अध्याय 06 चिट्ठी का सफ़र (लेख)
बात का सफ़र वैब कैमरा, कम्पूनीकेटर, कबूतर, इंटरनैट, पोस्ट-कार्ड, हरकारा, संकेत भाषा, कूरियर, टैक्ट्ट मैसेज, ई-मेल…, इस लंबी सूची में और क्या जोड़ा जा सकता है? इन सभी में क्या समानता है?
सड़कों के चौराहे पर खड़ा ट्रैफ़िक पुलिस का आदमी क्या करता है? कत्थक, भरतनाट्यम जैसे शास्त्रीय तृत्य की भाव-भंगिमाएँ क्या अभिव्यक्त करती हैं? या फिर एक क्लास में जहाँ टीचर पढ़ाने में मशगूल हो, दो बच्चे आँखों के इशारे से, होठों को हिलाकर या किसी कागज़ के टुकड़े पर कुछ लिखकर क्या कर रहे होंगे? ऐसा तो हर किसी के साथ ज़रूर होता होगा। अपनी बात कहने की ज़रूरत तो सभी को होती है। तरीका भले ही बदल जाए।
रिमझिम के इस भाग में बात है बीते कल की और ऐसे भविष्य की जो बच्चों को रोमांचित करे। वे दिन भी क्या दिन थे विज्ञान कथा के प्रसिद्ध लेखक आइज़क ऐसीमोव की लिखी कहानी है। यह कहानी आज से डेढ़ सौ साल बाद के स्कूलों की कल्पना करती है। कहानी पढ़कर शायद इन स्कूलों को कोई स्कूल ही न कहना चाहे। कल्पना है ऐसे भविष्य की जहाँ स्कूल में कोई शिक्षक न हो और विद्यार्थी एक ही हो। ऐसे स्कूल में बच्चे सीखेंगे किससे, बातें किससे करेंगे, खेलेंगे किसके साथ?
हम जो पत्र लिखते हैं, उसके जवाब का भी इंतज़ार करते हैं। पत्र को ले जाने वाला और उसका जवाब लाने वाला है डाकिया। डाकिए की कहानी, कँवरसिंह की ज़ुबानी एक भेंटवार्ता है। रिमझिम की शृंखला में पहली बार भेंटवार्ता की विधा आ रही है। इसमें बच्चे देखंगे कि किस तरह से ऐसे प्रश्न पूछछे गए हैं जिनसे ज़्यादा-से-ज़्यादा जानकारी हासिल हो सके और व्यक्ति को अपने विचारों और अनुभवों को खुलकर अभिव्यक्त करने का मौका मिले। कँवरसिंह जो पहाड़ी इलाके में डाक बाँटने का काम करते हैं, अपने काम, निजी ज़िंदगी और काम में पेश आने वाली दिक्कतों के बारे में बात करते हैं। डाक के ज़रिए संदेश पहुँचाने का काम थका देने वाला ही नहीं, जोखिम भरा भी हो सकता है।
चिट्ठी का सफ़र एक ऐसे सफ़र पर ले जाएगा जो अतीत और वर्तमान के संदेशवाहकों की झलकियाँ देगा। संदेश पहुँचाने की ज़रूरत इंसानों को हमेशा से रही है। आज डाक का क्षेत्र बेहद फैला हुआ है। समय के साथ यह तकनीकी भी हो गया है। कुछ दशकों पहले तक संदेश कुछ दिनों में पहुँचता था और आज पलक झपकते ही अपनी बात हम सैकड़ों मील दूर तक पहुँचा सकते हैं। अपनी बात किसी तक पहुँचाने का तरीका समय के साथ बदलता रहा है। समय के साथ संप्रेषण और संचार के माध्यमों में बदलाव आया है। इन माध्यमों का इस्तेमाल अलग-अलग उद्देश्यों के लिए, समाज के विभिन्न वर्गों के लिए हुआ है।
एक माँ की बेबसी- मन को छू लेने वाली कविता है। कविता पाठक को किस तरह से प्रभावित करती है यह पाठक के अनुभव पर निर्भर करेगा। यह कविता एक ऐसे बच्चे के बारे में है जो बोल नहीं सकता। गली-मोहल्ले के बच्चों के लिए वह ‘अजूबा’ था। बातचीत के ज़रिए हम दूसरों को समझ और जान पाते हैं। संवाद न होने से वह दूसरा हमारे लिए अनजाना बना रहता है। पर मौखिक बातचीत के अलावा भी दूसरों के भावों को समझने के कई तरीके हो सकते हैं।
पत्र $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ बफ़लो, न्यूयॉर्क
$\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$$\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ 20 मार्च, 1995प्रिय नित्या,
