति करते हैं (स) अधिक संख्या में भारत और चीन के ग्राहकों से निकटता।
- भारत में फोर्ड मोटर्स द्वारा कारों के निर्माण से उत्पादन किस प्रकार परस्पर संबंधित होगा ?
- बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, अन्य कंपनियों से किस प्रकार अलग हैं?
- लगभग सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, अमेरिका, जापान या यूरोप की हैं जैसे, नोकिया, कोका-कोला, पेप्सी, होन्डा, नाइकी। क्या आप अनुमान कर सकते हैं कि ऐसा क्यों है?
विदेश व्यापार और बाजारों का एकीकरण
लम्बे समय से विदेश व्यापार विभिन्न देशों को आपस में जोड़ने का मुख्य माध्यम रहा है। इतिहास में आपने भारत और दक्षिण एशिया को पूर्व और पश्चिम के बाज़ारों से जोड़ने वाले व्यापार मार्गों और इन मार्गो से होने वाले गहन व्यापार के बारे में पढ़ा होगा। आपको यह भी याद होगा कि व्यापारिक हितों के कारण ही व्यापारिक कंपनियाँ जैसे, ईस्ट इंडिया कंपनी भारत की ओर आकर्षित हुई। आखिरकार विदेशी व्यापार का बुनियादी कार्य क्या है?
सरल शब्दों में कहा जाए, तो विदेश व्यापार घरेलू बाज़ारों अर्थात् अपने देश के बाज़ारों से बाहर के बाज़ारों में पहुँचने के उत्पादकों को एक अवसर प्रदान करता है। उत्पादक केवल अपने देश के बाज़ारों में ही अपने उत्पाद नहीं बेच सकते हैं, बाल्कि विश्व के अन्य देशों के बाज़ारों में भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इसी प्रकार, दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं के आयात से खरीददारों के समक्ष उन वस्तुओं के घरेलू उत्पादन के अन्य विकल्पों का विस्तार होता है।
अब हम भारत के बाज़ार पर चीनी खिलौनों के प्रभाव के उदाहरण के द्वारा विदेश व्यापार के प्रभाव का अध्ययन करते हैं।
भारत में चीन के खिलौने
चीन के विनिर्माताओं को भारत में खिलौने निर्यात करने के एक अवसर का पता चलता है, जहाँ खिलौने अधिक मूल्य पर बेचे जा रहे हैं। वे भारत को खिलौने निर्यात करना आरम्भ करते हैं। अब भारत में खरीददारों के पास भारतीय और चीनी खिलौनों के बीच चयन करने का विकल्प है। सस्ते दाम एवं नवीन डिजाइनों के कारण चीनी खिलौने भारतीय बाज़ारों में अधिक लोकप्रिय हैं। एक वर्ष में ही खिलौने की 70-80 प्रतिशत दुकानों में भारतीय खिलौनों का स्थान चीनी खिलौनों ने ले लिया है। अब भारत के बाज़ारों में खिलौने पहले की तुलना में सस्ते हैं।
यहाँ क्या हो रहा है? व्यापार के कारण चीनी खिलौने भारत के बाज़ारों में आए। भारतीय और चीनी खिलौनों की प्रतिस्पर्धा में चीनी खिलौने बेहतर साबित हुए। भारतीय खरीददारों के समक्ष कम कीमत पर खिलौनों के अपेक्षाकृत अधिक विकल्प हैं। इससे चीन के खिलौना निर्माताओं को अपना व्यवसाय फैलाने के लिए एक अवसर प्राप्त होता है। इसके विपरीत, भारतीय खिलौना निर्माताओं को हानि होती है, क्योंकि उनके खिलौने कम बिकते हैं।
सामान्यतः व्यापार के खुलने से वस्तुओं का एक बाज़ार से दूसरे बाज़ार में आवागमन होता है। बाज़ार में वस्तुओं के विकल्प बढ़ जाते हैं। दो बाज़ारों में एक ही वस्तु का मूल्य एक समान होने लगता है। अब दो देशों के उत्पादक एक दूसरे से हजारों मील दूर होकर भी एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इस प्रकार, विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाज़ारों को जोड़ने या एकीकरण में सहायक होता है।
सिलेसिलाए वस्त्रों के छोटे व्यापारी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के ब्रांड और आयात दोनों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करते हुए।
आओ-इन पर विचार करे
- अतीत में देशों को जोड़ने वाला मुख्य माध्यम क्या था? अब यह अलग कैसे है?
- विदेश व्यापार और विदेशी निवेश में अंतर स्पष्ट करें।
- हाल के वर्षों में चीन भारत से इस्पात आयात कर रहा है। व्याख्या करें कि चीन द्वारा इस्पात का आयात कैसे प्रभावित करेगा -
(क) चीन की इस्पात कंपनियों को
(ख) भारत की इस्पात कंपनियों को
(ग) चीन में अन्य औद्योगिक वस्तुओं के उत्पादन के इस्पात खरीदने वाले उद्योगों को
- चीन के बाज़ारों में भारत से इस्पात का आयात किस प्रकार दोनों देशों के इस्पात-बाज़ार के एकीकरण में सहायता करेगा? व्याख्या करें।
वैश्वाकरण क्या है?
