अध्याय 05 पापा खो गये

पात्र

बिजली का खंभा नाचनेवाली
पेड़ लड़की
लैटरबॉक्स आदमी
कौआ

सड़क। रात का समय। समुद्र के सामने फुटपाथ। वहीं पर एक बिजली का खंभा। एक पेड़। एक लैटरबॉक्स। दूसरी ओर धीमे प्रकाश में एक सिनेमा का पोस्टर। पोस्टर पर नाचने की भंगिमा में एक औरत की आकृति। समुद्र से सनसनाती हवा का बहाव। दूर कहीं कुत्तों के भौंकने की आवाज़।

खंभा : (जम्हाई रोकते हुए) राम राम राम! रात बहुत हो गई।

पेड़ : आजकल की रातें कैसी हैं! जल्दी बीतने में ही नहीं आतीं।

खंभा : दिन तो कैसे-न-कैसे हड़बड़ी में बीत जाता है।

पेड़ : लेकिन रात को बड़ी बोरियत होती है।

खंभा : तब भी बरसात की रातों से तो ये रातें कहीं अच्छी हैं, पेड़राजा! बरसात की रातों में तो रातभर भीगते रहो, बादलों से आनेवाले पानी की मार खाते रहो, तेज़ हवाओं में भी बल्ब को कसकर पकड़े बराबर एक टाँग पर खड़े रहो-बिलकुल अच्छा नहीं लगता। उस वक्त लगता है, इससे तो अच्छा था… न होता बिजली के खंभे का जन्म! बल्ब फेंक, तब दूर कहीं भाग जाने का जी होता है।

पेड़ : मुझ पर भी एक रात आसमान से गड़गड़ाती बिजली आकर पड़ी थी। अरे, बाप रे! वो बिजली थी या आफ़त! याद आते ही अब भी दिल धक-धक करने लगता है और बिजली जहाँ गिरी थी वहाँ खड्डा कितना गहरा पड़ गया था, खंभे महाराज! अब जब कभी बारिश होती है तो मुझे उस रात की याद हो आती है। अंग थरथर काँपने लगते हैं।

खंभा : मेरी तबीयत ही लोहे की है जो मैं बीमार नहीं पड़ता, वरना कोई भी इस तरह बारिश, ठंडी, धूप में खड़ा रहे, तो ज़रूर बीमार पड़ जाए। पड़ जाएगा या नहीं? कितने दिन बीत गए, कितनी रातें, लेकिन मैं बराबर इसी तरह खड़ा हूँ। (लंबी ठंडी साँस छोड़कर) छे! चुंगी की यह नौकरी भी कोई नौकरी है!

पेड़ : अपने पत्तों का कोट पहनकर मुझे सरदी, बारिश या धूप में उतनी तकलीफ़ नहीं होती, तो भी तुमसे बहुत पहले का खड़ा हूँ मैं यहाँ। यहीं मेरा जन्म हुआ-इसी जगह। तब सब कुछ कितना अलग था यहाँ। वहाँ के, वे सब ऊँचे-ऊँचे घर नहीं थे तब। यह सड़क भी नहीं थी। वह सिनेमा का बड़ा सा पोस्टर और उसमें नाचनेवाली औरत भी तब नहीं थी। सिर्फ़ सामने का यह समुद्र था। बहुत अकेलापन महसूस होता था। तुम्हें जब यहाँ लाकर खड़ा किया गया तो सोचा, चलो कोई साथी तो मिला-इतना ही सही। लेकिन वो भी कहाँ? तुम शुरू-शुरू में मुझसे बोलने को ही तैयार नहीं थे। मैंने बहुत बार कोशिश की, पर तुम्हारी अकड़ जहाँ थी वहीं कायम! बाद में मैंने भी सोच लिया, इसकी नाक इतनी ऊँची है तो रहने दो। मैंने भी कभी आवाज़ नहीं लगाई, हाँ! अपना भी स्वभाव ज़रा ऐसा ही है।

खंभा : और एक दिन जब आँधी-पानी में मैं बिलकुल तुम्हारे ऊपर ही आ पड़ा?

पेड़ : बाप रे! कैसा था वो आँधी-पानी का तूफ़ान! अबबऽब!

खंभा : तुम खड़े थे, इसीलिए मैं कुछ संभल गया, हाँ। तुमने मुझे ऊपर का ऊपर झेल लिया, वह अच्छा हुआ। चाहे तुम खुद काफ़ी ज़ख्मी हो गए। बाद में मेरा गरूर भी झड़ गया और अपनी दोस्ती हो गई।

पेड़ : हूँ! हवा आज भी बहुत है।

दोनों चुप। हवा की आवाज़। कुत्ते का भौंकना। पोस्टर पर बनी नाचनेवाली औरत टेढ़ी हो जाती है। उसके घुँघरू बजते हैं। वह फिर पहले की तरह स्थिर हो जाती है। लैटरबॉक्स किसी दोहे का एक चरण गुनगुनाता है और रुक जाता है।

