अध्याय 29 पहला, दूसरा और तीसरा दिन

कौरवों की सेना के अग्रभाग पर प्राय: दुःशासन ही रहा करता था और पांडवों की सेना के आगे भीमसेन। बाप ने बेटे को मारा। बेटे ने पिता के प्राण लिए। भानजे ने मामा का वध किया। मामा ने भानजे का काम तमाम किया। युद्ध का यह दृश्य था। पहले दिन की लड़ाई में भीष्म ने पांडवों पर ऐसा हमला किया कि पांडव-सेना थर्रा उठी। युधिष्ठिर के मन में भय छा गया। दुर्योधन आनंद के कारण झूमता हुआ दिखाई दिया। पांडव घबराहट के मारे श्रीकृष्ण के पास गए। श्रीकृष्ण युधिष्ठिर और पांडव-सेना का धीरज बँधाने लगे।

पहले दिन की लड़ाई में पांडव-सेना की जो दुर्गति हुई थी, उससे सबक लेकर पांडव-सेना के नायक धृष्टद्युम्न ने दूसरे दिन बड़ी सतर्कता के साथ व्यूह-रचना की और सैनिकों का साहस बँधाया।

सारी कौरव-सेना में तीन ही ऐसे वीर थे, जो अर्जुन का मुकाबला कर सकते थे-भीष्म, द्रोण और कर्ण। सारे कौरव-वीरों को अपना प्रतिरोध करते हुए देखकर अर्जुन ने अपना गांडीव हाथ में लेकर इस कुशलता से युद्ध किया कि कौरव-सेना के सभी महारथी देखकर दंग रह गए। भीष्म ने अर्जुन पर ज़ोरों से हमला कर दिया। इस प्रकार अर्जुन और भीष्म के बीच बड़ी देर तक युद्ध होता रहा। फिर भी हार-जीत का कोई निर्णय न हो सका। एक ओर यह अद्भुत युद्ध हो रहा था, तो दूसरी ओर द्रुपद का पुत्र धृष्टद्युम्न, जो द्रोणाचार्य का जन्म से बैरी था, आचार्य के साथ युद्धरत था।

सात्यकि द्वारा छोड़े गए एक बाण ने भीष्म के सारथी को मार गिराया। सारथी के गिर जाने पर घोड़े हवा से बातें करते हुए अत्यंत वेग से भाग खड़े हुए। इससे कौरव-सेना में बड़ी तबाही मची। सब कौरव-वीर पश्चिम की ओर देख-देखकर यह मनाने लगे कि कब सूर्यास्त हो और युद्ध बंद हो, ताकि इस तबाही से मुक्ति मिले।

सूर्य अस्त हुआ। संध्या हुई और युद्ध बंद हुआ। पहले दिन की लड़ाई के बाद पांडवों में जो आतंक छाया हुआ था, वह दूसरे दिन के युद्ध का अंत होने के बाद कौरवों के मन पर छा गया। तीसरे दिन दोनों सेनाओं की व्यूह-रचना हो जाने के बाद दोनों पक्ष फिर से युद्ध में लग गए और एक-दूसरे पर हमला करने लगे। भीमसेन द्वारा चलाए एक बाण से दुर्योधन ज़ोर का धक्का खाकर बेहोश हो गया और रथ पर गिर पड़ा। यह देखकर उसके सारथी ने सोचा कि दुर्योधन को लड़ाई के मैदान से हटा लिया जाए, जिससे कौरव-सेना को दुर्योंधन के मूर्च्छित होने का पता न चले। इन्हीं विचारों से प्रेरित होकर सारथी जल्दी से रथ को युद्ध-भूमि से हटाकर छावनी की ओर ले गया, किंतु उसने जो सोचा था, हुआ उससे उलटा ही। अनुशासन के टूटने और सेना में खलबली मच जाने का कारण वह स्वयं ही बन गया। सैनिकों में भगदड़ मच गई।

इधर पांडवों की सेना में आनंद छाया हुआ था। दिन के पहले भाग में उन्होंने कौरव-सेना पर जिस प्रकार हमला करके उसे तितर-बितर कर दिया था, उन्हें इस बात की आशा न थी कि भीष्म इस बिखरी हुई सेना को फिर से इकट्ठा करके उन पर टूट पड़ेंगे। भीष्म ने ऐसा भयानक हमला किया कि पांडव-सेना के पाँव उखड़ गए। श्रीकृष्ण, अर्जुन और शिखंडी के प्रयत्नों के बावजूद सेना अनुशासन में न रह सकी। भीष्म के छोड़े गए कई बाण अर्जुन एवं श्रीकृष्ण के शरीर पर लग ही गए। इस पर श्रीकृष्ण को असीम क्रोध आ गया। उनसे रहा न गया। उन्होंने खुद भीष्म को मारने की ठानी। अर्जुन यह देखकर सन्न रह गया। उसने सोचा कि यह तो बड़ा अनर्थ हो जाएगा। वह रथ से उतरा और श्रीकृष्ण के पीछे भागा। अर्जुन के आग्रह पर श्रीकृष्ण वापस लौटकर फिर से अर्जुन का रथ हाँकने लगे। श्रीकृष्ण के इस कार्य से अर्जुन उत्तेजित हो उठा और कौरव-सेना पर वह वज्र के समान गिरा। शाम होते-होते कौरव-सेना बड़ी बुरी तरह से हार गई। थकी-हारी सेना मशालों की रोशनी में अपने शिविरों को लौट चली।



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