अध्याय 07 पुस्तकें जो अमर हैं
कोई दो हज़ार वर्ष हुए, सी ह्यांग ती नाम का एक चीनी सम्राट था। उसे अपनी प्रजा से एक अजीब नाराज़गी थी कि लोग इतना पढ़ते क्यों हैं, और जो लोग किताबें पढ़ नहीं सकते, वे उन्हें सुनते क्यों हैं? उसको विश्वास नहीं था कि अब तक जो पुस्तकें लिखी गईं हैं- वे चाहे इतिहास की हों या दर्शनशास्त्र की या फिर कथा-कहानियों की- उनमें उसका और उसके पूर्वजों का ही गुणगान किया गया है। कौन जाने ऐसे लेखक भी हों जिन्होंने सम्राट को बुरा-भला कहने की हिम्मत की हो!
सी ह्यांग ती का कहना था कि प्रजा को पढ़ने और उन बातों से क्या मतलब? उसे तो चाहिए कि कस कर मेहनत करे, चुपचाप राजा की आज्ञाओं का पालन करती जाए और कर चुकाती रहे। शांति तो बस ऐसे ही बनी रह सकती है।
फिर क्या था! उसने आदेश दिया कि सब पुस्तकें नष्ट कर दी जाएँ। उन दिनों पुस्तकें ऐसी नहीं थी जैसी आज होती हैं। तब छापेखाने तो थे नहीं, लकड़ी के टुकड़ों पर अक्षर खुदे रहते थे। ये ही पुस्तकें थीं। उन्हें छिपाकर रखना भी तो आसान नहीं था। सम्राट के आदमियों ने राज्य का चप्पा-चप्पा छान मारा। नगर-नगर और गाँव-गाँव घूमकर जो पुस्तक हाथ लगी, उसकी होली जला दी। यह बात तब की है जब चीन की बड़ी दीवार का निर्माण हो रहा था। ढेर सारी पुस्तकें जो कि बड़े-बड़े लट्ठों के रूप में थी- पत्थरों की जगह दीवार में चिन दी गईं। अगर किसी विद्वान ने अपनी पुस्तकें देने से इंकार किया तो उसे किताबों सहित बड़ी दीवार में दफ़ना दिया गया। ऐसा था पढ़ने वालों पर राजा का क्रोध!
कई वर्ष बीत गए सम्राट की मृत्यु हो गई। उसके मरने के कुछ वर्ष बाद ही, लगभग सभी पुस्तकें, जिनके बारे में सोचा जाता था कि नष्ट हो गई हैं, फिर से नए, चमकदार लकड़ी के कुंदों के रूप में प्रकट हो गईं। इन पुस्तकों में महान दार्शानिक कनफ्यूशियस की रचनाएँ भी थीं, जिन्हें दुनिया भर के लोग आज भी पढ़ते हैं।
किताबों को इस प्रकार नष्ट करने का यह एकमात्र उदाहरण नहीं है। छठी शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय उन्नति के शिखर पर था। उन दिनों प्रसिद्ध विद्वान एवं चीनी यात्री ह्वेन-त्सांग वहाँ अध्ययन करता था। एक रात सपने में उसने देखा कि विश्वविद्यालय का सुंदर भवन कहीं गायब हो गया है और वहाँ शिक्षकों और विद्यार्थियों के स्थान पर भैंसें बँधी हुई हैं। यह सपना लगभग सच ही हो गया, जब आक्रमणकारियों ने विश्वविद्यालय के विशाल पुस्तकालय के तीन विभागों को जलाकर राख कर दिया।
एक समय था जब प्राचीन नगर सिकंदरिया में एक बहुत बड़ा पुस्तकालय था। इसमें अनेक देशों से जमा पांडुलिपियाँ थीं। अनेक देशों से सैकड़ों लोग, जिनमें भारतीय भी थे, अध्ययन करने वहाँ जाते थे। यह अनमोल पुस्तकालय सातवीं शताब्दी में जानबूझकर जला दिया गया। इसे नष्ट करने वाले आक्रमणकारी की दलील यह थी कि अगर इन अनगिनत ग्रंथों में वह नहीं लिखा है जो उसके धर्म की पवित्र पुस्तक में लिखा है, तो उन्हें पढ़ने की कोई ज़रूरत नहीं; और अगर ये पुस्तकें वही कहती हैं जो उसके पवित्र ग्रंथ ने पहले ही कह रखा है तो उन पुस्तकों को रखने का कोई लाभ नहीं।
