अध्याय 05 शरीर में गति
बिलकुल शांत होकर बैठिए तथा अपने शरीर में होने वाली गतियों का अनुभव कीजिए। आप समय-समय पर अपनी पलकें तो झपकाते ही होंगे। श्वास लेते समय अपने शरीर में होने वाली गतियों का प्रेक्षण कीजिए। हमारे शरीर में स्वतः ही अनेक गतियाँ निरंतर होती रहती हैं।
जब आप अपनी नोटबुक में लिखते हैं, तब आपके शरीर का कौन-सा भाग गति करता है? जब आप मुड़कर अपने मित्र को देखते हैं, तब शरीर का कौन-सा भाग गति करता है? उपर्युक्त सभी उदाहरणों में आपके उसी स्थान पर रहते हुए भी आपके शरीर का कोई-न-कोई भाग गति करता है। आप एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं। आप उठकर अपने अध्यापक के पास जाते हैं, कक्षा के बाद विद्यालय के मैदान में जाते हैं अथवा विद्यालय के बाद अपने घर जाते हैं तो, इस स्थिति में आप एक स्थान से दूसरे स्थान तक वास्तव में चलकर जाते हैं। आप चलकर, दौड़कर या कूदकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं।
आइए, अपने मित्रों, अध्यापकों एवं अभिभावकों से चर्चा करके सारणी 5.1 भरते हुए यह देखते हैं कि
बूझो पौधों की गति को लेकर आश्चर्यचकित है। वह जानता है कि पौधे एक स्थान से दूसरे स्थान तक गति नहीं करते परंतु क्या वे किसी दूसरे प्रकार की गति को प्रदर्शित करते हैं।
सारणी 5.1: जंतु एक स्थान से दूसरे स्थान तक कैसे गमन करते हैं?
जंतु गमन में प्रयुक्त
होने वाला
भाग/अंगजंतु कैसे
गमन करते
हैंगाय पैर चलती है मनुष्य साँप संपूर्ण शरीर रेंगकर पक्षी कीट मछली
जंतु एक स्थान से दूसरे स्थान तक किस प्रकार गमन करते हैं।
चलना, टहलना, दौड़ना, उड़ना, छलाँग मारना, रेंगना एवं तैरना इत्यादि जंतुओं के एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के कुछ ढंग हैं। जंतुओं के एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के तरीके में इतनी अधिक विविधता क्यों है? क्या कारण है कि अनेक जंतु चलते हैं जबकि साँप रेंगता है और मछली तैरती है?
5.1 मानव शरीर एवं इसकी गतियाँ
जंतुओं की विविध गतियों पर ध्यान देने से पूर्व आइए, अपने शरीर की कुछ गतियों को ध्यानपूर्वक देखें।
क्या आपको विद्यालय में शारीरिक व्यायाम करते समय आनंद आता है? विद्यालय में शारीरिक व्यायाम करते समय आपके हाथ एवं पैर किस प्रकार गति करते हैं? आइए, हमारा शरीर जिन गतियों को करने
योग्य है, हम उनमें से कुछ शारीरिक गतियों को करने का प्रयास करें।
एक काल्पनिक विकेट पर काल्पनिक गेंद फेंकने का प्रयास कीजिए। आप अपना हाथ किस प्रकार घुमाते हैं? क्या आप इसे अपने कंधे से वृत्ताकार रूप में घुमाते हैं? क्या आपका कंधा भी गति करता है? पीठ के बल लेट जाइए तथा अपने पैर को कूल्हे के चारों ओर घुमाइए। अपनी भुजा को कोहनी से ऊपर नीचे कीजिए। इसी प्रकार पैरों को घुटने से मोड़िए। अपने हाथों को अपने पार्श्व में सीधा तानिए। भुजा को मोड़ते हुए अंगुलियों से कंधे को छुइए। आपने अपने हाथ का कौन-सा भाग मोड़ा? हाथों को सीधा तानकर नीचे की ओर झुकने का प्रयास कीजिए। क्या आप ऐसा कर पाते हैं?
अपने शरीर के विभिन्न हिस्सों से गति करने का प्रयास कीजिए एवं प्रेक्षणों को सारणी 5.2 में नोट कीजिए।
क्या कारण है कि हम अपने शरीर के कुछ अंगों को तो स्वतंत्र रूप से किसी भी दिशा में घुमा सकते हैं, जबकि कुछ अंगों को केवल एक ही दिशा में घुमा सकते हैं? हम अपने शरीर के कुछ भागों को घुमाने में असमर्थ क्यों रहते हैं?
सारणी 5.2 हमारे शरीर में गतियाँ
शरीर का
भागगति पूर्णत:
घूमता हैअंशतः
घूमता/मुड़ता है।झुकता है उठता
हैगति बिल्कुल नहीं
करता।गर्दन हाँ कलाई अंगुलियाँ घुटने ऐडी़ पादांगुली पीठ सिर कोहनी भुजा हाँ
क्रियाकलाप 1
एक पैमाने को अपने हाथ पर चित्र 5.1 में दर्शाई गई स्थिति में रखिए जिससे आपकी कोहनी पैमाने के मध्य में रहे।
अपने मित्र से पैमाने तथा हाथ को एक साथ बाँधने के लिए कहिए। अब अपनी कोहनी को मोड़ने का प्रयास कीजिए। क्या आप इसे मोड़ पाते हैं?
