अध्याय 02 ग्लोब : अक्षांश एवं देशांतर
पिछले अध्याय में आप पढ़ चुके हैं कि हमारी पृथ्वी गोलाकार नहीं है। यह उत्तर एवं दक्षिण ध्रुवों पर थोड़ी चपटी तथा मध्य में थोड़ी उभरी हुई है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि यह कैसी दिखती है? इस संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए आप अपनी कक्षा में सावधानीपूर्वक ग्लोब को देखिए। ग्लोब पृथ्वी का लघु रूप में एक वास्तविक प्रतिरूप है (चित्र 2.1)।
चित्र 2.3 : ग्लोब
ग्लोब विभिन्न आकार एवं प्रकार के हो सकते हैं- बड़े ग्लोब, जो आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान नहीं ले जाए जा सकते; पॉकेट में रखने योग्य छोटे ग्लोब तथा गुब्बारे जैसे ग्लोब, जिनमें हवा भरी जा सकती है एवं आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाए जा सकते हैं। ग्लोब स्थिर नहीं होते हैं। इसे उसी प्रकार घुमाया जा सकता है, जैसे कुम्हार का पहिया या लट्टू घूमता है। ग्लोब पर देशों, महाद्वीपों तथा महासागरों को उनके सही आकार में दिखाया जाता है।
पृथ्वी के समान किसी गोले पर किसी बिंदु की स्थिति का वर्णन करना कठिन है। अब प्रश्न यह उठता है कि इस पर किसी स्थान की स्थिति कैसे बताई जा सकती है? इसके लिए हमें कुछ बिंदुओं एवं रेखाओं के संदर्भ की आवश्यकता होती है।
आओ कुछ करके सीखें एक बड़ा सा गोलाकार आलू, या गेंद लें। स्वेटर बुनने वाली सलाई को इसके अंदर घुसा दें। यह सलाई ग्लोब पर दर्शाए गए अक्ष के अनुरूप है। अब आप इस आलू या गेंद को उसके अक्ष पर बाएँ से दाएँ घुमा सकते हैं।
आप देखेंगे कि एक सुई ग्लोब में झुकी हुई अवस्था में स्थित होती है, जिसे अक्ष कहा जाता है। ग्लोब पर वे दो बिंदु जिनसे होकर सुई गुजरती है, उत्तर तथा दक्षिण ध्रुव हैं। ग्लोब को इस सुई के चारों ओर पृथ्वी की भाँति पश्चिम से पूर्व की ओर घुमाया जा सकता है। लेकिन याद रखें इन दोनों में एक अंतर है। पृथ्वी पर वास्तव में ऐसी कोई सुई नहीं होती है। यह अपने अक्ष पर चारों ओर घूमती है, जो एक काल्पनिक रेखा है।
एक अन्य काल्पनिक रेखा भी ग्लोब को दो बराबर भागों में बाँटती है। इसे विषुवत् वृत्त कहा जाता है। पृथ्वी के उत्तर में स्थित आधे भाग को उत्तरी गोलार्ध तथा दक्षिण वाले आधे भाग को दक्षिणी गोलार्ध कहा जाता है। ये दोनों बराबर के आधे भाग होते हैं। इस प्रकार, विषुवत् वृत्त पृथ्वी पर एक काल्पनिक वृत्त बनाती है एवं यह पृथ्वो पर विभिन्न स्थानों की स्थिति बताने का सबसे महत्त्वपूर्ण संदर्भ बिंदु है। विषुवत् वृत्त से ध्रुवों तक स्थित सभी समानांतर वृत्तों को अक्षांश ( समानांतर ) रेखाएँ कहा जाता है। अक्षांशों को अंश में मापा जाता है।
चित्र 2.3 : अक्षांश
विषुवत् वृत्त शून्य अंश अक्षांश को दर्शाती है। चूँकि, विषुवत् वृत्त से दोनों तरफ ध्रुवों के बीच की दूरी पृथ्वी के चारों ओर के वृत्त का एक चौथाई है, अत: इसका माप होगा 360 अंश का $1 / 4$, यानी 90 अंश। इस प्रकार 90 अंश उत्तरी अक्षांश उत्तर ध्रुव को दर्शाता है तथा 90 अंश दक्षिणी अक्षांश दक्षिण ध्रुव को।
