अध्याय 08 गाँव, शहर और व्‍यापार

लोहार की दुकान पर प्रभाकर

प्रभाकर लोहारों को काम करते देख रहा था। एक छोटी-सी बेंच पर कुल्हाड़ी और हँसिया जैसे कुछ औज़ार बेचने के लिए रखे थे। दूसरी ओर भट्ठी जल रही थी। औज़ार बनाने के लिए दो लोग लोहे की एक छड़ को गरम कर उसे पीट रहे थे। प्रभाकर को ये सब बड़ा मज़ेदार लग रहा था।

लोहे के औज़ार और खेती

लोहे का प्रयोग आज एक आम बात है। लोहे की चीज़ें हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गई हैं। इस उपमहाद्वीप में लोहे का प्रयोग लगभग 3000 साल पहले शुरू हुआ। महापाषाण कब्रों में लोहे के औजजार और हथियार बड़ी संख्या में मिले हैं। इनके बारे में तुम अध्याय 4 में पढ़ चुके हो।

करीब 2500 वर्ष पहले लोहे के औजारों के बढ़ते उपयोग का प्रमाण मिलता है। इनमें जंगलों को साफ़ करने के लिए कुल्हाड़ियाँ और जुताई के लिए हलों के फाल शामिल हैं। अध्याय 5 में तुमने पढ़ा था कि लोहे के फाल के इस्तेमाल से कृषि उत्पादन बढ़ गया।

कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए उठाए गए अन्य कदम: सिंचाई

समृद्ध गाँवों के बिना राजाओं तथा उनके राज्यों का बने रहना मुश्किल था। जिस तरह कृषि के विकास में नए औजजार तथा रोपाई (अध्याय 5) महत्वपूर्ण कदम थे, उसी तरह सिंचाई भी काफी उपयोगी साबित हुई। इस समय सिंचाई के लिए नहरें, कुएँ, तालाब तथा कृत्रिम जलाशय बनाए गए।

औजजारों की सूची में इन चित्रों के नाम चुनो - हँसिया, कुल्हाड़ी और सँड़सी। लोहे की ऐसी पाँच चीजों की सूची बनाओ जिनका प्रयोग तुम रोज करते हो।

इस चार्ट में तुम्हें सिंचाई से आए परिवर्तन दिखाए गए हैं। खाली स्थानों में सही वाक्य भरो :

  • लोगों द्वारा परिश्रम किया गया।
  • किसानों को लाभ मिला, क्योंकि अब उत्पादन की अनिश्चितता घटी।
  • कर अदा करने के लिए किसानों को उत्पादन बढ़ाना था।
  • राजाओं ने सिंचाई की योजना बनाई और धन खर्च किया।

1. राजा को सेना, महल और किले बनवाने के लिए धन चाहिए।

2. वे किसानों से कर लेते हैं।

3. ________________________.

4. यह सिंचाई से ही संभव था।

5. ________________________.

6. ________________________.

7. कृषि उत्पादन बढ़ा।

8. राजस्व भी बढ़ा।

9. ________________________.

गाँवों में कौन रहते थे?

इस उपमहाद्वीप के दक्षिणी तथा उत्तरी हिस्सों के अधिकांश गाँवों में कम से कम तीन तरह के लोग रहते थे। तमिल क्षेत्र में बड़े भूस्वामियों को वेल्लला, साधारण हलवाहों को उणवार और भूमिहीन मज़दू, दास कडैसियार और अदिमई कहलाते थे।

देश के उत्तरी हिस्से में, गाँव का प्रधान व्यक्ति ग्राम-भोजक कहलाता था। अक्सर एक ही परिवार के लोग इस पद पर कई पीढ़ियों तक बने रहते थे। यानी कि यह पद आनुवंशिक था। ग्राम-भोजक के पद पर आमतौर पर गाँव का सबसे बड़ा भू-स्वामी होता था। साधारणतया इनकी ज़मीन पर इनके दास और मज़दूर काम करते थे। इसके अतिरिक्त प्रभावशाली होने के कारण प्रायः राजा भी कर वसूलने का काम इन्हें ही सौंप देते थे। ये न्यायाधीश का और कभी-कभी पुलिस का काम भी करते थे।

