अध्याय 05 जहाँ चाह वहाँ राह (लेख)

मलमली धोती का बादामी रंग खिल उठा था। किनारों पर कसूती के टाँकों से पिरोई हुई बेल थी। पल्लू पर भरवाँ टाँके अपना कमाल दिखा रहे थे। सुुहरे-रूपहले बेल-बूटों से जान आ गई थी मलमल में। इन बेल-बूटों को सजाया था इला सचानी ने। इला की हिम्मत की अनूठी मिसाल हैं ये कढ़ाई के नमूने।


छब्बीस साल की इला गुजरात के सूरत ज़िले में रहती हैं। उनका बचपन अमरेली ज़िले के राजकोट गाँव में अपने नाना के यहाँ बीता।

साँझ होते ही मोहल्ले के बच्चे घरों से बाहर आ जाते। कुछ मिट्टी में आड़ी-तिरछी लकीरें खींचते, कुछ कनेर के पत्तों से पिटपिटी बजाते, कुछ गिट्टे खेलते, कुछ इधर-उधर से टूटे-फूटे घड़ों के ठीकरे बटोरकर पिट्टू खेलते। जब इन खेलों से मन भर जाता तो पेड़ की डालियों पर झूला डालकर ऊँची-ऊँची पेंगे लेते और ऊँचे स्वर में एक साथ गाते-

कच्चे नीम की निंबौरी

सावन जल्दी अइयो रे!

इला गाने में तो उनका साथ देती, पर उनके साथ पेंगे नहीं ले पाती। रस्सी पकड़ने को हाथ बढ़ाती मगर हाथ तो उठते ही नहीं थे। वह चुपचाप एक किनारे बैठ जाती। मन-ही-मन सोचती, “मैं भी ऐसा कुछ क्यों नहीं कर पाती हूँ। बच्चे भी चाहते कि इला किसी-न-किसी तरह तो उनके साथ खेल सके। कभी-कभार वह पकड़म-पकड़ाई और विष-अमृत के खेल में शामिल हो जाती। साथियों के साथ जमकर दौड़ती मगर जब ‘धप्पा’ करने की बारी आती तो फिर निराश हो जाती। हाथ ही नहीं उठेंगे तो धप्पा कैसे देगी? वह बहुत कोशिश करती पर उसके हाथों ने तो जैसे उसका साथ न देने की ठान रखी हो। इला ने अपने हाथों की इस ज़िद को एक चुनौती माना।

उसने वह सब अपने पैरों से करना सीखा जो हम हाथों से करते हैं। दाल-भात खाना, दूसरों के बाल बनाना, फ़र्श बुहारना, कपड़े धोना, तरकारी काटना यहाँ तक कि तख्ती पर लिखना भी। उसने एक स्कूल में दाखिला ले लिया। दाखिला मिलने में भी उसे परेशानी हुई। कहीं तो उसकी सुरक्षा को लेकर चिंता थी, कहीं उसके काम करने की गति को लेकर। किसी काम को तो वह इतनी फुर्ती से कर जाती कि देखने वाले दंग रह जाते। पर किसी-किसी काम में थोड़ी बहुत परेशानी तो आती ही थी। वह परेशानियों के आगे घुटने टेकने वाली नहीं थी। उसने दसवीं कक्षा तक पढ़ाई की। वह दसवीं की परीक्षा पास नहीं कर पाई। इला को यह मालूम न था कि परीक्षा के लिए उसे अतिरिक्त समय मिल सकता है। उसे ऐसे व्यक्ति की सुविधा भी मिल सकती थी जो परीक्षा में उसके लिए लिखने का काम कर सके। यह जानकारी इला को समय रहते मिल जाती तो कितना अच्छा रहता। उसे इस बात का दुख है। पर यहाँ आकर सब कुछ खत्म तो नहीं हो जाता न!

