अध्याय 01 फ़्रांसिसी क्रांति

चौदह जुलाई 1789 की सुबह, पेरिस नगर में आतंक का माहौल था। सम्राट ने सेना को शहर में घुसने का आदेश दे दिया था। अफ़वाह थी कि वह सेना को नागरिकों पर गोलियाँ चलाने का आदेश देने वाला है। लगभग 7000 मर्द तथा औरतें टॉउन हॉल के सामने एकत्र हुए और उन्होंने एक जन-सेना का गठन करने का निर्णय किया। हथियारों की खोज में वे बहुत-से सरकारी भवनों में जबरन प्रवेश कर गए।

अंततः सैकड़ों लोगों का एक समूह पेरिस नगर के पूर्वी भाग की ओर चल पड़ा और बास्तील (Bastille) किले की जेल को तोड़ डाला जहाँ भारी मात्रा में गोला-बारूद मिलने की संभावना थी। हथियारों पर कब्ज़े की इस सशस्त्र लड़ाई में बास्तील का कमांडर मारा गया और कैदी छुड़ा गए, यद्यपि उनकी संख्या केवल सात थी। सम्राट की निरंकुश शक्तियों का प्रतीक होने के कारण बास्तील किला लोगों की घृणा का केंद्र था। इस किले को ढहा दिया गया और उसके अवशेष बाज़ार में उन लोगों को बेच दिए गए जो इस ध्वंस को बतौर स्मृति-चिह्न संजोना चाहते थे।

इस घटना के बाद कई दिनों तक पेरिस तथा देश के देहाती क्षेत्रों में कई और संघर्ष हुए। अधिकांश जनता पावरोटी की महँगी कीमतों का विरोध कर रही थी। बाद में इस दौर का सिंहावलोकन करते हुए इतिहासकारों ने इसे एक लंबे घटनाक्रम की ऐसी शुरुआती कड़ियों के रूप में देखा जिनकी परिणति फ्रांस के सम्राट को फाँसी दिए जाने में हुई, हालाँकि उस समय अधिकांश लोगों को ऐसे नतीजे की उम्मीद नहीं थी। ऐसा क्यों और कैसे हुआ?

चित्र 1 - बास्तील का ध्वंस.
बास्तील ध्वंस के बाद चित्रकारों ने इस घटना की याद में कई चित्र बनाए।

1 अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध में फ्रांसीसी समाज

सन् 1774 में बूर्बों राजवंश का लुई XVI फ्रांस की राजगद्दी पर आसीन हुआ। उस समय उसकी उम्र केवल बीस साल थी और उसका विवाह ऑस्ट्रिया की राजकुमारी मेरी एन्तोएनेत से हुआ था। राज्यारोहण के समय उसने राजकोष खाली पाया। लंबे समय तक चले युद्धों के कारण फ्रांस के वित्तीय संसाधन नष्ट हो चुके थे। वर्साय (Versailles) के विशाल महल और राजदरबार की शानो-शौकत बनाए रखने की फिज़ूलखर्ची का बोझ अलग से था। लुई XVI के शासनकाल में फ़्रांस ने अमेरिका के 13 उपनिवेशों को साझा शत्रु ब्रिटेन से आज़ाद कराने में सहायता दी थी। इस युद्ध के चलते फ्रांस पर दस अरब लिव्रे से भी अधिक का कर्ज़ और जुड़ गया जबकि उस पर पहले से ही दो अरब लित्रे का बोझ चढ़ा हुआ था। सरकार से कर्ज़दाता अब 10 प्रतिशत ब्याज की माँग करने लगे थे। फलस्वरूप फ्रांसीसी सरकार अपने बजट का बहुत बड़ा हिस्सा दिनोंदिन बढ़ते जा रहे कर्ज़ को चुकाने पर मजबूर थी। अपने नियमित खर्चों जैसे, सेना के रख-रखाव, राजदरबार, सरकारी कार्यालयों या विश्वविद्यालयों को चलाने के फ्रांसीसी सरकार करों में वृद्धि के बाध्य हो गई पर यह कदम भी नाकाफ़ी था। अठारहवीं सदी में फ्रांसीसी समाज तीन एस्टेट्स में बँटा था और केवल तीसरे एस्टेट के लोग (जनसाधारण) ही कर अदा करते थे।

चित्र 2 - एस्टेट्स का समाज .
ध्यान दें कि तृतीय एस्टेट में कुछ लोग अमीर हैं तो कुछ गरीब भी हैं।

वर्गों में विभाजित फ़्रांसीसी समाज मध्यकालीन सामंती व्यवस्था का अंग था। ‘प्राचीन राजतंत्र’ पद का प्रयोग सामान्यतः सन् 1789 से पहले के फ्रांसीसी समाज एवं संस्थाओं के होता है।

चित्र 2 फ्रांसीसी समाज की वर्ग-व्यवस्था को दर्शाता है। पूरी आबादी में लगभग 90 प्रतिशत किसान थे। लेकिन, ज़मीन के मालिक किसानों की संख्या बहुत कम थी। लगभग 60 प्रतिशत ज़मीन पर कुलीनों, चर्च और तीसरे एस्टेट्स के अमीरों का अधिकार था। प्रथम दो एस्टेट्स, कुलीन वर्ग एवं पादरी वर्ग के लोगों को कुछ विशेषाधिकार जन्मना प्राप्त थे। इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषाधिकार था-राज्य को दिए जाने वाले करों से छूट। कुलीन वर्ग को कुछ अन्य सामंती विशेषाधिकार भी हासिल थे। वह किसानों से सामंती कर वसूल करता था। किसान अपने स्वामी की सेवा-स्वामी के घर एवं खेतों में काम करना, सैन्य सेवाएँ देना अथवा सड़कों के निर्माण में सहयोग आदि-करने के बाध्य थे।

नए शब्द

लिव्रे : फ्रांस की मुद्रा जिसे 1794 में समाप्त कर दिया गया।

एस्टेट : क्रांति-पूर्व फ्रांसीसी समाज में सत्ता और सामाजिक हैसियत को अभिव्यक्त करने वाली श्रेणी।

पादरी वर्ग : चर्च के विशेष कार्यों को करने वाले व्यक्तियों का समूह।

टाइद : चर्च द्वारा वसूल किया जाने वाला कर। यह कर कृषि उपज के दसवें हिस्से के बराबर होता था।

टाइल : सीधे राज्य को अदा किया जाने वाला कर।

चर्च भी किसानों से करों का एक हिस्सा, टाइद (Tithe, धार्मिक कर) के रूप में वसूलता था। ऊपर से तीसरे एस्टेट के तमाम लोगों को सरकार को तो कर चुकाना ही होता था। इन करों में टाइल (Taille, प्रत्यक्ष कर) और अनेक अप्रत्यक्ष कर शामिल थे। अप्रत्यक्ष कर नमक और तम्बाकू जैसी रोज़ाना उपभोग की वस्तुओं पर लगाया जाता था। इस प्रकार राज्य के वित्तीय कामकाज का सारा बोझ करों के माध्यम से जनता वहन करती थी।

चित्र 3 - मकड़ा और मक्खी.
एक अनाम उत्कीर्ण चित्र।

क्रियाकलाप

बताएँ कि चित्रकार ने कुलीन व्यक्ति को मकड़े और किसान को मक्खी के रूप में क्यों चित्रित किया है।

1.1 जीने का संघर्ष

फ़्रांस की जनसंख्या सन् 1715 में 2.3 करोड़ थी जो सन् 1789 में बढ़कर 2.8 करोड़ हो गई। परिणामतः अनाज उत्पादन की तुलना में उसकी माँग काफ़ी तेज़ी से बढ़ी। अधिकांश लोगों के मुख्य खाद्य-पावरोटी-की कीमत में तेज़ी से वृद्धि हुई। अधिकतर कामगार कारखानों में मज़दूरी करते थे और उनकी मज़दूरी मालिक तय करते थे। लेकिन मज़दूरी महँगाई की दर से नहीं बढ़ रही थी। फलस्वरूप, अमीर-गरीब की खाई चौड़ी होती गई। स्थितियाँ तब और बदतर हो जातीं जब सूखे या ओले के प्रकोप से पैदावार गिर जाती। इससे रोज़ी-रोटी का संकट पैदा हो जाता था। ऐसे जीविका संकट प्राचीन राजतंत्र के दौरान फ़्रांस में काफ़ी आम थे।

नए शब्द

जीविका संकट : ऐसी चरम स्थिति जब जीवित रहने के न्यूनतम साधन भी खतरे में पड़ने लगते हैं।

अनाम : जिसका नाम मालूम नहीं है।

1.2 जीविका का संकट कैसे उत्पन्न होता है

चित्र 4 - जीविका संकट का चक्र.

