अध्याय 05 नाटक में नाटक (कहानी)
राकेश का मन तो कह रहा था कि बिना पूरी तैयारी के नाटक नहीं खेलना चाहिए और जब नाटक में अभिनय करने वाले कलाकार भी नए हों, मंच पर आकर डर जाते हों, घबरा जाते हों और कुछ-कुछ बुद्ध भी हों, तब तो अधूरी तैयारी से खेलना ही नहीं चाहिए। उसके साथी मोहन, सोहन और श्याम ऐसे ही थे। राकेश को उनके अभिनय पर बिलकुल भी विश्वास नहीं था। वह स्वयं अभिनय इसलिए नहीं कर रहा था कि फुटबाल खेलते हुए वह अचानक गिर पड़ा था और उसके हाथ में चोट लग गई थी और हाथ को एक पट्टी में लपेटकर गर्दन के सहारे लटकाए रखना पड़ता था।
नाटक खेलना बहुत आवश्यक था। मोहल्ले की इज्ज़त का सवाल था। मोहल्ले के बच्चों ने मिल-जुलकर फालतू पड़े एक छोटे से सार्वजनिक मैदान में दूब व फूल-पौधे लगाए थे। वहीं एक मंच भी बना लिया था। राकेश की योग्यता पर सबको बहुत विश्वास भी था।
समय था केवल एक सप्ताह का। सात दिन ऐसे निकल गए कि पता भी नहीं लगा। मोहन, सोहन और श्याम यूँ तो अच्छी तरह अभिनय करने लगे थे, पर राकेश को उनके बुद्धूपन से डर था। हर एक अपने को दूसरे से अधिक समझदार मानता था। इसलिए यह भूल जाता था कि वह कहाँ क्या कर रहा है बस कहने से मतलब! दूसरे चाहे उनकी मूर्खतापूर्ण बातों पर हँस रहे हों, मगर वे पागलों की तरह आपस में ही उलझने लगते थे।
राकेश ने पूर्वाभ्यास के सात दिनों में उन्हें बहुत अच्छी तरह समझाया था। निर्देशन उसने इतना अच्छा दिया था कि छोटी-से-छोटी और साधारण से साधारण बात भी समझ में आ जाए।
खैर प्रदर्शन का दिन और समय भी आ गया। राकेश साज-सज्जा कक्ष में खड़ा सबको खास-खास हिदायतें फिर से दे रहा था।
मोहन बोला, “मेरा तो दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा है।”
“मेरा भी”, सोहन ने सीने पर हाथ रखकर कहा।
“तुम लोग पानी पियो और मन को साहसी बनाओ।” राकेश ने फिर हिम्मत बढ़ाई।
जैसे-तैसे अभी तक तो ठीक-ठाक हो गया। अभिनेता मंच पर आ गए। पर्दा उठा।
मोहन बना था चित्रकार। और सोहन बना था उर्दू का शायर। नाटक में दोनों दोस्त होते हैं। चित्रकार कहता है उसकी कला महान, शायर कहता है उसकी कला महान! श्याम बनता है संगीतकार! वह उनसे मुलाकात करने उनके उस स्थान पर आता है, जहाँ वे यह बहस कर रहे हैं। बजाय इसके कि वह नए-नए मित्रों से मधुर बातें करे, बड़े-छोटे के इस विवाद में उलझ जाता है। वह कहता है संगीतकार की कला महान!
अभी तक अभिनय अच्छी तरह चल रहा था। सबको अपना-अपना पार्ट याद आ रहा था। सब ठीक-ठीक अभिनय करते चले जा रहे थे। अचानक श्याम पार्ट भूल गया!
पर्दे की आड़ में राकेश स्वयं पूरा नाटक लिए खड़ा था। वह हर एक संवाद का पहला शब्द बोल रहा था, ताकि कलाकारों को संवाद याद आते रहें।
मगर श्याम घबरा गया। वह सहसा चुप हो गया। उसके चुप होने से चित्रकार और शायर महोदय भी चुप हो गए। होना यह चाहिए था कि दोनों कोई बात मन की ही बनाकर बात आगे बढ़ा
देते। पर वे घबराकर राकेश की तरफ़ देखने लगे। संगीतकार महोदय भी पलटकर राकेश की ओर देखने लगे।
राकेश बार-बार संगीतकार जी का संवाद बोल रहा था मगर आवाज तेज होकर ‘माइक’ से सबको न सुनाई दे जाए, इसलिए धीरे-धीरे फुसफुसाकर बोल रहा था, संगीतकार जी को वह हल्की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी।
तभी शायर साहब संगीतकार के कंधे पर हाथ मारकर बोले “उधर जाकर सुन ले न।” संगीतकार अपना वायलिन पकड़े-पकड़े राकेश की ओर खिसक आए!