कौआ : (पेड़ के पीछे से झाँककर) काँऽव। कौन है जो रात के वक्त इतनी मीठी आवाज़ें लगाकर मेरी नींद खराब करता है? ज़राभर चैन नहीं इन्हें।

लैटरबॉक्स : हूँ! मीठी आवाज़ में नहीं गाएँ तो क्या इस कौए जैसी कर्कश काँव-काँव करें? कहता है-ज़राभर भी चैन नहीं। (पेट में हाथ डालकर एक पत्र निकालता है। धीरे से जीभ को लगाकर खोलता है। उसमें से कागज़ निकालकर रोशनी में पढ़ने लगता है।) यह किसकी चिट्टी आकर पड़ी है? हैडमास्टर? ठीक। क्या कहता है? श्रीमान, श्रीयुत् गोविंद राव जी…ऊँऊँ…आपका लड़का परीक्षित पढ़ाई में काफ़ी कमज़ोर है। क्लास में उसका ध्यान पढ़ाई में बिलकुल नहीं रहता। इसकी बजाय उसे क्लास से गायब रहकर बंटे खेलना ज़्यादा अच्छा लगता है। आप एक बार खुद आकर मुझसे मिलिए…मिलिए? परीक्षित के पापा हैडमास्टर से मिल भी लेंगे, तो क्या हो जाएगा? स्कूल में बच्चे पढ़ें नहीं, क्लास से गायब रहकर बंटे खेलते रहें, इसका क्या मतलब? फ़ीस के पैसे क्या फोकट में आते हैं? सभी पापा लोग आफ़िस में इतना काम करते हैं तब कहीं जाकर मिलते हैं पैसे। उन्हें ये बच्चे फोकट के समझें, आखिर क्यों? छे! मुझे हैडमास्टर होना चाहिए था। इस परीक्षित के होश तब मैं अच्छी तरह ठिकाने लगाता। (वह पत्र रखकर दूसरा निकालता है।) यह किसका है?

खंभा : क्यों, लाल ताऊ, आज किस-किस के पत्र चोरी-चोरी पढ़ते रहे?

लैटरबॉक्स : (आश्चर्य से) चोरी-चोरी? चोरी किसलिए? सभी चिट्ठियाँ मेरे ही तो कब्ज़े में होती हैं। अच्छी तरह रोज़-रोज़ पढ़ता हूँ।

पेड़ : कब्ज़े में होने का मतलब यह तो नहीं, लाल ताऊु, कि लोगों की चिट्डियाँ फाड़-फाड़कर पढ़ते रहो? पोस्टमास्टर को पता चल गया तो?

लैटरबॉक्स : चलता है पता तो चल जाने दो। मेरी तरह यहाँ रात-दिन बैठकर दिखाएँ तब पता चले। परसों वह पोस्टमैन मेरे पेट में से चिट्ठियाँ निकाल रहा था और मुझे इतनी लंबी जम्हाई आई कि रोके नहीं रुकी। (जम्हाई लेता है।) वह देखता ही रह गया। चिट्डियों का बंडल बनाकर जल्दी-जल्दी चलता बना वह। लेकिन यह लैटरबॉक्स, इसे नहीं बोरियत होती एक जगह बैठे-बैठे? मैं कहता हूँ, चार चिट्ठियाँ मन बहलाने के लिए पढ़ भी लीं तो क्या हो गया?

पेड़ : लेकिन चिट्ठी जिसे लिखी गई हो, लाल ताऊ, उसे ही पढ़नी चाहिए। वह प्राइवेट होती है प्राइवेट।

लैटरबॉक्स : मैं कहाँ किसी की चिट्ठी पास रख लेता हूँ? जिसकी होती है उसे मिल ही जाती है। किसी की गुप्त बातें मैं कब बाहर निकलने देता हूँ? वह मुझ तक ही रहती हैं। इसीलिए तो मुझे अपना बहुत महत्त्व लगता है।

पेड़ : कोई आ रहा लगता है-
सब चुप हो जाते हैं। पोस्टर पर बनी नाचनेवाली का संतुलन फिर से बिगड़ता है। फिर पहले की तरह स्थिर और स्तब्ध हो जाती है। तेज़ हवा की भनभनाहट। भिखारी जैसा एक आदमी आता है। उसके कंधे पर सोई हुई एक लड़की है।

आदमी : मैं बच्चे उठानेवाला हूँ। दूसरा कोई काम करने की मेरी इच्छा नहीं होती। अभी थोड़ी देर पहले एक घर से यह लड़की उठाई है मैंने। गहरी नींद सो रही थी। अब तक उठी नहीं है। उठेगी भी नहीं, मैंने इसे थोड़ी बेहोशी की दवा जो दी है। अब मुझे लगी है भूख। दिनभर कुछ खाने का वक्त ही नहीं मिला। पेट में जैसे चूहे दौड़ रहे हों!…तो ऐसा किया जाए…इसे यहीं लेटाकर अपने ज़रा कुछ खाने की तलाश करें…देखें कुछ मिल जाए तो! इतनी रात गए यहाँ इस वक्त अब किसी का आना मुमकिन नहीं।

