अध्याय 15 बिशन की दिलेरी (कहानी)
सुबह का समय था। पहाड़ों के पीछे से सूरज झाँक रहा था। दस वर्ष का बिशन घर से बाहर निकल आया। वह रोज़ इसी समय, इसी रास्ते से कर्नल दत्ता के फ़ार्म हाउस पर जाता है। कर्नल दत्ता की पत्नी पढ़ाई में उसकी मदद करती हैं। फ़ार्म से लगे सेबों के बाग में कीटनाशक दवा का छिड़काव हो रहा था और बहुत तड़के काम शुरू हो जाता था। बिशन पगडंडी से अभी सड़क तक आ ही रहा था कि उसे गोली चलने की आवाज़ सुनाई दी। उसने इधर-उधर देखा, कोई भी दिखाई नहीं दिया। वह कुछ ही दूर चला था कि उसे फिर गोली चलने की आवाज़ सुनाई दी। इस बार एक नहीं, दो-तीन गोलियाँ एक साथ ही चली थीं। गोलियों की आवाज़ से पूरी घाटी गूँज गई। पंछी घबरा गए। आसमान में गोल-गोल चक्कर काटने लगे। बिशन सहमकर पेड़ों की आड़ में छिपकर खड़ा हो गया।
बिशन जहाँ खड़ा था, वहीं चुपचाप खड़ा रहा। उसे वहाँ से सीढ़ीनुमा खेत और फलों के बाग साफ़ दिखाई दे रहे थे। खेतों में काम करते हुए किसान भी दिखाई दे रहे थे। फ़सल तैयार खड़ी थी। सुबह की हल्की धूप में खेत सुनहरे दिखाई दे रहे थे। बिशन अभी सोच ही रहा था कि गोली किसने और क्यों चलाई होगी कि तभी एक और गोली की आवाज़ आई। एकाएक बिशन को गोली चलने का कारण समझ में आ गया। जब फ़सल पक जाती है
तब गेहूँ के खेतों में दाना चुगने ढेरों तीतर आ जाते हैं। शिकारी इस बात को जानते हैं। इसलिए वे सुबह-सुबह ही तीतर मारने चले आते हैं। पिछले साल भी शिकारियों ने इसी तरह बहुत से तीतर मारे थे। कुछ तीतर तो वे उठा ले गए, बाकी को वहीं छोड़ गए। खेतों को काटते समय किसानों को बहुत-से मरे और ज़ख्मी तीतर मिले।
बिशन ने सोचा, “कितना दुख पहुँचाने वाला काम करते हैं ये शिकारी!” वह समझा गया कि शिकारी ही तीतरों पर गोलियाँ चला रहे हैं। इसलिए वह पेड़ों के बीच से निकलकर खेतों के किनारे-किनारे चलने लगा। वह चलते-चलते सोच रहा था कि इन शिकारियों को सबक सिखाया जाना चाहिए। लेकिन उन्हें कैसे सबक सिखाया जाए, यह उसकी समझ में नहीं आ रहा था। तभी उसके पाँव के पास सरसराहट-सी हुई। उसने देखा एक घायल तीतर गेहूँ की बालियों के बीच फँसा छटपटा रहा है। बिशन वहीं घुटनों के बल बैठ गया उसने घायल तीतर को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया, लेकिन घबराया हुआ तीतर छिटककर खेत के और अंदर चला गया। बिशन जानता था कि शिकारी इस तीतर को ढूँढ़ नहीं पाएँगे और घायल तीतर यहीं तड़प-तड़पकर मर जाएगा। उसने स्वेटर उतारा और मौका देखकर तीतर पर डाल दिया। तीतर स्वेटर में फँस गया तो बिशन ने उसे पकड़ लिया। बिशन ने उसे अपने सीने से चिपका लिया और खेत में से निकलकर पहाड़ी की ओर भागने लगा। वह इतना तेज़ चल रहा था मानो उसके पंख लग गए हों।