विगत दो तीन दशकों से अधिकांश बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विश्व में उन स्थानों की तलाश कर रही हैं, जो उनके उत्पादन के सस्ते हों। इन देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के निवेश में वृद्धि हो रही है, साथ ही विभिन्न देशों के बीच विदेश व्यापार में भी तीव्र वृद्धि हो रही है। विदेश व्यापार का एक बड़ा भाग बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा नियंत्रित है। जैसे, भारत में फोर्ड मोटर्स का कार संयंत्र, केवल भारत के ही कारों का निर्माण नहीं करता, बल्कि वह अन्य विकासशील देशों को कारें और विश्व भर में अपने कारखानों के कार-पुर्जों का भी निर्यात करता है। इसी प्रकार, अधिकांश बहुराष्ट्रीय कंपनियों के क्रियाकलाप में वस्तुओं और सेवाओं का बड़े पैमाने पर व्यापार शामिल होता है।
अधिक विदेश व्यापार और अधिक विदेशी निवेश के परिणामस्वरूप विभिन्न देशों के बाज़ारों एवं उत्पादनों में एकीकरण हो रहा है। विभिन्न देशों के बीच परस्पर संबंध और तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ वैश्वीकरण की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका निभा रही हैं। विभिन्न देशों के बीच अधिक से अधिक वस्तुओं और सेवाओं, निवेश और प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान हो रहा है। विगत कुछ दशकों की तुलना में विश्व के अधिकांश भाग एक-दूसरे के अपेक्षाकृत अधिक सम्पर्क में आए हैं।
वस्तुओं, सेवाओं, निवेशों और प्रैद्योगिकी के अतिरिक्त विभिन्न देशों को आपस में जोड़ने का एक और माध्यम हो सकता है। यह माध्यम है विभिन्न देशों के बीच लोगों का आवागमन। प्रायः लोग बेहतर आय, बेहतर रोज़गार एवं शिक्षा की तलाश में एक देश से दूसरे देश में आवागमन करते हैं किन्तु, विगत कुछ दशकों में अनेक प्रतिबंधों के कारण विभिन्न देशों के बीच लोगों के आवागमन में अधिक वृद्धि नहीं हुई है।
आओ-इन पर विचार करे
- वैश्वीकरण प्रक्रिया में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की क्या भूमिका है?
- वे कौन से विभिन्न तरीके हैं, जिनके द्वारा देशों को परस्पर संबंधित किया जा सकता है?
- सही विकल्प का चयन करें -
देशों को जोड़ने से वैश्वीकरण के परिणाम होंगे
(क) उत्पादकों के बीच कम प्रतिस्पर्धा होगी
(ख) उत्पादकों के बीच अधिक प्रतिस्पर्धा होगी
(ग) उत्पादकों के बीच प्रतिस्पर्धा में परिवर्तन नहीं होगा
वैश्वीकरण को संभव बनाने वाले कारक
प्रौद्योगिकी में तीव्र उन्नति वह मुख्य कारक है जिसने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को उत्प्रेरित किया। जैसे, विगत पचास वर्षों में परिवहन प्रौद्योगिकी में बहुत उन्नति हुई है। इसने लम्बी दूरियों तक वस्तुओं की तीव्रतर आपूर्ति को कम लागत पर संभव किया है।
वस्तुओं के परिवहन के कंटेनर
वस्तुओं को कंटेनरों में रखा गया है, जिससे इन्हें जहाज़ों, रेलों, वायुयानों एवं ट्रकों पर बिना क्षति के लादा जा सके। कंटेनरों से ढुलाई-लागत में भारी बचत हुई है और माल को बाज़ारों तक पहुँचाने की गति में वृद्धि हुई है। इसी प्रकार, वायु यातायात की लागत में गिरावट आयी है। परिणामतः वायुमार्ग से अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में वस्तुओं का परिवहन संभव हुआ है।
इससे भी अधिक उल्लेखनीय है सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का विकास। वर्तमान समय में दूरसंचार, कंप्यूटर और इंटरनेट के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी द्रुत गति से परिवर्तित हो रही है। दूरसंचार सुविधाओं (टेलीग्राफ, टेलीफोन, मोबाइल फोन एवं फैक्स) का विश्व भर में एक-दूसरे से सम्पर्क करने, सूचनाओं को तत्काल प्राप्त करने और दूरवर्ती क्षेत्रों से संवाद करने में प्रयोग किया जाता है। ये सुविधाएँ संचार उपग्रहों द्वारा सुगम हुई हैं। जैसा कि आप जानते होंगे, जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में कंप्यूटरों का प्रवेश हो गया है। आपने इंटरनेट के चमत्कारिक संसार में भी प्रवेश किया होगा, जहाँ जो कुछ भी आप जानना चाहते हैं, लगभग उसकी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और सूचनाओं को आपस में बाँट सकते हैं। इंटरनेट से हम तत्काल इलेक्ट्रॉनिक डाक (ई-मेल) भेज सकते हैं और अत्यंत कम मूल्य पर विश्व-भर में बात (वॉयस मेल) कर सकते हैं।
सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (संक्षेप में आई.टी.) ने विभिन्न देशों के बीच सेवाओं के उत्पादन के प्रसार में मुख्य भूमिका निभायी है। हम देखते हैं कैसे?
वैश्वीकरण में संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग
लंदन के पाठकों के प्रकाशित एक समाचार पत्रिका की डिजाइनिंग और छपाई दिल्ली में की जानी है। पत्रिका का पाठ्य-विषय इंटरनेट के द्वारा दिल्ली कार्यालय को भेज दिया जाता है। दिल्ली कार्यालय में डिज़ाइनर दूरसंचार सुविधाओं का उपयोग करके लंदन कार्यालय से पत्रिका की डिज़ाइन के बारे में निर्देश प्राप्त करते हैं। डिज़ाइन तैयार करने का काम कंप्यूटर पर किया जाता है। छपाई के बाद पत्रिकाओं को वायुमार्ग से लंदन भेजा जाता है। यहाँ तक कि डिज़ाइन और छपाई के पैसे का भुगतान इंटरनेट (ई-बैंकिंग) के द्वारा लंदन के एक बैंक से दिल्ली के एक बैंक को तत्काल कर दिया जाता है।
आओ-इन पर विचार करे
- ऊपर दिए गए उदाहरण में, उत्पादन में प्रौद्योगिकी के प्रयोग का उल्लेख करने वाले शब्दों को रेखांकित करें।
- सूचना प्रौद्योगिकी वैश्वीकरण से कैसे जुड़ी हुई है? क्या सूचना प्रौद्योगिकी के प्रसार के बिना वैश्वीकरण संभव होता ?
