अध्याय 02 आखेट-खाद्य संग्रह से भोेजन उत्पादन तक

तुषार की रेलयात्रा

तुषार अपने एक रिश्तेदार की शादी में दिल्ली से चेन्नई जा रहा था। रेल में उसे खिड़की वाली सीट मिल गई, जहाँ से वह बाहर का नज़ारा देखने में मग्न हो गया। तेजज दौड़ती गाड़ी से उसने देखा कि पेड़-पौधे, घर, खेत-खलिहान बड़ी तेजीी से पीछे की ओर छूटते चले जा रहे थे। तभी उसके चाचा ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा, “पता है लोगों ने मात्र डेढ़ सौ साल पहले रेल से यात्रा करनी शुरू की थी? बस तो इसके कुछ दशक बाद आई।” तुषार सोचने लगा, कि जब लोगों के पास आने-जाने के लिए तेज़ रफ़्तार वाली सवारियाँ नहीं थीं, तो क्या वे यात्र ही नहीं करते थे। क्या वे अपनी सारी जिंदगी एक ही जगह पर बिता दिया करते थे? नहीं, ऐसी बात नहीं थी।

आरंभिक मानव : आखिर वे इधर-उधर क्यों घूमते थे?

हम उन लोगों के बारे में जानते हैं, जो इस उपमहाद्वीप में बीस लाख साल पहले रहा करते थे। आज हम उन्हें आखेटक-खाद्य संग्राहक के नाम से जानते हैं। भोजन का इंतज़ाम करने की विधि के आधार पर उन्हें इस नाम से पुकारा जाता है। आमतौर पर खाने के लिए वे जंगली जानवरों का शिकार करते थे, मछलियाँ और चिड़िया पकड़ते थे, फल-मूल, दाने, पौधे-पत्तियाँ, अंडे इकट्ठा किया करते थे।

आखेटक-खाद्य संग्राहक समुदाय के लोग एक जगह से दूसरी जगह पर घूते रहते थे। ऐसा करने के कई कारण थे।

पहला कारण यह कि अगर वे एक ही जगह पर ज्यादा दिनों तक रहते तो आस-पास के पौधों, फलों और जानवरों को खाकर समाप्त कर देते थे। इसलिए और भोजन की तलाश में इन्हें दूसरी जगहों पर जाना पड़ता था।

दूसरा कारण यह कि जानवर अपने शिकार के लिए या फिर हिरण और मवेशी अपना चारा ढूँढ़ने के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाया करते हैं। इसीलिए, इन जानवरों का शिकार करने वाले लोग भी इनके पीछे-पीछे जाया करते होंगे।

तीसरा कारण यह कि पेड़ों और पौधों में फल-फूल अलग-अलग मौसम में आते हैं, इसीलिए लोग उनकी तलाश में उपयुक्त मौसम के अनुसार अन्य इलाकों में घूमते होंगे।

और चौथा कारण यह है कि पानी के बिना किसी भी प्राणी या पेड़-पौधे का जीवित रहना संभव नहीं होता और पानी झीलों, झरनों तथा नदियों में ही मिलता है। यद्यपि कई नदियों और झीलों का पानी कभी नहीं सूखता, कुछ झीलों और नदियों में पानी बारिश के बाद ही मिल पाता है। इसीलिए ऐसी झीलों और नदियों के किनारे बसे लोगों को सूखे मौसम में पानी की तलाश में इधर-उधर जाना पड़ता होगा।

आरंभिक मानव के बारे में जानकारी कैसे मिलती है?

पुरातत्त्वविदों को कुछ ऐसी वस्तुएँ मिली हैं जिनका निर्माण और उपयोग आखेटक-खाद्य संग्राहक किया करते थे। यह संभव है कि लोगों ने अपने काम के लिए पत्थरों, लकड़ियों और हड्डियों के औज़ार बनाए हों। इनमें से पत्थरों के औज़ार आज भी बचे हैं।

इनमें से कुछ औज़ारों का उपयोग फल-फूल काटने, हट्डियाँ और मांस काटने तथा पेड़ों की छाल और जानवरों की खाल उतारने के लिए किया जाता था। कुछ के साथ हड्डियों या लकड़ियों के मुदे लगा कर भाले और बाण जैसे हथियार बनाए जाते थे। कुछ औजारों से लकड़ियाँ काटी जाती थीं। लकड़ियों का उपयोग ईंधन के साथ-साथ झोपड़ियाँ और औजार बनाने के लिए भी किया जाता था।