दर्शक ठठाकर हँस पड़े। संगीतकार जी और घबरा गए। जो कुछ सुनाई पड़ा उसे ही बिना समझे-बूझे झट से बोलने लगे।
संवाद था - ‘जब संगीत की स्वर-लहरी गूँजती है, तो पशु-पक्षी तक मुग्ध हो जाते हैं, शायर साहब! आप क्या समझते हैं संगीत को?
मगर संगीतकार साहब बोल गए यों - “जब संगीत की स्वर-लहरी गूँजती है तो पशु-पक्षी तक मुँह की खा जाते हैं, गाजर साहब! आप क्या समझते हैं हमें?”
शायर साहब तपाक से बोले, “तुम्हारा सर! गाजर साहब हूँ मैं?”
दर्शक फिर ठठाकर हँस पड़े।
चित्रकार महोदय ने मंच पर सूझ और अक्लमंदी दिखाने की कोशिश की - “इनका मतलब है आपकी शायरी गाजर-मूली है और आप गाजर साहब हैं। सो इनकी कला महान है। मगर मेरी कला इनसे भी महान है।”
राकेश दाँत पीस रहा था। उसकी सारी मेहनत पर पानी पड़ गया था। पर इस तरह बात सँभलते देखकर कुछ शांत हुआ।
इस बार शायर साहब बुद्धूपना दिखा बैठे। गुस्सा होकर बोले, “तूने भी गलत बोल दिया। मुझे गाजर साहब कहने की बात थी क्या? और मेरी शायरी गाजर-मूली है, तो तेरी चित्रकला झाडू फेरना है, पोतना है, झख मारना है।”
चित्रकार महोदय ने हाथ उठाकर कहा," देख, मुँह सँभालकर बोल!"
दर्शक फिर बड़े ज़ोर से हँस पड़े।
राकेश घबरा रहा था। गुस्सा भी आ रहा था उसे और रोना भी। सारी इज़्ज़त मिट्टी में मिल गई।
पर अब क्या हो? वह बार-बार दोनों हथेलियों को मसल रहा था और कोई तरकीब सोच रहा था।
इधर मंच पर तीनों में ज़ोरों से तू-तू मैं-मैं हो रही थी। चित्रकार महोदय हाथ में कूची पकड़े, आँखें नचा-नचाकर, मटक-मटककर बोल रहे थे-
“अरे चमगादड़ तुझे क्या खाक शायरी करना आता है! ज़बरदस्ती ही तुझे यह पार्ट दे दिया। तूने सारा गड़बड़ कर दिया।”
“मुझे चमगादड़ कहता है? अरे आलूबुखारे, शायरी तो मेरी बातों से टपकती है। तूने कभी ‘टूथ-ब्रुश’ के अलावा कोई ब्रुश उठाया भी है? यहाँ चित्रकार बना दिया तो सचमुच ही अपने को चित्रकार समझ बैठा।
दर्शक हँसी से लोटपोट हुए जा रहे थे। संगीतकार महोदय कभी उन दोनों लड़ते कलाकरों की ओर हाथ नचाते, कभी दर्शकों की ओर।
तभी तेज़ी से राकेश मंच पर पहुँच गया। सब चुप हो गए, सकपका गए। राकेश पहुँचते ही एक कुर्सी पर बैठते हुए बोला - “आज मुझे अस्पताल में हाथ पर पट्टी बँधवाने में देर हो गई, तो तुमने इस तरह ‘रिहर्सल’ की है! ज़ोर-ज़ोर से लड़ने लगे। अभिनय का दिन बिलकुल पास आ गया है और हमारी तैयारी का यह हाल है।”
चित्रकार महोदय ने इस समय अक्लमंदो दिखाई बोले, “हम क्या करें, डायरेक्टर साहब? पहले इसी ने गलती की।”
राकेश बात काटकर बोला, “अरे तो मैंने कह नहीं दिया था कि रिहर्सल में भी यह मानकर चलो कि दर्शक सामने ही बैठे हैं। अगर गलती हो गई थी, तो वहीं से दुबारा रिहर्सल शुरू कर देते। यह क्या कि लड़ने लगे। सब गड़बड़ करते हो।”
बात राकेश ने बहुत सँभाल ली थी। पर्दे की आड़ में खड़े अन्य साथी मन ही मन राकेश की
तुरतबुद्धि की प्रशंसा कर रहे थे। दर्शक सब शांत थे, भौचक्के थे। वे सोच रहे थे यह क्या हो गया! वे तो समझ रहे थे कि नाटक बिगड़ गया, मगर यहाँ तो नाटक में ही नाटक था। उसकी रिहर्सल ही नाटक था। मानो इस नाटक में नाटक की तैयारी की कठिनाइयों और कमज़ोरियों को ही दिखाया गया था!