विदेश व्यापार तथा विदेशी निवेश का उदारीकरण
हम भारत में चीनी खिलौनों के आयात वाले उदाहरण पर वापस लौटते हैं। मान लीजिए कि भारत सरकार खिलौनों के आयात पर कर लगाती है। तब क्या होगा? इसका अर्थ है कि जो इन खिलौनों का आयात करना चाहते हैं, उन्हें इन पर कर देना होगा। कर के कारण खरीददारों को आयातित खिलौनों की अधिक कीमत चुकानी होगी। चीन के खिलौने अब भारत के बाज़ारों में इतने सस्ते नहीं रह जाएँगे और चीन से उनका आयात स्वतः कम हो जाएगा। भारत के खिलौना-निर्माता अधिक समृद्ध हो जाएँगे।
आयात पर कर, व्यापार अवरोधक का एक उदाहरण है। इसे अवरोधक इस कहा गया है, क्योंकि यह कुछ प्रतिबंध लगाता है। सरकारें व्यापार अवरोधक का प्रयोग विदेश व्यापार में वृद्धि या कटौती (नियमित करने) करने और देश में किस प्रकार की वस्तुएँ कितनी मात्रा में आयातित होनी चाहिए, यह निर्णय करने के कर सकती हैं।
स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर प्रतिबंध लगा रखा था। देश के उत्पादकों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से संरक्षण प्रदान करने के यह अनिवार्य माना गया। 1950 और 1960 के दशकों में उद्योगों का उदय हो रहा था और इस अवस्था में आयात से प्रतिस्पर्धा इन उद्योगों को बढ़ने नहीं देती। इसी, भारत ने केवल अनिवार्य चीजों जैसे, मशीनरी, उर्वरक और पेट्रोलियम के आयात की ही अनुमति दी। ध्यान दीजिए कि सभी विकसित देशों ने विकास के प्रारंभिक चरणों में घरेलू उत्पादकों को विभिन्न तरीकों से संरक्षण दिया है।
भारत में करीब सन् 1991 के प्रारंभ से नीतियों में कुछ दूरगामी परिवर्तन किए गए। सरकार ने यह निश्चय किया कि भारतीय उत्पादकों के विश्व के उत्पादकों से प्रतिस्पर्धा करने का समय आ गया है। यह महसूस किया गया कि प्रतिस्पर्धा से देश में उत्पादकों के प्रदर्शन में सुधार होगा, क्योंकि उन्हें अपनी गुणवत्ता में सुधार करना होगा। इस निर्णय का प्रभावशाली अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने समर्थन किया।
अतः विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर से अवरोधों को काफी हद तक हटा दिया गया। इसका अर्थ है कि वस्तुओं का आयात-निर्यात सुगमता से किया जा सकता था और विदेशी कंपनियाँ यहाँ अपने कार्यालय और कारखाने स्थापित कर सकती थीं।
सरकार द्वारा अवरोधों अथवा प्रतिबंधों को हटाने की प्रक्रिया उदारीकरण के नाम से जानी जाती है। व्यापार के उदारीकरण से व्यावसायियों को मुक्त रूप से निर्णय लेने की अनुमति मिली है कि वे क्या आयात या निर्यात करना चाहते हैं। सरकार पहले की तुलना में कम नियंत्रण करती है और इस उसे अधिक उदार कहा जाता है।
आओ-इन पर विचार करे
- विदेश व्यापार के उदारीकरण से आप क्या समझते हैं?