पेड़ की ओट में लड़की को डाल देता है। उस पर अपना कोट फैला देता है और इधर-उधर ज़रा चौकस होकर देखता है। फिर एक-एक कदम सावधानी से रखता हुआ निकल जाता है।

खंभा : (पेड़ से ) श् श् श्! पेड़ राजा, दाल में कुछ काला नज़र आता है।

पेड़ : वह ज़रूर बहुत बुरा आदमी है कोई। और यह लड़की तो छोटी सी है।

लैटरबॉक्स : वह उसे कहीं से उठाकर लाया है। मैंने सुना है।

पेड़ : (कौए को जगाते हुए) श् श् श्! एऽए कौए, जाग न? जाग!

कौआ : दिन हो गया?

पेड़ : नहीं, दिन नहीं हुआ, पर एक दुष्ट आदमी एक छोटी सी लड़की को कहीं से उठाकर ले आया है। चुप्प! वो आदमी इस वक्त यहाँ नहीं है। वो लड़की उठ जाएगी तो चिल्लाएगी।

कौआ : (आलस से उठते हुए) आँखों पर एक चुल्लू पानी डालकर अभी आया। (जाता है।)

खंभा : भयंकर, बहुत ही भयंकर!

पेड़ : (झुककर लड़की को देखकर) बच्ची बहुत प्यारी है। कौन जाने किसकी है!

लैटरबॉक्स : (मुड़कर देखते हुए) नासपीटे* ने सोई हुई को उठा लिया कहीं से। चील जैसे चूहा उठा लेती है, वैसे।

खंभा : मैं भी देखना चाहता हूँ उसे, पर मुझसे झुका ही नहीं जाता। लाल ताऊ, अभी भी सो रही है क्या वो?

लैटरबॉक्स : हाँ-हाँ…हाँ, खंभे महाराज।

कौआ : (आकर) कौन उठा लाया? किसे? बोलो अब।

पेड़ : इसे…इस छोटी लड़की को एक दुष्ट आदमी उठा लाया है।

कौआ : (देखकर) अच्छा…यह लड़की! और वह दुष्ट आदमी कहाँ है? इसे उठाकर लानेवाला?

खंभा : वह ज़रा गया है खाने की तलाश में…भूख लगी थी उसे।

लैटरबॉक्स : थोड़ी ही देर में आ जाएगा नासपीटा! और यह खिलौने-सी बच्ची……(गला रुँध जाता है।) नहीं नहीं, ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती। कौन जाने क्या होगा इस बच्ची का!

कौआ : हाँ सच! आजकल कुछ दुष्ट लोग बच्चों को उठा ले जाते हैं। मैं तो घूमता रहता हूँ न? ऐसा होते देखा है।

पेड़ : मैं बताऊँ? अपन यह काम नहीं होने देंगे।

लैटरबॉक्स : पर मैं कहता हूँ, यह होगा कैसे?

खंभा : होगा कैसे मतलब? उस दुष्ट को मज़े से इस बच्ची को उठा ले जाने दें?

कौआ : वह दुष्ट है कौन? पहले उसे नज़र तो आने दीजिए।

*ऐसे शब्दों का प्रयोग असंवैधानिक है। समाज के यथार्थ प्रतिबिंबन के लिए लेखक कई बार ऐसे शब्दों का प्रयोग साहित्य में करते रहे हैं, किंतु इसे व्यवहार में नहीं लाया जाना चाहिए।

लैटरबॉक्स : मैंने देखा है नासपीटे को। अच्छी तरह करीब से देखा है। बहुत ही दुष्ट लगा मुझे तो। कैसी नज़र थी उसकी! घड़ीभर को तो मुझे लगा, कहीं यह मुझे ही न उठा ले जाए।

कौआ : ताऊ, आपको?

खो खो करके हँसता है। छोटी लड़की अब तक कुछ जाग चुकी है। अधखुली आँखों से सामने देखती है-पेड़, खंभा, लैटरबॉक्स और कौआ एक दूसरे से बातें कर रहे हैं।

लैटरबॉक्स : इतना मुँह फाड़कर हँसने की क्या बात है इसमें?

खंभा : उसकी वह गंदी नज़ार, यहाँ से मुझे भी खूब अच्छी तरह दिखाई दे रही थी।

पेड़ : छोटे बच्चों को उठाने से ज़्यादा बुरा काम और क्या हो सकता है?
लड़की उठकर बैठ जाती है। स्वप्न देखने जैसी भाव-मुद्रा।

लैटरबॉक्स : कैसा मन होता है नासपीटों का? उनका वहीं जानें! उनका वही जानें!