उसकी माँ और दादी कशीदाकारी करती थीं। वह उन्हें सुई में रेशम पिरोने से लेकर बूटियाँ उकेरते हुए देखती। न जाने कब उसने कशीदाकारी करने की ठान ली। यहाँ भी उसने अपने पैर के अँगूठों का सहारा लिया। दोनों अँगूठों के बीच सुई थामकर कच्चा रेशम पिरोना कोई आसान काम नहीं था। पर कहते हैं न, जहाँ चाह वहाँ राह। उसके विश्वास और धैर्य ने कुदरत को भी झुठला दिया।

पंद्रह-सोलह साल की होते-होते इला काठियावाड़ी कशीदाकारी में माहिर हो चुकी थी। किस वस्त्र पर किस तरह के नमूने बनाए जाएँ, कौन-से रंगों से नमूना खिल उठेगा और टाँके कौन-से लगें, यह सब वह समझाई थी।

एक समय ऐसा भी आया अब उसके द्वारा काढ़े गए परिधानों की प्रदर्शनी लगी। इन परिधानों में काठियावाड़ के साथ-साथ लखनऊ और बंगाल भी झलक रहा था। इला ने काठियावाड़ी टाँकों के साथ-साथ और कई टाँके भी इस्तेमाल किए थे। पत्तियों को चिकनकारी से सजाया था। डंडियों को कांथा से उभारा था। पशु-पक्षियों की ज्यामितीय आकृतियों को कसूती और ज़ंजीर से उठा रखा था।

पारंपरिक डिज़ाइनों में यह नवीनता सभी को बहुत भाई।

इला के पाँव अब रुकते नहीं हैं। आँखों में चमक, होंठो पर मुस्कान और अनूठा विश्वास लिए वह सुनहरी रूपहली बूटियाँ उकेरते थकती नहीं हैं।


जहाँ चाह वहाँ राह

1. इला या इला जैसी कोई लड़की यदि तुम्हारी कक्षा में दाखिला लेती तो तुम्हारे मन में कौन-कौन से प्रश्न उठते?

2. इस लेख को पढ़ने के बाद क्या तुम्हारी सोच में कुछ बदलाव आए?

मैं भी कुछ कर सकती हूँ..

1. यदि इला तुम्हारे विद्यालय में आए तो उसे किन-किन कामों में परेशानी आएगी?

2. उसे यह परेशानी न हो इसके लिए अपने विद्यालय में क्या तुम कुछ बदलाव सुझा सकती हो?

प्यारी इला…

इला के बारे में पढ़कर जैसे भाव तुम्हारे मन में उठ रहे हैं उन्हें इला को चिट्ठी लिखकर बताओ। चिट्ठी की रूपरेखा नीचे दी गई है।


सवाल हमारे, जवाब तुम्हारे

1. इला को लेकर स्कूल वाले चिंतित क्यों थे? क्या उनका चिंता करना सही था या नहीं? अपने उत्तर का कारण लिखो।

2. इला की कशीदाकारी में खास बात क्या थी?

3. सही के आगे $(\checkmark)$ का निशान लगाओ।

इला दसवों की परीक्षा पास नहीं कर सकी, क्योंकि…

  • परीक्षा के लिए उसने अच्छी तरह तैयारी नहीं की थी।
  • वह परीक्षा पास करना नहों चाहती थी।
  • लिखने की गति धीमी होने के कारण वह प्रश्न-पत्र पूरे नहीं कर पाती थी।
  • उसको पढ़ाई करना कभी अच्छा लगा ही नहीं।

4. क्या इला अपने पैर के अँगूठे से कुछ भी करना सीख पाती, अगर उसके आस-पास के लोग उसके लिए सभी काम स्वयं कर देते और उसको कुछ करने का मौका नहीं देते?

कशीदाकारी

1. (क) इस पाठ में सिलाई-कढ़ाई से संबंधित कई शब्द आए हैं। उनकी सूची बनाओ। अब देखो कि इस पाठ को पढ़कर तुमने कितने नए शब्द सीखे।


(ख) नीचे दी गई सूची में से किन्हों दो से संबंधित शब्द (संज्ञा और क्रिया दोनों ही) इकट्ठा करो।

फ़ुटबाल $\qquad$ बुनाई (ऊन) $\qquad$ बागबानी $\qquad$ पतंगबाज़ी

2. एक सादा रूमाल लो या कपड़ा काटकर बनाओ। उस पर नीचे दिए गए टाँकों में से किसी एक टाँके का इस्तेमाल करते हुए बड़ों की मदद से कढ़ाई करो।


ये काम कक्षा के लड़के-लड़कियाँ सब करें।



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