- आयात पर कर एक प्रकार का व्यापार अवरोधक है। सरकार आयात होने वाली वस्तुओं की संख्या भी सीमित कर सकती है। इसे कोटा कहते हैं। क्या आप चीन के खिलौनों के उदाहरण से व्याख्या कर सकते हैं कि व्यापार अवरोधक के रूप में कोटा का प्रयोग कैसे किया जा सकता है? आपके विचार से क्या इसका प्रयोग किया जाना चाहिए? चर्चा करें।
विश्व व्यापार संगठन
हमने देखा कि कुछ बहुत प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों ने भारत में विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश के उदारीकरण का समर्थन किया। इन संगठनों का मानना है कि विदेश व्यापार और विदेशी निवेश पर सभी अवरोधक हानिकारक हैं। कोई अवरोधक नहीं होना चाहिए। देशों के बीच मुक्त व्यापार होना चाहिए। विश्व के सभी देशों को अपनी नीतियाँ उदार बनानी चाहिए।
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू. टी. ओ.) एक ऐसा संगठन है, जिसका ध्येय अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना है। विकसित देशों की पहल पर शुरू किया गया विश्व व्यापार संगठन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित नियमों को निर्धारित करता है और यह देखता है कि इन नियमों का पालन हो। विश्व के लगभग 160 देश विश्व व्यापार संगठन के सदस्य हैं।
यद्यपि विश्व व्यापार संगठन सभी देशों को मुक्त व्यापार की सुविधा देता है, परंतु व्यवहार में यह देखा गया है कि विकसित देशों ने अनुचित ढंग से व्यापार अवरोधकों को बरकरार रखा है। दूसरी ओर, विश्व व्यापार संगठन के नियमों ने विकासशील देशों के व्यापार अवरोधों को हटाने के विवश किया है। इसका एक उदाहरण कृषि उत्पादों के व्यापार पर वर्तमान बहस है।
व्यापार व्यवहारों पर वाद-विवाद
आपने अध्याय- 2 में देखा है कि भारत में अधिकांश रोज़गगर और सकल घरेलू उत्पाद (जी. डी. पी.) का महत्त्वपूर्ण भाग कृषि क्षेत्र प्रदान करता है। इसकी तुलना में विकसित देशों, जैसे अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा मात्र एक प्रतिशत और कुल रोज़गार में केवल 0.5 प्रतिशत है। फिर भी, अमेरिका के कृषि क्षेत्र में कार्यरत इतने कम प्रतिशत लोग भी अमेरिकी सरकार से उत्पादन और दूसरे देशों को निर्यात करने के बहुत अधिक धन राशि प्राप्त करते हैं। इस भारी धन राशि के कारण अमेरिकी किसान अपने कृषि उत्पादों को असाधारण रूप से कम कीमत पर बेच सकते हैं। अधिशेष कृषि उत्पदों को दूसरे देशों के बाज़ारों में कम कीमत पर बेचा जाता है जो इन देशों के कृषकों को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।
यही कारण है कि विकासशील देश, विकसित देशों की सरकारों से सवाल कर रहे हैं कि ‘हमने विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुसार व्यापार अवरोधकों को कम कर दिया, लेकिन आप लोगों ने विश्व व्यापार संगठन के नियमों को नज़रअंदाज़ कर दिया और अपने किसानों को भारी धन राशि देना बरकरार रखा है। आप लोगों ने हमारी सरकारों को अपने किसानों की सहायता बंद करने को कहा, परन्तु आप स्वयं यहीं काम कर रहे हैं। क्या यह मुक्त और न्यायसंगत व्यापार है?’
आओ-इन पर विचार करे
- रिक्त स्थानों की पूर्ति करें -
विश्व व्यापार संगठन ……………. देशों की पहल पर शुरू हुआ था। विश्व व्यापार संगठन का ध्येय …………… है। विश्व व्यापार संगठन सभी देशों के …………… से संबंधित नियम बनाता है और देखता है कि व्यवहार में, देशों के बीच व्यापार नहीं है। विकासशील देश, जैसे, भारत है जबकि अधिकांश स्थितियों में विकसित देशों ने अपने उत्पादकों को संरक्षण देना जारी रखा है।
- आपके विचार से विभिन्न देशों के बीच अधिकाधिक न्यायसंगत व्यापर के क्या किया जा सकता है?
- उपर्युक्त उदाहरण में, हमने देखा कि अमेरिकी सरकार किसानों को उत्पादन के भारी धन राशि देती है। कभी-कभी सरकार कुछ विशेष प्रकार की वस्तुओं जैसे पर्यावरण के अनुकूल वस्तुओं के उत्पादन को बढ़ावा देने के सहायता देती है। यह न्यायसंगत है या नहीं, चर्चा करें।
भारत में वैश्वीकरण का प्रभाव
विगत बीस वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण ने एक लम्बी दूरी तय की है। इसका लोगों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा है? हम कुछ प्रमाण देखते हैं।
वैश्वीकरण और उत्पादकों-स्थानीय एवं विदेशी दोनों, के बीच वृहतर प्रतिस्पर्धा से उपभोक्ताओं, विशेषकर शहरी क्षेत्र में धनी वर्ग के उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है। इन उपभोक्ताओं के समक्ष पहले से अधिक विकल्प हैं और वे अब अनेक उत्पादों की उत्कृष्ट गुणवत्ता और कम कीमत से लाभान्वित हो रहे हैं। परिणामत: ये लोग पहले की तुलना में आज अपेक्षाकृत उच्चतर जीवन स्तर का आनन्द ले रहे हैं। उत्पादकों और श्रमिकों पर वैश्वीकरण का एक समान प्रभाव नहीं पड़ा है।
पहला, विगत 20 वर्षों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में अपने निवेश में वृद्धि की है, जिसका अर्थ है कि भारत में निवेश करना उनके लाभप्रद रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने शहरी इलाकों के उद्योगों जैसे सेलफोन, मोटर गाड़ियों, इलेक्ट्रॉानिक उत्पादों, ठंडे पेय पदार्थों और जंक खाद्य पदार्थों एवं बैंकिंग जैसी सेवाओं के निवेश में रुचि दिखाई है। इन उत्पादों के अधिकांश खरीददार संपन्न वर्ग के लोग हैं। इन उद्योगों और सेवाओं में नये रोजगार उत्पन्न हुए हैं। साथ ही, इन उद्योगों को कच्चे माल इत्यादि की आपूर्ति करनेवाली स्थानीय कंपनियाँ समृद्ध हुईं।
विदेशी निवेश आकर्षित करने के उठाए गए कदम
