अध्याय 31 सातवाँ, आठवाँ और नवाँ दिन

सातवें दिन का युद्ध केंद्रित न था, बल्कि कई मोर्चों पर व्याप्त था। प्रत्येक मोर्चे पर विख्यात वीरों में घमासान युद्ध होता रहा। एक मोर्चे पर अर्जुन के विरुद्ध स्वयं भीष्म डटे हुए थे। एक स्थान पर द्रोणाचार्य और विराटराज में भीषण युद्ध हो रहा था। एक अन्य मोर्चे पर शिखंडी और अश्वत्थामा में लड़ाई हो रही थी। एक स्थान पर धृष्टद्युम्न और दुर्योधन युद्धरत थे। एक ओर नकुल और सहदेव अपने मामा शल्य पर बाण बरसा रहे थे। दूसरी ओर अवंती के दोनों राजा युधामन्यु से लड़ते दिखाई दे रहे थे। एक मोर्चे पर दुर्योधन के चार भाइयों की अकेला भीमसेन खबर ले रहा था, तो दूसरे मोर्चे पर घटोत्कच और भगदत्त में भयानक द्वंद्व छिड़ा हुआ था। एक ओर मोर्चे पर अलंबुष और सात्यकि की टक्कर थी। युधिष्ठिर का श्रुतायु के साथ द्वंद्व हो रहा था, जबकि कृपाचार्य और चेकितान एक अन्य मोर्चे पर लड़ रहे थे। द्रोणाचार्य के साथ लड़ाई में विराट को हार खानी पड़ी। विराट कुमार उत्तर एवं श्वेत पहले ही दिन की लड़ाई में काम आ चुके थे। सातवें दिन के युद्ध में तीसरे कुमार शंख ने पिता के देखते-देखते प्राण त्याग दिए, परंतु यह युद्ध अधिक देर नहीं चला। सूरज अस्त होने लगा और युद्ध बंद हुआ।

आठवें दिन का युद्ध शुरू हुआ, तो पहले ही धावे में भीमसेन ने धृतराष्ट्र के आठ बेटों का वध कर दिया। एक ऐसी घटना हुई कि जिससे अर्जुन शोक-विह्लल हो उठा। उसका लाड़ला, साहसी और वीर बेटा इरावान, जो एक नागकन्या से पैदा हुआ था, उस दिन खेत रहा। इधर भीमसेन के पुत्र घटोत्कच ने जब देखा कि इरावान मारा गया, तो उसने इतने ज़ोर से गर्जना की कि जिससे सारी सेना थर्रा उठी। उसके बाद वह कौरव-सेना पर टूट पड़ा और घोर प्रलय मचाने लगा। युधिष्ठिर को लगा कि घटोत्कच पर कोई आफ़त आई है। उन्होंने तत्काल भीमसेन को घटनास्थल पर भेज दिया। भीमसेन के आ जाने पर तो युद्ध की भयानकता और भी अधिक बढ़ गई, परंतु जल्दी ही सूर्यास्त हो गया और युद्ध बंद हुआ।

नवें दिन के युद्ध में अभिमन्यु और अलंबुष में घोर संग्राम छिड़ गया। धनंजय के पुत्र ने पिता की ही भाँति रण-कौशल का परिचय दिया। पांडवों की सेना की पितामह ने उस दिन बड़ी दुर्गत की।

यहाँ तक कि अर्जुन और श्रीकृष्ण दोनों को ही बड़ी पीड़ा हुई। सैनिक बहुत पीड़ित हो रहे थे। थोड़ी देर में सूर्यास्त हुआ और उस दिन युद्ध बंद कर दिया गया।



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