कौआ : ताऊ, एक जगह बैठे रहकर यह कैसे जान सकोगे? उसके लिए तो मेरी तरह रोज़ चारों दिशाओं में गश्त लगानी पड़ेगी, तब जान पाओगे यह सब।

पेड़ : काफ़ी समझदार है तू। अरे यह हमसे कैसे हो सकेगा?
लड़की स्वप्न देखती हुई-सी खड़ी है।

लड़की : अं? क्या? ये सब बोल रहे हैं? लैटरबॉक्स, बिजली का खंभा, यह पेड़…कौआ…

कौआ सबको इशारा करता है। तभी सब एकदम चुप, स्तब्ध हो जाते हैं। लड़की इन सबके पास जाकर खड़ी हो जाती है। अच्छी तरह सबको देखती है, पर सभी निर्जीव लगते हैं।

लड़की : ये तो ठीक लग रहे हैं। फिर मुझे जो दिखाई दिया वह सपना था…या कुछ और? (फिर गौर से देखती है, सभी नि:स्तब्ध।) कौन बोल रहा था? कौन गप्पें मार रहा था? (सभी चुप) कौन बातें कर रहा था? मुझे… मुझे डर लग रहा है। मैं कहाँ हूँ? यह… यह सब क्या है? मेरा घर कहाँ है? मेरे पापा कहाँ हैं? मम्मी कहाँ हैं? कहाँ हूँ मैं? मुझे… मुझे बहुत डर लग रहा है…बहुत डर लग रहा है। कैसा अँधेरा है चारों तरफ़! रात है…सपना देख रही थी मैं। पर सब सच है…कोई तो बोलो न…नहीं तो चीखूँगी मैं…चीखूँगी।
सभी चुप। स्तब्ध। लड़की घबराकर एक कोने में अंग सिकोड़कर बैठ जाती है। फिर अपना सिर घुटनों में डाल लेती है।

लड़की : मुझे डर लग रहा है…मुझे डर लग रहा है…

लैटरबॉक्स : (पेड़ से) अब मुझसे चुप नहीं रहा जाता…बहुत घबरा गई है।
(आगे सरककर) बच्ची घबरा मत…

लड़की : (पहले ऊपर देखती है फिर सामने ) कौन?

लैटरबॉक्स : मैं हूँ, लैटरबॉक्स।

लड़की : तुम…तुम बोलते हो?

लैटरबॉक्स : हाँ, मेरे मुँह नहीं है क्या?

लड़की : तुम चलते भी हो?

लैटरबॉक्स : हाँ, आदमियों को देख-देखकर।

लड़की : सच?

लैटरबॉक्स : उसमें क्या है? (थोड़ा चलकर दिखाता है) पर तू घबरा मत।

लड़की : (एकदम खिलखिलाकर हँसती है।) मज़्ज़ा!
लैटरबॉक्स बोलता है…चलता भी है!

लैटरबॉक्स : (खुश होकर) वैसे मैं थोड़ा सा गा भी लेता हूँ। कुछ भजन वगैरह।

लड़की : सच?

लैटरबॉक्स : (भजन की एक लाइन गाता है।) हूँ!

लड़की : तुम मज़ेदार हो। बहुत-बहुत अच्छे हो।

लैटरबॉक्स : पर मैं बहुत लाल हूँ। नासपीटों के पास जैसे दूसरा रंग ही नहीं था। लाल रंग पोत दिया मुझ पर।

लड़की : लैटरबॉक्स, तुम सच्ची बहुत अच्छे हो। पर मुझे न, अभी भी बिलकुल सच नहीं लग रहा है। सपना लग रहा है…सपना।

लैटरबॉक्स : कभी न देखी हो ऐसी चीज़ देख लो यों ही लगता है। तू रहती कहाँ है?

लड़की : मैं अपने घर में रहती हूँ।

लैटरबॉक्स : बहुत अच्छे! हर किसी को अपने घर ही रहना चाहिए। पर तेरा यह घर है कहाँ?

लड़की : हँ? घर…हमारी गली में है।

लैटरबॉक्स : हम जैसे अपने घरों में रहते हैं वैसे ही घर भी गली में हो तो अच्छा रहता है। पर यह गली है कहाँ?

लड़की : सड़क पर। आसान तो है मिलनी। हमारी गली एक बड़ी सड़क पर है, हाँ। उस सड़क पर न, आदमी-ही-आदमी आते-जाते रहते हैं।

लैटरबॉक्स : यह तो अच्छा ही है कि हम घरों में हों, घर गली में, गलियाँ सड़कों पर और सड़कों पर बहुत से लोग हों। इससे चोरी-वोरी भी कम होती है। पर तुम्हारी इस सड़क का नाम क्या है?

लड़की : नाम? हमारे घरवाली सड़क।

लैटरबॉक्स : अरे, वह तो तुम्हारा दिया हुआ नाम है न? जैसे मुझे सबने नाम दिया है लाल ताऊ। पर मेरा असली नाम तो लैटरबॉक्स है।

लड़की : ये सब कौन? ये सब यानी कौन? यहाँ तो कोई नहीं है।

लैटरबॉक्स : (हड़बड़ाकर) है। नहीं-नहीं…यहाँ तो कोई नहीं। मैं वैसे बता रहा था तुझे…कोई मुझे ऐसे कहे तो…
पेड़, खंभा, कौआ-सभी ठंडी लंबी साँस लेते हैं।

लैटरबॉक्स : तो तेरी उस सड़क का-लोगों का दिया हुआ नाम क्या है?

