अध्याय 05 राज्‍य, राजा और एक प्राचीन गणराज्‍य

चुनाव का दिन

जब शंकरन उठा तो उसने देखा कि उसके नाना-नानी वोट डालने जा रहे थे। दरअसल वे चुनाव केंद्र पर सबसे पहले पहुँचना चाहते थे। शंकरन जानना चाहता था कि आखिर वे इतने उत्साहित क्यों थे। उसके नानाजी ने उसे जल्दी में समझाने की कोशिश की और कहा, “आज हम अपने शासकों का चुनाव करने जा रहे हैं।”

कुछ लोग शासक कैसे बने?

लगभग पचास वर्षों से हम अपने शासकों का चुनाव मतदान के जरिए करते आ रहे हैं। लेकिन बहुत पहले लोग शासक वैसे बनते थे? करीब 3000 साल पहले कुछ लोग बड़े-बड़े यज्ञों को आयोजित कर राजा के रूप में प्रतिष्ठित हो गए।

अश्वमेध यज्ञ एक ऐसा ही आयोजन था। इसमें एक घोड़े को राजा के लोगों की देखेख में स्वतंत्र विचरण के लिए छोड़ दिया जाता था। इस घोड़े को किसी दूसरे राजा ने रोका तो उसे वहाँ अश्वमेध यज्ञ करने वाले राजा से लड़ाई करनी पड़ती थी। अगर उन्होंने घोड़े को जाने दिया तो इसका मतलब यह होता था कि अश्वमेध यज्ञ करने वाला राजा उनसे जज्यादा शक्तिशाली था। इसके बाद उन राजाओं को यज्म में आमंत्रित किया जाता था। यह यज्ञ विशिष्ट पुरोहितों द्वारा सम्पन्न किया जाता था। इसके लिए उन्हें उपहारों से सम्मानित किया जाता था। अश्वमेध यज़ करने वाला राजा बहुत शक्तिशाली माना जाता था। यज़ में आमंग्रित सभी राजा उसके लिए उपहार लाते थे।

इन सभी आयोजनों में राजा का मुख्य स्थान होता था। उसे राजसिंहासन या बाघ की खाल के एक विशेष आसन पर बिठाया जाता था। युद्ध क्षेत्र में राजा का सारथी ही उसका सहचर होता था। यज़ के अवसर पर वह राजा की विजयों तथा अन्य गुणों का गान करता था। राजा के सगे-संबंधी खासकर उसकी रानियों तथा पुत्रों को भी कई छोटे-छोटे अनुष्ठान करने होते थे। अन्य सारे आमंत्रित राजाओं का काम सिर्फ़ बैठकर यज्ञ की पूरी प्रक्रिया को देखना भर था। राजा के ऊपर पुरोहित पवित्र जल के छिड़काव के साथ-साथ अन्य कई अनुष्ठान करता था। विश् अथवा वैश्य जैसे सामान्य लोग उपहार लाते थे। जिन्हें पुरोहित शूद्र मानते थे उन्हें कई अनुष्ठानों में शामिल नहीं किया जाता था।

इस यज्ञ में उपस्थित होने वालों की एक सूची बनाओ। पेशे के आधार पर वहाँ कौन-कौन से वर्ग शामिल थे?

वर्ण

उस समय चार सामाजिक वर्ग थे : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र। ब्राह्मणों का काम वेदों का अध्ययन-अध्यापन और यज्ञ करना था जिनके लिए उन्हें उपहार मिलता था। क्षत्रियों का काम युद्ध करना और लोगों की रक्षा करना था। वैश्यों के काम खेती, पशुपालन तथा व्यापार थे। शूद्रों का काम अन्य तीनों वर्गों की सेवा करना था।

चित्रित धूसर पात्र। इस तरह के पात्रों में जज्यादातर थालियाँ और कटोरियाँ ही मिली हैं। ये पात्र बहुत ही पतली सतह के सुंदर और चिकने हैं। शायद इसका प्रयोग खास मौकों पर, महत्वपूर्ण लोगों को भोजन परोसने के लिए किया जाता था।

जनपद

महायज्ञों को करने वाले राजा अब जन के राजा न होकर जनपदों के राजा माने जाने लगे। जनपद का शाब्दिक अर्थ जन के बसने की जगह होता है। कुछ महत्वपूर्ण जनपद मानचित्र 4 (पृष्ठ 45) में दिखाए गए हैं।

