अध्याय 02 धर्मनिरपेक्षता की समझ

कल्पना कीजिए कि आप हिंदू या मुसलमान हैं और अमेरिका के किसी ऐसे भाग में रहते हैं जहाँ ईसाई कट्टरपंथी बहुत ताकतवर हैं। मान लीजिए कि अमेरिका का नागरिक होते हुए भी कोई आपको किराये पर मकान नहीं देना चाहता। आपको कैसा महसूस होगा? क्या आपको गुस्सा नहीं आएगा? अगर आप इस भेदभाव के खिलाफ़ शिकायत करें और जवाब में आपको कहा जाए कि यह देश तुम्हारा नहीं है, तुम भारत लौट जाओ, तो आपको कैसा लगेगा? क्या आपको बुरा नहीं लगेगा? आपका यह गुस्सा दो रूप ले सकता है। एक, हो सकता है आप प्रतिक्रिया में यह कहें कि जहाँ हिंदू और मुसलमानों की तादाद ज़्यादा है वहाँ ईसाइयों के साथ भी इसी तरह का बर्ताव होना चाहिए। यह बदला लेने वाली बात है। या फिर आप यह राय बना सकते हैं कि सबको इंसाफ़ मिलना चाहिए। इस सोच के आधार पर आप संघर्ष का रास्ता चुनकर इस बात के आवाज़ उठा सकते हैं कि धर्म और आस्था के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। यह सोच इस मान्यता पर आधारित है कि धर्म से संबंधित किसी भी तरह का वर्चस्व खत्म होना चाहिए। यही धर्मनिरपेक्षता का मूलमंत्र है। इस अध्याय में हम यही चर्चा करेंगे कि भारतीय संदर्भ में इसका क्या अर्थ है।

इतिहास में हमें धर्म के आधार पर भेदभाव, बेदखली और अत्याचार के अनेक उदाहरण मिलते हैं। शायद आपने पढ़ा होगा कि हिटलर ने जर्मनी में यहूदियों पर किस तरह के अत्याचार किए। वहाँ कई लाख लोगों को केवल धर्म के आधार पर मार दिया गया था। लेकिन अब यहूदी धर्म को मानने वाले इजरायल में भी मुसलमान और ईसाई अल्पसंख्यकों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है। सऊदी अरब में ग़ैर-मुसलमानों को मंदिर या गिरजाघर बनाने की छूट नहीं है। न ही इन धर्मों के लोग वहाँ पूजा-अर्चना के किसी सार्वजनिक स्थल पर इकट्ठा हो सकते हैं।

इन सभी उदाहरणों में एक धर्म के लोग अन्य धार्मिक समुदायों के लोगों के साथ या तो भेदभाव कर रहे हैं या उनका उत्पीड़न कर रहे हैं। भेदभाव की ऐसी घटनाएँ तब और ज़्यादा बढ़ जाती हैं जब दूसरे धर्मों के स्थान पर राज्य किसी एक धर्म को अधिकृत मान्यता प्रदान कर देता है। ज़ाहिर है कोई भी व्यक्ति अपने धर्म की वज़ह से न तो भेदभाव का शिकार होना चाहता है और न ही किसी दूसरे धर्म का दबदबा झेलना चाहता है। भारत में क्या राज्य धर्म के आधार पर किसी नागरिक के साथ भेदभाव कर सकता है?

इस अध्याय की भूमिका को एक बार फिर पढ़िए। आपको ऐसा क्यों लगता है कि बदले की भावना इस समस्या से निपटने का सही रास्ता नहीं हो सकती? अगर सारे समूह बदले के रास्ते पर चल पड़े तो क्या होगा?

धर्मनिरपेक्षता क्या है?

पिछले अध्याय में आपने पढ़ा कि भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है। ये अधिकार न केवल राज्य की सत्ता से हमें बचाते हैं बल्कि बहुमत की निरंकुशता से भी हमारी रक्षा करते हैं। भारतीय संविधान सभी को अपने धार्मिक विश्वासों और तौर-तरीकों को अपनाने की पूरी छूट देता है। सबके समान धार्मिक स्वतंत्रता के इस विचार को ध्यान में रखते हुए भारतीय राज्य ने धर्म और राज्य की शक्ति को एक-दूसरे से अलग रखने की रणनीति अपनाई है। धर्म को राज्य से अलग रखने की इसी अवधारणा को धर्मनिरपेक्षता कहा जाता है। इस अध्याय की भूमिका को एक बार फिर पढ़िए। आपको ऐसा क्यों लगता है कि बदले की भावना इस समस्या से निपटने का सही रास्ता नहीं हो सकती? अगर सारे समूह बदले के रास्ते पर चल पड़ें तो क्या होगा?