क्रियाकलाप

नीचे दिए गए शब्दों में से सही शब्द चुनकर चित्र 4 के रिक्त स्थानों को भरें : खाद्य दंगे, अन्नाभाव, मृतकों की संख्या में वृद्धि, खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमत, कमज़ोर शरीर।

1.3 उभरते मध्य वर्ग ने विशेषाधिकारों के अंत की कल्पना की

पहले भी कर बढ़ने एवं अकाल के समय किसान और कामगार विद्रोह कर चुके थे। परंतु उनके पास सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था में बुनियादी बदलाव लाने के साधन एवं कार्यक्रम नहीं थे। ये ज़िम्मेदारी तीसरे एस्टेट के उन समूहों ने उठाई जो समृद्ध और शिक्षित होकर नए विचारों के संपर्क में आ सके थे।

अठारहवीं सदी में एक नए सामाजिक समूह का उदय हुआ जिसे मध्य वर्ग कहा गया, जिसने फैलते समुद्रपारीय व्यापार और ऊनी तथा रेशमी वस्त्रों के उत्पादन के बल पर संपत्ति अर्जित की थी। ऊनी और रेशमी कपड़ों का या तो निर्यात किया जाता था या समाज के समृद्ध लोग उसे खरीद लेते थे। तीसरे एस्टेट में इन सौदागरों एवं निर्माताओं के अलावा प्रशासनिक सेवा व वकील जैसे पेशेवर लोग भी शामिल थे। ये सभी पढ़े-लिखे थे और इनका मानना था कि समाज के किसी भी समूह के पास जन्मना विशेषाधिकार नहीं होने चाहिए। किसी भी व्यक्ति की सामाजिक हैसियत का आधार उसकी योग्यता ही होनी चाहिए। स्वतंत्रता, समान नियमों तथा समान अवसरों के विचार पर आधारित समाज की यह परिकल्पना जॉन लॉक और ज़्याँ ज़ाक रूसो जैसे दार्शनिकों ने प्रस्तुत की थी। अपने टू ट्रीटाइज़ेज़ ऑफ़ गवर्नमेंट में

लॉक ने राजा के दैवी और निरंकुश अधिकारों के सिद्धांत का खंडन किया था। रूसो ने इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए जनता और उसके प्रतिनिधियों के बीच एक सामाजिक अनुबंध पर आधारित सरकार का प्रस्ताव रखा। मॉन्तेस्क्यू ने द स्पिरिट ऑफ़ द लॉज़ नामक रचना में सरकार के अंदर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सत्ता विभाजन की बात कही। जब संयुक्त राज्य अमेरिका में 13 उपनिवेशों ने ब्रिटेन से खुद को आज़ाद घोषित कर दिया तो वहाँ इसी मॉडल की सरकार बनी। फ़्रांस के राजनीतिक चिंतकों के अमेरिकी संविधान और उसमें दी गई व्यक्तिगत अधिकारों की गारंटी प्रेरणा का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत थी।

दार्शनिकों के इन विचारों पर कॉफ़ी हाउसों व सैलॉन की गोष्ठियों में गर्मागर्म बहस हुआ करती और पुस्तकों एवं अखबारों के माध्यम से इनका व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ। पुस्तकों एवं अखबारों को लोगों के बीच ज़ोर से पढ़ा जाता ताकि अनपढ़ भी उन्हें समझ सकें। इसी समय लुई XVI द्वारा राज्य के खर्चों को पूरा करने के फिर से कर लगाये जाने की खबर से विशेषाधिकार वाली व्यवस्था के विरुद्ध गुस्सा भड़क उठा।

स्रोत क

प्राचीन राजतंत्र में हुए अनुभवों का वृत्तांत

1. आगे चलकर क्रांतिकारी राजनीति में सक्रिय होने वाले जॉर्ज दान्तन ने अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद के समय को याद करते हुए सन् 1793 में अपने एक मित्र को लिखा :

‘मैं प्लेसिस के आवासीय कॉलेज में था। वहाँ मुझे कई महत्त्वपूर्ण लोगों का सान्निध्य मिला…। पढ़ाई पूरी होने के बाद बेकारी के दिनों में मैं नौकरी की तलाश में जुट गया। पेरिस के न्यायालय में नौकरी मिलनी असंभव थी। सेना में नौकरी का विकल्प भी मेरे नहीं था क्योंकि मैं न तो जन्मजात कुलीन था और न ही मेरा कोई संरक्षक था। चर्च भी मुझे आसरा नहीं दे सका। मैं कोई ओहदा भी खरीदने की स्थिति में नहीं था क्योंकि मेरी जेब में एक सू (फ्रांसीसी पैसा) तक नहीं था। पुराने दोस्तों ने भी मुँह मोड़ लिया था। … व्यवस्था ने हमें पढ़ा-लिखा तो दिया था लेकिन हमारी प्रतिभा के इस्तेमाल के अवसर उपलब्ध नहीं कराए थे।’

2. आर्थर यंग नाम के एक अंग्रेज़ ने सन् 1787-1789 के दौरान फ्रांस की यात्रा की और अपनी यात्रा का विस्तृत वृत्तांत लिखा। इस वृत्तांत में उसकी यह टिप्पणी दिलचस्प है :

‘सेवा-टहल में लगे अपने गुलामों, खासतौर पर उनके साथ बुरा व्यवहार करने वाले को पता होना चाहिए कि इस तरह वह अपनी ज़िंदगी को ऐसी स्थिति में डाल रहा है जो उस स्थिति से बिल्कुल भिन्न होती जिसमें उसने मुक्त लोगों की सेवाएँ ली होतों और उनसे बेहतर बर्ताव करता। जो अपने पीड़ितों की कराह सुनते हुए भोज उड़ाना पसंद करते हैं उन्हें दंगे के दौरान अपनी बेटी के अपहरण या बेटे का गला रेत दिए जाने का दुखड़ा नहीं रोना चाहिए।’

क्रियाकलाप

यहाँ यंग क्या संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं? ‘गुलामों’ से उनका क्या आशय है? वह किसकी आलोचना कर रहे हैं? सन् 1787 में उन्हें किन खतरों का आभास होता है?

2 क्रांति की शुरुआत

पिछले भाग में आप देख चुके हैं कि किन कारणों से लुई XVI ने कर बढ़ा दिए थे। क्या आप सोच सकते हैं कि उसने ऐसा कैसे किया होगा? प्राचीन राजतंत्र के तहत फ्रांसीसी सम्राट अपनी मर्ज़ी से कर नहीं लगा सकता था। इसके उसे एस्टेट्स जेनराल (प्रतिनिधि सभा) की बैठक बुला कर नए करों के अपने प्रस्तावों पर मंजूरी लेनी पड़ती थी। एस्टेट्स जेनराल एक राजनीतिक संस्था थी जिसमें तीनों एस्टेट अपने-अपने प्रतिनिधि भेजते थे। लेकिन सम्राट ही यह निर्णय करता था कि इस संस्था की बैठक कब बुलाई जाए। इसकी अंतिम बैठक सन् 1614 में बुलाई गई थी।

फ्रांसीसी सम्राट लुई XVI ने 5 मई 1789 को नये करों के प्रस्ताव के अनुमोदन के एस्टेट्स जेनराल की बैठक बुलाई। प्रतिनिधियों की मेज़बानी के वर्साय के एक आलीशान भवन को सजाया गया। पहले और दूसरे एस्टेट ने इस बैठक में अपने 300-300 प्रतिनिधि भेजे जो आमने-सामने की कतारों में बिठाए गए। तीसरे एस्टेट के 600 प्रतिनिधि उनके पीछे खड़े किए गए। तीसरे एस्टेट का प्रतिनिधित्व इसके अपेक्षाकृत समृद्ध एवं शिक्षित वर्ग कर रहे थे। किसानों, औरतों एवं कारीगरों का सभा में प्रवेश वर्जित था। फिर भी लगभग 40,000 पत्रों के माध्यम से उनकी शिकायतों एवं माँगों की सूची बनाई गई, जिसे प्रतिनिधि अपने साथ लेकर आए थे।

कुछ महत्त्वपूर्ण तिथियाँ

1774
लुई XVI फ्रांस का राजा बनता है। सरकारी खज़ाना खाली हो चुका है और प्राचीन राजतंत्र के समाज में असंतोष गहराता जा रहा है।