इस प्रकार विषुवत् वृत्त के उत्तर की सभी समानांतर रेखाओं को उत्तरी अक्षांश कहा जाता है तथा विषुवत् वृत्त के दक्षिण स्थित सभी समानांतर रेखाओं को दक्षिणी अक्षांश कहा जाता है।
क्या आप जानते हैं? अपने स्थान से ध्रुव तारे का कोण मापकर आप अपने स्थान का अक्षांश जान सकते हैं।
इसलिए प्रत्येक अक्षांश के मान के साथ उसकी दिशा यानी उत्तर या दक्षिण को भी लिखा जाता है। सामान्यतः, इसे उ. या द. अक्षर से व्यक्त किया जाता है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में चंद्रपुर एवं ब्राजील (दक्षिण अमेरिका) में बेलो होरिज़ोंटे दोनों एक ही अक्षांश 20 अंश पर स्थित हैं। लेकिन चन्द्रुर विषुवत् वृत्त के 20 अंश उत्तर में एवं बेलो होरिजोंटे विषुवत् वृत्त के 20 अंश दक्षिण में स्थित है। इसलिए हम कहते हैं कि चंद्रपुर $20^{\circ}$ उ. अक्षांश पर तथा बेलो होरिजोंटे $20^{\circ}$ द. अक्षांश पर स्थित है। चित्र 2.2 से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे हम विषुवत् वृत्त से दूर जाते हैं अक्षांशों का आकार घटता जाता है।
चित्र 2.3 : महत्त्वपूर्ण अक्षांश एवं ताप कटिबंध
महत्त्वपूर्ण अक्षांश ( समानांतर) रेखाएँ
विषुवत् वृत्त $\left(0^{\circ}\right)$, उत्तर ध्रुव ( $90^{\circ}$ उ.) तथा दक्षिण ध्रुव ( $90^{\circ}$ द.) के अतिरिक्त चार महत्त्वपूर्ण अक्षांश (समानांतर) रेखाएँ और भी हैं। ये हैं-
1. उत्तरी गोलार्ध में कर्क रेखा $\left(231 / 2^{\circ}\right.$ उ. ),
2. दक्षिणी गोलार्ध में मकर रेखा ( $231 / 2^{\circ}$ द. ),
3. विषुवत् वृत्त के $66 \frac{1}{2^{\circ}}$ उत्तर में उत्तर ध्रुव वृत्त, 4. विषुवत् रेखा के $661 / 2^{\circ}$ दक्षिण में दक्षिण ध्रुव वृत्त।
चित्र 2.4 : (अ)
सीधी सतह पर टॉर्च का प्रकाश तेज़ तथा कम क्षेत्र पर फैलता है।
चित्र 2.4 : (ब)
तिरछी सतह पर टॉर्च का प्रकाश कम तेज़, परंतु अधिक क्षेत्र में फैलता है।
पृथ्वी के ताप कटिबंध
कर्क रेखा एवं मकर रेखा के बीच के सभी अक्षांशों पर सूर्य वर्ष में एक बार दोपहर में सिर के ठीक ऊपर होता है। इसलिए इस क्षेत्र में सबसे अधिक ऊष्मा प्राप्त होती है तथा इसे उष्ण कटिबंध कहा जाता है।
कर्क रेखा तथा मकर रेखा के बाद किसी भी अक्षांश पर दोपहर का सूर्य कभी भी सिर के ऊपर नहीं होता है। ध्रुव की तरफ सूर्य की किरणें तिरछी होती जाती हैं। इस प्रकार, उत्तरी गोलार्ध में कर्क रेखा एवं उत्तर ध्रुव वृत्त तथा दक्षिणी गोलार्ध में मकर रेखा एवं दक्षिण ध्रुव वृत्त के बीच वाले क्षेत्र का तापमान मध्यम रहता है। इसलिए इन्हें, शीतोष्ण कटिबंध कहा जाता है।
उत्तरी गोलार्ध में उत्तर ध्रुव वृत्त एवं उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिण ध्रुव वृत्त एवं दक्षिणी ध्रुव के बीच के क्षेत्र में ठंड बहुत होती है। क्योंकि, यहाँ सूर्य क्षितिज से ज्यादा ऊपर नहीं आ पाता है। इसलिए ये शीत कटिबंध कहलाते हैं।
देशांतर क्या हैं?
