अध्याय 13 अपशिष्ट जल की कहानी

हम सभी अपने घरों में जल का उपयोग करते हैं और उसे गंदा या दूषित करते हैं।

दूषित! क्या आपको आश्चर्य हुआ?

झाग से भरपूर, तेल मिश्रित, काले, भूरे रंग का जल जो सिंक, शौचालय, लॉन्ड्री आदि से नालियों में जाता है, वह अपशिष्ट जल कहलाता है। इस प्रकार के कार्यों में प्रयुक्त जल को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए। हमें ऐसे जल से दूषित पदार्थों को हटाकर उसे स्वच्छ बना लेना चाहिए। क्या आपने कभी सोचा है कि अपशिष्ट जल कहाँ जाता है और इसका क्या होता है?

13.1 जल, हमारी जीवनरेखा

स्वच्छ जल मानवों की मूलभूत आवश्यकता है। आइए, हम स्वच्छ जल के विभिन्न उपयोगों पर विचार करते हैं।

क्रियाकलाप (13.1)

वृत्ताकार खाली स्थानों में स्वच्छ जल के उपयोग लिखिए (चित्र 13.1)। (हमने स्वच्छ जल के उपयोग का एक उदाहरण दिया है, आप इसमें और भी उपयोग जोड़ सकते हैं।)

चित्र 13.1 स्वच्छ जल के उपयोग

दुर्भाग्य से उपयोग के लिए उपयुक्त स्वच्छ जल, सभी को उपलब्ध नहीं है। एक रिपोर्ट के अनुसार एक अरब से अधिक व्यक्तियों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है। इसके कारण विश्व की जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग जल संबंधित रोगों से पीड़ित रहता है और मृत्यु का ग्रास हो जाता है। संभवतः आपको पता होगा कि कई क्षेत्रों में लोगों यहाँ तक कि बच्चों को स्वच्छ जल लाने के लिए कई किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है। क्या यह मानव की गरिमा के लिए गंभीर समस्या नहीं है?

आपको जनसंख्या वृद्धि, प्रदूषण, औद्योगिक विकास, कुप्रबंधन और अन्य कारकों के कारण अलवण (ताजे) जल की आपूर्ति में बढ़ती कमी के बारे में पता होगा। स्थिति की गंभीरता को समझते हुए, विश्व जल दिवस, 22 मार्च 2005 को संयुक्त राष्ट्र की जनरल एसेंबली ने 2005-2015 की अवधि को जीवन के लिए जल पर कार्य के लिए अंतर्राष्ट्रीय दशक के रूप में घोषित किया है। इस दशक में किए जाने वाले सभी प्रयासों का उद्देश्य उन व्यक्तियों की संख्या को घटाकर आधा करना है, जिन्हें सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है। ऐसा देखने में आता है कि इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए काफी प्रयास किए गए हैं, लेकिन अभी बहुत कुछ बाकी है।

जल की सफ़ाई करने के प्रक्रम में जल के जल स्रोतों में प्रवेश अथवा उसके पुन: उपयोग से पहले उसमें से प्रदूषकों को अलग करना सम्मिलित है। अपशिष्ट जल के उपचार का यह प्रक्रम सामान्य रूप से ‘वाहित मल उपचार’ कहलाता है। यह अनेक चरणों में संपन्न होता है।

13.2 वाहित मल क्या है?

वाहित मल घरों, उद्योगों, अस्पतालों, कार्यालयों और अन्य उपयोगों के बाद प्रवाहित किए जाने वाला अपशिष्ट जल होता है। इसमें वर्षाजल भी सम्मिलित है, जो तेज वर्षा के समय गलियों में बहता है। सड़कों और छतों से बहकर आने वाला वर्षाजल अपने साथ हानिकारक पदार्थों को ले आता है। वाहित मल द्रवरूपी अपशिष्ट होता है। इसमें अधिकांश जल होता है, जिसमें घुले हुए और निलंबित अपद्रव्य होते हैं।

क्रियाकलाप (13.2)

अपने घर के आस-पास, विद्यालय अथवा सड़क पर किसी खुली नाली को देखिए और उसमें बहने वाले (वाहित) जल का निरीक्षण कीजिए।

वाहित जल के रंग, गंध और किसी अन्य अवलोकन को नोट कीजिए। अपने मित्रों और शिक्षक/शिक्षिका से इस पर चर्चा कीजिए और इस प्रकार प्राप्त जानकारी को सारणी 13.1 में सारणीबद्ध कीजिए।