1789
एस्टेट्स जेनराल का आह्वान । तृतीय एस्टेट नैशनल असेंबली का गठन करता है। बास्तील पर हमला, देहात में किसानों का विद्रोह।

1791
सम्राट की शक्तियों पर अंकुश लगाने और सभी मनुष्यों को मूलभूत अधिकार प्रदान करने के संविधान बनाया जाता है।

1792-93
फ़्रांस गणराज्य बनता है; सिर काट कर राजा को मार दिया जाता है।

जैकोबिन गणराज्य का पतन; फ़्रांस पर डिरेक्ट्री का शासन।

1804
नेपोलियन फ्रांस का सम्राट बनता है; यूरोप के विशाल भूभाग पर कब्जा कर लेता है।

1815
वॉटरलू में नेपोलियन की हार।

एस्टेट्स जेनराल के नियमों के अनुसार प्रत्येक वर्ग को एक मत देने का अधिकार था। इस बार भी लुई XVI इसी प्रथा का पालन करने के दृढ़प्रतिज्ञ था। परंतु तीसरे वर्ग के प्रतिनिधियों ने माँग रखी कि अबकी बार पूरी सभा द्वारा मतदान कराया जाना चाहिए, जिसमें प्रत्येक सदस्य को एक मत देने का अधिकार होगा। यह एक लोकतांत्रिक सिद्धांत था जिसे मिसाल के तौर पर रूसो ने अपनी पुस्तक द सोशल कॉन्ट्रैक्ट में प्रस्तुत किया था। जब सम्राट ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया तो तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि विरोध जताते हुए सभा से बाहर चले गए।

तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि खुद को संपूर्ण फ्रांसीसी राष्ट्र का प्रवक्ता मानते थे। 20 जून को ये प्रतिनिधि वर्साय के इन्डोर टेनिस कोर्ट में जमा हुए। उन्होंने अपने आप को नैशनल असेंबली घोषित कर दिया और शपथ ली कि जब तक सम्राट की शक्तियों को कम करने वाला संविधान तैयार नहीं किया जाएगा तब तक असेंबली भंग नहीं होगी। उनका नेतृत्व मिराब्यो और आबे सिए ने किया। मिराब्यो का जन्म कुलीन परिवार में हुआ था लेकिन वह सामंती विशेषाधिकारों वाले समाज को खत्म करने की ज़रूरत से सहमत था। उसने एक पत्रिका निकाली और वर्साय में जुटी भीड़ के समक्ष ज़ोरदार भाषण भी दिए। आबे सिए मूलतः पादरी था और उसने ‘तीसरा एस्टेट क्या है?’ शीर्षक से एक अत्यंत प्रभावशाली प्रचार-पुस्तिका (पैम्फ़्लेट) लिखी।

क्रियाकलाप

तृतीय एस्टेट के प्रतिनिधि मध्य में एक मेज़ पर खड़े असेंबली अध्यक्ष बेयली की ओर हाथ उठाकर शपथ लेते हैं। क्या आप मानते हैं कि उस समय बेयली निर्वाचित प्रतिनिधियों की ओर पीठ करके खड़ा रहा होगा? बेयली को इस तरह दर्शाने (चित्र 5) के पीछे डेविड का क्या इरादा प्रतीत होता है?

चित्र 5 - टेनिस कोर्ट में शपथ .
एक विशाल पेंटंग के ज़ाक-लुई डंविड द्वारा बनाया गया शुरुआती रेखांकन। यह तस्वीर नैशनल असेंबली में लगाई जानी थी।

जिस वक्त नैशनल असेंबली संविधान का प्रारूप तैयार करने में व्यस्त थी, पूरा फ्रांस आंदोलित हो रहा था। कड़ाके की ठंड के कारण फ़सल मारी गई थी और पावरोटी की कीमतें आसमान छू रही थीं। बेकरी मालिक स्थिति का फ़ायदा उठाते हुए जमाखोरी में जुटे थे। बेकरी की दुकानों पर घंटों के इंतज़ार के बाद गुस्सायी औरतों की भीड़ ने दुकान पर धावा बोल दिया। दूसरी तरफ़ सम्राट ने सेना को पेरिस में प्रवेश करने का आदेश दे दिया था। क्रुद्ध भीड़ ने 14 जुलाई को बास्तील पर धावा बोलकर उसे नेस्तनाबूद कर दिया।

देहाती इलाकों में गाँव-गाँव यह अफ़वाह फैल गई कि जागीरों के मालिकों ने भाड़े पर लठैतों-लुटेरों के गिरोह बुला हैं जो पकी फ़सलों को तबाह करने निकल पड़े हैं। कई ज़िलों में भय से आक्रांत होकर किसानों ने कुदालों और बेलचों से ग्रामीण किलों (chateau) पर आक्रमण कर दिए। उन्होंने अन्न भंडारों को लूट लिया और लगान संबंधी दस्तावेज़ों को जलाकर राख कर दिया। कुलीन बड़ी संख्या में अपनी जागीरें छोड़कर भाग गए, बहुतों ने तो पड़ोसी देशों में जाकर शरण ली।

चित्र 6 - भय की लहर का प्रसार .
मानचित्र से पता चलता है कि किस तरह किसानों के जत्थे एक जगह से दूसरी जगह फैलते चले गए।

अपनी विद्रोही प्रजा की शक्ति का अनुमान करके, लुई XVI ने अंतत: नैशनल असेंबली को मान्यता दे दी और यह भी मान लिया कि उसकी सत्ता पर अब से संविधान का अंकुश होगा। 4 अगस्त, 1789 की रात को असेंबली ने करों, कर्त्तव्यों और बंधनों वाली सामंती व्यवस्था के उन्मूलन का आदेश पारित किया। पादरी वर्ग के लोगों को भी अपने विशेषाधिकारों को छोड़ देने के विवश किया गया। धार्मिक कर समाप्त कर दिया गया और चर्च के स्वामित्व वाली भूमि ज़ब्त कर ली गई। इस प्रकार कम से कम 20 अरब लित्रे की संपत्ति सरकार के हाथ में आ गई।

2.1 फ्रांस संवैधानिक राजतंत्र बन गया

नैशनल असेंबली ने सन् 1791 में संविधान का प्रारूप पूरा कर लिया। इसका मुख्य उद्देश्य था-सम्राट की शक्तियों को सीमित करना। एक व्यक्ति के हाथ में केंद्रीकृत होने के बजाय अब इन शक्तियों को विभिन्न संस्थाओं-विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका-में विभाजित एवं हस्तांतरित कर दिया गया। इस प्रकार फ्रांस में संवैधानिक राजतंत्र की नींव पड़ी। चित्र 7 दिखाता है कि नयी राजनीतिक व्यवस्था कैसे काम करती थी।

चित्र 7 - 1791 के संविधान के अंतर्गत राजनीतिक व्यवस्था.

सन् 1791 के संविधान ने कानून बनाने का अधिकार नैशनल असेंबली को सौंप दिया। नैशनल असेंबली अप्रत्यक्ष रूप से चुनी जाती थी। सर्वप्रथम नागरिक एक निर्वाचक समूह का चुनाव करते थे, जो पुनः असेंबली के सदस्यों को चुनते थे। सभी नागरिकों को मतदान का अधिकार नहीं था। 25 वर्ष से अधिक उम्र वाले केवल ऐसे पुरुषों को ही सक्रिय नागरिक (जिन्हें मत देने का अधिकार था) का दर्जा दिया गया था, जो कम-से-कम तीन दिन की मज़दूरी के बराबर कर चुकाते थे। शेष पुरुषों और महिलाओं को निष्क्रिय नागरिक के रूप में वर्गीकृत किया गया था। निर्वाचक की योग्यता प्राप्त करने तथा असेंबली का सदस्य होने के लोगों का करदाताओं की उच्चतम श्रेणी में होना ज़रूरी था।

चित्र 8 - ‘पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र’ का 1790 में ले बार्बिये द्वारा बनाया गया चित्र। दायीं और की आकृति फ़्रांस को और बायीं ओर की कानून को निरूपित करती है।

संविधान ‘पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र’ के साथ शुरू हुआ था। जीवन के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और कानूनी बराबरी के अधिकार को ‘नैसर्गिक एवं अहरणीय’ अधिकार के रूप में स्थापित किया गया अर्थात् ये अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को जन्मना प्राप्त थे और इन अधिकारों को छीना नहीं जा सकता। राज्य का यह कर्त्तव्य माना गया कि वह प्रत्येक नागरिक के नैसर्गिक अधिकारों की रक्षा करे।