पत्थर के औजारों का उपयोग बाएँ : इंसान के खाने योग्य जड़ों को खोदने के लिए किया जाता था, और दाएँ : जानवरों की खाल से बने वस्त्रों को सिलने के लिए किया जाता था।

रहने की जगह निर्धारित करना

मानचित्र 2 को देखो। लाल त्रिकोण वाले स्थान वे पुरास्थल हैं जहाँ पर आखेटक-खाद्य संग्राहकों के होने के प्रमाण मिले हैं। इनके अलावा भी और कई स्थानों पर आखेटक-खाद्य संग्राहक रहते थे। मानचित्र में सिर्फ़ कुछ गिने-चुने स्थान ही चिह्नित किए गए हैं। कई पुरास्थल नदियों और झीलों के किनारे पाए गए हैं।

चूँकि पत्थर के उपकरण बहुत महत्वपूर्ण थे इसलिए लोग ऐसी जगह ढूँढ़ते रहते थे, जहाँ अच्छे पत्थर मिल सकें।

शैल चित्रकला : इनसे हमें क्या पता चलता है?

एक शैल चित्र।

इस चित्र के बारे में बताओ।

जिन गुफाओं में लोग रहते थे, उनमें से कुछ की दीवारों पर चित्र मिले हैं। इनमें कुछ सुन्दर उदाहरण मध्य प्रदेश और दक्षिणी उत्तर प्रदेश की गुफाओं से मिले चित्र हैं। इनमें जंगली जानवरों का बड़ी कुशलता से सजीव चित्रण किया गया है।

भीमबेटका (आधुनिक मध्य प्रदेश)

इस पुरास्थल पर गुफाएँ व कंदराएँ मिली हैं। लोग इन गुफाओं में इसलिए रहते थे, क्योंकि यहाँ उन्हें बारिश, धूप और हवाओं से राहत मिलती थी। ये गुफाएँ नर्मदा घाटी के पास हैं।

क्या तुम बता सकते हो कि रहने के लिए लोगों ने यह जगह क्यों चुनी होगी?

पुरास्थल

पुरास्थल उस स्थान को कहते हैं जहाँ औजार, बर्तन और इमारतों जैसी वस्तुओं के अवशेष मिलते हैं। ऐसी वस्तुओं का निर्माण लोगों ने अपने काम के लिए किया था और बाद में वे उन्हें वहीं छोड़ गए। ये ज़मीन के ऊपर, अन्दर, कभी-कभी समुद्र और नदी के तल में भी पाए जाते हैं। इन पुरास्थलों के बारे में आपको अगले अध्यायों में बताया जाएगा।

आग की खोज

मानचित्र 2 में कुरनूल गुफा ढूँढ़ो (पृष्ठ 12)। यहाँ राख के अवशेष मिले हैं। इसका मतलब यह है कि आरंभिक लोग आग जलाना सीख गए थे। आग का इस्तेमाल कई कार्यों के लिए किया गया होगा जैसे कि प्रकाश के लिए, मांस भूनने के लिए और खतरनाक जानवरों को दूर आदि भगाने के लिए।

आज हम आग का उपयोग किसलिए करते हैं?

नाम और तिथियाँ

हम जिस काल के बारे में पढ़ रहे हैं, पुरातत्त्वविदों ने उनके बड़े-बड़े नाम रखे हैं। आरंभिक काल को वे पुरापाषाण काल कहते हैं। यह दो शब्दों पुरा यानी ‘प्राचीन’, और पाषाण यानी ‘पत्थर’ से बना है। यह नाम पुरास्थलों से प्राप्त पत्थर के औजजारों के महत्त्व को बताता है। पुरापाषाण काल बीस लाख साल पहले से 12,000 साल पहले के दौरान माना जाता है। इस काल को भी तीन भागों में विभाजित किया गया है : ‘आरंभिक’, ‘मध्य’ एवं ‘उत्तर’ पुरापाषाण युग। मानव इतिहास की लगभग 99 प्रतिशत कहानी इसी काल के दौरान घटित हुई।