इस अध्याय में तीन चित्र आप ही के उम्र के विद्यार्थियों ने बनाए हैं। उन्हें धार्मिक सहिष्णुता पर चित्र बनाने के कहा गया था।

धर्म को राज्य से अलग रखना महत्त्वपूर्ण क्यों है?

जैसी कि पीछे चर्चा की गई है, धर्मनिरपेक्षता का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है धर्म को राजसत्ता से अलग करना। एक लोकतांत्रिक देश में यह बहुत ज़रूरी है। दुनिया के तकरीबन सारे देशों में एक से ज़्यादा धर्मों के लोग साथ-साथ रहते हैं। ज़ाहिर है हर देश में किसी एक धर्म के लोगों की संख्या ज़्यादा होगी। अब अगर बहुमत वाले धर्म के लोग राज्य सत्ता में पहुँच जाते हैं तो उनका समूह दूसरे धर्मों के खिलाफ़ भेदभाव करने और उन्हें परेशान करने के इस सत्ता और राज्य के आर्थिक संसाधनों का इस्तेमाल कर सकता है। बहुमत की इस निरंकुशता के चलते धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव हो सकता है। उनके साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती हो सकती है। यहाँ तक कि कई बार उनकी हत्या भी कर दी जाती है। बहुमत चाहे तो अल्पसंख्यकों को उनके धर्म के अनुसार जीने से रोक सकता है। धर्म के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव उन अधिकारों का उल्लंघन है जो एक लोकतांत्रिक समाज किसी भी धर्म को मानने वाले अपने प्रत्येक नागरिक को प्रदान करता है। लिहाजा बहुमत की निरंकुशता और उसके कारण मौलिक अधिकारों का हनन, वह अहम कारण है जिसके चलते लोकतांत्रिक समाजों में राज्य और धर्म को अलग-अलग रखना इतना महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

लोकतांत्रिक समाजों में धर्म को राज्य से अलग रखने का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि हमें लोगों के धार्मिक चुनाव के अधिकार की रक्षा करनी है। इसका अर्थ यह है कि देश के किसी भी व्यक्ति को एक धर्म से निकलने और दूसरे धर्म को अपनाने या धार्मिक उपदेशों की अलग ढंग से व्याख्या करने की स्वतंत्रता होती है। आइए इस बात को और अच्छी तरह समझने के छुआछूत की प्रथा पर विचार करें। संभव है आपको हिंदुओं के बीच प्रचलित यह प्रथा अच्छी न लगती हो। इसका मतलब है कि आप इसे बदलने की कोशिश भी करेंगे। लेकिन अगर राज्य की सत्ता ऐसे हिंदुओं के हाथ में है जो छुआछूत को सही मानते हैं तो क्या आप आसानी से इस प्रथा को बदल पाएँगे? अगर आप प्रभुत्वशाली धार्मिक समुदाय के सदस्य हैं तो भी आपको अपने समुदाय के ही दूसरे लोगों की ओर से भारी विरोध का सामना करना पड़ सकता है। राज्य सत्ता पर नियंत्रण रखने वाले ऐसे सदस्य कहेंगे कि हिंदुत्व की केवल एक ही व्याख्या होती है और उसकी कोई और व्याख्या करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है।

कक्षा में चर्चा करें- क्या एक ही धर्म के भीतर अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं?

भारतीय धर्मनिरपेक्षता क्या है?

भारतीय संविधान में कहा गया है कि भारतीय राज्य धर्मनिरपेक्ष रहेगा। हमारे संविधान के अनुसार, केवल धर्मनिरपेक्ष राज्य ही अपने उद्देश्यों को साकार करते हुए निम्नलिखित बातों का खयाल रख सकता है कि-

1. कोई एक धार्मिक समुदाय किसी दूसरे धार्मिक समुदाय को न दबाए;

2. कुछ लोग अपने ही धर्म के अन्य सदस्यों को न दबाएँ; और

3. राज्य न तो किसी खास धर्म को थोपेगा और न ही लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता छीनेगा।