स्रोत ख

क्रांतिकारी पत्रकार ज्याँ-पॉल मरा (Jean-Paul Marat) ने अपने अखबार लामि द पप्ल (जनता का मित्र) में नैशनल असेंबली द्वारा तैयार किए गए संविधान पर यह टिप्पणी की थी :

‘जनता के प्रतिनिधित्व का कार्यभार अमीरों को सौंप दिया गया है … गरीबों और शोषितों की दशा केवल शांतिपूर्ण तरीकों से कभी नहीं सुधर सकती। यह इस बात का अकाट्य प्रमाण है कि धनाढ्य वर्ग कानून को कैसे प्रभावित करता है। फिर भी ये कानून तभी तक चलेंगे जब तक लोग इन्हें मानेंगे। जिस तरह उन्होंने कुलीनों द्वारा लादे गए जुए को उतार फेंका है एक दिन वही हश्र अमीरों का करेंगे।’

समाचारपत्र लामि द पप्ल से उद्धृत ।

स्रोत ग

पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र

1. आदमी स्वतंत्र पैदा होते हैं, स्वतंत्र रहते हैं और उनके अधिकार समान होते हैं।

2. हरेक राजनीतिक संगठन का लक्ष्य आदमी के नैसर्गिक एवं अहरणीय अधिकारों को संरक्षित रखना है। ये अधिकार हैं - स्वतंत्रता, सम्पत्ति, सुरक्षा एवं शोषण के प्रतिरोध का अधिकार।

3. समग्र संप्रभुता का स्रोत राज्य में निहित है; कोई भी समूह या व्यक्ति ऐसा अनाधिकार प्रयोग नहीं करेगा जिसे जनता की सत्ता की स्वीकृति न मिली हो।

4. स्वतंत्रता का आशय ऐसे काम करने की शक्ति से है जो औरों के नुकसानदेह न हो।

5. समाज के किसी भी हानिकारक कृत्य पर पाबंदी लगाने का अधिकार कानून के पास है।

6. कानून सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति है। सभी नागरिकों को व्यक्तिगत रूप से या अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से इसके निर्माण में भाग लेने का अधिकार है। कानून की नज़र में सभी नागरिक समान हैं।

7. कानूनसम्मत प्रक्रिया के बाहर किसी भी व्यक्ति को न तो दोषी ठहराया जा सकता है और न ही गिरफ़्तार अथवा नज़रबंद किया जा सकता है।

8. प्रत्येक नागरिक बोलने, लिखने और छापने के आज़ाद है। लेकिन कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के तहत ऐसी स्वतंत्रता के दुरुपयोग की ज़िम्मेदारी भी उसी की होगी।

9. सार्वजनिक सेना तथा प्रशासन के खर्च चलाने के एक सामान्य कर लगाना अपरिहार्य है। सभी नागरिकों पर उनकी आय के अनुसार समान रूप से कर लगाया जाना चाहिए।

10. चूँकि संपत्ति का अधिकार एक पावन एवं अनुलंघनीय अधिकार है, अतः किसी भी व्यक्ति को इससे वंचित नहीं किया जा सकता है, जब तक कि विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत सार्वजनिक आवश्यकता के संपत्ति का अधिग्रहण करना आवश्यक न हो। ऐसे मामले में अग्रिम मुआवज़ा ज़रूर दिया जाना चाहिए।

बॉक्स 1

राजनीतिक प्रतीकों के मायने

अठारहवीं सदी में ज़्यादातर स्त्री-पुरुष पढ़े-लिखे नहीं थे। इस महत्त्वपूर्ण विचारों का प्रचार करने के छपे हुए शब्दों के बजाय अकसर आकृतियों एवं प्रतीकों का प्रयोग किया जाता था। ले बार्बिये ने अपनी पेंटिंग (चित्र 8) में अधिकारों के घोषणापत्र को लोगों तक पहुँचाने के अनेक प्रतीकों का प्रयोग किया। आइए, इन प्रतीकों को समझने की कोशिश करें।

टूटी हुई ज़ंजीर : दासों को बाँधने के ज़ंजीरों का प्रयोग होता था। टूटी हुई हथकड़ी उनकी आज़ादी का प्रतीक है।

छड़ों का बर्छीदार गट्ठर : अकेली छड़ को आसानी से तोड़ा जा सकता है पर पूरे गट्रर को नहीं। एकता में ही बल है।

त्रिभुज के अंदर रोशनी बिखेरती आँख : सर्वदर्शी आँख ज्ञान का प्रतीक है। सूर्य की किरणें अज्ञान रूपी अंधेरे को मिटा देंगी।

राजदंड: शाही सत्ता का प्रतीक।

अपनी पूँछ मुँह में साँप : सनातनता का प्रतीक। अँगूठी का कोई ओर-छोर नहीं होता।

लाल फ्राइजियन टोपी : दासों द्वारा स्वतंत्र होने के बाद पहनी जाने वाली टोपी।

नीला-सफेेद-लाल : फ्रांस के राष्ट्रीय रंग।

डैनो वाली स्त्री: कानून का मानवीय रूप।

विधि पट: कानून सबके लिए है और उसकी नजर में सब बराबर है।


क्रियाकलाप

1. बॉक्स 1 में स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व के प्रतीकों की पहचान करें।

2. ले बार्बिये के ‘पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र (चित्र 8) में चित्रित प्रतीकों की व्याख्या करें।

3. 1791 के संविधान में नागरिकों को दिए गए राजनीतिक अधिकारों के घोषणापत्र (स्रोत ग) के अनुच्छेद 1 एवं 6 में दिए गए अधिकारों से तुलना करें। क्या दोनों दस्तावेज़ एक-दूसरे के अनुरूप हैं? क्या दोनों दस्तावेज़ों से एक ही विचार का बोध होता है?

4. 1791 के संविधान से फ्रांसीसी समाज के कौन-से समूह लाभान्वित हुए होते? किन समूहों को इससे असंतोष हो सकता था? मरा ने भविष्य के बारे में कौन-से पूर्वानुमान (स्रोत ख) लगाए थे?

5. फ़्रांस की घटनाओं से निरंकुश राजतंत्र वाले प्रशा, ऑस्ट्रिया, हंगरी या स्पेन आदि देशों पर पड़ने वाले प्रभावों की कल्पना कीजिए। फ्रांस में हो रही घटनाओं की खबरों पर राजाओं, व्यापारियों, किसानों, कुलीनों एवं पादरियों ने कैसी प्रतिक्रिया दी होगी?

3 फ्रांस में राजतंत्र का उन्मूलन और गणतंत्र की स्थापना

फ्रांस की स्थिति आने वाले वर्षों में भी तनावपूर्ण बनी रही। यद्यपि लुई XVI ने संविधान पर हस्ताक्षर कर दिए थे, परन्तु प्रशा के राजा से उसकी गुप्त वार्ता भी चल रही थी। फ़ारंस की घटनाओं से अन्य पड़ोसी देशों के शासक भी चिंतित थे। इस 1789 की गर्मियों के बाद होने वाली ऐसी घटनाओं को नियंत्रित करने के इन शासकों ने सेना भेजने की योजना बना ली थी। लेकिन जब तक इस योजना पर अमल होता, अप्रैल 1792 में नैशनल असेंबली ने प्रशा एवं ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा का प्रस्ताव पारित कर दिया। प्रांतों से हज़ारों स्वयंसेवी सेना में भर्ती होने के जमा होने लगे। उन्होंने इस युद्ध को यूरोपीय राजाओं एवं कुलीनों के विरुद्ध जनता की जंग के रूप में लिया। उनके होठों पर देशभक्ति के जो तराने थे उनमें कवि रॉजेट दि लाइल द्वारा रचित मार्सिले भी था। यह गीत पहली बार मार्सिलेस के स्वयंसेवियों ने पेरिस की ओर कूच करते हुए गाया था। इस इस गाने का नाम मार्सिले हो गया जो अब फ्रांस का राष्ट्रगान है।