ग्राम-भोजकों के अलावा अन्य स्वतंत्र कृषक भी होते थे, जिन्हें गृहपति कहते थे। इनमें ज्यादातर छोटे किसान ही होते थे। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे स्त्री-पुरुष थे, जिनके पास अपनी ज़मीन नहीं होती थी। इनमें दास कर्मकार आते थे, जिन्हें दूसरों की ज़मीन पर काम करके अपनी जीविका चलानी पड़ती थी।

अधिकांश गाँवों में लोहार, कुम्हार, बढ़ई तथा बुनकर जैसे कुछ शिल्पकार भी होते थे।

प्राचीनतम तमिल रचनाएँ

तमिल की प्राचीनतम रचनाओं को संगम साहित्य कहते हैं। इनकी रचना करीब 2300 साल पहले की गई। इन्हें संगम इसलिए कहा जाता है क्योंकि मदुर (देखो मानचित्र 7, पृष्ठ 89) के कवियों के सम्मेलनों में इनका संकलन किया जाता था। गाँव में रहने वालों के जिन तमिल नामों का उल्लेख यहाँ किया गया है, वे संगम साहित्य में पाए जाते हैं।

सिक्के

पुरात्व्ववदों को इस युग के हजारों सिक्के मिले हैं। सबसे पुराने आहत सिक्के थे, जो करीब 500 साल चले। इसका चित्र नीचे दिया गया है। चाँदी या ताँबे के सिक्कों पर विभिन्न आकृतियों को आहत कर बनाए जाने के कारण इन्हें आहत सिक्का कहा जाता था।

आहत सिक्के

आहत सिक्के सामान्यतः आयताकार और कभीकभी वर्गाकार या गोल होते थे। ये या तो धातु की चादर को काटकर या धातु के चपटे गोलिकाओं से बनाये जाते थे। इन सिक्कों पर कुछ लिखा हुआ नहीं था, बल्कि इन पर कुछ चिन्ह ठप्पे से बनाये जाते थे। इसीलिए ये आहत सिक्के कहलाए। ये सिक्के उपमहाद्वीप के लगभग अधिकांश हिस्सों में पाए जाते हैं और ईसा की आरंभिक सदियों तक ये प्रचलन में रहे।

विनिमय के अन्य साधन

संगम साहित्य की इस छोटी सी कविता को पढ़ो।
खेतों के सफ़ेद धान गाड़ियों पर लादे
जा रहे हैं
नमक के लिए,
लंबे-लंबे रास्ते
चाँदनी सी सफ़ेद रेत पर
परिवार को समेटे
कहीं पीछे छूट न जाएँ।
शहरों से नमक के सौदागरों के
यूँ चले जाने से सिर्फ़ सन्नाटा रह जाता है।
समुद्र के किनारे नमक का बहुत ज्यादा उत्पादन होता था।

व्यापारी किस चीज़ से इसका विनिमय करते हैं?

वे किस तरह यात्रा कर रहे हैं?

नगर : अनेक गतिविधियों के केंद्र

अक्सर नगर कई कारणों से महत्वपूर्ण हो जाते थे। उदाहरण के लिए मथुरा (मानचित्र 7, पृष्ठ 89) को देखो।

यह 2500 साल से भी .ज्यादा समय से एक महत्वपूर्ण नगर रहा है क्योंकि यह यातायात और व्यापार के दो मुख्य रास्तों पर स्थित था। इनमें से एक रास्ता उत्तर-पश्चिम से पूरब की ओर, दूसरा उत्तर से दक्षिण की ओर जाने वाला था। शहर के चारों ओर किलेबंदी थी, इसमें अनेक मंदिर थे। आस-पास के किसान तथा पशुपालक शहर में रहने वालों के लिए भोजन जुटाते थे। मथुरा बेहतरीन मूर्तियाँ बनाने का केंद्र था।