हाल के वर्षों में भारत की केन्द्र एवं राज्य सरकारें भारत में निवेश हेतु विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने के विशेष कदम उठा रही हैं। औद्योगिक क्षेत्रों, जिन्हें विशेष आर्थिक क्षेत्र कहा जाता है, की स्थापना की जा रही है। विशेष आर्थिक क्षेत्रों में विश्व स्तरीय सुविधाएँ-बिजली, पानी, सड़क, परिवहन, भण्डारण, मनोरंजन और शैक्षिक सुविधाएँ उपलब्ध होनी चाहिए। विशेष आर्थिक क्षेत्र में उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करने वाली कंपनियों को आरंभिक पाँच वर्षों तक कोई कर नहीं देना पड़ता है।
विदेशी निवेश आकर्षित करने हेतु सरकार ने श्रम-कानूनों में लचीलापन लाने की अनुमति दे दी है। आपने अध्याय- 2 में देखा है कि संगठित क्षेत्र की कंपनियों को कुछ नियमों का अनुपालन करना पड़ता है। जिसका उद्देश्य श्रमिक अधिकारों का संरक्षण करना है। हाल के वर्षों में सरकार ने कंपनियों को अनेक नियमों से छूट लेने की अनुमति दे दी है। अब नियमित आधार पर श्रमिकों को रोज़गार देने के बजाय कंपनियों में जब काम का अधिक दबाव होता है, तो लोचदार ढंग से छोटी अवधि के श्रमिकों को कार्य पर रखती हैं। कंपनी की श्रम लागत में कटौती करने के ऐसा किया जाता है। फिर भी, विदेशी कंपनियाँ अभी भी संतुष्ट नहीं हैं और श्रम कानूनों में और अधिक लचीलेपन की माँग कर रही हैं।
दूसरा, अनेक शीर्ष भारतीय कंपनियाँ बढ़ी हुई प्रतिस्पर्धा से लाभान्वित हुई हैं। इन कंपनियों ने नवीनतम प्रौद्योगिकी और उत्पादन प्रणाली में निवेश किया और अपने उत्पादन-मानकों को ऊँचा उठाया है। कुछ ने विदेशी कंपनियों के साथ सफलतापूर्वक सहयोग कर लाभ अर्जित किया।
इससे भी आगे, वैश्वीकरण ने कुछ बड़ी भारतीय कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में उभरने के योग्य बनाया है। टाटा मोटर्स ( मोटरगाड़ियाँ), इंफोसिस (आई. टी.), रैनबैक्सी (दवाइयाँ), एशियन पेंट्स (पेंट), सुंदरम फास्नर्स (नट और बोल्ट) कुछ ऐसी भारतीय कंपनियाँ हैं, जो विश्व स्तर पर अपने क्रियाकलापों का प्रसार कर रही हैं।
वैश्वीकरण ने सेवा प्रदाता कंपनियों विशेषकर सूचना और संचार प्रौद्योगिकी वाली कंपनियों के नये अवसरों का सृजन किया है। भारतीय कंपनी द्वारा लंदन स्थित कंपनी के पत्रिका का प्रकाशन और कॉल सेंटर इसके उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त आँकड़ा प्रविष्टि (डाटा एन्ट्री), लेखाकरण, प्रशासनिक कार्य, इंजीनियरिंग जैसी कई सेवायें भारत जैसे देशों में अब सस्ते में उपलब्ध हैं और विकसित देशों को निर्यात की जाती है।
आओ-इन पर विचार करे
- प्रतिस्पर्धा से भारत के लोगों को कैसे लाभ हुआ है?
- क्या और भारतीय कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में उभारना चाहिए? इससे देश की जनता को क्या लाभ होगा?
- सरकारें अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने का प्रयास क्यों करती हैं?
- अध्याय 1 में हमने देखा कि एक का विकास दूसरे के कैसे विध्वंसक हो सकता है। भारत के कुछ लोगों ने विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) की स्थापना का विरोध किया है। पता कीजिए, ये लोग कौन हैं और ये इसका विरोध क्यों कर रहे हैं?
छोटे उत्पादक - प्रतिस्पर्धा करो या नष्ट हो जाओ
वैश्वीकरण ने बड़ी संख्या में छोटे उत्पादकों और श्रमिकों के बड़ी चुनौतियाँ खड़ी की हैं।
बढ़ती प्रतियोगिता
रवि को यह अपेक्षा नहीं थी कि उसे एक उद्योगपति के रूप में अपने जीवन की छोटी अवधि में ही संकट का सामना करना पड़ेगा। रवि ने सन् 1992 में तमिलनाडु के एक औद्योगिक शहर होसुर में संधारित्रों का निर्माण करने वाली अपनी कंपनी शुरू करने के बैंक से ऋण लिया। संधारित्रों का इस्तेमाल ट्यूबलाइटों, टेलीविजनों सहित अनेक घरेलू इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में होता है। तीन वर्षों के भीतर वह अपने उत्पादन का विस्तार करने में सक्षम हो गया और उसकी कंपनी में 20 कर्मचारी काम करने लगे।
अपनी कंपनी चलाने में उसका संघर्ष तब प्रारंभ हुआ, जब सरकार ने सन् 2001 में विश्व व्यापार संगठन के समझौते के अनुसार संधारित्रों के आयात पर से प्रतिबंधों को हटा दिया। उसके मुख्य ग्राहकों में टेलीविजन कंपनियाँ थीं, जो टेलीविजन सेटों का निर्माण करने के संधारित्रों सहित विभिन्न पुर्जे थोक में खरीदती और टेलीविजन सेटों का निर्माण करती हैं। किंतु बहुराष्ट्रीय कंपनियों के ब्रांडों से प्रतिस्पर्धा ने भारतीय टेलीविजन कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के संयोजन-कार्य करने के विवश कर दिया। उनमें से कुछ जब संधारित्र खरीदती थीं, तो वे इनका आयात करना पसंद करती थी, क्योंकि आयातित सामानों की कीमत रवि जैसे लोगों द्वारा निर्धारित कीमत से आधी होती थी।
अब रवि वर्ष 2000 में निर्मित संधारित्रों से आधे से भी कम संधारित्रों का निर्माण करता है और उसके केवल सात श्रमिक काम कर रहे हैं। रवि के अनेक दोस्तों ने, जो हैदराबाद और चेन्नई में इसी व्यवसाय में थे, अपनी इकाइयाँ बंद कर दीं।
बैटरी, संधारित्र, प्लास्टिक, खिलौने, टायरों, डेयरी उत्पादों एवं खाद्य तेल के उद्योग कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जहाँ प्रतिस्पर्धा के कारण छोटे विनिर्माताओं पर कड़ी मार पड़ी है। कई इकाइयाँ बंद हो गई, जिसके चलते अनेक श्रमिक बेरोज़गार हो गए। भारत में लघु उद्योगों में कृषि के बाद सबसे अधिक श्रमिक (2 करोड़) नियोजित हैं।
आओ-इन पर विचार करे
- रवि की लघु उत्पादन इकाई बढ़ती प्रतिस्पर्धा से किस प्रकार प्रभावित हुई?
