अध्याय 01 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय
चित्र 1 - फ्रेडरिक सॉरयू, विश्वव्यापी प्रजातांत्रिक और सामाजिक गणराज्यों का स्वप्न-राष्ट्रों के बीच संधि, 1848
1848 में, एक फ़्रांसिसी कलाकार फ़्रेड्रिक सॉरयू ने चार चित्रों की एक श्रृंखला बनाई। इनमें उसने सपनों का एक संसार रचा जो उसके शब्दों में ‘जनतांत्रिक और सामाजिक गणतंत्रों’ से मिल कर बना था। इस शृंखला के पहले चित्र (देखें चित्र 1) में यूरोप और अमेरिका के लोग दिखाए गए हैं - सभी उम्र और सामाजिक वर्गों के स्त्री-पुरुष एक लंबी कतार में स्वतंत्रता की प्रतिमा की वंदना करते हुए जा रहे हैं। आपको याद होगा कि फ़्रांसीसी क्रांति के दौरान कलाकार स्वतंत्रता को महिला का रूप प्रदान किया करते थे। यहाँ भी आप ज्ञानोदय की मशाल को पहचान सकते हैं जो उसके एक हाथ में है और दूसरे में मनुष्य के अधिकारों का घोषणापत्र। प्रतिमा के सामने ज़मीन पर निरंकुश संस्थानों के ध्वस्त अवशेष बिखरे हुए हैं। सॉरयू के कल्पनादर्श (युटोपिया) में दुनिया के लोग अलग राष्ट्रों के समूहों में बँटे हुए हैं जिनकी पहचान उनके कपड़ों और राष्ट्रीय पोशाक से होती है। स्वतंत्रता की मूर्ति से कहीं आगे, इस जुलूस का नेतृत्व कर रहे हैं संयुक्त राज्य अमेरिका और स्विट्ज्ररलैंड, जो तब तक राष्ट्र-राज्य बन चुके थे। फ़ांस जो क्रांतिकारी तिरंगे से पहचाना जा सकता है, प्रतिमा के पास
नए शब्द
निरंकुशवाद (Absolutism) : ऐसी सरकार या शासन व्यवस्था जिसकी सत्ता पर किसी प्रकार का कोई अंकुश नहीं होता। इतिहास में ऐसी राजशाही सरकारों को निरंकुश सरकार कहा जाता है जो अत्यंत केंद्रीकृत, सैन्य बल पर आधारित और दमनकारी सरकारें होती थीं।
कल्पनादर्श (युटोपिया) : एक ऐसे समाज की कल्पना जो इतना आदर्श है कि उसका साकार होना लगभग असंभव होता है।
गतिविधि
आपकी राय में चित्र 1 किस प्रकार एक कल्पनादर्शी दृष्टि को प्रतिबिंबित करता है?
अभी-अभी पहुँचा है। उसके पीछे जर्मनी के लोग हैं जो काला, लाल और सुनहरा झंडा थामे हैं। यह दिलचस्प है कि जिस समय सॉरयू ने यह छवि निर्मित की, जर्मन लोग तब तक एक संयुक्त राष्ट्र का हिस्सा नहीं बने थे। जो झंडा वे थामे हुए हैं, वह 1848 की उदारवादी उम्मीदों की अभिव्यक्ति है जिनमें अनेक जर्मन-भाषी रियासतों को एक प्रजातांत्रिक संविधान के अंतर्गत एक राष्ट्र-राज्य में गठित करने की चाह थी। जर्मन लोगों के बाद ऑस्ट्रिया, दो सिसिलियों की राजशाही, लॉम्बार्डी, पोलैंड, इंग्लैंड, आयरलैंड, हंगरी और रूस के लोग हैं। ऊपर स्वर्ग से, ईसा मसीह, संत और फ़रिश्ते इस दृश्य पर अपनी नज़रें जमाए हुए हैं। चित्रकार ने उनका इस्तेमाल दुनिया के राष्ट्रों के बीच भाईचारे के प्रतीक के रूप में किया है।
इस अध्याय में ऐसे कई विषय उठाए जाएँगे जिनकी काल्पनिक अभिव्यक्ति सॉरयू ने चित्र 1 में की थी। उन्नीसवों सदी के दौरान राष्ट्रवाद एक ऐसी ताक़त बन कर उभरा जिसने यूरोप के राजनीतिक और मानसिक जगत में भारी परिवर्तन ला दिये। इन परिवर्तनों से अंततः यूरोप के बहु-राष्ट्रीय वंशीय साम्राज्यों के स्थान पर राष्ट्र-राज्य का उदय हुआ। यूरोप में लंबे समय से एक ऐसे आधुनिक राज्य की गतिविधियाँ और विचार विकसित हो रहे थे जिसमें स्पष्ट रूप से परिभाषित क्षेत्र पर प्रभुसत्ता एक केंद्रीय शक्ति की थी। लेकिन राष्ट्र-राज्य में न केवल उसके शासकों बल्कि उसके अधिकांश नागरिकों में एक साझा पहचान का भाव और साझा इतिहास या विरासत की भावना थी। साझेपन की यह भावना अनंत काल से नहीं थी; यह संघर्षों और नेताओं तथा आम लोगों की सरगर्मियों से निर्मित हुई थी। यह अध्याय उन विविध प्रक्रियाओं पर प्रकाश डालेगा जिनके तहत उन्नीसवों सदी के यूरोप में राष्ट्र-राज्य और राष्ट्रवाद अस्तित्व में आए।
अर्स्ट रेनन ( Ernst Renan ) ‘राष्ट्र क्या है?’
फ़ांसीसी दार्शिकिक अर्स्ट रेनन (1823-92) ने 1882 में सॉबॉन (Sorbonne) विश्वविद्यालय में दिए एक व्याख्यान में राष्ट्र की अपनी समझ को प्रस्तुत किया। बाद में यह व्याख्यान एक प्रसिद्ध निबंध के रूप में छपा जिसका शीर्षक था (Gu’est-ce qu’ une nation?-राष्ट्र क्या हैं?)। इस निबंध में रेन अन्य लोगों द्वारा प्रस्तावित इस विचार की आलोचना करता है कि राष्ट्र समान भाषा, नस्ल, धर्म या क्षेत्र से बनता है।
एक राष्ट्र लंबे प्रयासों, त्याग और निष्ठा का चरम बिंदु होता है। शौर्य-वीरता से युक्त अतीत, महान पुरुों के नाम और गौरव यह वह सामाजिक पूँजी है जिस पर एक राष्ट्रीय विचार आधारित किया जाता है। अतीत में समान गौरव का होना, वर्तमान में एक समान इच्छा, संकल्प का होना, साथ मिल कर महान काम करना और आगे, ऐसे काम और करने की इच्छा - एक जनसमूह होने की यह सब ज़ूरी शर्ते हैं। अतः राष्ट्र एक बड़ी और व्यापक एकता (Large-Scale Solidarity) है… उसका अस्तित्व रोज़ होने वाला जनमत-संग्रह है…। प्रांत उसके निवासी हैं; अगर सलाह जाने का किसी का अधिकार है तो वह निवासी ही है, किसी देश का विलय करने या किसी देश पर उसकी इच्छा के विरुद्ध क़ब्जा जमाए रखने में एक राष्ट्र की वास्तव में कोई दिलचस्पी होती नहीं है। राष्ट्रों का अस्तित्व में होना एक अच्छी बात है, बल्कि यह एक ज़रूरत भी है। उनका होना स्वतंत्रता की गारंटी है और अगर दुनिया में केवल एक क्रानून और उसका केवल एक मालिक होता तो स्वतंत्रता का लोप हो जाएगा।
नए शब्द
जनमत-संग्रह : एक प्रत्यक्ष मतदान जिसके ज़रिए एक क्षेत्र के सभी लोगों से एक प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार करने के पूछा जाता है।
चर्चा करें
रेनन की समझ के अनुसार एक राष्ट्र की विशेषताओं का संक्षिप्त विवरण दें। उसके मतानुसार राष्ट्र क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?