लगभग 2000 साल पहले मथुरा कुषाणों की दूसरी राजधानी बनी। इसके बारे में तुम आगे पढ़ोगे। मथुरा एक धार्मिक केंद्र भी रहा है। यहाँ बौद्ध विहार और जैन मंदिर हैं। यह कृष्ण भक्ति का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।

मथुरा में प्रस्तर-खंडों तथा मूर्तियों पर अनेक अभिलेख मिले हैं। आमतौर पर ये संक्षिप्त अभिलेख हैं, जो स्त्रियों तथा पुरुषों द्वारा मठों या मंदिरों को दिए जाने वाले दान का उल्लेख करते हैं। प्रायः शहर के राजा, रानी, अधिकारी, व्यापारी तथा शिल्पकार इस प्रकार के दान करते थे। उदाहरण के लिए मथुरा के अभिलेख में सुनारों, लोहारों, बुनकरों, टोकरी बुनने वालों, माला बनाने वालों और इत्र बनाने वालों के उल्लेख मिलते हैं।

मथुरा के लोगों के व्यवसायों की एक सूची बनाओ। एक ऐसे व्यवसाय का नाम बताओ जो हड़प्पा में नहीं था।

शिल्प तथा शिल्पकार

पुरास्थलों से शिल्पों के नमूने मिले हैं। इनमें मिट्टी के बहुत ही पतले और सुंदर बर्तन मिले हैं, जिन्हें उत्तरी काले चमकीले पात्र कहा जाता है क्योंकि ये ज्यादातर उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में मिले हैं।

ध्यान रहे कि अन्य दूसरे शिल्पों के अवशेष नहीं बचे होंगे। जैसे कि विभिन्न ग्रंथों से हमें पता चलता है कि कपड़ों का उत्पादन बहुत महत्वपूर्ण था। उत्तर में वाराणसी और दक्षिण में मदुर इसके प्रसिद्ध केंद्र थे। यहाँ स्त्री-पुरुष दोनों काम करते थे।

अनेक शिल्पकार तथा व्यापारी अपने-अपने संघ बनाने लगे थे, जिन्हें श्रेणी कहते थे। शिल्पकारों की श्रेणियों का काम प्रशिक्षण देना, कच्चा माल उपलब्ध कराना तथा तैयार माल का वितरण करना था। जबकि व्यापारियों की श्रेणियाँ व्यापार का संचालन करती थीं। श्रेणियाँ बैंकों के रूप में काम करती थीं, जहाँ लोग पैसे जमा रखते थे। इस धन का निवेश लाभ के लिए किया जाता था। उससे मिले लाभ का कुछ हिस्सा जमा करने वाले को लौटा दिया जाता था या फिर मठ आदि धार्मिक संस्थानों को दिया जाता था।

उत्तरी काले चमके पात्र (NBPW)

ये एक कठोर, चाक निर्मित, धातु की तरह दिखने वाले तथा चमकदार काली सतह वाले पात्र हैं। इसे बनाने के लिए कुम्हार मिट्टी के बर्तनों को भट्टों पर उच्च तापमान पर रखते थे जिसके परिणामस्वरूप इन बर्तनों की बाहरी सतह काली हो जाती थी। इन पर एक पतली काली लेप भी लगायी जाती थी जो इस बर्तन को शीशे जैसी चमक प्रदान करता था।

सूत कातने और बुनने के नियम

ये नियम अर्थशास्त्र के हैं। अध्याय 7 में अर्थशास्त्र का उल्लेख किया गया है। इसमें वर्णन किया गया है कि किस प्रकार एक विशेष पदाधिकारी की देखरेख में कारखानों में सूत की कताई और बुनाई की जाती थी।

ऊन, पेड़ों की छाल, कपास, पटुआ तथा सन को तैयार करने के काम में विधवाओं, सक्षम-अक्षम महिलाओं, भिक्खुणियों, वृद्धा वेश्याओं, राजा की अवकाशप्राप्त दासियों, सेविकाओं और अवकाशप्राप्त देवदासियों को लगाया जा सकता है।

