अध्याय 04 जलवायु

पिछले दो अध्यायों में, आप हमारे देश की स्थलाकृतियों एवं अपवाह के बारे में पढ़ चुके हैं। किसी क्षेत्र के प्राकृतिक पर्यावरण को समझने के आवश्यक तीन मूल तत्त्वों में से दो तत्त्व ये ही हैं। इस अध्याय में, आप तीसरे तत्त्व, अर्थात् हमारे देश की वायुमंडलीय अवस्था के बारे में पढ़ेंगे। हम दिसंबर में ऊनी वस्त्र क्यों पहनते हैं अथवा मई का महीना गर्म एवं असुविधाजनक क्यों होता है या जून एवं जुलाई में वर्षा क्यों होती हैं? इन सभी प्रश्नों के उत्तर आप भारत की जलवायु का अध्ययन करके जान सकते हैं।

एक विशाल क्षेत्र में लंबे समयावधि (30 वर्ष से अधिक) में मौसम की अवस्थाओं तथा विविधताओं का कुल योग ही जलवायु है। मौसम एक विशेष समय में एक क्षेत्र के वायुमंडल की अवस्था को बताता है। मौसम तथा जलवायु के तत्त्व, जैसे - तापमान, वायुमंडलीय दाब, पवन, आर्द्रता तथा वर्षण एक ही होते हैं। आपने अवश्य ध्यान दिया होगा कि मौसम की अवस्था प्राय: एक दिन में ही कई बार बदलती है। लेकिन फिर भी कुछ सप्ताह, महीनों तक वायुमंडलीय अवस्था लगभग एक समान ही बनी रहती है, जैसे दिन गर्म या ठंडे, हवादार या शांत, आसमान बादलों से घिरा या साफ तथा आर्द्र या शुष्क हो सकते हैं। महीनों के औसत वायुमंडलीय अवस्था के आधार पर वर्ष को ग्रीष्म/शीत या वर्षा ॠतुओं में विभाजित किया गया है।

विश्व को अनेक जलवायु प्रदेशों में बाँटा गया है। क्या आप जानते हैं कि भारत की जलवायु कैसी है तथा ऐसा क्यों है? इस संबंध में, हम इस अध्याय में पढ़ेंगे।

क्या आप जानते हैं?

  • मानसून शब्द की व्युत्पत्ति अरबी शब्द ‘मौसिम’ से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- मौसम।

  • मानसून का अर्थ, एक वर्ष के दौरान वायु की दिशा में ऋतु के अनुसार परिवर्तन है।

भारत की जलवायु को मानसूनी जलवायु कहा जाता है। एशिया में इस प्रकार की जलवायु मुख्यतः दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व में पाई जाती है। सामान्य प्रतिरूप में लगभग एकरूपता होते हुए भी देश की जलवायु-अवस्था में स्पष्ट प्रादेशिक भिन्नताएँ हैं। आइए, हम दो महत्त्वपूर्ण तत्त्व तापमान एवं वर्षण को लेकर देखें कि एक स्थान से दूसरे स्थान पर तथा एक मौसम से दूसरे मौसम में इनमें किस प्रकार की भिन्नता है।

गर्मियों में, राजस्थान के मरुस्थल में कुछ स्थानों का तापमान लगभग 50° से° तक पहुँच जाता है, जबकि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तापमान लगभग 20° से° रहता है। सर्दी की रात में, जम्मू-कश्मीर में द्रास का तापमान –45° से० तक हो सकता है, जबकि तिरुवनन्तपुरम में यह 22° से° हो सकता है।

क्या आप जानते हैं?

  • कुछ क्षेत्रों में रात एवं दिन के तापमान में बहुत अधिक अंतर होता है। थार के मरुस्थल में दिन का तापमान 50° से° तक हो सकता है, जबकि उसी रात यह नीचे गिर कर 15° से° तक पहुँच सकता है। दूसरी ओर, केरल या अंडमान एवं निकोबार में दिन तथा रात का तापमान लगभग समान ही रहता है।

अब वर्षण की ओर ध्यान दें। वर्षण के रूप तथा प्रकार में ही नहीं, बल्कि इसकी मात्रा एवं ऋतु के अनुसार वितरण में भी भिन्नता होती है। हिमालय में वर्षण अधिकतर हिम के रूप में होता है तथा देश के शेष भाग में यह वर्षा के रूप में होता है। वार्षिक वर्षण में भिन्नता मेघालय में 400 सेमी. से लेकर लद्दाख एवं पश्चिमी राजस्थान में यह 10 सेमी. से भी कम होती है। देश के अधिकतर भागों में जून से सितंबर तक वर्षा होती है, लेकिन कुछ क्षेत्रों जैसे तमिलनाडु तट पर अधिकतर वर्षा अक्टूबर एवं नवंबर में होती है।

सामान्य रूप से तटीय क्षेत्रों के तापमान में अंतर कम होता है। देश के आंतरिक भागों में मौसमी या ऋतुनिष्ठ अंतर अधिक होता है। उत्तरी मैदान में वर्षा की मात्रा सामान्यतः पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है। ये भिन्नताएँ लोगों के जीवन में विविधता लाती हैं, जो उनके भोजन, वस्त्र और घरों के प्रकार में दिखती हैं।

ज्ञात कीजिए

  • राजस्थान में घरों की दीवार मोटी तथा छत चपटी क्यों होती है?