चित्र 5.1 क्या अब आप अपनी भुजा मोड़ पाते हैं?
क्या आपने ध्यान दिया है कि हम शरीर के विभिन्न भागों को उसी स्थान से मोड़ अथवा घुमा पाते हैं, जहाँ पर दो हिस्से एक-दूसरे से जुड़े हों उदाहरण के लिए कोहनी, कंधा अथवा गर्दन। क्या आप ऐसे कुछ अन्य भागों के नाम बता सकते हैं? इन स्थानों को संधि कहते हैं। यदि हमारे शरीर में कोई संधि नहीं होती तो आपके विचार में क्या हमारे लिए किसी भी प्रकार की गति करना संभव होता?
वास्तव में इन संधियों को कौन-सी वस्तु परस्पर बाँधती है?
अपनी अंगुली द्वारा अपने सिर, चेहरे, गर्दन, नाक, कान, कंधे के पीछे, हाथ, पैर, अंगुली एवं पादांगुलियों को दबाइए।
क्या आपको ऐसा अनुभव हुआ कि आपकी अंगुली किसी कठोर वस्तु को दबा रही है? ये कठोर संरचनाएँ अस्थियाँ हैं। अपने शरीर के अन्य भागों में इस प्रक्रिया को दोहराइए। इतनी सारी अस्थियाँ! जब अस्थियों को नहीं मोड़ा जा सकता तब हम अपनी कोहनी को कैसे मोड़ लेते हैं? हाथ के ऊपरी हिस्से से लेकर कलाई तक एक ही लंबी अस्थि नहीं होती। वास्तव में अनेक अस्थियाँ कोहनी तक जुड़ी रहती हैं। इसी प्रकार हमारे शरीर के प्रत्येक हिस्से में अनेक अस्थियाँ हैं। हम अपने शरीर को कैसे उसी स्थान पर हिला या झुका नहीं सकते जहाँ ये अस्थियाँ एक-दूसरे से मिलती हैं।
विभिन्न गतिविधियों एवं विभिन्न प्रकार की गतियों के लिए हमारे शरीर में अनेक प्रकार की संधियाँ होती हैं। आइए, उनमें से कुछ के बारे में जानें।
कंदुक-खल्लिका संधि
क्रियाकलाप 2
कागज़ की एक पट्टी को एक बेलन (सिलिंडर) के रूप में मोड़िए। रबड़ अथवा प्लास्टिक की एक पुरानी गेंद में एक छेद करके (किसी के निरीक्षण में) उसमें मोड़े हुए कागज़ के बेलन को डालिए, जैसा कि चित्र 5.2 में दर्शाया गया है। आप कागज़ के बेलन
चित्र 5.2 कंदुक-खल्लिका संधि बनाना
को गेंद पर भी चिपका सकते हैं। गेंद को एक छोटी कटोरी में रखकर चारों ओर घुमाने का प्रयास कीजिए। क्या गेंद कटोरी में स्वतंत्र रूप से घूमती है। क्या कागज़ का बेलन भी घूमता है?
अब कल्पना कीजिए कि कागज़ का बेलन आपका हाथ है तथा गेंद इसका एक सिरा है। कटोरी कंधे के उस भाग के समान है जिससे आपका हाथ जुड़ा है। एक अस्थि का गेंद वाला गोल हिस्सा दूसरी अस्थि की कटोरी रूपी गुहिका में धंसा हुआ है (चित्र 5.3)। इस प्रकार की संधि सभी दिशाओं में गति प्रदान करती है। क्या आप इन गतियों में उपरोक्त प्रकार की संधि का
चित्र 5.3 कंदुक-खल्लिका संधि
कोई अन्य उदाहरण खोज सकते हैं? इस अनुभाग के प्रारंभ में शरीर के विभिन्न भागों को हमारे द्वारा दी गई गतियों का स्मरण कीजिए।
धुराग्र संधि
गर्दन तथा सिर को जोड़ने वाली संधि, धुराग्र संधि है (चित्र 5.4)। इसके द्वारा सिर को आगे-पीछे या दाएँ एवं बाएँ घुमा सकते हैं। इन गतियों को करने का प्रयास कीजिए। यह गति हमारे हाथ की उस गति से किस
चित्र 5.4 धुराग्र संधि
प्रकार भिन्न है, जिसमें कंदुक-खल्लिका संधि द्वारा हाथ को पूर्णतः वृत्ताकार रूप में घुमा सकते हैं? धुराग्र संधि में बेलनाकार अस्थि एक छल्ले में घूमती है।
हिंज संधि
घर के किसी दरवाज़े को बार-बार खोलिए और बंद कीजिए। इसके कब्ज़ों को ध्यानपूर्वक देखिए। यह दरवाज़े को आगे और पीछे की ओर खुलने देता है।
क्रियाकलाप 3
