अध्याय 17 छोटी-सी हमारी नदी (कविता)

छोटी-सी हमारी नदी टेढ़ी-मेढ़ी धार,
गर्मियों में घुटने भर भिगो कर जाते पार
पार जाते ढोर-डंगर, बैलगाड़ी चालू,
ऊँचे हैं किनारे इसके, पाट इसका ढालू।
पेटे में झकाझक बालू कीचड़ का न नाम,
काँस फूले एक पार उजले जैसे घाम।
दिन भर किचपिच-किचपिच करती मैना डार-डार,
रातों को हुआँ-हुआँ कर उठते सियार।
अमराई दूजे किनारे और ताड़-वन,
छाँहों-छाँहों बाम्हन टोला बसा है सघन।
कच्चे-बच्चे धार-कछारों पर उछल नहा लें,
गमछों-गमछों पानी भर-भर अंग-अंग पर ढालें।
कभी-कभी वे साँझ-सकारे निबटा कर नहाना
छोटी-छोटी मछली मारें आँचल का कर छाना।
बहुएँ लोटे-थाल माँजती रगड़-रगड़ कर रेती,
कपड़े धोतों, घर के कामों के लिए चल देतीं।
जैसे ही आषाढ़ बरसता, भर नदिया उतराती,
मतवाली-सी छूटी चलती तेज़ धार दन्नाती।
वेग और कलकल के मारे उठता है कोलाहल,
गँदले जल में घिरनी-भँवरी भँवराती है चंचल।
दोनों पारों के वन-वन में मच जाता है रोल्म
वर्षा के उत्सव में सारा जग उठता है टोला।

$\quad$ रवींद्रनाथ ठाकुर


तुम्हारी नदी

1. तुम्हारी देखी हुई नदी भी ऐसी ही है या कुछ अलग है? अपनी परिचित नदी के बारे में छूटी हुई जगहों पर लिखो-

………………….. सी हमारी नदी ………………….. ………………….. धार
गर्मियों में …………………. …………………. , …………………. …………………. जाते पार

2. कविता में दी गई इन बातों के आधार पर अपनी परिचित नदी के बारे में बताओ-

• धार $\quad$ $\quad$ • पाट $\quad$ $\quad$ • बालू $\quad$ $\quad$ • कीचड़ $\quad$ $\quad$ • किनारे $\quad$ $\quad$ • बरसात में नदी

3. तुम्हारी परिचित नदी के किनारे क्या-क्या होता है?

4. तुम जहाँ रहते हो, उसके आस-पास कौन-कौन सी नदियाँ हैं? वे कहाँ से निकलती हैं और कहाँ तक जाती हैं? पता करो।

कविता के बाहर

1. इसी किताब में नदी का ज़िक्र और किस पाठ में हुआ है? नदी के बारे में क्या लिखा है?

2. नदी पर कोई और कविता खोजकर पढ़ो और कक्षा में सुनाओ।

3. नदी में नहाने के तुम्हारे क्या अनुभव हैं?

4. क्या तुमने कभी मछली पकड़ी है? अपने अनुभव साथियों के साथ बाँटो।

ये किसकी तरह लगते हैं?

1. नदी की टेढ़ी-मेढ़ी धार?

2. किचपिच -किचपिच करती मैना?

3. उछल-उछल के नदी में नहाते कच्चे-बच्चे?

कविता और चित्र

  • कविता के पहले पद को दुबारा पढ़ो। वर्णन पर ध्यान दो। इसे पढ़कर जो चित्र तुम्हारे मन में उभरा उसे बनाओ। बताओ चित्र में तुमने क्या-क्या दर्शाया?

कविता से

1. इस कविता के पद में कौन-कौन से शब्द तुकांत हैं? उन्हें छाँटो।

2. किस शब्द से पता चलता है कि नदी के किनारे जानवर भी जाते थे?

3. इस नदी के तट की क्या खासियत थी?

4. अमराई दूजे किनारे …………… चल देतीं।

कविता की ये पंक्तियाँ नदी किनारे का जीता-जागता वर्णन करती हैं। तुम भी निम्नलिखित में से किसी एक का वर्णन अपने शब्दों में करो-

  • हफ़्ते में एक बार लगने वाला हाट
  • तुम्हारे शहर या गाँव की सबसे ज़्यादा चहल-पहल वाली जगह
  • तुम्हारे घर की खिड़की या दरवाज़े से दिखाई देने वाला बाहर का दृश्य
  • ऐसी जगह का दृश्य जहाँ कोई बड़ी इमारत बन रही हो

5. तेज़ गति शोर मोहल्ला धूप किनारा घना ऊपर लिखे शब्दों के लिए कविता में कुछ खास शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। उन शब्दों को नीचे दिए अक्षरजाल में ढूँढ़ो।


जोड़ासांको वाला घर

उत्तरी कलाकत्ता की एक छोटी-सी अंधी गली में एक अजीब-सा मकान है उसमें बहुत-सी चक्कऱदार सीढियाँ हैं जो दरवाज़ों वाले अनजाने कमरों तक जाती हैं और उसमें ऊँची-नीची ज़मीन पर, अलग-थलग छज्जो और चबूतरे हैं।

सामने के कमरे और बरामदे बड़े-बड़े और खूूबसूरत हैं। उनका फ़र्श संगमरमर का है। लंबी खिड़कियों में रंगीन काँच लगे हुए । उस अहाते में कुछ और बड़े-बड़े मकान हैं, घास का मैदान है, बजरी का राश्ता है और फूलों वाली झाडियाँ हैं। पूरी जगह को ऊँची चारदीवारी के घेर रखा है। उसमें दो बहुत बड़े फाटक हैं जो अंधी गली में खुलते हैं।