  • तराई क्षेत्र तथा गोवा एवं मैंगलोर में ढाल वाली छतें क्यों होती हैं?

  • असम में प्राय: कुछ घर बाँस के खंभों (Stilt) पर क्यों बने होते हैं?

जलवायवी नियंत्रण

किसी भी क्षेत्र की जलवायु को नियंत्रित करने वाले छः प्रमुख कारक हैं - अक्षांश, तुंगता (ऊँचाई), वायु दाब एवं पवन तंत्र, समुद्र से दूरी, महासागरीय धाराएँ तथा उच्चावच लक्षण।

पृथ्वी की गोलाई के कारण, इसे प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा अक्षांशों के अनुसार अलग-अलग होती है। इसके परिणामस्वरूप तापमान विषुवत वृत्त से ध्रुवों की ओर सामान्यतः घटता जाता है। जब कोई व्यक्ति पृथ्वी की सतह से ऊँचाई की ओर जाता है, तो वायुमंडल की सघनता कम हो जाती है तथा तापमान घट जाता है। इस पहाड़ियाँ गर्मी के मौसम में भी ठंडी होती हैं। किसी भी क्षेत्र का वायु दाब एवं पवन तंत्र उस स्थान के अक्षांश तथा ऊँचाई पर निर्भर करती है। इस प्रकार यह तापमान एवं वर्षा के वितरण को प्रभावित करता है। समुद्र का जलवायु पर समकारी प्रभाव पड़ता है, जैसे-जैसे समुद्र से दूरी बढ़ती है यह प्रभाव कम होता जाता है एवं लोग विषम मौसमी अवस्थाओं को महसूस करते हैं। इसे महाद्वीपीय अवस्था (गर्मी में बहुत अधिक गर्म एवं सर्दी में बहुत अधिक ठंडा) कहते हैं। महासागरीय धाराएँ समुद्र से तट की ओर चलने वाली हवाओं के साथ तटीय क्षेत्रों की जलवायु को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के , कोई भी तटीय क्षेत्र जहाँ गर्म या ठंडी जलधाराएँ बहती हैं और वायु की दिशा समुद्र से तट की ओर हो, तब वह तट गर्म या ठंडा हो जाएगा।

ज्ञात कीजिए

  • विश्व के अधिकतर मरुस्थल उपोष्ण कटिबंधीय भागों में स्थित महाद्वीपों के पश्चिमी किनारे पर क्यों स्थित हैं?

अंत में, किसी स्थान की जलवायु को निर्धारित करने में उच्चावच की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। ऊँचे पर्वत ठंडी अथवा गर्म वायु को अवरोधित करते हैं। यदि उनकी ऊँचाई इतनी हो कि वे वर्षा लाने वाली वायु के रास्तों को रोकने में सक्षम होते हैं, तो ये उस क्षेत्र में वर्षा का कारण भी बन सकते हैं। पर्वतों के पवनविमुख ढाल अपेक्षाकृत सूखे रहते हैं।

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

अक्षांश

कर्क वृत्त देश के मध्य भाग, पश्चिम में कच्छ के रन से लेकर पूर्व में मिजोरम, से होकर गुजरती है। देश का लगभग आधा भाग कर्क वृत्त के दक्षिण में स्थित है, जो उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र है। कर्क वृत्त के उत्तर में स्थित शेष भाग उपोष्ण कटिबंधीय है। इस भारत की जलवायु में उष्ण कटिबंधीय जलवायु एवं उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु दोनों की विशेषताएँ उपस्थित हैं।

ऊँचाई

भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत है। इसकी औसत ऊँचाई लगभग 6,000 मीटर है। भारत का तटीय क्षेत्र भी विशाल है, जहाँ अधिकतम ऊँचाई लगभग 30 मीटर है। हिमालय मध्य एशिया से आने वाली ठंडी हवाओं को भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश करने से रोकता है। इन्हीं पर्वतों के कारण इस क्षेत्र में मध्य एशिया की तुलना में ठंड कम पड़ती है।

वायु दाब एवं पवन

भारत में जलवायु तथा संबंधित मौसमी अवस्थाएँ निम्नलिखित वायुमंडलीय अवस्थाओं से संचालित होती हैं:

  • वायु दाब एवं धरातलीय पवनें

  • ऊपरी वायु परिसंचरण तथा

  • पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ एवं उष्ण कटिबंधीय चक्रवात

भारत उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनों (Trade Winds) वाले क्षेत्र में स्थित है। ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध के उपोष्ण कटिबंधीय उच्च दाब पट्टियों से उत्पन्न होती हैं। ये दक्षिण की ओर बहती, कोरिआलिस बल के कारण दाहिनी ओर विक्षेपित होकर विषुवतीय निम्न दाब वाले क्षेत्रों की ओर बढ़ती हैं। सामान्यतः इन पवनों में नमी की मात्रा बहुत कम होती है, क्योंकि ये स्थलीय भागों पर उत्पन्न होती हैं एवं बहती हैं। इस इन पवनों के द्वारा वर्षा कम या नहीं होती है। इस प्रकार भारत को शुष्क क्षेत्र होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है। आइए देखें क्यों?