अब हम जानते हैं कि वाहित मल एक जटिल मिश्रण होता है, जिसमें निलंबित ठोस, कार्बनिक और आकार्बनिक अशुद्धियाँ, पोषक तत्त्व, मृतजीवी और रोग वाहक जीवाणु और अन्य सूक्ष्मजीव होते हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं।

इन अशुद्धियों के कुछ सामान्य उदाहरण इस प्रकार हैं। कार्बनिक अशुद्धियाँ

कार्बनिक अशुद्धियाँ मानव मल, जैविकअपशिष्ट पदार्थ, तेल,यूरिया (मूत्र) पीड़कनाशी, शाकनाशी, फल और सब्जी का कचरा, आदि
अकार्बनिक अशुद्धियाँ नाइ्रेट, फॉस्फेट, धातुएँ
पोषक तत्त्व फॉस्फोरस और नाइट्रोजन युक्त पदार्थ
जीवाणु हैजा और टायफॉइड आदि रोग उत्पन्न करने वाले क्रमशः विब्रियो कोलरा एवं साल्मानेला
अन्य सूक्ष्मजीव पैराटाइफी पेचिश आदि रोग उत्पन्न करने वाले प्रोटोजोआ

13.3 जल शोधन एक घटनापूर्ण यात्रा

घरों तथा सार्वजनिक भवनों को स्वच्छ जल की आपूर्ति सामान्यतः पाइपों के एक जाल द्वारा की जाती है और पाइपों के एक अन्य जाल द्वारा उपयोग किए जा चुके जल को ले जाया जाता है। कल्पना कीजिए कि यदि हम भूमि के अंदर देख सकते, तो इसमें हमें बड़े और छोटे पाइपों का एक जाल दिखाई देगा, जिसे

सारणी 13.1 संदूषक सर्वेक्षण

वाहित मल का प्रकार उत्पत्ति स्थल संदूषक पदार्थ कोई अन्य टिप्पणी
कूड़ा करकट/मलिन जल रसोई
दुर्गंधयुक्त अपशिष्ट शौचालय
व्यावसायिक अपशिष्ट औद्योगिक और
व्यावसायिक संस्थान

सीवर कहते हैं, जो मिलकर मल विसर्जन की व्यवस्था करता है। यह एक परिवहन तंग्र की तरह है, जो वाहित मल को उसके उद्गम स्थल से उसके निबटान के स्थान अर्थात् उपचार संयंग्र तक ले जाता है।

मल व्यवस्था में मेनहोल सामान्यतया प्रति $50 \mathrm{~m}$ से $60 \mathrm{~m}$ की दूरी पर, दो अथवा अधिक सीवरों के संधिस्थल पर अथवा उन स्थानों पर स्थित होते हैं, जहाँ दिशा में परिवर्तन होता है।

क्रियाकलाप (13.3)

अपने घर, विद्यालय अथवा किसी सार्वजनिक भवन से वाहित मल के पथ का अध्ययन करें। निम्नलिखित कार्य करें-

(i) वाहित मल के पथ का रेखाचित्र बनाएँ।
(ii) गली, सड़क अथवा परिसर में घूमकर उनका सर्वेक्षण करें और मेनहोलों की संख्या मालूम करें।
(iii) किसी खुले नाले के इर्दीगर्द और उसके जल में कौन-से सजीव जीव पनप रहे हैं। उनकी सूची तैयार करो।

यदि आपके घर के आस-पास मल-जल निकास व्यवस्था तंत्र न हो, तो यह मालूम कीजिए कि वाहित मल का निबटान (प्रबंधन) कैसे होता है?

