अध्याय 33 बारहवाँ दिन

युधिष्ठिर को जीवित पकड़ने की चेष्टा के विफल हो जाने पर अंत में यही निश्चय किया गया कि अर्जुन को युद्ध के लिए ललकारा जाए और लड़ते-लड़ते उसे युधिष्ठिर से दूर हटाकर ले जाया जाए। युद्ध का बारहवाँ दिन था। बहुत ही भयानक लड़ाई हो रही थी। आचार्य द्रोण ने युधिष्ठिर को जीवित पकड़ने की कई बार चेष्टा की पर असफल रहे। ‘भगदत्त के हाथी ने भीमसेन को मार दिया!’ यह शोर सुनकर युधिष्ठिर ने भी विश्वास कर लिया कि भीमसेन सचमुच ही मारा गया होगा। यह सोचकर उन्होंने अपने वीरों को आज्ञा दी कि वे भगदत्त पर हमला करें। इधर युधिष्ठिर द्वारा भेजी गई कुमुक आ पहुँची थी और वृद्ध भगदत्त को चारों तरफ़ से पांडव-वीरों ने घेर लिया था। उधर दूर अर्जुन संशप्तकों से लड़ रहा था।

अर्जुन के पहुँचते ही पांडवों की सेना में नया उत्साह आ गया। हाथी पर सवार भगदत्त ने अर्जुन और श्रीकृष्ण दोनों पर ही बाण बरसाने शुरू किए। भगदत्त ने एक तोमर अर्जुन पर चलाया। तोमर अर्जुन के मुकुट पर जा लगा। इससे अर्जुन को बड़ा क्रोध आया। उसने अपना मुकुट सँभालकर रख लिया और बोला- “भगदत्त अब इस संसार को अंतिम बार अच्छी तरह से देख लो।” यह कहते-कहते अर्जुन ने अपना गांडीव तान लिया। अर्जुन द्वारा छोड़े गए बाणों से भगदत्त का धनुष टूट गया। तरकश का भी यही हाल हुआ। अर्जुन ने भगदत्त के मर्म-स्थानों पर भी बाण चलाकर उन्हें छेद डाला। इसके बाद अर्जुन के तेज़ बाणों से भगदत्त की आँखों के ऊपर बँधी हुई रेशम की पट्टी कट गई, जो उसकी आँखों के ऊपर लटक आनेवाली चमड़ी को ऊपर उठाए रखती थी। इससे भगदत्त की आँखें बंद हो गईं। उसे कुछ भी सूझना बंद हो गया। वह अँधरे में मानो विलीन-सा हो गया। थोड़ी ही देर बाद एक और पैने बाण ने उसकी छाती भेद डाली। भगदत्त को गिरते हुए देखकर कौरवों की सेना मारे भय के तितर-बितर होने लगी। किंतु शकुनि के दो भाई वृषक और अचक तब भी विचलित न हुए और जमकर लड़ते रहे। उन दोनों वीरों ने अर्जुन पर आगे और पीछे से बाणों की वर्षा करके खूब परेशान किया। अर्जुन ने थोड़ी देर बाद उन दोनों के रथों को तहस-नहस कर दिया और उनकी सेनाओं पर भी भयानक बाण-वर्षा की। सिंह-शिशुओं के समान वे दोनों भाई अर्जुन के बाणों से घायल होकर गिर पड़े और मृत्यु को प्राप्त हुए।

अपने अनुपम वीर भाइयों के मारे जाने पर शकुनि के क्रोध और क्षोभ की सीमा न रही। उसने युद्ध शुरू कर दिया और उन सब उपायों से काम लिया, जिनमें उसे कुशलता प्राप्त थी। परंतु अर्जुन ने उसके एक-एक अस्त्र को अपने जवाबी अस्त्रों से काट डाला। अंत में अर्जुन के बाणों से शकुनि ऐसा आहत हुआ कि उसे युद्ध-क्षेत्र से हट जाना पड़ा।

इसके बाद तो पांडवों की सेना द्रोणाचार्य की सेना पर टूट पड़ी। असंख्य वीर खेत रहे। खून की नदियाँ-सी बहने लगीं। थोड़ी देर बाद सूर्य अस्त हुआ। अपनी सेना का यह हाल देखकर द्रोणाचार्य ने लड़ाई बंद कर दी। दोनों पक्षों की सेनाएँ अपने-अपने डेरों को चल दीं और इस प्रकार बारहवें दिन का युद्ध समाप्त हुआ।



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