आइए, कब्ज़े की गति के प्रकार को देखें। एक मोटे कागज़ अथवा गत्ते का एक बेलन (सिलिण्डर) बनाइए जैसा कि चित्र 5.5 में दिखाया गया है। चित्र के अनुसार गत्ते अथवा कागज़ के बेलन के मध्य में छेद करके एक छोटी पेंसिल लगाइए। गत्ते का एक और टुकड़ा लेकर उसको इस प्रकार मोड़िए कि यह आधा बेलन बन जाए, जिस पर दूसरे बेलन को सरलता से घुमाया जा सके। आधे बेलन पर रखा पूर्ण बेलन कब्जे़ की भाँति है। पेंसिल लगे बेलन को चलाने का प्रयास कीजिए। यह किस प्रकार गति करता है? यह गति आपके द्वारा बनाए गए कंदुक-खल्लिका संधि की गति से किस प्रकार भिन्न है? हमने क्रियाकलाप 1 में कोहनी में इसी प्रकार की गति देखी थी। चित्र 5.5 में
चित्र 5.5 हिंज जैसी संधि द्वारा गति की दिशा
चित्र 5.6 घुटने की हिंज संधि
जो कुछ हमने बनाया था वह एक हिंज से भिन्न है लेकिन इससे यह पता चलता है कि हिंज एक दिशा में गति होने देता है। कोहनी में हिंज (कब्जा) संधि होती है, जिससे केवल आगे और पीछे एक ही दिशा में गति हो सकती है (चित्र 5.6)। क्या आप ऐसी संधि के कुछ और उदाहरण सोच सकते हैं?
अचल संधि
हमारे सिर की अस्थियों के बीच की कुछ संधियाँ उन संधियों से भिन्न है जिनकी चर्चा हमने अब तक की है। ये अस्थियाँ इन संधियों पर हिल नहीं सकतीं। ऐसी संधियों को अचल संधि कहते हैं। जब आप अपना मुँह खोलते हैं, तो आप अपने निचले जबड़े को सिर से दूर ले जाते हैं। अब अपने ऊपरी जबड़े को हिलाने का प्रयास कीजिए। क्या आप इसे गति दे पाते हैं? ऊपरी जबड़े एवं कपाल के मध्य अचल संधि है।
हमने केवल कुछ संधियों की ही चर्चा की जो हमारी अस्थियों को एक-दूसरे से जोड़ती हैं।
हमारे शरीर के विभिन्न अंगों को विभिन्न आकृति कौन प्रदान करता है?
यदि आप एक गुड़िया बनाना चाहते हैं तो आप पहले क्या बनाएँगे? संभवतः गुड़िया को एक आकृति प्रदान करने के लिए आप एक ढाँचा तैयार करेंगे। आप ऐसा नहीं करेंगे? हमारे शरीर की सभी अस्थियाँ ठीक इसी प्रकार शरीर को एक सुंदर आकृति प्रदान करने के लिए एक ढाँचे का निर्माण करती हैं। इस ढाँचे को कंकाल कहते हैं (चित्र 5.7)।
हम कैसे जानते हैं कि यह मानव कंकाल की आकृति है? हम शरीर की विभिन्न अस्थियों की आकृति के विषय में किस प्रकार जान पाते हैं? शरीर के कुछ अंगों में मौजूद अस्थियों और उनकी संख्या तथा आकृति के बारे में हमें तब पता चलता है, जब हम उनका अनुभव करते हैं। एक्स-रे चित्र से हमें शरीर की सभी कठोर अस्थियों की आकृति का पता चलता है।
चित्र 5.7 मानव कंकाल
क्या कभी आपका अथवा आपके परिवार के किसी सदस्य का एक्स-रे हुआ है? कई बार चोट लगने पर चिकित्सक एक्स-रे करवाते हैं, जिससे उन्हें अस्थियों को हुई संभावित क्षति के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। एक्स-रे चित्र से हमें शरीर की अस्थियों की आकृति का पता चलता है।
अपने हाथ के अग्र एवं ऊपरी भाग तथा पैर के निचले एवं ऊपरी भाग की अस्थियों का अनुभव कीजिए। प्रत्येक अंग की अस्थियों की संख्या का पता लगाएँ। अपने घुटने और कोहनी की अस्थियों का ठीक इसी प्रकार अनुभव करें और एक्स-रे चित्र से
चित्र 5.8 टखने एवं घुटने की संधियों के एक्स-रे चित्र
तुलना कर प्रत्येक भाग में अस्थियों की संख्या ज्ञात कीजिए (चित्र 5.8)।
अपनी अंगुलियों को मोडिए। क्या आप उन्हें प्रत्येक संधि-स्थल पर मोड़ सकते हैं? आपकी मध्यमा में कितनी अस्थियाँ हैं। अपनी हथेली के पिछले भाग का स्पर्श करके अनुभव कीजिए। क्या इसमें अनेक अस्थियाँ हैं (चित्र 5.9)? क्या आपकी कलाई लचीली है। यह अनेक छोटी-छोटी अस्थियों से बनी है जिन्हें कारपेल कहते हैं। यदि इसमें मात्र एक ही अस्थि होती, तो क्या होता?