प्रदूषित जल का उपचार

क्रियाकलाप 13.4 से आपको उन प्रक्रमों को समझने में आसानी होगी, जो वाहित जल उपचार संयंग्र में संपादित होते हैं।

क्रियाकलाप (13.4)

इस क्रियाकलाप को करने के लिए अपने सहपाठियों को समूहों में विभाजित कर लें। प्रत्येक चरण में प्रेक्षणों को रिकॉर्ड कीजिए।

  • काँच के किसी बड़े जार को $3 / 4$ भाग तक पानी से भर लीजिए। इसमें कुछ घास के तिनके अथवा संतरे के छिलके जैसे कार्बनिक अपशिष्ट, थोड़ी मात्रा में अपमार्जक और स्याही अथवा किसी रंग की कुछ बूँदें मिला दें।
  • जार में ढक्कन लगाकर उसे अच्छी तरह हिलाएँ और मिश्रण को दो दिन तक धूप में रखा रहने दें।
  • दो दिन बाद मिश्रण को फिर से हिलाएँ और इसकी अल्प मात्रा नमूने के तौर पर किसी परखनली में डालें। इस परखनली में उपचार से पहले नमूना 1 की चिट लगाकर इसे नामांकित करें। मिश्रण की गंध कैसी है?
  • काँच के जार में शेष बचे मिश्रण में जलजीवशाला (एक्वेरियम) के वातित्र से कई घंटों तक वायु के बुलबुले गुजारें। वातित्र को रातभर जुड़ा रहने दीजिए, ताकि मिश्रण का कुछ घंटों तक वातन हो सके। यदि आपके पास वातित्र नहीं है, तो यांत्रिक विलोड़क अथवा मिक्सर का उपयोग करिए। आपको इसे अनेक बार विलोडित करना पड़ सकता है।
  • अगले दिन जब वातन प्रक्रम कुछ घंटों तक हो जाए, तो किसी अन्य परखनली में दूसरा नमूना डाल दीजिए। इसे वातन के बाद; नमूना 2 के रूप में नामांकित कीजिए।
  • फ़िल्टर पत्र के एक टुकड़े को मोड़कर शंक्वाकार बना लीजिए। अब फिल्टर पत्र को स्वच्छ पानी से गीला कर लीजिए और फिर शंकु को कीप में लगा दीजिए। कीप को किसी स्टैन्ड पर लगाइए (जैसा कि आपने कक्षा 6 में पढ़ा था)।
  • कीप में पहले बालू, उसके ऊपर महीन बजरी और अंत में मध्यम साइज की बजरी की परतें बिछाइए (चित्र 13.2) (वास्तविक फ़िल्टर संयंत्र फ़िल्टर पत्र का उपयोग नहीं करते हैं, लेकिन बालू के फ़िल्टर की मोटाई कई मीटर होती है)।
  • बचे हुए वातित द्रव को फ़िल्टर करके बीकरों में भर दीजिए। द्रव को फ़िल्टर से बाहर गिरने मत दीजिए। यदि फ़िल्टर किया हुआ द्रव स्वच्छ न हो, तो इसे तब तक फ़िल्टर करते रहिए, जब तक कि आपको स्वच्छ जल नहीं मिल जाता है।

चित्र 13.2 वातित द्रव को फ़िल्टर करने का प्रक्रम

  • फ़िल्टरित जल के नमूने को तीसरी परखनली में डालिए और उसे फ़िल्टरित जल; नमूना 3 के रूप में नामांकित कीजिए।
  • चौथी परपखनली में फ़िल्टरित जल का एक अन्य नमूना लीजिए। इसमें क्लोरीन की गोली का एक टुकड़ा मिलाइए। इसे अच्छी तरह से मिलाइए, जब तक जल स्वच्छ न हो जाए। परखनली को क्लोरीनीकृत; नमूना 4 के रूप में नामांकित कीजिए।
  • सभी परखनलियों के नमूनों का ध्यानपूर्वक अवलोकन कीजिए। इन्हें चखिए मत! केवल उनकी गंध सूँघिए। अब निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
  • वातन के बाद द्रव के रंग-रूप में आपको क्या परिवर्तन दिखाई देते हैं?
  • क्या वातन से द्रव की गंध बदल जाती है?
  • बालू के फ़िल्टर द्वारा किस प्रकार की अशुद्धियाँ दूर हो गई थी?
  • क्या क्लोरीन से दूषित जल का रंग लुप्त हो गया था?
  • क्या क्लोरीन की अपनी कोई गंध होती है? क्या यह अपशिष्ट जल की गंध से अधिक अरुचिकर होती है।

13.4 अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र

अपशिष्ट जल के उपचार में भौतिक, रासायनिक और जैविक प्रक्रम सम्मिलित होते हैं, जो जल को संदूषित करने वाले भौतिक, रासायनिक, और जैविक द्रव्यों को पृथक् करने में सहायता करते हैं।