1 फ्रांसीसी क्रांति और राष्ट्र का विचार
राष्ट्रवाद की पहली स्पष्ट अभिव्यक्ति 1789 में फ़्रांसीसी क्रांति के साथ हुई। जैसा कि आपको याद होगा, 1789 में फ़्रांस एक ऐसा राज्य था जिसके संपूर्ण भू-भाग पर एक निरंकुश राजा का आधिपत्य था। फ्रांसीसी क्रांति से जो राजनीतिक और संवैधानिक बदलाव हुए उनसे प्रभुसत्ता राजतंत्र से निकल कर फ़्रांसीसी नागरिकों के समूह में हस्तांतरित हो गई। क्रांति ने घोषणा की कि अब लोगों द्वारा राष्ट्र का गठन होगा और वे ही उसकी नियति तय करेंगे।
प्रारंभ से ही फ़ांसीसी क्रांतिकारियों ने ऐसे अनेक क़दम उठाए जिनसे फ़ांसीसी लोगों में एक सामूहिक पहचान की भावना पैदा हो सकती थी। पितृभूमि (la patrie) और नागरिक (le citoyen) जैसे विचारों ने एक संयुक्त समुदाय के विचार पर बल दिया जिसे एक संविधान के अंतर्गत समान अधिकार प्राप्त थे।
अतः एक नया फ्रांसीसी झंडा-तिरंगा (the tricolour) चुना गया जिसने पहले के राजध्वज की जगह ले ली। इस्टेट जेनरल का चुनाव सक्रिय नागरिकों के समूह द्वारा किया जाने लगा और उसका नाम बदल कर नेशनल एसेंबली कर दिया गया। नयी स्तुतियाँ रची गईं, शपथें ली गई, शहीदों का गुणगान हुआ - और यह सब राष्ट्र के नाम पर हुआ। एक केंद्रीय प्रशासनिक व्यवस्था लागू की गई जिसने अपने भू-भाग में रहने वाले सभी नागरिकों के समान क़ानून बनाए। आंतरिक आयात-निर्यात शुल्क समाप्त कर दिए गए और भार तथा नापने की एकसमान व्यवस्था लागू की गई। क्षेत्रीय बोलियों को हतोत्साहित किया गया और पेरिस में फ्रेंच जैसी बोली और लिखी जाती थी, वही राष्ट्र की साझा भाषा बन गई।
क्रांतिकारियों ने यह भी घोषणा की कि फ़्रांसीसी राष्ट्र का यह भाग्य और लक्ष्य था कि वह यूरोप के लोगों को निरंकुश शासकों से मुक्त कराए। दूसरे शब्दों में, फ़्रांस यूरोप के अन्य लोगों को राष्ट्रों में गठित होने में मदद देगा। जब फ़ांस की घटनाओं की ख़बर यूरोप के विभिन्न शहरों में पहुँची तो छात्र तथा शिक्षित मध्य-वर्गों के अन्य सदस्य जैकोबिन क्लबों की स्थापना करने लगे। उनकी गतिविधियों और अभियानों ने उन फ्रेंच सेनाओं के रास्ता तैयार किया जो 1790 के दशक में हॉलैंड, बेल्जियम, स्विट्ज़रलैंड और इटली के बड़े इलाके में घुसीं। क्रांतिकारी युद्धों के शुरू होने के साथ ही फ़ांसीसी सेनाएँ राष्ट्रवाद के विचार को विदेशों में ले जाने लगीं।
चित्र 2 - एक जर्मन पंचाँग ( या तिथिपत्र) का मुखपृष्ठ
जिसे पत्रकार ऐंड्रियास रेबमान (Rebmann) ने 1798 में डिज़ाइन किया।
फ्रेंच बास्टील में क्रांतिकारी भीड़ के प्रवेश के चित्र को उससे मिलते-जुलते क़िले की बग़ल में बनाया गया है। यह क़िला जर्मन प्रांत कैसेल (Kassel) में निरकुुश शासन के गढ़ के रूप में चित्रित है। इस चित्र के साथ एक नारा दिया गया : “लोगों को अपनी आज़ादी मुट्ठी में कर लेनी चाहिए।” रेबमान एक पत्रकार था जो मेंज़ नामक शहर में रहता था। वह जर्मन जंकोबिन गुट का सदस्य था।
नेपोलियन के नियंत्रण में जो विशाल क्षेत्र आया वहाँ उसने ऐसे अनेक सुधारों की शुरुआत की जिन्हें फ़ांस में पहले ही आरंभ किया जा चुका था। फ़्रांस में राजतंत्र वापस लाकर नेपोलियन ने निःसंदेह वहाँ प्रजातंत्र को नष्ट
चित्र 3 - वियना कांग्रेस 1815 के बाद का यूरोप।
किया था। मगर प्रशासनिक क्षेत्र में उसने क्रांतिकारी सिद्धांतों का समावेश किया था ताकि पूरी व्यवस्था अधिक तर्कसंगत और कुशल बन सके। 1804 की नागरिक संहिता जिसे आमतौर पर नेपोलियन की संहिता के नाम से जाना जाता है, ने जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए थे। उसने क़ानून के समक्ष बराबरी और संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया। इस संहिता को फ़्रांसीसी नियंत्रण के अधीन क्षेत्रों में भी लाग किया गया। डच गणतंत्र, स्विट्ज़रलैंड, इटली और जर्मनी में नेपोलियन ने प्रशासनिक विभाजनों को सरल बनाया, सामंती व्यवस्था को खत्म किया और किसानों को भु-दासत्व और जागीरदारी शुल्कों से मुक्ति दिलाई। शहरों में भी कारीगरों के श्रेणी-संघों के नियंत्रणों को हटा दिया गया। यातायात और संचार-व्यवस्थाओं को सुधारा गया। किसानों, कारीगरों, मज़दूरों और नए उद्योगपतियों ने नयी-नयी मिली आज़ादी चखी। उद्योगपतियों और ख़ासतौर पर समान बनाने वाले लघु उत्पादक यह समझने लगे कि एकसमान क़ानून,
चित्र 4 - ज़्वेब्रकेन, ज़र्मनी में, स्वतंत्रता के वृक्ष का रोपण।
जर्मन चित्रकार कार्लकैस्पर फ़्रिट्ज़ द्वारा बनाए गए इस रंगीन चित्र का विषय फ़्रेंच सेनाओं द्वारा ज़्वेब्रकेन शहर पर क़ब्ज़ा है। अपनी नीली, सफेद और लाल पोशाकों से पहचाने जाने वाले फ़ांसीसी सैनिकों को दमनकारियों के रूप में प्रस्तुत किया है जो एक किसान की गाड़ी (बाएँ) छीनते हुए कुछ युवा महिलाओं को तंग कर रहे हैं (बीच का अग्रभाग) और एक किसान को घुटने टेकने पर मजबूर कर रहे हैं। स्वतंत्रता के वृक्ष पर लगाई जा रही पट्टी पर जर्मन में लिखा है, उसका अनुवाद है : “हमसे आज़ादी और समानता ले लो - यह मानवता का आदर्श रूप है।” यह फ़्रांसीसियों के इस दावे पर व्यंग्य है कि वे जिन इलाक़ों में जाते थे वहाँ राजतंत्र का विरोध कर मुक्तिदाता बन जाते थे।
मानक भार तथा नाप और एक राष्ट्रीय मुद्रा से एक इलाके से दूसरे इलाके में वस्तुओं और पूँजी के आवागमन में सहूलियत होगी।
लेकिन जीते हुए इलाक़ों में स्थानीय लोगों की फ़ांसीसी शासन के प्रति मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ थीं। शुरुआत में अनेक स्थानों जैसे हॉलैंड और स्विट्ज़रलैंड और साथ ही कई शहरों जैसे - ब्रसेल्स, मेंज़, मिलान और वॉरसा में फ़्रांसीसी सेनाओं का स्वतंत्रता का तोहफ़ा देने वालों की तरह स्वागत किया गया। मगर यह शुरुआती उत्साह शीघ्र ही दुश्मनी में बदल गया जब यह साफ़ होने लगा कि नयी प्रशासनिक व्यवस्थाएँ राजनीतिक स्वतंत्रता के अनुरूप नहों थीं। बढ़े हुए कर, सेंसरशिप और बाक़ी यूरोप को जीतने के फ्रिंच सेना में जबरन भर्ती से हो रहे नुकसान प्रशासनिक परिवर्तनों से मिले फ़ायदों से कहीं ज़्यादा नज़र आने लगे।
चित्र 5 - राइनलैंड का डाकिया लाइप्सिग से आते हुए सब कुछ गावा देता है।
यहाँ नेपोलियन को 1813 में लाइप्सिग की लड़ाई हारकर फ्रांस लौटते हुए डाकिए के रूप में दर्शाया गया है। उसके झोले से गिरती हर चिट्ठी पर उन भूभागों के नाम लिखे हैं जिन्हें अब वह हार चुका है।
2 यूरोप में राष्ट्रवाद का निर्माण
अगर आप मध्य अठारहवीं सदी के यूरोप के नक्शे को देखें तो उसमें वैसे ‘राष्ट्र-राज्य’ नहीं मिलेंगे जैसे कि आज हैं। जिन्हें आज हम जर्मनी, इटली और स्विट्ज़रलैंड के रूप में जानते हैं वे तब राजशाहियों, डचियों (duchies) और कैंटनों (cantons) में बँटे हुए थे, जिनके शासकों के स्वायत्त क्षेत्र थे। पूर्वी और मध्य यूरोप निरंकुश राजतंत्रों के अधीन थे और इन इलाक़ों में तरह-तरह के लोग रहते थे। वे अपने आप को एक सामूहिक पहचान या किसी समान संस्कृति का भागीदार नहीं मानते थे। अकसर वे अलग-अलग भाषाएँ बोलते थे और विभिन्न जातीय समूहों के सदस्य थे। उदाहरण के तौर पर, ऑस्ट्रिया-हंगरी पर शासन करने वाला हैब्सबर्ग साम्राज्य कई अलग-अलग क्षेत्रों और जनसमूहों को जोड़ कर बना था। इसमें ऐल्प्स के टिरॉल, ऑस्ट्रिया और सुडेटेनलैंड जैसे इलाक़ों के साथ-साथ बोहेमिया भी शामिल था जहाँ के कुलीन वर्ग में जर्मन भाषा बोलने वाले ज़्यादा थे। हैब्सबर्ग साम्राज्य में लॉम्बार्डी और वेनेशिया जैसे इतालवी-भाषी प्रांत भी शामिल थे। हंगरी में आधे लोग मैग्यार भाषा बोलते थे जबकि बाक़ी लोग विभिन्न बोलियों का इस्तेमाल करते थे। गालीसिया में कुलीन वर्ग पोलिश भाषा बोलता था। इन प्रभावशाली समूहों के अलावा, हैब्सबर्ग साम्राज्य की सीमा रेखाओं के भीतर भारी संख्या में खेती करने वाले लोग अधीन अवस्था में रहते थे- जैसे उत्तर में बोहेमियन और स्लोवाक, कार्निओला में स्लोवेन्स, दक्षिण में क्रोएट तथा पूरब की तरफ़ ट्रांसिल्वेनिया में रहने वाले राउमन लोग। ऐसा फ़र्क़ राजनीतिक एकता को आसानी से बढ़ावा देने वाला नहीं था। इन तरह-तरह के समूहों को आपस में बाँधने वाला तत्व, केवल सम्राट के प्रति सबकी निष्ठा थी।
राष्ट्रवाद और राष्ट्र-राज्य का विचार कैसे उभरा?
कुछ महत्त्वपूर्ण तिथियाँ
1797
नेपोलियन का इटली पर हमला; नेपोलियाई युद्धों की शुरूआत
1814-1815
नेपोलियन का पतन; वियना शांति संधि
1821
यूनानी स्वतंत्रता के संघर्ष प्रारंभ
1848
फ्रांस में क्रांति; आर्धिक परेशानियों से ग्रस्त कारीगरों, औद्योगिक मजदूरों और किसानों की बग़ावत; मध्यवर्ग संविधान और प्रतिनिध्यात्मक सरकार के गठन की माँग करता है; इतालवी, जर्मन, मैग्यार, पोलिश, चेक आदि राष्ट्र राज्यों की मांग करते हैं
1859-1870
इटली का एकीकरण
1866-1871
जर्मनी का एकीकरण
1905
हैब्सबर्ग और ऑटोमन साम्राज्यों में स्लाव राष्ट्रवाद मज़बूत होता है।
2.1 कुलीन वर्ग और नया मध्यवर्ग
सामाजिक और राजनीतिक रूप से ज़मीन का मालिक कुलीन वर्ग यूरोपीय महाद्वीप का सबसे प्रभुत्वशाली वर्ग था। इस वर्ग के सदस्य एक साझा जीवन शैली से बँधे हुए थे जो क्षेत्रीय विभाजनों के आर-पार व्याप्त थी। वे ग्रामीण इलाकों में जायदाद और शहरी-हवेलियों के मालिक थे। राजनीतिक कार्यों के तथा उच्च वर्गों के बीच वे फ्रेंच भाषा का प्रयोग करते थे। उनके परिवार अकसर वैवाहिक बंधनों से आपस में जुड़े होते थे। मगर यह शक्तिशाली कुलीन वर्ग संख्या के लिहाज़ से एक छोटा समूह था। जनसंख्या के अधिकांश लोग कृषक थे। पश्चिम में ज़्यादातर ज़मीन पर किराएदार और छोटे काश्तकार खेती करते थे जबकि पूर्वी और मध्य यूरोप में भूमि विशाल जागीरों में बँटी थी जिस पर भूदास खेती करते थे।
पश्चिमी और मध्य यूरोप के हिस्सों में औद्योगिक उत्पादन और व्यापार में वृद्धि से शहरों का विकास और वाणिज्यिक वर्गों का उदय हुआ जिनका अस्तित्व बाज़ार के उत्पादन पर टिका था। इंग्लैंड में औद्योगीकरण अठारहवीं सदी के दूसरे भाग में आरंभ हुआ लेकिन फ़ांस और जर्मनी के राज्यों के कुछ हिस्सों में यह उन्नीसवों शताब्दी के दौरान ही हुआ। इस प्रक्रिया के फलस्वरूप नए सामाजिक समूह अस्तित्व में आए श्रमिक-वर्ग के लोग और मध्य वर्ग जो उद्योगपतियों, व्यापारियों और सेवा क्षेत्र के लोगों से बने। मध्य और पूर्वी यूरोप में इन समूहों का आकार उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशकों तक छोटा था। कुलीन विशेषाधिकारों की समाप्ति के बाद शिक्षित और उदारवादी मध्य वर्गों के बीच ही राष्ट्रीय एकता के विचार लोकप्रिय हुए।
2.2 उदारवादी राष्ट्रवाद के क्या मायने थे?