किसी स्थान की स्थिति को बताने के लिए उस स्थान के अक्षांश के अतिरिक्त कुछ और जानकारियों की आवश्यकता भी होती है। आप देख सकते हैं कि प्रशांत महासागर में स्थित टोंगा द्वीप एंव हिंद महासागर में स्थित मॉरीशस द्वीप एक ही अक्षांश ( $20^{\circ} 00^{\prime}$ द.) पर स्थित हैं। उनकी सही स्थिति जानने के लिए यह पता करना होगा कि उत्तर ध्रुव को दक्षिण ध्रुव से जोड़ने वाली संदर्भ रेखा से पूर्व या पश्चिम की ओर इन स्थानों की दूरी कितनी है? इन संदर्भ रेखाओं को देशांतरीय याम्योत्तर कहते हैं तथा उनके बीच की दूरी को देशांतर के अंशों में मापा जाता है। प्रत्येक अंश को मिनट में तथा मिनट को सेकेंड में विभाजित किया जाता है। ये अर्धवृत्त हैं तथा उनके बीच की दूरी ध्रुवों की तरफ बढ़ने पर घटती जाती है एवं ध्रुवों पर शून्य हो जाती है, जहाँ सभी देशांतरीय याम्योत्तर आपस में मिलती हैं।
चित्र 2.5 : देशांतर
आओ कुछ करके सीखें एक वृत्त खींचिए। मान लीजिए कि प्रमुख याम्योत्तर इसे दो बराबर भागों में बाँटती है। पूर्वी गोलार्ध एवं पश्चिमी गोलार्ध को रँगकर नामांकित कर दीजिए। उसी प्रकार एक दूसरा वृत्त खींचिए, जिसे विषुवत् वृत्त दो बराबर भागों में बाँटे। अब उत्तरी गोलार्ध एवं दक्षिणी गोलार्ध को रँग दीजिए।
अक्षांश (समानांतर) रेखाओं से भिन्न सभी देशांतरीय याम्योत्तरों की लंबाई समान होती है। इसलिए इन्हें सिर्फ मुख्य संख्याओं में व्यक्त करना कठिन था। तब सभी देशों ने निश्चय किया कि ग्रीनिच, जहाँ ब्रिटिश राजकीय वेधशाला स्थित है, से गुजरने वाली याम्योत्तर से पूर्व और पश्चिम की ओर गिनती शुरू की जाए। इस याम्योत्तर को प्रमुख याम्योत्तर कहते हैं। इसका मान $0^{\circ}$ देशांतर है तथा यहाँ से हम $180^{\circ}$ पूर्व या $180^{\circ}$ पश्चिम तक गणना करते हैं। प्रमुख याम्योत्तर तथा $180^{\circ}$ याम्योत्तर मिलकर पृथ्वी को दो समान भागों, पूर्वी गोलार्ध एवं पश्चिमी गोलार्ध में विभक्त करती है। इसलिए किसी स्थान के देशांतर के आगे पूर्व के लिए अक्षर पू. तथा पश्चिम के लिए अक्षर प. का उपयोग करते हैं। यह जानना रोचक होगा कि $180^{\circ}$ पूर्व और $180^{\circ}$ पश्चिम याम्योत्तर एक ही रेखा पर स्थित हैं।
चित्र 2.6: ग्रिड
अब ग्लोब पर अक्षांश (समानांतर) रेखाओं एवं देशांतरीय याम्योत्तरों के द्वारा बनी ग्रिड को देखो। अगर आपको किसी स्थान के अक्षांश एवं देशांतर की सही जानकारी हो तो ग्लोब पर आप उस स्थान का पता आसानी से लगा सकते हैं। उदाहरण के लिए, असम में धुबरी $26^{\circ}$ उ. अक्षांश एवं $90^{\circ}$ पू. देशांतर पर स्थित है। अब उस बिंदु को देखें जहाँ ये दोनों रेखाएँ एक दूसरे को काटती हैं। यह बिंदु धुबरी की सही स्थिति होगा।
इसको समझने के लिए कागज़ पर समान दूरी वाली क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर रेखाएँ खींचिए (चित्र 2.7)। ऊर्ध्वाधर रेखाओं को संख्या $1,2,3,4$ से तथा क्षैतिज रेखाओं को क, ख, ग, घ, ङ अक्षरों से व्यक्त करें। जिन बिंदुओं पर ये ऊर्ध्वाधर एवं क्षैतिज रेखाएँ एक दूसरे को काटती हैं, वहाँ कुछ छोटे वृत्त खींचिए। इन छोटे वृत्तों को अ, ब, स, द तथा ध नामों से व्यक्त कीजिए।
$\quad$ मान लीजिए कि ऊधर्धाधर रेखाएँ पूर्व देशांतरों एवं क्षैतिज रेखाएँ उत्तरी अक्षांशों को व्यक्त करती हैं।