जिस काल में हमें पर्यावरणीय बदलाव मिलते हैं, उसे ‘मेसोलिथ’ यानी मध्यपाषाण युग कहते हैं। इसका समय लगभग 12,000 साल पहले से लेकर 10,000 साल पहले तक माना गया है। इस काल के पाषाण औज़ार आमतौर पर बहुत छोटे होते थे। इन्हें ‘माइक्रोलिथ’ यानी लघुपाषाण कहा जाता है। प्रायः इन औज़ारों में हड्डुयों या लकड़ियों के मुट्ठे लगे हँसिया और आरी जैसे औज़ार मिलते थे। साथ-साथ पुरापाषाण युग वाले औज़ार भी इस दौरान बनाए जाते रहे।

अगले युग की शुरुआत लगभग 10,000 साल पहले से होती है। इसे नवपाषाण युग कहा जाता है। नवपाषाण का क्या मतलब होता होगा?

हमने कुछ स्थानों के नाम दिए हैं। अगले अध्यायों में तुम्हें ऐसे अनेक नाम मिलेंगे। अक्सर हम पुराने स्थानों के लिए उन नामों का प्रयोग करते हैं, जो आज प्रचलित हैं, क्योंकि हमें ज्ञात नहीं है कि उस काल में इनके क्या नाम रहे होंगे।

बदलती जलवायु

लगभग 12,000 साल पहले दुनिया की जलवायु में बड़े बदलाव आए और गर्मी बढ़ने लगी। इसके परिणामस्वरूप कई क्षेत्रों में घास वाले मैदान बनने लगे। इससे हिरण, बारहसिंघा, भेड़, बकरी और गाय जैसे उन जानवरों की संख्या बढ़ी, जो घास खाकर ज़िन्दा रह सकते हैं।

जो लोग इन जानवरों का शिकार करते थे, वे भी इनके पीछे आए और इनके खाने-पीने की आदतों और प्रजनन के समय की जानकारी हासिल करने लगे। हो सकता है कि तब लोग इन जानवरों को पकड़ कर अपनी ज़ूरत के अनुसार पालने की बात सोचने लगे हों। साथ ही इस काल में मछली भी भोजन का महत्वपूर्ण स्रोत बन गई।

खेती और पशुपालन की शुरुआत

इसी दौरान उपमहाद्वीप के भिन्न-भिन्न इलाकों में गेहूँ, जौ और धान जैसे अनाज प्राकृतिक रूप से उगने लगे थे। शायद महिलाओं, पुरुषों और बच्चों ने इन अनाजों को भोजन के लिए बटोरना शुरू कर दिया होगा। साथ ही वे यह भी सीखने लगे होंगे कि यह अनाज कहाँ उगते थे और कब पककर तैयार होते थे। ऐसा करते-करते लोगों ने इन अनाजों को खुद पैदा करना सीख लिया होगा। इस प्रकार धीरे-धीरे वे कृषक बन गए होंगे।

इसी तरह लोगों ने अपने घरों के आस-पास चारा रखकर जानवरों को आकर्षित कर उन्हें पालतू बनाया होगा। सबसे पहले जिस जंगली जानवर को पालतू बनाया गया वह कुत्ते का जंगली पूर्वज था। धीरे-धीरे लोग भेड़, बकरी, गाय और सूअर जैसे जानवरों को अपने घरों के नज़दीक आने को उत्साहित करने लगे। ऐसे जानवर झुण्ड में रहते थे और ज्यादातर घास खाते थे। अक्सर लोग अन्य जंगली जानवरों के आक्रमण से इनकी सुरक्षा किया करते थे और इस तरह धीरे-धीरे वे पशुपालक बन गए होंगे।

क्या तुम बता सकती हो कि सबसे पहले कुत्तों को ही पालतू क्यों बनाया गया?

