अध्याय 11 पोंगल

भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारतीय किसान का जीवन प्रकृति से जुड़ा रहता है। वह प्रकृति के साथ ही हँसता-रोता है, नाचता-गाता है। बुआई, सिंचाई, निराई आदि खेती-बाड़ी के सारे काम वह मौसम के अनुसार करता है। जब चारों तरफ हरियाली छा जाती है, वृक्ष-लताएँ फूलों से लद जाती हैं तब मानव भी गुनगुनाने लगता है। जब खेत-खलिहान अनाज से भर जाते हैं तब उसके पाँव थिरक उठते हैं, वह उत्सव मनाने के लिए मचल उठता है। त्योहारों का जन्म यहीं से होता है।

पोंगल नयी फसल का त्योहार है। यह संक्रांति के दिन मनाया जाता है। तमिलनाडु का यह प्रमुख त्योहार है। यह जनवरी में मनाया जाता है। ‘पोंगल’ में खेतों से सुनहरे रंग का नया धान कटकर किसान के घर आता है। गत्रे के खेत की फसल तैयार होती है। बगीचे में हल्दी का पौधा लहलहा उठता है। इन्हें देखकर किसान का मन नाच उठता है। उसके जीवन में मिठास आ जाती है। संक्रांति के दिन नए चावल का मीठा भात बनाकर सूर्य को चढ़ाया जाता है। इसी मीठे भात को पोंगल कहते हैं। इसी से त्योहार का नाम पोंगल पड़ा है।

तमिलनाडु में पोंगल त्योहार पौष मास में आरंभ के चार दिनों तक मनाया जाता है। पोंगल के पहले दिन लोग ‘भोगी’ का त्योहार मनाते हैं। पूरे घर की सफ़ाई की जाती है। इससे पर्यावरण स्वच्छ हो जाता है। भोगी के दिन शाम को बच्चे ढोल और बाजे बजाकर खुशियाँ मनाते हैं।

पोंगल के दिन घर-आँगन को रंगोली से सजाते हैं। नहा-धोकर सभी लोग नए कपड़े पहनते हैं। उस दिन सब कुछ नया होता है। आँगन में अँगीठी जलाकर नए बर्तन में पोंगल पकाया जाता है। बर्तन में हल्दी का पौधा बाँध दिया जाता है। गत्रे के रस में नयी फसल का चावल पकाया जाता है। जब चावल उबलकर ऊपर उठता है तो उसमें दूध डाल देते हैं। दूध के साथ उफनता हुआ पोंगल बर्तन के ऊपर से उमड़ता है और चारों ओर रिसकर आँच में टपक पड़ता है। उस समय चारों ओर इकट्टे लोग खुशी से नाच उठते हैं और जोश में चिल्लाते हैं- ‘पोंगलो पोंगल!’ उन्हें प्रसन्नता होती है कि सूर्य और अग्नि ने पोंगल का भोग स्वीकार कर लिया है। लोग अपने पास-पड़ोस में पोंगल बाँटते हैं। उसके बाद मित्र और सगे-संबंधी सब मिलकर बढ़िया भोजन करते हैं। पोंगल के दिन हर तमिल भाषी, चाहे वह भारत के किसी कोने में रहता हो अपने घर पहुँचने की कोशिश करता है। विवाहित-लड़कियाँ पोंगल मनाने अपने मायके आती हैं।

तीसरे दिन ‘माट्टु पोंगल’ मनाया जाता है। तमिल भाषा में ‘माडु’ गाय-बैलों को कहते हैं। ‘माडु’ का अर्थ ‘धन’ भी है। पुराने समय में गाय-बैल ही हमारी संपत्ति थे।

माट्टु पोंगल के दिन गाय-बैलों को अच्छी तरह नहलाया जाता है। लोग उनके सींगों को रँगते हैं और उन्हें रंगीन कपड़ों से सजाते हैं। लोग उनके गले में फूल-मालाएँ पहनाते हैं तथा उन्हें गुड़ और अच्छी-अच्छी चीज़ें खिलाते हैं। शाम को मैदान में बैलों को दौड़ाया जाता है।

चौथे दिन ‘काणुम पोंगल’ होता है। खाना बाँधकर पूरा परिवार घर से बाहर निकल पड़ता है। जगह-जगह मेले लगते हैं। लोग मेलों में घूमते हैं या आसपास के स्थान देखने के लिए चल पड़ते हैं। इस तरह चारों दिन लोग अपने दैनंदिन कामों से छुट्टी लेकर इस त्योहार का आनंद लेते हैं।