लड़की : मुझे नहीं पता। सभी उसे सड़क कहते हैं, सच। कोई-कोई रोड भी कहता है, रोड।

लैटरबॉक्स : (पेट से लिफ़ाफे निकालकर दिखाते हुए) यह देख, इस पर जैसे पता लिखा हुआ है, वैसा पता नहीं है तेरा?

लड़की : मुझे नहीं पता। सच्ची, मुझे नहीं पता।

खंभा : (बीच में ही) कमाल है!
लड़की आश्चर्य से खंभे की तरफ़ देखती है। वह चुप।

लड़की : कौन बोला यह, कमाल है? अँ…कौन?

लैटरबॉक्स : खंभा…(जीभ काटकर) नहीं-नहीं, यूँ ही लगा है तुझे। यूँ ही…

लड़की : मुझे सुनाई दिया है वहाँ से…ऊर्र से।

पेड़ : हँ! (एकदम मुँह पर टहनी रखता है।)

लड़की : देखो, वहाँ से…वहाँ से आई है आवाज़। ज़रूर आई है। उस पेड़ पर से आई है।

कौआ : मैंने नहीं की। (चोंच दबाकर रखता है।)

लड़की : कौन बोला यह? कौन? कौआ?

खंभा : गधा है यह भी।

पेड़ : जब न बोलना हो तो ज़रूर…
पोस्टर पर बनी नाचनेवाली का संतुलन पुनः बिगड़ता है। वह फिर से अपने पाँव टिकाती है। घुँघरुओं की आवाज़।

लड़की : वो देखो, देखो, कोई नाच रहा है। (सभी एकटक देखते रहते हैं।) क्या है यह? क्या है? कौन बोलता है? कौन नाच रहा है? कौन?

लैटरबॉक्स : (प्यार से ) देख, तू बिलकुल घबरा मत। हमीं बोल रहे हैं, हमीं नाच रहे हैं, चल रहे हैं, गा भी रहे हैं।

लड़की : हमीं मतलब कौन? बताओ न? बताओ जल्दी।

लैटरबॉक्स : हमीं…यानी कि हमीं…मैं लैटरबॉक्स, यह पेड़…वह बिजली का खंभा…यह कौआ भी। वह सिनेमा का पोस्टर।

लड़की : कसम से?

लैटरबॉक्स : कसम से। बस इनसानों के सामने हम नहीं करते यह सब। इनसानों को ऐसा दिखाई देता है, भूत करते हैं यह सब तो। घबरा जाते हैं। इसीलिए जब हम अकेले होते हैं तब बोलते, चलते, नाचते…
नाचनेवाली का संतुलत पुन: बिगड़ता है। घुँघरुओं की आवाज़। वह फिर पहले की स्थिति में आती है।

लड़की : मज़े हैं। खूब-खूब मज़े हैं! (अपने इर्द-गिर्द सबको देखती है।) लैटरबॉक्स, अब मुझे यहाँ डर नहीं लगता…ज़रा भी डर नहीं लगता।

(खंभा, पेड़, कौआ): शाब्बाश!
लड़की हैरान होती है, फिर ताली बजाकर खिलखिलाकर हँसती है।

लड़की : सब चलकर पहले मेरे पास आओ। (सभी पहले हिचकिचाते हैं।) आओ न पास…। नहीं तो मैं नहीं बोलूँगी, जाओ। (सब बारी-बारी से पास आते हैं।) बैठो। (सब बैठ जाते हैं, सिर्फ खंभा सीधा खड़ा है।) खंभे…खंभे, नीचे बैठो। (वह अभी भी खड़ा है।) बैठो न! देखो, नहीं तो मैं रोऊँगी।

लैटरबॉक्स : अरे, मैं बताता हूँ तुझे। उससे बिलकुल बैठा नहीं जाता।

लड़की : क्यों?

पेड़ : क्योंकि जब से वह यहाँ खड़ा किया गया तबसे कभी बिलकुल बैठा ही नहीं।

लड़की : (व्याकुल होकर) अय्या रे! मतलब यह बिच्चारा लगातार खड़ा ही रहता है, टीचर से जैसे सज़ा मिली हो? (खंभा स्वीकृतिसूचक गरदन हिलाता है।) फिर तो चलो, हम सब मिलकर इसे बिठाते हैं। हँ? चलो…
सब मिलकर बड़े यत्न से खंभे को बैठाते हैं। बैठने में उसे बहुत तकलीफफ होती है, लेकिन बाद में बैठ जाता है।

लड़की : (ताली बजाती है।) एक लड़का बैठ गया। बैठ गया जी, एक लंबा लड़का बैठ गया!

खंभा : (ज़रा सुख महसूस करते हुए) बहुत अच्छा लग रहा है बैठकर। सच-सच बताऊँ? हम खड़े रहते हैं न, तब बैठने का सपना देखते हैं। सपने में भी बैठना कितना अच्छा लगता है!

