पाठ 10 हु तू तू, हु तू तू

हु-तू-तू, हु-तू-तू, हु-तू-तू, हु-तू-तू …!

आउट, आउट, (पाले के एक तरफ़ खड़ी सभी लड़कियाँ जोर से चिल्लाईं)।

हु-तू-तू, हु-तू-तू, हु-तू-तू … (इधर से पकड़ो)।

हु-तू-तू, हु-तू-तू … (पैर से पकड़ो, पैर से, पैर से, इसका पैर पकड़ लो)।

हु-तू-तू, हु-तू-तू … (वसुधा! इधर आ जा, इधर से पकड़ न)।

अरे, श्यामला का हाथ लाइन को न छुए। हाथ पकड़ लो उसका। हु-तू-तू, हु-तू-तू। छू ली, छू ली। ओह!

आउट,आऽऽऽऽ , उउउउउउ टटटटट। सब आउट। हो हो हो तुम्हारी तो पूरी टीम आउट हो गई है।

क्या कर रही हैं ये लड़कियाँ? ‘आउट-आउट’ की आवाज़ें आ रही हैं, तो मतलब साफ़ है, कि कोई खेल खेला जा रहा है।

तुम इस खेल को किस नाम से जानती हो? चेडुगुडु, हु-तू-तू, हा-डू-डू, छू किट-किट, कबड्डी या कुछ और?

श्यामला को जब छह लड़कियों ने घेर कर पकड़ लिया, तो सबको लगा, वह तो आउट हो गई। किसी ने उसके पैर दबोचे, किसी ने हाथ, तो किसी ने कमर। पर श्यामला कहाँ छोड़ने वाली थी? घिसट-घिसट कर उसने बीच की लाइन छू ही ली।

श्यामला ने जब बीच की लाइन छुई, तो दूसरे पाले की सारी लड़कियों ने उसको पकड़ा हुआ था। इसलिए वे सारी आउट हो गईं, परंतु रोज़ी बहस करने लगी। उसका कहना था कि श्यामला की तो साँस टूट गई थी, इसलिए उनकी टीम आउट नहीं थी। श्यामला तो अड़ गई कि उसकी साँस नहीं टूटी थी। उसने यह भी पूछा कि अगर

अध्यापक के लिए-इस खेल से बच्चों का ध्यान इस ओर खींचें कि खेल की तरह ही जीवन में भी हम नियम बनाते हैं, ताकि सभी काम सही ढंग से हों। हमारे आपस में मतभेद और झगड़े भी होते हैं और हम इन्हें सुलझाते भी हैं।

साँस टूट ही गई थी, तो सब उसको इतनी देर तक दबोचे क्यों रहीं। काफ़ी बहस हुई, पर अंत में श्यामला की ही जीत हुई।

  • तुम्हारे यहाँ कबड्डी की एक टीम में कितने खिलाड़ी होते हैं?
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  • श्यामला ने जब बीच की लाइन छुई, तो कितनी लड़कियाँ आउट हुई थीं?
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  • क्या तुम्हारे पास खेलों के झगड़े निपटाने के तरीके हैं?
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कबड्डी का खेल

तो ऐसा ही है, कबड्डी का खेल! है न? खींचा-तानी, ज़ोर-झपट्टा, दम लगाना, चीखना-चिल्लाना, मिट्टी में घिसट जाना। है तो, हो-हल्ले वाला खेल, पर इसमें बहुत सारे नियम भी हैं।

मज़ा भी खूब आता है। कसरत भी पूरी हो जाती है। साँस रोक कर कबड्डी-कबड्डी बोलो और भागो-दौड़ो। साथ में दूसरे पाले के लोगों को छूने की कोशिश भी करो। जितनी देर साँस रोक लोगे, उतनी देर दूसरे पाले में अपना कमाल दिखा पाओगे।

कबड्डी के खेल में शरीर और दिमाग दोनों को ही चलाना पड़ता है। खींचने या रोकने में ताकत लगाओ और साथ ही सोचो कि दूसरी टीम के पाले में किधर से घुसें। कौन है, जिसको जल्दी से छूकर अपने पाले में लौट आएँ। अगर पकड़े गए, तो बीच की लाइन तक कैसे पहुँचें?