कलकत्ता के लोग इसे टैगोर भवन कहते हैं। अब से लगभभ दो सौ बरस पहले, ईस्ट इंडिया कंपनी के ज़माने में, यह मकान बना था।

वह छोटी-सी गली और उसका नन्हा-सा शिव मंदिर भी पुराना है। उस सारी जगह पर पुरानेपन की छाप आज भी मौजूद है। संकरी गली जहाँ बड़ी सड़क से जा मिलती थी, उसके कोने पर एक छोटा अहाता दिखाई पड़ता था। उसमें पीतल के बने चिड़ियों के अड्डों की एक कतार थी और हर अड्डे पर भड़कीले रंगों वाला एक-एक काकातुआ था। उनकी कड़वी तीखी चीखा-चिल्लाहट की आवाज़ा चारों ओर गूँजती रहती थी। अड़ोस-पड़ोस की सारी जगह कुछ अजीब और गैरमामूली ढंग की थी।

टैगोर परिवार तभी से इसमें रहता था। बीच-बीच में वे लोग इसमें बढ़ोतरी भी करते जाते थो। आज से एक सौ बरस पहले, बरसाती मौसम के तीसरे पहर, एक खूबसूरत लड़का खिड़.की से झुककर बेचेनी के साथ पानी से भरी गली की ओर देख रहा था। उसने मामूली सूती कपडे़. और सस्ते स्लीपरों की जोड़ी पहन रखी थी। उसके केश कुछ ज़्यादा ही लंबे थे। वह डेसा लग रहा था, जैसे कितने ही दिनों से उसकी हज़ामत न हुई हो। कुछ लोगों का कहना था कि वह लड़की जैसा दिखाता था। एक बार उसके स्कूल के एक साथी ने यह अफ़्रवाह फैला दी कि वह सचमुच एक लड़की ही है जो लड़.कों जैसे कपड़े पहनती है। इस बात को साबित करने के लिए उसके साथियों ने उसे चाय पीने के लिए बुलाया। उन लोगों ने उसे एक ऊँचे बेंच पर से कूदने को मज़बूर किया, क्योंकि उनका खायाल था कि लड़कियाँ नीचे उतरते समय पहले बायाँ पैर उठाती हैं। वह कूद तो गया, लेकिन बहुत दिनों बाद तक उसे उस चाय-पार्टी के बारे में कोई संदेह नहीं हुआ। लड़के का नाम रबींद्रनाथ या संक्षेप में रबि था।

बरसाती मौसम के एक तीसरे पहर, आठ साल का रबि अपने मास्टर के आने की रह देख रहा था। वह मन-ही-मन चाह रहा था कि पानी भरी सड़कों के कारण माश्टर जी न आ पाडँ। लेकिन अफ़सोस, वक्त की पूरी पाबंदी के साथ, उसकी तमाम उम्मीढों को मिट्टी में मिलाता हुआ, सड़क के मोड़ पर पैबंद लगा एक काला छाता दिखा पड़ा। अब अपनी किताबें लेकर नीचे के एक मध्दिम रोशनी वाले कमरे में जा बैठने के सिवा और कोई उपाय न था। उसकी आँखों नींद से बोझिल हो रही थीं, लेकिन रात में देर तक पढ़ना था-अँल्रेज़ी, गणित, विज्ञान, इतिहास और भूगोल। यहाँ तक कि आदमी के शरीर की हड्डियों की जानकारी पाने के लिए उसे एक नर-कंकाल को भी हाथ लगाना पड़ता था। यह अजीब-सी बात थी कि मास्टर जी के जाते ही उसकी ऑँखों की नींद गायब हो गई।

उस ज़माने में बिजली की बत्तियाँ नहीं थीं, यहाँ तक कि गैस की रोशनी का भी ज़्यादा चलन नहीं था। पानी के नल का भी कोई पता नहीं था। नीचे के एक अँधेरे कमरे में, जहाँ सूरज की रोशनी नहीं पढुँचती थी, मिट्टी के घड़ों में भरकर साल भर के लिड पीने का पानी इकट्टा किया जाता था। नन्हा रबि जब कभी उस कमरे में झॉंकता, उसका बदन सिहर उठता था। लेकिन घरवालों को नदी का भरपूर पानी मिल जाता था, क्योंकि सीधे गंगा से नहर खोदकर पिछवाड़े के बगीचे और अहाते में लाई गई थी। जब बाढ़ का पानी चढ़ आता तो रबि बडे. अचरज और बड़ी खुुशी से कलकल-छलछल करती नदी के पानी को देखा करता था, जो सूरज की किरणों से रोशनी लेकर चमक-चमक उठता था। कभी-कभी छोटी मछलियाँ धारा के साथ बह आती थीं और उस छोटे-से तालाब में फिसल जाती थीं जिसमें चाचा ने सुनहरी मछलियाँ पाल रखी थीं। छोटी मछलियों के साथ रबि का दिल भी उछल पड़ता था।

सचमुच वह अचरज भरा मकान था लोगों की भीड़. से भरा हुआ। पिता, माता, चाचा, चाचियाँ, भाई, बहनें, चचेरे भाई, भाभियाँ, दोस्त, दोस्तों के दोस्त, कलाकार, गाने-बजानेवाले, लेखक, सभी थे वहाँ। अब यह घर शांति निकेतन का एक हिस्सा है। रबि जब बडा़ हुआ तो उसने अपनी ज़िंदगी का ज़्यादातर हिस्सा शांति निकेतन में बिताया। शांति निकेतन में उसने अपना निज का स्कूल बनवाया। यह जगत प्रसिद्ध शांति निकेतन विश्वविद्यालय के एक अंग के रुप में आज भी वहाँ मौजूद है।

$\quad$ लीला मजूमदार



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