- दूसरे देशों के उत्पादकों की तुलना में उत्पादन लागत अधिक होने के कारण क्या रवि जैसे उत्पादकों को उत्पादन रोक देना चाहिए? आप क्या सोचते हैं?
- नवीनतम अध्ययनों ने संकेत किया है कि भारत के लघु उत्पदकों को बाज़ार में बेहतर प्रतिस्पर्धा के तीन चीजों की आवश्यकता है - (अ) बेहतर सड़कें, बिजली, पानी, कच्चा माल, विपणन और सूचना तंत्र, (ब) प्रौद्योगिकी में सुधार एवं आधुनिकीकरण और (स) उचित ब्याज दर पर साख की समय पर उपलब्धता।
- क्या आप व्याख्या कर सकते हैं कि ये तीन चीजें भारतीय उत्पादकों को किस प्रकार मदद करेंगी?
- क्या आप मानते हैं कि बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ इन क्षेत्रों में निवेश करने के इच्छुक होंगी? क्यों?
- क्या आप मानते हैं कि इन सुविधाओं को उपलब्ध कराने में सरकार की भूमिका है? क्यों?
- क्या आप कोई ऐसा उपाय सुझा सकते हैं जिसे कि सरकार अपना सके? चर्चा करें।
प्रतिस्पर्धा और अनिश्चित रोज़गार
वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्धा के दबाव ने श्रमिकों के जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण अधिकांश नियोक्ता इन दिनों श्रमिकों को रोज़गार देने में लचीलापन पसंद करते हैं। इसका अर्थ है कि श्रमिकों का रोज़गार अब सुनिश्चित नहीं है।
अब हम देखते हैं कि भारत में वस्त्र निर्यात उद्योग प्रतिस्पर्धा के दबाव को कैसे सहन कर रहे हैं?
वस्त्र निर्यातक फैक्ट्री में महिला श्रमिक - यद्यपि वैश्वीकरण ने महिलाओं को काम के अवसर प्रदान किया है, परन्तु रोजगार की स्थितियाँ यह प्रदर्शित करती हैं कि महिलाओं को लाभ में भागीदारी समुचित रूप से नहीं मिली।
अमेरिका और यूरोप में वस्त्र उद्योग की बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारतीय निर्यातकों को वस्तुओं की आपूर्ति के आर्डर देती हैं। विश्वव्यापी नेटवर्क से युक्त बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ लाभ को अधिकतम करने के सबसे सस्ती वस्तुएँ खोजती हैं। इन बड़े आर्डरों को प्राप्त करने के भारतीय वस्त्र निर्यातक अपनी लागत कम करने की कड़ी कोशिश करते हैं। चूँकि कच्चे माल पर लागत में कटौती नहीं की जा सकती, इस नियोक्ता श्रम-लागत में कटौती करने की कोशिश करते हैं। जहाँ पहले कारखाने श्रमिकों को स्थायी आधार पर रोज़गार देते थे, वहीं वे अब अस्थायी रोज़गार देते हैं, ताकि श्रमिकों को वर्ष भर वेतन नहीं देना पड़े। श्रमिकों को बहुत लम्बे कार्य-घंटों तक काम करना पड़ता है और अत्यधिक माँग की अवधि में नियमित रूप से रात में भी काम करना पड़ता है। मज़दूरी काफी कम होती है और श्रमिक अपनी रोज़ी-रोटी के अतिरिक्त समय में भी काम करने के विवश हो जाते हैं।
हालाँकि वस्त्र निर्यातकों के बीच प्रतिस्पर्धा से बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अधिक लाभ कमाने में मदद मिली है, परन्तु वैश्वीकरण के कारण मिले लाभ में श्रमिकों को न्यायसंगत हिस्सा नहीं दिया गया है।
कपड़ा श्रमिक
35 वर्षीया सुशीला ने दिल्ली के एक वस्त्र निर्यातक उद्योग में एक श्रमिक के रूप में कई वर्ष काम किया। जब वह एक स्थायी श्रमिक के रूप में नियुक्त थी तो स्वास्थ्य बीमा, भविष्य निधि एवं अतिरिक्त समय में कार्य करने के दुगुनी मज़दूरी की हकदार थी। जब 1990 के दशक के अंतिम वर्षों में सुशीला की फैक्ट्री बंद हो गई, तो छह माह तक रोज़गार की तलाश करने के बाद अंततः उसे अपने घर से 30 कि.मी. दूर एक रोज़गार मिला। कई वर्षों तक इस फैक्ट्री में काम करने के बावजूद वह एक अस्थायी श्रमिक है और पहले की तुलना में आधे से भी कम कमा पाती है। वह सप्ताह के सातों दिन सुबह 7.30 बजे अपने घर से निकलती है और शाम 10 बजे वापस आती है। एक दिन काम नहीं करने का अर्थ है, उस दिन की मजदूरी नहीं मिलना। उसे अब कोई अन्य लाभ नहीं मिलता है जो पहले मिलता था। उसके घर के समीप की फैक्ट्रियों को काफी अस्थिर आर्डर मिलते हैं और इस वे कम वेतन भी देती हैं।
उपरोक्त कार्य-परिस्थितियाँ और श्रमिकों की कठिनाइयाँ भारत के अनेक औद्योगिक इकाइयों और सेवाओं में सामान्य बात हो गई है। आज अधिकांश श्रमिक असंगठित क्षेत्र में नियोजित हैं। यही नहीं, संगठित क्षेत्र में क्रमशः कार्य-परिस्थितियाँ असंगठित क्षेत्र के समान होती जा रही है। संगठित क्षेत्रक के श्रमिकों जैसे सुशीला को अब कोई संरक्षण और लाभ नहीं मिलता है, जिसका वह पहले उपभोग करती थी।
आओ-इन पर विचार करे
- वस्त्र उद्योग के श्रमिकों, भारतीय निर्यातकों और विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को प्रतिस्पर्धा ने किस प्रकार प्रभावित किया है?