तुम्हार 17 जनवरी का पत्र मिला। तुम प्रतियोगिताओं में भाग ले रही हो, ये पढ़कर बड़ा अच्छा लगा। लेकिन एक बात ध्यान में रखना-जीतने पर घमंड से बचना और प्रथम न आने पर मन छोटा मत करना जीत महत्वपूर्ण है लेकिन अपनी पूरी क्षमता से प्रतियोगिता में भाग लेना भी अपने आप में एक उपलक्धि है। तुमने सेंट्स एवं डॉलर की फ़रमाइ़श की है, ज़रूूर लाऊँगा लेकिन मेरा ख्याल है कि घ्र में अमरीकी सिक्के तथा नोट होने चाहिए। अरिम का दाखिला तुम्होरे स्कूल में हो गया, ये अच्छा हुआ। अब तुम्हें एक दूसरे से भिड़ंत और स्नेह का आदान-प्रादान करने के लिए शाम का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। अरिमता का अँग्रेज़ी लहज़े में बोलने का शौक बुरा नहीं। बस एहतियात ये रखो कि हिंदी बोलो तो हिंदी, ऊँग्रेज़ी बोलो तो अँग्रेज़ी। हर वाक्य में दो भाषाओं की खिचड़ी अधकच्रेपन की निशानी है। सिफ़्रि यदा-कदा तालमेल होना चाहिए। यहाँ बर्फ़ पिघल गड़ है। बसंत आने को है। बसंत के ख्वागत में कौन-सा रग गाते हैं - मैं नहीं जानता। अरिमता को आशीर्वाद।
$\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ सस्नेह
$\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\quad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ नरेंन्द्रनाथ
अपनी दस-बारह साल की ज़िंदगी में तुमने कुछ पत्र तो लिखे ही होंगे। वे पत्र अपने सही पते और समय पर किस तरह पहुँचे होंगे- यह बहुत-सी बातों पर निर्भर करता है। जैसे कि, चिट्डी किस स्थान से किस स्थान पर भेजी जा रही है, संदेश पहुँचाने की कितनी जल्दी है, तुमने पूरा और ठीक पता लिखा है कि नहीं, तुमने उस पर डाकटिकट लगाया है कि नहीं, आदि। अब प्रश्न यह उठते हैं कि
- आखिर चिट्री पर डाकटिकट लगाया ही क्यों जाए?
- पूरे और ठीक पते से क्या मतलब है?
- ज़रूरत पड़ने पर संदेश को जल्दी कैसे पहुँचाया जाए?
- स्थान बदलने से चिट्ठी के पहुँचने पर क्या असर पड़ता है?
इनमें से कुछ सवालों के जवाब शायद तुम्हारे पास हों- खासकर तुममें से उनके पास जो डाकटिकटें इकट्ठा करने का शौक रखते हैं।
इन सवालों के जवाबों के लिए ज़रा नीचे दिए गए लिफ़ाफ़ों को गौर से देखो। दोनों पतों को दी गई जगह में लिखो।
ये दोनों पते किस तरह से भिन्न हैं? गांधीजी को भेजे गए पत्र में पते की जगह पर लिखा है - “महात्मा गांधी, जहाँ हो वहाँ वर्धा।” जबकि लिफ़ाफ़े पर इमारत या संस्थान से लेकर शहर तक का नाम लिखा हुआ है। पते में सबसे छोटी भौगोलिक इकाई से शुरू करके बड़ी की ओर बढ़े हैं। छोटी से बड़ी भौगोलिक इकाई का मतलब यह हुआ कि घर के नंबर के बाद गली-मोहल्ले का नाम, फिर गाँव, कस्बे, शहर के जिस हिस्से में है उसका नाम, फिर गाँव या शहर का नाम। शहर के नाम के बाद लिखे अंक को पिनकोड कहते हैं। हर जगह को एक पिनकोड दिया गया है। यह सोचने लायक बात है कि आखिर पिनकोड की ज़रूरत क्या है? हमारे देश में अनेक ऐसे कस्बेगाँँव/शहर हैं जिनके नाम एक जैसे हैं। पते के बाद पिन कोड लिखने से गंतव्य स्थान का पता लगाने में डाक छाँटने वाले कर्मचारियों को मदद मिलती है और पत्र जल्दी बाँटे जा सकते हैं।
पिनकोड की शुरुआत 15 अगस्त 1972 को डाक तार विभाग ने पोस्टल नंबर योजना के नाम से की। ज़ाहिर है कि गांधीजी को मिले इस पत्र पर और उन्हें मिले किसी भी पत्र पर पिनकोड
पिन शब्द पोस्टल इंडेक्स नंबर (Postal Index Number) का छोटा रूप है। किसी भी जगह का पिनकोड 6 अंकों का होता है। हर अंक का एक खास स्थानीय अर्थ है।
उदाहरण के लिए एन.सी.ई.आर.टी. को भेजे गए लिफ़ाफ़े पर लिखा अंक है - 110016 इसमें पहले स्थान पर दिया गया अंक यह बताता है कि यह पिनकोड दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब या जम्मू-कश्मीर का है। अगले दो अंक यानी 10 यह तय करते हैं कि यह दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) के उपक्षेत्र दिल्ली का कोड है। अगले तीन अंक यानी 016 दिल्ली उपक्षेत्र के ऐसे डाकघर का कोड है जहाँ से डाक बाँटी जाती है।
- अब तुम्हारा स्कूल जहाँ पर है उस इलाके का पिनकोड पता करो।
- अपने घर के इलाके का पिनकोड नंबर भी पता करो। पिनकोड की जानकारी डाकघर से प्राप्त की जा सकती है। डाकघरों में टेलीफ़ोन डाइरेक्टरी की तरह पिनकोड डाइरेक्टरी भी मिलती है। तुम्हारे इलाके का पिनकोड तो तुम्हरे मोहल्ले में लगे लैटर बॉक्स पर ही लिखा होगा।
- प्रमुख जगहों/शहरों के पिनकोड नंबर तुम्हें कहाँ-कहाँ मिल सकते हैं?