यूरोप में उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में राष्ट्रीय एकता से संबंधित विचार उदारवाद से करीब से जुड़े थे। उदारवाद यानी liberalism शब्द लातिन भाषा के मूल liber पर आधारित है जिसका अर्थ है ‘आज़ाद’। नए मध्य वर्गों के उदारवाद का मतलब था व्यक्ति के आज़ादी और क़ानून के समक्ष सबकी बराबरी। राजनीतिक रूप से उदारवाद एक ऐसी सरकार पर ज़ोर देता था जो सहमति से बनी हो। फ़ांसीसी क्रांति के बाद से उदारवाद निरकुश शासक और पादरीवर्ग के विशेषाधिकारों की समाप्ति, संविधान तथा संसदीय प्रतिनिधि सरकार का पक्षधर था। उन्नीसवीं सदी के उदारवादी निजी संपत्ति के स्वामित्व की अनिवार्यता पर भी बल देते थे। लेकिन यह ज़रूरी नहीं था कि क़ानून के समक्ष बराबरी का विचार सबके मताधिकार (suffrage) के पक्ष में था। आप याद करें कि क्रांतिकारी फ़ांस उदारवादी प्रजातंत्र का पहला राजनीतिक प्रयोग था और वहाँ मत देने और चुने जाने का अधिकार केवल संपत्तिवान पुरुषों को ही हासिल था। संपत्ति-विहीन पुरुष और सभी महिलाओं को राजनीतिक अधिकारों से वंचित रखा गया था। केवल थोड़े समय के जैकोबिन शासन के समय सभी वयस्क पुरुषों को मताधिकार प्राप्त था। मगर नेपोलियन की संहिता पुनः सीमित मताधिकार वापस आई और उसने महिलाओं को अवस्यक दर्जा देते हुए उन्हें पिताओं और पतियों के अधीन कर दिया। संपूर्ण उन्नीसवों सदी तथा बीसवों सदी के आरंभिक वर्षों में महिलाओं और संपत्ति-विहीन पुरुषों ने समान राजनीतिक अधिकारों की माँग करते हुए विरोध-आंदोलन चलाए।
आर्थिक क्षेत्र में, उदारवाद, बाज़ारों की मुक्ति और चीज़ों तथा पूँजी के आवागमन पर राज्य द्वारा लगाए गए नियंत्रणों को खत्म करने के पक्ष में था। उन्नीसवों सदी के दौरान, उभरते हुए मध्य वर्गों की यह ज़ोरदार माँग थी। आइए, हम उन्नीसवीं सदी के पहले भाग में जर्मन-भाषी इलाक़ों का उदाहरण लें। नेपोलियन के प्रशासनिक क़दमों से अनगिनत छोटे प्रदेशों से 39 राज्यों का एक महासंघ बना। इनमें से प्रत्येक की अपनी मुद्रा और नाप-तौल प्रणाली थी। 1833 में हैम्बर्ग से न्यूरेम्बर्ग जा कर अपना माल बेचने वाले एक व्यापारी को ग्यारह सीमाशुल्क नाकों से गुज़रना पड़ता था
और हर बार लगभग $5 %$ सीमाशुल्क देना पड़ता था। शुल्क अकसर वस्तुओं का वज़न या आकार के अनुसार लगाए जाते थे। चूँकि हर क्षेत्र की अपनी नाप-तौल व्यवस्था थी अतः हिसाब लगाने में समय लगता था। मसलन कपड़े को नापने का पैमाना ऐले (elle) था जिसकी लंबाई जगह बदलने के साथ घटती-बढ़ती थी। अगर एक एल कपड़ा फ़्रैंकफ़र्ट में खरीदा जाता तो 54.7 सेंटीमीटर मिलता, मेंज़ (Mainz) में 55.1 सेंटीमीटर, न्यूरेम्बर्ग में 65.6 सेंटीमीटर और फ्राईईर्ग में 53.5 सेंटीमीटर।
नए वाणिज्यिक वर्ग ऐसी परिस्थितियों को आर्भिक विनिमय और विकास में बाधक मानते हुए एक ऐसे एकीकृत आर्थिक क्षेत्र के निर्माण के पक्ष में तर्क दे रहा था जहाँ वस्तुओं, लोग और पूँजी का आवागमन बाधारहित हो। 1834 में प्रशा की पहल पर एक शुल्क संघ ज़ॉलवेराइन (Zollverein) स्थापित किया गया जिसमें अधिकांश जर्मन राज्य शामिल हो गए। इस संघ ने शुल्क अवरोधों को समाप्त कर दिया और मुद्राओं की संख्या दो कर दी जो उससे पहले तीस से ऊपर थी। इसके अलावा रेलवे के जाल ने गतिशीलता बढ़ाई और आर्धिक हितों को राष्ट्रीय एकीकरण का सहायक बनाया। उस समय पनप रही व्यापक राष्ट्रवादी भावनाओं को आर्थिक राष्ट्रवाद की लहर ने मज़बूत बनाया।
अर्थशास्त्री राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की शब्दावली में सोचने लगे। वे चर्चा करने लगे कि राष्ट्र कैसे विकास कर सकता है और कौन से आर्थिक क़दम राष्ट्र को निर्मित करने में मदद दे सकते हैं।
ज़र्मनी के ट्यूबिंजन विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर फ्रुइडरीख लिस्ट (Friedrich List) ने 1834 में लिखा:
ज़ॉल्वेराइन का लक्ष्य जर्मन लोगों को आर्थिक रूप में एक राष्ट्र में बाँध देना है। वह राष्ट्र की आर्थिक हालत जितना बाहरी तरह से उसके हितों की रक्षा करके मज़बूत बनाएगा, उतना ही आंतरिक उत्पादकता को बढ़ा कर भी। उसे प्रांतीय हितों को आपस में जोड़ कर राष्ट्रीय भावना को जगाना और उठाना चाहिए। जर्मन लोग यह समझ गए हैं कि एक मुक्त आर्थिक व्यवस्था ही राष्ट्रीय भावनाओं के उत्पन्न होने का एकमात्र ज़रिया है।
चर्चा करें
उन राजनीतिक उद्देश्यों का विवरण दें जिन्हें आर्थिक क़दमों द्वारा हासिल करने की उम्मीद लिस्ट को है।
2.3 1815 के बाद एक नया रूढ़िवाद
1815 में नेपोलियन की हार के बाद यूरोपीय सरकारें रूढ़िवाद की भावना से प्रेरित थीं। रूढ़िवादी मानते थे कि राज्य और समाज की स्थापित पारंपरिक संस्थाएँ; जैसे-राजतंत्र, चर्च, सामाजिक ऊँच-नीच, संपत्ति और परिवार को बनाए रखना चाहिए। फिर भी अधिकतर रूढ़िवादी लोग क्रांति से पहले के दौर में वापसी नहीं चाहते थे। नेपोलियन द्वारा शुरू किए गए परिवर्तनों से उन्होंने यह जान लिया था कि आधुनिकीकरण, राजतंत्र जैसी पारंपरिक संस्थाओं को मज़बूत बनाने में सक्षम था। वह राज्य की ताक़त को ज़्यादा कारगर और मज़बूत बना सकता था। एक आधुनिक सेना, कुशल नौकरशाही, गतिशील अर्थव्यवस्था, सामंतवाद और भूदासत्व की समाप्ति-यूरोप के निरंकुश राजतंत्रों को शक्ति प्रदान कर सकते थे।
नए शब्द
रूढ़िवाद : ऐसा राजनीतिक दर्शन जो पंरपरा, स्थापित संस्थानों और रिवाजों पर जोर देता है और तेज़ बदलावों की बजाय क्रमिक और धीरे-धीरे विकास को प्राथमिकता देता है।
1815 में, ब्रिटेन, रूस, प्रशा और ऑस्ट्रिया जैसी यूरोपीय शक्तियों जिन्होंने मिलकर नेपोलियन को हराया था - के प्रतिनिधि यूरोप के एक समझौता तैयार करने के वियना में मिले। इस सम्मेलन (Congress) की मेज़बानी ऑस्ट्रिया के चांसलर ड्यूक मैटरनिख ने की। इसमें प्रतिनिधियों ने 1815 को वियना संधि (Treaty of Vienna) तैयार की जिसका उद्देश्य उन कई सारे बदलावों को खत्म करना था जो नेपोलियाई युद्धों के दौरान हुए थे। फ़ांसीसी क्रांति के दौरान हटाए गए बूर्बों वंश को सत्ता में बहाल किया गया और फ़ांस ने उन इलाक़ों को खो दिया जिन पर क़ब्ज़ा उसने नेपोलियन के अधीन किया गया था। फ़ांस की सीमाओं पर कई राज्य क़ायम कर दिए गए ताकि भविष्य में फ़ांस विस्तार न कर सके।
अतः उत्तर में नीदरलैंड्स का राज्य स्थापित किया। जिसमें बेल्जियम शामिल था और दक्षिण में पीडमॉण्ट में जेनोआ जोड़ दिया गया। प्रशा को उसकी पश्चिमी सीमाओं पर महत्त्वपूर्ण नए इलाके दिए गए जबकि ऑस्ट्रिया को उत्तरी इटली का नियंत्रण सौंपा गया। मगर नेपोलियन ने 39 राज्यों का जो जर्मन महासंघ स्थापित किया था, उसे बरक़रार रखा गया। पूर्व में रूस को पोलैंड का एक हिस्सा दिया गया जबकि प्रशा को सैक्सनी का एक हिस्सा प्रदान किया गया। इस सबका मुख्य उद्देश्य उन राजतंत्रों की बहाली था जिन्हें नेपोलियन ने बर्खास्त कर दिया था। साथ ही यूरोप में एक नयी रूढ़िवादी व्यवस्था कायम करने का लक्ष्य भी था।
1815 में स्थापित रूढ़िवादी शासन व्यवस्थाएँ निरंकुश थीं। वे आलोचना और असहमति बरदाश्त नहीं करती थीं और उन्होंने उन गतिविधियों को दबाना चाहा जो निरंकुश सरकारों की वैधता पर सवाल उठाती थीं। ज़्यादातर सरकारों ने सेंसराशिप के नियम बनाए जिनका उद्देश्य अखबारों, किताबों, नाटकों और गीतों में व्यक्त उन बातों पर नियंत्रण लगाना था जिनसे फ़ांसीसी क्रांति से जुड़े स्वतंत्रता और मुक्ति के विचार झलकते थे। लेकिन फिर भी फ़्रांसीसी क्रांति की स्मृति उदारवादियों को लगातार प्रेरित कर रही थी। नयी रूढ़िवादी व्यवस्था के आलोचक उदारवादी राष्ट्रवादियों द्वारा उठाया गया एक मुख्य मुद्धा था- प्रेस की आज़ादी।
गतिविधि
यूरोप के नक़्शे पर उन परिवर्तनों को चिहिनत करें जो वियना कांग्रेस के फलस्वरूप सामने आए।
चर्चा करें
व्यंग्यकार क्या दर्शाने का प्रयास कर रहा है?