इस प्रकार कई बार विद्या और ज्ञान के शत्रुओं ने पुस्तकों को नष्ट किया किंतु वही किताबें, जिनके बारे में सोचा जाता था कि वे हमेशा के लिए बरबाद कर दी गईं हैं, फिर से अपने पुराने या नए रूपों में प्रकट होती रहीं। ठीक भी है पुस्तकें मनुष्य की चतुराई, अनुभव, ज्ञान, भावना, कल्पना और दूरदर्शिता, इन सबसे मिलकर बनती हैं। यही कारण है कि पुस्तकें नष्ट कर देने से मनुष्य में ये गुण समाप्त नहीं हो जाते। दूसरी शताब्दी में डेनिश पादरी बेन जोसफ अकीबा को उसकी पांडित्यपूर्ण पुस्तक के साथ जला दिया गया था। उसके अंतिम शब्द याद रखने योग्य हैं, “कागज़ ही जलता है, शब्द तो उड़ जाते हैं।”
ऐसे भी लोग हैं जिन्हें पुस्तकें प्राणों से भी प्यारी होती हैं। अपनी मनपसंद पुस्तकों के लिए वे बड़े से बड़ा खतरा झेल सकते हैं।
ऐसे भी लोग हैं जो अपनी प्रिय पुस्तक के खो जाने पर परेशान नहीं होते क्योंकि समूची पुस्तक उन्हें ज़बानी याद होती है।
पुराने ज़माने में, लिखे हुए को कंठस्थ कर लेने का लोगों का अनोखा ढंग था। यूनानी महाकवि होमर (जिसका काल ईसा से नौ सौ वर्ष पूर्व है) के महाकाव्य ‘इलियड’ तथा ‘ओडीसी’ पेशेवर गानेवालों की पीढ़ी-दर-पीढ़ी को कंठस्थ थे। इन दोनों महाकाव्यों में कुल मिलाकर अट्ठाईस हज़ार पंक्तियाँ हैं। कुछ चारण तो इससे चौगुना याद कर सकते थे।
भारत में सदा से कई भाषाएँ बोली जाती रही हैं किंतु पुराने ज़माने में संस्कृत का प्रयोग सारे भारत में होता था। भारत के कोने-कोने से कवियों और विद्वानों ने संस्कृत के ज़रिये ही भारतीय साहित्य का भंडार भरा। प्राचीन भारत का दर्शन तथा विज्ञान दूर-दूर के देशों तक फैला। हिमालय पर्वत और गहरे-गहरे सागरों को पार करके भारत की कहानियों का भंडार ‘कथा-सरितसागर’, ‘पंचतंत्र’ और ‘जातक’, दूर-दूर देशों तक पहुँचा।
यह भी सब जानते हैं कि बाइबिल के अनेक दृष्टांतों, यूनानवासी ईसप के किस्सों, जर्मनी के ग्रिम बंधुओं और डेनमार्क के हैंस एंडरसन की कथाओं के मूल भारत में ही हैं। साहित्य की दृष्टि से भारत का अतीत महान है, इसमें शक नहीं।
- मनोज दास (अनुवाद- बालकराम नागर)
अभ्यास
शब्दार्थ
अजीब - अनोखा, अद्भुत अनगिनत - जिसकी गिनती न हो सके नाराज़गी - गुस्सा, क्रोध दूरदर्शिता - आगे की सोचना कर - लगान, टैक्स ज़बानी - मौखिक पांडुलिपियाँ - पुस्तक की हस्तलिखित प्रति चारण - यशगान करने वाला समुदाय कृत्रिम - नकली, बनावटी अतीत - बीता हुआ समय जमा - इकट्ठा शक - संदेह
1. पाठ से
(क) सी ह्यांग ती के समय में पुस्तकें कैसे बनाई जाती थीं?
