पाठ 22 दुनिया मेरे घर में
नोक-झोंक
रोज़ की तरह आज फिर मैरीटा के घर में बहस शुरू हो गई कि टी.वी. पर कौन-सा प्रोग्राम देखें? मैरीटा का भाई क्रिकेट मैच देखना चाहता है, जबकि छोटी सूसन, अपने पसंदीदा गाने का प्रोग्राम। मम्मी और आंटी वैसे तो गहरे दोस्त हैं, पर उनकी पसंद अलग-अलग है। मम्मी समाचार देखना चाहतों हैं, जबकि आंटी एक सीरियल। मैरीटा कार्टून देखना चाहती है और डैडी को फुटबाल मैच देखना है। डैडी कहते हैं कि वे बस शाम को ही टी.वी. देख पाते हैं। आखिर सबको फुटबाल मैच ही देखना पड़ा।
बताओ
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क्या तुम्हारे घर में भी पंखा, टी.वी., समाचारपत्र, कुर्सी या किसी और चीज़ को लेकर झगड़े होते हैं?
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तुम्हारे घर के ऐसे झगड़े कौन सुलझाता है?
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अपने घर के ऐसे झगड़ों के बारे में कोई मज़ेदार किस्सा सुनाओ।
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क्या तुमने कहीं और एक ही चीज़ के लिए लोगों को आपस में झगड़ते देखा है? किस बात पर?
अलग क्यों?
शाम के सात बजे हैं। प्रतिभा अपनी सहेली के घर से भागी-भागी अपने घर जा रही है। नुक्कड़ पर उसके भाई संदीप और संजय दोस्तों के साथ खेलने में लगे हैं। उन्हें घर पहुँचने की कोई जल्दी नहीं है। उन्हें देर से घर पहुँचने पर कोई नहीं टोकता।
प्रतिभा को यह बात ठीक नहीं लगती। उस के लिए एक नियम और उसके भाइयों के लिए दूसरा। पर वह क्या करे?
बताओ
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क्या तुम्हारे या किसी दोस्त के परिवार में ऐसी बातें होती हैं? तुम इस बारे में क्या सोचते हो?
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क्या लड़का-लड़की और आदमी-औरत के लिए अलग-अलग नियम होने चाहिएँ?
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सोचो-अगर लड़कियों के लिए बनाए गए नियम, लड़कों पर और लड़कों के लिए बनाए गए नियम लड़कियों पर लागू हों, तो क्या होगा?
पिलू मामी
एक दिन फली, नाज़ू और उनके दोस्त पिलू मामी के साथ समुद्र तट पर घूमने गए। पानी और रेत में खूब खेलने के बाद बच्चों ने आकाशी झूले में चक्कर लगाए, भेलपूरी खाई और गुब्बारे भी खरीदे। बाद में सभी ने मज़े से ठंडी-ठंडी कुल्फ़ी खाई। कुल्फ़ी वाले ने गलती से सात के बजाए पाँच कुल्फ़ी के ही पैसे माँगे। बच्चों ने सोचा ‘चलो पैसे बच गए।’ पर पिलू मामी ने कुल्फ़ीवाले को सही हिसाब समझाया और सात कुल्फ़ियों के ही पैसे दिए।
उस दिन बच्चों ने पिलू मामी से जो बात सीखी, उसे शायद वे कभी नहीं भूलेंगे।
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अपनी कल्पना से, इस कहानी का अंत बदलकर कॉपी में लिखो।
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क्या तुम्हारे परिवार में भी कोई पिलू मामी की तरह है? कौन?
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अगर पिलू मामी कम पैसे देकर वहाँ से चलीं जातीं, तो बच्चे इस बारे में क्या सोचते? तुम इस बारे में क्या सोचते हो?
मैं क्या करुँ?
अक्षय को अपनी दादी-माँ से बहुत करतीं हैं। वे उससे खूब रोचक बातें करतीं हैं। वे अक्षय के दोस्त अनिल को पसंद करतीं हैं। पर वे अक्षय को एक बात बार-बार समझाती हैं - उसे कभी भी अनिल के घर का खाना नहीं खाना और तो और पानी भी नहीं पीना है। वे कहतीं हैं कि अनिल के परिवार वाले उनके परिवार से बहुत अलग हैं।
एक दिन अनिल के घर के पास वाले बड़े मैदान में वॉलीबाल का मैच हुआ। उस दिन बहुत गर्मी थी। मैच के बाद सभी प्यासे और थके थे। अनिल सबको अपने घर ले गया। सब दोस्तों को अनिल की माँ ने पानी दिया। जब अनिल ने अक्षय के हाथ में पानी का गिलास थमाया, तो अचानक उसे दादी की चेतावनी याद आ गई। हाथ में गिलास लिए अनिल को देख, अक्षय को समझ नहीं आया कि वह क्या करे।
बताओ
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तुम्हें क्या लगता है, अक्षय क्या करेगा?
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अक्षय उलझन में क्यों पड़ गया ?
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अक्षय की दादी-माँ ने उसे अनिल के घर का पानी तक पीने के लिए मना क्यों किया होगा?