पुरातत्त्वविदों ने इन जनपदों की कई बस्तियों की खुदाई की है। दिल्ली में पुराना किला, उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हस्तिनापुर और एटा के पास अतरंजीखेड़ा इनमें प्रमुख हैं। खुदाई से पता चला है कि लोग झोपड़ियों में रहते थे और मवेशियों तथा अन्य जानवरों को पालते थे। वे चावल, गेहूँ, धान, जौ, दालें, गन्ना, तिल तथा सरसों जैसी फ़सलें उगाते थे।

क्या इस सूची में तुम्हें किसी ऐसी फ़सल का नाम मिला जिसका उल्लेख अध्याय 3 में नहीं है?

लोग मिट्टी के बर्तन भी बनाते थे। इनमें कुछ धूसर और कुछ लाल रंग के होते थे। इन पुरास्थलों में कुछ विशेष प्रकार के बर्तन मिले हैं, जिन्हें ‘चित्रितधूसर पात्र के रूप में जाना जाता है। जैसा कि इनके नाम से ही स्पष्ट है, इन बर्तनों पर चित्रकारी की गई है। ये आमतौर पर सरल रेखाओं तथा ज्यामितीय आकृतियों के रूप में हैं।

महाजनपद

करीब 2500 साल पहले, कुछ जनपद अधिक महत्वपूर्ण हो गए। इन्हें महाजनपद कहा जाने लगा। मानचित्र 4 में कुछ महाजनपदों को दिखाया गया है। अधिकतर महाजनपदों की एक राजधानी होती थी। कई राजधानियों में किलेबंदी की गई थी अर्थात् इनके चारों ओर लकड़ी, ईंट या पत्थर की ऊँची दीवारें बनाई गई थीं।

ऐसा लगता है कि लोगों ने अन्य राजाओं के आक्रमण से डरकर अपनी सुरक्षा के लिए इन किलों का निर्माण किया। कुछ राजा अपनी राजधानी के चारों ओर विशाल, ऊँची और प्रभावशाली दीवार खड़ी कर अपनी समृद्धि और शक्ति का प्रदर्शन भी करते थे। इस तरह से किले के अंदर रहने वाले लोगों और उस क्षेत्र पर नियत्रंण रखना भी सरल हो जाता होगा। इस तरह की विशाल दीवार बनाने के लिए व्यापक योजना की आवश्यकता थी और लाखों की संख्या में ईंटों तथा पत्थरों का इंतजाम करना पड़ता था। हजारों स्त्री-पुरुषों तथा बच्चों ने इसके लिए अथक परिश्रम किया होगा। इनके लिए संसाधनों की आवश्यकता पड़ती होगी।

कौशाम्बी किले की दीवार। यह चित्र आधुनिक उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के पास मिली ईंट की दीवार का अवशेष है। इसके एक भाग का निर्माण संभवतः 2500 साल पहले हुआ था।

अब राजा सेना रखने लगे थे। सिपाहियों को नियमित वेतन देकर पूरे साल रखा जाता था। कुछ भुगतान संभवतः आहत सिक्कों (पृष्ठ 77 पर चित्र देखो) के रूप में होता था। इन सिक्कों के बारे में तुम अध्याय 8 में पढ़ोगे।

महाजनपदों के राजा ऋग्वेद में उल्लेखित राजाओं से किस प्रकार भिन्न थे? दो अंतर बताओ।

कर

महाजनपदों के राजा विशाल किले बनवाते थे और बड़ी सेना रखते थे, इसलिए उन्हें प्रचुर संसाधनों की आवश्यकता होती थी। इसके लिए उन्हें कर्मचारियों की भी आवश्यकता होती थी। अतः महाजनपदों के राजा लोगों द्वारा समय-समय पर लाए गए उपहारों पर निर्भर न रहकर अब नियमित रूप से कर वसूलने लगे।

  • फ़सलों पर लगाए गए कर
  • कारीगरों के ऊपर लगाए गए कर
  • पशुपालकों को जानवरों या उनके उत्पाद के रूप में कर देना पड़ता था।
  • व्यापारियों को सामान पर कर देना पड़ता था।
  • आखेटकों तथा संग्राहकों को जंगल से प्राप्त वस्तुएँ देनी होती थीं।

आखेटक तथा खाद्य-संग्राहक राजाओं को क्या देते होंगे?