1. सर्वप्रथम अपशिष्ट जल को ऊर्ध्वाधर लगी छड़ों से बने शलाका छन्ने (बार स्क्रीन) से गुजारा जाता है। इससे अपशिष्ट जल में उपस्थित कपड़ों के टुकडे, डंडियाँ, डिब्बे, प्लास्टिक के पैकेट, नैपकिन आदि जैसे बड़े साइज़ के संदूषक अलग हो जाते हैं (चित्र 13.3)।

चित्र 13.3 शलाका छन्ने

2. अब वाहित अपशिष्ट जल को ग्रिट और बालू अलग करने की टंकी में ले जाया जाता है। इस टंकी में अपशिष्ट जल को कम प्रवाह से छोडा जाता है, जिससे उसमें उपस्थित बालू, ग्रिट और कंकड़-पत्थर उसकी पेंदी में बैठ जाते हैं (चित्र 13.4)।

चित्र 13.4 ग्रिट और बालू अलग करने की टंकी

3. फिर जल को एक ऐसी बड़ी टंकी में ले जाया जाता है, जिसका पेंदा मध्य भाग की ओर ढलान वाला होता है। जल को इस टंकी में कई घंटों तक रखा जाता है, जिससे मल जैसे ठोस उस की तली के मध्य भाग में बैठ जाते हैं। इन अशुद्धियों को खुरच कर बाहर निकाल दिया जाता है। यह आपंक (स्लज) होता है। अपशिष्ट जल में तैरने वाले तेल और ग्रीज जैसी अशुद्धियों को हटाने के लिए अपमथित्र (स्किमर) का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार साफ़ किया गया, जल निर्मलीकृत जल कहलाता है (चित्र 13.5)।

चित्र 13.5 जल अपमथित्र

आपंक को एक पृथक् टंकी में स्थानांतरित किया जाता है, जहाँ यह अवायवीय जीवाणुओं द्वारा अपघटित हो जाता है। इस प्रक्रम में उत्पन्न होने वाली बायोगैस (जैव गैस) का उपयोग ईंधन के रूप में अथवा विद्युत उत्पादन के लिए किया जा सकता है।

4. निर्मलीकृत जल में पंप द्वारा वायु को गुजारा जाता है, जिससे उसमें वायवीय जीवाणुओं की वृद्धि होती है। ये जीवाणु निर्मलीकृत जल में अब भी बचे हुए मानव अपशिष्ट पदार्थों, खाद्य अपशिष्ट, साबुन और अन्य अवांछित पदार्थों का उपभोग कर लेते हैं (चित्र 13.6)।

चित्र 13.6 वातित्र

कई घंटों के पश्चात् जल में निलंबित सूक्ष्मजीव टंकी की पेंदी में सक्रियित आपंक के रूप में बैठ जाते हैं। अब शीर्ष भाग से जल को निकाल दिया जाता है। सक्रियित आपंक लगभग $97 %$ जल है। जल को बालू बिछाकर बनाए शुष्कन तलों अथवा मशीनों द्वारा हटा दिया जाता है। शुष्क आपंक का उपयोग खाद के रूप में किया जाता है, जिससे कार्बनिक पदार्थ और पोषक तत्त्व पुनः मृदा में वापस चले जाते हैं।

उपचारित जल में अल्प मात्रा में कार्बनिक पदार्थ और निलंबित तत्त्व होते हैं। इसे समुद्र, नदी अथवा भूमि में विसर्जित कर दिया जाता है। प्राकृतिक प्रक्रम इसे और अधिक स्वच्छ कर देते हैं। कभी-कभी जल को वितरण तंत्र में निर्मुक्त करने से पहले उसे क्लोरीन अथवा ओज़ोन जैसे रसायनों से रोगाणु रहित कर लेना आवश्यक होता है।

नदी में जल प्राकृतिक रूप से उन्हीं प्रक्रमों द्वारा स्वच्छ हो जाता है, जो वाहित जल उपचार संयंत्र में अपनाए जाने वाले प्रक्रमों के जैसी ही होती हैं।

क्या आप जानते है

यह सुझाव दिया गया है कि हमें वाहित मल संयंत्रों के चारों ओर यूकेलिप्टस के वृक्ष लगाने चाहिए। ये वृक्ष समस्त अतिरिक्त अपशिष्ट जल को अवशोषित कर लेते हैं और वायुमंडल में शुद्ध जलवाष्प को निर्मुक्त करते हैं।