चित्र 5.9 हाथ की अस्थियाँ
क्रियाकलाप 4
गहरी साँस भरकर इसे कुछ समय तक रोके रहिए। अपने वक्ष एवं पीठ को हल्के से दबाकर अपनी अस्थियों का अनुभव कीजिए। जितनी पसलियों (वक्ष की अस्थियाँ) को आप गिन सकते हैं, गिन लीजिए। चित्र 5.10 को ध्यान से देखिए और वक्ष की अस्थियों की तुलना अपने उपर्युक्त अनुभव से कीजिए। हम देखते
चित्र 5.10 पसली-पिंजर
हैं कि पसलियाँ विशेष रूप से मुड़ी हुई हैं। वे वक्ष की अस्थि एवं मेरुदंड से जुड़कर एक बक्से की रचना करती हैं। इस शंकुरूपी बक्से को पसली-पिंजर कहते हैं। वक्ष के दोनों तरफ 12 पसलियाँ होती हैं। हमारे शरीर के कुछ महत्वपूर्ण अंग इसमें सुरक्षित रहते हैं।
अपने कुछ मित्रों को बिना घुटने मोड़े झुककर अपने पाँव की अंगुलियाँ छूने को कहिए। क्या यह चिकनी, समतल अथवा अखंड है?
चित्र 5.11 मेरुदंड
अपनी अंगुलियों को अपने मित्र की गर्दन से प्रारंभ करके उसकी पीठ पर नीचे की ओर लाइए। आप के द्वारा अनुभव की गई संरचना मेरुदंड है। यह अनेक छोटी-छोटी अस्थियों से बना है, जिसे कशेरुका कहते हैं। मेरुदंड 33 कशेरुकाओं का बना होता है (चित्र 5.11)। पसली-पिंजर भी वक्ष क्षेत्र की इन अस्थियों से जुड़ा है।
यदि मेरुदंड केवल एक ही अस्थि का बना होता तो क्या आपका मित्र इस प्रकार नीचे झुक सकता था?
अपने मित्र को खड़े होकर हाथों से किसी दीवार को धक्का लगाने के लिए कहिए। उससे कहिए कि चित्र 5.11 मेंरुदंड वह अपने हाथों से दीवार पर धक्का लगाने का प्रयास करे। क्या आपको उसके कंधों के समीप दो उभरी हुई अस्थियाँ दिखाई देती हैं? इन्हें कंधे की अस्थियाँ कहते हैं (चित्र 5.12)।
चित्र 5.12 कंधे की अस्थियाँ
चित्र 5.13 को ध्यानपूर्वक देखिए। यह संरचना श्रोणि-अस्थियाँ हैं, यह बॉक्स के समान एक ऐसी संरचना बनाती हैं, जो आपके आमाशय के नीचे पाए जाने वाले विभिन्न अंगों की रक्षा करता है। यह कूल्हे वाला वह हिस्सा है, जिसके सहारे आप बैठते हैं।
चित्र 5.13 श्रोणि-अस्थियाँ
आपकी खोपड़ी अनेक अस्थियों के एक-दूसरे से जुड़ने से बनी है (चित्र 5.14)। यह हमारे शरीर के अति महत्वपूर्ण अंग, मस्तिष्क को परिबद्ध करके उसकी सुरक्षा करती है। हमने अपने कंकाल की
चित्र 5.14 मानव-खोपड़ी
बहुत-सी अस्थियों तथा संधियों के बारे में चर्चा की। कंकाल के कुछ अतिरिक्त अंग भी हैं जो हड्डियों जितने कठोर नहीं होते हैं और जिन्हें मोड़ा जा सकता है, उन्हें उपास्थि कहते हैं।
अपने कान को स्पर्श कीजिए? क्या आप किसी कठोर अस्थि भाग का अनुभव करते हैं जिसे मोड़ा जा सके (चित्र 5.15)। ऐसा प्रतीत होता है कि इसमें
चित्र 5.15 : कान के ऊपरी भाग में उपास्थि होती है
चित्र 5.16 : कर्णपालि
कोई अस्थि नहीं है। क्या आपको अंगुलियों के बीच दबाने पर कर्णपालि एवं इसके ऊपर के हिस्से में कोई अंतर महसूस हुआ (चित्र 5.16)? क्या आपको ऐसा लगा कि कान का ऊपरी भाग उतना लचीला नहीं है जितना कि हमारी कर्णपालि। परंतु यह अस्थि जैसा कठोर भी नहीं है। ये उपास्थि है। शरीर की संधियों में भी उपास्थि पाई जाती है।
हमने देखा है कि मानव कंकाल अनेक अस्थियों, संधियों एवं उपास्थियों से मिलकर बना होता है। आप उनमें से बहुत को देख सकते हैं, मोड़ सकते हैं तथा गति दे सकते हैं। अपनी नोटबुक में कंकाल का स्वच्छ आलेख बनाएँ।
हमने अपने शरीर की उन अस्थियों एवं उनकी संधियों के विषय में जानकारी प्राप्त कर ली है, जो विभिन्न प्रकार की गति करने में हमारी सहायता करती हैं। अस्थियों को इस प्रकार की गति करने योग्य कौन बनाता है? आइए, इसका पता लगाएँ।