लड़की : मुझे भी वैसा ही लग रहा है। मैं यहाँ कैसे आ गई? मुझे बिलकुल भी पता नहीं।

पेड़ : मैंने देखा था… (जीभ काटता है।) अहँ…मैंने नहीं देखा, मैं यह कह रहा था।

लड़की : यह लड़का जो जी में आए बोल देता है। तुम्हें ज़ीरो नंबर।

पेड़ : (खंभे को आँख मारकर) चलो ठीक। ज़ीरो तो ज़ीरो सही।

लड़की : ए, हम अब खेलें? हँ? (पोस्टर पर बनी नाचनेवाली का संतुलन फिर खोता है। घुँघरुओं की आवाज़।) मज़्ज़ा! एक लड़की बार-बार गिर रही है। गिर रही है। (ज़रा सोचकर) ए, मैं तुम्हें नाच करके दिखाऊँ? हँँ? मेरी मम्मी ने सिखाया है मुझे। दिखाऊँ करके ?

सभी : हाँ, हाँ, दिखाओ न? वाह!
लड़की नाच करने लगती है।

पेड़ : (खंभे से धीरे से) थोड़ी देर में वह भी आ जाएगा।

खंभा : कौन?

पेड़ : वह…वही…दुष्ट आदमी…वह बच्चे उठानेवाला।

खंभा : सचमुच! (कौए से) उसके आने का वक्त हो गया।

कौआ : किसके?

खंभा : हूँ..उस बच्चे उठानेवाले का। इसे अभी ले जाएगा वह।

लैटरबॉक्स : बाप रे! तब फिर?

पेड़ : क्या किया जाए?

खंभा : कुछ तो करना ही पड़ेगा!

पेड़ : लेकिन क्या?
पोस्टर पर बनी नाचनेवाली आती है। लड़की और वह दोनों मिलकर नाचने लगती हैं। सभी दाद देते हैं। नाच खूब रंग में आता है। सभी भाग लेते हैं पर बीच में ही एक दूसरे के कान में कुछ फुसफुसाते हैं। पुन: नाचते हैं। दाद देते हैं। तभी वह दुष्ट आदमी आता है। देखते ही सब नि:स्तब्ध। नाचनेवाली पोस्टर के बीच जा खड़ी होती है। सभी अपनी-अपनी जगह पर और वह लड़की घबराकर पेड़ के पीछे दुबक जाती है।

आदमी : (मूँछों पर हाथ फेरकर डकार लेता है।) वाह! पेट भर खा लिया। अब आगे चला जाए। (लड़की जहाँ सो रही थी वहाँ देखता है, सिर्फ कोट ही वहाँ दिखाई पड़ता है। उसका चेहरा बदलता है।) कहाँ गई? गई कहाँ वह छोकरी? मैं छोड़ँगा नहीं उसे। अभी, पकड़ के लाता हूँ। मुझे चकमा देती है!

ढूँढ़ने लगता है। पेड़, खंभा, लैटरबॉक्स, पोस्टर इन सबके बीचोंबीच लपक-झपक कर लड़की बचने का प्रयत्न करती है और वह दुष्ट आदमी पीछे-पीछे। होते-होते सभी वस्तुएँ सरकते-सरकते उसके रास्ते में आने लगती हैं। उस छोटी लड़की का संरक्षण करने लगती हैं। धीरे-धीरे इस सारे क्रम का वेग बढ़ने लगता है जिसे ढोलक या तबले की ताल भी मिलती है। लड़की किसी भी तरह उस दुष्ट आदमी के हाथ नहीं लगती। तभी एकदम से कौआ चिल्लाता है।

कौआ : भूत!

पीछे-पीछे पेड़, खंभा, लैटरबॉक्स नाचते हुए चिल्लाने लगते हैं।

(पेड़, खंभा, लैटरबॉक्स ): भूत… भूत!

तीनों और ज़्यादा ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते-चीखते हैं। इसी के साथ ‘भूत-भूत’ करता वह दुष्ट आदमी घबराकर भाग निकलता है। सभी पेट पर हाथ रखे जी भरकर हँसते हैं।

खंभा : मज़ा आ गया!

कौआ : खूब भद्द उड़ाई!

पेड़ : क्यों उठाकर लाया था बच्ची को? बड़ा आया बच्चे चुराकर भागनेवाला! अच्छी खातिर की उसकी!

लैटरबॉक्स : अच्छी नाक कटी दुष्ट की।

खंभा : अरे, पर वो कहाँ है?

कौआ : वो कौन?

पेड़ : कौन?

खंभा : वो…वो छोटी…लड़की अपनी…

लैटरबॉक्स : अरे-अरे वो…वो कहाँ गई?

पेड़ : कौन?

कौआ : देखूँ…देखते हैं…
इधर-उधर देखते हैं, पर लड़की का कहीं पता नहीं। सभी चिंताग्रस्त।

खंभा : गई कहाँ?