चित्र 6 - चिंतकों का क्लब, 1820 के आसपास बनाया गया एक अनाम व्यंग्य चित्र।
बाईं तरफ़ की पद्टी पर लिखा है : ‘आज की बैठक का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न हैं : हमें कब तक सोचने दिया जाएगा?’ दाईं तरफ़ बोर्ड पर क्लब के नियमों की सूची है जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं :‘1. इस पढ़-लिखे समाज का पहला नियम है ख़ामोशी।
‘2. ऐसी किसी स्थिति से बचने के जब इस क्लब का कोई सदस्य बोलने के लोभ का शिकार हो जाए, सदस्यों को प्रवेश करने पर मुँह बंद रखने वाले मोहरे (Muzzle) बाँटे जाएँगे।’
2.4 क्रांतिकारी
1815 के बाद के वर्षों में दमन के भय ने अनेक उदारवादी-राष्ट्रवादियों को भूमिगत कर दिया। बहुत सारे यूरोपीय राज्यों में क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने और विचारों का प्रसार करने के गुप्त संगठन उभर आए। उस समय क्रांतिकारी होने का मतलब उन राजतंत्रीय व्यवस्थाओं का विरोध करने से था जो वियना कांग्रेस के बाद स्थापित की गई थीं। साथ ही स्वतंत्रता और मुक्ति के प्रतिबद्ध होना और संघर्ष करना क्रांतिकारी होने के ज़रूरी था। ज़्यादातर क्रांतिकारी राष्ट्र-राज्यों की स्थापना को आज़ादी के इस संघर्ष का अनिवार्य हिस्सा मानते थे।
ऐसा ही वह व्यक्ति था इटली का क्रांतिकारी ज्युसेपी मेत्सिनी। उनका जन्म 1807 में जेनोआ में हुआ था और वह कार्बोनारी के गुप्त संगठन का सदस्य बन गया। चौबीस साल की युवावस्था में लिगुरिया में क्रांति करने के उसे बहिष्कृत कर दिया गया। तत्पश्चात उसने दो और भूमिगत संगठनों की स्थापना की। पहला था मार्सेई में यंग इटली और दूसरा बर्न में यंग यूरोप, जिसके सदस्य पोलैंड, फ़ांस, इटली और जर्मन राज्यों में समान विचार रखने वाले युवा थे। मेत्सिनी का विश्वास था कि ईश्वर की मर्ज़ी के अनुसार राष्ट्र ही मनुष्यों की प्राकृतिक इकाई थी। अतः इटली छोटे राज्यों और प्रदेशों के पैबंदों की तरह नहीं रह सकता था। उसे जोड़ कर राष्ट्रों के व्यापक गठबंधन के अंदर एकीकृत गणतंत्र बनाना ही था। यह एकीकरण ही इटली की मुक्ति का आधार हो सकता था। उसके इस मॉडल की देखा-देखी जर्मनी, फ़्रांस, स्विट्ज्रालैंड और पोलैंड में गुप्त संगठन क़ायम किए गए। मेत्सिनी द्वारा राजतंत्र का घोर विरोध करके और प्रजातांत्रिक गणतंत्रों के अपने स्वप्न से मेत्सिनी ने रूढ़िवादियों को हरा दिया। मैटरनिख ने उसे ‘हमारी सामाजिक व्यवस्था का सबसे खतरनाक दुश्मन’ बताया।
चित्र 7 - ज्युसेपे मेत्सिनी और बर्न 1833 में ‘यंग यूरोप’ की स्थापना।
गिआकोमो मांतेगाज़ा का चित्र।
3 क्रांतियों का युग : 1830-1848
जैसे-जैसे रूढ़िवादी व्यवस्थाओं ने अपनी ताक़त को और मज़बूत बनाने की कोशिश की, यूरोप के अनेक क्षेत्रों में उदारवाद और राष्ट्रवाद को क्रांति से जोड़ कर देखा जाने लगा। इटली और जर्मनी के राज्य, ऑटोमन साम्राज्य के सूबे, आयरलैंड और पोलैंड ऐसे ही कुछ क्षेत्र थे। इन क्रांतियों का नेतृत्व उदारवादी-राष्ट्रवादियों ने किया जो शिक्षित मध्यवर्गीय विशिष्ट लोग थे। इनमें प्रोफ़ेसर, स्कूली-अध्यापक, क्लर्क और वाणिज्य व्यापार में लगे मध्यवर्गों के लोग शामिल थे।
प्रथम विद्रोह फ़ांस में जुलाई 1830 में हुआ। बूर्ोों राजा, जिन्हें 1815 के बाद हुई रूढ़िवादी प्रतिक्रिया के दौरान सत्ता में बहाल किया गया था, उन्हें अब उदारवादी क्रांतिकारियों ने उखाड़ फेंका। उनकी जगह एक संवैधानिक राजतंत्र स्थापित किया गया जिसका अध्यक्ष लुई फ़िलिप था। मैटरनिख ने एक बार यह टिप्पणी की थी कि ‘जब फ़ांस छींकता है तो बाक़ी यूरोप की सर्दी-ज़ुकाम हो जाता है।’ जुलाई क्रांति से ब्रसेल्स में भी विद्रोह भड़क गया जिसके फलस्वरूप यूनाइटेड किंगडम ऑफ़ द नीदरलैंड्स से अलग हो गया।
एक घटना जिसने पूरे यूरोप के शिक्षित अभिजात वर्ग में राष्ट्रीय भावनाओं का संचार किया, वह थी, यूनान का स्वंतत्रता संग्राम। पंद्रहवों सदी से यूनान ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा था। यूरोप में क्रांतिकारी राष्ट्रवाद की प्रगति से यूनानियों का आज़ादी के संघर्ष 1821 में आरंभ हो गया। यूनान में राष्ट्रवादियों को निर्वासन में रह रहे यूनानियों के साथ पश्चिमी यूरोप के अनेक लोगों का भी समर्थन मिला जो प्राचीन यूनानी संस्कृति (Hellenism) के प्रति सहानुभूति रखते थे। कवियों और कलाकारों ने यूनान को यूरोपीय सभ्यता का पालना बता कर प्रशंसा की और एक मुस्लिम साम्राज्य के विरुद्ध यूनान के संघर्ष के जनमत जुटाया। अंग्रेज़ कवि लॉर्ड बायरन ने धन इकट्ठा किया और बाद में युद्ध में लड़ने भी गए जहाँ 1824 में बुखार से उनकी मृत्यु हो गई। अंततः 1832 की कुस्तुनतुनिया की संधि ने यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता दी।
3.1 रूमानी कल्पना और राष्ट्रीय भावना
राष्ट्रवाद का विकास केवल युद्धों और क्षेत्रीय विस्तार से नहों हुआ। राष्ट्र के विचार के निर्माण में संस्कृति ने एक अहम भूमिका निभाई। कला, काव्य, कहानियों-किस्सों और संगीत ने राष्ट्रवादी भावनाओं को गढ़ने और व्यक्त करने में सहयोग दिया। आइए, हम रूमानीवाद को देखे जो एक ऐसा सांस्कृतिक आंदोलन था जो एक खास तरह की राष्ट्रीय भावना का विकास करना चाहता था। आमतौर पर रूमानी कलाकारों और कवियों ने तर्क-वितर्क
चित्र 8 - यूज्जीन देलाक्रोआ, द मसैकर ऐट किऑस, 1824
फ़्रांसीसी चित्रकार देलाक्रोआ सबसे महत्तपूर्ण फ़्रेंच रूमानी चित्रकारों में से एक था। यह विशाल चित्र ( 4.19 मीटर $\times 3.54$ मीटर) एक घटना को चित्रित करता है जिसमें किऑस द्वीप पर कहा जाता है तुरों ने बीस हज़ार यूनानियों को मार डाला। देलाक्रोआ ने घटना नाटकीय बना कर, महिलाओं और बच्चों को पीड़ा को केंद्र बिंदु बनाते हुए चटख रंगों का प्रयोग करके देखने वालों की भावनाएँ उभार करके यूनानियों के सहानुभूति जगाने की कोशिश की।
और विज्ञान के महिमामंडन की आलोचना की और उसकी जगह भावनाओं, अंतर्दृष्टि और रहस्यवादी भावनाओं पर ज़ोर दिया। उनका प्रयास था कि एक साझा-सामूहिक विरासत की अनुभूति और एक साझा सांस्कृतिक अतीत को राष्ट्र का आधार बनाया जाए।
जर्मन दार्शनिक योहान गॉटफ्रीड जैसे रूमानी चिंतकों ने दावा किया कि सच्ची जर्मनी संस्कृति उसके आम लोगों (das volk) में निहित थी। राष्ट्र (volkgeist) की सच्ची आत्मा लोकगीतों, जन-काव्य और लोकनृत्यों से प्रकट होती थी। इस लोक संस्कृति के इन स्वरूपों को एकत्र और
अंकित करना राष्ट्र के निर्माण की परियोजना के आवश्यक था। स्थानीय बोलियों पर बल और स्थानीय लोक-साहित्य को एकत्र करने का उद्देश्य केवल प्राचीन राष्ट्रीय भावना को वापस लाना नहीं था बल्कि आधुनिक राष्ट्रीय संदेश को ज़्यादा लोगों तक पहुँचाना था जिनमें से अधिकांश निरक्षर थे। यह ख़ासतौर पर पोलैंड पर लागू होता था जिसका अठारहवीं सदी के अंत में रूस, प्रशा और ऑस्ट्रिया जैसी बड़ी शक्तियों (Great Powers) ने विभाजन कर दिया था। यद्यपि पोलैंड अब स्वतंत्र भू-क्षेत्र नहीं था किंतु संगीत और भाषा के ज़रिये राष्ट्रीय भावना जीवित रखी गई। मसलन, कैरोल कुर्पिस्की ने राष्ट्रीय संघर्ष का अपने ऑपेरा और संगीत से गुणगान किया और पोलेनेस और माज़ुरका जैसे लोकनृत्यों को राष्ट्रीय प्रतीकों में बदल दिया।
भाषा ने भी राष्ट्रीय भावनाओं के विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। रूसी क़ब्ज़े के बाद, पोलिश भाषा को स्कूलों से बलपूर्वक हटा कर रूसी भाषा को हर जगह जबरन लादा गया। 1831 में, रूस के विरुद्ध एक सशस्त्र विद्रोह हुआ जिसे आखिरकार कुचल दिया गया। इसके अनेक सदस्यों ने राष्ट्रवादी विरोध के भाषा को एक हथियार बनाया। चर्च के आयोजनों और संपूर्ण धार्मिक शिक्षा में पोलिश का इस्तेमाल हुआ। इसका नतीजा यह हुआ कि बड़ी संख्या में पादरियों और बिशपों को जेल में डाल दिया गया। रूसी अधिकारियों ने उन्हें सज़ा देते हुए साइबेरिया भेज दिया क्योंकि उन्होंने रूसी भाषा का प्रचार करने से इनकार कर दिया था। पोलिश भाषा रूसी प्रभुत्व के विरुद्ध संघर्ष के प्रतीक के रूप में देखी जाने लगी।