टिकट-संग्रह का शौक काफी लोकप्रिय है। धीरे-धीरे इसमें टिकट-संग्रह के अलावा डाक से जुड़ी और बहुत-सी चीज़ें शामिल हो गई हैं। इसको डाक का विज्ञान कहना गलत नहीं होगा। क्या तुम जानते हो इस विज्ञान को क्या नाम दिया गया है? पता करो और यहाँ लिखो
का इस्तेमाल नहीं किया गया था। फ़र्क सिर्फ़ पिनकोड का ही नहीं है। समय के साथ डाक सेवाओं में निरंतर बदलाव और विकास होता रहा है।
बहुत पुराने समय में कबूतरों के द्वारा संदेश भेजे जाते थे। जब संदेशवाहक कबूतरों की बात हो रही है तो उन इंसानों की बात कैसे न हो जो ऐसे समय से डाक पहुँचाने का काम करते रहे, जब संचार और परिवहन के साधन बेहद सीमित थे! बात हो रही है उन हरकारों की जो पैदल ही आम आदमी तक चिट्डी-पत्री पहुँचाने का काम करते रहे। राजा, महाराजाओं के पास घुड़सवार हरकारे हुआ करते थे। हरकारों को न सिर्फ़ हर तरह की जगहों पर पहुँचना होता था, बल्कि डाक की रक्षा भी करनी होती थी। डाकू, लुटेरों या जंगली जानवरों की चपेट में आने का डर हमेशा बना रहता था। आज भी भारतीय डाक सेवा दुर्गम व पहाड़ी इलाकों तक डाक पहुँचाने के लिए हरकारों पर निर्भर करती है। जम्मू-कश्मीर के लद्दाख खंड में पदम (ज़ंस्कार) जैसी कई जगह हैं जहाँ हरकारे डाक पहुँचाते हैं।
आजकल तो संदेश भेजने के नए-नए और तेज़ साधन आसानी से उपलब्ध हो गए हैं। डाक बाँटने में हवाई जहाज़, पानी के जहाज़ और जाने कौन-कौन से साधन इस्तेमाल किए जा रहे हैं। डाक-विभाग भी पत्र, मनीआर्डर के साथ-साथ ई-मेल, बधाई कार्ड आदि लोगों तक पहुँचा रहा है।
कबूतरों की उड़ान से लेकर हवाई डाक सेवाओं तक का सफ़र दिलचस्प करने वाला है। यह सोचकर आश्चर्य होता है कि कबूतर जैसा पक्षी संदेशवाहक भी हो सकता है। कबूतर की कई प्रजातियाँ होती हैं और ये सभी संदेश लाने, ले जाने का काम नहीं कर सकतीं। गिरहबाज़ या हूमर वह प्रजाति है जिसे प्रशिक्षित करके डाक संदेश भेजने के काम में लाया जाता है। आखिर कबूतर अपना रास्ता ढूँढ़ कैसे लेता है? उन प्रवासी पक्षियों के बारे में सोचो और पता करो कि वे कैसे सैकड़ों मील का रास्ता और सही जगह तय कर पाते हैं।
उड़ीसा पुलिस खास तौर पर हूमर कबूतरों का इस्तेमाल राज्य के कई दुर्गम इलाकों में संदेश पहुँचाने के लिए कर रही है। कानून-व्यवस्था, संकट और अन्य मौकों पर संदेश के लिए ये कबूतर बहुत ही उपयोगी साबित हुए। कबूतरों की संदेश सेवा बहुत सस्ती है और उन पर खास खर्च नहीं आता है। इन कबूतरों का जीवन 15-20 साल होता है और 8-10 साल तक वे बहुत अच्छा काम करते हैं। स्वस्थ कबूतर एक दिन में एक हज़ार किलोमीटर तक का सफ़र कर सकता है। यदि कोई महत्वपूर्ण संदेश पहुँचाना हो तो दो कबूतरों को भेजा जाता है ताकि बाज़ के हमले जैसी अनहोनी स्थिति में भी दूसरा कबूतर संदेश पहुँचा दे।