कौआ : यहीं तो थी।

पेड़ : कहीं नहीं मिल रही।

लैटरबॉक्स : उठाकर तो नहीं ले गया बच्ची को बदमाश?
फिर से ढूँढ़ते हैं। लड़की नहीं मिलती। सभी घबराए हुए हैं। पोस्टर पर बनी नाचनेवाली भी जहाँ की तहाँ उसी भांगिमा में बैठी है।

कौआ : (निराश) नहीं भई, कहीं दिखाई नहीं देती।

पेड़ : मुझे तो लगता है, बहुत करके वही ले गया होगा उसे…

लैटरबॉक्स : कितनी प्यारी बच्ची थी रे, कितनी प्यारी!

खंभा : और स्वभाव कितना अच्छा था उसका।
सभी शोकग्रस्त बैठे हैं। तभी नाचनेवाली के पीछे से लड़की धीरे से झाँकती है।

लड़की : (शरारत से) मैं यहाँ हूँ…मुझे पकड़ो!
सभी आनंदित होकर इधर-उधर देखने लगते हैं। उसे पकड़ने दौड़ते हैं। वह पकड़ में नहीं आती। सबको भगाती रहती है। सब थक जाते हैं। आखिर कौआ उसे पकड़ता है।

कौआ : (धप से) कैसे पकड़ ली!

लड़की : पर पहले कैसे घबरा गए थे सब? अहा! मज़्ज़ा! (ताली बजाती है। पोस्टर पर बनी नाचनेवाली भी ताली बजाती है। लड़की थककर बैठ जाती है।) खूब मज़्ज़ा आया। मुझे ज़रा साँस लेने दो अब। ए, पर मैं बहुत घबरा गई थी उस दुष्ट आदमी से। तुम्हीं ने बचा लिया मुझे। अहा मुझे…बहुत नींद आ रही है। थक गई मैं। (लेटती है।) बहुत थक गई। मुझे उठा देना, हाँ…फिर हम मज़ा करेंगे…बहुत थक गई। मुझे उठा देना, हाँ… फिर हम मज़ा करेंगे। (गहरी नींद सो जाती है। सब उसे देखते हुए खड़े हैं-प्यार से)

कौआ : सो गई बच्ची।

पेड़ : थक गई थी न बहुत? तभी झट से सो गई।
लैटरबॉक्स लड़की को प्रेम से थपथपाने लगता है। कौआ उसके पैर दबाता है।

खंभा : थोड़ी देर बाद सुबह हो जाएगी।

पेड़ : तब यह कहाँ जाएगी?

लैटरबॉक्स : उसे अपने घर का पता-ठिकाना ही नहीं मालूम, अपनी गली का नाम तक नहीं बता सकती वह। बेचारी को अपने पापा का नाम भी नहीं मालूम। छोटी है अभी।

खंभा : तो इसका क्या होगा? कहाँ जाएगी यह?

लैटरबॉक्स : सचमुच रे, कहाँ जाएगी?

कौआ : मैं बताऊँ?

सभी : क्या?

कौआ : हम सब मिलकर कुछ करें तो इसको पापा से मिलवा सकते हैं।

सभी : (उठकर) कैसे?

कौआ : आसान है। सुबह जब हो जाए पेड़ राजा, तो आप अपनी घनी-घनी छाया इस पर किए रहें, वह आराम से देर तक सोती रहेगी और खंभे महाराज, आप ज़रा टेढ़े होकर खड़े रहिए।

खंभा : इससे क्या होगा?

कौआ : पुलिस को लगेगा, एक्सीडैंट हो गया। वो यहाँ आएगी और हमारी इस छोटी सहेली को देखेगी। वो लगाएगी इसके घर का पता। पुलिस सबके घर का पता मालूम करती है। खोए हुए बच्चों को उनके घर पहुँचाती है।

खंभा : रहूँगा, मैं आड़ा होकर खड़ा रहूँगा। पर मान लो, पुलिस नहीं आई तो?

कौआ : मैं बराबर यहाँ ज़ोर-ज़ोर से काँव-काँव करता रहूँगा। लोगों का ध्यान इधर खींचूँगा। उनकी चीज़ें अपनी चोंच से उठा-उठाकर लाता जाऊँगा।

लैटरबॉक्स : पर तब भी कोई नहीं आया तो?

कौआ : तो आपको एक काम करना होगा, लाल ताऊ।

लैटरबॉक्स : ज़रूर करूँगा, अपनी अच्छी गुड़िया के लिए तो कुछ भी करूँगा। एक बार घर पहुँचा दिया कि सब ठीक हो गया समझो। क्या करूँ? बता।

कौआ : आपको लिखना-पढ़ना आता है न ?
कान में बात करने लगता है। तभी पोस्टर पर बनी नाचनेवाली गिर पड़ती हैं। घुँघरुओं की आवाज़। पुन: जैसे-तैसे वह अपनी पहले जैसी भंगिमा बनाकर खड़ी होती है।