(ख) पाठ के आधार पर बताओ कि राजा को पुस्तकों से क्या खतरा था?
(ग) पुराने समय से ही अनेक व्यक्तियों ने पुस्तकों को नष्ट करने का प्रयास किया। पाठ में से कोई तीन उदाहरण ढूँढ़कर लिखो।
(घ) बार-बार नष्ट करने की कोशिशों के बाद भी किताबें समाप्त नहीं हुईं। क्यों?
2. तुम्हारी बात
(क) किताबों को सुरक्षित रखने के लिए तुम क्या करते हो?
(ख) पुराने समय में किताबें कुछ लोगों तक ही सीमित थीं। तुम्हारे विचार से किस चीज़ के आविष्कार से किताबें आम आदमी तक पहुँच सकीं?
3. सही शब्द भरो
(क) साहित्य की दृष्टि से भारत का …………….महान है। (अतीत/भूगोल)
(ख) पुस्तकालय के तीन विभागों को जलाकर ………….. कर दिया गया। (गर्म/राख)
(ग) उसे किताबों सहित ……………..में दफ़ना दिया गया। (ज़मीन/आकाश)
(घ) कागज़ ही जलता है, …………….तो उड़ जाते हैं। (शब्द/पांडुलिपियाँ)
4. पढ़ो, समझो और करो
इतिहास $-$ इतिहासकार
शिल्प $-$ मूर्ति $-$ गीत $-$ रचना $-$ संगीत $-$
5. दोस्ती किताबों से
(क) तुमने अब तक पाठ्यपुस्तकों के अतिरिक्त कौन-कौन सी पुस्तकें पढ़ी हैं? उनमें से कुछ के नाम लिखो।
(ख) क्या तुम किसी पुस्तकालय या पत्रिका के सदस्य हो? उसका नाम लिखो।
6. कहानी किताब की
मान लो कि तुम एक किताब हो। नीचे दी गई जगह में अपनी कहानी लिखो। मैं एक किताब हूँ।
पुराने समय से $…………………………………………………………………………$
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7. वाक्य विश्लेषण
किसी भी वाक्य के दो अंग होते हैं- उद्देश्य और विधेय। वाक्य का विश्लेषण करने में वाक्य के इन दोनों खंडों और अंगों को पहचानना होता है।
वाक्य- मेरा भाई मोहन कक्षा सात में हिंदी पढ़ रहा है।
उद्देश्य | विधेय | |||||
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मुख्य उद्देश्य | कर्ता का विशेषण | क्रिया | कर्म | कर्म का विशेषण | पूरक | विधेय विस्तारक |
मोहन | मेरा भाई | पढ़ रहा है | हिंदी | - | - | सात कक्षा में |
नीचे लिखे वाक्य का विश्लेषण करो।
मोहन के गुरू जी श्याम पट्ट पर प्रश्न लिख रहे हैं।
8. बातचीत
आगे ‘किताबे’’ नामक कविता दी गई है। उसे पढ़ो और उस पर आपस में बातचीत करो।
किताबें
किताबें
करती हैं बातें
बीते ज़मानों की
दुनिया की, इसानों की
आज की, कल की
एक एक पल की
खुशियों की, गमों की
फूलों की, बमों की
जीत की, हार की
प्यार की, मार की।
क्या तुम नहीं सुनोगे
इन किताबों की बाते?
किताबें, कुछ कहना चाहती हैं।
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।
किताबों में चिड़ियाँ चहचहाती हैं
किताबों में खेतियाँ लहलहाती हैं
किताबों में झरने गुनगुनाते हैं
परियों के किस्से सुनाते हैं
किताबों में रॉकिट का राज़ है
किताबों में साइंस की आवाज़ है
किताबों का कितना बड़ा संसार है
किताबों में ज्ञान की भरमार है।
क्या तुम इस संसार में
नहीं जाना चाहोगे?
किताबें, कुछ कहना चाहती हैं।
तुम्हरे पास रहना चाहती हैं।
- सफ़दर हाशमी