इन्हें इनके काम के और गुणवत्ता के अनुसार पारिश्रमिक देना चाहिए। जिन महिलाओं को बाहर निकलने की अनुमति नहीं है, वे अपनी दासियों को भेजकर कच्चे माल को मंगवा सकती हैं और फिर तैयार माल उन्हें भिजवा सकती हैं।

वे औरतें, जो कारखाने तक जा सकती हैं, उन्हें अपना माल कारखाने तक तड़के ले जाना पड़ता था, जहाँ उन्हें पारिश्रमिक मिलता था। इस समय माल को अच्छी तरह जाँचने के लिए रोशनी रहती है। अगर निरीक्षक उस औरत की तरफ़ देखता है या इधर-उधर की बातें करता है, तो उसे सजा मिलनी चाहिए।

अगर औरत ने अपना काम पूरा नहीं किया, तो उसे जुर्माना देना होगा, इसके लिए उसका अंगूठा भी काटा जा सकता है।

उन महिलाओं की सूची बनाओ जिन्हें निरीक्षक नियुक्त कर सकता था।

क्या काम करने के दौरान महिलाओं को मुश्किलें झेलनी पड़ती थीं?

अभिलेखित मिट्टी के बर्तन। कई बर्तनों पर ब्राह्मी लिपि में अभिलेख मिले हैं। प्रारंभ में तमिल भाषा के लिए इसी लिपि का प्रयोग किया जाता था। इसीलिए इन्हें तमिल ब्राही अभिलेख भी कहा जाता है।

सूक्ष्म निरीक्षण : अरिकामेडु

मानचित्र 7 (पृष्ठ 89) में अरिकामेडु (पुदुच्चेरी में) ढूँढ़ो। लगभग 2200 से 1900 साल पहले अरिकामेडु एक पत्तन था, यहाँ दूर-दूर से आए जहाजोों से सामान उतारे जाते थे। यहाँ ईंटों से बना एक ढाँचा मिला है जो संभवतः गोदाम रहा हो। यहाँ भूमध्य-सागरीय क्षेत्र के एंफोरा जैसे पात्र मिले हैं। इनमें शराब या तेल जैसे तरल पदार्थ रखे जा सकते थे। इनमें दोनों तरफ़ से पकड़ने के लिए हत्थे लगे हैं। साथ ही यहाँ ‘एरेटाइन’ जैसे मुहर लगे लाल-चमकदार बर्तन भी मिले हैं। इन्हें इटली के एक शहर के नाम पर ‘एरेटाइन’ पात्र के नाम से जाना जाता है। इसे मुहर लगे साँचे पर गीली चिकनी मिट्टी को दबा कर बनाया जाता था।

कुछ ऐसे बर्तन भी मिले हैं, जिनका डिजाइन तो रोम का था, किन्तु वे यहीं बनाए जाते थे। यहाँ रोमन लैंप, शीशे के बर्तन तथा रत्न भी मिले हैं।

साथ ही छोटे-छोटे कुण्ड मिले हैं, जो संभवतः कपड़े की रंगाई के पात्र रहे होंगे। यहाँ पर शीशे और अर्ध-बहुमूल्य पत्थरों से मनके बनाने के पर्याप्त साक्ष्य मिले हैं।

रोम के साथ संबंध दर्शाने वाले साक्ष्य की सूची बनाओ।

एक यूनानी नाविक द्वारा दिया गया विवरण

बेरिगाज़ा (भरूच का यूनानी नाम) की कहानी

बेरिगाजा की संकरी खाड़ी में समुद्र से आने वालों के लिए नाव चला पाना बहुत मुश्किल होता है।

राजा के द्वारा नियुक्त कुशल और अनुभवी स्थानीय मछुआरे ही यहाँ जहाज ला सकते थे। बेरिगाजा में शराब, ताँबा, टिन, सीसा, मूँगा, पुखराज, कपड़े, सोने और चाँदी के सिक्कों का आयात होता था। हिमालय की जड़ी-बूटियाँ, हाथी-दाँत, गोमेद, कार्नीलियन, सूती कपड़ा, रेशम तथा इत्र यहाँ से निर्यात किए जाते थे।