कर्नल दत्ता के घर के रास्ते में एक तरफ़ गेहूँ के खेत थे और दूसरी तरफ़ कँटीले तारों की बाड़। बिशन वैसे तो कँटीले तारों की बाड़ में से होकर निकल सकता था, परंतु इस समय वह दोनों हाथों से तीतर को पकड़े हुए था। तीतर को सँभालना बहुत ज़रूरी था। इसलिए वह खेतों के साथ-साथ छिप-छिपकर चलने लगा ताकि शिकारी उसे देख न लें।
वह कुछ ही दूर गया कि पीछे से भारी-सी आवाज़ आई, “लड़के, रुक जा, नहीं तो मैं गोली मार दूँगा।”
लेकिन बिशन नहीं रुका। वह चुपचाप चलता रहा।
“रुकता है या नहीं?” उस आदमी ने दुबारा चिल्लाकर कहा। तब तक बिशन कँटीले तारों के पास आ गया था। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। आगे बढ़ना मुश्किल लग रहा था। लेकिन फिर भी वह रुका नहीं और न ही उसने कोई जवाब दिया।
तभी बिशन को भारी-भरकम जूतों की आवाज़ सुनाई दी, जो तेज़ी से उसके पास आती जा रही थी। पीछे से आ रहा शिकारी गुस्से में ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहा था, “मैं तुझे देख लूँगा, तू मेरा शिकार चुराकर नहों ले जा सकता!”
बिशन के लिए आगे निकल भागने का रास्ता नहीं था। अगर वह सड़क से जाता तो शिकारी को साफ़ दिखाई दे जाता। इसलिए उसने खेतों के छोटे रास्ते से जाना तय किया। खेतों से आगे के रास्ते में काँटेदार झाड़ियाँ थीं। बिशन उसी रास्ते पर घुटनों के बल चलने लगा। बहुत सँभलकर चलने पर भी उसके हाथ-पाँव पर काँटों की बहुत-सी खरोंचें उभर आईं। खरोंचों से खून भी निकलने लगा। उसकी कमीज़ की एक आस्तीन भी फट गई। वह जानता था कि कमीज़ फटने पर उसे माँ से डाँट खानी पड़ेगी। पर बिशन को इस बात का संतोष था कि वह अब तक तीतर की जान बचाने में कामयाब रहा। झाड़ी से बाहर आकर वह सोचने लगा कि कैसे पहाड़ी के कोने-से फिसलकर नीचे पहुँचा जाए, लेकिन उस कोने में घास बहुत ज़्यादा थी और ओस के कारण फिसलन भी। बिशन थककर वहीं एक किनारे बैठ गया। अभी वह बैठा ही था कि उसे पाँवों की आहट सुनाई दी। आहट सुनते ही वह उठकर दौड़ पड़ा। दौड़ते-दौड़ते वह आधी पहाड़ी पार कर चुका था। उसके कपड़े पसीने से तर-ब-तर हो गए, फिर भी वह रुका नहीं और किसी तरह कर्नल दत्ता के फ़ार्म हाउस के पिछवाड़े पहुँच ही गया। पिछवाड़े दरवाज़ा खुला था। उसने ताड़ के पेड़ का सहारा लिया और फ़ार्म हाउस के अंदर पहुँच गया। तीतर को वह बड़ी सावधानी के साथ अपने सीने से लगाए हुए था।
फ़ार्म हाउस में खामोशी थी। बस, रसोई घर से प्रेशर कुकर की सीटी की आवाज़ आ रही थी। मुर्गियाँ अभी अपने दड़बे में थीं और गुलाब चंद सामने का बरामदा साफ़ कर रहा था।
अचानक कर्नल साहब का अल्सेशियन कुत्ता ज़ोर-ज़ोर से भौंकने लगा। वह किसी अजनबी को देखकर ही इस तरह भौंकता है। बिशन समझ गया कि शिकारी इधर ही आ रहे हैं।