इस तरह के दबदबे को रोकने के भारतीय राज्य कई तरह से काम करता है। पहला तरीका यह है कि वह खुद को धर्म से दूर रखता है। भारतीय राज्य की बागडोर न तो किसी एक धार्मिक समूह के हाथों में है और न ही राज्य किसी एक धर्म को समर्थन देता है। भारत में कचहरी, थाने, सरकारी विद्यालय और दफ़्तर जैसे सरकारी संस्थानों में किसी खास धर्म को प्रोत्साहन देने या उसका प्रदर्शन करने की अपेक्षा नहीं की जाती है।

उपरोक्त चित्रकथा-पट्ट में स्कूल के भीतर किसी धार्मिक त्योहार का आयोजन सभी धर्मों के साथ एक जैसा व्यवहार करने की सरकारी नीति के खिलाफ़ होता। सरकारी स्कूल अपनी प्रातःकालीन प्रार्थनाओं या धार्मिक आयोजनों के ज़रिए किसी एक धर्म को बढ़ावा नहीं दे

उपरोक्त चित्रकथा-पट्ट में शिक्षक ने जो उत्तर दिया है उस पर चर्चा करें।

धार्मिक वर्चस्व को रोकने के भारतीय धर्मनिरपेक्षता का दूसरा तरीका है अहस्तक्षेप की नीति। इसका मतलब है कि सभी धर्मों की भावनाओं का सम्मान करने और धार्मिक क्रियाकलापों में दखल न देने के , राज्य कुछ खास धार्मिक समुदायों को कुछ विशेष छूट देता है।

सरकारी स्कूलों में अकसर कई धर्मों के बच्चे आते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए धर्मनिरपेक्ष राज्य के तीन उद्देश्यों को दोबारा पढ़िए। आप इस बारे में दो वाक्य लिखिए कि सरकारी स्कूलों को किसी एक धर्म को बढ़ावा क्यों नहीं देना चाहिए।

इस चित्रकथा-पट्ट में सिख युवक परमजीत को हैलमेट पहनने की ज़रूरत नहीं है। कारण यह कि भारतीय राज्य इस बात को मान्यता देता है कि पगड़ी पहनना सिख धर्म की प्रथाओं के मुताबिक महत्त्वपूर्ण है। लिहाज़ा इन धार्मिक आस्थाओं में दखलंदाज़ी से बचने के राज्य ने कानून में रियायत दे दी है।

धार्मिक वर्चस्व को रोकने के भारतीय धर्मनिरपेक्षता का तीसरा तरीका हस्तक्षेप का तरीका है। इसी अध्याय में पीछे आप छुआछूत के बारे में पढ़ चुके हैं। यह इस बात का उपयुक्त उदाहरण है कि किस

तरह एक ही धर्म के लोग (‘ऊँची जाति’ के हिंदू) अपने ही धर्म के अन्य सदस्यों (कुछ ‘निचली जातियों’) को दबाते हैं। धर्म के नाम पर अलग-थलग करने और भेदभाव को रोकने के भारतीय संविधान ने छुआछूत पर पाबंदी लगाई है। इस उदाहरण में राज्य धर्म के नाम पर अलग-थलग करने और भेदभाव को बढ़ावा देने वाली उस प्रथा को खत्म करने के धर्म में हस्तक्षेप कर रहा है जो ‘निचली जातियों’ के लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन करता है क्योंकि वे भी इसी देश के नागरिक हैं। इसी तरह माँ-बाप की संपत्ति में बराबर हिस्से के अधिकार का सम्मान करने के राज्य को समुदायों के धर्म पर आधारित ‘निजी कानूनों’ में भी हस्तक्षेप करना पड़ सकता है।

राज्य का हस्तक्षेप सहायता के रूप में भी हो सकता है। भारतीय संविधान धार्मिक समुदायों को अपने स्कूल और कॉलेज खोलने का अधिकार देता है। गैर-प्राथमिकता के आधार पर राज्य से उन्हें सीमित आर्थिक सहायता भी मिलती है।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता दूसरे लोकतांत्रिक देशों की धर्मनिरपेक्षता से किस तरह अलग है