ग्रिम बंधुओं की कहानी : लोकथाएँ और राष्ट्रनिर्माण
ग्रिम्स फंयरीटेल्स एक जाना-माना नाम है। जैकब ग्रिम और विल्हेल्म त्रिम बंधुओं का जन्म क्रमशः 1785 और 1786 में जर्मनी के हनाऊ शहर में हुआ था। जिस समय ये दोनों भाई क़ानून की पढ़ाई कर रहे थे उसी समय उन्होंने शौक़िया तौर पर पुरानी लोक कथाएँ इकट्ठा करना शुरू कर दिया। वे छह साल तक गाँव-गाँव जाकर यही काम करते रहे। वे लोगों से बात करते थे और पीढ़ियों से चली आ रही जो भी लोक कथा उनकी जानकारी में आती उसे लिखकर रख लेते थे। ये कहानियाँ बच्चों और बड़ों में समान रूप से पसंद की जाती थीं। 1812 में उन्होंने इन कहानियों का पहला संग्रह प्रकाशित किया। बाद में दोनों भाई उदारादी राजनीति में सक्रिय हो गए। प्रैस की स्वतंत्रता के आंदोलन में उन्होंने विशेष रुचि ली। इसी बीच उन्होंने 33 खंडों में जर्मन भाषा का शब्दकोश भी प्रकाशित कर डाला।
त्रिम बंधु फ़ांस के वर्चस्व को जर्मन संस्कृति के खतरा मानते थे। उनको विश्वास था कि उन्होंने जो लोककथाएँ इकट्टी की हैं वे विशुद्ध और सच्ची जर्मन भावना की अभिव्यक्ति हैं। लोक कभाएँ इकट्ठी करने और जर्मन भाषा को विकसित करने के अपने प्रयासों को वे फ़ांसीसी प्रभुत्व का विरोध करने और एक जर्मन राष्ट्रीय पहचान गढ़ने की व्यापक योजना का हिस्सा मानते थे।
3.2 भूख, कठिनाइयाँ और जन विद्रोह
1830 का दशक यूरोप में भारी कठिनाइयाँ लेकर आया। उन्नीसवीं सदी के प्रथम भाग में पूरे यूरोप में जनसंख्या में ज़बरदस्त वृद्धि हुई। ज़्यादातर देशों में नौकरी ढूँढ़ने वालों की तादाद उपलब्ध रोज़गार से अधिक थी। ग्रामीण क्षेत्रों की अतिरिक्त आबादी शहर जाकर भीड़ से भरी गरीब बस्तियों में रहने लगी। नगरों के लघु उत्पादकों को अकसर इंग्लैंड से आयातित मशीन से बने सस्ते कपड़े से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा था। इंग्लैंड में औद्योगीकरण का स्तर महाद्वीप से ऊँचा था। महाद्वीप को यह प्रतिस्पर्धा कपड़ा-उद्योग में ज़्यादा झेलनी पड़ रही थी क्योंकि उसका उत्पादन मुख्यतः घरों और छोटे कारखानों में होता था और केवल आंशिक रूप से मशीनीकृत था। यूरोप के उन इलाक़ों में जहाँ कुलीन वर्ग अभी भी सत्ता में था, कृषक सामंती शुल्कों और ज़िम्मेदारियों के बोझ तले दबे थे। खाने-पीने की चीज़ों के मूल्य बढ़ने या किसी वर्ष फ़सल के खराब होने के शहर और गाँवों में व्यापक ग़रीबी फैल जाती थी।
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राष्ट्रीय पहचान के निर्मित होने में भाषा और लोक परंपराओं के महत्त्व की चर्चा करें।
चित्र 9 - कृषक विद्रोह, 1848
1848 ऐसा ही एक वर्ष था। खाने-पीने की कमी और व्यापक बेरोज़गारी से पेरिस के लोग सड़कों पर उतर आए। जगह-जगह अवरोध लगाए गए और लुई फ़िलिप को भागने पर मजबूर किया गया। राष्ट्रीय सभा (National Assembly) ने एक गणतंत्र की घोषणा करते हुए 21 वर्ष से ऊपर सभी वयस्क पुरुषों को मताधिकार प्रदान किया और काम के अधिकार की गारंटी दी। रोज़गार उपलब्ध कराने के राष्ट्रीय कारखाने स्थापित किए गए।
इससे पहले 1845 में सिलेसिया में बुनकरों ने उन ठेकेदारों के खिलाफ़ विद्रोह कर दिया था जो उन्हें कच्चा माल देकर निर्मित कपड़ा लेते थे परंतु दाम बहुत कम थे। पत्रकार विल्हेम वोल्फ़ ने सिलेसिया के एक गाँव की घटनाएँ इस प्रकार बयान कीं :
इन गाँवों में ( 18,000 आबादी वाले) सूती कपड़ा बुनने का व्यवसाय सबसे व्यापक है…. श्रमिकों की हालत खस्ता है। काम के बेताब लोगों का फ़ायदा उठा कर ठेकेदारों ने बनवाए जाने वाले माल की कीमतें गिरा दी हैं..
4 जून को दोपहर 2 बजे बुनकरों की एक भीड़ अपने घरों से निकली और दो क़तारों में चलते हुए ठेकेदार की कोठी पहुँची। वे ज़्यादा मज़दूरी की माँग कर रहे थे। उनके साथ कभी घृणा का व्यवहार किया गया तो कभी धमकियाँ दी गईं। इसके बाद यह भीड़ घर में ज़बरदस्ती घुस गई और चमचमाती खिड़कियाँ, फ़र्नीचर और चीनी-मिट्टी की बनी नफ़ीस चीज़ें तोड़ दीं…. एक अन्य गुट ने भंडारगृह में घुस कर कपड़े के भंडार को लूट कर उसे तार-तार कर दिया….. ठेकेदार अपने परिवार के साथ पड़ोस के गाँव भाग गया हालाँकि ऐसे व्यक्ति को उस गाँव ने शरण देने से इनकार कर
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सिलेसियाई बुनकरों के विद्रोह के कारणों का वर्णन करें। पत्रकार के नज़ारिए पर टिप्पणी करें।
गतिविधि
कल्पना कीजिए कि आप एक बुनकर हैं जिसने चीजों को बदलते हुए देखा है। आपने क्या देखा, इस आधार पर एक रिपोर्ट लिखिए।
दिया। वह 24 घंटों बाद सेना को बुला कर उसकी मदद से लौटा। इसके बाद जो टकराव हुआ उसमें ग्यारह बुनकरों को गोली मार दी गई।
3.3 1848 : उदारवादियों की क्रांति
1848 में जब अनेक यूरोपीय देशों में ग़रीबी, बेरोज़गारी और भुखमरी से ग्रस्त किसान-मज़दूर विद्रोह कर रहे थे तब उसके समानांतर पढ़े-लिखे मध्यवर्गों की एक क्रांति भी हो रही थी। फरवरी 1848 की घटनाओं से राजा को गद्दी छोड़नी पड़ी थी और एक गणतंत्र की घोषणा की गई जो सभी पुरुषों के सार्विक मताधिकार पर आधारित था। यूरोप के अन्य भागों में जहाँ अभी तक स्वतंत्र राष्ट्र-राज्य अस्तित्व में नहीं आए थे-जैसे जर्मनी, इटली, पोलैंड, ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य-वहाँ के उदारवादी मध्यवर्गों के स्त्री-पुरुषों ने संविधानवाद की माँग को राष्ट्रीय एकीकरण की माँग से जोड़ दिया। उन्होंने बढ़ते जन असंतोष का फ़ायदा उठाया और एक राष्ट्र-राज्य के निर्माण की माँगों को आगे बढ़ाया। यह राष्ट्र-राज्य संविधान, प्रेस की स्वतंत्रता और संगठन बनाने की आज़ादी जैसे संसदीय सिद्धांतों पर आधारित था।
जर्मन इलाक़ों में बड़ी संख्या में राजनीतिक संगठनों ने फ़ैैंकफ़र्ट शहर में मिल कर एक सर्व-जर्मन नेशनल एसेंबली के पक्ष में मतदान का फ़ैसला लिया। 18 मई 1848 को, 831 निर्वाचित प्रतिनिधियों ने एक सजे-धजे जुलूस में जा कर फ़्रैंकफ़र्ट संसद में अपना स्थान ग्रहण किया। यह संसद सेंट पॉल चर्च में आयोजित हुई। उन्होंने एक जर्मन राष्ट्र के एक संविधान का प्रारूप तैयार किया। इस राष्ट्र की अध्यक्षता एक ऐसे राजा को सौंपी गई जिसे संसद के अधीन रहना था। जब प्रतिनिधियों ने प्रशा के राजा फ़्रेडरीख विल्हेम चतुर्थ को ताज पहनाने की पेशकश की तो उसने उसे अस्वीकार कर उन राजाओं का साथ दिया जो निर्वाचित सभा के विरोधी थे। जहाँ कुलीन वर्ग और सेना का विरोध बढ़ गया, वहीं संसद का सामाजिक आधार कमज़ोर हो गया। संसद में मध्य वर्गों का प्रभाव अधिक था जिन्होंने मज़दूरों और कारीगरों की माँगों का विरोध किया जिससे वे उनका समर्थन खो बैठे। अंत में सैनिकों को बुलाया गया और एसेंबली भंग होने पर मजबूर हुई।
उदारवादी आंदोलन के अंदर महिलाओं को राजनीतिक अधिकार प्रदान करने का मुद्दा विवादास्पद था हालाँकि आंदोलन में वर्षों से बड़ी संख्या में महिलाओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया था। महिलाओं ने अपने राजनीतिक संगठन स्थापित किए, अखबार शुरू किए और राजनीतिक बैठकों और प्रदर्शनों में शिरकत की। इसके बावजूद उन्हें एसेंबली के चुनाव के दौरान
नए शब्द
नारीवाद : स्त्री-पुरुष की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक समानता की सोच के आधार पर महिलाओं के अधिकारों और हितों का बोध।
स्वतंत्रता और समानता का महिलाओं के क्या अर्थ था?