कृषि में परिवर्तन

इस युग में कृषि के क्षेत्र में दो बड़े परिवर्तन आए। हल के फाल अब लोहे के बनने लगे। अब कठोर ज़मीन को लकड़ी के फाल की तुलना में लोहे के फाल से आसानी से जोता जा सकता था। इससे फ़सलों की उपज बढ़ गई। दूसरे, लोगों ने धान के पौधों का रोपण शुरू किया अर्थात् खेतों में बीज छिड़ककर धान उपजाने के बजाए धान की पौध तैयार कर उनका रोपण शुरू किया गया। अब पहले की तुलना में बहुत ज्यादा पौधे जीवित रह जाते थे, इसलिए पैदावार भी जज्यादा होने लगी।

क्या तुम बता सकते हो कि राजा इन परिवर्तनों को प्रोत्साहन क्यों देते होंगे?

सूक्ष्म-निरीक्षण

(क) मगध

मानचित्र 4 (पृष्ठ 45) में मगध ढूँढ़ो। लगभग दो सौ सालों के भीतर मगध सबसे महत्वपूर्ण जनपद बन गया। गंगा और सोन जैसी नदियाँ मगध से होकर बहती थीं। ये - (क) यातायात, (ख) जल-वितरण और (ग) ज़मीन को उपजाऊ बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण थीं। मगध का एक हिस्सा जंगलों से भरा था। इन जंगलों में रहने वाले हाथियों को पकड़ कर और उन्हें प्रशिक्षित कर सेना के काम में लगाया जाता था। यही नहीं, जंगलों से घर, गाड़ियाँ, तथा रथ बनाने के लिए लकड़ी मिलती थी। इसके अलावा इस क्षेत्र में लौह अयस्क की खदाने हैं। मजबूत औजार और हथियार बनाने के लिए ये बहुत उपयोगी थे।

मगध में दो बहुत ही शक्तिशाली शासक बिम्बिसार तथा अजातसत्तु (अजातशत्रु) हुए। अन्य जनपदों को जीतने के लिए ये हर संभव साधन अपनाते थे। महापद्मनंद एक और महत्वपूर्ण शासक थे। उन्होंने अपने नियंत्रण का क्षेत्र इस उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग तक फैला लिया था। बिहार में राजगृह (आधुनिक राजगीर) कई सालों तक मगध की राजधनी बनी रही। बाद में पाटलिपुत्र (आज का पटना) को राजधानी बनाया गया।

2300 साल से भी पहले की बात है, मेसिडोनिया का राजा सिकन्दर विश्व-विजय करना चाहता था। पूरी तरह सफल न होने पर भी वह मिस्र और पश्चिमी एशिया के कुछ राज्यों को जीतता हुआ भारतीय उपमहाद्वीप में व्यास नदी के किनारे तक पहुँच गया। जब उसने मगध की ओर कूच करना चाहा, तो उसके सिपाहियों ने इंकार कर दिया। वे इस बात से भयभीत थे, कि भारत के शासकों के पास पैदल, रथ और हाथियों की बहुत बड़ी सेना थी।

इन सेनाओं और ऋग्वेद में उल्लेखित सेनाओं के बीच तुम्हें क्या अंतर दिखता है?

(ख) वज्जि

जैसा कि तुमने ऊपर पढ़ा, मगध एक शक्तिशाली राज्य बन गया था। उसके नजजदीक ही वज्जि राज्य था, जिसकी राजधानी वैशाली (बिहार) थी। यहाँ एक अलग किस्म की शासन-व्यवस्था थी जिसे गण या संघ कहते थे।

गण या संघ में कई शासक होते थे और इसमें से प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था। ये सभी राजा विभिन्न अनुष्ठानों को एक साथ सम्पन्न करते थे। सभाओं में बैठकर ये बातचीत, बहस और वाद-विवाद के ज़रिए तय करते थे कि क्या करना है और किस तरह करना है। शत्रुओं के आक्रमण से निपटने के लिए वे मिलकर चर्चाएँ करते थे। स्त्रियाँ, दास तथा कम्मकार इन सभाओं में हिस्सा नहीं ले सकते थे।