अध्यापक के लिए-कई बार बच्चों को खेलों में लिंग, जाति और वर्ग के आधार पर भेदभाव दिखाई देते हैं। इस पर चर्चा करवा सकते हैं।

  • अपनी साँस रोक कर ‘कबड्डी-कबड्डी’ बोल कर देखो। कितनी बार बोल पाए?
  • क्या कबड्डी खेलते हुए भी इतनी बार ही बोल पाते हो? क्या कोई अंतर है?

अगली बार जब भी कबड्डी खेलो, तब ध्यान देना कि आँख, हाथ और पैर का कितना ज़बरदस्त तालमेल रखना होता है।

  • श्यामला ने पूरी टीम को एक बार में ही आउट कर दिया। इसका चित्र कॉपी में बनाकर दिखाओ।
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  • ‘आउट’ होना क्या होता है? कबड्डी में कब-कब ‘आउट’ होते हैं?
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  • कई खेलों में खिलाड़ी को छूना बहुत ज़रूरी होता है, जैसे-खो-खो के खेल में। छूने से आउट होते हैं, और छूने से ही बारी भी आती है। ऐसे और खेलों के नाम बताओ, जिनमें खिलाड़ी को छूना बहुत ज़रूरी होता है।
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  • कबड्डी में श्यामला के बीच की लाइन छूने से सब आउट हो गए थे। ऐसे कौन-कौन से खेल हैं, जिनमें बीच की लाइन का महत्त्व होता है?
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  • ऐसे कौन-से खेल हैं, जिनमें खिलाड़ी के अलावा रंगों या चीज़ों को छूते हैं?
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अध्यापक के लिए-बॉक्स में दिया गया यह क्रियाकलाप किसी बड़े या शिक्षक की निगरानी में ही करें।

क्या तुम कबड्डी खेलते हो? क्या तुम्हारे स्कूल में लड़कियों की कबड्डी की टीम है?

अच्छा, एक बात बताओ। क्या तुम्हारी दादी और नानी कबड्डी खेलतीं थीं? आज घर जाकर पता करना।

क्या तुम्हारे यहाँ लड़कियाँ कबड्डी या कोई और बाहर खेले जाने वाले खेल खेलती हैं? क्या कुछ लड़कियाँ नहीं खेलती? वे क्यों नहीं खेलतीं - चर्चा करो।

कर्णनम मल्लेश्वरी

क्या तुमने अखबार में इनके बारे में पढ़ा है? कर्णनम मल्लेश्वरी एक वेट लिफ़्टर हैं। ये आंध्र प्रदेश की रहने वाली हैं। इनके पापा पुलिस में हवलदार हैं। जब ये 12 साल की थीं, तभी से वज़न उठाने का अभ्यास करने लगीं थीं। अब वे एक बार में 130 किलोग्राम तक वज़न उठा लेती हैं।

कर्णनम ने भारत के बाहर 29 मेडल जीते हैं। उनकी चार बहनें भी रोज़ वज़न उठाने का अभ्यास करती हैं।

तीन बहनों की कहानी

यह फ़ोटो देखो। लगती हैं न दादी-नानी! पर हैं ये आम दादियों-नानियों से अलग।

यह फ़ोटो है तीन बहनों की-ज्वाला, लीला और हीरा। ये मुंबई में रहती हैं। ये तीनों कबड्डी खेलती थीं और दूसरों को सिखाती भी थीं। ज्वाला बताती हैं, “हम जब छोटे थे तब लोग लड़कियों को यह खेल खेलने नहीं देते थे। लोगों को लगता था कि अगर लड़कियाँ छीना-झपटी वाला खेल खेलेंगी, तो उनसे कोई शादी नहीं करेगा। कबड्डी में लड़कों वाले कपड़े पहनने पड़ते हैं। इसलिए भी लोग खेलने से मना करते थे।”

अध्यापक के लिए-ओर्लपपिक खेलों मे पदक जीतने वाले खिलाड़ियों के बारे में पता करने के लिए बच्चों को मदद करें।

तीनों ही बहनें काफ़ी छोटी थीं, जब उनके पिता की मृत्यु हो गई। उनकी माँ और मामाओं ने तीनों को पाला। दोनों मामा खो-खो और कबड्डी खेला करते थे। उन्हीं से ही यह शौक इन बहनों में भी आया।

