पाठ 06 ओमना का सफ़र
ओमना का सफ़र
ओमना और उसकी पक्की अंले राधा बुता खूशश थीं। वे आथ-आय ट्रेन झे केरल गो जा रही शीं। ओमना जा रही थी अपनी नानी के घर और साधा अपने परिवार के आय छुद्वियाँ मनानो। ओमना के अप्पा ही गए थे, दोनों परिवारों के लिए दिकर बुक कराने।
अप़र से दो दिन पहले ही राधा आइकिल से गिर गई्इ और उसके दाएँ पैर की हड्धी ढूठ गाई़ा डॉक्टर ने एह एपतों के लिए उसकी दाई़ ढाँग पर पलसस्तर चढ़ा दिया और चलने-किरने के लिए मी मना कर दियाया राधा के परिवार को अपनी टिकरें रद्द करानी पड़ीं। राधा और ओमना बहुत उदाभ हो गईं। कितनी तैचारी की थी, दोनों ने मिलकर। राधा की माँ ने एक उपाय सुझा़ाया। उन्होंने ओमना से कहा, “तुम अपने पूरे अप़र की बातें उायशी में लिखतती अहना। जब तुम वापिस आओगी, तब राधा तुम्हाशी डायशी पढ़ लेगी। इसझे तुम कोई बात भूलोगी नहीं और अप़र में तुम्हारा अमय मी अच्छा बीतेगा।”
छोनों अहलियों को पह बात अच्दी लगी। ओमना ने अप़ऱ में अपनो आथ एक कॉपी रख की और रास्ते की अभी बातें लिखती रही। ओमना की डायरी के कुछ पण्ने तुम मी पढ़ो।
ओमना की डायरी
16 मई
दोपहर का समय था। स्टेशन पर पहुँचते ही हमने सबसे पहले अपने नाम ‘रिज़्रेशन चार्ट’ में देखे। जल्दी ही ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म पर आ पहुँची। हमने देखा कि ट्रेन तो पहले से ही भरी हुई थी। आज सुबह-सुबह ही यह ट्रेन गाँधीधाम, कच्छ से चली थी। ट्रेन के पहुँचते ही हलचल-सी मच गई। एक ही दरवाजे़े से कुछ लोग उतर रहे थे, तो कुछ चढ़ने के लिए धक्का-मुक्की कर रहे थे।
हम भी जैसे-तैसे चढ़ ही गए और अपनी सीट ढूँढ़कर अपना सामान सीट के नीचे रख दिया। ट्रेन के चलने से पहले सभी अपनी-अपनी सीटों पर बैठ चुके थे। कुछ देर बाद टिकट-चेकर आया और उसने सभी की टिकटें देखीं। वह यह देख रहे थे कि सभी ठीक सीटों पर बैठे हैं या नहीं। अम्मा और अप्पा को नीचे वाली बर्थ मिली, उन्नी और मुझे बीच वाली। सबसे ऊपर वाली बर्थ पर कॉलेज के दो लड़के हैं। पास ही बैठे परिवार के दोनों बच्चे हमारे जितने ही लग रहे हैं। मैं उनसे बात ज़रूर करूँगी, पर थोड़ी देर बाद।
मैं अब खिड़की के पास बैठी यह सब लिख रही हूँ। अम्मा ने खाने का डिब्बा खोल लिया है। ढोकला, चटनी, नींबू वाले चावल और मिठाई-कितनी सारी चीज़ें लाई हैं अम्मा! मेरे मुँह में तो पानी आ रहा है। बाकी बातें अब बाद में ही लिखूँगी।
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ट्रेन के डिब्बे के दरवाज़े पर धक्का-मुक्की क्यों हो रही थी?
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क्या तुमने कभी ट्रेन में सफ़र किया है? कब?
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अगर तुम सफ़र पर जाओ, तो खाने-पीने का क्या-क्या सामान ले जाना पसंद करोगे? क्यों?
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टिकट-चेकर के क्या-क्या काम होते हैं?
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तुम टिकट-चेकर को कैसे पहचानोगे?
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16 मई
दोपहर का खाना खाकर कुछ लोग सो गए, पर मुझे नींद नहीं आई। मैं खिड़की से बाहर देखती रही। यहाँ बाहर सूखे, भूरे मैदान दिखाई पड़े। कहीं-कहीं छोटे-छोटे गाँव भी दिखे। लग रहा था, जैसे सभी भाग रहे हैं। पता है, जब ट्रेन इतनी तेज़ी से चलती है, तो बाहर की सभी चीजें उलटी दिशा में भागती दिखाई देती हैं!
कुछ समय पहले बहुत गर्मी थी। अब शाम हो गई है और हलकी-हलकी हवा चल रही है।
बाहर आसमान संतरी रंग का दिखाई दे रहा है, सूरज जो डूब रहा है। मैंने अहमदाबाद में कभी डूबते सूरज पर ध्यान ही नहीं दिया!
हम अभी-अभी वलसाड़ स्टेशन से निकले हैं। वहाँ ट्रेन दो ही मिनट के लिए रुकी थी। स्टेशन पर खाने-पीने की चीज़ें बेचने वालों का बहुत शोर था"चाय! गरम, चाय!",
एक तरफ़ से आवाज़ आ रही थी, “बटाटा-वड़ा! बटाटा-वड़ा!, पूरी-साग!”," दूध! ठंडा, दूध!" लोग प्लेटफ़ॉर्म पर खाने की चीज़ें खरीद और बेच रहे थे। हमने तो खिड़की से ही केले और चीकू खरीद लिए थे।
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ओमना ने खिड़की से बाहर क्या देखा?
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रेलवे स्टेशन पर क्या-क्या चीज़ें बिकती हैं?
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16 मई
मैं थोड़ी देर पहले बाथरूम में हाथ-मुँह धोने गई थी, पर वहाँ पानी खत्म हो गया था। किसी ने कहा कि अब पानी अगले स्टेशन
मैंने साथ बैठे बच्चों से दोस्ती कर ली है। वे पर ही भरा जाएगा। हैं-सुनील और एन। वे अपनी दादी के घर कोज़ीकोड जा रहे हैं। सुनील ने मुझे कहानी की कुछ किताबें पढ़ने को दीं।
अध्यापक के लिए-गाँधीधाम, अहमदाबाद और वलसाड़ गुजरात में हैं। कोज़ीकोड केरल में है। बच्चों को नक्शे पर गुजरात और केरल दिखाने से उन्हें यह बात समझने में आसानी होगी कि यह सफ़र बहुत लंबा है।
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ट्रेन के बाथरूम में पानी खत्म क्यों हो गया? चर्चा करो।
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कल्पना करो कि अब तुम्हें ट्रेन में एक लंबे सफ़र पर जाना है। तुम अपने साथ मनोरंजन के लिए क्या-क्या सामान ले जाना चाहोगे?
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चित्रों को पहचान कर लिखो, रेलवे स्टेशन पर ये लोग क्या काम करते हैं? चर्चा करो।
अध्यापक के लिए-रेलवे स्टेशन पर टिकट काउंटर व ऑनलाइन रेलवे टिकट बुक करने के तरीकों पर चर्चा करें। वेबलिंक $http://www.com.indianrailways.gov.in/crism/home.seam$ का प्रयोग करें।