राकेश कह रहा था, “देखिए, हमारे नाटक का नाम है “बड़ा कलाकार” और बड़ा कलाकार वह है, जो दूसरे की त्रुटियों को नहीं अपनी त्रुटियों को देखे और सुधारे। आइए, अब हम फिर से “रिहर्सल’ शुरू करते हैं।”
तभी राकेश के इशारे पर पर्दा गिर गया। दर्शक नाटक की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए अपने घर चले गए।
-मंगल सक्सेना
शब्दार्थ
निर्देशन | - संवाद बोलने और अभिनय | अक्लमंदी | - होशियारी, बुद्धिमानी |
---|---|---|---|
आदि का तरीका बताना | दाँत पीसना | - गुस्सा करना | |
प्रदर्शन | - दिखलाना | पोतना | - रंगना |
हिदायत | - सावधानी बरतने हेतु निर्देश | मुँह सँभाल | - सोच-समझकर बोलना |
बजाय | - अलावा | कर बोलना | |
पार्ट | - भूमिका | इज़्ज़त मिट्टी | - इज़्ज़त बरबाद होना |
आड़ | - ओट | में मिलना | |
सहसा | - अचानक | तरकीब | - उपाय |
नाहक | - बिना मतलब का | तू-तू, मैं-मैं होना - कहासुनी होना | |
फुसफुसाकर | - धीरे से बोलना | भूरि-भूरि | - बेहद, बहुत ज़्यादा |
सूझ | - समझ |
1. पाठ से
(क) बच्चों ने मंच की व्यवस्था किस प्रकार की?
(ख) पर्दे की आड़ में खड़े अन्य साथी मन-ही-मन राकेश की तुरतबुद्धि की प्रशंसा क्यों कर रहे थे?
(ग) नाटक के लिए रिहर्सल की ज़रूरत क्यों होती है?
2. नाटक की बात
“जब नाटक में अभिनय करने वाले कलाकार भी नए
हों, मंच पर आकर डर जाते हों, घबरा जाते हों और कुछ-कुछ बुद्ध भी हों, तब तो अधूरी तैयारी से खेलना ही नहीं चाहिए।"(क) ऊपर के वाक्य में नाटक से जुड़े कई शब्द आए हैं; जैसे-अभिनय, कलाकार और मंच आदि। तुम पूरी कहानी को पढ़कर ऐसे ही और शब्दों की सूची बनाओ।
तुम इस सूची की तालिका इस प्रकार बना सकते हो-
व्यक्तियों या वस्तुओं के नाम | काम |
---|---|
कलाकार, मंच | अभिनय |
3. शायर और शायरी
“सोहन बना था शायर।”
तुम किसी गज़ल को किसी पुस्तक में पढ़ सकते हो या किसी व्यक्ति द्वारा गाते हुए सुन सकते हो। इसमें से तुम्हें जो भी पसंद हो उसे इकट्ठा करो। उसे तुम समुचित अवसर पर आवश्यकतानुसार गा भी सकते हो।
4. तुम्हारे संवाद
“श्याम घबरा गया। वह सहसा चुप हो गया। उसके चुप होने से चित्रकार और शायर महोदय भी चुप हो गए। होना यह चाहिए था कि दोनों कोई बात मन की ही बनाकर बात आगे बढ़ा देते।”
अगर तुम श्याम की जगह पर होते, तो अपने मन से कौन से संवाद जोड़ते। लिखो।
5. सोचो, ऐसा क्यों?