- वैश्वीकरण से मिले लाभों में श्रमिकों को न्यायसंगत हिस्सा मिल सके, इसके प्रत्येक निम्न वर्ग क्या कर सकता है?
(क) सरकार
(ख) निर्यातक फैक्ट्रियों के नियोक्ता
(ग) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ
(घ) श्रमिक
- वर्तमान समय में भारत में बहस है कि क्या कंपनियों को रोज़गार नीतियों के मुद्दे पर लचीलापन अपनाना चाहिए। इस अध्याय के आधार पर नियोक्ताओं और श्रमिकों के पक्षों का संक्षिप्त विवरण दें।
न्यायसंगत वैश्वीकरण के संघर्ष
उपर्युक्त प्रमाण यह संकेत करते हैं कि वैश्वीकरण सभी के लाभप्रद नहीं रहा है। शिक्षित, कुशल और संपन्न लोगों ने वैश्वीकरण से मिले नये अवसरों का सर्वोत्तम उपयोग किया है। दूसरी ओर, अनेक लोगों को लाभ में हिस्सा नहीं मिला है।
चूँकि वैश्वीकरण अब एक सच्चाई है, तो वैश्वीकरण को अधिक ‘न्यायसंगत’ कैसे बनाया जा सकता है? न्यायसंगत वैश्वीकरण सभी के अवसर प्रदान करेगा और यह सुनिश्चित भी करेगा कि वैश्वीकरण के लाभों में सबकी बेहतर हिस्सेदारी हो।
सरकार इसे संभव बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसकी नीतियों को केवल धनी और प्रभावशाली लोगों को ही नहीं बल्कि देश के सभी लोगों के हितों का संरक्षण करना चाहिए। आपने सरकार द्वारा किए जाने वाले कुछ उपायों के बारे में पढ़ा है। जैसे, सरकार यह सुनिश्चित कर सकती है कि श्रमिक कानूनों का उचित कार्यान्वयन हो और श्रमिकों को अपने अधिकार मिले। यह छोटे उत्पादकों को कार्य-निष्पादन में सुधार के उस समय तक मदद कर सकती है, जब तक वे प्रतिस्पर्धा के सक्षम न हो जायें। यदि जरूरी हुआ तो सरकार व्यापार और निवेश अवरोधकों का उपयोग कर सकती है। यह ‘न्यायसंगत नियमों’ के विश्व व्यापार संगठन से समझौते भी कर सकती है। विश्व व्यापार संगठन में विकसित देशों के वर्चस्व के विरुद्ध समान हितों वाले विकासशील देशों को मिलकर लड़ना होगा।
विगत कुछ वर्षों में, बड़े अभियानों और जनसंगठनों के प्रतिनिधियों ने विश्व व्यापार संगठन के व्यापार और निवेश से संबंधित महत्त्वपूर्ण निर्णयों को प्रभावित किया है। यह प्रदर्शित करता है कि जनता भी न्यायसंगत वैश्वीकरण के संघर्ष में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
*हांगकांग में डब्लू.टी.ओ. के खिलाफ प्रदर्शन-2005*
सारांश
इस अध्याय में हमने वैश्वीकरण की वर्तमान अवस्था का अध्ययन किया। वैश्वीकरण विभिन्न देशों के बीच तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया है। यह अधिकाधिक विदेशी निवेश और विदेश व्यापार के द्वारा संभव हो रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ वैश्वीकरण की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका निभा रही हैं। अधिक से अधिक बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विश्व के उन स्थानों की खोज कर रही हैं, जो उनके उत्पादन के ज़्यादा सस्ते हों। परिणामतः उत्पादन कार्य जटिल ढंग से संगठित किया जा रहा है।
देशों के बीच उत्पादन को संगठित करने में प्रौद्योगिकी, विशेषकर सूचना प्रौद्योगिकी ने एक बड़ी भूमिका निभायी है। साथ ही, व्यापार और निवेश के उदारीकरण ने व्यापार और निवेश अवरोधकों को हटाकर वैश्वीकरण को सुगम बनाया है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर, विश्व व्यापार संगठन ने व्यापार और निवेश के उदारीकरण के विकासशील देशों पर दबाव डाला है।
जबकि वैश्वीकरण से धनी उपभोक्ता और कुशल, शिक्षित एवं धनी उत्पादक ही लाभान्वित हुए हैं परन्तु बढ़ती प्रतिस्पर्धा से अनेक छोटे उत्पादक और श्रमिक प्रभावित हुए हैं। न्यायसंगत वैश्वीकरण सभी के अवसरों का सृजन करेगा और यह भी सुनिश्चित करेगा कि वैश्वीकरण के लाभों में सभी की बेहतर हिस्सेदारी हो।
अभ्यास
- वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
- भारत सरकार द्वारा विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर अवरोधक लगाने के क्या कारण थे? इन अवरोधकों को सरकार क्यों हटाना चाहती थी?