कोरिआलिस बलः पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न आभासी बल को कोरिआलिस बल कहते हैं। इस बल के कारण पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर विक्षेपित हो जाती हैं। इसे फेरेल का नियम भी कहा जाता है।

भारत की वायु दाब एवं पवन तंत्र अद्वितीय है। शीत ॠतु में, हिमालय के उत्तर में उच्च दाब होता है। इस क्षेत्र की ठंडी शुष्क हवाएँ दक्षिण में निम्न दाब वाले महासागरीय क्षेत्र के ऊपर बहती हैं। ग्रीष्म ॠतु में, आंतरिक एशिया एवं उत्तर-पूर्वी भारत के ऊपर निम्न दाब का क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इसके कारण गर्मी के दिनों में वायु की दिशा पूरी तरह से परिवर्तित हो जाती है। वायु दक्षिण में स्थित हिंद महासागर के उच्च दाब वाले क्षेत्र से दक्षिण-पूर्वी दिशा में बहते हुए विषुवत् वृत्त को पार कर दाहिनी ओर मुड़ते हुए भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थित निम्न दाब की ओर बहने लगती हैं। इन्हें दक्षिण-पश्चिम मानसून पवनों के नाम से जाना जाता है। ये पवनें कोष्ण महासागरों के ऊपर से बहती हैं, नमी ग्रहण करती हैं तथा भारत की मुख्य भूमि पर वर्षा करती हैं।

ॠतुएँ

मानसूनी जलवायु की विशेषता एक विशिष्ट मौसमी प्रतिरूप होता है। एक ॠतु से दूसरे ऋतु में मौसम की अवस्थाओं में बहुत अधिक परिवर्तन होता है। विशेषकर देश के आंतरिक भागों में, ये परिवर्तन अधिक मात्रा में परिलक्षित होते हैं। तटीय क्षेत्रों के तापमान में बहुत अधिक भिन्नता नहों होती है, यद्यपि यहाँ वर्षा के प्रारूपों में भिन्नताएँ होती हैं। आप अपने क्षेत्र में कितने प्रकार की ॠतुओं का अनुभव करते हैं। भारत में मुख्यतः चार ऋतुओं को पहचाना जा सकता है। ये हैं, शीत ऋतु, ग्रीष्म ॠतु, कुछ क्षेत्रीय विविधताओं के साथ मानसून के आगमन तथा वापसी का काल।

शीत ऋतु

उत्तरी भारत में शीत ॠतु मध्य नवंबर से आरंभ होकर फरवरी तक रहती है। भारत के उत्तरी भाग में दिसंबर एवं जनवरी सबसे ठंडे महीने होते हैं। तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ने पर घटता जाता है। पूर्वी तट पर चेन्नई का औसत तापमान 24° सेल्सियस से 25° सेल्सियस के बीच होता है, जबकि उत्तरी मैदान में यह 10° सेल्सियस से 15° सेल्सियस के बीच होता है। दिन गर्म तथा रातें ठंडी होती हैं। उत्तर में तुषारापात सामान्य है तथा हिमालय के उपरी ढालों पर हिमपात होता है।

इस ऋतु में, देश में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें प्रवाहित होती हैं। ये स्थल से समुद्र की ओर बहती हैं तथा इस देश के अधिकतर भाग में शुष्क मौसम होता है। इन पवनों के कारण कुछ मात्रा में वर्षा तमिलनाडु के तट पर होती है, क्योंकि वहाँ ये पवनें समुद्र से स्थल की ओर बहती हैं।

देश के उत्तरी भाग में, एक कमजोर उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है, जिसमें हल्की पवनें इस क्षेत्र से बाहर की ओर प्रवाहित होती हैं। उच्चावच से प्रभावित होकर ये पवन पश्चिम तथा उत्तर-पश्चिम से गंगा घाटी में बहती हैं। सामान्यतः इस मौसम में आसमान साफ, तापमान तथा आर्द्रता कम एवं पवनें शिथिल तथा परिवर्तित होती हैं।

शीत ऋतु में उत्तरी मैदानों में पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम से चक्रवाती विक्षोभ का अंतर्वाह विशेष लक्षण है। यह कम दाब वाली प्रणाली भूमध्यसागर एवं पश्चिमी एशिया के ऊपर उत्पन्न होती है तथा पश्चिमी पवनों के साथ भारत में प्रवेश करती है। इसके कारण शीतकाल में मैदानों में वर्षा होती है तथा पर्वतों पर हिमपात, जिसकी उस समय बहुत अधिक आवश्यकता होती है। यद्यपि शीतकाल में वर्षा, जिसे स्थानीय तौर पर ‘महावट’ कहा जाता है, की कुल मात्रा कम होती है, लेकिन ये रबी फसलों के बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है।