अब आप देखेंगे कि वृत्त अ ख० उत्तरी अक्षांश तथा $1^{\circ}$ पूर्वी देशांतर पर स्थित है।
$\quad$ अन्य वृत्तों की स्थिति ज्ञात करें।
देशांतर और समय
समय को मापने का सबसे अच्छा साधन पृथ्वी, चंद्रमा एवं ग्रहों की गति है। सूर्योदय एवं सूर्यास्त प्रतिदिन होता है। अतः स्वाभाविक ही है कि यह पूरे विश्व में समय निर्धारण का सबसे अच्छा साधन है। स्थानीय समय का अनुमान सूर्य के द्वारा बनने वाली परछाई से लगाया जा सकता है, जो दोपहर में सबसे छोटी एवं सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सबसे लंबी होती है।
चित्र 2.8
ग्रीनिच पर स्थित प्रमुख याम्योत्तर पर सूर्य जिस समय आकाश के सबसे ऊँचे बिंदु पर होगा, उस समय याम्योत्तर पर स्थित सभी स्थानों पर दोपहर होगी।
चूँकि, पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर चक्कर लगाती है, अतः वे स्थान जो ग्रीनिच के पूर्व में हैं, उनका समय ग्रीनिच समय से आगे होगा तथा जो पश्चिम में हैं, उनका समय पीछे होगा (चित्र 2.8)। समय के अंतर की दर की गणना निम्नलिखित विधि से की जा सकती है। पृथ्वी लगभग 24 घंटे में अपने अक्ष पर $360^{\circ}$ घूम जाती है, अर्थात् वह 1 घंटे में $15^{\circ}$ एवं 4 मिनट में $1^{\circ}$ घूमती है। इस प्रकार जब ग्रीनिच में दोपहर के 12 बजते हैं, तब ग्रीनिच से $15^{\circ}$ पूर्व में समय होगा $15 \times 4=60$ मिनट अर्थात्, ग्रीनिच के समय से 1 घंटा आगे, अर्थात् वहाँ दोपहर का 1 बजा होगा। लेकिन ग्रीनिच से $15^{\circ}$ पश्चिम का समय ग्रीनिच समय से 1 घंटा पीछे होगा यानी, वहाँ सुबह के 11 बजे होंगे। इसी प्रकार जब ग्रीनिच पर दोपहर के 12 बजे होंगे उस समय $180^{\circ}$ पर मध्य रात्रि होगी।
किसी भी स्थान पर जब सूर्य आकाश में अपने उच्चतम बिंदु पर होता है, दोपहर में उस समय घड़ी में दिन के 12 बजते हैं। इस प्रकार, घड़ी के द्वारा दिखाया गया समय उस स्थान का स्थानीय समय होगा। आप देख सकते हैं कि दिए गए देशांतरीय याम्योत्तर पर सभी स्थानों का स्थानीय समय समान है।
हम मानक समय क्यों मानते हैं?
अलग-अलग याम्योत्तर पर स्थित स्थानों के स्थानीय समय में अंतर होता है। उदाहरण के लिए, बहुत से देशांतरों से होकर गुजरने वाली रेलगाड़ियों के लिए समय-सारणी तैयार करना कठिन होगा। भारत में गुजरात के द्वारका तथा असम के डिब्रूगढ़ के स्थानीय समय में लगभग 1 घंटा 45 मिनट का अंतर होगा। इसलिए यह आवश्यक है कि देश के मध्य भाग से होकर गुजरने वाली किसी याम्योत्तर के स्थानीय समय को देश का मानक समय माना जाए। इस याम्योत्तर रेखा के स्थानीय समय को पूरे देश का मानक समय माना जाता है। भारत में $82^{1} 2^{\circ}$ पू. ( $82^{\circ} 30^{\prime}$ पू.) को मानक याम्योत्तर माना गया है। इस याम्योत्तर के स्थानीय समय को पूरे देश का मानक समय माना जाता है। इसे भारतीय मानक समय के नाम से जाना जाता है।
चित्र 2.9: भारत का मानक याम्योत्तर
कबीर भोपाल के निकट एक छोटे से नगर में रहता है। वह अपने मित्र आलोक से कहता है कि वे लोग आज रात्रि में नहीं सो पाएँगे। भारत एवं इंग्लैंड के बीच एक क्रिकेट मैच लंदन में 2 बजे अपराह्न में शुरू होगा। अर्थात् भारत के समयानुसार मैच शाम के $7: 30$ बजे शुरू होगा तथा देर रात्रि में समाप्त होगा। क्या आप जानते हैं कि भारत एवं इंग्लैंड के बीच समय में क्या अंतर है?