नीचे लिखे वाक्य पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दो।
“राकेश को गुस्सा भी आ रहा था और रोना भी।”
(क) तुम्हरे विचार से राकेश को गुस्सा और रोना क्यों आ रहा होगा?
“राकेश मंच पर पहुँच गया। सब चुप हो गए, सकपका गए।”
(ख) तुम्हारे विचार से राकेश जब मंच पर पहुँचा, बाकी सब कलाकार क्यों चुप हो गए होंगे?
“दर्शक सब शांत थे, भौंचक्के थे।”
(ग) दर्शक भौंचक्के क्यों हो गए थे?
“मैंने कहा था न कि रिहर्सल में भी यह मानकर चलो कि दर्शक सामने ही बैठे हैं।”
(घ) राकेश ने ऐसा क्यों कहा होगा?
6. चलो अभिनय करें
कहानी में से चुनकर कुछ संवाद नीचे दिए गए हैं। उन संवादों को अभिनय के साथ बोलकर दिखाओ।
(क) चित्रकार महोदय हाथ में कूची पकड़े-आँखें नचा-नचाकर, मटक-मटककर बोल रहे थे, “अरे चमगादड़, तुझे क्या खाक शायरी करना आता है। ज़बरदस्ती ही तुझेे यह पार्ट दे दिया। तूने सारा गड़बड़ कर दिया।”
(ख) मोहन बोला, “मेरा तो दिल बहुत ज़ोरों से
धड़क रहा है।"(ग) राकेश पहुँचते ही एक कुर्सी पर बैठते हुए बोला, “आज मुझे अस्पताल में हाथ पर पट्टी बँधवाने में देर हो गई, तो तुमने इस तरह ‘रिहर्सल’ की है। ज़ोर-ज़ोर से लड़ने लगे।”
(घ) चित्रकार महोदय ने हाथ उठाकर कहा, “देख, मुँह सँभालकर बोल।”
7. शब्दों का फेर
“जब संगीत की स्वर लहरी गूँजती है तो पशु-पक्षी तक मुग्ध हो जाते हैं, शायर साहब! आप क्या समझते हैं संगीत को?”
इस संवाद को पढ़ो और बाताओ कि-
(क) कहानी में इसके बदले किसने, क्यों और क्या बोला? तुम उसको लिखकर बताओ।
(ख) कहानी में शायर के बदले गाजर कहने से क्या हुआ? तुम भी अगर किसी शब्द के बदले किसी अन्य शब्द का प्रयोग कर दो तो क्या होगा?
8. तुम्हारा शीर्षक
इस कहानी का शीर्षक ‘नाटक में नाटक’ है। कहानी में जो नाटक है तुम उसका शीर्षक बताओ।
9. समस्या और समाधान
कहानी में चित्रकार बना मोहन, शायर बना सोहन और संगीतकार बना श्याम अपनी-अपनी कला को महान बताने के साथ एक-दूसरे को छोटा-बड़ा बताने वाले संवादों को बोलकर झगड़े की समस्या को बढ़ावा देते दिख रहे हैं। तुम उन संवादों को गौर से पढ़ो और उसे इस तरह बदलकर दिखाओ कि आपसी झगड़े की समस्या का समाधान हो जाए। चलो शुरुआत हम कर देते हैं; जैसे-‘चित्रकार कहता है उसकी कला महान’ के बदले अगर चित्रकार कहे कि ‘हम सबकी कला महान’ तो झगड़े की शायद शुरुआत ही न हो। अब तुम यह बताओ कि-
(क) संगीतकार को क्या कहना चाहिए?
(ख) शायर को क्या कहना चाहिए?
(ग) तुम यह भी बताओ कि इन सभी कलाकारों को तुम्हारे अनुसार वह संवाद क्यों कहना चाहिए?
10. वाक्यों की बात
नीचे दिए गए वाक्यों के अंत में उचित विराम चिह्न लगाओ-
(क) शायर साहब बोले उधर जाकर सुन ले न
(ख) सभी लोग हँसने लगे
(ग) तुम नाटक में कौन-सा पार्ट कर रहे हो
(घ) मोहन बोला अरे क्या हुआ तुम तो अपना संवाद भूल गए