अपने एक हाथ की मुट्री बनाइए। मुट्री के अंगूठे से इसी बाजू के कंधे को छूने का प्रयास कीजिए
चित्र 5.17 अस्थि को गति प्रदान करने में दो पेशियाँ संयुक्त रूप से कार्य करती हैं
(चित्र 5.17)। क्या आप अपनी ऊपरी भुजा में कुछ परिवर्तन अनुभव करते हैं? दूसरे हाथ से इसे छूकर देखिए। क्या आपको कोई उभरा हुआ भाग दिखाई देता है? इसे पेशी कहते हैं। संकुचित (लंबाई में कमी) होने के कारण पेशियाँ उभर आती हैं। अब आप अपने हाथ को पुनः सामान्य स्थिति में लाइए। पेशियों का क्या होता है? क्या यह अभी भी संकुचित अवस्था में हैं? चलते अथवा भागते समय आप अपने पैरों की पेशियों में भी इसी प्रकार का संकुचन देख सकते हैं।
संकुचन की अवस्था में पेशी छोटी, कठोर एवं मोटी हो जाती है। यह अस्थि को खींचती है।
किसी अस्थि को गति प्रदान करने के लिए दो पेशियों को संयुक्त रूप से कार्य करना होता है। जब दो पेशियों में से कोई एक सिकुड़ती है तो अस्थि उस दिशा में खिंच जाती है। युगल की दूसरी पेशी शिथिल (लंबाई में बढ़कर पतली हो जाती है) अवस्था में आ जाती है। अस्थि को विपरीत दिशा में गति करने के लिए अब शिथिल पेशी सिकुड़कर अस्थि को अपनी पूर्व स्थिति में खींचती है, जबकि पहली पेशी अब शिथिल हो जाती है। पेशी केवल खींच सकती है, वह धक्का नहीं दे सकती। अत: एक अस्थि को गति देने के लिए दो पेशियों को संयुक्त रूप से कार्य करना होता है (चित्र 5.17)।
क्या गति के लिए हमेशा अस्थियों एवं पेशियों की आवश्यकता होती है? दूसरे जंतु किस प्रकार चलते हैं? क्या सभी जंतुओं में अस्थियाँ पाई जाती हैं? केंचुए अथवा घोंघे में क्या होता है? आइए, कुछ जंतुओं की गतियों का अध्ययन करते हैं।
5.2 जंतुओं की चाल
केंचुआ
क्रियाकलाप 5
बगीचे में चलते हुए एक केंचुए का निरीक्षण कीजिए। इसे पकडकर एक स्याही सोख/फिल्टर पेपर पर रखिए। इसकी गति का प्रेक्षण कीजिए (चित्र 5.18)। इसके पश्चात् केंचुए को एक काँच की पट्टी/टुकड़े, टाइल अथवा किसी चिकनी सतह पर रखिए तथा इसकी गति का प्रेक्षण कीजिए? क्या यह गति पेपर पर केंचुए की गति से भिन्न है? ऊपर की दो सतहों में से किस पर केंचुआ आसानी से चल सकता है?
चित्र 5.18 केंचुए की गति
केंचुए का शरीर एक सिरे को दूसरे से सटाकर रखे गए अनेक छल्लों से बना प्रतीत होता है। केंचुए के शरीर में अस्थियाँ नहीं होती परंतु इसमें पेशियाँ होती हैं जो इसके शरीर के घटने और बढ़ने में सहायता करती हैं। चलने के दौरान, केंचुआ अपने शरीर के पश्च भाग को भूमि में जकड़े रहता है तथा अग्र भाग को फैलाता है। इसके बाद वह अग्र भाग से भूमि को पकड़ता है तथा पश्च भाग को स्वतंत्र कर देता है। इसके पश्चात् यह शरीर को संकुचित करता है तथा पश्च भाग को आगे की ओर खींचता है। इससे वह कुछ दूरी तक आगे बढ़ता है। केंचुआ इस प्रक्रिया को बार-बार दोहराते हुए मिट्टी पर आगे बढ़ता है। इसके शरीर में चिकने पदार्थ होते हैं जो इसे चलने में सहायता करते हैं।
यह अपने शरीर के हिस्से को ज़मीन से किस प्रकार टिकाता है? इसके शरीर में छोटे-छोटे अनेक शूक (बाल जैसी आकृति) होते हैं। ये शूक पेशियों से जुड़े होते हैं। ये शूक मिट्टी में उसकी पकड़ को मजबूत बनाते हैं।
केंचुआ वास्तव में अपने रास्ते में आने वाली मिट्टी को खाता है। उसका शरीर अनपचे पदार्थ को बाहर निकाल देता है। केंचुए द्वारा किया गया यह कार्य मिट्टी को उपजाऊ बना देता है जिससे पौधों को फायदा होता है।
घोंघा
क्रियाकलाप 6
किसी बगीचे में एक घोंघे का अवलोकन कीजिए। क्या आपने इसकी पीठ पर गोल संरचना देखी है (चित्र 5.19)?