उसने इधर-उधर देखा ताकि वह तीतर को कहीं अच्छी तरह से छिपा सके। एक ओर शेड के नीचे बहुत सारा कबाड़ पड़ा था। उसी में एक टूटी टोकरी बिशन को दिखाई दे गई। “ये ठीक है” सोचते हुए उसने तीतर को टोकरी में रखकर स्वेटर से ढक दिया। घायल तीतर घबराया हुआ था इसलिए वह चुपचाप पड़ा रहा। तीतर को छुपाने के बाद बिशन ने सोचा कि अब बाहर चलकर देखना चाहिए। पर वह शिकारियों के सामने भी नहीं पड़ना चाहता था, इसलिए उसने छत पर चढ़कर बैठना ठीक समझा। बिना सीढ़ी के छत पर चढ़ना उसके लिए बहुत आसान काम था। वह अकसर इस शेड की ढलवाँ छत के सहारे ऊपर चढ़ जाता था। बिशन लकड़ी के खंभे पर बंदर की तरह छलाँग लगाकर लटक गया और ऊपर की ओर खिसकते-खिसकते छत पर जा पहुँचा। खपरैल की ढलावदार छत थी, इसलिए वह चिमनी के पीछे छिपकर बैठ गया ताकि वह किसी और को दिखाई न दे, लेकिन वह स्वयं सब कुछ देख सके। उसने देखा कि दो शिकारी इधर ही चले आ रहे हैं और उनको देखकर कर्नल साहब का अल्सेशियन कुत्ता ज़ोर-ज़ोर से भौंक रहा है।
कर्नल ने कुत्ते को डाँटा, “चुप रहो।” पर वह न माना। पिछले दोनों पाँवों पर खड़े हो वह उछल-उछलकर भौंकने लगा।
वे दोनों शिकारी करीब आ गए तो कर्नल ने रौबदार आवाज़ में पूछा, “कौन हो तुम? यहाँ किसलिए आए हो?”
“साहब, हम शिकारी हैं! हर साल यहाँ शिकार के लिए आते हैं।”
“अच्छा… तो तुम्हीं लोगों की गोलियों की आवाज़ें गूँज रही थीं सुबह से!”
“जी हाँ, हमारे पास लाइसेंस वाली बंदूकें हैं। सरपंच माधो सिंह भी हमें जानता है।”
“तो तुम हर साल तीतरों का शिकार करते हो,” कर्नल ने मज़ाक-सा उड़ाते हुए कहा।
“जी हाँ, तीतर भी मार लेते हैं कभी-कभी। अभी-अभी एक लड़का हमारे शिकार तीतर को लेकर आपके यहाँ आ छिपा है, हम उसे ही ढूँढ़ रहे हैं।” “अच्छा, तुम जो इतने सारे तीतर मारते हो उनका क्या करते हो?” कर्नल साहब ने पूछा।
“सीधी-सी बात है साहब, खाते हैं।” दूसरे शिकारी ने जवाब दिया। फिर कुछ रुककर बोला, “अब तो उस लड़के को ढुँढ़वा दीजिए साहब! वह इधर ही कहीं छुप गया है।”
कर्नल दत्ता ने उनकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और गुस्से से कहा, “कैसे हो तुम लोग, हर साल आकर इतने तीतर मार डालते हो! कुछ को खा लेते हो, और बाकी को घायल करके यहाँ तड़प-तड़पकर मरने के लिए छोड़ जाते हो। जब फ़सल कटती है तब ढेरों मरे हुए तीतर मिलते हैं।”
कर्नल दत्ता की बात सुनकर वे दोनों कुछ घबरा गए। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि कर्नल इस तरह उन्हें डाँट देंगे। कर्नल दत्ता ने उन्हें इतना ही कहकर नहीं छोड़ा, आगे बोले, “पक्षियों को मारने और उससे ज़्यादा उन्हें घायल करके छोड़ जाने में तो कोई बहादुरी नहीं है। अब तुम दोनों यहाँ से जा सकते हो। यहाँ तुम्हारा कोई तीतर-वीतर नहीं है। अब जाते क्यों नहीं, खड़े क्यों हो?”