घरेलूकरण की प्रक्रिया

लोगों द्वारा पौधे उगाने और जानवरों की देखभाल करने को ‘घरेलूकरण की प्रक्रिया’ का नाम दिया गया है। अपनाए गए ये पौधे तथा जानवर अक्सर जंगली पौधों तथा जानवरों से भिन्न होते हैं। इसकी वजह यह है कि इस प्रक्रिया के तहत अपनाए गए पौधों या जानवरों का लोग चयन करते हैं। उदाहरण के तौर पर लोग उन्हीं पौधों तथा जानवरों का चयन करते हैं जिनके बीमार होने की संभावना कम हो। यही नहीं, लोग उन्हीं पौधों को चुनते हैं जिनसे बड़े दाने वाले अनाज पैदा होते हैं; साथ ही जिनकी मज़ूत डंठले अनाज के पके दानों के भार को संभाल सकें। ऐसे पौधों के बीजों को संभालकर रखा जाता है ताकि फिर से उगाने के लिए उनके गुण सुरक्षित रह सकें।

उन्हीं जानवरों को आगे प्रजनन के लिए चुना जाता है, जो आमतौर पर अहिंसक होते हैं। इसलिए हम देखते हैं कि पाले गए जानवर तथा कृषि के लिए अपनाए गए पौधे, जंगली जानवरों तथा पौधों से धीरे-धीरे भिन्न होते गए। मिसाल के तौर पर जंगली जानवरों की तुलना में पालतू जानवरों के दाँत और सींग छोटे होते हैं।

इन दाँतों को देखो। इनमें से कौन-सा जंगली सूअर का है और कौन-सा पालतू सूअर का?

यह प्रक्रिया पूरी दुनिया में धीरे-धीरे चलती रही। यह करीब 12,000 साल पहले शुरू हुई। वास्तव में आज हम जो भोजन करते हैं वो इसी प्रक्रिया की वजह से है। कृषि के लिए अपनाई गई सबसे प्राचीन फ़सलों में गेहूँ तथा जौ आते हैं, उसी तरह सबसे पहले पालतू बनाए गए जानवरों में कुत्ते के बाद भेड़-बकरी आते हैं।

एक नवीन जीवन-शैली

तुम किसी पौधे के बीज को बो कर देखो, तुम पाओगी कि इसे विकसित होने में कुछ वक्त लगता है। इसमें कुछ दिन, महीने या फिर साल तक लग सकता है। इसलिए जब लोग पौधे उगाने लगे तो उनकी देखभाल के लिए उन्हें एक ही जगह पर लंबे समय तक रहना पड़ा था। बीज बोने से लेकर फ़सलों के पकने तक, पौधों की सिंचाई करने, खरपतवार हटाने, जानवरों और चिड़ियों से उनकी सुरक्षा करने जैसे बहुत-से काम शामिल थे। कटाई के बाद, अनाज का उपयोग बहुत संभाल कर करना पड़ता था।

अनाज को भोजन और बीज, दोनों ही रूपों में बचा कर रखना आवश्यक था, इसलिए लोगों को इसके भंडारण की बात सोचनी पड़ी। बहुत-से इलाकों में लोगों ने मिट्टी के बड़े-बड़े बर्तन बनाए, टोकरियाँ बुनीं या फिर जमीन में गड्ढा खोदा। क्या तुम्हें लगता है कि शिकारी या भोजन-संग्रह करने वाले बर्तन बनाते और उनका प्रयोग करते होंगे? अपने जवाब का कारण बताओ।

जानवर : चलते-फिरते ‘खाद्य-भंडार’

जानवर बच्चे देते हैं जिससे उनकी संख्या बढ़ती है। अगर जानवरों की देखभाल की जाए तो उनकी संख्या तो बढ़ती ही है साथ ही उनसे दध भी प्राप्त हो सकता है जो भोजन का एक अच्छा स्रोत है। यही नहीं जानवरों से हमें मांस भी मिलता है। दूसरे शब्दों में, पशु-पालन भोजन के ‘भंडारण’ का एक तरीका है।

भोजन के अतिरिक्त जानवरों से और क्या-क्या मिल सकता है?

आज जानवरों का उपयोग किस लिए होता है?

आओ, आरंभिक कृषकों और पशुपालकों के बारे में पता करें?