उदारादी राजनीतिज्र कार्ल वेल्कर ने, जो फ्रैंकफ़र्ट संसद के एक निर्वाचित सदस्य थे, निम्नलिखित विचार व्यक्त किए-
‘प्रकृति ने पुरुषों और महिलाओं को अलग-अलग कार्य करने के निर्मित किया है … पुरुष जो ज़्यादा ताक़तवर है, दोनों में से ज्यादा निर्भीक और मुक्त है उसे परिवार का रखवाला और भरण-पोषण करने वाला बनाया गया है और वह क़ानून, उत्पादन तथा प्रतिरक्षा के क्षेत्र में सार्वजनिक कार्यों के है। महिला जो कमज़ोर, निर्भर और दब्बू है, उसे पुरुष की सुर्का की आवश्यकता है। उसका क्षेत्र घर, बच्चों की देखभाल और परिवार का पालन-पोषण है…।
‘क्या हमें कोई और प्रमाण चाहिए कि इन भेदों के बाद, लिंगों में बराबरी केवल परिवार के मेल-मिलाप और गरिमा को खतरे में डाल देगी?’
लुइुज़े ऑटो-पीटर्स (1819-95) एक राजनैतिक कार्यकर्ता थी जिसने महिलाओं की पत्रिका और तत्पश्चात एक नारीवादी राजनीतिक संगठन की स्थापना की। उसके अख़बार ( 21 अप्रैल, 1849) के प्रथम अंक में निम्नलिखित संपादकीय छापा: आइए हम यह पूछें कि कितने पुरुष जो स्वतंत्रता के जीने-मरने के विचारों से ओत-प्रोत हैं, सभी लोगों, सभी इनसानों की आज़ादी के तैयार होंगे? जब उनसे यह प्रश्न पूछा जाएगा, वे बड़ी आसानी से जवाब देंगे। “हाँ!” हालाँकि उनके अथक प्रयास केवल आधी मानवजाति के फ़ायदे के हैं यानी पुरुष। मगर स्वतंत्रता तो अविभाज्य है। अतः स्वतंत्र पुरुषों को परतंत्रता से घिरे रहना मंज़ूर नहीं होना चाहिए…।
उसी अख़बार के एक अनाम पाठक ने 25 जून, 1850 को संपादक को निम्नलिखित पत्र भेजा-
‘महिलाओं को राजनैतिक अधिकारों से वंचित रखना वाक़ई बेतुका और अविवेकपूर्ण है जबकि उन्हें संपत्ति का अधिकार है जिसका वे इस्तेमाल करती हैं और ज़िम्मेदारियाँ भी उठाती हैं हालाँकि उन्हें वे लाभ नहीं मिलते जो उसी के पुरुषों को मिलते हैं. यह अन्याय क्यों? क्या यह लज्जा की बात नहीं कि सबसे मूर्ख मवेशी-पालक को मत देने का अधिकार सिर्फ़ इस है क्योंकि वह एक पुरुष है जबकि अत्यंत क़ाबिल महिलाओं को, जो काफ़ी संपत्ति की मालकिन होती हैं, इसी हक़ से वंचित रखा जाता है यद्यपि वे राज्य के रख-रखाव में इतना ज़्यादा योगदान देती हैं।’
चित्र 10 - सेंट पॉल की चर्च में प्ऱैंकफ़र्ट संसद, समकालीन रंगीन चित्र। ऊपर बाईं दीर्घा में महिलाएँ बैठी हैं।
मताधिकार से वंचित रखा गया था। जब सेंट पॉल चर्च में फ़्रैंकफ़र्ट संसद की सभा आयोजित की गई थी तब महिलाओं को केवल प्रेक्षकों की हैसियत से दर्शक-दीर्घा में खड़े होने दिया गया।
हालाँकि रूढ़िवादी ताक़तें 1848 में उदारवादी आंदोलनों को दबा पाने में कामयाब हुईं किंतु वे पुरानी व्यवस्था बहाल नहीं कर पाईं। राजाओं को यह समझ में आना शुरू हो गया था कि उदारवादी-राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों को रियायतें देकर ही क्रांति और दमन के चक्र को समाप्त किया जा सकता था। अतः 1848 के बाद के वर्षों में मध्य और पूर्वी यूरोप की निरंकुश राजशाहियों ने उन परिवर्तनों को आरंभ किया जो पश्चिमी यूरोप में 1815 से पहले हो चुके थे। इस प्रकार हैस्सबर्ग अधिकार वाले क्षेत्रों और रूस में भूदासत्व और बंधुआ मज़दूरी समाप्त कर दी गई। हैब्सबर्ग शासकों ने हंगरी के लोगों को ज़्यादा स्वायत्तता प्रदान की हालाँकि इससे निरंकुश मैग्यारों के प्रभुत्व का रास्ता ही साफ़ हुआ।
चर्चा करें
ऊपर उद्धत तीन लेखकों द्वारा महिलाओं के अधिकार के प्रश्न पर व्यक्त विचारों की तुलना करें। उनसे उदारवादी विचारधारा के बारे में क्या स्पष्ट होता है?
नए शब्द
विचारधारा : एक खास प्रकार की सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टि को इंगित करने वाले विचारों का समूह।
4 जर्मनी और इटली का निर्माण
4.1 जर्मनी-क्या सेना राष्ट्र की निर्माता हो सकती है?
1848 के बाद यूरोप में राष्ट्रवाद का जनतंत्र और क्रांति से अलगाव होने लगा। राज्य की सत्ता को बढ़ाने और पूरे यूरोप पर राजनीतिक प्रभुत्व हासिल करने के रूढ़वादियों ने अकसर राष्ट्रवादी भावनाओं का इस्तेमाल किया।
इसे उस प्रक्रिया में देखा जा सकता है जिससे जर्मनी और इटली एकीकृत होकर राष्ट्र-राज्य बने। जैसा आपने देखा है, राष्ट्रवादी भावनाएँ मध्यवर्गीय जर्मन लोगों में काफ़ी व्याप्त थीं और उन्होंने 1848 में जर्मन महासंघ के विभिन्न इलाक़ों को जोड़ कर एक निर्वाचित संसद द्वारा शासित राष्ट्र-राज्य बनाने का प्रयास किया था। मगर राष्ट्र निर्माण की यह उदारवादी पहल राजशाही और फ़ौज की ताक़त ने मिलकर दबा दी। उनका प्रशा के बड़े भूस्वामियों (Junkers) ने भी समर्थन किया। उसके पश्चात प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आंदोलन का नेतृत्व सँभाल लिया। उसका प्रमुख मंत्री, ऑटो वॉन बिस्मार्क इस प्रक्रिया का जनक था जिसने प्रशा की सेना और नौकरशाही की मदद ली। सात वर्ष के दौरान ऑस्ट्रिया, डेन्मार्क और फ़ांस से तीन युद्धों में प्रशा को जीत हुई और एकीकरण की प्रक्रिया पूरी हुई। जनवरी 1871 में, वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।
18 जनवरी 1871 की सुबह बेहद ठंडी थी। जर्मन राज्यों के राजकुमारों, सेना के प्रतिनिधियों और प्रमुख मंत्री ऑटो वॉन बिस्मार्क समेत प्रशा के महत्त्वपूर्ण मंत्रियों की एक बैठक वर्साय के महल के बेहद ठंडे शीशमहल (हॉल ऑफ़ मिरर्स) में हुई। सभा ने प्रशा के काइज़र विलियम प्रथम के नेतृत्व में नए जर्मन साम्राज्य की घोषणा की।
जर्मनी में राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया ने प्रशा राज्य की शक्ति के प्रभुत्व को दर्शाता था। नए राज्य ने जर्मनी की मुद्रा, बैकिंग और क़ानूनी तथा न्यायिक व्यवस्थाओं के आधुनिकीकरण पर काफ़ी ज़ोर दिया और प्रशा द्वारा उठाए क़दम और उसकी कार्रवाइयाँ बाक़ी जर्मनी के अकसर एक मॉडल बना।
चित्र 11 - आन्तॉन वॉन वर्नर की कृति, वर्साय के हॉल ऑफ़ मिरर्स में जर्मन साम्राज्य की घोषणा।
चित्र के बीच में काइज़र और प्रशियाई सेना के मुख्य कमांडर, जनरल वॉन रून खड़े हैं। उनके पास हैं बिस्मार्क। इस विशाल कृति (2.7 मीटर x 2.7 मीटर) को चित्रकार ने 1885 में बिस्मार्क के 70वें जन्मदिन पर उन्हें भेंट किया था।
4.2 इटली
जर्मनी की तरह इटली में भी राजनीतिक विखंडन का एक लंबा इतिहास था। इटली अनेक वंशानुगत राज्यों तथा बहु-राष्ट्रीय हैब्सबर्ग साम्राज्य में बिखरा हुआ था।
उन्नीसवीं सदी के मध्य में इटली सात राज्यों में बँटा हुआ था जिनमें से केवल एक-सार्डिनिया पीडमॉण्ट में एक इतालवी राजघराने का शासन था। उत्तरी भाग ऑस्ट्रियाई हैब्सबर्गों के अधीन था, मध्य इलाक़ों पर पोप का शासन था और दक्षिणी क्षेत्र स्पेन के बूर्बों राजाओं के अधीन थे। इतालवी भाषा ने भी साझा रूप हासिल नहीं किया था और अभी तक उसके विविध क्षेत्रीय और स्थानीय रूप मौजूद थे।
1830 के दशक में ज्युसेपे मेत्सिनी ने एकीकृत इतालवी गणराज्य के एक सुविचारित कार्यक्रम प्रस्तुत करने की कोशिश की थी। उसने अपने उद्देश्यों के प्रसार के यंग इटली नामक एक गुप्त संगठन भी बनाया था। 1831 और 1848 में क्रांतिकारी विद्रोहों की असफलता से युद्ध के ज़रिये इतालवी राज्यों को जोड़ने की ज़िम्मेदारी सार्डिनिया-पीडमॉण्ट के शासक विक्टर इमेनुएल द्वितीय पर आ गई। इस क्षेत्र के शासक अभिजात वर्ग की नज़रों में एकीकृत इटली उनके आर्थिक विकास और राजनीतिक प्रभुत्व की संभावनाएँ उत्पन्न करता था। मंत्री प्रमुख कावूर, जिसने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया, न तो एक क्रांतिकारी था और न ही जनतंत्र में विश्वास रखने वाला। इतालवी अभिजात वर्ग के तमाम अमीर और शिक्षित सदस्यों की तरह वह इतालवी भाषा से कहीं बेहतर फ्रेंच बोलता था। फ़ांस से सार्डिनिया-पीडमॉण्ट की एक चतुर कूटनीतिक संधि, जिसके पीछे कावूर का हाथ था, से सार्डिनिया-पीडमॉण्ट 1859 में ऑस्ट्रियाई बलों को हरा पाने में कामयाब हुआ।
चित्र 13 - व्यंग्यचित्र : जर्मन राइखस्टैग (संसद) में ऑटो वॉन बिस्मार्क, फ़िगारो से, वियना, 5 मार्च 1870
गतिविधि
इस व्यंग्यचित्र का वर्णन करें। इसमें बिस्मार्क और संसद के निर्वांच डेप्यूटीज़ के बीच किस प्रकार का संबंध दिखायी देता है? यहाँ चित्रकार लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की क्या व्याख्या करना चाहता है?