राजा के लिए व्यापारी विशेष उपहार लाते थे। इनमें चाँदी के बर्तन, गायक-किशोर, सुंदर औरतें, अच्छी शराब तथा उत्कृष्ट महीन कपड़े शामिल थे।

बेरिगाजा से आयात और निर्यात होने वाली चीजों की सूची बनाओ।

दो ऐसी चीजें बताओ, जिनका उपयोग हड़प्पा युग में नहीं होता था।

व्यापार और व्यापारी

तुमने उत्तरी काले पॉलिश वाले बर्तनों के बारे में पढ़ा है। ये खूबसूरत बर्तन, खास तौर से इनकी कटोरियाँ तथा थालियाँ, इस उपमहाद्वीप के अनेक पुरास्थलों से मिले हैं। सवाल उठता है कि इन जगहों पर ये बर्तन कैसे पहुँचे होंगे? ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि जहाँ ये बनते थे, वहाँ से व्यापारी इन्हें ले जाकर अलग-अलग जगहों पर बेचते थे।

दक्षिण भारत सोना, मसाले, खास तौर पर काली मिर्च तथा कीमती पत्थरों के लिए प्रसिद्ध था। काली मिर्च की रोमन साम्राज्य में इतनी माँग थी कि इसे ‘काले सोने’ के नाम से बुलाते थे। व्यापारी इन सामानों को समुद्री जहाजों और सड़कों के रास्ते रोम पहुँचाते थे। दक्षिण भारत में ऐसे अनेक रोमन सोने के सिक्के मिले हैं। इससे यह अंदाजा लगाया जाता है कि उन दिनों रोम के साथ बहुत अच्छा व्यापार चल रहा था।

क्या तुम बता सकती हो कि ये सिक्के भारत कैसे और क्यों पहुँचे होंगे?

व्यापार से जुड़ी एक कविता

व्यापार के प्रमाण हमें संगम कविताओं में भी मिलते हैं।

नीचे लिखी कविता में पूर्वी समुद्र तट पर स्थित पुहार पत्तन पर लाए जाने वाले माल का वर्णन मिलता है। “समुद्री जहाजों पर लाए गए तेजज तर्रार घोड़े,

गाड़ियों पर काली मिर्च की गठरियाँ,

हिमालय से मिले रत्न और सोना

दक्षिण की पहाड़ियों से चंदन की लकड़ियाँ

दक्षिणी-सागर के मोती और

पूर्वी-सागर के मूंगे

गंगा और कावेरी की फ़सलें

श्रीलंका से आए खाद्यान्न,

म्यांमार के बने मिट्टी के बर्तन और दुर्लभ कीमती आयाता"

कविता में उल्लिखित चीजों की एक सूची बनाओ। क्या तुम बता सकते हो कि इन चीजजों का उपयोग किसलिए किया जाता होगा?

व्यापारियों ने कई समुद्री रास्ते खोज निकाले। इनमें से कुछ समुद्र के किनारे चलते थे कुछ अरब सागर और बंगाल की खाड़ी पार करते थे। नाविक मानसूनी हवा का फ़ायदा उठाकर अपनी यात्रा जल्दी पूरी कर लेते थे। वे अफ़्रीका या अरब के पूर्वी तट से इस उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट पर पहुँचना चाहते थे तो दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के साथ चलना पसंद करते थे। इन लंबी यात्रओं के लिए मजजबूत जहाजों का निर्माण किया जाता था।