लैटरबॉक्स : (बीच में ही कौए से) उससे क्या होगा?
कौआ उसके कान में और कुछ कहता है। लैटरबॉक्स स्वीकृति में गरदन हिलाता है। अँधेरा। कुछ देर बाद उजाला। सुबह होती है। खंभा अपनी जगह पर टेढ़ा होकर खड़ा है। पेड़ सोई हुई लड़की पर झुककर अपनी छाया किए हुए है। कौए की काँव-काँव ज़ोर-ज़ोर से सुनाई दे रही है और सिनेमा के पोस्टर पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है-पापा खो गए हैं। पोस्टर पर बनी नाचनेवाली की इससे मेल खानेवाली भंगिमा। लैटरबॉक्स धीरे से सरकता हुआ प्रेक्षकों की ओर आता है।

लैटरबॉक्स : शः! शः! लाल ताऊ बोल रहा हूँ। आप में से किसी को अगर हमारी इस प्यारी सी बच्ची के पापा मिल जाएँ तो उन्हें जितनी जल्दी हो सके यहाँ ले आइएगा।

परदा गिरता है।
  • विजय तेंदुलकर

प्रश्न-अभ्यास

नाटक से
1. नाटक में आपको सबसे बुद्धिमान पात्र कौन लगा और क्यों?

2. पेड़ और खंभे में दोस्ती कैसे हुई?

3. लैटरबॉक्स को सभी लाल ताऊ कहकर क्यों पुकारते थे?

4. लाल ताऊ किस प्रकार बाकी पात्रों से भिन्न है?

5. नाटक में बच्ची को बचानेवाले पात्रों में एक ही सजीव पात्र है। उसकी कौन-कौन सी बातें आपको मज़ेदार लगीं? लिखिए।

6. क्या वजह थी कि सभी पात्र मिलकर भी लड़की को उसके घर नहीं पहुँचा पा रहे थे?

नाटक से आगे
1. अपने-अपने घर का पता लिखिए तथा चित्र बनाकर वहाँ पहुँचने का रास्ता भी बताइए।

2. मराठी से अनूदित इस नाटक का शीर्षक ‘पापा खो गए’ क्यों रखा गया होगा? अगर आपके मन में कोई दूसरा शीर्षक हो तो सुझाइए और साथ में कारण भी बताइए।

3. क्या आप बच्ची के पापा को खोजने का नाटक से अलग कोई और तरीका बता सकते हैं?

अनुमान और कल्पना
1. अनुमान लगाइए कि जिस समय बच्ची को चोर ने उठाया होगा वह किस स्थिति में होगी? क्या वह पार्क/ मैदान में खेल रही होगी या घर से रूठकर भाग गई होगी या कोई अन्य कारण होगा?

2. नाटक में दिखाई गई घटना को ध्यान में रखते हुए यह भी बताइए कि अपनी सुरक्षा के लिए आजकल बच्चे क्या-क्या कर सकते हैं। संकेत के रूप में नीचे कुछ उपाय सुझाए जा रहे हैं। आप इससे अलग कुछ और उपाय लिखिए।

  • समूह में चलना।

  • एकजुट होकर बच्चा उठानेवालों या ऐसी घटनाओं का विरोध करना।

  • अनजान व्यक्तियों से सावधानीपूर्वक मिलना।

भाषा की बात
1. आपने देखा होगा कि नाटक के बीच-बीच में कुछ निर्देश दिए गए हैं। ऐसे निर्देशों से नाटक के दृश्य स्पष्ट होते हैं, जिन्हें नाटक खेलते हुए मंच पर दिखाया जाता है, जैसे-‘सड़क / रात का समय…दूर कहीं कुत्तों के भौंकने की आवाज़।’ यदि आपको रात का दृश्य मंच पर दिखाना हो तो क्या-क्या करेंगे, सोचकर लिखिए।

2. पाठ को पढ़ते हुए आपका ध्यान कई तरह के विराम चि््रों की ओर गया होगा। अगले पृष्ठ पर दिए गए अंश से विराम चिह्नों को हटा दिया गया है। ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा उपयुक्त चिह्न लगाइए-

मुझ पर भी एक रात आसमान से गड़गड़ाती बिजली आकर पड़ी थी अरे बाप रे वो बिजली थी या आफ़त याद आते ही अब भी दिल धक-धक करने लगता है और बिजली जहाँ गिरी थी वहाँ खड्डा कितना गहरा पड़ गया था खंभे महाराज अब जब कभी बारिश होती है तो मुझे उस रात की याद हो आती है, अंग थरथर काँपने लगते हैं

3. आसपास की निर्जीव चीज़ों को ध्यान में रखकर कुछ संवाद लिखिए, जैसे-

  • चॉक का ब्लैक बोर्ड से संवाद

  • कलम का कॉपी से संवाद

  • खिड़की का दरवाज़े से संवाद

4. उपर्युक्त में से दस-पंद्रह संवादों को चुनें, उनके साथ दृश्यों की कल्पना करें और एक छोटा सा नाटक लिखने का प्रयास करें। इस काम में अपने शिक्षक से सहयोग लें।



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