वज्जि संघ का यह वर्णन दीघ निकाय से लिया गया है। दीघ निकाय एक प्रसिद्ध बौद्ध ग्रंथ है, जिसमें बुद्ध के कई व्याख्यान दिए गए हैं। इन्हें करीब 2300 साल पहले लिखा गया था।

अजासत्तु (अजातशत्रु) और वज्जि-संघ

अजातसत्तु वज्जि-संघ पर आक्रमण करना चाहते थे। उन्होंने अपने मंत्री वस्सकार को बुद्ध के पास सलाह के लिए भेजा।

बुद्ध ने उनसे पूछा कि क्या वज्जि सभाएँ नियमित रूप से होती हैं तथा उनमें सभी सदस्य उपस्थित होते हैं? जब उन्हें पता चला कि ऐसा होता है, उन्होंने कहा कि वज्जिवासी तब तक उन्नति करते रहेंगे, जब तक:

  • वे पूर्ण और नियमित सभाएँ करते रहेंगे।
  • आपस में मिलजुल कर काम करते रहेंगे।
  • पारंपरिक नियमों का पालन करते रहेंगे।
  • बड़ों का सम्मान, समर्थन और उनकी बातों पर ध्यान देते रहेंगे।
  • वज्जि महिलाओं के साथ जोर-जजबरदस्ती नहीं करेंगे और उन्हें बंधक नहीं बनाएँगे।
  • शहरों तथा गांवों में चैत्यों का रखरखाव करेंगे।
  • विभिन्न मतावलंबी संतों का सम्मान करेंगे और उनके आने या जाने पर कोई रोक नहीं लगाएँगे।

वज्जि संघ अन्य महाजनपदों से कैसे भिन्न था? कम से कम तीन अंतर बताओ।

कई शक्तिशाली राजा इन संघों को जीतना चाहते थे। इसके बावजूद उनका राज्य अब से लगभग 1500 साल पहले तक चलता रहा। उसके बाद गुप्त शासकों ने गण और संघ पर विजय प्राप्त कर उन्हें अपने राज्य में शामिल कर लिया। इनके बारे में तुम अध्याय 9 में पढ़ोगे।

कल्पना करो

वैशाली के उस सभागार में तुम अंदर झाँक रहे हो जहाँ मगध के राजाओं द्वारा आक्रमण का सामना करने के विषयों पर चर्चा की जा रही है। तुमने क्या सुना?

उपयोगी शब्द

राजा
अश्वमेध
वर्ण
जनपद
महाजनपद
क़िलेबंदी
सेना कर
पौध-रोपण
गण अथवा संघ

आओ याद करें

1. सही या गलत बताओ

(क) अश्वमेध के घोड़े को अपने राज्य से गुज़रने की छूट देने वाले राजाओं को यज्ञ में आमंत्रित किया जाता था।

(ख) राजा के ऊपर सारथी पवित्र जल का छिड़काव करता था।

(ग) पुरातत्त्वविदों को जनपदों की बस्तियों में महल मिले हैं।

(घ) चित्रित-धूसर पात्रों में अनाज रखा जाता था।

(ङ) महाजनपदों में बहुत से नगर किलाबंद थे।

2. नीचे दिए गए खानों में निम्नलिखित शब्द भरो।

आखेटक-संग्राहक, कृषक, व्यापारी, शिल्पकार, पशुपालक।

3. समाज के वे कौन-से समूह थे, जो गणों की सभाओं में हिस्सा नहीं ले सकते थे?

आओ चर्चा करें

4. महाजनपद के राजाओं ने किले क्यों बनवाए?

आओ करके देखें

5. क्या तुम्हारे राज्य में प्राचीन जनपद थे? अगर हाँ, तो उनके नाम लिखो। अगर नहीं, तो अपने राज्य के सबसे नज़दीक पड़ने वाले जनपदों के नाम बताओ।

6. प्रश्न 3 के उत्तर में बताए गए समूहों में किन-किन को आज मतदान का अधिकार प्राप्त है?

कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ

  • नए शासक (लगभग 3000 साल पहले)

  • महाजनपद (लगभग 3000 साल पहले)

  • सिकन्दर का आक्रमण, दीघ निकाय का लेखन (लगभग 2300 साल पहले)

  • गण या संघ राज्यों का अंत (लगभग 1500 साल पहले)



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