ज्वाला और लीला बताती हैं, “आज से करीब पचास साल पहले, जब हमने कबड्डी खेलना शुरू किया था, तो लड़कियों के पास कबड्डी खेलने के मौके नहीं थे। माता-पिता भी मदद नहीं करते थे, लेकिन हम सोचते थे कि लड़कियों को कबड्डी ज़रूर खेलना चाहिए। माँ और मामाओं ने हमें कभी नहीं रोका। हम तीनों ने कबड्डी खेलना सीखा और अपने मोहल्ले की कुछ लड़कियों को भी खेल में शामिल किया। हमने कबड्डी का एक क्लब बनाया, जो आज, इतने सालों बाद भी चल रहा है।”

याद आए वे दिन !

लीला और हीरा अपने मैचों के बारे में बड़े जोश से बताती हैं। कई मैच तो वे बिलकुल हारते-हारते जीतीं, क्योंकि उन्होंने तो मन में ठान ही लिया था कि कभी हार नहीं माननी है। उन मैचों के दौरान कई बड़ी मज़ेदार घटनाएँ भी हुईं। एक बार वे दूसरे शहर में एक बड़ा मैच खेलने गईं थीं। “मैच शाम को 6.30 बजे शुरू होना था। हम 3 से 6 की पिक्चर देखने चले गए। हमने सोचा कि मैच के समय तक तो वापिस पहुँच ही जाएँगे। पिक्चर शुरू हुई ही थी कि हॉल में हल्ला मचने लगा। पता चला कि हमारे मामा हमें ढूँढ़ रहे थे। उनके हाथ में एक टॉर्च थी। वे एक-एक करके सब के चेहरों पर रोशनी डालकर पहचानने की कोशिश कर रहे थे। मामा ने वहीं हॉल में ही हमें खूब ज़ोर से डाँट लगाई।”

उनके जीवन में कबड्डी को लेकर कई कठिनाइयाँ आईं, परंतु कबड्डी का मज़ा कभी कम नहीं हुआ। सबसे छोटी बहन हीरा तो कबड्डी की कोच भी बनी। ये बहनें चाहती हैं कि तुम जैसे स्कूल के बच्चे अपनी पसंद के खेल खेलें, और कबड्डी तो खेलें ही।

अध्यापक के लिए-इन उदाहरणों के द्वारा कक्षा में बच्चों का ध्यान इस ओर दिलाएँ कि कई बार लड़कियों को खेलने के मौके लड़कों के बराबर नहीं मिलते। इस पर चर्चा करवाई जा सकती है। माँ के भाई को मामा कहते हैं। बच्चों से पता करें कि वे अपनी माँ के भाई को क्या कहते हैं।

  • क्या तुमने किसी कोच से कोई खेल सीखा है? कौन-सा?
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  • क्या तुम किसी को जानते हो, जिसने किसी कोच से कोई खेल सीखा हो?
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चर्चा करो

  • कोच कैसे सिखाते हैं? कोच किस प्रकार अभ्यास करवाते हैं? खिलाड़ियों को कितनी मेहनत करनी पड़ती है?

  • क्या तुमने कभी अपनी पसंद के खेल के लिए क्लब बनाने के बारे में सोचा है?

  • मान लो, 15 बच्चों को दो टीमों में बँट कर खो-खो खेलना है। दोनों टीमों में सात-सात खिलाड़ी होंगे। एक खिलाड़ी बच जाएगा, नहीं तो टीमें बराबर नहीं हो पाएँगी। ऐसा होने पर तुम क्या करते हो? क्या तुम कभी बीच का बिच्छू बने हो? उसके बारे में बताओ।

  • हर खेल में कुछ नियम होते हैं। वह खेल उन नियमों के अनुसार ही खेला जाता है। अगर उन नियमों में कुछ बदलाव कर दिया जाए, तो देखें खेल में क्या बदलाव आता है। जैसे-क्रिकेट में विकेट पर से गुल्लियों के गिरने पर बल्लेबाज़ आउट हो जाता है। सोचो, अगर नियम हो कि एक ही बार में तीनों विकेट गिर जाएँ, तो पूरी टीम ही आउट हो जाएगी। क्या खेल में मज़ा आएगा?

  • इस नियम के अनुसार खेलकर देखो। कुछ अलग-अलग खेलों के नियम तुम भी बनाओ और खेल कर देखो।



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