बिशन चिमनी के पीछे से सब देख और सुन रहा था। वे दोनों शिकारी बिना कुछ बोले मुड़े और वापस चल दिए।
कर्नल दत्ता ने गुलाब चंद से दवाई छिड़कने वाली मशीन लाने को कहा।
तभी बिशन छप्पर से शेड पर होता हुआ नीचे कूद पड़ा। उसने तीतर को उठा लिया और घर में घुसते ही मालकिन को पुकारने लगा, “बहूजी! बहूजी! जल्दी आइए, यह बहुत ज़ख्मी है, आकर इसे देखिए!”
बिशन की आवाज़ सुनकर कर्नल दत्ता भी अंदर जा पहुँचे और बोले, “अच्छा! तो तीतर चुराने वाला लड़का तू ही था!”
“क्या करता बाबूजी, इसे बहुत चोट लगी है! अगर मैं न लाता तो यह मर जाता!”
“अब तू इसका क्या करेगा?”
“इसे पालूँगा बाबूजी,” बिशन ने कहा।
कर्नल साहब मुस्करा दिए। उन्होंने घायल तीतर को देखा। उसका एक पंख टूट गया था। अब शायद ही वह उड़ सके।
“जाओ, दवाइयों का बक्सा लेकर आओ।”
बिशन दौड़कर बक्सा ले आया।
कर्नल दत्ता ने तीतर के पैरों का ज़ख्म साफ़ किया। फिर दवाई लगा दी। पंख को फैलाकर टेप लगा दिया ताकि वह ज़्यादा हिले-डुले नहीं। फिर उन्होंने बिशन से कहा, “बिशन, अगर तुम इसे गेंदे के पत्तों का रस दिन में दो-तीन बार पिलाओगे तो यह जल्दी ठीक हो जाएगा।”
तब तक बहूजी एक कटोरी में दलिया ले आईं और तीतर को दलिया खिलाते हुए बोलीं, “इसे रोज़ दलिया भी खिलाना बिशन, तीतर को दलिया बहुत पसंद होता है।”
“तब तो यह बिशन के पीछे-पीछे ही घूमता रहेगा,” कर्नल ने हँसते हुए कहा।
“अच्छा बिशन, तुम जानते हो तीतर कैसे बोलता है?” बहूजी ने पूछा।
बिशन ने अपने हाथों को मुँह पर रखकर तीतर की आवाज़ निकाली, “क्वाक… क्वाक… क्वाक…” कर्नल दत्ता ठहाका मारकर हँस पड़े।
बहूजी भी मुँह पर पल्लू रखकर हँसने लगीं।
बिशन भी हँसता हुआ हिरन की तरह छलाँगें लगाता तीतर के साथ वहाँ से अपने घर की ओर भाग चला।
$\quad$ प्रतिभा नाथ
कहानी से
1. “जी हाँ, हमारे पास लाइसेंस वाली बंदूकें हैं। सरपंच माधोसिंह भी हमें जानता है।” शिकारियों ने कर्नल साहब से क्या सोचकर ऐसा कहा होगा?
2. बिशन घायल तीतर को क्यों बचाना चाहता था?
3. घायल तीतर को बचाने के लिए उसे किस तरह की परेशानियाँ हुई?
4. घायल तीतर अगर तुम्हें मिला होता, तो क्या तुम उसे पालते या अच्छा होने पर छोड़ देते? क्यों?