इसे कवच कहते हैं और यह घोंघे का बाह्य-कंकाल है। परंतु यह अस्थियों का बना नहीं होता। यह कवच एकल एकक होता है और यह घोंघे को चलने में कोई सहायता नहीं करता। यह घोंघे के साथ खिंचता जाता है।
घोंघे को काँच की पट्टिका पर रखकर इसका प्रेक्षण कीजिए। जब यह चलना प्रारंभ करे तो सावधानी से काँच की पट्टिका को अपने हाथों से अपने सिर से ऊँचा उठाकर काँच के नीचे की ओर से उसके चलने के ढंग का प्रेक्षण कीजिए।
चित्र 5.19 घोंघा
कवच का छेद खुलने पर आपने उससे एक मोटी मांसल संरचना एवं सिर बाहर आते देखा है। मोटी संरचना इसका पाद (पैर) है जो दृढ़-पेशियों का बना होता है। अब सावधानीपूर्वक काँच की प्लेट को एक ओर थोड़ा-सा झुकाइए। पाद (पैर) की लहरदार गति दिखाई देती है। क्या घोंघे की गति केंचुए की गति से तीव्र है अथवा धीमी?
तिलचट्टा
क्रियाकलाप 7
किसी कॉकरोच (तिलचट्टा)का प्रेक्षण कीजिए (चित्र 5.20)।
तिलचट्टा ज़मीन पर चलता है, दीवार पर चढ़ता है और वायु में उड़ता भी है। इनमें तीन जोड़ी पैर होते हैं जो चलने में सहायता करते हैं। इसका शरीर कठोर बाह्य-कंकाल द्वारा ढका होता है। यह बाह्य-कंकाल विभिन्न एककों की परस्पर संधियों द्वारा बनता है जिसके कारण गति संभव हो पाती है।
चित्र 5.20 तिलचट्टा
वक्ष से दो जोड़े पंख भी जुड़े होते हैं। अगले पैर संकरे और पिछले पैर चौड़े एवं बहुत पतले होते हैं। तिलचट्टे में विशिष्ट पेशियाँ होती हैं। पैर की पेशियाँ उन्हें चलने में सहायता करती हैं। वक्ष की पेशियाँ तिलचट्टे के उड़ने के समय उसके परों को गति देती हैं।
पक्षी
क्रियाकलाप 8
पक्षी हवा में उड़ते हैं तथा भूमि पर चलते हैं। बत्तख तथा हंस जैसे कुछ पक्षी जल में तैरते भी हैं। पक्षी इसीलिए उड़ पाते हैं क्योंकि उनका शरीर उड़ने के लिए अनुकूलित होता है। उनकी अस्थियों में वायु प्रकोष्ठ होते हैं जिनके कारण उनकी अस्थियाँ हल्की परंतु मज़बूत होती हैं। पश्च पाद (पैरों) की अस्थियाँ चलने एवं बैठने के लिए अनुकूलित होती हैं। अग्र पाद की अस्थियाँ रूपांतरित होकर पक्षी के पंख बनाती हैं। कंधे की अस्थियाँ मज़बूत होती हैं। वक्ष की अस्थियाँ उड़ने वाली पेशियों को जकड़े रखने के लिए विशेष रूप से रूपांतरित होती हैं तथा पंखों को ऊपर-नीचे करने में सहायक होती हैं (चित्र 5.21)।
चित्र 5.21 पक्षी का कंकाल
मछली
क्रियाकलाप 9
कागज़ की एक नाव बनाकर उसे पानी पर इस प्रकार रखिए कि उसका नुकीला भाग आगे की ओर रहे। इसे धीरे से धक्का दीजिए [चित्र 5.22 (a)]। क्या यह जल पर आगे की ओर तेज़ी से जाती है?
(a)
(b)
चित्र 5.22 नाव से खेलना
अब नाव को दोनों सिरों से पकड़कर इस प्रकार धक्का दीजिए कि वह चौड़ी ओर से जल में जाए [चित्र 5.22(b)]। क्या इस प्रकार नाव जल में सरलता से चल सकती है?
