पाठ 07 खिड़की से
17 मई
अब सुबह हो गई है। मैं कल रात बहुत जल्दी सो गई थी। बाहर इतना अँधेरा था कि कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। आज सुबह जब ट्रेन रुकी तो मेरी आँख खुली। बाहर प्लेटफ़ॉर्म पर लगे बोर्ड पर लिखा था-मडगाँव। अप्पा ने बताया कि अब हम गोआ राज्य में हैं।
हमने स्टेशन पर उतरकर चाय पी और अपनी पानी की बोतलें भी भर लीं।
ट्रेन फिर चल पड़ी। बाहर का नज़ारा देखने लायक है। चारों तरफ़ हरियाली है। मैदानों की लाल मिट्टी में उगे छोटे-छोटे पौधे और पेड़ों से ढँकी पहाड़ियाँ बहुत ही सुंदर लग रही हैं। कभी-कभी छोटे तालाब दिखाई पड़ते हैं। बहुत दूर पहाड़ियों के बीच पानी दिखाई दे रहा है। मुझे पता नहीं कि वहाँ नदी है या समुद्र। हवा ठंडी है, अहमदाबाद की तरह गर्म नहीं।
ट्रेन अभी-अभी एक रेलवे फाटक से गुज़री। दोनों तरफ़ फाटक के पार बसों, कारों, ट्रकों, साइकिल, स्कूटर, रिक्शा, बैलगाड़ी, ताँगे में बैठे लोग ट्रेन के गुज़रने का इंजज़ार करते दिखाई दिए। कुछ लोग तो अपनी गाड़ियों के इंजन बंद भी नहीं करते। रेलवे फाटक पर कितना धुआँ और कितना ज़्यादा शोर था! मैंने देखा कि कुछ लोग बंद रेलवे फाटक को नीचे से झुक कर भी पार कर रहे थे। कितना खतरनाक है यह!
कभी-कभी हमारी ट्रेन दूसरी ट्रेन के बिलकुल पास से गुज़रती है। मैंने और उन्नी ने डिब्बे गिनने की कई बार कोशिश की, पर दोनों ही ट्रेन इतनी तेज़ चल रही थीं कि हमारी गिनती कभी भी मेल नहीं खाई। गड़बड़ ही हुई।
-
ओमना ने पहले और दूसरे दिन खिड़की से बाहर जो नज़ारा देखा, उसमें क्या अंतर है?
_______________________________________________________________________________ -
ओमना ने रेलवे फाटक के दोनों तरफ़ कौन-कौन से वाहन देखे, जो पेट्रोल या डीज़ल से चलते होंगे?
_______________________________________________________________________________ -
इन वाहनों से शोर और धुआँ क्यों हो रहा था?
_______________________________________________________________________________ -
वाहनों के शोर तथा पेट्रोल-डीज़ल की बचत के लिए हम क्या कर सकते हैं? चर्चा करो।
_______________________________________________________________________________
चर्चा करो
कुछ लोग रेलवे फाटक तब भी पार करते हैं, जब वह बंद होता है। तुम इसके बारे में क्या सोचते हो?
17 मई
मैं खिड़की के पास आँखें बंद किए बैठी थी कि अचानक ट्रेन के चलने की आवाज़ बदल गई-खड़-खड़-खड़…। मैंने आँखें खोलीं। अंदाजा लगाओ, मैंने क्या देखा? हमारी ट्रेन नदी के ऊपर बने पुल पर से जा रही थी। कितना बड़ा था वह पुल! पुल पर से जाते हुए ट्रेन के पहियों की आवाज़ भी कितनी अलग होती है। मैंने खिड़की से नीचे झाँका, तो मुझे बहुत डर लगा। पटरी के नीचे ज़मीन तो थी ही नहीं, केवल पानी ही पानी था! नदी में कुछ नावें दिखाई दे रही थीं और किनारे पर कुछ मछुआरे। मैंने उन्हें हाथ हिलाकर इशारा किया। पता नहीं वे मुझे देख भी पाए या नहीं।
ट्रेन के पुल के साथ-साथ दूसरे वाहनों के लिए एक और पुल भी बना हुआ था। वह इस पुल से अलग तरह से बना था। मुझे लगा कि हमारे जैसे पुल के ऊपर से जाने में ज़्यादा मज़ा है।
-
क्या तुमने पुल देखे हैं? कहाँ?
_______________________________________________________________________________ -
क्या तुम कभी किसी पुल पर से गुज़रे हो? कहाँ?
_______________________________________________________________________________ -
पुल किस पर बना था?
_______________________________________________________________________________ -
तुम्हें पुल के नीचे क्या दिखाई दिया था?
_______________________________________________________________________________ -
पता करो पुल क्यों बनाए जाते हैं?