प्रायद्वीपीय भागों में शीत ॠतु स्पष्ट नहीं होती है। समुद्री पवनों के प्रभाव के कारण शीत ऋतु में भी यहाँ तापमान के प्रारूप में न के बराबर परिवर्तन होता है।

ग्रीष्म ऋतु

सूर्य के उत्तर की ओर आभासी गति के कारण भूमंडलीय ताप पट्टी उत्तर की तरफ खिसक जाती है। मार्च से मई तक भारत में ग्रीष्म ऋतु होती है। ताप पट्टी के स्थानांतरण के प्रभाव का पता विभिन्न अक्षांशों पर मार्च से मई के दौरान रिकॉर्ड किए गए तापमान को देखकर लगाया जा सकता है। मार्च में दक्कन के पठार का उच्च तापमान लगभग 38° सेल्सियस होता है। अप्रैल में मध्य प्रदेश एवं गुजरात का तापमान लगभग 42° सेल्सियस होता है। मई में देश के उत्तर-पश्चिमी भागों का तापमान समान्यतः 45° सेल्सियस होता है। प्रायद्वीपीय भारत में समुद्री प्रभाव के कारण तापमान कम होता है।

देश के उत्तरी भाग में, ग्रीष्मकाल में तापमान में वृद्धि होती है तथा वायु दाब में कमी आती है। मई के अंत में, उत्तर-पश्चिम में थार के रेगिस्तान से लेकर पूर्व एवं दक्षिण-पूर्व में पटना तथा छोटा नागपुर पठार तक एक कम दाब का लंबवत क्षेत्र उत्पन्न होता है। पवन का परिसंचरण इस गर्त के चारों ओर प्रारंभ होता है।

लू, ग्रीष्मकाल का एक प्रभावी लक्षण है। ये धूल भरी गर्म एवं शुष्क पवनें होती हैं, जो कि दिन के समय भारत के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में चलती हैं। कभी-कभी ये देर शाम तक जारी रहती हैं। इस हवा का सीधा प्रभाव घातक भी हो सकता है। उत्तरी भारत में मई महीने के दौरान सामान्यतः धूल भरी आँधियाँ आती हैं। ये आँधियाँ अस्थायी रूप से आराम पहुँचाती हैं, क्योंकि ये तापमान को कम कर देती हैं तथा अपने साथ ठंडे समीर एवं हल्की वर्षा लाती हैं। इस मौसम में कभी-कभी तीव्र हवाओं के साथ गरज वाली मूसलाधार वर्षा भी होती है, इसके साथ प्रायः हिम वृष्टि भी होती है। वैशाख के महीने में होने के कारण पश्चिम बंगाल में इसे ‘काल वैशाखी’ कहा जाता है।

ग्रीष्म ऋतु के अंत में कर्नाटक एवं केरल में प्राय: पूर्व-मानसूनी वर्षा होती है। इसके कारण आम जल्दी पक जाते हैं तथा प्राय: इसे ‘आम्र वर्षा’ भी कहा जाता है।

वर्षा ऋतु या मानसून का आगमन

जून के प्रारंभ में उत्तरी मैदानों में निम्न दाब की अवस्था तीव्र हो जाती है। यह दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनों को आकर्षित करता है। ये दक्षिण-पूर्व व्यापारिक पवनें, दक्षिणी समुद्रों के उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उत्पन्न होती हैं। चूँकि, ये पवनें गर्म महासागरों के ऊपर से होकर गुजरती हैं, इस ये अपने साथ इस महाद्वीप में बहुत अधिक मात्रा में नमी लाती हैं। ये पवनें तीव्र होती हैं तथा 30 किमी. प्रति घंटे के औसत वेग से चलती हैं। सुदूर उत्तर-पूर्वी भाग को छोड़कर ये मानसूनी पवनें देश के शेष भाग में लगभग 1 महीने में पहुँच जाती हैं।

दक्षिण-पश्चिम मानसून का भारत में अंतर्वाह यहाँ के मौसम को पूरी तरह परिवर्तित कर देता है। मौसम के प्रारंभ में पश्चिम घाट के पवनमुखी भागों में भारी वर्षा (लगभग 250 सेमी. से अधिक) होती है। दक्कन का पठार एवं मध्य प्रदेश के कुछ भाग में भी वर्षा होती है, यद्यपि ये क्षेत्र वृष्टि छाया क्षेत्र में आते हैं। इस मौसम की अधिकतर वर्षा देश के उत्तर-पूर्वी भागों में होती है। खासी पहाड़ी के दक्षिणी शृंखलाओं में स्थित मासिनराम विश्व में सबसे अधिक औसत वर्षा प्राप्त करता है। गंगा की घाटी में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती है। राजस्थान एवं गुजरात के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा होती है।

