अध्याय 18 आओ पत्रिका निकालें

बहुत-से बच्चों को लेखक बनने का शौक होता है-अपना नाम पत्रिकाओं में छपा देखने का, बड़े होने पर अपने नाम की किताब छपी देखने का। यह कोई बुरी बात नहीं बल्कि अच्छी बात है लेकिन इसके लिए तैयारी ज़रूरी है, जैसे खिलाड़ी बनने के लिए ज़रूरी है। दुनिया के अधिकतर बड़े लेखकों ने अपनी पत्रिकाएँ निकाली हैं। तुम भी अपनी पत्रिका निकाल सकते हो।

बाज़ार से रूलदार कागज़ ले आओ। अपने भाई-बहनों से, अपने स्कूल और मुहल्ले के साथियों से बातचीत करो। उनसे कहो कि पत्रिका निकालने जा रहे हो। वे तुम्हारी पत्रिका के लिए कुछ लिखें-कविता, कहानी, लेख, चुटकुले जो भी जी में आए। इसके लिए तुम्हें अपनी रचना दे दें।

जब सारी रचनाएँ इकट्डी कर लो तब उसे साफ-साफ़ हाथ से रूलदार कागज़ पर लिख लो या तुम्हारे साथियों में जिसकी हस्तलिपि बढ़िया हो उससे लिखा लो। अगर कोई ड्राइंग या पेंटिंग बनाना चाहे तो उसी साइज के, बिना रूल वाले, कागज़ पर उससे बनवा लो। फिर उसे रचनाओं के बीच-बीच में लगा लो। सबको इकट्ठा कर खुद ही सी लो।

पत्रिका को खूबसूरत बनाने के लिए उसका कवर मोटे कागज़ का रखो और उस पर रंगीन

कागज़ व रंग से सजावट कर लो। अपनी पत्रिका का कुछ नाम रख लो। पृष्ठों पर नंबर डाल लो। शुरू में एक सूची बना लो। किस पृष्ठ पर किसकी रचना है वहाँ लिख दो। पर तुम्हारी पत्रिका कितनी छोटी-बड़ी हो या कितने लोग कितना लिखेंगे, इसके हिसाब से तय करो। रंगीन पेंसिलों से हर पृष्ठ का हाशिया बेल-बूटेदार बना सकते हो। कोशिश करो कि तुम्हारे साथी लेखक अपना सोचकर लिखें, जो न लिख पाएँ वह दूसरे किसी लेखक की रचना लिखें, लेकिन चोरी न

करें। उस लेखक की रचना है, यह लिख दें।

अपनी पत्रिका निकालने के लिए तुम पाँच बातें ज़रूर ध्यान में रखो-

1. हिज्जे दुरुस्त हों और भाषा और व्याकरण की अशुद्धियाँ न हों। किसी बड़े को पहले दिखा सकते हो।

2. अपनी लिखी मौलिक रचना को लेख, कहानी, कविता जो कुछ भी हो पहला स्थान दो। दूसरे की प्रिय रचना को दूसरा स्थान दो। चोरी की रचना मत दो।

3. लिखने-लिखाने से पहले यदि साथी लेखक चाहते हों तो उनसे बात कर लो। क्या लिख रहे हैं उस पर साथ मिलकर विचार कर लो।

4. तुम अपनी पत्रिका निकाल रहे हो अतः संपादक होने का घमंड मत करो बल्कि अपने लेखकों को प्यार करो, उन्हें आदर-सम्मान दो। कमज़ोर रचना को ठीक करना हो तो उनको बता दो।

5. पत्रिका लिखावट और सजावट में जितनी खूबसूरत बना सकते हो, बनाओ।

जब तुम्हारी पत्रिका सिल-सिलाकर तैयार हो जाए तो सारे लेखक साथियों को इकट्ठा करो और यदि माँ चाय-पकौड़ी का जुगाड़ कर दें तो क्या कहने!

पत्रिका के अंत में कुछ पृष्ठ कोरे छोड़ना न भूलना। इस पर अपने माता-पिता, अध्यापक या आसपास के कुछ छोटे-बड़े लेखक हों तो उनसे उनकी राय लिखवा लेना। फिर स्कूल खुलने पर अपने-अपने शिक्षकों को भी दिखाना, उनकी राय लिखवाना और यदि चाहो तो अपने स्कूल के प्रमाण-पत्र के साथ हमें अपनी पत्रिका निकालने की सूचना देना।

वैसे दुनिया के बड़े लेखकों ने अपनी खुशी के लिए शुरू-शुरू में अपने हाथ से लिखी पत्रिकाएँ निकाली हैं, किसी नाम के लिए नहीं। चाहो तो उनका यह रास्ता अख्तियार कर सकते हो। हमारी शुभकामनाएँ अभी से लो!

  • सर्वेश्वर दयाल सक्सेना


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