क्या आपने ध्यान दिया है कि नाव की आकृति काफ़ी सीमा तक मछली जैसी है (चित्र 5.23)? मछली का सिर एवं पूँछ उसके मध्य भाग की अपेक्षा पतला एवं नुकीला होता है। शरीर की ऐसी आकृति धारा रेखीय कहलाती है।
चित्र 5.23 मछली
इसकी विशेष आकृति के कारण जल इधर-उधर बहकर निकल जाता है और मछली जल में सरलता से तैर सकती है। मछली का कंकाल दृढ़ पेशियों से ढका रहता है। तैरने की प्रक्रिया में शरीर का अग्र भाग एक ओर मुड़ जाता है तथा पूँछ विपरीत दिशा में जाती है। मछली चित्र 5.24 के अनुसार शरीर को मोड़ती है तो तीव्रता से उसकी पूँछ दूसरी दिशा में मुड़ जाती है। इससे एक झटका-सा लगता है और मछली आगे की ओर चली जाती है। इस प्रकार के क्रमिक ताल से मछली आगे की ओर तैरती रहती है। पूँछ के पख इस कार्य में उसकी सहायता करते हैं।
चित्र 5.24 मछली में गति
मछली के शरीर पर और भी पख होते हैं जो तैरते समय जल में संतुलन बनाए रखने एवं दिशा निर्धारण में सहायता करते हैं। क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि गोताखोर अपने पैरों में इन पखों की तरह के विशेष अरित्र (flipper) पहनते हैं जो उन्हें जल में तैरने में सहायता करते हैं?
सर्प कैसे चलते हैं?
क्या आपने साँप को फिसलते हुए आगे बढ़ते देखा है? क्या यह सीधा चलता है (चित्र 5.25)?
सर्प का मेरुदंड लंबा होता है। शरीर की पेशियाँ क्षीण एवं असंख्य होती हैं। वे परस्पर जुड़ी होती हैं चाहे वे दूर ही क्यों न हों। पेशियाँ मेरुदंड, पसलियों एवं त्वचा को भी एक-दूसरे से जोड़ती हैं।
सर्प का शरीर अनेक वलय में मुड़ा होता है। इसी प्रकार सर्प का प्रत्येक वलय उसे आगे की ओर धकेलता है। इसका शरीर अनेक वलय बनाता है और प्रत्येक वलय आगे को धक्का देता है, इस कारण सर्प
चित्र 5.25 सर्प में गति
बहुत तेज़ गति से आगे की ओर चलता है परंतु सरल रेखा में नहीं चलता।
हमने विभिन्न जंतुओं को गति प्रदान करने वाली अस्थियों एवं पेशियों के विषय में जानकारी प्राप्त की। पहेली एवं बूझो के पिटारे में विभिन्न जंतुओं की गतियों से संबंधित अनेक प्रश्न हैं। इसी प्रकार आपके मस्तिष्क में अनेक प्रश्न उभर रहे होंगे। प्रसिद्ध ग्रीक दार्शनिक अरस्तु ने अपनी पुस्तक गैट ऑफ एनिमल्स में स्वयं अपने आप से ऐसे अनेक प्रश्न पूछे थे। विभिन्न जंतुओं के शरीर में विभिन्न भाग क्यों होते हैं? यह विशेष अंग
उन जंतुओं की विशेष गति में किस प्रकार सहायक हैं? विभिन्न जंतुओं के शारीरिक अंगों में क्या समानताएँ एवं विभिन्नताएँ हैं? विभिन्न जंतुओं को चलने के लिए कितने अंगों की आवश्यकता होती है? मनुष्य के दो पैर तथा गाय और भैंस के चार पैर क्यों होते हैं? बहुत से जंतु समपादी होते हैं, क्यों? हमारे पैरों के मुड़ने का ढंग हमारे हाथों की तुलना में अलग क्यों है?
इतने अधिक प्रश्न! संभवतः अपने क्रियाकलापों द्वारा हमने कुछ प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने का प्रयास किया है। हमें कुछ और प्रश्नों के उत्तर खोजने हैं।
बेहतर जीवन के लिए योग
योग प्राचीन भारतीय परंपरा का एक अमूल्य उपहार है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित किया गया है। योग व्यक्ति को स्वस्थ रखता है। यह मेरुदंड को सीधा रखने में मदद करता है जिससे आप सीधे बैठते हैं झुक कर नहीं। योग की कई मुद्राएँ ऐसी हैं जिसमें आप स्वयं का वज़न उठाते हैं जिससे अस्थियाँ मज़बूत होती हैं और ऑस्टियोपोरोसिस से बचाती हैं। यह जोड़ों के दर्द को कम करती है जो अधिकतर बुज़ुर्ग लोगों में देखा जाता है। इससे शरीर की सभी माँसपेशियाँ सक्रिय रहती हैं, इससे हृदय भी स्वस्थ रहता है जिससे वह अधिक दक्षता से कार्य करता है। कुछ योग आसन ऐसे हैं जिसे एक प्रशिक्षित व्यक्ति की देखरेख में ही किया जाना चाहिए।
प्रमुख शब्द
मेरुदंड | पेशी |
कंदुक-खल्लिका संधि | बाह्य कंकाल |
शूक | श्रोणि-अस्थियाँ |
उपास्थि | धुराग्र संधि |