जागरूक नागरिक बनें

अपशिष्ट पदार्थों की उत्पत्ति, मानव के प्राकृतिक एवं सामाजिक क्रियाकलापों का परिणाम है। परंतु हम अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा तथा उनकी विविधता को सीमित अवश्य कर सकते हैं। हम प्रायः कूड़े-कचरे से उठने वाली दुर्गन्ध से परेशानी का अनुभव करते हैं। खुली नालियों का दृश्य घृणित लगता है। वर्षा काल में स्थिति और भी भयावह हो जाती है, जब नालियाँ उमड़ने लगती हैं और उनका कचरा सड़कों पर फैल जाता है। हमें कीचड़ से भरी सड़कों से अपना मार्ग ढूँढना पड़ता है। ये परिस्थितियाँ अत्यन्त अस्वास्थ्यकर एवं रोगकारक हो सकती हैं। सड़कों पर बिखरे कचरे या अपशिष्ट पदार्थों पर रोगवाहक मच्छर, मक्खियाँ तथा अन्य कीट पनपने लगते हैं।

एक जागरूक नागरिक के नाते आपका कर्त्तव्य है कि आप नगरपालिका तथा ग्राम पंचायत को इन विषम परिस्थितियों के बारे में आगाह करें तथा उनसे यथोचित् कदम उठाने के लिए आग्रह करें। यदि किसी घर से निकलने वाला वाहित जल पास-पड़ोस में गंदगी फैला रहा हो, तो आप उनसे अन्य नागरिकों के स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील होने का निवेदन करें।

अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र का बोझ मत बढ़ाइए। पहेली जानना चाहती है कि यह कैसे संभव होगा?

13.5 अच्छी गृह व्यवस्था बनाए रखने की प्रक्रिया

अपशिष्ट पदार्थों और प्रदूषकों को उनके स्रोत पर ही कम करने अथवा हटा देने की एक विधि इस बात के प्रति सचेत रहना है कि आप नालियों में किस प्रकार के पदार्थ बहा रहे हैं।

  • खाना पकाने के तेल और वसाओं को नाली में नहीं बहाना चाहिए। ये पाइपों में कठोर पदार्थों की परत जमाकर उन्हें अवरुद्ध कर सकते हैं। खुली नाली में वसा, मृदा के रंध्रों को बंद कर देती है, जिससे उसकी जल को फिल्टर करने की प्रभाविता कम हो जाती है। तेल और वसाओं को कूड़ेदान में ही फेंकें।
  • पेंट, विलायक, कीटनाशक, मोटर तेल, औषधियाँ आदि रसायन उन सूक्ष्मजीवों को मार सकते हैं, जो जल के शुद्धिकरण में सहायक होते हैं। इसलिए इन्हें नाली में मत बहाइए।
  • प्रयुक्त चाय की पत्ती, बचे हुए ठोस खाद्य पदार्थ, मृदु खिलौनों, रुई, सैनिटरी टॉवेल आदि को भी कूड़ेदान में ही फेंका जाना चाहिए (चित्र 13.7)। ये नालियों को अवरुद्ध कर देते हैं। ऐसे अपशिष्ट ऑक्सीजन का मुक्त प्रवाह नहीं होने देते हैं, जिससे निम्नीकरण का प्रक्रम बाधित होता है।

13.6 स्वच्छता और रोग

स्वच्छता की कमी और संदूषित पेयजल अनेक रोगों का कारण बनते हैं।

आइए, हम अपने देश की स्थिति पर चर्चा करते हैं। हमारी जनसंख्या का एक बड़ा भाग आज भी मल व्यवन व्यवस्था की सुविधाओं से वंचित है। ऐसे व्यक्ति मल विसर्जन के लिए कहाँ जाते हैं? हमारी जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग खुले स्थानों, नदी के किनारों, रेल की पटरियों, खेतों और अनेक बार सीधे जल स्रोतों में ही मलत्याग करते हैं। अनुपचारित मानव

चित्र 13.7 हर कचरे को सिंक में मत फेंकिए

मल, स्वास्थ्य संकट का एक कारक है। इससे जल और मृदा का प्रदूषण हो सकता है। आप जानते हैं कि सतह पर उपलब्ध जल और भौमजल दोनों मानव मल से प्रदूषित हो जाते हैं। ‘भौमजल’ कुँओं, ट्यूबवेल (नलकूपों), झरनों और अनेक नदियों के लिए जल का स्रोत है। अतः अनुपचारित मानव मल, जल जनित रोगों का सबसे सुगम पथ बन जाता है। इनमें हैजा, टायफॉइड, पोलियो, मेनिन्जाइटिस, हेपैटाइटिस और पेचिश जैसे रोग सम्मिलित हैं।