शायद यह पढ़कर तुम एक ऐसे कबूतर की कहानी पढ़ना चाहो जो दूसरे विश्व युद्ध में संदेश पहुँचाता था। इस कबूतर की कहानी नेशनल बुक ट्रस्ट से अँग्रेज़ी में छपी एक किताब में दी गई है। किताब का नाम है ‘ग्रे-नेक’, जो कि इस किताब के हीरो का भी नाम है। अगर तुम हिंदी में पढ़ना चाहते हो तो क्यों न नेशनल बुक ट्रस्ट को पत्र लिखो कि वे इस किताब को हिंदी में भी छापें। यह रहा उनका पता- नेहरू भवन, 5 इंस्टीट्यूशनल एरिया फ्रेज़ -11 , वसंत कुंज, नई दिल्ली - 110070
चिट्ठी-पत्री
1. गांधी जी को सिर्फ़ उनके नाम और देश के नाम के सहारे पत्र कैसे पहुँच गया होगा?
2. अगर एक पत्र में पते के साथ किसी का नाम न हो तो क्या पत्र ठीक जगह पर पहुँच जाएगा?
3. नाम न होने से क्या समस्याएँ आ सकती हैं?
4. पैदल हरकारों को किस-किस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता होगा?
5. अगर तुम किसी को चिट्डी लिख रहे हो तो पते में यह जानकारी किस क्रम में लिखोगे? गली/मोहल्ले का नाम, घर का नंबर, राज्य का नाम, खंड का नाम, कस्बे/शहरागाँव का नाम, जनपद का नाम नीचे दी गई जगह में लिखो।
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तुमने इस क्रम में ही क्यों लिखा?
6. अपने घर पर कोई पुराना (या नया) पत्र ढूँढ़ो। उसे देखकर नीचे लिखे प्रश्नों का जवाब लिखो -
(क) पत्र किसने लिखा?
(ख) किसे लिखा?
(ग) किस तारीख को लिखा?
(घ) यह पत्र किस डाकखाने में तथा किस तारीख को पहुँचा?
(ङ) यह उत्तर तुम्हें कैसे पता चला?
7. चिट्ठी भेजने के लिए आमतौर पर पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय पत्र या लिफ्राफ़ा इस्तेमाल किया जाता है। डाकघर जाकर इनका मूल्य पता करके लिखो
पोस्टकार्ड —————————————–
अंतर्देशीय पत्र ————————————
लिफ़्राफ़ ——————————————
8. डाकटिकट इकट्ठा करो। एक रुपये से लेकर दस रुपये तक के डाकटिकटों को क्रम में लगाकर कॉपी पर चिपकाओ। इकट्डा किए गए डाकटिकटों पर अपने साथियों के साथ चर्चा करो।
शब्दकोश
नीचे शब्दकोश का एक अंश दिया गया है जिसमें ‘संचार’ शब्द का अर्थ भी दिया गया है।
संज्ञीतज्ञ - संगीत जानने वाला, संगीत की कला में निपुण।
संग्रह - पु. 1. जमा करना, इकट्ठा करना, एकत्र करना, संचय। प्र. दीपक आजकल पक्षियों के पंखों का संग्रह करने में लगा है। 2 . इकट्टी की हुई चीज़ों का समूह या ढेर, संकलन; जैसे- टिकट-संग्रह, निबंध-संग्रह।
संचार - पु. 1. किसी संदेश को दूर तक या बहुत-से लोगों तक पहुँचाने की क्रिया या प्रणाली, कम्यूनिकेशन। उ. टेलीफ़ोन, टेलीविज़न, सेटेलाइट आदि संचार के माध्यमों से दुनिया आज छोटी हो गई है। 2. किसी चीज़ का प्रवाह, चलना, फैलना; जैसे-शरीर में रक्त का संचार, विद्युत का संचार।
(क) बताओ कि कौन-सा अर्थ पाठ के संदर्भ में ठीक है।
(ख) इस पन्ने को ध्यान से देखो और बताओ कि शब्दकोश में दिए गए शब्दों के साथ क्या-क्या जानकारी दी गई होती हैं।