मानचित्र 2 (पृष्ठ संख्या 12) देखो। क्या तुम्हें कई नीले वर्ग दिख रहे हैं? पता है, इनमें से प्रत्येक बिंदु उस जगह को दर्शाता है, जहाँ पुरातत्त्वविदों को शुरुआती कृषकों और पशुपालकों के होने के साक्ष्य मिले हैं। ये पूरे उपमहाद्वीप में पाए गए हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण पश्चिमोत्तर क्षेत्र में, आधुनिक कश्मीर में, और पूर्वी तथा दक्षिण भारत में पाए गए हैं।

वास्तव में ये निर्दिष्ट स्थान कृषकों और पशुपालकों की बस्तियाँ थीं या नहीं, इसे जाँचने के लिए वैज्ञानिक खुदाई में मिले पौधों और पशुओं की हड्डियों के नमूनों का अध्ययन करते हैं। इनमें से सबसे रोचक जले हुए अनाज के दानों के अवशेष हैं। ऐसा लगता है कि ये गलती से या फिर जानबूझ कर जलाए गए होंगे। वैज्ञानिक इन अनाज के दानों की पहचान कर सकते हैं। इस तरह हमें पता चलता है कि इस उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में बहुत सारी फ़सलें उगाई जाती रही होंगी। वैज्ञानिक विभिन्न जानवरों की हड्डियों की भी पहचान कर सकते हैं।

स्थायी जीवन की ओर

पुरातत्त्वविदों को कुछ पुरास्थलों पर झोपड़ियों और घरों के निशान मिले हैं। जैसे कि बुर्जहोम (वर्तमान कश्मीर में) के लोग गड्ढे के नीचे घर बनाते थे जिन्हे गर्तवास कहा जाता है। इनमें उतरने के लिए सीढ़ियाँ होती थीं। इससे उन्हें ठंढ के मौसम में सुरक्षा मिलती होगी। पुरातत्त्वविदों को झोपड़ियों के अंदर और बाहर दोनों ही स्थानों पर आग जलाने की जगहें मिली हैं। ऐसा लगता है कि लोग मौसम के अनुसार घर के अंदर या बाहर खाना पकाते होंगे। बहुत सारी जगहों से पत्थर के औज़ार भी मिले हैं। इनमें से कई ऐसे हैं, जो पुरापाषाणयुगीन उपकरणों से भिन्न हैं। इसीलिए इन्हें नवपाषाण युग का माना गया है। इनमें वे औज़ार भी हैं, जिनकी धार को और अधिक पैना करने के लिए उन पर पॉलिश चढ़ाई जाती थी। ओखली और मूसल का प्रयोग अनाज तथा वनस्पतियों से प्राप्त अन्य चीज़ों को पीसने के लिए किया जाता था। आज हज़ारों साल बाद भी ओखली और मूसल का प्रयोग अनाज पीसने के लिए किया जाता है। उसी तरह प्राचीन प्रस्तरयुगीन औज़ारों का निर्माण और प्रयोग लगातार होता रहा। कुछ औज़ार हड्डियों से भी बनाए जाते थे।

नवपाषाण युग के कुछ उपकरण।

नवपाषाण युग के पुरास्थलों से कई प्रकार के मिट्टी के बर्तन मिले हैं। कभी-कभी इन पर अलंकरण भी किया जाता था। बर्तनों का उपयोग चीज़ों को रखने के लिए किया जाता था। धीरे-धीरे लोग बर्तनों का प्रयोग खाना बनाने के लिए भी करने लगे। चावल, गेहूँ तथा दलहन जैसे अनाज अब आहार का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए थे। इसके साथ-साथ अब लोग कपड़े भी बुनने लगे थे। इसके लिए कपास जैसे आवश्यक पौधे उगाए जा सकते थे।

क्या ये परिवर्तन हर जगह एक साथ ही आ गए होंगे? ऐसी बात नहीं है। एक तरफ़ जहाँ कई जगहों पर स्त्री-पुरुष शिकार और भोजन-संग्रह करने का काम करते रहे थे वहीं अन्य लोगों ने हजारों सालों के दरम्यान धीरे-धीरे खेती और पशुपालन को अपना लिया। बहुत जगह लोग मौसम के मुताबिक बदल-बदल कर अपनी जीविका चलाया करते थे।

सूक्ष्म-निरीक्षण

मेहरगढ़ में जीवन-मृत्यु

मानचित्र 2 (पृष्ठ 12) में मेहरगढ़ ढूँढ़ो। यह ईरान जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण रास्ते, बोलन र्दे के पास एक हराभरा समतल स्थान है। मेहरगढ़ संभवतः वह स्थान है, जहाँ के स्त्री-पुरुषों ने, इस इलाके में सबसे पहले जौ, गेहूँ उगाना और भेड़-बकरी पालना सीखा।