13.7 वाहित मल निबटान की वैकल्पिक व्यवस्था

स्वच्छता की स्थिति सुधारने के लिए, कम लागत के यथास्थान वाहित मल निबटान तंत्रों को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके कुछ उदाहरण सैप्टिक टैंक, रासायनिक शौचालय, कंपोस्टिंग पिट आदि का उपयोग है। सैप्टिक टैंक उन स्थानों के लिए उपयुक्त हैं, जहाँ मल वहन की व्यवस्था नहीं है, जैसे अस्पताल, अलग-थलग बने भवन अथवा 4 से 5 घरों के समूह।

बूझो जानना चाहता है कि हवाई जहाज में वाहित मल का निबटान कैसे होता है?

कुछ संगठन, मानव अपशिष्ट के स्वच्छतापूर्वक निपटान की तकनीकी सुविधाएँ प्रदान करते हैं। इन शौचालयों में अपमार्जन की आवश्यकता नहीं होती है। शौचालय से मल बंद नालियों से होता हुआ बायोगैस संयंत्र में चला जाता है। उत्पन्न होने वाली बायोगैस का उपयोग ऊर्जा के स्रोत के रूप में किया जाता है।

13.8 सार्वजनिक स्थलों पर स्वच्छता

हमारे देश में समय-समय पर मेलों का आयोजन होता रहता है। बड़ी संख्या में लोग इनमें भाग लेते हैं। इसी प्रकार रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, एयरपोर्ट, अस्पताल

कृमि-प्रसंस्करण शौचालय

भारत में ऐसे शौचालय की रूपरेखा का परीक्षण किया गया है, जिसमें मानव मल को केंचुओं द्वारा उपचारित किया जाता है। यह तकनीक मानव मल के सुरक्षित प्रसंस्करण के लिए आदर्श सिद्ध हो सकती है, क्योंकि इसके उपयोग में जल की बहुत कम मात्रा की आवश्यकता होती है। शौचालय का संचालन बहुत सरल और स्वच्छ है। मानव मल पूर्णतः कृमि केकों में परिवर्तित हो जाता है- जो मृदा के लिए अति समृद्ध पोषक है।

वर्ष 2016 में भारत सरकार ने स्वच्छ भारत के नाम से एक नई मुहिम शुरू की है जिसके अन्तर्गत कई अभियान शुरू किए गए जैसे कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए शौचालय सुनिश्चित करना तथा मल अपशिष्ट का उपयुक्त निबटान इत्यादि।

आदि बहुत भीड़ वाले सार्वजनिक स्थल होते हैं। प्रतिदिन हज़ारों लोग यहाँ आते हैं। यहाँ विशाल मात्रा में अपशिष्ट पदार्थ जनित होते हैं। इनका उचित निबटान आवश्यक होता है, अन्यथा महामारी फैल सकती है।

सरकार ने स्वच्छता के कुछ निश्चित मानक निर्धारित किए हैं, लेकिन दुर्भाग्य से, इनको सख्ती से लागू नहीं किया जाता है।

तथापि, हम सभी सार्वजनिक स्थलों पर स्वच्छता बनाए रखने में योगदान कर सकते हैं। हमें यहाँ-वहाँ कूड़ा-करकट नहीं फेंकना चाहिए। यदि किसी स्थान पर कूड़ेदान न हो तो, हमें अपना कचरा घर ले आना चाहिए और कूड़ेदान में ही डालना चाहिए।

निष्कर्ष

अपने पर्यावरण को स्वच्छ और स्वस्थ रखने में हम सभी को भूमिका निभानी है। जल स्रोतों को स्वस्थ अवस्था में बनाए रखने के लिए आपको अपने उत्तरदायित्व को समझना चाहिए। हमें अपने जीने के तौर-तरीकों में अच्छी स्वच्छता की आदतों को अपनाना चाहिए।