चित्र 4.1 : मानसून का आगमन

मानसून से संबंधित एक अन्य परिघटना है, ‘वर्षा में विराम’। इस प्रकार, इसमें आर्द्र एवं शुष्क दोनों तरह के अंतराल होते हैं। दूसरे शब्दों में, मानसूनी वर्षा एक समय में कुछ दिनों तक ही होती है। इनमें वर्षा रहित अंतराल भी होते हैं। मानसून में आने वाले ये विराम मानसूनी गर्त की गति से संबंधित होते हैं। विभिन्न कारणों से गर्त एवं इसका अक्ष उत्तर या दक्षिण की ओर खिसकता रहता है, जिसके कारण वर्षा का स्थानिक वितरण सुनिश्चित होता है। जब मानसून के गर्त का अक्ष मैदान के ऊपर होता है तब इन भागों में वर्षा अच्छी होती है। दूसरी ओर जब अक्ष हिमालय के समीप चला जाता है तब मैदानों में लंबे समय तक शुष्क अवस्था रहती है तथा हिमालय की नदियों के पर्वतीय जलग्रहण क्षेत्रों में विस्तृत वर्षा होती है। इस भारी वर्षा के कारण मैदानी क्षेत्रों में विनाशकारी बाढ़ें आती हैं एवं जान एवं माल की भारी क्षति होती है। उष्ण कटिबंधीय निम्न दाब की तीव्रता एवं आवृत्ति भी मानसूनी वर्षा की मात्रा एवं समय को निर्धारित करती है। यह निम्न दाब का क्षेत्र बंगाल की खाड़ी के ऊपर बनता है तथा मुख्य स्थलीय भाग को पार कर जाता है। यह गर्त निम्न दाब के मानसून गर्त के अक्ष के अनुसार होता है। मानसून को इसकी अनिश्चितता के जाना जाता है। शुष्क एवं आर्द्र स्थितियों की तीव्रता, आवृत्ति एवं समय काल में भिन्नता होती है। इसके कारण यदि एक भाग में बाढ़ आती है तो दूसरे भाग में सूखा पड़ता है। इसका आगमन एवं वापसी प्रायः अव्यवस्थित होता है। इस यह कभी-कभी देश के किसानों की कृषि कार्यों को अव्यवस्थित कर देता है।

मानसून की वापसी (परिवर्तनीय मौसम)

अक्तूबर-नवंबर के दौरान दक्षिण की तरफ सूर्य के आभासी गति के कारण मानसून गर्त या निम्न दाब वाला गर्त, उत्तरी मैदानों के ऊपर शिथिल हो जाता है। धीरे-धीरे उच्च दाब प्रणाली इसका स्थान ले लेती है। दक्षिण-पश्चिम मानसून शिथिल हो जाते हैं तथा धीरे-धीरे पीछे की ओर हटने लगते हैं। अक्तूबर के प्रारंभ में मानसून पवनें उत्तर के मैदान से हट जाती हैं।

अक्तूबर एवं नवंबर का महीना, गर्म वर्षा ऋतु से शीत ऋतु में परिवर्तन का काल होता है। मानसून की वापसी होने से आसमान साफ एवं तापमान में वृद्धि हो जाती है। दिन का तापमान उच्च होता है, जबकि रातें ठंडी एवं सुहावनी होती हैं। स्थल अभी भी आर्द्र होता है। उच्च तापमान एवं आर्द्रता वाली अवस्था के कारण दिन का मौसम असह्य हो जाता है। इसे सामान्यत: ‘क्वार की उमस’ के नाम से जाना जाता है। अक्तूबर के उत्तरार्द्ध में, विशेषकर उत्तरी भारत में तापमान तेजी से गिरने लगता है।

क्या आप जानते हैं?

मासिनराम विश्व में सबसे अधिक वर्षा वाला क्षेत्र है तथा स्टैलैग्माइट एवं स्टैलैक्टाइट गुफाओं के लिए प्रसिद्ध है।

नवंबर के प्रारंभ में, उत्तर-पश्चिम भारत के ऊपर निम्न दाब वाली अवस्था बंगाल की खाड़ी पर स्थानांतरित हो जाती है। यह स्थानांतरण चक्रवाती निम्न दाब से संबंधित होता है, जो कि अंडमान सागर के ऊपर उत्पन्न होता है। ये चक्रवात सामान्यतः भारत के पूर्वी तट को पार करते हैं, जिनके कारण व्यापक एवं भारी वर्षा होती है। ये उष्ण कटिबंधीय चक्रवात प्रायः विनाशकारी होते हैं। गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के सघन आबादी वाले डेल्टा प्रदेशों में अक्सर चक्रवात आते हैं, जिसके कारण बड़े पैमाने पर जान एवं माल की क्षति होती है। कभी-कभी ये चक्रवात उड़ीसा, पश्चिम बंगाल एवं बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में भी पहुँच जाते हैं। कोरोमंडल तट पर अधिकतर वर्षा इन्हीं चक्रवातों तथा अवदाबों से होती हैं।

वर्षा का वितरण

पश्चिमी तट के भागों एवं उत्तर-पूर्वी भारत में लगभग 400 सेंमी. वार्षिक वर्षा होती है किंतु, पश्चिमी राजस्थान

चित्र 4.2 : मानसून का अंत

चित्र 4.3 : वार्षिक वर्षा

क्रियाकलाप: (i) उपरोक्त समाचार पत्रों के अंशों में वर्णित स्थानों तथा ऋतुओं के नाम बताएँ।