खेती से संबंधित यह त्योहार पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। गुजरात से लेकर बंगाल तक लोग इसे संक्रांति के नाम से मनाते हैं। उत्तर भारत में संक्रांति पर स्नान का महत्त्व है। गंगा, यमुना, नर्मदा, क्षिप्रा आदि नदियों में लोग स्नान करते हैं। चावल और मूँग की दाल की खिचड़ी बनाकर खाते-खिलाते हैं।

महाराष्ट्र में यह तिल-गुड़ का त्योहार है। तिल स्नेह का प्रतीक है और गुड़ मिठास का। लोग एक दूसरे को तिल-गुड़ देकर कहते हैं- ‘तिल-गुड़-घ्या, गोड बोला’ अर्थात- तिल और गुड़ खाओ और मीठा बोलो। पंजाब में संक्रांति से एक दिन पहले ‘लोहड़ी’ का त्योहार मनाते हैं। ‘लोहड़ी’ का अर्थ है- ‘छोटी’ या छोटी संक्रांति। लोग अपने घर से बाहर, आँगन में या चौराहे पर लकड़ियाँ जमा करते हैं। संध्या के बाद स्त्री-पुरुष और बच्चे वहाँ इकट्टे होते हैं और लोहड़ी जलाते हैं। नयी फसल का मक्का आग में डाला जाता है। यह खील की तरह फूल उठता है। लोग मक्के की फूली (खील) और तिल की रेवड़ियाँ बाँटते हैं। आपस में प्रेम से मिलते हैं। अरुणाचल प्रदेश में ‘पानुङ’ का त्योहार भी इसी समय मनाया जाता है।

विविधता में एकता भारत की विशेषता है। एक ही त्योहार को लोग विविध रूपों में मनाकर भारत की सांस्कृतिक एकता को मज़बूत बनाते हैं।

अभ्यास

शब्दार्थ

बुआई करना $-$ बीज बोना
सिंचाई करना $-$ पौधों/फसलों को पानी देना, सींचना
निराई करना $-$ फसल के आसपास उग आए घास-फूस को हटाना
गुनगुनाना $-$ धीमी आवाज़ में गाना
थिरकना $-$ नाचना
चढ़ाना $-$ भोग लगाना
पौष $-$ पूस का महीना(जनवरी के आसपास)
मंगलमय $-$ कल्याणकारी
आँच $-$ आग की लौ
मायका $-$ महिलाओं के लिए माँ का घर
खील $-$ आग में भुना हुआ चावल
भोज $-$ दावत
प्रतीक $-$ निशानी
दैनंदिन $-$ दैनिक, रोज़ाना

1. पाठ से
(क) पोंगल का त्योहार अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। पाठ के आधार पर तालिका भरो।

क्र.स. राज्य त्योहार का नाम

(ख) पोंगल चार दिनों तक मनाया जाता है। प्रत्येक दिन के मुख्य क्रिया-कलाप बताओ।

(ग) भारत एक कृषि प्रधान देश है। इस बात को सिद्ध करने के लिए दो उदाहरण दो।

2. तुम्हारी पसंद
तुम्हारे प्रदेश में कौन-कौन से त्योहार मनाए जाते हैं? तुम्हें कौन सा त्योहार सबसे अच्छा लगता है?

3. खेती-बाड़ी
पाठ में खेती से जुड़े अनेक शब्द आए हैं। तुम खेती या बागवानी से जुड़े कुछ औज़ारों के नाम बताओ।

4. रंगोली
(क) पोंगल के दिन घर आँगन को रंगोली से सजाते हैं। रंगोली बनाने के लिए किन-किन चीज़ों का प्रयोग किया जाता है? सूची बनाओ।

(ख) नीचे दी गई जगह में रंगोली का कोई डिज़ाइन बनाओ।

5. खाना-पीना
पाठ में ऐसी अनेक चीज़ों के नाम आए हैं जिन्हें खाने-पीने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। बताओ, इनका प्रयोग किन पकवानों में होता है?

चावल$………………$ गन्ना$………………$
हल्दी$………………$ दूध$………………$
गुड़$………………$ तिल$………………$
मक्का$………………$


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