ऊपर दिए गए तीनों उद्देश्य दुनिया के अन्य धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देशों के संविधान में दिए गए उद्देश्यों से मिलते-जुलते हैं। अमेरिकी संविधान में हुए पहले संविधान संशोधन के ज़रिए विधायिका को ऐसे कानून बनाने से रोक दिया गया है जो “धार्मिक संस्थानों का पक्ष लेते” हों या “धार्मिक स्वतंत्रता को रोकते” हों। इसका मतलब है कि विधायिका किसी भी धर्म को राजकीय धर्म घोषित नहीं कर सकती, न ही विधायिका किसी एक धर्म को ज़्यादा प्राथमिकता दे सकती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में राज्य और धर्म के पृथक्करण का मतलब है कि राज्य और धर्म, दोनों ही एक-दूसरे के मामलों में किसी तरह का दखल नहीं दे सकते।

शायद आप समझ गए होंगे कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता और अमेरिकी धर्मनिरपेक्षता के बीच एक अहम फ़र्क है। ऐसा इस है कि अमेरिकी धर्मनिरपेक्षता में धर्म और राज्य के बीच स्पष्ट अलगाव के विपरीत भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य को धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने की छूट दी गई है। आप पढ़ चुके हैं कि किस तरह भारतीय

संविधान ने छुआछूत को खत्म करने के हिंदू धार्मिक क्रियाकलापों में हस्तक्षेप किया है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य धर्म से अलग तो है, लेकिन धर्म से उसका फ़ासला सैद्धांतिक है। इसका मतलब यह है कि संविधान में दिए गए आदर्शों के आधार पर राज्य किसी भी धर्म के मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है। ये आदर्श वह कसौटी मुहैया कराते हैं जिसके ज़रिए इस बारे में फैसला लिया जा सकता है कि हमारा राज्य धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के अनुरूप काम कर रहा है या नहीं।

भारतीय राज्य धर्मनिरपेक्ष है और धार्मिक वर्चस्व को रोकने के कई तरह से काम करता है। भारतीय संविधान अपने नागरिकों को मौलिक अधिकारों का आश्वासन देता है। ये मूलभूल अधिकार इन धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों पर आधारित हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि भारतीय समाज में इन अधिकारों का उल्लंघन बंद हो गया है। बल्कि वास्तव में ऐसे उल्लंघनों की वज़ह से ही हमारे सामने संवैधानिक व्यवस्था की ज़रूरत बनी हुई है। इस तरह के अधिकारों के होने का ज्ञान हमें इन अधिकारों के उल्लंघन के प्रति संवेदनशील बनाता है। जब कभी ऐसा होता है तो हमें इसके खिलाफ़ सही कदम उठाने की क्षमता भी उसी से मिलती है।

संयुक्त राज्य अमेरिका में सरकारी स्कूलों के ज़्यादातर बच्चे सुबह सबसे पहले ‘वफ़ादारी की शपथ’ (Pledge of allegiance) लेते हैं। इस शपथ में “ईश्वर की छत्रछाया” शब्द आते हैं। साठ साल से भी पहले ही वहाँ यह तय कर दिया गया था कि अगर यह शपथ किसी बच्चे की धार्मिक आस्था को ठेस पहुँचाती है तो उसे इसको दोहराने की ज़रूरत नहीं है। इसके बावजूद वहाँ “ईश्वर की छत्रछाया” वाक्यांश को कई बार कानूनी चुनौती दी जा चुकी है। चुनौती देने वालों का कहना है कि यह वाक्यांश अमेरिकी संविधान के पहले संशोधन में चर्च और राज्य के बीच किए गए पृथक्करण का उल्लंघन करता है। उपरोक्त चित्र में अमेरका के सरकारी स्कूल के बच्चे ‘वफादारी की शपथ’ लेते हुए दिखाई दे रहे हैं।

क्या आप भारत के किसी भी भाग से हाल की कोई ऐसी घटना बता सकते हैं जहाँ संविधान के धर्मनिरपेक्ष आदर्शों का उल्लंघन किया गया हो और लोगों को उनके धर्म की वज़ह से प्रताड़ित किया गया हो या मारा गया हो?