(ii) मुंबई और चेन्नई की वर्षा की तुलना कीजिए और उनके अंतर के कारण दीजिए।

(iii) वस्तुस्थिति अध्ययन के दृष्टिकोण से ‘बाढ़-एक विपदा’ का मूल्यांकन करें।

एवं इससे सटे पंजाब, हरियाणा एवं गुजरात के भागों में 60 सें॰मी॰ से भी कम वर्षा होती है। दक्षिणी पठार के आंतरिक भागों एवं सहयाद्री के पूर्व में भी वर्षा की मात्रा समान रूप से कम होती है। इन क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा कम क्यों होती है? जम्मू-कश्मीर के लेह में भी वर्षण की मात्रा काफी कम होती है। देश के शेष हिस्से में वर्षा की मात्रा मध्यम रहती है। हिमपात हिमालयी क्षेत्रों तक ही सीमित होता है।

मानसून की प्रकृति के परिणामस्वरूप एक वर्ष से दूसरे वर्ष होने वाले वार्षिक वर्षा की मात्रा में भिन्नता होती है। वर्षा की विषमता निम्न वर्षा वाले क्षेत्र जैसे राजस्थान, गुजरात के कुछ भाग तथा पश्चिमी घाटों के वृष्टि छाया प्रदेशों में अधिक पाई जाती है। अतः अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में बाढ़ें अधिक आती हैं, जबकि निम्न वर्षा वाले क्षेत्रों में सूखे की आशंका बनी रहती है।

मानसून - एकता का परिचायक

आप पहले ही पढ़ चुके हैं कि हिमालय अत्यंत ठंडी पवनों से भारतीय उपमहाद्वीप की रक्षा करता है। इसके कारण अपेक्षाकृत उच्च अक्षांशों के बावजूद उत्तरी भारत में निरंतर ऊँचा तापमान बना रहता है। इसी प्रकार प्रायद्वीपीय पठार में तीनों ओर से समुद्रों के प्रभाव के कारण न तो अधिक गर्मी पड़ती है और न अधिक सर्दी। इस समकारी प्रभाव के कारण तापमान की दिशाओं में बहुत कम अंतर पाए जाते हैं। परंतु फिर भी भारतीय प्रायद्वीप पर मानसून की एकता का प्रभाव बहुत ही स्पष्ट है। पवन की दिशाओं का ऋतुओं के अनुसार परिवर्तन तथा उनसे संबंधित ऋतु की दशाएँ ऋतु-चक्रों को एक लय प्रदान करती हैं। वर्षा की अनिश्चितताएँ तथा उसका असमान वितरण मानसून का एक विशिष्ट लक्षण है। संपूर्ण भारतीय भूदृश्य, इसके जीव तथा वनस्पति, इसका कृषि-चक्र, मानव-जीवन तथा उनके त्यौहार-उत्सव, सभी इस मानसूनी लय के चारों ओर घूम रहे हैं। उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम तक संपूर्ण भारतवासी प्रति वर्ष मानसून के आगमन की प्रतीक्षा करते हैं। ये मानसूनी पवनें हमें जल प्रदान कर कृषि की प्रक्रिया में तेजी़ लाती हैं एवं संपूर्ण देश को एक सूत्र में बाँधती हैं। नदी घाटियाँ जो इन जलों का संवहन करती हैं, उन्हें भी एक नदी घाटी इकाई का नाम दिया जाता है।

अभ्यास

  1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनें।

    (i) नीचे दिए गए स्थानों में किस स्थान पर विश्व में सबसे अधिक वर्षा होती है?

    (क) सिलचर

    (ख) चेरापूंजी

    (ग) मासिनराम

    (घ) गुवाहाटी

    (ii) ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी मैदानों में बहने वाली पवन को निम्नलिखित में से क्या कहा जाता है?

    (क) काल वैशाखी

    (ख) व्यापारिक पवनें

    (ग) लू

    (घ) इनमें से कोई नहीं

    (iii) भारत में मानसून का आगमन निम्नलिखित में से कब होता है-

    (क) मई के प्रारंभ में

    (ख) जून के प्रारंभ में

    (ग) जुलाई के प्रारंभ में

    (घ) अगस्त के प्रारंभ में

    (iv) निम्नलिखित में से कौन-सी भारत में शीत ऋतु की विशेषता है?

    (क) गर्म दिन एवं गर्म रातें

    (ख) गर्म दिन एवं ठंडी रातें

    (ग) ठंडा दिन एवं ठंडी रातें

    (घ) ठंडा दिन एवं गर्म रातें

  2. निम्न प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए।

    (i) भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं?

    (ii) भारत में मानसूनी प्रकार की जलवायु क्यों है?

    (iii) भारत के किस भाग में दैनिक तापमान अधिक होता है एवं क्यों?

    (iv) किन पवनों के कारण मालाबार तट पर वर्षा होती है?

    (v) मानसून को परिभाषित करें। मानसून में विराम से आप क्या समझते हैं?