नियमित सैनिकों के अलावा ज्युसेपे गैरीबॉल्डी के नेतृत्व में भारी संख्या में सशस्त्र स्वयंसेवकों ने इस युद्ध में हिस्सा लिया। 1860 में वे दक्षिण इटली और दो सिसिलियों के राज्य में प्रवेश कर गए और स्पेनी शासकों को हटाने के स्थानीय किसानों का समर्थन पाने में सफल रहे। 1861 में इमेनुएल द्वितीय को एकीकृत इटली का राजा घोषित किया गया। मगर, इटली के अधिकांश निवासी जिनमें निरक्षरता की दर काफ़ी ऊँची थी, अभी भी उदारवादी-राष्ट्रवादी विचारधारा से अनजान थे। दक्षिणी इटली में जिन आम किसानों ने गैरीबॉल्डी को समर्थन दिया था, उन्होंने इटालिया (Italia) के बारे में कभी सुना ही नहीं था और वे मानते थे कि ला टालिया (La Talia) विक्टर इमेनुएल की पत्नी थी।
गतिविधि
चित्र 14 (क) को देखें। क्या आपको लगता है कि इनमें से किसी भी क्षेत्र में रहने वाले खुद को इतालवी मानते होंगे?
चित्र 14 (ख) की जाँच करें। कौन सा क्षेत्र सबसे पहले एकीकृत इटली का हिस्सा बना? सबसे आखिर में कौन सा क्षेत्र शामिल हुआ? किस साल सबसे ज्यादा राज्य एकीकृत इटली में शामिल हुए?
4.3 ब्रिटेन की अजीब दास्तान
कुछ विद्वानों ने तर्क दिया है कि राष्ट्र या राष्ट्र-राज्य का मॉडल या आदर्श ग्रेट ब्रिटेन है। ब्रिटेन में राष्ट्र-राज्य का निर्माण अचानक हुई कोई उथल-पुथल या क्रांति का परिणाम नहीं था। यह एक लंबो चलने वाली प्रक्रिया का
चित्र 14 (क) - एकीकरण से पूर्व इटली के राज्य, 1858
नतीजा था। अठारहवीं सदी के पहले ब्रितानी राष्ट्र था ही नहीं। ब्रितानी द्वीपसमूह में रहने वाले लोगों-अंग्रेज़, वेल्श, स्कॉट या आयरिश-की मुख्य पहचान नृजातीय (Ethnic) थी। इन सभी जातीय समूहों की अपनी
चित्र 14 (ख) - एकीकरण के बाद इटली। नक़्शे में एकीकृत राज्यों के वर्षों को दर्शाया गया है।
नए शब्द
नृजातीय (Ethnic) : एक साझा नस्ली, जनजातीय या सांस्कृतिक उद्गम अथवा पृष्ठभूमि जिसे कोई समुदाय अपनी पहचान मानता है।
सांस्कृतिक और राजनीतिक परंपराएँ थीं। लेकिन जैसे-जैसे आंग्ल राष्ट्र की धन-दौलत, अहमियत और सत्ता में वृद्धि हुई वह द्वीपसमूह के अन्य राष्ट्रों पर अपना प्रभुत्व बढ़ाने में सफल हुआ। एक लंबे टकराव और संघर्ष के बाद आंग्ल संसद ने 1688 में राजतंत्र से ताक़त छीन ली थी। इस संसद के माध्यम से एक राष्ट्र-राज्य का निर्माण हुआ जिसके केंद्र में इंग्लैंड था। इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के बीच ऐक्ट ऑफ़ यूनियन (1707) से ‘यूनाइटेड किंग्डम ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन’ का गठन हुआ। इससे इंग्लैंड, व्यवहार में स्कॉटलैंड पर अपना प्रभुत्व जमा पाया। इसके बाद ब्रितानी संसद में आंग्ल सदस्यों का दबदबा रहा। एक ब्रितानी पहचान के विकास का अर्थ यह हुआ कि स्कॉटलैंड की खास संस्कृति और राजनीतिक संस्थानों को योजनाबद्ध तरीके से दबाया गया। स्कॉटिश हाइलैंड्स के निवासी जिन कैथलिक कुलों ने जब भी अपनी आज़ादी को व्यक्त करने का प्रयास किया उन्हें ज़बरदस्त दमन का सामना करना पड़ा। स्कॉटिश हाइलैंड्स के लोगों को अपनी गेलिक भाषा बोलने या अपनी राष्ट्रीय पोशाक पहनने की मनाही थी। उनमें से बहुत सारे लोगों को अपना वतन छोड़ने पर मजबूर किया गया।
आयरलैंड का भी कुछ ऐसा ही हश्र हुआ। वह देश कैथलिक और प्रोटेस्टेंट धार्मिक गुटों में गहराई में बँटा हुआ था। अंग्रेजों ने आयरलैंड में प्रोटेस्टेंट धर्म मानने वालों को बहुसंख्यक कैथलिक देश पर प्रभुत्व बढ़ाने में सहायता की। ब्रितानी प्रभाव के विरुद्ध हुए कैथलिक विद्रोहों को निर्ममता से कुचल दिया गया। वोल्फ़ टोन और उसकी यूनाइटेड आयरिशमेन (1798) की अगुवाई में हुए असफल विद्रोह के बाद 1801 में आयरलैंड को बलपूर्वक यूनाइटेड किंग्डम में शामिल कर लिया गया। एक नए ‘ब्रितानी राष्ट्र’ का निर्माण किया गया जिस पर हावी आंग्ल संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया गया। नए ब्रिटेन के प्रतीक-चिहनों, ब्रितानी झंडा (यूनियन जैक) और राष्ट्रीय गान (गॉड सेव अवर नोबल किंग) को खूब बढ़ावा दिया गया और पुराने राष्ट्र इस संघ में मातहत सहयोगी के रूप में ही रह पाए।
गतिविधि
चित्रकार ने गैरीबाल्डी को सार्डीनिया-पीडमॉण्ट के राजा को जूते पहनाते दिखाया है। अब इटली के नक्शे को फिर देखें। यह व्यंग्यचित्र क्या कहने का प्रयास कर रहा है?
ज्युसेपे गैरीबॉल्डी (1807-82) संभवतः इटली के स्वतंत्रता सेनानियों में सबसे मशहूर है। उसका संबंध एक ऐसे परिवार से था जो तटीय व्यापार में संलग्न था और वह स्वयं व्यापारिक नौसेना में एक नाविक था। 1833 में उसकी मुलाक़ात मेत्सिनी से हुई, वह ‘यंग इटली’ आंदोलन से जुड़ा और 1834 में पीडमॉण्ट के गणतंत्रीय विद्रोह में उसने भाग लिया। यह विद्रोह कुचल दिया गया और गैरीबॉल्डी को दक्षिण अमेरिका भागना पड़ा जहाँ वह 1848 तक निर्वासन में रहा। 1854 में उसने विक्टर इमेनुएल II का समर्थन किया जो इतालवी राज्यों को एकीकृत करने का प्रयास कर रहा था। 1860 में गैरीबॉल्डी ने दक्षिण इटली की तरफ़ एक्सपिडिशन ऑफ़ द थाउज़ेंड (हज़ार लोगों का अभियान) का नेतृत्व किया। इस अभियान में नए स्वयंसेवक जुड़ते चले गए और उनकी संख्या लगभग 30,000 तक पहुँच गई। वे ‘रेड शर्ट्स’ के नाम से लोकप्रिय हुए।
1867 में गैरीबॉल्डी के नेतृत्व में स्वयंसेवकों की एक सेना पेपल राज्यों से लड़ने रोम गई जो इटली के एकीकरण में अंतिम बाधा थी। वहाँ एक फ़ांसीसी सैनिक टुकड़ी तैनात थी। ‘रेड शर्ट्स’ फ़ांसीसी और पेपल सैनिकों के सामने टिक नहीं पाए। 1870 में जब प्रशा से युद्ध के दौरान फ़ांस ने रोम से अपने सैनिक हटा तब जाकर पेपल राज्य अंततः इटली में सम्मिलित हुए।
चित्र 15 - गैरीबॉल्डी, सार्डीनिया-पीडमॉण्ट के राजा विक्टर इमेनुएल II को इटली नामक बूट (जूता) पहनने में मदद करते हुए। 1859 का अंग्रेज़ी व्यंग्य चित्र।
5 राष्ट्र की दृश्य-कल्पना
किसी शासक को एक चित्र या मूर्ति के रूप में अभिव्यक्त करना आसान है किंतु एक राष्ट्र को चेहरा कैसे दिया जा सकता है? अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में कलाकारों ने राष्ट्र का मानवीकरण करके इस प्रश्न को हल किया। दूसरे शब्दों में, उन्होंने एक देश को कुछ यूँ चित्रित किया जैसे वह कोई व्यक्ति हो। उस समय राष्ट्रों को नारी भेष में प्रस्तुत किया जाता था। राष्ट्र को व्यक्ति का जामा पहनाते हुए जिस नारी रूप को चुना गया वह असल जीवन में कोई खास महिला नहीं थी। यह तो राष्ट्र के अमूर्त विचार को ठोस रूप प्रदान करने का प्रयास था। यानी नारी की छवि राष्ट्र का रूपक बन गई।
चित्र 16 - 1850 का डाक टिकट। इसमें मारीआन की तसवीर बनाई गई है जो फ़ांसीसी गणराज्य का प्रतिनिधित्व करती है।
आपको याद होगा कि फ़्रांसीसी क्रांति के दौरान कलाकारों ने स्वतंत्रता, न्याय और गणतंत्र जैसे विचारों को व्यक्त करने के नारी रूपक का प्रयोग किया। इन आदर्शों को विशेष वस्तुओं या प्रतीकों से व्यक्त किया गया था। जैसा कि आपको याद होगा स्वतंत्रता का प्रतीक लाल टोपी या टूटी ज़ंजीर है और इंसाफ़ को आमतौर पर एक ऐसी महिला के प्रतीकात्मक रूप से व्यक्त किया जाता है जिसकी आँखों पर पट्टी बँधी हुई है और वह तराज़ू हुए है।
इसी प्रकार के नारी रूपकों का आविष्कार कलाकारों ने उन्नीसवों सदी में किया। फ़ांस में उसे लोकप्रिय ईसाई नाम मारीआन दिया गया जिसने जन-राष्ट्र के विचार को रेखांकित किया। उसके चिहन भी स्वतंत्रता और गणतंत्र के थे - लाल टोपी, तिरंगा और कलगी। मारीआन की प्रतिमाएँ सार्वजनिक चौकों पर लगाई गईं ताकि जनता को एकता के राष्ट्रीय प्रतीक की याद आती रहे और लोग उससे तादात्म्य स्थापित कर सकें। मारीआन की छवि सिक्कों और डाक टिकटों पर अंकित की गई। इसी तरह जर्मेनिया, जर्मन राष्ट्र का रूपक बन गई। चाक्षुष अभिव्यक्तियों में जर्मेनिया बलूत वृक्ष के पत्तों का मुकुट पहनती है क्योंकि जर्मन बलूत वीरता का प्रतीक है।
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रूपक : जब किसी अमूर्त विचार (जैसे, लालच, ईर्ष्या, स्वतंत्रता, मुक्ति) को किसी व्यक्ति या किसी चीज़ के जरिए इंगित किया जाता है। एक रूपकात्मक कहानी के दो अर्थ होते हैं- एक शाद्धिक और एक प्रतीकात्मक।
चित्र 17 - जर्मेनिया, चित्रकार फ़िलिप वेट, 1848
चित्रकार ने जर्मेनिया के इस चित्र को सूती झंडे पर बनाया चूँकि इसे सेंट पॉल चर्च की छत से लटकना था और जहाँ मार्च 1848 में फ़्रैंकफ़र्ट संसद बुलाई गई।
प्रतीकों के अर्थ
गुण महत्त्व टूटी हुई बेड़ियाँ आज़ादी मिलना बाज़-छाप कवच जर्मन साम्राज्य की प्रतीक-शक्ति बलूत पत्तियों का मुकुट बहादुरी तलवार मुक़ाबले की तैयारी तलवार पर लिपटी जैतून की डाली शांति की चाह काला, लाल और सुनहरा तिरंगा 1848 में उदारावी-राष्ट्रवादियों का झंडा, जिसे जर्मन राज्यों के ड्यूक्स ने प्रतिबंधित घोषित
कर दियाउगते सूर्य की किरणें एक नए युग का सूत्रपात
गतिविधि
बॉक्स 3 में दिए गए चार्ट की सहायता से वेइत की जर्मेनिया के गुणों को पहचानें और तसवीर के प्रतीकात्मक अर्थ की व्याख्या करें। 1836 की एक पुरानी रूपकात्मक तसवीर में वेइत ने काइज़र के मुकुट को उस जगह चित्रित किया था जहाँ अब उन्होंने टूटी हुई बेड़ियाँ दिखायी हैं। इस बदलाव का महत्त्व स्पष्ट करें।
चित्र 18 - ‘द फॉलेले जर्मेनिया’ (हताश जर्मेनिया), जूलियस ह्यूबनर, 1850
गतिविधि
बताएँ कि चित्र 18 में आपको क्या दिखायी पड़ रहा है। राष्ट्र के इस रूपकात्मक चित्रण में ह्यूबनर किन ऐतिहासिक घटनाओं की ओर संकेत कर रहे हैं?
