अध्याय 13 नृत्यांगना सुधा चंद्रन
जीवन के किसी भी क्षेत्र में शिखर तक पहुँचने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और कठिन परिश्रम की आवश्यकता पड़ती है। कई लोग ऐसे भी हुए हैं जिन्होंने शारीरिक अक्षमता के बावजूद संघर्ष किया है और लक्ष्य प्राप्त किया है। ऐसा ही एक नाम है- सुधा चंद्रन। पैर खराब होने के बावजूद वह चोटी की नृत्यांगना बनी।
सुधा चंद्रन की माता श्रीमती थंगम एवं पिता श्री के. डी. चंद्रन की हार्दिक इच्छा थी कि उनकी पुत्री राष्ट्रीय ख्याति की नृत्यांगना बने। इसीलिए चंद्रन दंपत्ति ने सुधा को पाँच वर्ष की अल्पायु में ही मुंबई के प्रसिद्ध नृत्य विद्यालय ‘कला-सदन’ में प्रवेश दिलवाया। पहले-पहल तो नृत्य विद्यालय के शिक्षकों ने इतनी छोटी उम्र की बच्ची के दाखिले में हिचकिचाहट महसूस की किंतु सुधा की प्रतिभा देखकर सुप्रसिद्ध नृत्य शिक्षक श्री के.एस. रामास्वामी भागवतार ने उसे शिष्या के रूप में स्वीकार कर लिया और सुधा उनसे नियमित प्रशिक्षण प्राप्त करने लगी। जल्द ही सुधा के नृत्य कार्यक्रम विद्यालय के आयोजनों में होने लगे। नृत्य के साथ-साथ, अध्ययन में भी सुधा ने अपनी प्रतिभा दिखाई लेकिन सुधा के स्वप्नों की इंद्रधनुषी दुनिया में एकाएक 2 मई, 1981 को अँधेरा छा गया।
2 मई को तिरूचिरापल्ली से मद्रास जाते समय उनकी बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इस दुर्घटना में सुधा के बाएँ पाँव की एड़ी टूट गई और दायाँ पाँव बुरी तरह जख्मी हो गया। प्लास्टर लगने पर बायाँ पाँव तो ठीक हो गया किंतु दायों टाँग में ‘गैंग्रीन’ (एक प्रकार का कैंसर) हो गया। ऐसे में डॉक्टरों के पास सुधा की दायीं टाँग काट देने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। अंततः दुर्घटना के एक महीने बाद सुधा की दायीं टाँग घुटने के साढ़े सात इंच नीचे से काट दी गई। एक टाँग का कट जाना संभवतः किसी भी नृत्यांगना के जीवन का अंत ही होता। सुधा के साथ भी यही हुआ। सुधा ने लकड़ी के गुटके के पाँव और बैसाखियों के सहारे चलना शुरू कर दिया और मुंबई आकर वह पुनः अपनी पढ़ाई में जुट गई।
इसी बीच सुधा ने मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सुप्रसिद्ध कृत्रिम अंग विशेषज्ञ डॉ. पी.सी. सेठी के बारे में सुना। वह जयपुर गई और डॉ. सेठी से मिली। डॉ. सेठी ने सुधा को आश्वस्त किया कि वह दुबारा सामान्य ढँग से चल सकेगी। इस पर सुधा ने पूछा- “क्या मैं नाच सकूँगी?” डॉ. सेठी ने कहा- “क्यों नहीं, प्रयास करो तो सब कुछ संभव है।” डॉ. सेठी ने सुधा के लिए एक विशेष प्रकार की टाँग बनाई जो अल्यूमिनियम की थी और इसमें ऐसी व्यवस्था थी कि वह टाँग को आसानी से घुमा सकती थी। सुधा एक नए विश्वास के साथ मुंबई लौटी और उसने नृत्य का अभ्यास शुरू करना चाहा किंतु इस प्रयास में कटी हुई टाँग से खून निकलने लगा।
कोई भी सामान्य व्यक्ति इस तरह की घटना के बाद दुबारा नाचने की हिम्मत कतई नहीं करता किंतु सुधा साधारण मिट्टी की नहीं बनी थी। जल्दी ही उसने अपनी निराशा पर काबू प्राप्त किया और अपने नृत्य प्रशिक्षक को साथ लेकर डॉ. सेठी से पुन: मिली।
डॉ. सेठी ने सुधा के नृत्य प्रशिक्षक से नृत्य हेतु पाँवों की विभिन्न मुद्राओं को गंभीरता से देखा-परखा और एक नयी टाँग बनवाई, जो नृत्य की विशेष ज़रूरतों को ध्यान में रखकर बनाई गई थी। टाँग लगाते समय डॉ. सेठी ने सुधा से कहा- “मैं जो कुछ कर सकता था मैंने कर दिया, अब तुम्हारी बारी है।” सुधा ने पुन: नृत्य का अभ्यास प्रारंभ किया। शुरुआत बहुत अच्छी नहीं रही। कटे हुए पाँव के ठूँठ से खून रिसने लगा किंतु सुधा ने कड़ा अभ्यास जारी रखा। कठिन अभ्यास से सुधा जल्द ही सामान्य नृत्य मुद्राओं को प्रदर्शित करने में सफल हो गई। 28 जनवरी, 1984 को मुंबई के ‘साउथ इंडिया वेलफ़ेयर सोसायटी’ के हाल में एक अन्य नृत्यांगना प्रीति के साथ सुधा ने दुबारा नृत्य के सार्वजनिक प्रदर्शन का आमंत्रण स्वीकार कर लिया।