क्रांतिकारी युद्धों से जनता को भारी क्षति एवं आर्थिक कठिनाइयाँ झेलनी पड़ीं। पुरुषों के मोर्चे पर चले जाने के बाद घर-परिवार और रोज़ी-रोटी की ज़िम्मेवारी औरतों के कंधों पर आ पड़ी। देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को ऐसा लगता था कि क्रांति के सिलसिले को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है क्योंकि 1791 के संविधान से सिर्फ़ अमीरों को ही राजनीतिक अधिकार प्राप्त हुए थे। लोग राजनीतिक क्लबों में अड्डे जमा कर सरकारी नीतियों और अपनी कार्ययोजना पर बहस करते थे। इनमें से जैकोबिन क्लब सबसे सफल था, जिसका नाम पेरिस के भूतपूर्व कॉन्वेंट ऑफ़ सेंट जेकब के नाम पर पड़ा, जो अब इस राजनीतिक समूह का अड्डा बन गया था। इस पूरी अवधि में महिलाएँ भी सक्रिय थीं और उन्होंने भी अपने क्लब बना । इस अध्याय के खण्ड 4 में आप उनकी गतिविधियों एवं माँगों के बारे में और जानेंगे।

जैकोबिन क्लब के सदस्य मुख्यतः समाज के कम समृद्ध हिस्से से आते थे। इनमें छोटे दुकानदार और कारीगर-जैसे जूता बनाने वाले, पेस्ट्री बनाने वाले, घड़ीसाज़, छपाई करने वाले और नौकर व दिहाड़ी मज़दूर शामिल थे। उनका नेता मैक्समिलियन रोबेस्प्येर था। जैकोबिनों के एक बड़े वर्ग ने गोदी कामगारों की तरह धारीदार लंबो पतलून पहनने का निर्णय किया। ऐसा उन्होंने समाज के फ़ैशनपरस्त वर्ग, खासतौर से घुटने तक पहने जाने वाले ब्रीचेस (घुटन्ना) पहनने वाले कुलीनों से खुद को अलग करने के किया। यह ब्रीचेस पहनने वाले कुलीनों की सत्ता समाप्ति के एलान का उनका तरीका था।

नए शब्द

कॉन्वेंट : धार्मिक जीवन को समर्पित समूह की इमारत।

चित्र 9 - सौं कुलॉत ( बिना ब्रीचेस वाले) दंपत्ति.

चित्र 10 - नानीन वालैं, लिबर्टी (स्वतंत्रता).
यह किसी महिला कलाकार द्वारा रचित दुर्लभ चित्रों में से एक है। क्रांतिकारी घटनाक्रम के बाद महिलाओं के यह संभव हो गया कि वे स्थापित चित्रकारों के साथ प्रशिक्षण प्राप्त कर सकें और हर दो साल में लगने वाली सैलॉन नामक नुमाइश में अपने चित्रों को प्रदर्शित कर सकें। यह तस्वीर स्वतंत्रता का नारी रूपक है अर्थात् नारी-आकृति स्वतंत्रता का प्रतीक है।

क्रियाकलाप

इस चित्र को ध्यान से देखें और उन वस्तुओं की सूची बनाएँ जिन्हें आपने राजनीतिक प्रतीकों के रूप में बॉक्स 1 में देखा है (लाल टोपी, टूटी हुई ज़ंजीर, छड़ों का बर्छीदार गट्रर, अधिकारों का घोषणापत्र)। पिरामिड समानता का प्रतीक है जिसे अकसर एक त्रिभुज के रूप में दिखाया जाता था। इन प्रतीकों की सहायता से इस चित्र की व्याख्या करें। स्वतंत्रता की प्रतिमूर्ति इस महिला मूर्ति के बारे में आपके क्या विचार हैं।

इसलिए जैकोबिनों को ‘सौं कुलॉत’ के नाम से जाना गया जिसका शाब्दिक अर्थ होता है - बिना घुटन्ने वाले। सौं कुलॉत पुरुष लाल रंग की टोपी भी पहनते थे जो स्वतंत्रता का प्रतीक थी। लेकिन महिलाओं को ऐसा करने की अनुमति नहीं थी।

सन् 1792 की गर्मियों में जैकोबिनों ने खाद्य पदार्थों की महँगाई एवं अभाव से नाराज़ पेरिसवासियों को लेकर एक विशाल हिंसक विद्रोह की योजना बनायी। 10 अगस्त की सुबह उन्होंने ट्यूलेरिए के महल पर धावा बोल दिया, राजा के रक्षकों को मार डाला और खुद राजा को कई घंटों तक बंधक बनाये रखा। बाद में असेंबली ने शाही परिवार को जेल में डाल देने का प्रस्ताव पारित किया। नये चुनाव कराये गए। 21 वर्ष से अधिक उम्र वाले सभी पुरुषों - चाहे उनके पास संपत्ति हो या नहीं - को मतदान का अधिकार दिया गया।

नवनिर्वाचित असेंबली को कन्वेंशन का नाम दिया गया। 21 सितंबर 1792 को इसने राजतंत्र का अंत कर दिया और फ़्रांस को एक गणतंत्र घोषित किया। जैसा कि आप जानते हैं, गणतंत्र सरकार का वह रूप है जहाँ सरकार एवं उसके प्रमुख का चुनाव जनता करती है। यह वंशानुगत राजशाही नहीं है। आप कुछ अन्य गणतांत्रिक देशों के बारे में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करें और देखें कि वे कब और कैसे गणतंत्र बने।

लुई XVI को न्यायालय द्वारा देशद्रोह के आरोप में मौत की सज़ा सुना दी गई। 21 जनवरी 1793 को प्लेस डी लॉ कॉक्कॉर्ड में उसे सार्वजनिक रूप से फाँसी दे दी गई। जल्द ही रानी मेरी एन्तोएनेत का भी वही हश्र हुआ।

नए शब्द

देशद्रोह : अपने देश या सरकार से विश्वासघात करना।

3.1 आतंक राज

सन् 1793 से 1794 तक के काल को आतंक का युग कहा जाता है। रोबेस्प्येर ने नियंत्रण एवं दंड की सख्त नीति अपनाई। उसके हिसाब से गणतंत्र के जो भी शत्रु थे - कुलीन एवं पादरी, अन्य राजनीतिक दलों के सदस्य, उसकी कार्यशैली से असहमति रखने वाले पार्टी सदस्य - उन सभी को गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया गया और एक क्रांतिकारी न्यायालय द्वारा उन पर मुकदमा चलाया गया। यदि न्यायालय उन्हें ‘दोषी’ पाता तो गिलोटिन पर चढ़ाकर उनका सिर कलम कर दिया जाता था। गिलोटिन दो खंभों के बीच लटकते आरे वाली मशीन था जिस पर रख कर अपराधी का सिर धड़ से अलग कर दिया जाता था। इस मशीन का नाम इसके आविष्कारक डॉ. गिलोटिन के नाम पर पड़ा।

स्रोत घ

स्वतंत्रता ( लिबर्टी ) क्या है ? दो परस्पर विरोधी विचार :

क्रांतिकारी पत्रकार कैमिल डेस्मॉलिन्स ने सन् 1793 में यह लिखा। इसके कुछ ही दिनों बाद आतंक राज के दौरान उसे फाँसी दे दी गईं ‘कुछ लोगों का मानना है कि स्वतंत्रता एक शिशु के समान है जिसे परिपक्व होने तक अनुशासन की अवस्था से गुज़रना आवश्यक है। पर सत्य कुछ और है। स्वतंत्रता सुख-शांति है, विवेक है, समानता एवं न्याय है, यह अधिकारों का घोषणापत्र है…। आप शायद अपने सभी दुश्मनों का सिर काट देना चाहते हैं। क्या इससे बड़ी मूर्खता हो सकती है? क्या किसी एक व्यक्ति को, उसके दसियों सगे-संबंधियों को दुश्मन बनाये बिना फाँसी के तख्ते तक लाना संभव है? 7 फ़रवरी 1794 को रोबेस्प्येर ने कन्वेंशन में भाषण दिया जो ल मोनीतेर यूनिवर्सेल अखबार में छपा।

उसी भाषण का एक अंश : “लोकतंत्र को स्थापित और सुदढढ़ करने के , संविधान सम्मत शांतिपूर्ण शासन के हमें सबसे पहले अत्याचारी निरंकुशता के विरुद्ध स्वतंत्रता की लड़ाई को अंतिम परिणति तक पहुँचाना होगा… गणतंत्र के घरेलू एवं बाहरी दुश्मनों का विनाश करना आवश्यक है अन्यथा हम खुद नष्ट हो जाएँगे। क्रांति के दौर में लोकतांत्रिक सरकार आतंक का सहारा ले सकती है। आतंक बस कठोर, तुरंता और अनम्य न्याय है… जिसका प्रयोग पितृभूमि की अत्यावश्यक ज़रूरतों को पूरा करने के किया ही जाएगा। आतंक के ज़रिए स्वतंत्रता के दुश्मनों पर अंकुश लगाना गणतंत्र के संस्थापक का अधिकार है।’