समुद्र तटों से लगे राज्य

इस उपमहाद्वीप के दक्षिणी भाग में बड़ा तटीय प्रदेश है। इनमें बहुत-से पहाड़, पठार और नदी के मैदान हैं। नदियों के मैदानी इलाकों में कावेरी का मैदान सबसे उपजाऊ है। मैदानी इलाकों तथा तटीय इलाकों के सरदारों और राजाओं के पास धीरे-धीरे काफी सम्पत्ति और शक्ति हो गई। संगम कविताओं में मुवेन्दार की चर्चा मिलती है। यह एक तमिल शब्द है, जिसका अर्थ तीन मुखिया है। इसका प्रयोग तीन शासक परिवारों के मुखियाओं के लिए किया गया है। ये थे-चोल, चेर तथा पांड्य, (मानचित्र 7, पृष्ठ 89) जो करीब 2300 साल पहले दक्षिण भारत में काफी शक्तिशाली माने जाते थे।

इन तीनों मुखियाओं के अपने दो-दो सत्ता केंद्र थे। इनमें से एक तटीय हिस्से में और दूसरा अंदरूनी हिस्से में था। इस तरह छह केंद्रों में से दो बहुत महत्वपूर्ण थे। एक चोलों का पत्तन पुहार या कावेरीपट्टिनम, दूसरा पांड्यों की राजधानी मदुरै।

ये मुखिया लोगों से नियमित कर के बजाय उपहारों की माँग करते थे। कभी-कभी ये सैनिक अभियानों पर भी निकल पड़ते थे और आस-पास के इलाकों से शुल्क वसूल कर लाते थे। इनमें से कुछ धन वे अपने पास रख लेते थे, बाकी अपने समर्थकों, नाते-रिश्तेदारों, सिपाहियों तथा कवियों के बीच बाँट देते थे। अनेक संगम कवियों ने उन मुखियाओं की प्रशंसा में कविताएँ लिखी हैं जो उन्हें कीमती जवाहरात, सोने, घोड़े, हाथी, रथ या सुंदर कपड़े दिया करते थे।

इसके लगभग 200 वर्षों के बाद पश्चिम भारत (मानचित्र 7, पृष्ठ 89) में सातवाहन नामक राजवंश का प्रभाव बढ़ गया। सातवाहनों का सबसे प्रमुख राजा गौतमी पुत्र श्री सातकर्णी था। उसके बारे में हमें उसकी माँ, गौतमी बलश्री द्वारा दान किए एक अभिलेख से पता चलता है। वह और अन्य सभी सातवाहन शासक दक्षिणापथ के स्वामी कहे जाते थे। दक्षिणापथ का शाब्दिक अर्थ दक्षिण की ओर जाने वाला रास्ता होता है। पूरे दक्षिणी क्षेत्र के लिए भी यही नाम प्रचलित था। श्री सातकर्णी ने पूर्वी, पश्चिमी तथा दक्षिणी तटों पर अपनी सेनाएँ भेजीं।

क्या तुम बता सकती हो कि श्री सातकर्णी तटों पर नियंत्रण क्यों करना चाहता था?

रेशम मार्ग और कुषाण

कुछ शासक इसके बड़े-बड़े हिस्सों पर अपना नियंत्रण करना चाहते थे क्योंकि इस रास्ते पर यात्रा कर रहे व्यापारियों से उन्हें कर, शुल्क तथा तोहफ़ों के ज़रिए लाभ मिलता था। इसके बदले, ये शासक इन व्यापारियों को अपने राज्य से गुजरते वक्त लुटोरों के आक्रमणों से सुरक्षा देते थे।

सिल्क रूट पर नियंत्रण रखने वाले शासकों में सबसे प्रसिद्ध कुषाण थे। करीब 2000 साल पहले मध्य-एशिया तथा पश्चिमोत्तर भारत पर इनका शासन था। पेशावर और मथुरा इनके दो मुख्य शक्तिशाली केंद्र थे। तक्षशिला भी इनके ही राज्य का हिस्सा था। इनके शासनकाल में ही सिल्क रूट की एक शाखा मध्य-एशिया से होकर सिंधु नदी के मुहाने के पत्तनों तक जाती थी। फिर यहाँ से जहाजों द्वारा रेशम, पश्चिम की ओर रोमन साम्राज्य तक पहुँचता था।

