Banking And Financial Reforms In India
भारत में बैंकिंग और वित्तीय सुधार
भारत में बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र ने 1990 के दशक से महत्वपूर्ण सुधारों का सामना किया है। इन सुधारों का उद्देश्य क्षेत्र की आधुनिकीकरण, उत्कृष्टता में वृद्धि और इसे प्रतिस्पर्धी बनाने का था।
मुख्य सुधार
भारत में बैंकिंग और वित्तीय सुधारों में कुछ मुख्य शामिल हैं:
- ब्याज दरों का उदारीकरण: 1990 के दशक की शुरुआत में, भारत सरकार ने जमा और ऋणों पर ब्याज दरों का उदारीकरण किया। इससे बैंकों को अपनी ब्याज दरें स्थापित करने की अनुमति मिली, जो प्रतियोगिता में वृद्धि और ऋणदाताओं के लिए कम ब्याज दरों की निर्धारण के लिए प्रेरित करती है।
- नई निजी बैंकों का प्रवेश: सरकार ने नई निजी बैंकों को बाजार में प्रवेश करने की अनुमति दी, जो प्रतिस्पर्धा में वृद्धि करके बैंकिंग सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करती है।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का संयोजन: सरकार ने कई सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का संयोजन किया है ताकि अधिक बड़े, अधिक कुशल बैंक बनाए जा सकें।
- अंतरराष्ट्रीय लेखा मानकों के अवगमन: भारतीय बैंकों ने अंतरराष्ट्रीय लेखा मानकों (IAS) को अपनाया है ताकि वित्तीय विवरणों की पारदर्शिता और तुलनायोग्यता में सुधार हो सके।
- बेसल III मानकों के प्रारंभ: भारतीय बैंकों ने बेसल III मानकों को लागू किया है, जो बैंक पूंजी और नकदी के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक हैं।
सुधारों का प्रभाव
भारत में बैंकिंग और वित्तीय सुधारों का सकारात्मक प्रभाव हुआ है। सुधारों से प्रतियोगिता में वृद्धि, कम ब्याज दरें, सुधारित वित्तीय स्थिरता और वित्तीय सेवाओं का अधिक उपयोग होता है।
चुनौतियाँ
ज्यादातर चीजों के बावजूद, भारत में बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र को अभी भी कुछ चुनौतियाँ हैं। इन चुनौतियों में शामिल हैं:
- अधिकाधिकरणकारियों (एनपीए) के उच्च स्तर: एनपीए वे ऋण हैं जिनका चुकाने का संभावना नहीं है। उच्च स्तर के एनपीए क्षेत्र की वित्तीय स्थिरता को कमजोर कर सकते हैं।
- अपर्याप्त वित्तीय समावेशन: भारत में आम जनता का एक बड़ा हिस्सा अभी भी स्वतंत्र वित्तीय सेवाओं का उपयोग नहीं करता है।
- साइबर सुरक्षा की जोखिम: बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र को साइबर हमलों के प्रति अधिक असुरक्षितता का सामना करना पड़ता है।
निष्कर्ष
भारत में बैंकिंग और वित्तीय सुधार सफल रहे हैं। सुधारों से प्रतियोगिता में वृद्धि, कम ब्याज दरें, सुधारित वित्तीय स्थिरता और वित्तीय सेवाओं का अधिक उपयोग हुआ है। हालांकि, क्षेत्र को उच्च स्तर के एनपीए, आपूर्ति की अपर्याप्तता, और साइबर सुरक्षा की चुनौतियों जैसी कुछ चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है।