पाठ 23 पोचमपल्ली

मुख्तापुर गाँव में रहने वाले वाणी और प्रसाद के घर में रंग-बिरंगे धागों का ढेर लगा रहता है। उनके अम्मा-अप्पा और परिवार के सभी लोग बुनाई का काम करते हैं। यह बुनाई बहुत ही सुंदर और अपने-आप में अनोखी होती है।

उनका गाँव तेलंगाना राज्य के पोचमपल्ली कस्बे के पास है। यहाँ ज़्यादातर परिवार बुनकर हैं। इसलिए इस बुनाई को पोचमपल्ली नाम से पहचाना जाता है।

इन गाँवों के लोग बहुत पुराने समय से यह काम कर रहे हैं। वाणी और प्रसाद के अम्मा-अप्पा ने अपने परिवार के बड़ों से यह बुनाई सीखी। अब वाणी और प्रसाद भी स्कूल से आकर अपने अम्मा-अप्पा की मदद करते हैं।

अध्यापक के लिए-बच्चों का ध्यान इस ओर दिलाएँ कि पारंपरिक व्यवसाय अधिकतर घर में ही सीखे जाते हैं। इनमें पोचमपल्ली कारीगरी की तरह बहुत सारे हुनर सीखने होते हैं। इसी तरह के अन्य पारंपरिक व्यवसायों, जैसे- कालीन बनाना, खिलौने बनाना, इत्र बनाना इत्यादि पर चर्चा करवाई जा सकती है। बच्चों को भारत के नक्शे में आँध्र प्रदेश ढूँढ़ने के लिए कहें।

पोचमपल्ली साड़ी बनाने का तरीका

धागे से कपड़े तक

अप्पा पोचमपल्ली से धागे की लड़ियाँ लाते हैं। अम्मा लड़ियों को उबलते पानी में डालकर उनकी गंदगी और दाग धोतीं हैं। फिर सब मिलकर धागों को सुंदर रंगों में रंगते हैं और सुखाकर उनकी गट्ठी बनाते हैं। धागे की गट्ठियाँ करघे पर लपेटी जाती हैं। फिर इनसे कपड़े बुने जाते हैं। रेशम का धागा हो तो रेशमी कपड़ों, साड़ियों या सूटों के लिए कपड़े बुने जाते हैं। सूती धागे से भी साड़ियाँ, कपड़ों के थान और चादरें बुनी जाती हैं।

करघे में कई सुइयाँ होती हैं। डिज़ाइन के हिसाब से सुइयों का नंबर घटता-बढ़ता है। कारीगर चमकदार रंगों की बहुत ही सुंदर पोचमपल्ली साड़ियाँ बुनते हैं। इन कारीगरों ने अपनी इस कला से इलाके का नाम दुनियाभर में मशहूर कर दिया है।

खततरे में कला

ऐसी साड़ी बुनने के लिए अच्छी कारीगरी चाहिए। इसके लिए कई दिनों तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। फिर भी साड़ियाँ सही दाम में बेचना बहुत मुश्किल होता है। रेशम लगातार महँगा होता जा रहा है। बड़े दुकानदार बुनकरों को तो साड़ी का बहुत ही कम पैसा देते हैं। खुद वे भाव बढ़ा-चढ़ा कर बेचते हैं। इसीलिए कई बुनकर यह काम छोड़ रहे हैं। वे अपना गाँव छोड़कर बड़े शहरों में मज़दूरी करने जा रहे हैं। इस समस्या का कुछ हल निकालना चाहिए। बरसों पुरानी बुनकरों की यह कला कहीं धीरे-धीरे खो न जाए।

अध्यापक के लिए-ऐसे परंपरागत व्यवसायों में भी कई औज़ारों और कलाओं का इस्तेमाल होता है। इस बात पर भी ज़ोर डालें कि अकसर एक चीज़ को बनाने के लिए परिवार के सभी लोग मिलकर काम करते हैं और सभी का काम बँटा होता है।

चर्चा करो

आज वाणी और प्रसाद जैसे कई बच्चों ने अपने परिवारों से यह सुंदर कला सीख ली है। क्या बड़े होकर ये भी अपने बच्चों को इस कला के हुनर सिखा पाएँगे?

इनके उत्तर कॉपी में लिखो

  • क्या तुमने कभी किसी को करघे पर कुछ बुनते देखा है? क्या और कहाँ?

  • साड़ी के धागों को रंगा जाता है। क्या तुम किसी और चीज़ के बारे में जानते हो, जिसको रंगा जाता है?

  • वाणी और प्रसाद के गाँव में जाओ तो लगता है कि जैसे पूरा गाँव साड़ियाँ ही बना रहा है। क्या तुम कोई ऐसा काम जानते हो, जो एक ही जगह के बहुत सारे लोग करते हैं?

  • क्या वे कोई चीज़ तैयार करते हैं?

  • उस को तैयार करने का तरीका पता करो।

  • उस चीज़ को बनाने के लिए क्या आदमी और औरतें अलग-अलग तरह के काम करते हैं?

  • क्या उस चीज़ को बनाने में बच्चे भी मदद करते हैं?

पता करो और लिखो

  • किसी लुहार, बढ़ई या कुम्हार से बातचीत करो और उनके काम के बारे में पता लगाओ।
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  • उन्होंने अपना काम कहाँ से सीखा ?
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  • उनको काम में क्या-क्या चीज़ें सीखनी पड़ती हैं?
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  • क्या उन्होंने अपना काम अपने परिवार में किसी और को भी सिखाया है?
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(3) नीचे तालिका में कुछ कामों की सूची दी गई है। क्या तुम ऐसे लोगों को जानते हो, जो ये काम जानते हैं? उन लोगों के नाम लिखो। पता करो कि उन्होंने ये काम किस से सीखे।

काम उनके नाम, जो
यह काम करते हैं
उन्होंने यह काम
कहाँ से सीखा
कपड़े की बुनाई करना वाणी, प्रसाद के अम्मा-अप्पा अपने परिवार से
खाना पकाना
साइकिल रिपेयर करना
हवाई जहाज़ उड़ाना
सिलाई-कढ़ाई करना
गाना गाना
जूते बनाना
पतंग उड़ाना
खेती करना
बाल काटना

अध्यापक के लिए-पोचमपल्ली की तरह ही भारत के कई इलाकों में कुछ खास चीज़ों बनाई जाती हैं। इन चीज़ों के नाम उस इलाके के नाम से ही मशहूर हो गए हैं, जैसे-कुल्लू की शॉल, मधुबनी पेंटंग, असम की सिल्क, कश्मीरी कढ़ाई। इस पर चर्चा करवाई जा सकती है।



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