    (vi) मानसून को एक सूत्र में बाँधने वाला क्यों समझा जाता है?

  3. उत्तर-भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा क्यों घटती जाती है?

  4. कारण बताएँ।

    (i) भारतीय उपमहाद्वीप में वायु की दिशा में मौसमी परिवर्तन क्यों होता है?

    (ii) भारत में अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में होती है।

    (iii) तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा होती है।

    (iv) पूर्वी तट के डेल्टा वाले क्षेत्र में प्राय: चक्रवात आते हैं।

    (v) राजस्थान, गुजरात के कुछ भाग तथा पश्चिमी घाट का वृष्टि छाया क्षेत्र सूखा प्रभावित क्षेत्र है।

  5. भारत की जलवायु अवस्थाओं की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को उदाहरण सहित समझाएँ।

  6. शीत ऋतु की अवस्था एवं उसकी विशेषताएँ बताएँ।

  7. भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताएँ बताएँ।

मानचित्र कौशल

भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित को दर्शाएँ-

(i) 400 सें॰मी॰ से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र

(ii) 20 सें०मी॰ से कम वर्षा वाले क्षेत्र

(iii) भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की दिशा

परियोजना कार्य

(i) पता लगाएँ कि आपके क्षेत्र में एक विशेष मौसम से कौन से गानें, नृत्य, पर्व एवं भोजन संबंधित हैं? क्या भारत के दूसरे क्षेत्रों से इनमें कुछ समानता है ?

(ii) भारत के विभिन्न क्षेत्रों के विशेष ग्रामीण मकानों तथा लोगों की वेश-भूषा के फोटोग्राफ इकट्ठे कीजिए। देखिए कि क्या उनमें और उन क्षेत्रों की जलवायु की दशाओं तथा उच्चावच में कोई संबंध है।

स्वयं करने के लिए

  1. सारणी-1 में दस प्रतिनिधि स्थानों के औसत माध्य मासिक तापमान तथा औसत मासिक वर्षा दिया गया है। इसका अध्ययन करके प्रत्येक स्थान के तापमान और वर्षा के आरेख बनाइए। इन आरेखों को देखकर आपको इन स्थानों के तापमान और वर्षा के अंतर का तुरंत पता चल जाएगा। यहाँ एक आरेख उदाहरण के दिया गया है। क्या आप इसके अध्ययन से अपने देश की जलवायु की विभिन्न दशाओं के बारे में कोई अनुमान लगा सकते हैं? हमें आशा है कि इन्हें जानकर आपको बड़ी प्रसन्तता होगी। निम्नलिखित अभ्यास कीजिए।
चित्र 1 : दिल्ली - तापमान और वर्षा
  1. दस स्थानों को तीन भिन्न क्रमों में लिखिए -

    (i) विषुवत् वृत्त से उनकी दूरी के क्रम में

    (ii) समुद्रतल से उनकी ऊँचाई के क्रम में

  2. (i) सर्वाधिक वर्षा वाले दो स्थान

    (ii) दो शुष्कतम स्थान

    (iii) सर्वाधिक समान जलवायु वाले दो स्थान

    (iv) जलवायु में अत्यधिक अंतर वाले दो स्थान

    (v) लौटती हुई मानसून से प्रभावित दो स्थान

    (vi) संपूर्ण भारत में सर्वाधिक वर्षा वाले दो महीने

    (vii) निम्नलिखित महीनों में सर्वाधिक गर्म दो महीने-

    (क) फरवरी

    (ख) अप्रैल

    (ग) मई

    (घ) जून

  3. अब ज्ञात कीजिए-

    (i) थिरुवनंथपुरम् तथा शिलांग में जुलाई की अपेक्षा जून में अधिक वर्षा क्यों होती है?

    (ii) जुलाई में थिरुवनंथपुरम् की अपेक्षा मुंबई में अधिक वर्षा क्यों होती है?

    (iii) चेन्नई में दक्षिण-पश्चिमी मानसून के द्वारा कम वर्षा क्यों होती है?

    (iv) शिलांग में कोलकाता की अपेक्षा अधिक वर्षा क्यों होती है?

    (v) कोलकाता में जुलाई में जून से अधिक वर्षा क्यों होती है? इसके विपरीत, शिलांग में जून में जुलाई से अधिक वर्षा क्यों होती है?

    (vi) दिल्ली में जोधपुर से अधिक वर्षा क्यों होती है?