चित्र 19 - जर्मेनिया गार्डिंग द राइन (राइन नदी पर पहरा देती जर्मेनिया)।
1860 में चित्रकार लॉरेन्ज़ क्लासेन को यह चित्र बनाने का काम सौंपा गया। जर्मेनिया की तलवार पर खुदा हुआ है : ‘जर्मन तलवार जर्मन राइन की रक्षा करती है’
गतिविधि
चित्र 10 को एक बार फिर देखें। कल्पना करें की आप मार्च 1848 में फ्रैंकफ़र्ट के नागरिक हैं और संसद की कार्रवाई के समय वहीं मौजूद हैं। यदि आप हॉल ऑफ़ डेप्यूटीज़ में बैठे हुए पुरुष होते तो दीवार पर लगे जर्मेनिया के बैनर को देखकर क्या महसूस करते? और अगर आप हॉल ऑफ़ डेप्यूटीज़ में बैठी महिला होतों तो इस चित्र को देखकर क्या महसूस करतीं? दोनों भाव लिखें।
6 राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद
उन्नीसवों सदी की अंतिम चौथाई तक राष्ट्रवाद का वह आदर्शवादी उदारवादी-जनतांत्रिक स्वभाव नहीं रहा जो सदी के प्रथम भाग में था। अब राष्ट्रवाद सीमित लक्ष्यों वाला संकीर्ण सिद्धांत बन गया। इस बीच के दौर में राष्ट्रवादी समूह एक-दूसरे के प्रति अनुदार होते चले गए और लड़ने के हमेशा तैयार रहते थे। साथ ही प्रमुख यूरोपीय शक्तियों ने भी अपने साम्राज्यवादी उद्शेश्यों की प्राप्ति के अधीन लोगों की राष्ट्रवादी आकांक्षाओं का इस्तेमाल किया।
1871 के बाद यूरोप में गंभीर राष्ट्रवादी तनाव का स्रोत बाल्कन क्षेत्र था। इस क्षेत्र में भौगोलिक और जातीय भिन्नता थी। इसमें आधुनिक रोमानिया, बुल्लेरिया, अल्बेनिया, यूनान, मेसिडोनिया, क्रोएशिया, बोस्निया-हर्जे़ोगोविना, स्लोवेनिया, सर्बिया और मॉन्टिनिग्रो शामिल थे। क्षेत्र के निवासियों को आमतौर पर स्लाव पुकारा जाता था। बाल्कन क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा ऑटोमन साम्राज्य के नियंत्रण में था। बाल्कन क्षेत्र में रूमानी राष्ट्रवाद के विचारों के फैलने और ऑटोमन साम्राज्य के विघटन से स्थिति काफ़ी विस्फोटक हो गई। उन्नीसवीं सदी में ऑटोमन साम्राज्य ने आधुनिकीकरण और आंतरिक सुधारों के ज़रिए मज़बूत बनना चाहा था किंतु इसमें इसे बहुत कम सफलता मिली। एक के बाद एक उसके अधीन यूरोपीय राष्ट्रीयताएँ उसके चंगुल से निकल कर स्वतंत्रता की घोषणा करने लगीं। बाल्कन लोगों ने आज़ादी या राजनीतिक अधिकारों के अपने दावों को राष्ट्रीयता का आधार दिया। उन्होंने इतिहास का इस्तेमाल यह साबित करने के किया कि वे कभी स्वतंत्र थे किंतु तत्पश्चात विदेशी शक्तियों ने उन्हें अधीन कर लिया। अतः बाल्कन क्षेत्र के विद्रोही राष्ट्रीय समूहों ने अपने संघर्षों को लंबे समय से खोई आज़ादी को वापस पाने के प्रयासों के रूप में देखा।
जैसे-जैसे विभिन्न स्लाव राष्ट्रीय समूहों ने अपनी पहचान और स्वतंत्रता की परिभाषा तय करने की कोशिश की, बाल्कन क्षेत्र गहरे टकराव का क्षेत्र बन गया। बाल्कन राज्य एक-दूसरे से भारी ईर्ष्या करते थे और हर एक राज्य अपने ज़्यादा से ज़्यादा इलाक़ा हथियाने की उम्मीद रखता था। परिस्थितियाँ और अधिक जटिल इस हो गईं क्योंकि बाल्कन क्षेत्र में बड़ी शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा होने लगी। इस समय यूरोपीय शक्तियों के बीच व्यापार, और उपनिवेशों के साथ नौसैनिक और सैन्य ताक़त के गहरी प्रतिस्पर्धा थी। जिस तरह बाल्कन समस्या आगे बढ़ी उसमें यह प्रतिस्पर्धाएँ खुल कर सामने आईं। रूस, जर्मनी, इंग्लैंड, ऑस्ट्रो-हंगरी की हर ताक़त बाल्कन पर अन्य शक्तियों की पकड़ को कमज़ोर करके क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहती थीं। इससे इस इलाके में कई युद्ध हुए और अंततः प्रथम विश्व युद्ध हुआ।
चित्र 20 - ब्रिटिश साम्राज्य का यशगान करता एक मानचित्र।
सबसे ऊपर फ़रिश्ते स्वतंत्रता का बैनर थामे दिखायी देते हैं। अग्रभाग में ब्रिटिश राष्ट्र का प्रतीक-ब्रितानिया-विजयभाव के साथ भूमंडल के ऊपर बैठा है। उपनिवेशों को शेर, हाथी, वन और आदिम समुदायों की छवियों के ज़रिए दर्शाया गया है। दुनिया पर प्रभुत्व को ब्रिटिश राष्ट्रीय गौरव का विषय बताया गया है।
साम्राज्यवाद से जुड़ कर राष्ट्रवाद 1914 में यूरोप को महाविपदा की ओर ले गया। लेकिन इस बीच विश्व के अनेक देशों ने जिनका उन्नीसवों सदी में यूरोपीय शक्तियों ने औपनिवेशीकरण किया था, साम्राज्यवादी प्रभुत्व का विरोध करने लगे। हर तरफ़ जो साम्राज्य विरोधी आंदोलन विकसित हुए इस अर्थ में राष्ट्रवादी थे कि वे सभी स्वतंत्र राष्ट्र-राज्य का निर्माण करने के संघर्ष कर रहे थे। वे सभी एक सामूहिक राष्ट्रीय एकता की भावना से प्रेरित थे जो साम्राज्यवाद-विरोध की प्रक्रिया में उभरी। राष्ट्रवाद के यूरोपीय विचार कहीं और नहीं दोहराए गए क्योंकि हर जगह लोगों ने अपनी तरह का विशिष्ट राष्ट्रवाद विकसित किया। मगर यह विचार कि समाजों को ‘राष्ट्र-राज्यों’ में गठित किया जाना चाहिए, अब स्वाभाविक और सार्वभौम मान लिया गया।
संक्षेप में लिखें
1. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें-
(क) ज्युसेपे मेत्सिनी
(ख) काउंट कैमिलो दे कावूर
(ग) यूनानी स्वतंत्रता युद्ध
(घ) फ्रैंकफ़र्ट संसद
(ङ) राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं की भूमिका
2. फ़्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के फ़्रांसीसी क्रांतिकारियों ने क्या क़दम उठाए?
3. मारीआन और जर्मेनिया कौन थे? जिस तरह उन्हें चित्रित किया गया उसका क्या महत्त्व था?
4. जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया का संक्षेप में पता लगाएँ।
5. अपने शासन वाले क्षेत्रों में शासन व्यवस्था को ज्यादा कुशल बनाने के नेपोलियन ने क्या बदलाव किए?
चर्चा करें
1. उदारवादियों की 1848 की क्रांति का क्या अर्थ लगाया जाता है? उदारवादियों ने किन राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विचारों को बढ़ावा दिया ?
2. यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान को दर्शाने के तीन उदाहरण दें।
3. किन्हीं दो देशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए बताएँ कि उन्नीसवीं सदी में राष्ट्र किस प्रकार विकसित हुए।
4. ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का इतिहास शेष यूरोप की तुलना में किस प्रकार भिन्न था?
5. बाल्कन प्रदेशों में राष्ट्रवादी तनाव क्यों पनपा?
परियोजना कार्य
यूरोप से बाहर के देशों में राष्ट्रवादी प्रतीकों के बारे में और जानकारियाँ इकट्ठा करें। एक या दो देशों के विषय में ऐसी तसवरें, पोस्टर्स और संगीत इकट्ठा करें जो राष्ट्रवाद के प्रतीक थे। वे यूरोपीय राष्ट्रवाद के प्रतीकों से भिन्न कैसे हैं?