रोबेस्पेर सरकार ने कानून बना कर मज़दूरी एवं कीमतों की अधिकतम सीमा तय कर दी। गोश्त एवं पावरोटी की राशनिंग कर दी गई। किसानों को अपना अनाज शहरों में ले जाकर सरकार द्वारा तय कीमत पर बेचने के बाध्य किया गया। अपेक्षाकृत महँगे सफ़ेद आटे के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई। सभी नागरिकों के साबुत गेूूू से बनी और बराबरी का प्रतीक मानी जाने वाली, ‘समता रोटी’ खाना अनिवार्य कर दिया गया। बोलचाल और संबोधन में भी बराबरी का आचार-व्यवहार लागू करने की कोशिश की गई। परंपरागत मॉस्स्यूर (महाशय) एवं मदाम (महोदया) के स्थान पर अब सभी फ़्रांसीसी पुरुषों एवं महिलाओं को सितोयेन (नागरिक) एवं सितोयीन (नागरिका) नाम से संबोधित किया जाने लगा। चर्चों को बंद कर दिया गया और उनके भवनों को बैरक या दप़्तर बना दिया गया।

रोबेस्पेर ने अपनी नीतियों को इतनी सख्ती से लागू किया कि उसके समर्थक भी त्राहि-र्राहि करने लगे। अंतत: जुलाई 1794 में न्यायालय द्वारा उसे दोषी ठहराया गया और गिरफ़्तार करके अगले ही दिन उसे गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया।

क्रियाकलाप

डेस्मॉलिन्स और रोबेस्प्येर के विचारों की तुलना करें। राज्य-शक्ति के प्रयोग से दोनों का क्या तात्पर्य है? ‘निरंकुशता के विरुद्ध स्वतंत्रता की लड़ाई’ से रोबेस्प्येर का क्या मतलब है? डेस्मॉलिन्स स्वतंत्रता को कैसे देखता है? एक बार फिर स्रोत ग देखें। व्यक्तिगत अधिकारों के बारे में संविधान में कौन-से प्रावधान थे? इस विषय पर अपनी कक्षा में चर्चा करें।

चित्र 11 - क्रांतिकारी सरकार ने अनेक प्रकार से जनता को वफ़ादारी हासिल करनी चाही - उनमें से एक इस प्रकार के उत्सवों का आयोजन था। एक गौरवमय इतिहास की आभा को संप्रेषित करने के प्राचीन यूनान व रोम की सभ्यताओं के प्रतीकों का इस्तेमाल किया गया। मंच के बीचोंबीच बने पायों पर टिका हुआ क्लासिकी मंडप अस्थायी सामग्री का बना था जिसे जब चाहे तोड़ा जा सकता था।

3.2 डिरेक्ट्री शासित फ्रांस

जैकोबिन सरकार के पतन के बाद मध्य वर्ग के संपन्न तबके के पास सत्ता आ गई। नए संविधान के तहत सम्पत्तिहीन तबके को मताधिकार से वंचित कर दिया गया। इस संविधान में दो चुनी गई विधान परिषदों का प्रावधान था। इन परिषदों ने पाँच सदस्यों वाली एक कार्यपालिका - डिरेक्ट्री - को नियुक्त किया। इस प्रावधान के ज़रिए जैकोबिनों के शासनकाल वाली एक व्यक्ति-केंद्रित कार्यपालिका से बचने की कोशिश की गई। लेकिन, डिरेक्टरों का झगड़ा अकसर विधान परिषदुों से होता और तब परिषद् उन्हें बर्खास्त्र करने की चेष्टा करती। डिरेक्ट्री की राजनीतिक अस्थिरता ने सैनिक तानाशाह - नेपोलियन बोनापार्ट - के उदय का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

सरकार के स्वरूप में इन सभी परिवर्तनों के दौरान स्वतंत्रता, विधिसम्मत समानता और बंधुत्व प्रेरक आदर्श बने रहे। इन मूल्यों ने आगामी सदी में न सिर्फ़ फ्रांस बल्कि बाकी यूरोप के राजनीतिक आंदोलनों को भी प्रेरित किया।

क्रियाकलाप

यहाँ चित्रित जनसमूह, उनकी वेशभूषा, भूमिका एवं क्रियाकलाप का वर्णन करें। इस चित्र से क्रांतिकारी उत्सव की कैसी छवि बनती है?

4 क्या महिलाओं के लिए भी क्रांति हुई?

चित्र 12 - वर्साय की ओर कूच करती पेरिस की औरतें.
यह चित्र 5 अक्टूबर 1789 को घटनाओं के कई चित्रों में से एक है। उस दिन महिलाएँ पेरिस से वर्साय जाकर राजा को अपने साथ लेकर लौटी थीं।

महिलाएँ शुरू से ही फ़्रासीसी समाज में इतने अहम परिवर्तन लाने वाली गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल थीं। उन्हें उम्मीद थी कि उनकी भागीदारी क्रांतिकारी सरकार को उनका जीवन सुधारने हेतु ठोस कदम उठाने के प्रेरित करेगी। तीसरे एस्टेट की अधिकांश महिलाएँ जीविका निर्वाह के काम करती थीं। वे सिलाई-बुनाई, कपड़ों की धुलाई करती थीं, बाज़ारों में फल-फूल-सब्ज़ियाँ बेचती थीं अथवा संपन्न घरों में घरेलू काम करती थीं। बहुत सारी महिलाएँ वेश्यावृत्ति करती थीं। अधिकांश महिलाओं के पास पढ़ाई-लिखाई तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण के मौके नहीं थे। केवल कुलीनों की लड़कियाँ अथवा तीसरे एस्टेट के धनी परिवारों की लड़कियाँ ही कॉन्वेंट में पढ़ पाती थीं, इसके बाद उनकी शादी कर दी जाती थी। कामकाजी महिलाओं को अपने परिवार का पालन-पोषण भी करना पड़ता था-जैसे खाना पकाना, पानी लाना, लाइन लगा कर पावरोटी लाना और बच्चों की देख-रेख आदि करना। उनकी मज़दूरी पुरुषों की तुलना में कम थी।

क्रियाकलाप

चित्र 12 में अंकित औरतों, उनकी क्रियाओं, उनके हाव-भाव एवं उनके हाथ की वस्तुओं का विवरण दें। गौर से देखें कि क्या वे सभी एक ही सामाजिक वर्ग की लगती हैं? चित्रकार ने इस आकृति में किन प्रतीकों को शामिल किया है? इन प्रतीकों के क्या मायने हैं? क्या महिलाओं को देखकर लगता है कि वे सार्वजनिक रूप से वही कर रही हैं जिसकी उनसे उम्मीद की जाती थी? आप क्या सोचते हैं : चित्रकार महिलाओं के साथ है या उनके विरोध में खड़ा है? कक्षा में अपनी राय पर विचार-विमर्श कीजिए।

महिलाओं ने अपने हितों की हिमायत करने और उन पर चर्चा करने के खुद के राजनीतिक क्लब शुरू किए और अखबार निकाले। फ्रांस के विभिन्न नगरों में महिलाओं के लगभग 60 क्लब अस्तित्व में आए। उनमें ‘द सोसाइटी ऑफ़ रेवलूशनरी एंड रिपब्लिकन विमेन’ सबसे मशहूर क्लब था। उनकी एक प्रमुख माँग यह थी कि महिलाओं को पुरुषों के समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होने चाहिए। महिलाएँ इस बात से निराश हुईं कि 1791 के संविधान में उन्हें निष्क्रिय नागरिक का दर्जा दिया गया था। महिलाओं ने मताधिकार, असेंबली के चुने जाने तथा राजनीतिक पदों की माँग रखी। उनका मानना था कि तभी नई सरकार में उनके हितों का प्रतिनिधित्व हो पाएगा।

प्रारंभिक वर्षों में क्रांतिकारी सरकार ने महिलाओं के जीवन में सुधार लाने वाले कुछ कानून लागू किए। सरकारी विद्यालयों की स्थापना के साथ ही सभी लड़कियों के स्कूली शिक्षा को अनिवार्य बना दिया गया। अब पिता उन्हें उनकी मर्ज़ी के खिलाफ़ शादी के बाध्य नहीं कर सकते थे। शादी को स्वैच्छिक अनुबंध माना गया और नागरिक कानूनों के तहत उनका पंजीकरण किया जाने लगा। तलाक को कानूनी रूप दे दिया गया और मर्द-औरत दोनों को ही इसकी अर्ज़ी देने का अधिकार दिया गया। अब महिलाएँ व्यावसायिक प्रशिक्षण ले सकती थीं, कलाकार बन सकती थीं और छोटे-मोटे व्यवसाय चला सकती थीं।