परिवर्तन के दूत के रूप में आपकी वैयक्तिक पहल से ही बहुत अन्तर आ जाएगा। दूसरों को अपने दृढ़ संकल्प, विचारों और आशावादिता से प्रभावित करें। यदि सभी व्यक्ति एक साथ मिलकर कार्य करें, तो बहुत कुछ हो सकता है। सामूहिक कार्य में अत्यधिक शक्ति होती है।

महात्मा गाँधी ने कहा था

“मानवीय और पथ प्रदर्शक कार्य प्रारंभ करने के लिए किसी को भी किसी दूसरे का मुँह नहीं देखना चाहिए।”

प्रमुख शब्द

अपशिष्ट जल सीवर वातन
अवायवीय जीवाणु जैवनिम्नीकरणीय स्वच्छता
वायवीय जीवाणु अपशिष्ट पदार्थ बायोगैस
आपंक वाहित मल जल शोधन

आपने क्या सीखा

  • प्रयुक्त जल अपशिष्ट जल कहलाता है, जिसका पुनः उपयोग किया जा सकता है।

  • घरों, उद्योगों, कृषि कार्य, खेतों और अन्य मानव क्रियाकलापों में उपयोग किया जल अपशिष्ट जल को जनित करता है। यह वाहित मल कहलाता है।

  • वाहित मल द्रवरूपी अपशिष्ट पदार्थ होता है, जो जल और मृदा का प्रदूषण करता है।

  • अपशिष्ट जल को वाहित मल उपचार संयंत्र में उपचारित किया जाता है।

  • उपचार संयंत्र अपशिष्ट जल को किसी निश्चित स्तर तक प्रदूषकों से मुक्त कर देते हैं, ताकि प्राकृतिक प्रक्रमों द्वारा उसमें शेष रह गए प्रदूषकों का निपटान हो सके।

  • जहाँ भूमिगत मल व्यवस्था तंत्र और कचरा निबटान तंत्र उपलब्ध नहीं होते हैं, वहाँ कम लागत के यथास्थान स्वच्छता तंत्र को अपनाया जा सकता है।

  • अपशिष्ट जल उपचार के सह-उत्पाद, आपंक और बायोगैस हैं।

  • खुली (मुक्त) नाली व्यवस्था मक्खी, मच्छर और अन्य ऐसे जीवों के लिए प्रजनन स्थल प्रदान करती है, जो रोग उत्पन्न करते हैं।

  • हमें खुले में मलत्याग नहीं करना चाहिए। कम लागत विधियों को अपनाकर मल का सुरक्षित निबटान संभव है।

अभ्यास

1. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

(क) जल को स्वच्छ करना ………………. को दूर करने का प्रक्रम है।
(ख) घरों द्वारा निर्मुक्त किए जाने वाला अपशिष्ट जल ………………. कहलाता है।
(ग) शुष्क ………………. का उपयोग खाद के रूप में किया जाता है।
(घ) नालियाँ ………………. और ………………. के द्वारा अवरुद्ध हो जाती है।

2. वाहित मल क्या है? अनुपचारित वाहित मल को नदियों अथवा समुद्र में विसर्जित करना हानिकारक क्यों है, समझाइए।

3. तेल और वसाओं को नाली में क्यों नहीं बहाना चाहिए? समझाइए।

4. अपशिष्ट जल से स्वच्छ जल प्राप्त करने के प्रक्रम में सम्मिलित चरणों का वर्णन करिए।

5. आपंक क्या है? समझाइए कि इसे कैसे उपचारित किया जाता है।

6. अनुपचारित मानव मल एक स्वास्थ्य संकट है। समझाइए।

7. जल को रोगाणुनाशित (रोगाणुमुक्त) करने के लिए उपयोग किए जाने वाले दो रसायनों के नाम बताइए।

8. अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र में शलाका छन्नों के कार्यों को समझाइए।

9. स्वच्छता और रोग के बीच संबंध को समझाइए।

10. स्वच्छता के संदर्भ में एक सक्रिय नागरिक के रूप में अपनी भूमिका को समझाइए।

11. प्रस्तुत वर्ग पहेली को दिए गए संकेतों की सहायता से हल कीजिए।

1 2
3
4 5 6
7
8 9

संकेत

बाएँ से दाएँ ऊपर से नीचे
2. वाहित मल उपचार संयंत्र से प्राप्त गैसीय उत्पाद 1. जल उपचार में रोगाणुनाशन के लिए प्रयुक्त एक रसायन
4. इस प्रक्रम में प्रदूषित जल से वायु को गुजारा जाता है। 3. वह सूक्ष्मजीव, जो ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में जैव पदार्थों का विघटन करते हैं।
7. वाहित मल ले जाने वाले पाइपों की व्यवस्था 5. संदूषित जल
8. उपयोग के बाद नालियों में बहता जल 6. वह स्थान, जहाँ वाहित मल से प्रदूषक पृथक् किए जाते हैं।
9. अनेक व्यक्ति इसका विसर्जन खुले स्थानों में करते हैं।