भाषा की बात
1. इन वाक्यों को अपने शब्दों में लिखो-
- सुबह की हल्की धूप में खेत सुनहरे दिखाई दे रहे थे।
- वह इतना तेज़ चल रहा था मानो उसके पंख लग गए हों।
2. “तीतर स्वेटर में फँस गया तो बिशन ने $\underline{\text{उसे}}$ पकड़ लिया और $\underline{\text{अपने}}$ सीने से चिपका लिया”। ऊपर लिखे वाक्य में ‘उसे’ शब्द का इस्तेमाल ‘तीतर’ के लिए किया गया है। एक ही संज्ञा का बार-बार इस्तेमाल करने की बजाय उसकी जगह पर कुछ खास शब्दों का प्रयोग किया जाता है। ऐसे शब्दों को सर्वनाम कहते हैं। नीचे लिखे वाक्यों में सर्वनाम का ठीक रूप छाँटकर लिखो।
(क) मास्टर साहब ने अप्पाराव को ………………….. पास बुलाकर कहा, ………………….. कल ………………….. घर आना। (मैं, अपना, तुम)
(ख) सेंटीला ………………….. घर नागालैंड के किस शहर में है? (तुम)
(ग) सुधा ने ………………….. बुआ से पूछा, पापा ………………….. कितने बड़े हैं? (आप)
(घ) मोहन को समझ में नहीं आ रहा कि ………………….. क्या करना चाहिए? (वह)
(ङ) विमल ने ………………….. अफ़सर को याद दिलाया कि ………………….. चार बजे बैठक में जाना है। (आप, वह)
3. इन वाक्यों को पूरा करो-
(क) वह इतना धीरे चल रहा था, मानो …………………………………….
………………………………………………………………………………………….
(ख) रात में चमकते तारे ऐसे दिख रहे थे, मानो ………………………..
………………………………………………………………………………………….
(ग) तुम तो मंगल ग्रह के बारे में ऐसे बता रहे हो, मानो ………………
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(घ) बिल्ली चूहे को ऐसी ललचाई नज़रों से देख रही थी, मानो …….
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फ्रसलों के इर्द-गिर्द
1. इस कहानी में सेबों के खेत और सीढ़ीनुमा खेत का ज़िक्र आया है। अनुमान लगाकर बताओ कि यह कहानी भारत के किस भौगोलिक क्षेत्र की होगी और वहाँ सीढ़ीनुमा खेती क्यों की जाती होगी?
2. “सेबों के बाग में कीटनाशक दवा का छिड़काव हो रहा था।” यों तो कीटनाशक दवाएँ फलों, सब्जियों और अनाज की फ़सलों को कीड़ा लगने से बचाती हैं, पर
(क) ये कीटनाशक दवाएँ कीड़ों को नष्ट करती हैं। इनसे इनका सेवन करने से क्या हमें भी नुकसान होता होगा? पता करो और कक्षा में बातचीत करो।
(ख) ऐसे में फलों और सब्ज़्यों का इस्तेमाल करने से पहले किन बातों को ध्यान में रखना ज़रूरी होगा?
तुम्हारे आस-पास
1. कर्नल दत्ता ने घायल तीतर को गेंदे की पत्तियों का रस पिलाने के लिए कहा। पत्तों का इस्तेमाल कई कामों के लिए होता है। नीचे लिखी पत्तियों का इस्तेमाल किसलिए होता है?
तुलसी $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ नीम $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ मीठा नीम $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ आम
अमरूद $\qquad$ $\quad$ $\qquad$ तेजपत्ता $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ केला $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ सागवान
2. “कर्नल साहब के कहने पर बिशन दौड़कर ‘दवाइयों का बक्सा’ ले आया।” इसे तुम ‘प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स/फ़र्स्ट एड बॉक्स’ के नाम से जानते होंगे।
(क) इस बक्से में क्या-क्या चीज़ें होती हैं?
(ख) इसका इस्तेमाल कब-कब किया जाता है?
3. तुमने पर्यावरण अध्ययन में पढ़ा होगा कि पहाड़ी क्षेत्रों में आमतौर पर छतें ढलावदार बनाई जाती हैं। सोचकर बताओ कि ऐसा क्यों किया जाता है।
पहाड़ी इलाका
इस कहानी में पहाड़ी, घाटी शब्दों का इस्तेमाल हुआ है। पहाड़ी इलाके से जुड़े हुए और शब्द सोच कर लिखो। जैसे - ढलान, चट्टान आदि।
तीतर
1. पहेली - तीतर के दो पीछे तीतर, तीतर के दो आगे तीतर, बोलो कितने तीतर?