फिर भी, राजनीतिक अधिकारों के महिलाओं का संघर्ष जारी रहा। आतंक राज के दौरान सरकार ने महिला क्लबों को बंद करने और उनकी राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून लागू किया। कई जानी-मानी महिलाओं को गिरफ़्तार कर लिया गया और उनमें से कुछ को फाँसी पर चढ़ा दिया गया।

मताधिकार और समान वेतन के महिलाओं का आंदोलन अगली सदी में भी अनेक देशों में चलता रहा। मताधिकार का संघर्ष उन्नीसवीं सदी के अंत एवं बीसवीं सदी के प्रारंभ तक अंतर्राष्ट्रीय मताधिकार आंदोलन के ज़रिए जारी रहा। क्रांतिकारी आंदोलन के दौरान फ्रांसीसी महिलाओं की राजनीतिक सरगर्मियों को प्रेरक स्मृति के रूप में ज़िदा रखा गया। अंततः सन् 1946 में फ्रांस की महिलाओं ने मताधिकार हासिल कर लिया।

स्रोत च

क्रांतिकारी महिला ओलम्प दे गूज़ ( 1748-1793) का जीवन

ओलम्प दे गूज़ क्रांतिकालीन फ्रांस की राजनीतिक रूप से सक्रिय महिलाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण थीं। उन्होंने संविधान तथा ‘पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र’ का विरोध किया क्योंकि उसमें महिलाओं को मानव मात्र के मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा गया था। इस उन्होंने सन् 1791 में ‘महिला एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र’ तैयार किया जिसे महारानी और नैशनल असेंबली के सदस्यों के पास यह माँग करते हुए भेजा कि इस पर कार्रवाई की जाए। सन् 1793 में ओलम्प दे गूज़ ने महिला क्लबों को ज़बर्दस्ती बंद कर देने के जैकोबिन सरकार की आलोचना की। उन पर नैशनल कन्वेंशन द्वारा देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया। इसके तुरंत बाद उन्हें फाँसी पर लटका दिया गया।


स्रोत छ

ओलम्प दे गूज़्र के घोषणापत्र में उल्लिखित कुछ मूलभूत अधिकार

1. औरत जन्मना स्वतंत्र है और अधिकारों में पुरुष के समान है।

2. सभी राजनीतिक संगठनों का लक्ष्य पुरुष एवं महिला के नैसर्गिक अधिकारों को संरक्षित करना है। ये अधिकार हैं - स्वतंत्रता, संपत्ति, सुरक्षा और सबसे बढ़कर शोषण के प्रतिरोध का अधिकार।

3. समग्र संप्रभुता का स्रोत राष्ट्र में निहित है जो पुरुषों एवं महिलाओं के संघ के सिवाय कुछ नहीं है।

4. कानून सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति होनी चाहिए। सभी महिला एवं पुरुष नागरिकों का या तो व्यक्तिगत रूप से या अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से विधि-निर्माण में दखल होना चाहिए। यह सभी के समान होना चाहिए। सभी महिला एवं पुरुष नागरिक अपनी योग्यता एवं प्रतिभा के बल पर समान रूप से एवं बिना किसी भेदभाव के हर तरह के सम्मान व सार्वजनिक पद के हकदार हैं।

5. कोई भी महिला अपवाद नहीं है। वह विधिसम्मत प्रक्रिया द्वारा अपराधी ठहरायी जा सकती है, गिरफ़्तार और नज़ारंद की जा सकती है। पुरुषों की तरह महिलाएँ भी इस कठोर कानून का पालन करें।

क्रियाकलाप

ओलम्प दे गूज़ द्वारा तैयार किए गए घोषणापत्र (स्रोत छ) तथा ‘पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र’ (स्रोत ग) की तुलना करें।

चित्र 13 - बेकरी की दुकान पर कतार में महिलाएँ.

स्रोत ज

सन् 1793 में जैकोबिन राजनीतिज्ञ शोमेत ने इन आधारों पर महिला क्लबों को बंद करने के निर्णय को उचित ठहराया :

‘क्या प्रकृति ने घरेलू कार्य पुरुषों को सौंपा है? क्या प्रकृति ने बच्चों को दूध पिलाने के लिए हमें स्तन दिए हैं?

नहीं।

प्रकृति ने पुरुष से कहा :

पुरुष बनो। शिकार, कृषि, राजनीतिक कर्त्तव्य … यह तुम्हारा साम्राज्य है।

प्रकृति ने महिला से कहा :

स्त्री बनो … गृहस्थी के काम, मातृत्व के सुखद दायित्व - यही तुम्हारे कार्य हैं।

पुरुष बनने की इच्छा रखने वाली महिलाएँ निर्लज्ज हैं। क्या ज़िम्मेदारियों का उचित बँटवारा हो नहीं चुका है?’

क्रियाकलाप

कल्पना करें कि आप चित्र 13 को कोई महिला हैं और शोमेत (स्रोत ज) के तर्कों का जवाब दें।

5 दास-प्रथा का उन्मूलन

फ्रांसीसी उपनिवेशों में दास-प्रथा का उन्मूलन जैकोबिन शासन के क्रांतिकारी सामाजिक सुधारों में से एक था। कैरिबिआई उपनिवेश-मार्टिनिक, गॉडेलोप और सैन डोमिंगों-तम्बाकू, नील, चीनी एवं कॉफ़ी जैसी वस्तुओं के महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता थे। अपरिचित एवं दूर देश जाने और काम करने के प्रति यूरोपियों की अनिच्छा का मतलब था-बागानों में श्रम की कमी। इस कमी को यूरोप, अफ़्रीका एवं अमेरिका के बीच त्रिकोणीय दास-व्यापार द्वारा पूरा किया गया। दास-व्यापार सत्रहवों शताब्दी में शुरू हुआ। फ्रांसीसी सौदागर बोर्दे या नान्ते बन्दरगाह से अफ़ीका तट पर जहाज़ ले जाते थे, जहाँ वे स्थानीय सरदारों से दास खरीदते थे। दासों को दाग कर एवं हथकड़ियाँ डाल कर अटलांटिक महासागर के पार कैरिबिआई देशों तक तीन माह की लंबी समुद्री-यात्रा के जहाज़ों में ठूँस दिया जाता था। वहाँ उन्हें बागान-मालिकों को बेच दिया जाता था। दास-श्रम के बल पर यूरोपीय बाज़ारों में चीनी, कॉफ़ी एवं नील की बढ़ती माँग को पूरा करना संभव हुआ। बोर्दे और नान्ते जैसे बंदरगाह फलते-फूलते दास-व्यापार के कारण ही समृद्ध नगर बन गए।

चित्र 14 - दासमुक्ति .
सन् 1794 के इस चित्र में दासों की मुक्ति का विवरण है। शीर्ष पर तिरंगे बैनर का नारा है - ‘मनुष्य के अधिकार’। नीचे अभिलेख कहता है - ‘गुलामों की मुक्ति’। एक फ्रांसीसी महिला अफ़ीकी एवं अमेरिकी-इंडियन दासों को यूरोपीय कपड़े देकर उन्हें ‘सभ्य’ बनाने की चेष्टा कर रही है।

अठारहवीं सदी में फ्रांस में दास-प्रथा की ज्यादा निंदा नहीं हुई। नैशनल असेंबली में लंबी बहस हुई कि व्यक्ति के मूलभूत अधिकार उपनिवेशों में रहने वाली प्रजा सहित समस्त फ्रांसीसी प्रजा को प्रदान किए जाएँ या नहीं। परन्तु दास-व्यापार पर निर्भर व्यापारियों के विरोध के भय से नैशनल असेंबली में कोई कानून पारित नहीं किया गया। लेकिन अंततः सन् 1794 के कन्वेंशन ने फ्रांसीसी उपनिवेशों में सभी दासों की मुक्ति का कानून पारित कर दिया। पर यह कानून एक छोटी-सी अवधि तक ही लागू रहा। दस वर्ष बाद नेपोलियन ने दास-प्रथा पुनः शुरू कर दी। बागान-मालिकों को अपने आर्थिक हित साधने के अफ़्रीकी नीग्रो लोगों को गुलाम बनाने की स्वतंत्रता मिल गयी। फ़्रांसीसी उपनिवेशों से अंतिम रूप से दास-प्रथा का उन्मूलन 1848 में किया गया।