फ़रवरी 2004 में फ्रांस में एक कानून बनाया गया। इस कानून में प्रावधान किया गया कि कोई भी विद्यार्थी इस्लामी बुरका, यहूदी टोपी या बड़े-बड़े ईसाई क्रॉस जैसे धार्मिक अथवा राजनीतिक चिह्नों या प्रतीकों को धारण करके स्कूल में नहीं आएगा। फ्रांस में रहने वाले उन आप्रवासियों ने इस कानून का काफ़ी विरोध किया। वे मुख्यतया अल्जीरिया, ट्यूनीशिया और मोरक्को आदि उन देशों से आए थे जो पहले फ्रांस के उपनिवेश थे। 1960 के दशक में फ्रांस में मज़दूरों की कमी हो गई थी। उस समय इन आप्रवासियों को फ्रांस आकर काम करने के वीज़ा यानी प्रवेश पत्र दिए गए थे। इन आप्रवासियों की बेटियाँ स्कूल में अकसर सिर पर रूमाल बाँधकर जाती हैं। लेकिन इस नए कानून के लागू होने के बाद उन्हें सिर पर रूमाल बाँधने के कारण स्कूलों से निकाल दिया गया है।

अभ्यास

1. अपने आस-पड़ोस में प्रचलित धार्मिक क्रियाकलापों की सूची बनाइए। आप विभिन्न प्रकार की प्रार्थनाओं, विभिन्न देवताओं की पूजा विभिन्न पवित्र स्थानों, विभिन्न प्रकार के धार्मिक संगीत और गायन आदि को देख सकते हैं। क्या इससे धार्मिक क्रियाकलापों की स्वतंत्रता का पता चलता है?

2. अगर किसी धर्म के लोग यह कहते हैं कि उनका धर्म नवजात शिशुओं को मारने की छूट देता है तो क्या सरकार किसी तरह का दखल देगी या नहीं? अपने उत्तर के समर्थन में कारण बताइए।

3. इस तालिका को पूरा कीजिए-

उद्देश्य यह महत्त्वपूर्ण क्यों है? इस उद्देश्य के उल्लंघन का एक
उदाहरण
एक धार्मिक समुदाय दूसरे समुदाय
पर वर्चस्व नहीं रखता
राज्य न तो किसी धर्म को थोपता है
और न ही लोगों की धार्मिक
स्वतंत्रता छीनता है
एक ही धर्म के कुछ लोग अपने
ही धर्म के दूसरे लोगों को न दबाएँ

4. अपने स्कूल की छुट्टियों के वार्षिक कैलेंडर को देखिए। उनमें से कितनी छुट्टियाँ विभिन्न धर्मों से संबंधित हैं? इससे क्या संकेत मिलता है?

5. एक ही धर्म के भीतर अलग-अलग दृष्टिकोणों के कुछ उदाहरण दें?

6. भारतीय राज्य धर्म से फ़ासला भी रखता है और उसमें हस्तक्षेप भी करता है। यह उलझाने वाला विचार लग सकता है। इस पर कक्षा में एक बार फिर चर्चा कीजिए। चर्चा के इस अध्याय में दिए गए उदाहरणों के अलावा आप अपनी जानकारी के अन्य उदाहरणों का भी सहारा ले सकते हैं।

7. साथ में दिया गया यह पोस्टर ‘शांति’ के महत्त्व को रेखांकित करता है। इस पोस्टर में कहा गया है कि “शांति कभी न खत्म होने वाली प्रक्रिया है… यह हमारी आपसी भिन्नताओं और साझा हितों को नज़रअंदाज़ करके नहीं चल सकती।” ये वाक्य क्या बताते हैं? अपने शब्दों में लिखिए। धार्मिक सहिष्णुता से इसका क्या संबंध है?

इस अध्याय में आप ही की उम्र के विद्यार्थियों ने भी धार्मिक सहिष्णुता पर तीन तस्वीरें बनाई हैं। धार्मिक सहिष्णुता को ध्यान में रखते हुए अपने साथियों को दिखाने के खुद एक पोस्टर बनाइए।

शब्द संकलन

ज़ोर-ज़बरदस्ती- इसका मतलब है किसी को कोई चीज़ करने के मजबूर करना। इस अध्याय के संदर्भ में यह शब्द राज्य जैसी किसी कानूनी सत्ता द्वारा ताकत के इस्तेमाल से है।

व्याख्या की स्वतंत्रता- सभी व्यक्तियों को अपने हिसाब से चीज़ों को समझने की छूट होती है। इस अध्याय में व्याख्या की स्वतंत्रता का मतलब है कि हरेक व्यक्ति अपने धर्म की समझ और अर्थ खुद तय कर सकता है।

हस्तक्षेप- प्रस्तुत अध्याय में इसका मतलब है संविधान के सिद्धांतों के अनुरूप किसी मामले को प्रभावित करने के राज्य की ओर से होने वाला प्रयास।



विषयसूची