भारत ग्रीनिच के पूर्व $82^{\circ} 30^{\prime}$ पू. में स्थित है तथा यहाँ का समय ग्रीनिच समय से 5 घंटा 30 मिनट आगे है। इसलिए जब लंदन में दोपहर के 2 बजे होंगे, तब भारत में शाम के $7: 30$ बजे होंगे।
कुछ देशों का देशांतरीय विस्तार अधिक होता है, जिसके कारण वहाँ एक से अधिक मानक समय अपनाए गए हैं। उदाहरण के लिए, रूस में 11 मानक समयों को अपनाया गया है। पृथ्वी को एक-एक घंटे वाले 24 समय क्षेत्रों में बाँटा गया है। इस प्रकार प्रत्येक समय-क्षेत्र $15^{\circ}$ देशांतर तक के क्षेत्र को घेरता है।
अभ्यास
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए।
(i) पृथ्वी का सही आकार क्या है?
(ii) ग्लोब क्या है?
(iii) कर्क रेखा का अक्षांशीय मान क्या है?
(iv) पृथ्वी के तीन ताप कटिबंध कौन-से हैं?
(v) अक्षांश एवं देशांतर रेखाएँ क्या हैं?
(vi) ऊष्मा की सबसे अधिक मात्रा उष्ण कटिबंध क्यों प्राप्त करते हैं?
(vii) जब भारत में शाम के 5:30 बजते हैं, तब लंदन में दोपहर के 12 क्यों बजते हैं?
2. सही उत्तर चिह्नित ( $\checkmark$ ) कीजिए।}
(i) प्रमुख याम्योत्तर का मान है-
क. $90^{\circ}$
ख. $0^{\circ}$
ग. $60^{\circ}$
(ii) शीत कटिबंध किसके नजदीक पाया जाता है?
क. ध्रुवों
ख. विषुवत् वृत्त
ग. कर्क रेखा
(iii) देशांतरों की कुल संख्या है-
क. 360
ख. 180
ग. 90
(iv) दक्षिण ध्रुव वृत्त स्थित है-
क. उत्तरी गोलार्ध में
ख. दक्षिणी गोलार्ध में
ग. पूर्वी गोलार्ध में
(v) ग्रिड किसका जाल है-
क. अक्षांशों (समानांतर) रेखाओं एवं देशांतरीय याम्योत्तरों का
ख. कर्क रेखा एवं मकर रेखा का
ग. उत्तर ध्रुव एवं दक्षिण ध्रुव का
3. खाली स्थान भरें।
(i) मकर रेखा ______________ पर स्थित है।
(ii) भारत का मानक याम्योत्तर ______________ है।
(iii) $0^{\circ}$ याम्योत्तर को ______________ के नाम से जाना जाता है।
(iv) देशांतरों के बीच की दूरी ______________ की तरफ घटती जाती है।
(v) उत्तर ध्रुव वृत्त ______________ गोलार्ध में स्थित है।
आओ कुछ करें 1. पृथ्वी के अक्ष, विषुवत् वृत्त, कर्क रेखा एवं मकर रेखा, उत्तर ध्रुव वृत्त तथा दक्षिण ध्रुव वृत्त को दर्शाते हुए एक चित्र बनाएँ।
आओ खेलें 1. कार्ड बोर्ड पर समान आकार (लगभग 3 से.मी. त्रिज्या वाले) के 6 वृत्त बनाकर उन्हें काट लें। उसके व्यासों (उ. द., पू. प. ) तथा $231 / 2^{\circ}$ कोणों को वृत्त के प्रत्येक भाग में चिह्नित करें जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। अब उ. एवं द. रेखा पर उन वृत्तों को एक-दूसरे के ऊपर रखकर उ. द. रेखा को सिल दें। अब 12 अर्ध वृत्त बनते हैं। मान लें कि एक अर्ध वृत्त ग्रीनिच याम्योत्तर (प्रमुख याम्योत्तर) जो $0^{\circ}$ को दर्शाता है। यहाँ से छठा अर्ध वृत्त $180^{\circ}$ याम्योत्तर होगा। दोनों तरफ $0^{\circ}$ तथा $180^{\circ}$ के बीच पाँच अर्ध वृत्त होंगे, जो $180^{\circ}$ की दूरी पर पूर्व एवं पश्चिम देशांतर हैं। ध्रुवों को दिखाने के लिए उ. द. रेखा के दोनों छोरों पर पिन लगा दें।
पूर्व-पश्चिम बिंदुओं को छूता हुआ एक रबरबैंड लगा दें, जो कि विषुवत् वृत्त को दर्शाएगा। पू. प. बिंदुओं के $231 / 2^{\circ}$ उत्तर एवं दक्षिण बिंदुओं पर दो रबरबैंड लगा दें, जो कटिबंधों को दर्शाएँगे।