कल्पना करो

तुम्हारे पास कोई पाण्डुलिपि है, जिसे एक चीनी तीर्थयात्री अपने साथ ले जाना चाहता है। उसके साथ अपनी बातचीत का वर्णन करो।

उपयोगी शब्द

लोहा
सिंचाई संगम
पत्तन
श्रेणी
व्यापारी
रेशम मार्ग

आओ याद करें

1. खाली जगहों को भरो

(क) तमिल में बड़े भूस्वामी को _____________ कहते थे।

(ख) ग्राम-भोजकों की जमीन पर प्रायः _______________ द्वारा खेती की जाती थी।

(ग) तमिल में हलवाहे को __________________ कहते थे।

(घ) अधिकांश गृहपति ________________ भूस्वामी होते थे।

2. ग्राम-भोजकों के काम बताओ। वे शक्तिशाली क्यों थे?

3. गाँवों तथा शहरों दोनों में रहने वाले शिल्पकारों की सूची बनाओ।

4. व्यापार तथा व्यापारिक रास्तों के बारे में जानने के लिए इतिहासकार किन-किन साक्ष्यों का उपयोग करते हैं?

5. सही जवाब ढूँढ़ो

(क) आहत सिक्के

  • चाँदी
  • सोना
  • टिन
  • हाथी दाँत के बने होते थे।

(ख) मथुरा महत्वपूर्ण

  • गाँव
  • पत्तन
  • धार्मिक केंद्र
  • जंगल क्षेत्र था।

(ग) श्रेणी

  • शासकों
  • शिल्पकारों
  • कृषकों
  • पशुपालकों का संघ होता था।

आओ चर्चा करें

6. पृष्ठ 75 पर दिखाए गए लोहे के औज़ारों में कौन खेती के लिए महत्वपूर्ण होंगे? अन्य औज़ार किस काम में आते होंगे?

7. अपने शहर की जल निकास व्यवस्था की तुलना तुम उन शहरों की व्यवस्था से करो, जिनके बारे में तुमने पढ़ा है। इनमें तुम्हें क्या-क्या समानताएँ और अंतर दिखाई दिए?

आओ करके देखें

8. अगर तुमने किसी शिल्पकार को काम करते हुए देखा है तो कुछ वाक्यों में उसका वर्णन करो (संकेत: उन्हें कच्चा माल कहाँ से मिलता है, किस तरह के औजजारों का प्रयोग करते हैं, तैयार माल का क्या होता है, आदि)

9. अपने शहर या गाँव के लोगों के कार्यों की एक सूची बनाओ। मथुरा में किए जाने वाले कार्यों से ये कितने समान और कितने भिन्न हैं?

10. तुम बाजार से क्या-क्या सामान खरीदती हो उनकी एक सूची बनाओ। बताओ कि तुम जिस शहर या गाँव में रहती हो, वहाँ इनमें से कौनकौन सी चीज़ें बनी थीं और किन चीज़ों को व्यापारी बाहर से लाए थे?

कुछ महत्वपर्ण तिथियाँ

  • उपमहाद्वीप में लोहे के प्रयोग की शुरुआत (करीब 3000 साल पहले)

  • लोहे के प्रयोग में बढ़ोतरी, नगर, आहत सिक्के (करीब 2500 साल पहले)

  • संगम साहित्य की रचना की शुरुआत (करीब 2300 साल पहले)

  • अरिकामेडु का पत्तन (करीब 2200 तथा 1900 साल पहले)

  • रेशम बनाने की कला की खोज (लगभग 7000 साल पहले)

  • चोल, चेर तथा पांड्य (लगभग 2300 साल पूर्व)

  • रोमन-साम्राज्य में रेशम की बढ़ती मांग (लगभग 2000 साल पहले)

  • कुषाण शासक कनिष्क (लगभग 1900 साल पहले)

  • फा-शिएन का भारत आगमन (लगभग 1600 वर्ष पहले)

  • श्‍वैन त्सांग की भारत यात्रा, अप्पार की शिव स्तुति की रचना (लगभग 1400 साल पहले)



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