गुहिका | पसली-पिंजर |
अचल संधि | कंधे की अस्थियाँ |
जंतुओं की चाल | कंकाल |
हिन्ज संधि | धारारेखिय |
सारांश
अस्थि एवं उपास्थि मानव कंकाल बनाते हैं। यह शरीर का पिंजर बनाता है और इसे एक आकृति भी देता है। कंकाल चलने में सहायक है और आंतरिक अंगों की सुरक्षा करता है।
मानव कंकाल खोपड़ी, मेरुदंड, पसलियों, वक्ष की अस्थि, कंधे एवं श्रोणि मेखला तथा हाथ एवं पाँव की अस्थियों से बनता है।
पेशियों के जोड़े के एकांतर क्रम में सिकुड़ने एवं फैलने से अस्थियाँ गति करती हैं।
अस्थियों की संधियाँ अनेक प्रकार की होती हैं। यह उस संधि की प्रकृति एवं गति की दिशा पर निर्भर करता है।
पक्षियों की दृढ़ पेशियाँ तथा हल्की अस्थियाँ मिलकर उन्हें उड़ने में सहायता करती हैं। ये पंखों को फड़फड़ा कर उड़ते हैं।
मछली शरीर के दोनों ओर एकांतर क्रम में वलय बनाकर जल में तैरती है।
सर्प अपने शरीर के दोनों ओर एकांतर क्रम में वलय बनाते हुए भूमि पर वलयाकार गति करता हुआ आगे की ओर फिसलता है। बहुत सारी अस्थियाँ एवं उससें जुड़ी पेशियाँ शरीर को आगे की ओर धक्का देती हैं।
तिलचट्टे का शरीर एवं पैर कठोर आवरण से ढके होते हैं जो बाह्य-कंकाल बनाता है। वक्ष की पेशियाँ तीन जोड़ी पैरों एवं दो जोड़ी पंखों से जुड़ी होती है जो तिलचट्टे को चलने एवं उड़ने में सहायता करती हैं।
केंचुए में गति शरीर की पेशियों के बारी-बारी से विस्तरण एवं संकुचन से होती है। शरीर की अधः सतह पर शूक केंचुए को भूमि पर पकड़ बनाने में सहायक है।
घोंघा पेशीय पाद की सहायता से चलता है।
अभ्यास
1. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
(क) अस्थियों की संधियाँ शरीर को __________________ में सहायता करती हैं।
(ख) अस्थियाँ एवं उपास्थि संयुक्त रूप से शरीर का __________________ बनाते हैं।
(ग) कोहनी की अस्थियाँ __________________ संधि द्वारा जुड़ी होती हैं।
(घ) गति करते समय __________________ के संकुचन से अस्थियाँ खिंचती हैं।
2. निम्न कथनों के आगे सत्य (T) तथा असत्य (F) को इंगित कीजिए।
(क) सभी जंतुओं की गति एवं चलन बिलकुल एक समान होता है। $\text{()}$
(ख) उपास्थि अस्थि की अपेक्षा कठोर होती हैं। $\text{()}$
(ग) अंगुलियों की अस्थियों में संधि नहीं होतीं। $\text{()}$
(घ) अग्रभुजा में दो अस्थियाँ होती हैं। $\text{()}$
(ङ) तिलचट्टों में बाह्य-कंकाल पाया जाता है। $\text{()}$
3. कॉलम 1 में दिए गए शब्दों का संबंध कॉलम 2 के एक अथवा अधिक कथन से जोड़िए:
कॉलम 1 | कॉलम 2 |
---|---|
ऊपरी जबड़ा | शरीर पर पंख होते हैं। |
मछली | बाह्य-ककाल होता है। |
पसलियाँ | हवा में उड़ सकता है। |
घोंघा | एक अचल संधि है। |
तिलचट्टा | हृदय की सुरक्षा करती है। |
बहुत धीमी गति से चलता है। | |
का शरीर धारा रेखीय होता है। |
4. निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
(क) कंदुक-खल्लिका संधि क्या है?
(ख) कपाल की कौन-सी अस्थि गति करती है?
(ग) हमारी कोहनी पीछे की ओर क्यों नहीं मुड़ सकती?
सोचने के लिए बातें
हमने उन गतियों की चर्चा की जिनको करने में हमारा शरीर सक्षम है। इन सभी गतियों के लिए शरीर को स्वस्थ अस्थियों, पेशियों, संधियों एवं उपास्थि की आवश्यकता होती है। हममें से कुछ लोग ऐसे विकार से पीड़ित होते हैं, जिसके कारण इन गतियों को करना इतना सरल नहीं होता। अपनी कक्षा में ऐसे क्रियाकलापों का आयोजन कीजिए और ऐसे उपाय खोजने का प्रयास कीजिए जिनके द्वारा किसी एक प्रकार की गति बाधित होने पर भी व्यक्ति अपनी दिनचर्या सुचारु रूप से चला सके। उदाहरण के लिए क्रियाकलाप 1 का स्मरण कीजिए जिसमें आपने अपने हाथ पर एक पैमाना बाँधकर अपनी कोहनी की गति को बाधित कर दिया था। शरीर की सामान्य गतियों को कृत्रिम रूप से बाधित करने के कुछ और तरीके सोचिए तथा ऐसे उपाय खोजिए जिनके द्वारा प्रतिदिन के क्रियाकलाप संपादित किए जा सकें।