यहाँ विभिन्न प्रकार के जानवरों की हड्डियाँ मिलीं। इनमें हिरण तथा सूअर जैसे जंगली जानवरों तथा भेड़ और बकरियों की हट्डियाँ हैं।

मेहरगढ़ में इसके अलावा चौकोर तथा आयताकार घरों के अवशेष भी मिले हैं। प्रत्येक घर में चार या उससे जज्यादा कमरे हैं, जिनमें से कुछ संभवतः भंडारण के काम आते होंगे।

मत्यु के बाद सामान्यतया मृतक के सगे संबंधी उसके प्रति सम्मान जताते हैं। लोगों की आस्था है कि मृत्यु के बाद भी जीवन होता है। इसीलिए कब्रों में मृतकों के साथ कुछ सामान भी रखे जाते थे। मेहरगढ़ में ऐसी कई कब्रें मिली हैं। एक कब्र में एक मृतक के साथ एक बकरी को भी दफ़नाया गया था। संभवतः इसे परलोक में मृतक के खाने के लिए रखा गया होगा।

क्या तुम कल्पना कर सकती हो कि इस पात्र में क्या रखा होगा?

मेहरगढ़ के घर का चित्र।

मेहरगढ़ के घर शायद ऐसे दिखते हों। तुम जिस घर में रहते हो, उसके साथ इस घर की क्या समानता है?

मेहरगढ़ की कब्र का चित्र क्या तुम बकरी के कंकाल को पहचान सकते हो?

उपयोगी शब्द

आखेटक-खाद्य संग्राहक
पुरास्थल
उद्योग-स्थल
आवासीय-स्थल
पुरापाषाण
मध्यपाषाण
लघुपाषाण
कृषक
पशुपालक
नवपाषाण युग
कब्र

कल्पना करो

तुम आज से 12,000 साल पहले पत्थर की एक गुफा में रहते हो। पृष्ठ 13 पर देखो। तुम्हारे मामा गुफा की एक भीतरी दीवार पर चित्र बना रहे हैं और तुम उनकी सहायता करना चाहते हो। तुम रंग बनाओगे, रेखाएँ खींचोगे या फिर उनमें रंग भरोगे? तुम्हारे मामा तुम्हें कौन-कौन सी कहानियाँ सुनाएँगे?

आओ याद करें

1. इन वाक्यों को पूरा करो

(क) आखेटक-खाद्य संग्राहक गुफाओं में इसलिए रहते थे क्योंकि ___________ ।

(ख) घास वाले मैदानों का विकास ___________ साल पहले हुआ।

2. खेती करने वाले लोग एक ही स्थान पर लंबे समय तक क्यों रहते थे?

3. पुरातत्त्वविद् ऐसा क्यों मानते हैं कि मेहरगढ़ के लोग पहले केवल शिकारी थे, और बाद में उनके लिए पशुपालन.ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया?

आओ चर्चा करें

4. आखेटक-खाद्य संग्राहक एक स्थान से दूसरे स्थान पर क्यों घूमते रहते थे? उनकी यात्रा और आज की हमारी यात्रा के कारणों में क्या समानताएँ या क्या भिन्नताएँ हैं?

5. आखेटक-खाद्य संग्राहक आग का उपयोग किन-किन चीज़ों के लिए करते थे? क्या तुम आज आग का उपयोग इनमें से किसी चीज़ के लिए करोगे!

6. कृषकों-पशुपालकों का जीवन आखेटक-खाद्य संग्राहकों के जीवन से कितना भिन्न था, तीन अंतर बताओ।

आओ करके देखें

7. तुम जिन अनाजों को खाते हो उनकी एक सूची बनाओ। इन अनाजों को क्या तुम स्वयं उगाते हो? अगर हाँ, तो एक तालिका बनाकर उसकी खेती की विभिन्न अवस्थाओं को दिखाओ। अगर नहीं, तो एक तालिका बनाकर दिखाओ कि ये अनाज किसान से लेकर तुम्हारे पास तक कैसे पहुँचे।

कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ

  • मध्यपाषाण युग (12,000-10,000 साल पहले)

  • बसने की प्रक्रिया का आरंभ (लगभग 12,000 साल पहले)

  • नवपाषाण युग का आरंभ (10,000 साल पहले)

  • मेहरगढ़ में बस्ती का आरंभ (लगभग 8000 साल पहले)



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