नए शब्द

नीग्रो : अफ़ीका में सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में रहने वाले स्थानीय लोग। यह अपमानजनक शब्द है, जिसका अब प्रायः इस्तेमाल नहीं किया जाता।

6 क्रांति और रोज़ाना की ज़िंदगी

क्या राजनीति लोगों का पहनावा, उनकी बोलचाल अथवा उनके द्वारा पढ़ी जानेवाली पुस्तकों को बदल सकती है? सन् 1789 से बाद के वर्षों में फ्रांस के पुरुषों, महिलाओं एवं बच्चों के जीवन में ऐसे अनेक परिवर्तन आए। क्रांतिकारी सरकारों ने कानून बना कर स्वतंत्रता एवं समानता के आदर्शों को रोज़ाना की ज़िंदगी में उतारने का प्रयास किया।

बास्तील के विध्वंस के बाद सन् 1789 की गर्मियों में जो सबसे महत्त्वपूर्ण कानून अस्तित्व में आया, वह था - सेंसरशिप की समाप्ति। प्राचीन राजतंत्र के अंतर्गत तमाम लिखित सामग्री और सांस्कृतिक गतिविधियों-किताब, अखबार, नाटक-को राजा के सेंसर अधिकारियों द्वारा पास किए जाने के बाद ही प्रकाशित या मंचित किया जा सकता था। परंतु अब अधिकारों के घोषणापत्र ने भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नैसर्गिक अधिकार घोषित कर दिया। परिणामस्वरूप फ़्रांस के शहरों में अखबारों, पर्चों, पुस्तकों एवं छपी हुई तस्वीरों की बाढ़ आ गई जहाँ से वह तेज़ी से गाँव-देहात तक जा पहुँची। उनमें फ़्रांस में घट रही घटनाओं एवं परिवर्तनों का ब्यौरा और उन पर टिप्पणी होती थी। प्रेस की स्वतंत्रता का मतलब यह था कि किसी भी घटना पर परस्पर विरोधी विचार भी व्यक्त किए जा सकते थे। प्रिंट माध्यम का उपयोग करके एक पक्ष ने दूसरे पक्ष को अपने दृष्टिकोण से सहमत कराने की कोशिश की। नाटक, संगीत और उत्सवी जुलूसों में असंख्य लोग जाने लगे। स्वतंत्रता और न्याय के बारे में राजनीतिज्ञों व दार्शानिकों के पांडित्यपूर्ण लेखन को समझने और उससे जुड़ने का यह लोकप्रिय तरीका था क्योंकि किताबों को पढ़ना तो मुट्ठी भर शिक्षितों के ही संभव था।

क्रियाकलाप

इस चित्र का अपने शब्दों में वर्णन करें। चित्रकार ने लोभ, समानता, न्याय, राज्य द्वारा चर्च की सम्पत्ति का अधिग्रहण आदि विचारों को संप्रेषित करने के किन प्रतीकों का सहारा लिया है?

चित्र 15 - देशभक्त कसरती दाब-मशीन, जिसका इस्तेमाल मोटापा घटाने के किया जा सकता था . अज्ञात चित्रकार द्वारा बनाया गया 1790 का यह चित्र न्याय के विचार को व्यवहार में बदलना चाहता है।

चित्र 16 - मरा जनता को संबोधित करते हुए। लुई लियोपोल्ड बॉइली रचित चित्र.

इस अध्याय से मरा के बारे में आपको क्या याद है? उसके इर्व-गिर्द मौजूद दृश्य का वर्णन कीजिए तथा उसकी लोकप्रियता के बारे में समझाइए। किसी सैलॉन में आने वाले विभिन्न वर्ग के लोगों पर इस पेंटिंग की क्या प्रतिक्रिया होती होगी?

सारांश

1804 में नेपोलियन बोनापार्ट ने खुद को फ्रांस का सम्राट घोषित कर दिया। उसने पड़ोस के यूरोपीय देशों की विजय यात्रा शुरू की। पुराने राजवंशों को हटा कर उसने नए साम्राज्य बनाए और उनकी बागडोर अपने खानदान के लोगों के हाथ में दे दी। नेपोलियन खुद को यूरोप के आधुनिकीकरण का अग्रदूत मानता था। उसने निजी संपत्ति की सुरक्षा के कानून बनाए और दशमलव पद्धति पर आधारित नाप-तौल की एक समान प्रणाली चलायी। शुरू-शुरू में बहुत सारे लोगों को नेपालियन मुक्तिदाता लगता था और उससे जनता को स्वतंत्रता दिलाने की उम्मीद थी। पर जल्दी ही उसकी सेनाओं को लोग हमलावर मानने लगे। आखिरकार 1815 में वॉटरलू में उसकी हार हुई। यूरोप के बाकी हिस्सों में मुक्ति और आधुनिक कानूनों को फैलाने वाले उसके क्रांतिकारी उपायों का असर उसकी मृत्यु के काफ़ी समय बाद सामने आया।

चित्र 17 - आल्प्स पार करता नेपोलियन। डेविड द्वारा बनाया गया चित्र.

स्वतंत्रता और जनवादी अधिकारों के विचार फ्रांसीसी क्रांति की सबसे महत्त्वपूर्ण विरासत थे। ये विचार उन्नीसवों सदी में फ्रांस से निकल कर बाकी यूरोप में फैले और इनके कारण वहाँ सामंती व्यवस्था का नाश हुआ। औपनिवेशिक समाजों ने संप्रभु राष्ट्र-राज्य की स्थापना के अपने आंदोलनों में दासता से मुक्ति के विचार को नयी परिभाषा दी। टीपू सुल्तान और राजा राममोहन रॉय क्रांतिकारी फ्रांस में उपजे विचारों से प्रेरणा लेने वाले दो ठोस उदाहरण थे।

बॉक्स 2

राजा राममोहन रॉय उस समय यूरोप में फैल रहे नए विचारों से प्रभावित होने वालों में से एक थे। फ़्रांसीसी क्रांति और बाद में जुलाई क्रांति ने उनकी कल्पना को नई धार दी।

‘फ़्रांस में 1830 में हुई जुलाई क्रांति के बारे में जानने के बाद वह और किसी चीज़ के बारे में बात ही नहीं करते थे। हालाँकि एक दुर्घटना के कारण वे उन दिनों लंगड़ा कर चलते थे लेकिन इंग्लैंड जाते हुए केपटाऊन में वह ज़िद करने लगे कि उन्हें क्रांतिकारी तिरंगे झंडे वाले युद्धपोत दिखाए जाएँ।’

सुशोभन सरकार, नोट्स ऑन द बंगाल रेनेसाँ, 1946 ।

क्रियाकलाप

1. इस अध्याय में आपने जिन क्रांतिकारी व्यक्तियों के बारे में पढ़ा है उनमें से किसी एक के बारे में और जानकारियाँ इकट्ठा करें। उस व्यक्ति की संक्षिप्त जीवनी लिखें।

2. फ़्रांसीसी क्रांति के दौरान ऐसे अखबारों का जन्म हुआ जिनमें हर दिन और हर हफ़्ते की घटनाओं का ब्यौरा दिया जाता था। किसी एक घटना के बारे में जानकारियाँ और तस्वीरें इकट्ठा करें तथा अखबार के एक लेख लिखें। आप चाहें तो मिराब्यो, ओलम्प दे गूज़ या रोबेस्प्येर के साथ काल्पनिक साक्षात्कार भी कर सकते हैं। दो या तीन का समूह बना लें। हर समूह फ्रांसीसी क्रांति पर एक दीवार पत्रिका बना कर बोर्ड पर लटकाए।

प्रश्न

1. फ़्रांस में क्रांति की शुरुआत किन परिस्थितियों में हुई?

2. फ़्रांसीसी समाज के किन तबकों को क्रांति का फ़ायदा मिला? कौन-से समूह सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए? क्रांति के नतीजों से समाज के किन समूहों को निराशा हुई होगी?

3. उन्नीसवीं और बीसवीं सदी की दुनिया के लिए फ़्रांसीसी क्रांति कौन-सी विरासत छोड़ गई?

4. उन जनवादी अधिकारों की सूची बनाएँ जो आज हमें मिले हुए हैं और जिनका उद्गम फ्रांसीसी क्रांति में है।

5. क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि सार्वभौमिक अधिकारों के संदेश में नाना अंतर्विरोध थे?

6. नेपोलियन के उदय को कैसे समझा जा सकता है?



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