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क्या तुम किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हो, जो अक्षय की दादी-माँ की तरह ही सोचते हैं?
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क्या तुम अक्षय की दादी-माँ से सहमत हो?
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तुम्हारी राय में अक्षय को क्या करना चाहिए?
किसका फ्रैसला?
धोंडू का परिवार बहुत बड़ा है। परिवार के रुपए-पैसे और खेतीबाड़ी का सारा काम बड़े काका ही सँभालते हैं। परिवार के छोटे-बड़े सभी निर्णय वे ही लेते हैं।
अभी तक तो धोंडू खेत में काम करता था। पर, अब वह कुछ नया करना चाहता है। वह बैंक से कुछ पैसे उधार लेकर आटे की चक्की लगाना चाहता है। गाँव में एक भी चक्की नहीं है। धोंडू को पूरा यकीन है कि उसके नए काम से परिवार को फ़ायदा होगा। उसने बाबा को तो मना लिया है, पर बड़े काका उसकी एक भी सुनने को तैयार नहीं हैं।
अध्यापक के लिए-इन उदाहरणों के द्वारा बच्चों का ध्यान उन बातों की तरफ़ खींचा जा सकता है, जो हमारे परिवार और समाज में सामान्यतः होती हैं। इन सभी बातों का हम पर गहरा असर होता है। बच्चों को इन बातों के बारे में सोचने और स्वयं के विचार बनाने के लिए प्रोत्साहित करें। उनके विचारों पर कक्षा में चर्चा करवाई जा सकती है।
बताओ
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तुम धोंडू की जगह होते तो क्या करते?
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क्या तुम्हारे साथ कभी ऐसा हुआ है कि तुम कुछ करना चाहते हो, पर घर के बड़ों ने मना किया हो?
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तुम्हारे घर में ज़रूरी फ़ैसले कौन लेता है? तुम्हें इस बारे में क्या लगता है?
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अगर तुम्हारे परिवार में या रिश्तेदारी में हमेशा एक ही व्यक्ति अपनी बात मनवाता रहे, तो तुम्हें कैसा लगेगा?
##.# मुझे यह अच्छा नहीं लगता!
मीना और रितु स्टापू खेल कर घर लौट रहे थे। “चलो न, मेरे घर चलो,” मीना ने रितु को खींचते हुए कहा।
“तुम्हारे मामा तो घर पर नहीं होंगे? अगर वे होंगे, तो मैं नहीं आऊँगी,” रितु ने जवाब दिया।
“पर क्यों? मामा को तो तुम अच्छी लगती हो। कह रहे थे - अपनी सहेली रितु को घर लाना। मैं दोनों को खूब सारी चॉकलेट खिलाऊँगा।”
रितु ने मीना से अपना हाथ छुड़ाया और बोली, “तुम्हारे मामा से मुझे डर लगता है। हाथ भी पकड़ते हैं, तो मुझे अच्छा नहीं लगता।” यह कहकर रितु अपने घर चली गई।
अध्यापक के लिए-कुछ बच्चों के अनुभव रितु की तरह के हो सकते हैं। कक्षा में इन पर चर्चा होने से बच्चों को अपने अनुभवों के बारे में सोचने का मौका मिलेगा। इससे उनका धीरज भी बँधेगा और शिक्षक के प्रति विश्वास भी बढ़ेगा। ज़रूरत के अनुसार, बच्चों से व्यक्तिगत रूप से बात की जा सकती है। अगर स्कूल में बच्चों के सलाहकार (काउंसलर) हों, तो उनकी मदद भी ली जा सकती है।
बताओ
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क्या तुम्हें भी कभी किसी का छूना बुरा लगा है? किसका छूना तुम्हें अच्छा नहीं लगा?
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अगर तुम रितु की जगह होते, तो क्या करते?
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ऐसा होने पर और क्या किया जा सकता है?
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सभी का छूना एक जैसा नहीं होता। जब मीना के मामा रितु का हाथ पकड़ते थे, तब उसे अच्छा नहीं लगता था, लेकिन उसे मीना का हाथ पकड़ना अच्छा लगता था। सोच कर बताओ, ऐसा अंतर क्यों था?
अध्यापक के लिए-यदि कुछ बच्चे अपने परिवार के सदस्यों की आदतों जैसे नशीली/मादक दवाओं की लत के बारे में बताना चाहते हों तो ऐसे किस्सों पर बात-चीत बड़ी ही संवेदनशीलता से की जानी चाहिए। उनसे होने वाले हानिकारक प्रभाव पर चर्चा जरूरी है। इन मुद्दों पर आप सेवाकालीन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भी चर्चा अवश्य करें।
कभी-कभी कुछ ऐसे परिवारों (नशीली दवाओं की लत) के बच्चों में भी यह लत पड़ जाती है। यदि उन बच्चों में या किसी अन्य बच्चे में ऐसा व्यवहार दिखाई दे तो उनसे अलग से बात-चीत की जानी चाहिए ताकि समय पर उनकी यह लत छुड़वाई जा सके। इस विषय पर बच्चों से पोस्टर अथवा चार्ट बनवाएँ और उन पर चर्चा करें।