- श्रम कानूनों में लचीलापन कंपनियों को कैसे मदद करेगा?
- दूसरे देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ किस प्रकार उत्पादन या उत्पादन पर नियंत्रण स्थापित करती है?
- विकसित देश, विकासशील देशों से उनके व्यापार और निवेश का उदारीकरण क्यों चाहते हैं? क्या आप मानते हैं कि विकासशील देशों को भी बदले में ऐसी माँग करनी चाहिए?
- ‘वैश्वीकरण का प्रभाव एक समान नहीं है’। इस कथन की अपने शब्दों में व्याख्या कीजिए।
- व्यापार और निवेश नीतियों का उदारीकरण वैश्वीकरण प्रक्रिया में कैसे सहायता पहुँचाती हैं?
- विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों के एकीकरण में किस प्रकार मदद करता है? यहाँ दिए गए उदाहरण से भिन्न उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
- वैश्वीकरण भविष्य में जारी रहेगा। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आज से बीस वर्ष बाद विश्व कैसा होगा? अपने उत्तर का कारण दीजिए।
- मान लीजिए कि आप दो लोगों को तर्क करते हुए पाते हैं - एक कह रहा है कि वैश्वीकरण ने हमारे देश के विकास को क्षति पहुँचाई है, दूसरा कह रहा है कि वैश्वीकरण ने भारत के विकास में सहायता की है। इन लोगों को आप कैसे जवाब दोगे?
- रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए -
दो दशक पहले की तुलना में भारतीय खरीददारों के पास वस्तुओं के अधिक विकल्प हैं। यह ………………की प्रक्रिया से नजदीक से जुड़ा हुआ है। अनेक दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं को भारत के बाज़ारों में बेचा जा रहा है। इसका अर्थ है कि अन्य देशों के साथ………………. बढ़ रहा है। इससे भी आगे भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा उत्पादित ब्रांडों की बढ़ती संख्या हम बाज़ारों में देखते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारत में निवेश कर रही है क्योंकि ……………………। जबकि बाज़ार में उपभोक्ताओं के अधिक विकल्प इस बढ़ते ………………..और……………… के प्रभाव का अर्थ है उत्पादकों के बीच अधिकतम…………………….
- निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए -
(क) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ छोटे उत्पादकों से सस्ते दरों पर खरीदती हैं। (अ) मोटर गाड़ियों
(ख) आयात पर कर और कोटा का उपयोग, व्यापार नियमन (ब) कपड़ा, जूते-चप्पल, खेल के सामान के किया जाता है।
(ग) विदेशों में निवेश करने वाली भारतीय कंपनियाँ (स) कॉल सेंटर
(घ) आई. टी. ने सेवाओं के उत्पादन के प्रसार में सहायता की है। (द) टाटा मोटर्स, इंफोसिस रैनबैक्सी
(ङ) अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ ने उत्पादन करने के निवेश किया है। (य) व्यापार अवरोधक
- सही विकल्प का चयन कीजिए -
(अ) वैश्वीकरण के विगत दो दशकों में द्रुत आवागमन देखा गया है
(क) देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं और लोगों का
(ख) देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं और निवेशों का
(ग) देशों के बीच वस्तुओं, निवेशों और लोगों का
(आ) विश्व के देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा निवेश का सबसे अधिक सामान्य मार्ग है
(क) नये कारखानों की स्थापना
(ख) स्थानीय कंपनियों को खरीद लेना
(ग) स्थानीय कंपनियों से साझेदरारी करना
(इ) वैश्वीकरण ने जीवन-स्तर के सुधार में सहायता पहुँचाई है।
(क) सभी लोगों के
(ख) विकसित देशों के लोगों के
(ग) विकासशील देशों के श्रमिकों के
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
अतिरिक्त परियोजना/कार्यकलाप
- कुछ ब्रांडेड उत्पादों को लीजिए, जिनका हम रोजाना इस्तेमाल करते हैं (साबुन, टूथपेस्ट, कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ इत्यादि)। जाँच कीजिए कि इनमें से कौन-कौन बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा उत्पादित हैं।
- अपनी पसंद के किसी भी भारतीय उद्योग या सेवा को लीजिए। उद्योग के निम्नलिखित पहलुओं पर लोगों के साक्षात्कारों, समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं की कतरनों, पुस्तकों, दूददर्शन एवं इंटरनेट से जानकारियाँ और फोटो संकलित कीजिए -
(क) उद्योग में विविध उत्पदक/कंपनियाँ।
(ख) क्या उत्पाद अन्य देशों को निर्यात होता है?
(ग) क्या उत्पादकों के बीच बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ हैं?
(घ) उद्योग में प्रतिस्पर्धा।
(ङ) उद्योग में कार्य-परिस्थितियाँ।
(च) क्या विगत पंद्रह वर्षों में उद्योग में कोई बड़ा बदलाव आया है?
(छ) उद्योग में कार्यरत लोगों की समस्याएँ।