यह दिन सुधा की ज़िदगी का संभवतः सबसे कठिन दिन था, उस दिन से भी ज़्यादा जबकि उसका पाँव काट दिया गया था। सुधा का यह प्रदर्शन बेहद सफल रहा। चहेतों ने उसे देखते-देखते पलकों पर उठा लिया और वह रातों-रात एक ऐतिहासिक महत्त्व की व्यक्तित्त्व हो गई।
उसकी अद्भुत जीवन-यात्रा से प्रभावित होकर तेलुगु के फ़िल्मकार ने उसकी ज़िदगी को आधार बना कर एक कहानी लिखवाई और ‘मयूरी’ नाम से तेलुगु में एक फ़िल्म बनाई। अपने पात्र को सुधा ने स्वयं परदे पर जीवंत कर दिया। फ़िल्म को अद्भुत सफलता मिली और इस फ़िल्म में अभिनय के लिए सुधा को भारत के 33 वें राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में विशेष पुरस्कार प्रदान किया गया। ‘मयूरी’ की सफलता को देखते हुए इसके निर्माता ने यह फ़िल्म हिंदी में भी ‘नाचे मयूरी’ नाम से प्रदर्शित की और सुधा ने पूरे भारत को अपनी प्रतिभा का मुरीद कर दिया। आज सुधा एक व्यस्त नृत्यांगना ही नहीं, फ़िल्म कलाकार भी है। सुधा को उसके असामान्य साहस और श्रेष्ठ उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कार भी प्राप्त हो चुके हैं।
- रामाज्ञा तिवारी
अभ्यास
शब्दार्थ
इच्छाशक्ति $-$ मनोबल आश्वस्त $-$ विश्वास, भरोसा अक्षमता $-$ अयोग्यता संघर्ष $-$ कठिन प्रयास अल्पायु $-$ कम उम्र बैसाखियाँ $-$ अशक्त अथवा टूटी हुई टाँग को सहारा देने के लिए बाँस
आदि की बनी बगल तक की लंबी छड़ीगैंग्रीन $-$ हड्डी का कैंसर मुरीद $-$ शिष्य लक्ष्य $-$ उद्देश्य
1. पाठ से
(क) सुधा के स्वप्नों की इंद्रधनुषी दुनिया में अँधेरा कैसे छा गया?
(ख) डॉ. सेठी ने सुधा के लिए क्या किया?
(ग) सुधा पूरे भारत में कैसे लोकप्रिय हो गई?
2. विलोम शब्द लिखो
आशा | $-$ निराशा | |
कठिन | $-$ | |
आदर | $-$ | |
अँधेरा | $-$ | |
आकार | $-$ | |
इच्छा | $-$ |
3. सही चिह्न लगाओ
$ \begin{array}{|l|} \hline \text{“} \\ \hline \end{array} \quad $ $ \begin{array}{|l|} \hline \text{”} \\ \hline \end{array} \quad $ $ \begin{array}{|l|} \hline \text{।} \\ \hline \end{array} \quad $ $ \begin{array}{|l|} \hline \text{,} \\ \hline \end{array} \quad $ $ \begin{array}{|l|} \hline \text{?} \\ \hline \end{array} \quad $
सुधा ने पूछा क्या मैं नाच सकूँगी डॉ. सेठी ने कहा क्यों नहीं प्रयास करो तो सब कुछ संभव है
4. क्या पहले, क्या बाद में
नीचे सुधा चंद्रन के जीवन की कुछ घटनाएँ बताई गई हैं। इन्हें सही क्रम में लगाओ।
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सुधा डॉ. सेठी से मिली।
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सुधा नृत्य का फिर से प्रशिक्षण लेने लगी।
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सुधा ने प्रीति के साथ नृत्य किया।
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सुधा को अभिनय के लिए विशेष पुरस्कार मिला।
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सुधा का पैर काटना पड़ा।
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सुधा ने नृत्य विद्यालय में प्रवेश लिया।
5. एक चुनौती
शारीरिक शब्द में एक साथ ि ी की मात्राओं का प्रयोग होता है। तुम भी ऐसे ही अन्य शब्द खोजो और यहाँ लिखो।
नमूना$\Rightarrow$ विनती शारीरिक नीति $……….$ $……….$ $……….$ $……….$ $……….$ $……….$ $……….$ $……….$ $……….$
6. खोजबीन और बातचीत
(क) सुधा के जीवन पर फ़िल्म बनी थी। कुछ अन्य व्यक्तियों के नाम पता करो और लिखो, जिनके जीवन पर फ़िल्में बनाई गई हों।
(ख) सुधा यात्रा के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हुई थी। पता करो कि यात्रा के दौरान दुर्घटना से कैसे बचा जा सकता है? सावधानियों की सूची बनाओ।
(ग) क्या तुम किसी विकलाँग व्यक्ति को जानते हो? उसके बारे में बताओ।
(घ) कुछ ऐसे विकलाँग व्यक्तियों के नाम लिखो जिन्होंने जीवन में विशेष सफलता प्राप्त की है।
(ङ) भारत के कुछ नृत्यों और नर्तक/नर्तकियों के नाम पता करो और कक्षा में सबको बताओ।
(च) पता करो भारत में मैग्सेसे पुरस्कार किन-किन व्यक्तियों को मिला है।