  4. अब सोचिए! ऐसा क्यों होता है-

    • थिरुवनंथपुरम् की जलवायु सम है।
    • देश के अधिकतर भागों में मानसूनी वर्षा के समाप्त होने के बाद ही चेन्नई में अधिक वर्षा होती है?
    • जोधपुर की जलवायु उष्ण मरुस्थलीय है।
    • लेह में लगभग पूरे वर्ष मध्य वर्षण होता है।
    • दिल्ली और जोधपुर में अधिकतर वर्षा लगभग तीन महीनों में होती है, लेकिन थिरुवनंथपुरम् और शिलांग में वर्ष के 9 महीनों तक वर्षा होती है।

तालिका-I

केंद्र देशांतर अक्षांश
(मीटर)
जन. फर. मार्च अप्रै. मई जून जुलाई अग. सित. अक्तू. नव. दिस. वार्षिक
वर्षा
तापमान ( ${ }^{\circ}$ से॰)
बेंगलुरु
वर्षा (से॰मी॰)
12 58’ उ० 909 20.5
0.7
22.7
0.9
25.2
1.1
27.1
4.5
26.7
10.7
24.2
7.1
23.0
11.1
23.0
13.7
23.1
16.4
22.9
15.3
18.9
6.1
20.2
1.3
88.9
तापमान ( ${ }^{\circ}$ से॰)
मुंबई
वर्षा (से॰मी॰)
19 उ० 11 24.4
0.2
24.4
0.2
26.7
-
28.3
-
30.0
1.8
28.9
50.6
$\left|\begin{array}{l}27.2 \ 61.0\end{array}\right|$ 27.2
36.9
27.2
26.9
27.8
4.8
27.2
1.0
25.0
-
183.4
तापमान ( ${ }^{\circ}$ से॰)
कोलकाता
वर्षा ( से॰मी॰)
22 34’ उ० 6 19.6
1.2
22.0
2.8
27.1
3.4
30.1
5.1
30.4
13.4
29.9
29.0
{f494f557b-a607-43fd-8ea0-76fd3399f7b3}28.9
33.1 \right\rvert,
28.7
33.4
28.9
25.3
27.6
12.7
23.4
2.7
19.7
0.4
162.5
तापमान ( ${ }^{\circ}$ से॰)
दिल्ली
वर्षा (से॰मी॰)
29 उ० 219 14.4
2.5
16.7
1.5
23.3
1.3
30.0
1.0
33.3
1.8
33.3
7.4
$\left|\begin{array}{l}30.0 \ 19.3\end{array}\right|$ 29.4
17.8
28.9
11.9
25.6
1.3
19.4
0.2
15.6
1.0
67.0
तापमान ( ${ }^{\circ}$ से॰)
जोधपुर
वर्षा (से॰मी॰)
26 18’ उо 224 16.8
0.5
19.2
0.6
26.6
0.3
29.8
0.3
33.3
1.0
33.9
3.1
$\left|\begin{array}{l}31.3 \ 10.8\end{array}\right|$ 29.0
13.1
20.1
5.7
27.0
0.8
20.1
0.2
14.9
0.2
36.6
तापमान $\left({ }^{\circ}\right.$ से॰)
चैन्नई
वर्षा (से॰मी॰)
13 4’ उ॰ 7 24.5
4.6
25.7
1.3
27.7
1.3
30.4
1.8
33.0
3.8
32.5
4.5
$\left|\begin{array}{c}31.0 \ 8.7\end{array}\right|$ 30.2
11.3
29.8
11.9
28.0
30.6
25.9
35.0
24.7
13.9
128.6
तापमान $\left({ }^{\circ}\right.$ से॰)
नागपुर
वर्षा (से॰मी॰)
21 9’ उ० 312 21.5
1.1
23.9
2.3
28.3
1.7
32.7
1.6
35.5
2.1
32.0
22.2
$\left|\begin{array}{l}27.7 \ 37.6\end{array}\right|$ 27.3
28.6
27.9
18.5
26.7
5.5
23.1
2.0
20.7
1.0
124.2
तापमान $\left({ }^{\circ}\right.$ से॰ $)$
शिलांग
वर्षा (से॰मी॰)
$2434^{\prime}$ उ० 1461 9.8
1.4
11.3
2.9
15.9
5.6
18.5
14.6
19.2
29.5
20.5
47.6
$\left|\begin{array}{l}21.1 \ 35.9\end{array}\right|$ 20.9
34.3
20.0
30.2
17.2
18.8
13.3
3.8
10.4
0.6
225.3
तापमान ( ${ }^{\circ}$ से॰)
थिरुवनंथप्ररम
वर्षा (से॰मी॰)
8 29’ उ० 61 26.7
2.3
27.3
2.1
28.3
3.7
28.7
10.6
28.6
20.8
26.6
35.6
$\left|\begin{array}{l}26.2 \ 22.3\end{array}\right|$ 2.6 .2
14.6
26.5
13.8
26.7
27.3
26.6
20.6
26.5
7.5
181.2
तापमान $\left({ }^{\circ}\right.$ से॰)
लेह
वर्षा (से॰मी॰)
34 उ० 3506 -8.5
1.0
-7.2
0.8
-0.6
0.8
6.1
0.5
10.0
0.5
14.4
0.5
$\binom{17.2}{1.3}$ 16.1
1.3
12.2
0.8
6.1
0.5
0.0 -5.6
0.5
8.5

गंभीरता से विचार कीजिए कि इन सब तथ्यों के बावजूद क्या हमारे पास इस निष्कर्ष पर पहुँचने के पुष्ट प्रमाण है कि पूरे देश में जलवायु की सामान्य एकता बनाए रखने में मानसून का अत्यधिक महत्त्वपूर्ण योगदान है।



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