12. ओज़ोन के बारे में निम्नलिखित वक्तव्यों को ध्यानपूर्वक पढ़िए। |

(क) यह सजीव जीवों के श्वसन के लिए अनिवार्य है।
(ख) इसका उपयोग जल को रोगाणु रहित करने के लिए किया जाता है।
(ग) यह पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है।
(घ) वायु में इसका अनुपात लगभग $3 %$ है।

इनमें से कौन-से वक्तव्य सही है-

(i) (क), (ख) और (ग)
(ii) (ख) और (ग)
(iii) (क) और (ग)
(iv) सभी चार

विस्तारित अधिगम - क्रियाकलाप और परियोजना कार्य

1. प्रमुख शब्दों का उपयोग करते हुए अपनी एक वर्ग पहेली बनाइए।

2. तब और अब : अपने दादा-दादी और अड़ोस-पड़ोस के अन्य वृद्ध जनों से बात कीजिए। उनके समय में उपलब्ध वाहित मल निपटान तंत्रों तथा व्यवस्थाओं की जानकारी प्राप्त कीजिए। आप और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए दूसरे शहरों में रहने वाले अपने परिजनों और मित्रों को पत्र भी लिख सकते हैं। अपने द्वारा एकत्रित की गई जानकारी पर एक संक्षिप्त रिपोर्ट तैयार कीजिए।

3. किसी वाहित मल उपचार संयंत्र का भ्रमण कीजिए। यह भ्रमण किसी चिड़ियाघर, संग्रहालय अथवा उद्यान के भ्रमण जितना ही रोमांचकारी और ज्ञानवर्धक होगा। आपके मार्गदर्शन के लिए यहाँ कुछ सुझाव दिए गए हैं:

अपनी नोट पुस्तिका में रिकॉर्ड कीजिए

स्थान ………………………. दिनांक ………………… समय …………………. संयंत्र के अधिकारी का नाम ………………. मार्गदर्शक शिक्षक …………….

वाहित मल संयंत्र कहाँ स्थित है।

उपचार क्षमता

आरंभिक प्रक्रम के रूप में छानने का उद्देश्य।

वातन टंकी में वायु के बुलबुले कैसे बनाए जाते हैं?

उपचार के उपरांत जल कितना सुरक्षित होता है? इसका परीक्षण कैसे किया जाता है?

उपचार के उपरांत जल को कहाँ विसर्जित किया जाता है?

तेज वर्षा के दौरान संयंत्र का क्या होता है?

क्या बायोगैस का संयंत्र द्वारा ही उपभोग कर लिया जाता है अथवा अन्य उपभोक्ताओं को इसकी आपूर्ति की जाती है?

उपचारित आपंक का क्या होता है?

संयंत्र से आस-पास के घरों को सुरक्षित रखने के लिए क्या कोई विशेष प्रयास किए जाते हैं?

“पृथ्वी पर सबसे निर्धन से निर्धन व्यक्ति को भी स्वच्छ जल और स्वच्छता प्रदान करके, हम निर्धनता से प्रेरित कष्टों को कम कर सकते हैं और सभी बच्चों के लिए शिक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं’ यूनिसेफ (UNICEF)

एक प्राचीन अभियांच्रिकी उपलब्धि : सिंधु घाटी सभ्यता

हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक हैं। संभवतः विश्व का पहला शहरी स्वच्छता संयंत्र यहीं विकसित हुआ था। शहर में स्थित प्रत्येक घर अथवा घरों के समूह, कुँओं से जल प्राप्त करते थे। स्नान के लिए पृथक् कक्ष होता था और व्यर्थ जल बंद नालियों से बाहर निकालने का प्रबंध था, जो प्रमुख सड़कों और गलियों में बनी होती थी। ईंटों का बना सबसे पुराना शौचालय लगभग 4500 वर्ष पुराना है।



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