_______________________________________________________________________________
17 मई
पिछले कुछ घंटे बहुत ही मज़ेदार रहे। नाश्ता करने के बाद मैं ऊपर अपने बर्थ पर लेट कर कॉमिक पढ़ने लगी। बाहर बहुत तेज़ धूप खिली थी। अचानक बिलकुल अँधेरा हो गया। थोड़ी ठंड भी लगने लगी। मैं बहुत डर गई। कुछ ही देर बाद ट्रेन के अंदर की बत्तियाँ जल उठीं, पर बाहर बिलकुल घुप्प अँधेरा था। किसी ने बताया, हम सुरंग में से गुज़र रहे थे। पहाड़ को काटकर बनी सुरंग! ऐसा लग रहा था, जैसे सुरंग खत्म ही नहीं होगी। जैसे अचानक अँधेरा हुआ था, वैसे ही पहले की तरह भरपूर रोशनी हो गई। खिड़की से बाहर चमकती धूप, रोशनी और हरियाली थी। ट्रेन सुरंग से बाहर निकल चुकी थी। अप्पा ने बताया कि हम पहाड़ के दूसरी तरफ़ पहुँच गए हैं। तब से अब तक हम चार और छोटी सुरंगों में से गुज़र चुके हैं। अब, जब मैं सुरंग के बारे में जान चुकी हूँ, मुझे डर नहीं लगता, बल्कि मज़ा आता है।
-
क्या तुम कभी किसी सुरंग से गुज़रे हो? तुम्हें कैसा लगा?
_______________________________________________________________________________ -
गोआ से केरल तक के रेल के रास्ते में 92 सुरंगें और 2000 पुल हैं। तुम क्या सोचते हो-इतनी सुरंगों और पुलों के होने के क्या कारण हो सकते हैं?
_______________________________________________________________________________ -
ओमना ने पुल के नीचे जो नज़ारा देखा, उसे पढ़कर उसका चित्र कॉपी में बनाओ।
-
कल्पना करो अगर सुरंगें और पुल न होते, तो ओमना की ट्रेन पहाड़ और नदियाँ कैसे पार करती।
17 मई
अब दोपहर हो गई है। हमने उदिपी स्टेशन से जो गरमागरम इडली-वड़ा खरीदा था, उसे खाया। वहाँ से हमने केले भी खरीद लिए थे। वे थे तो बहुत छोटे-छोटे, पर थे बहुत स्वादिष्ट! बाहर का नज़ारा फिर बदल गया है। अब हम हरे-हरे खेत और बहुत सारे नारियल के पेड़ देख पा रहे हैं। अम्मा ने बताया कि यहाँ चावल की खेती होती है। बाहर सब कुछ अलग दिखाई दे रहा है-यहाँ के गाँव और यहाँ बने घर। जानती हो, यहाँ के लोगों का पहनावा भी अहमदाबाद के लोगों से अलग है। ज़्यादातर लोग सफ़ेद या क्रीम रंग की सूती धोती और साड़ियाँ पहने हैं। अहमदाबाद से हमारे साथ चले बहुत-से लोग बीच के स्टेशनों पर उतर गए। कुछ और लोग चढ़े भी हैं।
शाम छह बजे तक कोज़ीकोड पहुँचेंगे। सुनील का परिवार वहाँ उतर जाएगा। हमने एक-दूसरे का पता ले लिया है और अहमदाबाद में मिलने की योजना भी बनाई है। तुम्हें भी सुनील और एन से मिलकर अच्छा लगेगा।
-
तुम घर में कौन-सी भाषा बोलते हो?
_______________________________________________________________________________ -
गुजरात से केरल पहुँचने तक ट्रेन हमारे देश के किन-किन राज्यों से गुज़री? पता करो और सूची कापी में बनाओ।
_______________________________________________________________________________ -
क्या तुमनें नारियल पानी पीया है? कैसा लगा? चर्चा करो।
_______________________________________________________________________________ -
नारियल के पेड़ का चित्र बनाओ और उस पर चर्चा करो।
_______________________________________________________________________________ -
पता करो कि ये भाषाएँ किन जगहों पर बोली जाती हैं।
भाषा | जहाँ बोली जाती है ( राज्य ) |
---|---|
मलयालम | |
कोंकणी | |
मराठी | |
गुजराती | |
कन्नड़ |
17 मई
अब रात हो चुकी है। हमने अपना सामान सँभालना शुरू कर लिया है। लगभग तीन घंटे में हमारा स्टेशन कोट्टायम भी आ जाएगा। वहाँ हमें उतरना है।
आज रात को हम वलियम्मा के घर जाएँगे। वहाँ से सुबह बस में बैठकर अम्मूमा के गाँव के लिए रवाना होंगे। सभी बहुत थक गए हैं। आज ट्रेन में हमारा दूसरा दिन खत्म होने को है। बाप रे! कितना लंबा सफ़र तय किया है हमने। पर मज़ा भी बहुत आया। अब मैं लिखना बंद कर रही हूँ। अम्मूमा के घर पहुँचकर ही फिर डायरी लिखूँगी।
- तुम इन्हें क्या कहकर बुलाते हो?
माँ की बहन को _______________________
माँ की माँ को _______________________
पिताजी की बहन को _______________________
पिताजी की माँ को _______________________
अध्यापक के लिए-विभिन्न राज्यों की भाषा, पहनावे, भोजन और भू-भागों के बारे में जानकारी इकट्ठी करने में बच्चों की मदद की जा सकती है। मलयालम में वलियम्मा, माँ की बड़ी बहन को कहते हैं और अम्मूमा अपनी माँ की माँ को।