2. यहाँ तीतर का फ़ोटो दिया गया है। गौर से देखो और उसका वर्णन करो। चौथी में तुम यह कर चुके हो।
3. तीतर के बारे में और जानकारी इकट्ठा करो। जैसे - तीतर का घोंसला, वह क्या खाता है आदि।
रात भर बिलखते-चिंघाड़ते रहे उड़ीसा राज्य के सिम्प्लीपाल टाइगर रिजर्व में पच्चीस हाथियों का झुंड रहता था। इस झुंड में कुछछ धुई भी थीं। जिन हथिनियों के साथ दुधुमुँहे बच्चे हों उन्हें धुई कहते हैं। दाँव लगे तो हाथी के छोटे बच्चे को शेर मार लेता है। झुंड के बड़े. दतैैल और बड़ी हथिनियाँ बच्चों की रक्षा करती हैं।
सर्दियों में जब घास कम हो जाती है तो हाधियों के बड़े झुंड को जंगल के एक खंड में काफ़ी खाना नहीं मिलता। वे छोटी टोलियों में बँटकर अलग-अलग वनखंडों में चरने चले जाते हैं।
1988 के दिसंबर महीने का पहला सप्ताह गुज़र रहा था। उन दिनों सिम्प्लीपाल जंगलों के हाथी दो टोलियों में बँट कर बाराकमारा-तिनाधिया सड़क के साथ चौड़े में चर रहे थो।
एक धुई दो साल का बच्चा था। झुंड में सबसे छोटा यही था। वह माँ का दूधा चूँघता था।
इस बच्चे ने जंगल की गास-पत्ती को मुँह लगाना शुरु कर दिया था। झाड़ियों, पेड़ों और पगडंडियों को जानने-पहिचानने की स्वाभाविक इच्छा उसमें पैढा हो चुकी थी। एक सुबह वह अपनी टोली से ज़रा अलग होकर नाले की तरफ़ जा रहा था। रात का दौरा लगाने के बाद इस इलाके का शेर वहीं सो रहा था। वह बच्चे पर झपट पड़ा। बच्चा चिंटाडा़, उसकी चिंघाड़ सुन कर सभी हाथी उसे बचाने ढौड़े। बड़े, हाधियों के सामने शेर नहीं टिका। उसे छोड़कर नाले में चला गया।
शेर का हमला इतना ज़ोरदार था कि कुछ ही क्षणों में उसने बच्चे को बुरी तरह ज़ख्मी कर दिया। सबसे बड़ा घाव सिर पर था। सयाने हाथी उसे ऊपरी बाराकमारा में रेंजर ऑफ़िस के सामने ले गए। जंगल के जानवरों की देखाभाल और रक्षा करना, रेंज ऑफ़िसर की ज़िम्मेदारी होती है। उसके दफ़्तर के सामने पहुँचकर हाथी मानो अपने को सुरक्षित अनुभव कर रहे थो।
कुछ देर बाद आधे हाथी चरने चले गड़। बाकी हाथी ज़ख्मी बच्चे की निगरानी में वहीं डटे रहे। उसकी माँ सूँड में घास का पूला उठाकर चँवर डुलाती रही जिससे घाव पर मक्खियाँ न बैठें। उसकी आँखों से आँसुओं की धारा टपक रही थी। बच्चा इतना ज़ख्मी हो गया था कि दूधा नहीं चूँघ सकता था। जंगल में जानवरों के छोटे-मोटे घाव प्रकृति खुद ठीक कर दिया करती है। पर इस बच्चे के घाव जानलेवा थो। अगले दिन उसने दम तोड़. दिया।
मरने की खाबर मिलते ही चरने के लिए गए हुए हाथी लौट आए। रेंजर ऑफ़िस के सामने सभी शोक सभा में शामिल हो गडा शव को घेरकर सारी रात वहीं खड़े रहे। उनकी आँखों आँसू बहाती रहीं। वे चिंघाड़ते, रोते और बिलखते रहे।
$\quad$ रामेश बेदी